Friday, December 23, 2016

श्री शिवजी बोले -

हे रावण ! अब मैं तुमसे यक्षिणी साधन का कथन करता हूं , जिसकी सिद्धि कर लेने से साधक के सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं ।

सर्वासां यक्षिणीना तु ध्यानं कुर्यात् समाहितः ।
भविनो मातृ पुत्री स्त्री रुपन्तुल्यं यथेप्सितम् ॥

तन्त्र साधक को अपनी इच्छा के अनुसार बहिन , माता , पुत्री व स्त्री ( पत्नी ) के समान मानकर यक्षिणियों के स्वरुप का ध्यान अत्यन्त सावधानीपूर्वक करना चाहिए । कार्य में तनिक – सी भी असावधानी हो जाने से सिद्धि की प्राप्ति नहीं होती ।

भोज्यं निरामिष चान्नं वर्ज्य ताम्बूल भक्षणम् ।
उपविश्य जपादौ च प्रातः स्नात्वा न संस्पृशेत् ॥

यक्षिणी साधन में निरामिष अर्थात् मांस तथा पान का भोजन सर्वथा निषेध है अर्थात् वर्जित है । अपने नित्य कर्म में , प्रातः काल स्नान आदि करके मृगचर्म ( के आसन ) पर बैठकर फिर किसी को स्पर्श न करें । न ही जप और पूजन के बीच में किसी से बात करें ।
नित्यकृत्यं च कृत्वा तु स्थाने निर्जनिके जपेत् ।
यावत् प्रत्यक्षतां यान्ति यक्षिण्यो वाञ्छितप्रदाः ॥

अपना नित्यकर्म करने के पश्चात् निर्जन स्थान में इसका जप करना चाहिए । तब तक जप करें , जब तक मनवांछित फल देने वाली ( यक्षिणी ) प्रत्यक्ष न हो । क्रम टूटने पर सिद्धि में बाधा पड़ती है । अतः इसे पूर्ण सावधानी तथा बिना किसी को बताए करें । यह सब सिद्धकारक प्रयोग हैं ।

यह विधि सभी यक्षिणीयों के साधन में प्रयुक्त की जाती है ।

‘ ॐ क्लीं ह्रीं ऐं ओं श्रीं महा यक्षिण्ये सर्वैश्वर्यप्रदात्र्यै नमः ॥ ”

इमिमन्त्रस्य च जप सहस्त्रस्य च सम्मितम् ।
कुर्यात् बिल्वसमारुढो मासमात्रमतन्द्रितः ॥

उपर्युक्त मन्त्र को जितेन्द्रिय होकर बेल वृक्ष पर चढ़कर एक मास पर्यन्त प्रतिदिन एक हजार बार जपें ।

सत्वामिषबलिं तत्र कल्पयेत् संस्कृत पुरः ।
नानारुपधरा यक्षी क्वचित् तत्रागमिष्यति ॥

मांस तथा मदिरा का प्रतिदिन भोग रखें , क्योंकि भांति – भांति का रुप धारण करने वाली वह यक्षिणी न जाने कब आगमन कर जाए ।

तां दृष्ट्वा न भयं कुर्याज्जपेत् संसक्तमानसः ।
यस्मिन् दिने बलिंभुक्तवा वरं दातुं समर्थयेत् ॥

जब यक्षिणी आगमन करे तो उसे देखकर डरना नहीं चाहिए , क्योंकि वह कभी – कभी भयंकर रुप में आ जाती है । उसके आगमन करने पर दृढ़ता पूर्वक रहें , डरें नहीं । अपने मन में जप करते रहें ।

तदावरान्वे वृणुयात्तांस्तान्वेंमनसेप्सितान् ।
धन्मानयितुं ब्रूयादथना कर्णकार्णिकीम् ॥

जिस दिन बलि ग्रहण करके वह ( यक्षिणी ) वर देने को तैयार हो , उस दिन जिस वर की कामना हो , उससे मांग लेना चाहिए , धन लाने को कहें अथवा कान में बात करने को कहें ।

भोगार्थमथवा ब्रूयान्नृत्यं कर्तुमथापि वा ।
भूतानानयितुं वापि स्त्रियतायितुं तथा ॥

भोग के लिए उससे नाचने के लिए कहें , प्राणियों को लाने की , स्त्रियों को लाने की बात कहें ।

राजानं वा वशीकर्तुमायुर्विद्यां यशोबलम् ।
एतदन्यद्यदीत्सेत साधकस्तत्तु याचयेत् ॥

राजा को वश में करने के लिए , आयु , विद्या एवं यश के लिए साधक को तत्क्षण वर मांग लेना चाहिए ।

चेत्प्रसन्ना यक्षिणी स्यात् सर्व दद्यान्नसंशयः ।
आसक्तस्तुद्विजैः कुर्यात् प्रयोग सुरपूजितम् ॥

प्रसन्न होकर यक्षिणी सब कुछ प्रदान करती है , इसमें संदेह नहीं हैं । यदि प्रयोग को स्वयं न कर सकें तो किसी ब्राह्मण से कराएं । यह यक्षिणी साधन देवताओं द्वारा बी किया गया है ।

सहायानथवा गृह्य ब्राह्मणान्साध्यें व्रतम् ।
तिस्त्रः कुमारिका भौज्याः परमन्नेन नित्यशः ॥

फिर अपने सहायकों को रखकर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और प्रतिदिन तीन कुमारी कन्याओं को भी भोजन कराते रहें ।

सिद्धैधनादिके चैव सदा सत्कर्म आचरेत् ।
कुकर्मणि व्ययश्चेत् स्यात् सिद्धिर्गच्छतिनान्यथा ॥

धन इत्यादि की सिद्धि होने पर धन को अच्छे कार्यों में व्यय करें , नहीं तो सिद्धि छिन्न हो जाती हैं ।

धनदा यक्षिणी मन्त्र प्रयोग

” ॐ ऐं ह्रीं श्रीं धनं मम देहि देहि स्वाहा ॥ ”

अश्वत्थवृक्षमारुह्य जपेदेकाग्रमानसः ।
धनदाया यक्षिण्या च धनं प्राप्नोति मानवः ॥

धन देने वाली यक्षिणी का जप पीपल के वृक्ष पर बैठकर एकाग्रतापूर्वक करना चाहिए । इससे धनदादेवी प्रसन्न होकर धन प्रदान करती हैं ।

पुत्रदा यक्षिणी मन्त्र प्रयोग

” ॐ ह्रीं ह्रीं हूं रं पुत्रं कुरु कुरु स्वाहा ॥ ”

इस मन्त्र को दस हजार बार जपना चाहिए ।

चूतवृक्षं समारुह्य जपेदेकाग्र मानस ।
अपुत्रो लभते पुत्रं नान्यथा मम भाषितम् ॥

पुत्र की इच्छा करने वाले व्यक्ति को आम के वृक्ष के ऊपर चढ़कर जप् करना चाहिए तब पुत्रदा यक्षिणी प्रसन्न होकर पुत्र प्रदान करती है ।

महालक्ष्मी यक्षिणी मन्त्र प्रयोग

” ॐ ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः ॥ ”

वटवृक्षे समारुढो जपेदेकाग्रमानसः ।
सा लक्ष्मी यक्षिणी च स्थितालक्ष्मीश्च जायते ॥

वट वृक्ष ( बरगद के वृक्ष ) पर ऊपर ( किसी मोटी शाखा पर ) बैठकर एकाग्र मन से महालक्ष्मी यक्षिणी का दस हजार जप करें तो लक्ष्मी स्थिर होती है और साधक को सफलता मिलती है ।

जया यक्षिणी मन्त्र प्रयोग

” ॐ ऐं जया यक्षिणायै सर्वकार्य साधनं कुरु कुरु स्वाहा ॥ ”
अर्कमूले समारुढो जपेदेकाग्रमानसः ।
यक्षिणी च जया नाम सर्वकार्यकरी मता ॥

आक की मूल के ऊपर बैठकर उपरोक्त मन्त्र का जप करने से जया नामक यक्षिणी प्रसन्न होकर सब कार्यों को सिद्ध करती हैं ।

गुप्तेन विधिना कार्य प्रकाश नैव कारयेत् ।
प्रकाशे बहुविघ्नानि जायते नात्र संशयः ॥
प्रयोगाश्चानुभूतोऽयं तस्मद्यत्नं समाचरेत् ।
निर्विघ्नेन विधानेन भवेत् सिद्धिरनुत्तमा ॥

यक्षिणियों की साधना सदैव गुप्त रुप से ही करनी चाहिए , प्रकट रुप से करने में विघ्नों का भय रहता है तथा प्रयोग सिद्ध नहीं हो पाते , निर्विघ्न विधान से सिद्धि की प्राप्ति अवश्य होती हैं ।

सा भूतिनी कुण्डलधारिणी च सिन्दूरिणी चाप्यथ हारिणी च ।

नटी तथा चातिनटी च चैटी कामेश्वरी चापि कुमारिका च ॥

भूतिनी नाम की यक्षिणी बहुत से रुप धारण कर लेती है , जैसे कुण्डल धारण करन्जे वाली , सिन्दूर धारण करने वाली , हार पहनने वाली , नाचने वाली , अत्यन्त नृत्य करने वाली , चेटी , कामेश्वरी और कुमारी आदि रुपों में आती हैं ।

भूतिनी यक्षिणी का मंत्र निम्न है -

” ॐ ह्रां क्रूं क्रूं कटुकटु अमुकी देवी वरदा सिद्धिदा च भव ओं अः ॥ ”

चम्पावृक्षतले रात्रौ जपेदष्ट सहस्रकम् ।
पूजनं विधिना कृत्वा दद्यात् गुग्गुलपधूकम् ॥
सप्तमेऽहि निशीथे च सा चागच्छिति भूतिनी ।
दद्यात् गन्धोदकेनार्घ्यतुष्टामातादिका भयेत् ॥

भूतिनी यक्षिणी का जप चम्पा वृक्ष के नीचे प्रतिदिन आठ हजार बार करें । सर्वप्रथम भूतिनी का पूजन करें , फिर गुग्गुल की धूप दें । ऐसा करने से सातवीं रात में भूतिनी आती है । जब वह आगमन करे तो उसे चन्दन मिश्रित जल से अर्घ्य दें । वह प्रसन्न होकर उसी रुप में परिणत हो जाती है , जिस रुप की कामना की है ।

मातेत्यष्टादशानां चं वस्त्रालंकार भोजनम् ।
भगिनी चेत्तदा नारीं दूरादा कृष्यक मुन्दरीम् ॥
रसं रसांजनं दिव्यं विधानं च प्रयच्छति ।
भार्यचपृष्ठमारोप्य स्वर्ग नयति कामिता ।
भोजनं कामिकं नित्य साधमाय प्रयच्छति ॥

जब साधक यक्षिणी को माता के रुप में सिद्ध करता है तो वह अठ्ठारह व्यक्तियों के वस्त्र , आभूषण और भोजन प्रतिदिन देती है । एक बहन के रुप में सिद्ध होने पर सुंदर स्त्रियों को दूर – दूर से लाकर देती है तथा रसपूर्ण दिव्य भोजन प्रदान करती है । पत्नी के रुप में सिद्ध होने पर वह साधक को अपनी पीठ पर बैठाकर स्वर्ग आदि लोकों का भ्रमण कराती है एवं भोजनादि के पदार्थ भी उपलब्ध कराती है ।

रात्रौ पुष्पेण गत्वा शुभा शय्योपकल्पयेत् ।
जाति पुष्पेण वस्त्रेण चन्दनेन च पूजयेत् ॥
धूपं गुग्गुलं दत्त्वा जपेदष्ट सहस्त्रकम् ।
जपान्ते शीघ्रमायाति चुम्बत्यालिंगयत्यपि ॥
सर्वालंकारसंयुक्ता संभोगादि समन्विता ।
कुबेरस्य गृहादेव द्रव्यमाकृष्य यच्छति ॥

रात्रि हो जाने पर मंदिर में आसन बिछाकर सजाएं तथा चमेली के पुष्प एवं चंदन आदि से पूजब्न करें और गुग्गुल की धूप देकर मंत्र का आठ हजार जप करें । जप की समाप्ति पर संपूर्ण अलंकारों से युक्त होकर यक्षिणी आगमन करती है और साधक का आलिंगन – चुम्बनादि करके उससे संभोग करती है तथा कुबेर के खजाने से धन लाकर उसे देती है ।

2….यक्षिणी चौदह प्रकार की बताई गयीं हैं:-

1. महायक्षिणी

2. सुन्दरी
3. मनोहरी
4. कनक यक्षिणी
5. कामेश्वरी
6. रतिप्रिया
7. पद्मिनी
8. नटी
9. रागिनी
10. विशाला
11. चन्द्रिका
12. लक्ष्मी
13. शोभना
14. मर्दना

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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अघोरी का मंत्र

मंत्र:---

आडू देश से चला अघोरी , हाथ लिये मुर्दे की झोली , खड़ा होए बुलाय लाव , सोता हो जागे लाव ,

तुझे अपने गुरु अपनों की दुहाई ,, बाबा मनसा राम की दुहाई !

 ............ विधान:-----

मंगलवार या शनिवार के दिन , कृष्णपक्ष से रात्रि के समय , लाल या काले आसन पर बैठ कर नित्य ही ११ माला का जप करे ! अपने सम्मुख अघोरी आत्मा हेतु एक मिट्टी के कुलहड़ में देसी शराब , श्वेत फूलो की माला , मिठाई -नमकीन आदि रखे !

गूगल की धुप और कडुवे तेल का गिरी हुए बत्ती का दीपक अवश्य प्रज्ज्वलित रखे ! जब जप पूर्ण हो जाये ,, तो ये सभी सामग्री किसी चौराहे पर या किसी पीपल के पेड के नीचे चुपचाप से रख आये और हाथ-पैर धोकर सो जाये ! ७वे दिन मत जाये !

तब किसी अघोरी की आत्मा आएगी और सामग्री न देने का कारन बहुत ही कड़क शब्दों में पूछेगी .....! घबराए नहीं और उत्तर भी मत देना और जो पूर्व दिन की बची सामग्री है -[जो देनी थी] वो दे दे

.......! कुछ भी प्रशन न करे और न ही किसी प्रश्न का उत्तर दे !

अब जप के पश्चात् जो सामग्री-[वर्तमान दिन ...यानि ८ वे दिन की है ] है ...फिर से चौराहे पर या पीपल के पेड के नीचे रख आये !

 ...ये क्रिया या साधन ११ दिन तक होगा ! और ११ वे दिन अघोरी की आत्मा आएगी और सौम्य भाषा -शब्दों में वार्ता करगी ....! उससे अपनी बुद्धि के अनुसार वचन आदि लेना ! ये आत्मा साधक के अभिष्टों को पूर्ण करेगी !

जब भी किसी कुल्हड़ में देसी शराब और नमकीन -मिठाई अघोरी के नाम से अर्पित करोगे तो वो सम्मुख आकर साधक की समस्या का निवारण भी करेगी .....! स्पष्ट है की अघोरी की आत्मा साधक के आस-पास ही रहेगी ........!

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अघोरी का मंत्र

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आडू देश से चला अघोरी , हाथ लिये मुर्दे की झोली , खड़ा होए बुलाय लाव , सोता हो जागे लाव ,

तुझे अपने गुरु अपनों की दुहाई ,, बाबा मनसा राम की दुहाई !

 ............ विधान:-----

मंगलवार या शनिवार के दिन , कृष्णपक्ष से रात्रि के समय , लाल या काले आसन पर बैठ कर नित्य ही ११ माला का जप करे ! अपने सम्मुख अघोरी आत्मा हेतु एक मिट्टी के कुलहड़ में देसी शराब , श्वेत फूलो की माला , मिठाई -नमकीन आदि रखे !

गूगल की धुप और कडुवे तेल का गिरी हुए बत्ती का दीपक अवश्य प्रज्ज्वलित रखे ! जब जप पूर्ण हो जाये ,, तो ये सभी सामग्री किसी चौराहे पर या किसी पीपल के पेड के नीचे चुपचाप से रख आये और हाथ-पैर धोकर सो जाये ! ७वे दिन मत जाये !

तब किसी अघोरी की आत्मा आएगी और सामग्री न देने का कारन बहुत ही कड़क शब्दों में पूछेगी .....! घबराए नहीं और उत्तर भी मत देना और जो पूर्व दिन की बची सामग्री है -[जो देनी थी] वो दे दे

.......! कुछ भी प्रशन न करे और न ही किसी प्रश्न का उत्तर दे !

