भगवती तारा
दैहिक ,दैविक तथा भौतिक _ इन तीनो तापो से तारने वाली कको तारा कहा जाता है |तारा शब्द का सरल अर्थ है उभारने वाली | काली तथा तारा में सामान्य सा भेद है |
यह
१]अविधा
२]अस्मिता
३]राग
४]द्वेष
५]अभिनिवेश
इन पांचो क्लेशो से जिव की रक्षा करती है |
तारा के अंतर्गत तीन शक्तिओ की गणना की जाते है
१]उग्र तारा
२]एकजटा
३]नील सरसती
साधको को उग्रआपत्ति काटीं दुःख से छुटकारा दिलाकर भव बंधन से मुख्त करते वाली तथा संसार रूपी विपत्ति से तारने वाली होने के कारन इससे उग्र तारा कहते है|कैवल्य दायिनी होने के कारन इसका ना एकजटा है |तथा सरलता पूर्वक ज्ञान देने वाली होने के कारण इससे नील सरस्वती कहा जाता हैं.
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।
विशेष -
किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें
राजगुरु जी
तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान अनुसंधान संस्थान
महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट
(रजि.)
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