अब जप के पश्चात् जो सामग्री-[वर्तमान दिन ...यानि ८ वे दिन की है ] है ...फिर से चौराहे पर या पीपल के पेड के नीचे रख आये !

 ...ये क्रिया या साधन ११ दिन तक होगा ! और ११ वे दिन अघोरी की आत्मा आएगी और सौम्य भाषा -शब्दों में वार्ता करगी ....! उससे अपनी बुद्धि के अनुसार वचन आदि लेना ! ये आत्मा साधक के अभिष्टों को पूर्ण करेगी !

जब भी किसी कुल्हड़ में देसी शराब और नमकीन -मिठाई अघोरी के नाम से अर्पित करोगे तो वो सम्मुख आकर साधक की समस्या का निवारण भी करेगी .....! स्पष्ट है की अघोरी की आत्मा साधक के आस-पास ही रहेगी ........!

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Thursday, December 22, 2016

अप्सरा साधना के नियम

यदि किसी भाई या बहन को साधना में यकीन ना हो तो यह साधनाए मत करें। यह साधना तो केवल साधक जगत के लोगों के लिए हैं ना कि किसी को यकीन दिलाने के लिए। साधक इन सब साधनाओं के बारे मे पहले से ही जानते हैं। बिना किसी के मार्गदर्शन मे साधना करने से समय ज्यादा लगता है

इसलिए अच्छा यही है कि अपने गुरु की सहायता और आज्ञा प्राप्त करने के बाद ही इस प्रकार की साधना करें तो अधिक उपयुक्त रहेगा। जिन लोगों को इस प्रकार की साधना मे यकीन ना हो वो सब इनको कहानीयाँ समझ कर भुल जायें ऐसी हमारी प्रार्थना हैं।

The name of many Nymphs or Apsara are:

 Ambika, Alamvusha, Anavdaya, Anuchana, Aruna, Asita, Budbudha, Chandra Jyotsna, Devi, Ghartchi, Gunmukya, Gunuvra-Herrsha, Indar-lakshmi, Kamya, Karnika, Keshini, Kshaema Lata, Lakshmna, Manorama, Maarichi, Maneka, Misrasthlah, Mrigakshi, Nabhidarshana, Puarv-chitti, Pushpdeha, Rakshaita, Rambha, Rituashalah, Sahjanya, Samichi, Sor-Bhedi, Saradvti, Shuchika, Somi, Shuvahu, Shugandha, Supriya, Surza, Surasa, Surata (Riti Priya), Tialottama, Umalocha, Urvashi, Wpu, Waraga, Vidyutparna, Vihaachi.



अप्सराये अत्यंत सुंदर और जवान होती हैं. उनको सुंदरता और शक्ति विरासत में मिली है. वह गुलाब का इत्र और चमेली आदि की गंध पसंद करती हैं। तुमको उसके शरीर से बहुत प्रकार की खुशबू आती महसूस कर सकते हैं. यह गन्ध किसी भी पुरुष को आकर्षित कर सकती हैं। वह चुस्त कपड़े पहनना के साथ साथ अधिक गहने पहना पसंद करती है. इनके खुले-लंबे बाल होते है। वह हमेशा एक 16-17 साल की लड़की की तरह दिखती है। दरअसल, वह बहुत ही सीधी होती है। वह हमेशा उसके साधक को समर्पित रहती है।

 वह साधक को कभी धोखा नहीं देती हैं। इस साधना के दौरान अनुभव हो सकता है, कि वह साधना पूरी होने से पहले दिखाई दे। अगर ऐसा होता है, तो अनदेखा कर दें। आपको अपने मंत्र जाप पूरा करना चाहिए जैसा कि आप इसे नियमित रूप से करते थे।

कोई जल्दबाजी ना करे जितने दिन की साधना बताई हैं उतने दिन पुरी करनी चाहिए। काम भाव पर नियंत्रण रखे। वासना का साधना मे कोई स्थान नहीं होता हैं। अप्सरा परीक्षण भी ले सकती हैं। जब सुंदर अप्सरा आती है तो साधक सोचता है, कि मेरी साधना पूर्ण हो गया है। लेकिन जब तक वो विवश ना हो जाये तब तक साधना जारी रखनी चाहिए।

केई साधक इस मोड़ पर, अप्सरा के साथ यौन कल्पना लग जाते है। यौन भावनाओं से बचें, यह साधना ख़राब करती हैं। जब संकल्प के अनुसार मंत्र जाप समाप्त हो और वो आपसे अनुरोध करें तो आप उसे गुलाब के फूल और कुछ इत्र दे।

उसे दूध का बनी मिठाई पान आदि भेंट दे। उससे वचन ले ले की वह जीवन-भर आपके वश में रहेगी। वो कभी आपको छोड़ कर नहीं जाएगी और आपक कहा मानेगी। जब तक कोई वचन न दे तब तक उस पर विश्वास नही किया जा सकता क्योंकि वचन देने से पहले तक वो स्वयं ही चाहती हैं कि साधक की साधना भंग हो जाये।

किसी भी साधना मैं सबसे महत्वपुर्ण भाग उसके नियम हैं. सामान्यता सभी साधना में एक जैसे नियम होते हैं. परतुं मैं यहाँ पर विशेष तौर पर यक्षिणी और अप्सरा साधना में प्रयोग होने वाले नियम का उल्लेख कर रहा हूँ । अप्सरा या यक्षिणी साधना में ऊपर जो अण्डरलाइन और हरे रंग से लिखे गये नियम ही प्रयोग में आने वाले नियम हैं ।

1. ब्रह्मचये :

 सभी साधना मैं ब्रह्मचरी रहना परम जरुरी होता हैं. सेक्स के बारे में सोचना, करना, किसी स्त्री के बारे में विचारना, सम्भोग, मन की अपवित्रा, गन्दे चित्र देखना आदि सब मना हैं, अगर कुछ विचारना हैं तो केवल अपने ईष्ट को, आप सदैव यह सोचे कि वो सुन्दर सी अलंकार युक्त अप्सरा या देवी आपके पास ही मौजुद हैं और आपको देख रही हैं. और उसके शरीर में से ग़ुलाब जैसी या अष्टगन्ध की खुशबू आ रही हैं । साकार रुप मैं उसकी कल्पना करते रहो.

2. भूमि शयन :

 केवल जमीन पर ही अपने सभी काम करें. जमीन पर एक वस्त्र बिछा सकते हैं और बिछना भी चाहिए

3. भोजन :

मांस, शराब, अन्डा, नशे, तम्बाकू, लहसुन, प्याज आदि सभी का प्रयोग मना हैं. केवल सात्विक भोजन ही करें.

4. वस्त्र :

वस्त्रो में उन्ही रंग का चुनाव करें जो देवता पसन्द करता हो.( आसन, पहनने और देवता को देने के लिये) (सफेद या पीला अप्सरा के लिये)

5. क्या करना हैं :-

नित्य स्नान, नित्य गुरु सेवा, मौन, नित्य दान, जप में ध्यान- विश्वास, रोज पुजा करना आदि अनिवार्य हैं. और जप से कम से कम दो-तीन घंटे पहले भोजन करना चाहिए

6. क्या ना करें :-

जप का समय ना बद्ले, क्रोध मत करो, अपना आसन किसी को प्रयोग मत करने दो, खाना खाते समय और सोकर जागते समय जप ना करें. बासी खाना ना खाये, चमडे का प्रयोग ना करना, साधना के अनुभव साधना के दोरान किसी को मत बताना (गुरु को छोडकर)

7. मंत्र जप के समय कृपा करके नींद्, आलस्य, उबासी, छींक, थूकना, डरना, लिंग को हाथ लगाना, बक्वास, सेल फोन को पास रखना, जप को पहले दिन निधारित संख्या से कम-ज्यादा जपना, गा-गा कर जपना, धीमे-धीमे जपना, बहुत् तेज-तेज जपना, सिर हिलाते रहना, स्वयं हिलते रहना, मंत्र को भुल जाना( पहले से याद नहीं किया तो भुल जाना ), हाथ-पैंर फैलाकर जप करना, पिछ्ले दिन के गन्दे वस्त्र पहनकर मंत्र जप करना, यह सब कार्य मना हैं (हर मंत्र की एक मुल ध्वनि होती हैं अगर मुल ध्वनि- लय में मंत्र जपा तो मज़ा ही जायेगा, मंत्र सिद्धि बहुत जल्द प्राप्त हो सकती हैं जो केवल गुरु से सिखी जा सकती हैं )

8. यादि आपको सिद्धि करनी हैं तो श्री शिव शंकर भगवान के कथन को कभी ना भुलना कि “जिस साधक की जिव्हा परान्न (दुसरे का भोजन) से जल गयी हो, जिसका मन में परस्त्री (अपनी पत्नि के अलावा कोई भी) हो और जिसे किसी से प्रतिशोध लेना हो उसे भला केसै सिद्धि प्राप्त हो सकती हैं”

9. और एक सबसे महत्वपुर्ण कि आप जिस अप्सरा की साधना उसके बारे में यह ना सोचे कि वो आयेगी और आपसे सेक्स करेंगी क्योंकि वासना का किसी भी साधना में कोई स्थान नहीं हैं । बाद कि बातें बाद पर छोड दे । क्योंकि सेक्स में उर्जा नीचे (मुलाधार) की ओर चलती हैं जबकि साधना में उर्जा ऊपर (सहस्त्रार) की ओर चलती हैं

10. किसी भी स्त्री वर्ग से केवल माँ, बहन, प्रेमिका और पत्नी का सम्बन्ध हो सकता हैं । यही सम्बन्ध साधक का अप्सरा या देवी से होता हैं।

11.यह सब वाक सिद्ध होती हैं । किसी के नसिब में अगर कोई चीज़ ना हो तब भी देने का समर्थ रखती हैं । इनसे सदैव आदर से बात करनी चाहिए।

अप्सरा और यक्षिणी वशीकरण कवच:

इस कवच को यक्षिणी पुजा से पहले 1,5 या 7 बार जप किया जाना चाहिए। इस कवच के जप से किसी भी प्रकार की सुन्दरी साधना में विपरीत परिणाम प्राप्त नहीं होते और साधना में जल्द ही सिद्धि प्राप्त होती हैं। हम आशा करते हैं कि जब भी आप कोई भी यक्षिणी साधना करोगें तो इस कवच का जप अवश्य करोगें। इस कवच के जप से समस्त प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली यक्षिणी साधक के नियंत्रण मे आ जाती हैं और साधक के सभी मनोरथो को पूर्ण करती हैं। यक्षिणी साधना से जुडा यह कवच अपने आप मे दुर्लभ हैं। इस कवच के जपने से यक्षिणीयों का वशीकरण होता हैं। तो क्या सोच रहे हैं आप……………………

।। श्री उन्मत्त-भैरव उवाच ।।

श्रृणु कल्याणि ! मद्-वाक्यं, कवचं देव-दुर्लभं। यक्षिणी-नायिकानां तु, संक्षेपात् सिद्धि-दायकं ।।
ज्ञान-मात्रेण देवशि ! सिद्धिमाप्नोति निश्चितं। यक्षिणि स्वयमायाति, कवच-ज्ञान-मात्रतः ।।
सर्वत्र दुर्लभं देवि ! डामरेषु प्रकाशितं। पठनात् धारणान्मर्त्यो, यक्षिणी-वशमानयेत् ।।

विनियोगः-

ॐ अस्य श्रीयक्षिणी-कवचस्य श्री गर्ग ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री अमुकी यक्षिणी देवता, साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे विनियोगः।

ऋष्यादिन्यासः-

 श्रीगर्ग ऋषये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, श्री रतिप्रिया यक्षिणी देवतायै नमः हृदि, साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे।

।। मूल पाठ ।।

शिरो मे यक्षिणी पातु, ललाटं यक्ष-कन्यका।
मुखं श्री धनदा पातु, कर्णौ मे कुल-नायिका ।।
चक्षुषी वरदा पातु, नासिकां भक्त-वत्सला।
केशाग्रं पिंगला पातु, धनदा श्रीमहेश्वरी ।।
स्कन्धौ कुलालपा पातु, गलं मे कमलानना।
किरातिनी सदा पातु, भुज-युग्मं जटेश्वरी ।।
विकृतास्या सदा पातु, महा-वज्र-प्रिया मम।
अस्त्र-हस्ता पातु नित्यं, पृष्ठमुदर-देशकम् ।।
भेरुण्डा माकरी देवी, हृदयं पातु सर्वदा।
अलंकारान्विता पातु, नितम्ब-स्थलं दया ।।
धार्मिका गुह्यदेशं मे, पाद-युग्मं सुरांगना।
शून्यागारे सदा पातु, मन्त्र-माता-स्वरुपिणी ।।
निष्कलंका सदा पातु, चाम्बुवत्यखिलं तनुं।
प्रान्तरे धनदा पातु, निज-बीज-प्रकाशिनी ।।
लक्ष्मी-बीजात्मिका पातु, खड्ग-हस्ता श्मशानके।
शून्यागारे नदी-तीरे, महा-यक्षेश-कन्यका।।
पातु मां वरदाख्या मे, सर्वांगं पातु मोहिनी।
महा-संकट-मध्ये तु, संग्रामे रिपु-सञ्चये ।।
क्रोध-रुपा सदा पातु, महा-देव निषेविका।
सर्वत्र सर्वदा पातु, भवानी कुल-दायिका ।।
इत्येतत् कवचं देवि ! महा-यक्षिणी-प्रीतिवं।
अस्यापि स्मरणादेव, राजत्वं लभतेऽचिरात्।।
पञ्च-वर्ष-सहस्राणि, स्थिरो भवति भू-तले।
वेद-ज्ञानी सर्व-शास्त्र-वेत्ता भवति निश्चितम्।
अरण्ये सिद्धिमाप्नोति, महा-कवच-पाठतः।
यक्षिणी कुल-विद्या च, समायाति सु-सिद्धदा।।
अणिमा-लघिमा-प्राप्तिः सुख-सिद्धि-फलं लभेत्।
पठित्वा धारयित्वा च, निर्जनेऽरण्यमन्तरे।।
स्थित्वा जपेल्लक्ष-मन्त्र मिष्ट-सिद्धिं लभेन्निशि।
भार्या भवति सा देवी, महा-कवच-पाठतः।।
ग्रहणादेव सिद्धिः स्यान्, नात्र कार्या विचारणा ।।

नोटः-

शुद्ध उच्चारण के साथ किसी साधक के मार्गदर्शन में इन मंत्रों का प्रयोग करना ही लाभकर होगा।यदि किसी भी प्रकार की दिक्कते हो,तो मुझसे सम्पर्क कर सकते है।

आप सभी को मेरी शुभकामनाएं साधना करें साधनामय बनें......

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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पति वशीकरण मंत्र

पति वशीकरण मंत्र यदि पति किसी दूसरी स्त्री के चक्कर में पड गया हो तो पत्नी स्वयं यह प्रयोग करे तो लाभ होगा .

मन्त्र :-

|| ॐ नमो महायक्षिण्ये मम पतिम में वश्यं कुरु कुरु स्वाहा ||

नवरात्रि में रोज रात्रि काल में इस मन्त्र की २१ माला जाप करें. यदि रात्रि में न कर सकें तो सुविधानुसार कभी भी कर लें.

नवमी के दिन २१ नारियल अपने पति के सर से उतारा कर के देवी मंदिर में चढ़ा दें.

यदि ऐसा संभव न हो तो उसके फोटो के ऊपर उतारा कर लें.

यदि वास्तव में ऐसा कुछ होगा तो उसका निराकरण हो जायेगा .

फिर नित्य माथे पर बिंदी लगते समय इस मंत्र का उच्चारण करते हुए बिंदी लगायें.

इससे इसका प्रभाव बना रहेगा. यह मन्त्र केवल अपने पति [ जिसके साथ आपकी शादी हुई है ] के लिए काम करेगा यदि गलत उपयोग करेंगे तो उल्टा प्रभाव दिखायेगा.

आप सभी को मेरी शुभकामनाएं साधना करें साधनामय बनें......

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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गणेश मोहिनी वशीकरण



मोहिनी साधनए तो बहुत है इन सभी में गणेश मोहिनी साधना श्रेष्ट कही गई है | वैसे तो मोहिनी साधनाये अपना पूर्ण प्रभाव रखती है |

इन में से श्री गोरखनाथ मोहिनी ,शाह हजरत अली की सुलेमानी मोहिनी ,मोहमंद सहब की शाम कोर मोहिनी और पंज पीर मोहिनी प्रयोग वीर हनुमान मोहिनी रतड़ी मोहिनी बीबों मोहनी साबर साधनायों में बेमिसाल मानी गई है ! जहां मैं गणेश मोहिनी दे रहा हु यह मेरी अनुभूत साधना है ! ऐसी साधनाए मिलना भी सोभाग्य माना जाता है |

साबर तंत्र , साधना के हर पहलू को उजागर करती है | चाहे वोह वीर साधना हो जा यक्षणी साधना साबर तंत्र आश्चर्ज से भरा हुया है !साधना तो दे रहा हु पर किसी भी हालत में इसका गलत प्रयोग न करे अथवा परिणाम भी आपको भुगतने पड़ेगे मैं जहां साधको की जिज्ञाशा के लिए यह अनुभूत साधना दे रहा हु कोई भी तर्क कुतर्क माईने नहीं रखता क्यू के इसे मैं स्व परख कर ही दे रहा हु यह साधना मुझे वावा श्याम जी से प्राप्त हुई थी | बहुत ही बेमिसाल साधना है |

 यह किसी भी असभव कार्य को सभव करने का बल रखती है | इसे करने के लिए अनुष्ठान करना पड़ता है यह एक दिन की साधना है और इसे घर में नहीं करना है | घर में करने से फलदायी नहीं होगी यह बात आप याद रखे | एक आदमी कनेडा में था |

उसकी बेटी को उसी के जवाई ने जहर दे दिया था और उल्टा केश भी कर दिया था बेटी तो बच गई लेकिन केश का फैसला नहीं हो पा रहा था | वकील भी दलीले दे कर हार गया था | वह जब मिला उस की समस्या के निवारण के लिए यह प्रयोग किया वहाँ के जज और वकील सभी समोहित हो गए थे |

 फैसला उसी के हक़ में हो गया और उसके जवाई को 18 बर्ष की कैद हो गई यह बात 2006 की है | इस लिए कोई ऐसा काम जो आपसे न हो पा रहा हो जैसे दफ्तर में नोकरी में प्रेशानी हो | या घर का महोल आपके अनुकूल नहीं है तो यह साधना राम बाण की तरह असर करती है | इस से किसी भी व्यक्ति को वश में कर अपना काम निकाला जा सकता है | पर यह बात भी जरूर कहनी चहुगा किसी भी हालत में किसी लड़की की ज़िंदगी खराब न करे वरना इसका उलट असर भी हो जाता है !

विधि –

इस के लिए स्मगरी ले उस में निम्न वस्तुए 10-10 रुपेए की लेकर मिला ले !

1 –स्लीरा
2-लाल चंदन पाउडर
3-सफ़ेद चंदन पाउडर
4 बादाम
5 शुयायारे
5 गिरि गोला
6 किसमिस
7 सरियाला
8 अगर
9 तगर

और जटा मासी और एक 1.50 किलो हवन स्मगरी आधा किलो तिल काले,
यह समान किसी भी पंसारी की दुकान से आसानी से मिल जाता है ! अगर कोई चीज न भी मिले तो भी कोई बात नहीं आप हवन में फूल मखाने और कमल गट्टे भी मिला सकते है |

 एक कटोरी शकर और आधा किलो शुद्ध घी मिला कर समग्री तयार कर ले और इस हवन के लिए आम की लकड़ चाहिए अब किसी भी नजदीक जंगल में जा कर रात्री को गणपती का पूजन और उस के बाद 1100 आहुति देनी है | इस मंत्र से ऐसा करने से साधना सिद्ध हो जाती है हवन करते हुए इस बात का ख्याल रखे के जंगल को आग न लगे इस लिए जा तो निर्जन सथान जा नदी का किनारा भी बेहतर है |

 रात 9 व्जे के पहचान्त हवन शुरू करे इस में तीन घंटे से ज्यादा का समय लग जाता है | भोग के लिए पाँच लड्डू रख ले और पुजा के पहचान्त साधना पूर्ण होने के बाद उहने वोही छोड़ दे और घर आ जाए जा जहां आपने स्टे की है वहाँ आ जाए | सिंदूर की एक डीबी साथ ले जाए और उसे खोल कर पास रख ले जब साधना पूर्ण हो जाए तो उसे साथ ले आए इस का तिलक सभी को समोहित कर देगा |

जहां एक बात जरूर कहनी चाहुगा कई लोग अपनी अनुकूलता के लिए साधना के नियम बना लेते है जब परिणाम सही नहीं मिलते तो साधना को गलत कह देते है | इस लिए साधना में दिये हुये नियमो की पालना अनिवार्य है !

साधना करने से पूर्व गुरु पूजन कर आज्ञा ले ले और फिर जंगल में जा कर रात 9 से 1 वजे तक साधना संम्पन कर ले इस में किसी प्रकार की हानी नहीं होती इस लिए सभी ड़र दिल से निकाल दे !

साबर मंत्र –

ॐ गणपती वीर वसे मसान ,जो मैं मांगु सो तुम आन !
पाँच लड्डू वा सिर संदूर त्रीभुवन मांगे चंपे के फूल!
अष्ट कुली नाग मोहा जो नाड़ी 72 कोठा मोहु !
इंदर की बैठी सभा मोहु आवती जावती ईस्त्री मोहु !
जाता जाता पुरुष मोहु ! डावा अंग वसे नर सिंह जीवने क्षेत्र पाला ये!

आवे मारकरनता सो जावी हमारे पाउ पड्न्ता!
गुरु की शक्ति हमारी भगती चलो मंत्र आदेश गुरुका !

आप सभी को मेरी शुभकामनाएं साधना करें साधनामय बनें......

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Tuesday, December 20, 2016

धूमावती एक एसी महाविद्या है

धूमावती एक एसी महाविद्या है जिनके बारे मे साहित्य अत्यधिक कम मात्र मे मिलता है. इस महाविद्या के साधक भी बहोत कम मिलते है. मूल रूप से इनकी साधना शत्रु स्तम्भन और नाशन के लिए की जाती है.

 लेकिन इस महाविद्या से सबंधित कई ऐसे प्रयोग है जिनके बारे मे व्यक्ति कभी सोच भी नहीं सकता. चरपटभंजन नाम धूमावती के उच्चकोटि के साधको के मध्य प्रचलित रहा है, चरपट भंजन को ही चरपटनाथ या चरपटीनाथ कहा गया है.

चरपटनाथ ने अपने जीवन काल मे धूमावती सबंधित साधनाओ का प्रचुर अभ्यास किया था और मांत्रिक धूमावती को सिद्ध करने वाले गिने चुने व्यक्ति मे इनकी गणना होती है, वे कालजयी रहे है और आज भी वे सदेह है. उनके बारे मे ये प्रचलित है की वह किसी भी तत्व मे अपने आप को बदल सकते है चाहे वह स्थूल हो या सूक्ष्म, जैसे मनुष्य पशु पक्षी पानी अग्नि या कुछ भी.

 ७५०-८०० साल पहले धूमावती साधना के सबंध मे फैली भ्रान्ति को दूर करने के लिए इस महान धूमावती साधक ने कई ग्रंथो की रचना की जिसमे धूमावतीरहस्य, धूमावतीसपर्या, धूमावती पूजा पध्धति जैसे अत्यधिक रोचक ग्रंथ सामिल है. कई गुप्त तांत्रिक मठो मे आज भी यह ग्रन्थ सुरक्षित है. लेकिन यह साधना पद्धतिया लुप्त हो गयी और जन सामान्य के मध्य कभी नहीं आई.

 धूमावती अलक्ष्मी होते हुए भी लक्ष्मी प्राप्ति से लेके वैभव ऐश्वर्य तथा जीवन के पूर्ण भोग प्राप्त करने के लिए भी धूमावती साधना के कई विधानों का उन्होंने प्रचार किया था. लेकिन ये साधनाओ को गुप्त रखने की पीछे का मूल चिंतन सायद तब की परिस्थिति हो या कुछ और लेकिन इससे जन सामान्य के मध्य साधको का हमेशा ही नुक्सान रहा है.

 चरपटभंजन ने जो कई गुप्त पध्धातियो का विकास किया था उनमे से एक साधना एसी भी थि जिसको करने से व्यक्ति अपने सामने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व के बारे मे कुछ भी जान लेता है. जैसे की चरित्र कैसा है, इस व्यक्ति की प्रकृति क्या है, इसके दिमाग मे इस वक्त कौनसे विचार चल रहे होंगे?

 इस प्रकार की साधना अत्यधिक दुस्कर है क्यों जीवन के रोज ब रोज के कार्य मे ऐसी साधनाओ से कितना और क्या विकास हो सकता है कैसे फायदा हो सकता है ये तो व्यक्ति खुद ही समज सकता है. मानसिक शक्तियो के विकास की अत्यधिक दुर्लभ साधनाओ मे यह साधना अपना एक विशेष स्थान लिए हुए है. चरपटनाथ द्वारा प्रणित धूमावती प्रयोग आप सब के मध्य रख रहा हू.

इस साधना को करने से पूर्व साधक अपने स्थान का चुनाव करे. साधक के साधना स्थल पर और आसान पर साधक की जब तक साधना चले कोई और व्यक्ति न बैठे. इस साधना मे साधक को ११ माला मंत्र जाप एक महीने (३० दिन) तक करना है. माला काले हकीक की रहे. वस्त्र काले रहे. समय रात्रि काल मे ११ बजे के बाद का हो. धूमावती का यन्त्र चित्र अपने सामने स्थापित करे. तेल का दीपक साधना समय मे जलते रहना चाहिए.

यन्त्र चित्र का पूजन कर के विनियोग करे

विनियोग:

 अस्य श्री चरपटभंजन प्रणित धूमावती प्रयोगस्य पूर्ण विनियोग अभीष्ट सिद्धियर्थे करिष्यमे पूर्ण सिद्धियर्थे विनियोग नमः

इसके बाद निम्न मंत्र का ११ माला जाप करे

ओम धूमावती करे न काम, तो अन्न हराम, जीवन तारो सुख संवारो, पुरती मम इच्छा, ऋणी दास तमारो ओम छू

मंत्र जाप के बाद साधक धूमावती देवी को ही मंत्र जाप समर्पित कर दे.
ये अत्यधिक दुर्लभ विधान सम्प्पन करने के बाद व्यक्ति यु कहा जाए की अजेय बन जाता है तो भी अतिशियोक्ति नहीं होगी.

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम
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Monday, December 19, 2016

लौन्कडिया वीर साधना

लौन्कडिया वीर साधना एक दुर्लभ साधना है बहुत कम लोग इस साधना के विषय में जानते है ! लौन्कडिया वीर महापण्डित रावण जी की एक विशेष सेना के सेनापति थे !

उन्हें माँ जगदम्बा का वरदान था और माँ जगदम्बा की कृपा से लौन्कडिया वीर तंत्र में अमर हो गए ! इस साधना के दम पर आप अपने शत्रुओं को परास्त कर सकते है और अपने बहुत से रुके हुए कार्य करवा सकते है ! यह साधना बहुत उग्र है इसलिए गुरु आज्ञा से ही करे ! साधना के दौरान कुछ आवाजें सुनाई देगी पर कुछ दिनों के बाद सब शांत हो जायेगा !

।। मन्त्र ।।

लौन्कडिया वीर भागे भागे आओ

दौड़े दौड़े आओ, जैसे दुर्गा द्वारे कूदे

वैसे मेरे द्वारे कूदो

रावण जी के सेनापति पाताल के राजा

देखा लौन्कडिया वीर तेरी हजारी का तमाशा!

।। साधना विधि ।।

इस साधना को आप किसी भी दिन से शुरू कर सकते है !

आसन पर बैठकर आसन जाप पढ़े और शरीर कीलन कर रक्षा घेरा बनाये !

एक तेल का दीपक जलाएं और गुरुदेव से आज्ञा लेकर गुरुमंत्र जपे और गणेश जी का पूजन करे , फिर इस मन्त्र का 15 माला जाप करे !

यह क्रिया आपको 41 दिन करनी है ! हररोज दूध में जलेबी उबालकर पूजा के समय पास रखले और बाद में उजाड़ स्थान पर रख आये !

अंतिम दिन किसी ११ साल के लड़के को एक गुली डंडा और दक्षिणा दे!

।। प्रयोग विधि ।।

लौन्कडिया वीर से जब भी कोई काम करवाना हो तो जलेबी को दूध में उबालकर भोग तैयार करले और एक माला मन्त्र की जपकर कार्य बोल दे और सामग्री उजाड़ स्थान में रखदे ! आपका कार्य सिद्ध हो जायेगा !

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम
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कुलदेवी /कुल देवता कृपा प्राप्ति साधना :-

जिनके कुलदेवी/कुलदेवता की जानकारी उन्हें नहीं है केवल उनके लिए:

प्रत्येक हिन्दू वंश और कुलों में कुल देवता अथवा कुल देवी की पूजा की परंपरा रही है |इस परंपरा को हमारे पूर्वजों और ऋषियों ने शुरू किया था |उद्देश्य था एक ऐसे सुरक्षा कवच का निर्माण जो हमारी सुरक्षा भी करे और हमारी उन्नति में भी सहायक हो |यह हर कुल और वंश के लिए विशिष्ट प्रकार की उर्जाओं की आराधना है ,जिसमे हर वंश के साथ अलग विशिष्टता और परंपरा जुडी होती है |कुछ वंश में कुल देवी होती हैं तो कुछ में कुल देवता |आज के समय में अधिकतर हिन्दू परिवारों में लोग कुल देवी और कुल देवता को भूल चुके हैं जिसके कारण उनका सुरक्षा चक्र हट चूका है और उन तक विभिन्न बाधाएं बिना किसी रोक टोक के पहुच रही हैं |परिणाम स्वरुप बहुत से परिवार परेशान हैं |

इनमे स्थान परिवर्तन करने वाले अधिक हैं जैसे जो लोग आजादी के बाद पाकिस्तान से आये उनको पता नहीं हैं ,जो विदेशों में बस गए उनको पता नहीं है ,जिन्होंने किसी कारण धर्म अथवा सम्प्रदाय बदल दिया उन्हें पता नहीं है |हमने तो बहुत से सिक्ख और जैन में यह समस्या पाई है जिनके पूर्वज हिन्दू हुआ करते थे और कुल देवता की पूजा होती रही थी उनके यहाँ पहले ,पर बाद में बंद हो गयी |ऐसे कुछ परिवार आज विभिन्न बाधाओं से परेशान हैं ,पर आज की पीढ़ी को कुल देवता/देवी का पता ही नहीं है |वह अक्सर हमसे पूछते रहते हैं की आखिर वे अब करें तो क्या करें |.

ऐसे लोगों के लिए हम एक पूजा-साधना प्रस्तुत कर रहे हैं |जिसके माध्यम से आप अपनी कुलदेवी की कमी को पूरा कर सकते हैं और एक सुरक्षा चक्र का निर्माण आपके परिवार के आसपास हो जाएगा | घर मे क्लेश चल रही हो,,कोई चिंता हो,,या बीमारी हो, धन कि कमी,धन का सही तरह से इस्तेमाल न हो,या देवी/देवतओं कि कोई नाराजी हो तो इन सभी समस्याओ के लिये कुलदेवी /कुल देवता साधना सर्वश्रेष्ट साधना है.|चूंकि अधिकतर कुलदेवता /कुलदेवी शिव कुल से सम्बंधित होते हैं ,अतः इस पूजा साधना में इसी प्रकार की ऊर्जा को दृष्टिगत रखते हुए साधना पद्धती अपनाई गयी है |

सामग्री :-

———– ४ पानी वाले नारियल,लाल वस्त्र ,१० सुपारिया ,८ या १६ शृंगार कि वस्तुये ,पान के १० पत्ते , घी का दीपक,कुंकुम ,हल्दी ,सिंदूर ,मौली ,पांच प्रकार कि मिठाई ,पूरी ,हलवा ,खीर ,भिगोया चना ,बताशा ,कपूर ,जनेऊ ,पंचमेवा ,

साधना विधि :-

—————- सर्वप्रथम एक लकड़ी के बाजोट या चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं |उस पर चार जगह रोली और हल्दी के मिश्रण से अष्टदल कमल बनाएं |अब उत्तर की ओर किनारे के अष्टदल पर सफ़ेद अक्षत बिछाएं उसके बाद दक्षिण की ओर क्रमशः पीला ,सिन्दूरी और लाल रंग से रंग हुआ चावल बिछाएं |चार नारियल में मौली लपेटें |एक नारियल को एक तरफ किनारे सफ़ेद चावल के अष्टदल पर स्थापित करें |अब तीन नारियल में से एक नारियल को पूर्ण सिंदूर से रंग दे दूसरे को हल्दी और तीसरे नारियल को कुंकुम से,फिर ३ नारियल को मौली बांधे |इस तीन नारियल को पहले वाले नारियल के बायीं और क्रमशः अष्टदल पर स्थापित करें |प्रथम बिना रंगे नारियल के सामने एक पान का पत्ता और अन्य तीन नारियल के सामने तीन तीन पान के पत्ते रखें ,इस प्रकार कुल १० पान के पत्ते रखे जायेंगे |अब सभी पत्तों पर एक एक सिक्का रखें ,फिर सिक्कों पर एक एक सुपारियाँ रखें |प्रथम नारियल के सामने के एक पत्ते पर की सुपारी पर मौली लपेट कर रखें इस प्रकार की सुपारी दिखती रहे ,यह आपके कुल देवता होंगे ऐसी भावना रखें |अन्य तीन नारियल और उनके सामने के ९ पत्तों पर आपकी कुल देवी की स्थापना है | इनके सामने की सुपारियों को पूरी तरह मौली से लपेट दें |अब इनके सामने एक दीपक स्थापित कर दीजिये.|

अब गुरुपूजन और गणपति पूजन संपन्न कीजिये.| अब सभी नारियल और सुपारियों की चावल, कुंकुम, हल्दी ,सिंदूर, जल ,पुष्प, धुप और दीप से पूजा कीजिये. | जहा सिन्दूर वाला नारियल है वहां सिर्फ सिंदूर ही चढ़े बाकि हल्दी कुंकुम नहीं |जहाँ कुमकुम से रंग नारियल है वहां सिर्फ कुमकुम चढ़े सिन्दूर नहीं |बिना रंगे नारियल पर सिन्दूर न चढ़ाएं ,हल्दी -रोली चढ़ा सकते हैं ,यहाँ जनेऊ चढ़ाएं ,जबकि अन्य जगह जनेऊ न चढ़ाए | इस प्रकार से पूजा करनी है | अब पांच प्रकार की मिठाई इनके सामने अर्पित करें |.घर में बनी पूरी -हलवा -खीर इन्हें अर्पित करें |चना ,बताशा केवल रंगे नारियल के सामने अर्थात देवी को चढ़ाएं |,आरती करें |साधना समाप्ति के बाद प्रसाद परिवार मे ही बाटना है.| श्रृंगार पूजा मे कुलदेवी कि उपस्थिति कि भावना करते हुये श्रृंगार सामग्री तीन रंगे हुए नारियल के सामने चढा दे और माँ को स्वीकार करने की विनती कीजिये.|

इसके बाद हाथ जोड़कर इनसे अपने परिवार से हुई भूलों आदि के लिए क्षमा मांगें और प्राथना करें की हे प्रभु ,हे देवी ,हे मेरे कुलदेवता या कुल देवी आप जो भी हों हम आपको भूल चुके हैं ,किन्तु हम पुनः आपको आमंत्रित कर रहे हैं और पूजा दे रहें हैं आप इसे स्वीकार करें |हमारे कुल -परिवार की रक्षा करें |हम स्थान ,समय ,पद्धति आदि भूल चुके हैं ,अतः जितना समझ आता है उस अनुसार आपको पूजा प्रदान कर रहे हैं ,इसे स्वीकार कर हमारे कुल पर कृपा करें |

यह पूजा नवरात्र की सप्तमी -अष्टमी और नवमी तीन तिथियों में करें |इन तीन दिनों तक रोज इन्हें पूजा दें ,जबकि स्थापना एक ही दिन होगी | प्रतिदिन आरती करें ,प्रसाद घर में ही वितरित करें ,बाहरी को न दें |सामान्यतय पारंपरिक रूप से कुलदेवता /कुलदेवी की पूजा में घर की कुँवारी कन्याओं को शामिल नहीं किया जाता और उन्हें दीपक देखने तक की मनाही होती है ,किन्तु इस पद्धति में जबकि पूजा तीन दिन चलेगी कन्याएं शामिल हो सकती हैं ,अथवा इस हेतु अपने कुलगुरु अथवा किसी विद्वान् से सलाह लेना बेहतर होगा |कन्या अपने ससुराल जाकर वहां की रीती का पालन करे |इस पूजा में चाहें तो दुर्गा अथवा काली का मंत्र जप भी कर सकते हैं ,किन्तु साथ में तब शिव मंत्र का जप भी अवश्य करें |वैसे यह आवश्यक नहीं है ,क्योकि सभी लोग पढ़े लिखे हों और सही ढंग से मंत्र जप कर सकें यह जरुरी नहीं |

साधना समाप्ति के बाद सपरिवार आरती करे.| इसके बाद क्षमा प्राथना करें |तत्पश्चात कुलदेवता /कुलदेवी से प्राथना करें की आप हमारे कुल की रक्षा करें हम अगले वर्ष पुनः आपको पूजा देंगे ,हमारी और परिवार की गलतियों को क्षमा करें हम आपके बच्चे हैं |तीन दिन की साधना /पूजा पूर्ण होने पर प्रथम बिना रंगे नारियल के सामने के सिक्के सुपारी को जनेऊ समेत किसी डिब्बी में सुरक्षित रख ले |तीन रंगे नारियल के सामने की नौ सुपारियों में से बीच वाली एक सुपारी और सिक्के को अलग डिब्बी में सुरक्षित करें ,जिस पर लिख लें कुलदेवी |अगले साल यही रखे जायेंगे कुलदेवी /कुलदेवता के स्थान पर |अन्य वस्तुओं में से सिक्के और पैसे रुपये किसी सात्विक ब्राह्मण को दान कर दें |प्रसाद घर वालों में बाँट दें तथा अन्य सामग्रियां बहते जल अथवा जलाशय में प्रवाहित कर दें |

विशेष:-

———- यदि पूजा करने में या समझने में कोई दिक्कत हो तो किसी योग्य कर्मकांडी की मदद लें |एक बार अच्छे से समझ कर पूजा करें और इसे हर साल जारी रखें |योग्य का मार्गदर्शन आपकी सफलता में वृद्धि करेगा |यह पूजा पद्धति हमारे द्वारा विभिन्न पद्धतियों का अध्ययन कर मध्य मार्ग के रूप में चुना गया है और सामान्यजन के लाभार्थ प्रस्तुत है |सबके लिए उपयुक्त हो आवश्यक नहीं ,|हमारा उद्देश्य केवल ऐसे परिवारों को एक सुरक्षा कवच और कुलदेवी/कुलदेवता की एक सामान्य पूजा प्रदान करना है |कितने सफल हैं हम विद्वत जन विचार करें |
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राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम
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छिन्नमस्ता

भगवती छिन्नमस्ता का स्वरूप अत्यंत ही गोपनीय है। इसे कोई अधिकारी साधक ही जान सकता है। महाविद्याओं में इनका तीसरा स्थान है। इनके प्रादुर्भाव की कथा इस प्रकार है-एक बार भगवती भवानी अपनी सहचरी जया और विजया के साथ मन्दाकिनी में स्नान करने के लिए गयीं। स्नान के बाद क्षुधाग्नि से पीड़ित होकर वे कृष्णवर्ण की हो गयीं। उस समय उनकी सहचरियों ने भी उनसे कुछ भोजन करने के लिए मांगा।

देवी ने उनसे कुछ समय प्रतीक्षा करने के लिए कहा। थोड़ी देर प्रतीक्षा करने के बाद सहचरियों ने जब पुनः भोजन के लिए निवेदन किया, तब देवी ने उनसे कुछ देर और प्रतीक्षा करने के लिए कहा। इस पर सहचरियों ने देवी से विनम्र स्वर में कहा कि मां तो अपने शिशुओं को भूख लगने पर अविलम्ब भोजन प्रदान करती है। आप हमारी उपेक्षा क्यों कर रही हैं?

अपने सहचरियों के मधुर वचन सुनकर कृपामयी देवी ने अपने खड्ग से अपना सिर काट दिया। कटा हुआ सिर देवी के बायें हाथ में आ गिरा और उनके कबन्ध से रक्त की तीन धाराएं प्रवाहित हुईं। वे दो धाराओं को अपनी दोनों सहचरियों की ओर प्रवाहित कर दीं, जिसे पीती हुई दोनों प्रसन्न होने लगीं और तीसरी धारा को देवी स्वयं पान करने लगीं। तभी से देवी छिन्नमस्ता के नाम से प्रसिद्ध हुईं।

ऐसा विधान है कि आधी रात अर्थात् चतुर्थ संध्याकाल में छिन्नमस्ता की उपासना से साधक को सरस्वती सिद्ध हो जाती हैं। शत्रु विजय, समूह स्तम्भन, राज्य प्राप्ति और दुर्लभ मोक्ष प्राप्ति के लिए छिन्नमस्ता की उपासना अमोघ है। छिन्नमस्ता का आध्यात्मिक स्वरूप अत्यन्त महत्वपूर्ण है। छिन्न यज्ञशीर्ष की प्रतीक ये देवी श्वेतकमल पीठ पर खड़ी हैं। दिशाएं ही इनके वस्त्र हैं। इनकी नाभि में योनिचक्र है। कृष्ण (तम) और रक्त (रज) गुणों की देवियां इनकी सहचरियां हैं। ये अपना शीश काटकर भी जीवित हैं। यह अपने आप में पूर्ण अन्तर्मुखी साधना का संकेत है।

विद्वानों ने इस कथा में सिद्धि की चरम सीमा का निर्देश माना है। योगशास्त्र में तीन ग्रंथियां बतायी गयी हैं, जिनके भेदन के बाद योगी को पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है। इन्हें ब्रम्हाग्रन्थि, विष्णुग्रन्थि तथा रुद्रग्रन्थि कहा गया है। मूलाधार में ब्रम्हग्रन्थि, मणिपूर में विष्णुग्रन्थि तथा आज्ञाचक्र में रुद्रग्रन्थि का स्थान है। इन ग्रंथियों के भेदन से ही अद्वैतानन्द की प्राप्ति होती है। योगियों का ऐसा अनुभव है कि मणिपूर चक्र के नीचे की नाड़ियों में ही काम और रति का मूल है, उसी पर छिन्ना महाशक्ति आरुढ़ हैं, इसका ऊर्ध्व प्रवाह होने पर रुद्रग्रन्थि का भेदन होता है।

छिन्नमस्ता का वज्र वैरोचनी नाम शाक्तों, बौद्धों तथा जैनों में समान रूप से प्रचलित है। देवी की दोनों सहचरियां रजोगुण तथा तमोगुण की प्रतीक हैं, कमल विश्वप्रपंच है और कामरति चिदानन्द की स्थूलवृत्ति है। बृहदारण्यक की अश्वशिर विद्या, शाक्तों की हयग्रीव विद्या तथा गाणपत्यों के छिन्नशीर्ष गणपति का रहस्य भी छिन्नमस्ता से ही संबंधित है। हिरण्यकशिपु, वैरोचन आदि छिन्नमस्ता के ही उपासक थे। इसीलिये इन्हें वज्र वैरोचनीया कहा गया है। वैरोचन अग्नि को कहते हैं। अग्नि के स्थान मणिपूर में छिन्नमस्ता का ध्यान किया जाता है और वज्रानाड़ी में इनका प्रवाह होने से इन्हें वज्र वैरोचनीया कहते हैं। श्रीभैरवतन्त्र में कहा गया है कि इनकी आराधना से साधक जीवभाव से मुक्त होकर शिवभाव को प्राप्त कर लेता है।

श्री महाविद्या छिन्नमस्ता महामंत्र

ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा

इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं व देवी को पुष्प अत्यंत प्रिय हैं इसलिए केवल पुष्पों के होम से ही देवी कृपा कर देती है,आप भी मनोकामना के लिए यज्ञ कर सकते हैं,जैसे-

1. मालती के फूलों से होम करने पर बाक सिद्धि होती है व चंपा के फूलों से होम करने पर सुखों में बढ़ोतरी होती है

2.बेलपत्र के फूलों से होम करने पर लक्ष्मी प्राप्त होती है व बेल के फलों से हवन करने पर अभीष्ट सिद्धि होती है
3.सफेद कनेर के फूलों से होम करने पर रोगमुक्ति मिलती है तथा अल्पायु दोष नष्ट हो 100 साल आयु होती है

4. लाल कनेर के पुष्पों से होम करने पर बहुत से लोगों का आकर्षण होता है व बंधूक पुष्पों से होम करने पर भाग्य बृद्धि होती है

5.कमल के पुष्पों का गी के साथ होम करने से बड़ी से बड़ी बाधा भी रुक जाती है

6 .मल्लिका नाम के फूलों के होम से भीड़ को भी बश में किया जा सकता है व अशोक के पुष्पों से होम करने पर पुत्र प्राप्ति होती है

7 .महुए के पुष्पों से होम करने पर सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं व देवी प्रसन्न होती है

विशेष पूजा सामग्रियां-पूजा में जिन सामग्रियों के प्रयोग से देवी की विशेष कृपा मिलाती है
मालती के फूल, सफेद कनेर के फूल, पीले पुष्प व पुष्पमालाएं चढ़ाएं

केसर, पीले रंग से रंगे हुए अक्षत, देसी घी, सफेद तिल, धतूरा, जौ, सुपारी व पान चढ़ाएं
बादाम व सूखे फल प्रसाद रूप में अर्पित करें
सीपियाँ पूजन स्थान पर रखें

देवी के दो प्रमुख रूपों के दो महामंत्र

१)देवी प्रचंड चंडिका मंत्र-ऐं श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा

२)देवी रेणुका शबरी मंत्र-ॐ श्रीं ह्रीं क्रौं ऐं

सभी मन्त्रों के जाप से पहले कबंध शिव का नाम लेना चाहिए तथा उनका ध्यान करना चाहिए

देवी को प्रसन्न करने के लिए सह्त्रनाम त्रिलोक्य कवच आदि का पाठ शुभ माना गया है
यदि आप बिधिवत पूजा पात नहीं कर सकते तो मूल मंत्र के साथ साथ नामावली का गायन करें

अब देवी के कुछ इच्छा पूरक मंत्र

1) देवी छिन्नमस्ता का शत्रु नाशक मंत्र

ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्र वैरोचिनिये फट

लाल रंग के वस्त्र और पुष्प देवी को अर्पित करें
नवैद्य प्रसाद,पुष्प,धूप दीप आरती आदि से पूजन करें
काले ऊनी आसन् पर दक्षिण की ओर मुख कर रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें
देवी मंदिर में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है

2) देवी छिन्नमस्ता का धन प्रदाता मंत्र

ऐं श्रीं क्लीं ह्रीं वज्रवैरोचिनिये फट

गुड, नारियल, केसर, कपूर व पान देवी को अर्पित करें शहद से हवन करें
रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें

3) देवी छिन्नमस्ता का प्रेम प्रदाता मंत्र

ॐ आं ह्रीं श्रीं वज्रवैरोचिनिये हुम

देवी पूजा का कलश स्थापित करें
देवी को सिन्दूर व लोंग इलायची समर्पित करें
रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें
किसी नदी के किनारे बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है

भगवे रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
उत्तर दिशा की ओर मुख रखें
खीर प्रसाद रूप में चढ़ाएं

4) देवी छिन्नमस्ता का सौभाग्य बर्धक मंत्र

ॐ श्रीं श्रीं ऐं वज्रवैरोचिनिये स्वाहा

देवी को मीठा पान व फलों का प्रसाद अर्पित करना चाहिए
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें
किसी ब्रिक्ष के नीचे बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
पेठा प्रसाद रूप में चढ़ाएं

5) देवी छिन्नमस्ता का ग्रहदोष नाशक मंत्र

ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं वं वज्रवैरोचिनिये हुम

देवी को पंचामृत व पुष्प अर्पित करें
रुद्राक्ष की माला से 4 माला का मंत्र जप करें
मंदिर के गुम्बद के नीचे या प्राण प्रतिष्ठित मूर्ती के निकट बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
नारियल व तरबूज प्रसाद रूप में चढ़ाएं

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Sunday, December 18, 2016

आकर्षण

इस क्रिया को करने से पहले एक सुरक्षा चक्र बनाना आवयशक होता है १ किलो आटा लेकर उसके १/२ किलो बूरा मिलाकर पाने चारों और एक घेरा बना लें घेरा बनाते हुए बजरंग बाण का पाठ करते रहें इस चक्र के अन्दर बैठकर साधना करने पर कितनी भी बुरी से बुरी शक्तियां हों वह न तो विघ्न डाल सकती हैं और ना ही नुकसान पहुंचा सकती हैं

अब यह उपाय आरम्भ करना है

किसी भी दिन से आरम्भ किया जा सकता है रात को १० बजे के बाद एकांत कमरे मे बैठकर एक देसी घी का दीपक जलाकर लाल वस्त्र के आसन पर एकाग्रचित होकर बैठ जाय। सामने स्वच्छ वस्त्र पर फोटो और वशीकरण यन्त्र पास-पास रखें।

 कोई सुगन्धित अगरबती जला लें। अब यन्त्र को पूरी आत्मियता से देखते हुए मन में ऐसी धारणा बनाएं कि, आपकी आतंरिक उर्जा को यन्त्र के माध्यम से कोई आकर्षण शक्ति प्राप्त हो रही है जो किसी को भी सम्मोहित कर देने में क्षमतावान है। अब उस फोटो की दोनों आँखों के मध्य, जहाँ बिंदी या तिलक किया जाता है, वहां दृष्टि जमाते हुए निम्न मंत्र का 21 बार शुद्ध उच्चारण करें।

मंत्र- ॐ रं श्रृं अमुकं वश्यमानाय हुं।

(अमुकं के स्थान पर व्यक्ति का नाम लें)

उच्चारण पूर्ण होने के बाद यन्त्र को स्वच्छ वस्त्र में ही बांधकर किसी बहती नदी तालाब में विसर्जित करके बिना पीछे देखे वापिस आ जायं। अगले १५ दिन के मध्य में आप अनुभव करेंगे कि, आपकी सफलता आपके निकट आने को लालायित है।

यही नहीं, अनुभव में यह भी आयेगा कि, आपके सम्मोहन में वशीभूत अधिक से अधिक लोग आपके निकट आने को वेताब हैं। बातचीत करने को उतावले हैं। और जब वार्ता होती है तब आपकी हर बात वो मानने को विवश से हैं

इसके बाद सामर्थ्य अनुसार पक्षी आजाद करवा दें या पशु और पक्षियों को खाना खिला दें

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम
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Friday, December 16, 2016

शत्रु नाशक श्री बगलामुखी साधना








देवी बगलामुखी दस महाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह माँ बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं. इन्हीं में संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश है. माता बगलामुखी की उपासना से शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय प्राप्त होती है. इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है. बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है.

देवी बगलामुखी भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और बुरी शक्तियों का नाश करती हैं. माँ बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है. देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए.

बगलामुखी देवी रत्नजडित सिहासन पर विराजती होती हैं रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं. देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं. देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है, बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है.

मां बगलामुखी पूजन |

माँ बगलामुखी की पूजा हेतु इस दिन प्रात: काल उठकर नित्य कर्मों में निवृत्त होकर, पीले वस्त्र धारण करने चाहिए. साधना अकेले में, मंदिर में या किसी सिद्ध पुरुष के साथ बैठकर की जानी चाहिए. पूजा करने के लुए पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करने के लिए आसन पर बैठें चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी का चित्र स्थापित करें.

आसन पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्जवलन के बाद हाथ में पीले चावल, हरिद्रा, पीले फूल और दक्षिणा लेकर संकल्प करें. इस पूजा में ब्रह्मचर्य का पालन करना आवशयक होता है मंत्र- सिद्ध करने की साधना में माँ बगलामुखी का पूजन यंत्र चने की दाल से बनाया जाता है और यदि हो सके तो ताम्रपत्र या चाँदी के पत्र पर इसे अंकित करें.

माँ बगलामुखी यंत्र - मंत्र साधना |

श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।

इसके पश्चात आवाहन करना चाहिए

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ
सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।

ध्यान |

सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।

विनियोग |

ॐ अस्य श्रीबगलामुखी ब्रह्मास्त्र-मन्त्र-कवचस्य भैरव ऋषिः
विराट् छन्दः, श्रीबगलामुखी देवता, क्लीं बीजम्, ऐं शक्तिः
श्रीं कीलकं, मम (परस्य) च मनोभिलषितेष्टकार्य सिद्धये विनियोगः ।

न्यास |

भैरव ऋषये नमः शिरसि, विराट् छन्दसे नमः मुखे
श्रीबगलामुखी देवतायै नमः हृदि, क्लीं बीजाय नमः गुह्ये, ऐं शक्तये नमः पादयोः
श्रीं कीलकाय नमः नाभौ मम (परस्य) च मनोभिलषितेष्टकार्य सिद्धये विनियोगाय नमः सर्वांगे ।

मन्त्रोद्धार |

ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं श्रीबगलानने मम रिपून् नाशय नाशय, ममैश्वर्याणि देहि देहि शीघ्रं मनोवाञ्छितं कार्यं साधय साधय ह्रीं स्वाहा ।

मंत्र |

ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां
वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय
बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।
बगलामुखी कवच-पाठ |
शिरो मेंपातु ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं पातुललाटकम ।
सम्बोधनपदं पातु नेत्रे श्रीबगलानने ।। १
श्रुतौ मम रिपुं पातु नासिकां नाशयद्वयम् ।
पातु गण्डौ सदा मामैश्वर्याण्यन्तं तु मस्तकम् ।। २
देहिद्वन्द्वं सदा जिह्वां पातु शीघ्रं वचो मम ।
कण्ठदेशं मनः पातु वाञ्छितं बाहुमूलकम् ।। ३
कार्यं साधयद्वन्द्वं तु करौ पातु सदा मम ।
मायायुक्ता तथा स्वाहा, हृदयं पातु सर्वदा ।। ४
अष्टाधिक चत्वारिंशदण्डाढया बगलामुखी ।
रक्षां करोतु सर्वत्र गृहेरण्ये सदा मम ।। ५
ब्रह्मास्त्राख्यो मनुः पातु सर्वांगे सर्वसन्धिषु ।
मन्त्रराजः सदा रक्षां करोतु मम सर्वदा ।। ६
ॐ ह्रीं पातु नाभिदेशं कटिं मे बगलावतु ।
मुखिवर्णद्वयं पातु लिंग मे मुष्क-युग्मकम् ।। ७
जानुनी सर्वदुष्टानां पातु मे वर्णपञ्चकम् ।
वाचं मुखं तथा पादं षड्वर्णाः परमेश्वरी ।। ८
जंघायुग्मे सदा पातु बगला रिपुमोहिनी ।
स्तम्भयेति पदं पृष्ठं पातु वर्णत्रयं मम ।। ९
जिह्वावर्णद्वयं पातु गुल्फौ मे कीलयेति च ।
पादोर्ध्व सर्वदा पातु बुद्धिं पादतले मम ।। १०
विनाशयपदं पातु पादांगुल्योर्नखानि मे ।
ह्रीं बीजं सर्वदा पातु बुद्धिन्द्रियवचांसि मे ।। ११
सर्वांगं प्रणवः पातु स्वाहा रोमाणि मेवतु ।
ब्राह्मी पूर्वदले पातु चाग्नेय्यां विष्णुवल्लभा ।। १२
माहेशी दक्षिणे पातु चामुण्डा राक्षसेवतु ।
कौमारी पश्चिमे पातु वायव्ये चापराजिता ।। १३
वाराही चोत्तरे पातु नारसिंही शिवेवतु ।
ऊर्ध्वं पातु महालक्ष्मीः पाताले शारदावतु ।। १४
इत्यष्टौ शक्तयः पान्तु सायुधाश्च सवाहनाः ।
राजद्वारे महादुर्गे पातु मां गणनायकः ।। १५
श्मशाने जलमध्ये च भैरवश्च सदाऽवतु ।
द्विभुजा रक्तवसनाः सर्वाभरणभूषिताः ।। १६
योगिन्यः सर्वदा पान्तु महारण्ये सदा मम ।
इति ते कथितं देवि कवचं परमाद्भुतम् ।। १७

बगालामुखि - पूजन का यंत्र |

पहले त्रिकोण बनाकर, उसके बाहर षटकोण अंकित करके वृत्त तथा अष्टदल पद्म को अंकित करे! उसके बहिर्भाग में भूपुर अंकित करके यंत्र को प्रस्तुत करना चाहिए! यंत्र को अष्टगंध से भोजपत्र के ऊपर लिखना चाहिए!

माँ बगलामुखी की साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है. यह मंत्र विधा अपना कार्य करने में सक्षम हैं. मंत्र का सही विधि द्वारा जाप किया जाए तो निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है. बगलामुखी मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए. देवी बगलामुखी पूजा अर्चना सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने वाली सभी शत्रुओं का शमन करने वाली तथा मुकदमों में विजय दिलाने वाली होती है.

पीत वस्त्र धारण कर. हल्दी की गाँठ से निर्मित अर्थात जिसमें हल्दी की गाँठ लगी हुई हों, माला से प्रतिदिन एक लाख की संख्या में मन्त्र का जप करना चाहिए.



राज गुरु जी

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Thursday, December 15, 2016

वशीकरण, सम्मोहन विज्ञान

वस्तुतः वशीकरण विद्या कोई चमत्कार या जादू नहीं है, ये तो एक विज्ञान ही है | जो लोग इस चीज़ से अंजान हैं, जिन्होंने हमारे धर्म ग्रंथों का गहराई से अध्ययन नहीं किया वे ही इस प्रकार से मुर्खता पूर्ण विचार करते कि भला किसी तिलक के करने से वशीकरण क्रिया कैसे संपन्न हो सकती है ?

वास्तव में तो हमारे तंत्र शाश्त्र ऐसे कई प्रयोगों से भरे पड़े हैं, जिनमे की वनस्पतियों और अन्य सामग्रियों के प्रयोग से माथे पर तिलक करने से, फिर किसी से मिलने जाने से सामने वाले व्यक्ति पर सम्मोहन का प्रभाव पड़ता ही है | इसे ललाट पर आज्ञा चक्र वाले स्थान पर लगा लेने से हमारे आज्ञा चक्र से जो विद्युत तरंगे निकलेंगी वो सामने वाले व्यक्ति के आज्ञा चक्र को आदेश देंगी और तत्क्षण उसका अचेतन मन प्रभावित होगा ही.. फिर वह विरोध नहीं कर पाता, अपितु जो भी वह कहे वैसा ही करने को तत्पर रहता है |

हमने कई ऐसे उदाहरण देखे होंगे अपने जीवन में, या कई ऐसे आदमी से मिले होंगे, जिन्हें एक झलक देखकर ही मन प्रसन्न हो जाता है ! वह मुस्कुराता है तो हम भी मुस्कुराने लग जाते हैं, वह कुछ कहता है तो हम एक तक उसे देखते रहते हैं और सुनते रहते हैं, पर वहीँ कोई ऐसे लोग भी मिल जाते हैं जिससे दो मिनट बात करने का भी जी नहीं करता | यह सब उस व्यक्तित्व में चुम्बकत्व और उर्जा का ही तो प्रभाव है !

हमारे धर्म में कई ऐसे रस्म हैं जिसे हम रोज करते हैं पर जिनके बारे में हमने कभी विचार भी नहीं किया की वह आखिर है क्यूँ.. किस प्रयोजन से... उसके पीछे का तथ्य आखिर क्या है.

विवाहित स्त्रियों को सिंदूर, लाल बिंदी के उपयोग करने के पीछे ऐसा क्या अनोखा विज्ञान है ??
क्यूँ कहा जाता है हमारे घर में कि विवाहित स्त्रियों को विवाह हो जाने के पश्चात अपने बाल खुले नहीं छोड़ने चाहिए ...?

क्यूँ बड़े-बूढ़े कहते हैं हमसे की अपने नाखून और बाल काटकर घर में इधर-उधर मत छोड़ो..

पुरातन काल में राजा महाराजा लोग और अन्य आस्थावान लोग भी दिन भर कुमकुम से या श्वेत चन्दन का तिलक किये रहते थे.. और उनका व्यक्तित्व भी अत्यंत प्रभावशाली था, जबकि आज तो स्थिती ये है की किसी को एक काम दस बार भी बोलो तो उसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, वो अनसुना कर देता है |

 सार ये है की हमें अपने सनातन प्रथायों के प्रति जागरूक रहना जरुरी हो गया है और अपने जीवन को और ज्यादा सुलभ और सरल बनाने के लिए उन लुप्त हो रहे सूत्रों को पकड़ कर अपने जीवन में अवश्य उन्हें स्थ्हन देना चाहिए तभी जीवन में पूर्णता प्राप्त हो सकती है |

1). किसी भी सिद्ध दिवस को प्रातः सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें और सूर्य देव को अर्ध्य देकर इस मंत्र को उत्तर की तरफ मुख करके, मूँगे की माला से ३ माला मंत्र जाप करें | लाल वस्त्र एवं लाल आसन हो | ३१ दिन नित्य जपने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है और तब इसके बाद कभी भी जब इसका प्रयोग करना हो तब थोड़े से लौंग या इलाईची या सुपाड़ी हाथ में लेकर इस मंत्र को २१ बार पढ़ लें तो वह वस्तु वशीकरण प्रभाव युक्त हो जाएगी | इसे किसी भी विधि से उसे खिला दें जिसे अपने अनुकूल करना हो, तुरंत वशीकरण होगा | आप जैसी भी इच्छा करेंगे वह व्यक्ति वैसा ही करेगा | अगर इसका प्रयोग थोड़े समय तक करते रहे तो जीवन भर वह साथ में रहेगा और कभी भी दूर नहीं जायेगा |

|| ॐ नमो भास्कराय त्रिलोकात्मने (अमुक) महीपति में वश्यं कुरु कुरु स्वाहा ||

इस मंत्र में सिद्ध करते समय ‘अमुक’ शब्द का उच्चारण न करें और जब प्रयोग करना हो तब ‘अमुक’ की जगह पर उस व्यक्ति का नाम उच्चारित करें जिसको वश में करना हो !

2). रवि पुष्य योग में गूलर के फूल और कपास के रुई से बत्ती बना लें और उस बत्ती को मक्खन से जलाएं | अब इस दीपक के लौ पर किसी मिटटी के बर्तन पर घी लगाके रख दें ताकि उसपर काजल जमा हो जाये | इस काजल को भाल कर रख लेना चाहिए, इसे रात में अपनी आँखों में लगाने से समस्त जग उसके वश में हो जाता है, अतः इसे सुरक्षित रखना चाहिए, कम ही उपयोग करना चाहिए |

3). बिल्व पत्र को छाया में सुखा लें | इसे चूर्ण बनाकर कपिला गाय के दूध के साथ मिलाकर तिलक करने से जिसके पास भी जायेगा वो वश में होगा ! कोर्ट केस में या विरोधी पक्ष के पास जाते समय इसका प्रयोग करे तो आश्चर्यजनक सफलता मिलती है !

4). अमावस्या की रात्री को काली धोती पहनकर काले आसन पर बैठे और सिद्ध मोती की माला से इस मंत्र की एक माला फेरे, या फिर हाथ से ही गिनती कर १०८ बार मंत्र पढ़े | पूर्व की ओर मुख करके मंत्र जप करे और सामने घी का दीपक जला हुआ हो |

इस प्रकार से २१ दिन मंत्र जाप करें | इसके बाद किसी भी मिठाई को या चीनि को हाथ में लेकर २१ बार मंत्र पढके उसपर फूंक मार दे और उस व्यक्ति को खिलाये जिसका वशीकरण करना है | ऐसा लगातार कम से कम ७ दिन तक खिलाये तो निश्चित वशीकरण हो जायेगा !

|| ॐ कामेश्वर (अमुक) आनय आनय वश्यनां क्लीं ||

5). ये एक अत्यंत ही गोपनीय एवं सरल वशीकरण है जिसको कोई भी कर सकता है,, मगर ध्यान रहे, किसी भी स्थिती में किसी को भी इस बारे में न बताये की यह प्रयोग कर रहा है या किया है |

उस स्त्री के थोड़े से बाल किसी विधि से ले आए जिसपर यह क्रिया करनी है और उसको सामने रखकर उसको एक तक देखते हुए “ॐ ह्रीं सः” मंत्र को १ लाख जाप ग्रहण काल या होली में करे | फिर उसे जलाकर उसकी राख उस स्त्री के ऊपर दे दे तो निश्चित रूप से वशीकरण होगा |

राज गुरु जी

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Wednesday, December 14, 2016

क्रोध भैरव साधना

तंत्र के क्षेत्र में भगवान भैरव का स्थान तो अपने आप में निराला है, यह देव अपने साधकोको शीघ्र सिद्धि एवं कल्याण प्रदान करने के कारण सदियों से महत्वपूर्ण उपास्य देव रहे है. भगवान शिव के स्वरुपसमही उनके ये विविध रूप, सभी स्वरुप अपने आप में निराले तथा विलक्षण, तंत्र के क्षेत्र में भैरव के यूँ तो ५२ रूप प्रचलित है लेकिन ८ रूप मुख्यरूप से ज्ञात है.

 इनको संयुक्त रूप से अष्ट भैरव के नाम से जाना जाता है. वस्तुतः भगवान भैरव से सबंधित कई कई प्रकार की तांत्रिक साधना विविध मत के अंतर्गत होती आई है. कापालिक, नाथ, अघोर इत्यादि साधना मत में तो भगवान भैरव का स्थान बहोत ही उच्चतम माना गया है. तंत्र में जहां एक और गणपति को विघ्न निवारक के रूप में पूजन करना अनिवार्य क्रम है तो साथ ही साथ सिद्धो के मत से किसी भी साधना के लिए भैरव पूजन भी एक अनिवार्य क्रम है क्यों की यह रक्षात्मक देव है जो की साधक तथा साधक के साधना क्रम की सभी रूप में रक्षा करते है.

वस्तुतः भैरव को संहारात्मक देवता के रूप में प्रस्तुत कर दिया गया है जिसके कारण सामान्य जनमानस के मध्य इनको भय की द्रष्टि से देखा जाता है लेकिन इनकी संहारात्मक प्रकृति साधक के लिए नहीं वरन साधक के शत्रु तथा कष्टों के लिए होती है तथा इसी तथ्य का अनुभव तो कई महासिद्धो ने अपने जीवन में किया है, आदि शंकराचार्य गोरखनाथ से ले कर सभी अर्वाचीन प्राचीन सिद्धोने एक मत में भगवान भैरव की साधना को अनिवार्य तथा जीवन का एक अति आवश्यक क्रम माना है.

 यूँ तो भगवान भैरव से सबंधित कई कई प्रकार के प्रयोग साधको के मध्य है ही तथा इसमें भी बटुकभैरव एवं कालभैरव स्वरुप तो तंत्र साधको के प्रिय रहे है लेकिन साथ ही साथ भैरव के अन्य स्वरुप भी अपनी एक अलग ही विलक्षणता को लिए हुवे है. भगवान क्रोध भैरव के सबंध में भी ऐसा ही है.

 यह स्वरुप क्रोध का ही साक्षात स्वरुप है अर्थात पूर्ण तमस भाव से युक्त स्वरुप. यह स्वरुप पूर्ण तमस को धारण करने के कारण साधक को अत्यधिक तीव्र रूप से तथा तत्काल परिणाम की प्राप्ति होती है. इनकी उपासना शत्रुओ के मारण, उच्चाटन, सेना मारण आदि अति तीक्ष्ण क्रियाओं के लिए होती आई है.

वस्तुतः इनकी साधना इतनी प्रचलित नहीं है इसके पीछे भी कई कारण है, खास कर इनकी संहारात्मक प्रकृति. इसी लिए भयवश भी इनकी साधना साधक नहीं करते है, साक्षात् तमस का रूप होने के कारण इनके प्रयोग असहज भी है तथा थोड़े कठिन भी.

प्रस्तुत साधना भगवान के इसी स्वरुप की साधना है जिसको पूर्ण कर लेने पर साधक इसका प्रयोग अपने किसी भी शत्रु पर कर उसको जमींन चटा सकता है, शत्रु के पुरे घर परिवार को भी तहस महस कर सकता है, यह प्रयोग भी सिर्फ सिद्धो के मध्य ही प्रचलित रहा है क्यों की भले ही यह प्रयोग उग्र है लेकिन इसमें ज्यादा समय नहीं लगता है तथा एक बार साधना सम्प्पन कर लेने पर साधक उससे जीवन भर लाभ उठा सकता है.

आज के युग में जहां एक तरफ असुरक्षा सदैव ही साधक पर हावी रहती है तथा पग पग पर ज्ञात अज्ञात शत्रुओ का जमावडा लगा हुआ है तब एसी स्थिति में इस प्रकार के प्रयोग अनिवार्य ही है, इस लिए उग्र प्रयोग होने के कारण भी इस प्रयोग को यहाँ पर प्रस्तुत किया जा रहा है जिससे की आवश्यकता पड़ने पर साधक अपने जीवन की तथा अपने परिवार की गरिमा को रख सके तथा पूर्ण सुरक्षा को प्राप्त कर सके.    

यह प्रयोग अत्यधिक तीव्र प्रयोग है अतः साधक अपनी विवेक बुद्धि के अनुसार स्वयं की हिम्मत आदि के बारे में सोच कर ही प्रयोग करे, प्रयोग के मध्य साधक को तीव्र अनुभव हो सकते है.

साधक को अगर कोई व्यक्ति अत्यधिक परेशान कर रहा हो तथा बिना कारण अहित किये जा रहा हो तब यह प्रयोग करना उचित है लेकिन सिर्फ किसी को बेवजह परेशान करने के उद्देश्यआदि को मन में रख कर यह प्रयोग नहीं करना चाहिए वरना साधक को इसका परिणाम भुगतना पड़ सकता है. साधक को इस प्रयोग को रक्षात्मक रूप से लेना चाहिए तथा अपनी तथा घर परिवार की सुरक्षा के लिए साधक यह प्रयोग कर सकता है.

यह प्रयोग साधक किसी भी अमावस्या या कृष्ण पक्ष अष्टमी को स्मशान में या निर्जन स्थान में करे. समय रात्रि में १० बजे के बाद का रहे

साधक काले रंग के वस्त्र को धारण करे तथा काले रंग के आसन पर बैठे. साधक का मुख दक्षिण दिशा की तरफ होना चाहिए.

साधक अपने सामने भैरव का कोई विग्रह या चित्र स्थापित करे, उस पर सिन्दूर अर्पित करे. साधक गुरु पूजन कर चित्र या विग्रह का पूजन करे. साधक लाल रंग के पुष्प का प्रयोग करे. साधक को किसी पात्र में मदिरा भी अर्पित करनी चाहिए.

इसके बाद साधक को गुरु मंत्र का जाप करना चाहिए. जाप के बाद साधक न्यास करे.

करन्यास

भ्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
भ्रीं तर्जनीभ्यां नमः
भ्रूं मध्यमाभ्यां नमः
भ्रैं अनामिकाभ्यां नमः
भ्रौं कनिष्टकाभ्यां नमः
भ्रः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः

हृदयादिन्यास

भ्रां हृदयाय नमः
भ्रीं शिरसे स्वाहा
भ्रूं शिखायै वषट्
 भ्रैं कवचाय हूं
भ्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
भ्रः अस्त्राय फट्

न्यास के बाद साधक रुद्राक्ष माला से निम्न मन्त्र की ५१ माला मन्त्र जाप करे.

 ॐ भ्रं भ्रं भ्रं क्रोधभैरवाय अमुकं उच्चाटय भ्रं भ्रं भ्रं फट्

(OM BHRAM BHRAM BHRAM KRODHBHAIRAVAAY AMUKAM UCCHAATAY BHRAM BHRAM BHRAM PHAT)

मन्त्र जाप पूर्ण होने पर साधक वहीँ पर किसी पात्र में आग प्रज्वलित कर के १०८आहुति बकरे के मांस में शराब को मिला कर अर्पित करे. भोग के लिए अर्पित की गई मदिरा वहीँ छोड़ दे. दूसरे दिन किसी श्वान को दहीं या कुछ भी अन्य खाध्य प्रदार्थ खिलाएं.

इसके बाद साधक को जब भी प्रयोग करना हो तो साधक को रात्री काल में १० बजे के बाद उपरोक्त क्रियाओं अनुसार ही पूजन आदि क्रिया कर इसी मन्त्र की १ माला मन्त्र का जाप कर १०१ आहुति शराब तथा बकरे के मांस को मिला कर देनी चाहिए.

मन्त्र में अमुकं की जगह सबंधित व्यक्ति या शत्रुका नाम लेना चाहिए जिसके ऊपर प्रयोग किया जा रहा हो, इस प्रकार करने से उस व्यक्ति का उच्चाटन हो जाता है तथा वह साधक के जीवन में कभी परेशानी नहीं डालता.

 अगर साधक प्रयोग की आहुति देने के बाद निर्माल्य या भष्म को उठा कर शत्रु के घर के अंदर दाल देता है तो शत्रु का पूरा घर परेशान हो जाता है, घर के सभी सदस्यों को दुःख एवं  कष्ट का सामना करना पड़ता है तथा शत्रु पूर्ण घर परिवार सहित बरबाद हो जाता है.

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम

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ऋण मुक्ति धनवृद्धि हेतु-

मन्त्र : ॐ श्रीं हीम श्रीं महालक्ष्म्यै नम: ।

मम अलक्ष्मीं नाशयनाशय, मामृणोतीर्ण कुरु-कुरु सम्पदांवर्धय-वधर्य स्वाहा ।

विधि :

एक दक्षिण मुखी शंख में कुछ जल भरकर भगवान के पास रखें । २५० की संख्या में नित्य मंत्र का जाप करें तथा जाप के पश्चात् गोठा (छिपड़ी, गाय के गोबड़ की) को प्रज्ज्वलित कर इसी मंत्र से गाय के घी के द्वारा सात आहुती दें । शंख में जो जल है उसे घर में तथा व्यापार स्थल के प्रत्येक कोणों में छिड़क दें ।

ध्यान रहे जल इसप्रकार डाले की जल पर पैर न पड़े तथा जल गंदे स्थान में न डालें ।

इस विधि से ४५ दिनों तक लगातार करें । इसके बाद नित्य मात्र एक माला मंत्र का जाप करते रहे । शीघ्र सफलता मिलेगी

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Tuesday, December 13, 2016


|| उच्छिष्ट चाण्डालिनि सिद्धी ||



मंत्र--

उच्छिट चाण्डालिनि सुमुखि देवी'
महापिशाचिनी ह्री ठः ठः ठः |


मंत्र-(२)- उच्छिष्ट चाण्डालिनि मातंगी सर्व'
वशंड़्करी नमः सवाहा |


उक्त दोनों मंत्रों में से किसी एक का १००८ बार जप अमावश्या से अगली अमावश्या तक रात्री में करे! तथा दशांश हवन करें! देवी को उच्छिष्ट पदार्थ की बली अर्पित करें!



जप के पश्चात उच्छिष्ट पदार्थ द्वारा हवन करें! देवी को अग्नि स्वरूपा ध्यान कर' दही और श्वेत सरसों से युक्त चावल द्वारा हवन करें|

विद्या की अभिलाषा वाले शर्करा युक्त खीर से हवन करें!
घी' मधु' शर्करा युक्त विल्वपत्र से एक मास तक १०८ बार प्रतिदिन हवन करने से बन्ध्या नारी को भी पुत्र प्राप्त होता है!
मधु युक्त रक्तबदरी पुष्प से हवन से भाग्यहीन नारी सौभाग्यवती होती है!

 ऐसा हवन १००० बार करना चाहिये!
रजस्वला के वस्त्र के टुकड़े-टुकड़े कर मधु और खीर से युक्त कर यदि लगातार एक माह तक १००० बार हवन किया जाये तो उत्तम वशीकरण होता है!


|| ये साधना गुरुके सानिध्य में ही करें अन्यथा साधक पागल हो सकता है और पतन भी||



राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Monday, December 12, 2016

 नारायन कवच


नारायन कवच में भगवान विषणु की अदभुत कृपा है।
इस कवच को धारण करने वाला या घर में स्थान पर रखना वाले की समस्त मनो कामना  पूर्व होती है।
इस कवच की महिमा का गज ने वर्णन किया था और गजेन्द्र मोक्ष के द्वारा सिद्ध यह कवच चारो दिशाओं में विजय दिलाने वाला है।

इस कवच के धारण करने वाले को मन में जो अनजाना डर रहता है चिन्ता रहती है, मन मस्तिक में चिंता रहती है,

हर समय भय- व असंतोष का वातावरण रहता है इसको धारण करने से
सभी विकार शीघ्र नष्ट हो जाता है।
गुरु चांडाल योग ,केंद्र दोष या गुरु जनित कष्ट ,परिवारीक तनाव हो ,या विवाह में विलंभ हो यह एह अचूक कवच है

यह कवच परम आदरणीय है इसके प्रभाव शीघ्र ही परिलक्षित होता हे आप इसे पूण्र श्रद्धा व विश्वास से इसे पहने भगवान नारायण की कृपा से शीघ्र ही समस्त दुःखो का निवारण हो जायेगा। -

दक्षिणा शुल्क  1100  रू +डाक व्यय

राजगुरु जी

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Sunday, December 11, 2016

जो लोग धनहीन है या जिनके पास धन की कमी है वे सोचते हैं कि अचानक कहीं से धन लाभ हो जाए जिससे धन संबंधी उनकी सभी समस्याएं समाप्त हो जाएं। हालांकि ऐसा होना काफी मुश्किल है। लेकिन यदि नीचे लिखा उपाय पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ किया जाए तो ऐसा संभव है। इस उपाय को करने से अचानक धन लाभ होता है। यह उपाय इस प्रकार है-

उपाय

शुक्ल पक्ष के किसी शुक्रवार को रात 12 बजे के बाद नहाकर व साफ वस्त्र पहनकर घर के किसी एकांत स्थान पर एक बाजोट(पटिया) रखें। इसके ऊपर लाल कपड़ा बिछाएं और पीले फूल का एक आसन बनाएं। इसके ऊपर श्री चक्र स्थापित कर विधि-विधान से इसकी पूजा करें। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का जप 51 बार करें-

ऊँ ह्रीं श्रीं ह्रीं नम:

इसके बाद श्री चक्र को एक सफेद कपड़े में बांधकर अपनी तिजोरी में रख दें। ग्यारह दिन के बाद श्री चक्र को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। इस उपाय से अचानक धन लाभ होगा।

घर में छुपी ये चीजें रोक देती है पैसा और तरक्की, बचें इन चीजों से

अगर अचानक आपके दिन बदलने लगें, अच्छे दिन बुरे दिनों में बदल जाएं तो आप सम्भल जाएं। अगर आपके साथ ऐसा होने लगे तो अपने घर पर ध्यान दें। अपने ही घर में रखी चीजों पर ध्यान दें।

वास्तु के अनुसार आपके पैसों और तरक्की पर बुरा असर डालने वाली चीजें आपके ही घर में रखी होती है और आपको पता नहीं रहता। अक्सर घर में रखी कुछ चीजें एक समय के बाद बुरा असर देने लगती है। इनमें से कुछ चीजें आपके दैनिक जीवन से संबंधित होती है।

जानिए क्या करें और कैसे बचें-

- अगर आपके घर में बहुत दिनों से बंद घड़ी है तो उसे हटा दें बंद घड़ी घर में आते हुए पैसों को रोक देती है।

- आपके घर में टूटी हुई चेयर या टेबल पड़ी है तो उसे तुरंत घर से हटा दें। ये आपके पैसों और तरक्की को रोक देती है।

- पुराने या टूटे हुए जूते-चप्पल आपको आगे बढऩे से रोक देते हैं। इन्हे घर से निकाल दें।

राजगुरु जी

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दरिद्त्रता  नाशक प्रचंड प्रयोग

     

 प्रसिद्ध तांत्रिक ग्रन्थ  "" शारदा तिलक  """ में इस पवित्र मुद्रिका के विषय  और प्रयोग के बारे में विशद उल्लेख किया गया हैं . त्रिधातु   ( सोना २ रत्ती , चाँदी १२ रत्ती , और तांबा १६ रत्ती , ) से शास्त्रोक्त पद्धतिके अनुसार निर्मित तथा श्री यन्त्र जड़ित इस चमत्कारी मुद्रिका को धारण करने से दरिद्रता का समूल नाश हो जाता हैं .
   
  सामग्री -     जल पात्र , घी का दीपक , अगरबत्ती , भोजपत्र , मंत्र सिद्धि पवित्री  मुद्रिका .

     माला -  पवित्री माला  ( मंत्र सिद्धि  चैतन्य  )
     समय -  दिन या रात में कोई भी समय
     दिन  -  शुक्रवार .
     धारणीय  -   वस्त्र -   पीले रंग की धोती
     आसन  -  पीले रंग का
     दिशा -  पूर्व

     जप संख्या  -  ११००० हजार

    अवधि -  ११ दिन

    मंत्र -      ॐ  क्लीं  नमः   ( कनकधारा  स्त्रोत  )

    प्रयोग -

 सर्व प्रथम भोजपत्र पर केशर से उपरोक्त यन्त्र को अंकित कर दे  और उसके ऊपर पवित्री मुद्रिका रख दे ,  ( जो की मंत्र सिद्धि  प्राण - प्रतिष्ठा युक्त हो )  इसके बाद सामने अगरबत्ती व दीपक लगा दे तथा कनक धरा स्त्रोत का जाप प्रारम्भ कर दे .

 उसके बाद निम्न मंत्र का ११०० मंत्र का जाप प्रतिदिन करे , ११ दिन . ११ वे दिन जाप पूरा कर के भोजपत्र को चांदी के ताबीज में बंद कर गले में धारण कर ले और मंत्र सिद्धि प्राण - प्रतिष्ठा युक्त पवित्री मुद्रिका दाहिने हाथ की किसी भी ऊँगली में धारण कर ले ,

   इस अगूंठी के प्रभाव से राज्य से सम्बंधित सभी बंधाये दूर हो जाती हैं . और उसे मान सम्मान प्राप्त होता हैं साथ ही यह  पवित्री मुद्रिका धारण करता की दरिद्रता का विनाश कर के उसके लिए लक्ष्मी प्राप्त में परम सहायक होती हैं .



राजगुरु जी

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Saturday, December 10, 2016

चमत्कारिक अष्ट यक्षिणियों की साधना, तुरंत मिलेगा फल

यक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है 'जादू की शक्ति'। आदिकाल में प्रमुख रूप से ये रहस्यमय जातियां थीं:- देव, दैत्य, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, अप्सराएं, पिशाच, किन्नर, वानर, रीझ, भल्ल, किरात, नाग आदि। ये सभी मानवों से कुछ अलग थे। इन सभी के पास रहस्यमय ताकत होती थी और ये सभी मानवों की किसी न किसी रूप में मदद करते थे। देवताओं के बाद देवीय शक्तियों के मामले में यक्ष का ही नंबर आता है।

यक्षिणियां सकारात्मक शक्तियां हैं तो पिशाचिनियां नकारात्मक। बहुत से लोग यक्षिणियों को भी किसी भूत-प्रेतनी की तरह मानते हैं, लेकिन यह सच नहीं है। रावण के सौतेला भाई कुबेर एक यक्ष थे, जबकि रावण एक राक्षस।  महर्षि पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा की दो पत्नियां थीं- इलविला और कैकसी। इलविला से कुबेर और कैकसी से रावण, विभीषण, कुंभकर्ण का जन्म हुआ। इलविला यक्ष जाति से थीं तो कैकसी राक्षस।

जिस तरह प्रमुख 33 देवता होते हैं, उसी तरह प्रमुख 8 यक्ष और यक्षिणियां भी होते हैं। गंधर्व और यक्ष जातियां देवताओं की ओर थीं तो राक्षस, दानव आदि जातियां दैत्यों की ओर। यदि आप देवताओं की साधना करने की तरह किसी यक्ष या यक्षिणियों की साधना करते हैं तो यह भी देवताओं की तरह प्रसन्न होकर आपको उचित मार्गदर्शन या फल देते हैं।

उत्लेखनीय है कि जब पाण्डव दूसरे वनवास के समय वन-वन भटक रहे थे तब एक यक्ष से उनकी भेंट हुई जिसने युधिष्ठिर से विख्यात 'यक्ष प्रश्न' किए थे। उपनिषद की एक कथा अनुसार एक यक्ष ने ही अग्नि, इंद्र, वरुण और वायु का घमंड चूर-चूर कर दिया था।

यक्षिणी साधक के समक्ष एक बहुत ही सौम्य और सुन्दर स्त्री के रूप में प्रस्तुत होती है। किसी योग्य गुरु या जानकार से पूछकर ही यक्षिणी साधना करनी चाहिए। यहां प्रस्तुत है यक्षिणियों की चमत्कारिक जानकारी। यह जानकारी मात्र है साधक अपने विवेक से काम लें। शास्त्रों में 'अष्ट यक्षिणी साधना' के नाम से वर्णित यह साधना प्रमुख रूप से यक्ष की श्रेष्ठ रमणियों की है।

ये प्रमुख यक्षिणियां है -

1. सुर सुन्दरी यक्षिणी, 2. मनोहारिणी यक्षिणी, 3. कनकावती यक्षिणी, 4. कामेश्वरी यक्षिणी, 5. रतिप्रिया यक्षिणी, 6. पद्मिनी यक्षिणी, 7. नटी यक्षिणी और 8. अनुरागिणी यक्षिणी।

प्रत्येक यक्षिणी साधक को अलग-अलग प्रकार से सहयोगिनी होकर सहायता करती है, अतः साधक को चाहिए कि वह आठों  यक्षिणियों को ही सिद्ध करने के लिए किसी योग्य गुरु या जानकार से इसके बारे में जानें।

सुर सुन्दरी यक्षिणी :

इस यक्षिणी की विशेषता है कि साधक उन्हें जिस रूप में पाना चाहता हैं, वह प्राप्त होती ही है- चाहे वह मां का स्वरूप हो, चाहे वह बहन या प्रेमिका का। जैसी रही भावना जिसकी वैसे ही रूप में वह उपस्थित होती है या स्वप्न  में आकर बताती है। यदि साधना नियमपूर्वक अच्छे उद्देश्य के लिए की गई  है तो वह दिखाई भी देती है। यह यक्षिणी सिद्ध होने के पश्चात साधक को ऐश्वर्य, धन, संपत्ति आदि प्रदान करती है। देव योनी के समान सुन्दर सुडौल होने से कारण इसे सुर सुन्दरी यक्षिणी कहा गया है।

मनोहारिणी यक्षिणी :

मनोहारिणी यक्षिणी सिद्ध होने के बाद यह यक्षिणी साधक के व्यक्तित्व को ऐसा सम्मोहक बना देती है कि वह दुनिया को अपने सम्मोहन पाश में बांधने की क्षमता हासिल कर लेता है। वह साधक को धन आदि प्रदान कर उसे संतुष्ट करती है।  मनोहारिणी यक्षिणी का चेहरा अण्डाकार, नेत्र हरिण के समान और रंग गौरा है। उनके शरीर से निरंतर चंदन की सुगंध निकलती रहती है।

कनकावती यक्षिणी :

कनकावती यक्षिणी को सिद्ध करने के पश्चात साधक में तेजस्विता तथा प्रखरता आ जाती है, फिर वह विरोधी को भी मोहित करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। यह यक्षिणी साधक की प्रत्येक मनोकामना को पूर्ण करने मे सहायक होती है। माना जाता है कि यह यक्षिणी यह लाल रंग के वस्त्र धारण करने वाली षोडश वर्षीया, बाला स्वरूपा है।

कामेश्वरी यक्षिणी :

यह साधक को पौरुष प्रदान करती है तथा पत्नी सुख की कामना करने पर पूर्ण पत्निवत रूप में उपस्थित होकर साधक की इच्छापूर्ण करती है। साधक को जब भी किसी चीज की आवश्यकता होती है तो वह तत्क्षण उपलब्ध कराने में सहायक होती है। यह यक्षिणी सदैव चंचल रहने वाली मानी गई है। इसकी यौवन युक्त देह मादकता छलकती हुई बिम्बित होती है।

रति प्रिया यक्षिणी :

 इस यक्षि़णी को प्रफुल्लता प्रदान करने वाली माना गया है। रति प्रिया यक्षिणी साधक को हर क्षण प्रफुल्लित रखती है तथा उसे दृढ़ता भी प्रदान करती है। साधक-साधिका को यह कामदेव और रति के समान सौन्दर्य की उपलब्धि कराती है। इस यक्षिणी की देह स्वर्ण के समान है जो सभी तरह के मंगल आभूषणों से सुसज्जित है।

पदमिनी यक्षिणी : पद्मिनी यक्षिणी अपने साधक में आत्मविश्वास व स्थिरता प्रदान करती है तथा सदैव उसे मानसिक बल प्रदान करती हुई उन्नति की ओर अग्रसर करती है। यह हमेशा साधक के साथ रहकर हर कदम पर उसका हौसला बढ़ाती है। श्यामवर्णा, सुंदर नेत्र और सदा प्रसन्नचित्र करने वाली यह यक्षिणी अत्यक्षिक सुंदर देह वाली मानी गई है।

नटी यक्षिणी :

यह यक्षिणी अपने साधक की पूर्ण रूप से सुरक्षा करती है तथा किसी भी प्रकार की विपरीत परिस्थितियों में साधक को सरलता पूर्वक निष्कलंक बचाती है। यह सभी तरह की घटना-दुर्घटना से भी साधक को सुरक्षित बचा ले आती है। उल्लेखनीय है कि नटी यक्षिणी को विश्वामित्र ने भी सिद्ध किया था।

अनुरागिणी यक्षिणी :

यह यक्षिणी यदि साधक पर प्रसंन्न हो जाए तो वह उसे नित्य धन, मान, यश आदि से परिपूर्ण तृप्त कर देती है। अनुरागिणी यक्षिणी शुभ्रवर्णा है और यह साधक की इच्छा होने पर उसके साथ रास-उल्लास भी करती है।

0.मूल अष्ट यक्षिणी मंत्र :

॥ ॐ ऐं श्रीं अष्ट यक्षिणी सिद्धिं सिद्धिं देहि नमः॥

1.सुर सुन्दरी मंत्र : ॥ ॐ ऐं ह्रीं आगच्छ सुर सुन्दरी स्वाहा ॥
2.मनोहारिणी मंत्र :॥ ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा ॥

3.कनकावती मंत्र : ॐ ह्रीं हूं रक्ष कर्मणि आगच्छ कनकावती स्वाहा ॥

4.कामेश्वरी मंत्र : ॐ क्रीं कामेश्वरी वश्य प्रियाय क्रीं ॐ ॥

5.रति प्रिया मंत्र : ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ रति प्रिया स्वाहा ॥

6.पद्मिनी मंत्र : ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ पद्मिनी स्वाहा ॥

7.नटी मंत्र : ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ नटी स्वाहा ॥

8.अनुरागिणी मंत्र : ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ स्वाहा ॥

अंत में उक्त मंत्रों के साथ अष्ट यक्षिणी की साधना कैसे करें-

यह किसी योग्य जानकार से पूछकर करें।

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम
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वाणी सिद्धि साधना

वाणी सिद्धि एक द्रुलोभ साधना है।लाभ हि लाभ ईस साधना से साधक उठाता है।जो भी सत्य करना सिर्फ एक वार वोल दो कुछ पल मेँ वो सत्य हो जाता है।

पल भार मेँ सत्रु कि नाश हो या किसि वश्तु कि कामना हो वो तुरन्त पुरा हो जाता है।साधक के मुख से जो वोली निकला वो सत्य हो के रहता है,चाहे दुनिया ईधार के उधार हो जाय।

भारत मेँ ईस तरहा व्यक्ती को काली जुवान से संमधित किया जाता है, जाव कि साधक के मुख कि जिभा काली नहि होति वालकि उसका वोली सत्य होने करण ईस तरहा काहा जाता है।

देखा जाय तो आसुर या देवता को जानम से हि य सिद्धि प्राप्त रहता तव तो वारदान देने का लाईक रहेते है।हमरे पुरणओँ मेँ ईस विद्या के विषय मे जानकारी है, किस तरहा रुषिमुनि ईसि विद्या के वल पर किसि को भी अभिशाप देते थे,खुश होने पर वरदान भी दिया करते थे जो फलता भी था।

महाभारत मे कुन्ती ने आनजाने मे ईस विद्या का प्रयोग किया जिसका फलसरुप पाँच पाडव को एक स्त्री से विवाह करना पडा जो आज भी कायम है।नेपाल, भारत के अरुणाचलप्रदेश मे ए प्रथा है और एक प्रथा हर धर्म मे प्रचलन हुआ वाडा भाई के मौत किसि करण हो जाय तो, छोटे भाई वाडे भाई के विवि से विवाह राचाना।कलयुग मेँ भी वाणी सिद्धि जागुत साधना है।

जो किलित नहि है, किसि भी साधक चाहे तो आसानी से ईस विद्या को हासिल कर साकता है। शव साधना के माधय्म से करे तो ए एक रात का साधना है। शव साधना मेँ वह शव चाहिय जो प्राकुतिक हो। आगर हत्या किया हुआ शव लिया जाय तो साधक के लेने के देने पड साकते है।ए तो था शव साधना का जानकारी। वाणी सिद्धि साधना किस भी दिन से आरंभ किया जा साकता है।

दिन या रात किस एक समय का चयन करना पडता है। साफ कपडा परिधान कर ले माथे पर सिँदुर का टिका लाग ले और माला रुद्राक्ष होना चाहिए।दिप धुप प्रजलित कर के हनुमान जि का ध्यान कर के मंत्र जाप आरंभ करना चाहिय।

 कुछ दिनोँ तक 1100 जाप करना है।

साधना पेहेले दिन 1100 घि से होम कर ले सिर्फ पेहेले दिन, आगर आप चाहे तो प्रतिदिन

॥ मंत्र-ॐ नमः हनुमते रुद्रवतारय पंन्च मुखाय वाच मुख सिद्धि साधय साधय रामदुताय स्वाहा॥

 सावधान-

कभी कभी हनुमान स्वयं आजाते है, आगर आय तो वैठने के लिय आसान और खाने के लिय कुछ फल मुल प्रदान करे।

राज गुरु जी

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मारण प्रयोग-

कितने शत्रु है?????????कितनी तकलीफ देते है???????????येसा लगता है एक दिन तो इन्हे मार ही डालु???????परंतु क्या ये सही होगा????????मुजे पाप तो नहीं लगेगा ना???????????मैंने अभी कुछ नहीं किया तो क्या ओ मुजे मार तो नहीं देगा?????????

हे प्रभु,कितने सवाल है मन मे..............

कोई बात नहीं,इस कार्य मै आपके साथ हु,कुछ भी ज्यादा सोचो मत,बात जान पे बीतने वाली है तो अब पीछे मत हटो,शत्रु की तो येसी की तैसी...................,खत्म ही कर देगे इनको,ताकि दूसरा कोई मुह उठाके हमसे शत्रुत्व ना करे.......
परंतु किसी भी शत्रु पे प्रयोग करना हो तो 100 बार तो सोच लेना क्या यह कार्य करना उचित होगा या नहीं॰

मुजे आप सभी पे विश्वास है,आप गलत कदम नहीं उठाओगे इसलिये यह दुर्लभ प्रयोग दे रहा हु......सदगुरुजी मुजे क्षमा करे,यही प्रार्थना करता हु........

सामाग्री:-

शमशान गुटिका-

जिसे आसन के नीचे स्थापित करना है ताकि शमशान मे जाकर प्रयोग करने का काम न पड़े,सियार सिंगी-जिसे यमपाश मंत्रो से सिद्ध किया जाता है,जैसे यमराज अपना यमपाश फेकते है और प्राणी का जान ले लेते है उसी तरहा इसको भी कार्यान्वित किया जाता है,महाकाली यंत्र-इसे जागरण क्रिया से ही जगाया जाता है,ताकि माँ शत्रु को समर्पित करने के बाद स्वीकार कर सके,काली हकीक माला-ज्यो शीघ्र कार्य सिद्धि मंत्रो से चैतन्य होती है,शमशान पत्थर-ज्यो इतर योनि मंत्रो से जागरण हो॰

साधना विधि-

साधक सर्वप्रथम गणपति और गुरु पूजन करे,सदगुरुजी से आज्ञा ले और कार्यसिद्धि हेतु प्रार्थना करे

काले रंग के वस्त्र धारण करके काले रंग के आसन पर बैठे,आसन के नीचे शमशान गुटिका रखे,सामने किसी बाजोट पर काला वस्त्र बिछाये,फिर यंत्र को उसपे स्थापित करे और यंत्र पे कुंकुम डाले,अब यंत्र पर सियार सिंगी स्थापित कर दीजिये,और यंत्र के साथ एक चावल का ढेरी बनाए उसापे भी कुंकुम डालकर शमशान पत्थर स्थापित करे,

आपको जिस शत्रु का काम करना है उसके नाम से एक निंबू का बली देकर नींबू का रस शमशान पत्थर पे निचोड़ दे,और मारन मंत्र का २१ माला जाप रोज 10 बजे रात्रि मे ९ दिन तक करे,९ वे दिन रात्रि मे हवन करे और हवन मे सियार सिंगी डाल दे,

शमशान पत्थर को शत्रु के घर के आस-पास गाड़ दे या फिर पीपल के वृक्ष के नीचे गाड़ दे,साधना मे शत्रु का फोटो हो तो कार्य जल्दी संपन्न हो जाएगा या फिर जाप करते समय शत्रु का तीव्र स्मरण करो,यंत्र-माला १० वे दिन जल मे समर्पित करदे जब के आपका कार्य तो ९ दिन ही पूरा हो जायेगा॰

रक्षा मंत्र

इस मंत्र को मुख्य मंत्र से पूर्व २१ बार मंत्र बोलकर काली सरसो दसो दिशाओ मे फेखों,ताकि आपकी भूत-प्रेतो से रक्षा हो सके॰

॥ हुं हुं ह्रीं ह्रीं कालीके घोर दंष्ट्रे प्रचंड चंडनायिके दानवान दारय हन हन शरीरे महाविघ्न छेदय छेदय स्वाहा हु फट ॥

मारण मंत्र-

॥ ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं अमुक शत्रु मारय मारय ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं फट ॥

ll om kreem kreem kreem hreem hreem amuk shatru maarary maaray hreem hreem kreem kreem kreem phat ll

अमुक के स्थान पर शत्रु का नाम उच्चारण करे॰

राज गुरु जी

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Friday, December 9, 2016

भैरवी साधना:-

भैरवी साधना एक उचकोटी का साधना है।सस्त्र मे 64 भैरवी का उलेख मिलता है।हर भैरवी आलग आलग सक्ति का आधिकारी है।साधक आगर भैरवी का साधना करता है तो जिवन मेँ वह हर तारफ सफलता का डंका वाजाता है।मेरा मानोँ तो भैरवी साधना से बाढकार कोई और साधना नही है।

 दुनिया मेँ जिधार भी देखोँ भैरव के साथ एक भैरवी होति है।आपनी माता पिता को देखो।भैरव का जिवन तब तक पुर्ण नही है जब तक एक भैरवी उसकि साथ ना हो। एक बार मेँ चाय के दुकान मेँ मेरे मित्र के साथ चाय पि राहा था।बात करते करते मिरा मित्र मुझकोँ बोला तंत्रकिक आज हम फलना के घर चालते है, मेने बोल कियु बो बोला यार चाल तो हम दोनो मेरे दोस्त का दोस्त के घर कुछ समय बाद चाले गाये।

कुछ दिन बाद मे फिर से बह चाय के दिकान मे चाय पिने गया तो एक आंजान लडका मिला बह मुझ से बात करते करते बोला किया आपके पास दस मिनिँट है कुछ बात करना था।मेने बोला है ,किया बात है बोलो ,बो बोला मांदिर चालते है बाहा बात करते है .मेने हा बोला चालो।मिरा और उसका चाय का पैसा वो लडका चाय बाला को चुकुता किया।

मांदिर मेँ एक पेड के नेचे दोनो बेठ गाये और मेने बोला आब बोलो किया बात है।बह बोला मे उसदिन आप दोनो का बाते सुन राहा था किया आप जादु जानते है।मेने बोला लागभाग थडा बहुत।उसके बाद उसने आपना दु:ख भारे दास्तान सुनाया और बोला किया आप मुझको ईससे मुक्ति दे साकते है, मेने बोला ना फिर भी तुम चाह तो एक तारिका मेरे पास है, किया तुम कर साकते हो ।वो बोला कुछ भी करुगा आप बाताए किया करना है।

मेने सिद्ध भैरबी का मंत्र दिया और बोला केसे करना है। कुछ दिन के बाद बो लडका को नौकरी मिल गया ईसके साथ छोटि वाहेन और छोटा भाई को भी नौकरी बैँक मेँ मिला।आज उनके पास एक आलिशान घर है कार दोलोत सब है। जाब वो लडका मुझसे मिलता है बो रो पाडता है और बोलता है आप मेरे जिंदेगी बादल दिया, मे बोलता हु ए तुमहरा मेहनत का नातिजा है।आज वो तिनो बिवाह कर चुके हे और तोनो के दो दो बाच्चे भी है। सिद्ध भैरवी साधना ए आसान साधना है।

कोई भी आराम से कर साकता है।

विधि-

सिद्ध भैरवी यंत्र।सिद्ध भैरवी मुद्रिका।सिद्ध भैरवी माला।गाले मे रुद्राक्ष माला धारण करना है।शुक्रवार से साधना आरंभ करना है।साफेद कपडा परिधान कर के यंत्र को धुप, दिप, फुल,संदुर और अक्षत से पुजा करना है।

 सफेद आसान मे वैठ कर दक्षिण दिशा मे मुख कर मंत्र को 21 माला जाप करे।

 मंत्र-

ॐ हुं फट वज्र सिद्ध भैरवी आलकिक आलकिक सक्ति सक्ति सिद्धि सिद्धि प्रविश प्रविश हु फट।

यह मंत्र कुछ ही समय मे आसार दिखाना सुरु कर देता है।माथे मे दर्द होता है।यह ईसलिय होता है, आज्ञाचक्र जागुत होना प्रथम दिन से आरंभ हो जाता है।

 आप पायगे कुछ दिन मे आपका हर काम ठिक होता जाएगा। जो पाने का कामना हो वह सपना शाच होने लागगे। माला को कामना पुरी होने पर नदि पर विर्शजित कर दे या फिर देवि भैरवी के दर्शन देने तक रख ले।

जाप प्रतिदिन करते राहे।य मेरा रचना मंत्र है ईस मंत्र का गुरु मे हु।ए सिद्ध मंत्र है।

दुसरा विधि-

विना माला के सिर्फ एक घंटा जाप करते राहे और ईसका दिव्यता देखे।

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम
.
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व्यवसाय बाधा से मुक्ति हेतु :

यदि कारोबार में हानि हो रही हो अथवा ग्राहकों का आना कम हो गया हो, तो समझें कि किसी ने आपके कारोबार को बांध दिया है। इस बाधा से मुक्ति के लिए दुकान या कारखाने के पूजन स्थल में शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को अमृत सिद्ध या सिद्ध योग में श्री धनदा यंत्र स्थापित करें। फिर नियमित रूप से केवल धूप देकर उनके दर्शन करें कारोबार में लाभ होने लगेगा।

राज गुरु जी

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ज्वाला शत्रु स्तम्भय  साधना

जीवन मे निरंतर पग पग पर समस्या तथा बाधाए आना स्वाभाविक है। आज के युग मे जब चारो तरफ अविश्वास और ढोंग का माहोल छाया हुआ है तब ज्यादातर व्यक्तियो का समस्या से ग्रस्त रहना स्वाभाविक है।

और व्यक्ति कई प्रकार के षड्यंत्रो का भोग बनता है। यु एक हस्ते खेलते परिवार का जीवन जाता है अत्यधिक दुखी हो। कई बार व्यक्ति के परिचित ही उसके सबसे बड़े शत्रु बन जाते है और यही कोशिश मे रहते है की किसी न किसी रूप मे इस व्यक्ति का जीवन बर्बाद करना ही है। चाहे इसके लिए स्वयं का भी नुक्सान कितना भी हो जाए। आज के इस अंधे युग मे मानवता जैसे शब्दों को माना नहीं जाता है।

 और व्यक्ति इसे अपना भाग्य मान कर चुप हो जाता है। अपने सामने ही खुद की तथा परिवार की बर्बादी को देखता ही रहता है और आखिर मे अत्यधिक दारुण परिणाम सामने आते है जो की किसी के भी जीवन को हिलाकर रख देते है। एसी परिस्थिति मे गिडगिडाने के अलावा और कोई उपाय व्यक्ति के पास नहीं रह जाता है। लेकिन हमारे ग्रंथो मे जहा एक और नम्रता को महत्व दिया है तो दूसरी और व्यक्ति की कायरता को बहोत बड़ा बाधक भी माना है।

एसी परिस्थितियो मे शत्रु को सबक सिखाना कोई मर्यादाविरुद्ध नहीं है। यह ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार व्यक्ति अपनी और परिवार की आत्मरक्षा के लिए हमलावर को हावी ना होने दे और उस पर खुद ही हावी हो जाए। हमारे तंत्र ग्रंथो मे इस प्रकार के कई महत्वपूर्ण प्रयोग है जिसे योग्य समय पर उपयोग करना हितकारी है।

 लेकिन मजाक मस्ती मे या फिर किसी को गलत इरादे से व्यर्थ ही परेशान करने के लिए इस प्रकार की साधनाओ का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए वरना इसका भयंकर विपरीत परिणाम भी आ सकता है। शत्रुओ के द्वारा निर्मित षड्यंत्रो का किसीभी प्रकार से कोई असर हम पर ना हो और भविष्य मे वह हमारे विरुद्ध परेशान या नुकसान के इरादे से कोई भी योजना ना बना पाए इस प्रकार से साधक का चिंतन हो तो वह यथायोग्य है।

 तन्त्र के कई रहस्यपूर्ण और गुप्त विधानों मे से एक विधान है "ज्वाला शत्रु स्तम्भन"। यह अत्यधिक महत्वपूर्ण विधान है जिसे पूर्ण सात्विक तरीके से सम्प्पन किया जाता है लेकिन इसका प्रभाव अत्यधिक तीक्ष्ण है। देवी ज्वाला अपने आप मे पूर्ण अग्नि रूप है, और शत्रुओ की गति मति स्तंभित कर के साधक का कल्याण करती है। साधक को इस प्रयोग के लिए कोई विशेष सामग्री की ज़रूरत नहीं है।

इस विधान को साधक किसी भी दिन से शुरू कर सकता है तथा इसे आठ दिन तक करना है, इन आठ दिनों मे साधक को शुद्ध सात्विक भोजन ही करना चाहिए, लहसुन तथा प्याज भी नहीं खाना चाहिए। यह जैन तंत्र साधना है इस लिए इन बातो का ध्यान रखा जाए।

इस प्रयोग मे वस्त्र तथा आसान सफ़ेद रहे। दिशा उत्तर रहे। साधक रात्री काल मे 10 बजे के देवी ज्वाला को मन ही मन शत्रुओ से मुक्ति के लिए प्रार्थना करे। इसके बाद निम्न मंत्र की 1008 आहुतिय शुद्ध घी से अग्नि मे प्रदान करे।

औम झ्राम् ज्वालामालिनि शत्रु स्तम्भय उच्चाटय फट्

आहुति के बाद साधक फिर से देवी को प्रार्थना करे तथा भूमि पर सो जाए। इस प्रकार आठ दिन नियमित रूप से करने पर साधक के समस्त शत्रु स्तंभित हो जाते है और साधक को किसी भी प्रकार की कोई भी परेशानी नहीं होती। शत्रु के समस्त षडयंत्र उन पर ही भारी पड जाते है।

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम
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Thursday, December 8, 2016

उपयोगी टोने-टोटके

परीक्षा में सफलता हेतु :

परीक्षा में सफलता हेतु गणेश रुद्राक्ष धारण करें। बुधवार को गणेश जी के मंदिर में जाकर दर्शन करें और मूंग के लड्डुओं का भोग लगाकर सफलता की प्रार्थना करें।

बिक्री बढ़ाने हेतु :

 ग्यारह गोमती चक्र और तीन लघु नारियलों की यथाविधि पूजा कर उन्हें पीले वस्त्र में बांधकर बुधवार या शुक्रवार को अपने दरवाजे पर लटकाएं तथा हर पूर्णिमा को धूप दीप जलाएं। यह क्रिया निष्ठापूर्वक नियमित रूप से करें, ग्राहकों की संख्या में वृद्धि होगी और बिक्री बढ़ेगी।

पदोन्नति हेतु :

 शुक्ल पक्ष के सोमवार को सिद्ध योग में तीन गोमती चक्र चांदी के तार में एक साथ बांधें और उन्हें हर समय अपने साथ रखें, पदोन्नति के साथ-साथ व्यवसाय में भी लाभ होगा।

मुकदमे में विजय हेतु :

 पांच गोमती चक्र जेब में रखकर कोर्ट में जाया करें, मुकदमे में निर्णय आपके पक्ष में होगा।

पढ़ाई में एकाग्रता हेतु :

 शुक्ल पक्ष के पहले रविवार को इमली के २२ पत्ते ले आएं और उनमें से ११ पत्ते सूर्य देव को ¬ सूर्याय नमः कहते हुए अर्पित करें। शेष ११ पत्तों को अपनी किताबों में रख लें पढ़ाई में रुचि बढ़ेगी।

कार्य में सफलता के लिए :

 अमावस्या के दिन पीले कपड़े का त्रिकोना झंडा बना कर विष्णु भगवान के मंदिर के ऊपर लगवा दें कार्य सिद्ध होगा।

व्यवसाय बाधा से मुक्ति हेतु :

यदि कारोबार में हानि हो रही हो अथवा ग्राहकों का आना कम हो गया हो, तो समझें कि किसी ने आपके कारोबार को बांध दिया है। इस बाधा से मुक्ति के लिए दुकान या कारखाने के पूजन स्थल में शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को अमृत सिद्ध या सिद्ध योग में श्री धनदा यंत्र स्थापित करें। फिर नियमित रूप से केवल धूप देकर उनके दर्शन करें कारोबार में लाभ होने लगेगा।

गृह कलह से मुक्ति हेतु :

 परिवार में पैसे की वजह से कलह रहता हो, तो दक्षिणावर्ती शंख में पांच कौड़ियां रखकर उसे चावल से भरी चांदी की कटोरी पर घर में स्थापित करें। यह प्रयोग शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार को या दीपावली के अवसर पर करें, लाभ अवश्य होगा।

क्रोध पर नियंत्रण हेतु :

 यदि घर के किसी व्यक्ति को बात-बात पर गुस्सा आता हो, तो दक्षिणावर्ती शंख को साफ कर उसमें जल भरकर उसे पिला दें। यदि परिवार में पुरुष सदस्यों के कारण आपस में तनाव रहता हो तो पूर्णिमा के दिन कदंब वृक्ष की सात अखंड पत्तों वाली डाली लाकर घर में रखें। अगली पूर्णिमा को पुरानी डाली कदंब वृक्ष के पास छोड़ आएं और नई डाली लाकर रखें। यह क्रिया इसी तरह करते रहें तनाव कम होगा।

मकान खाली कराने हेतु

: शनिवार की शाम को भोजपत्र पर लाल चंदन से किरायेदार का नाम लिखकर शहद में डुबो दें। संभव हो, तो यह क्रिया शनिश्चरी अमावस्या को करें। कुछ ही दिनों में किरायेदार घर खाली कर देगा। ध्यान रहे, यह क्रिया करते समय कोई टोके नहीं।

      आर्थिक समस्या के छुटकारे के लिए

यदि आप हमेशा आर्थिक समस्या से परेशान हैं तो इसके लिए आप 21 शुक्रवार 9 वर्ष से कम आयु की 5 कन्यायों को खीर व मिश्री का प्रसाद बांटें !

       घर और कार्यस्थल में धन वर्षा के लिए

इसके लिए आप अपने घर, दुकान या शोरूम में एक अलंकारिक फव्वारा रखें !

या

एक मछलीघर जिसमें 8 सुनहरी व एक काली मछ्ली हो रखें ! इसको उत्तर या उत्तरपूर्व की ओर रखें ! यदि कोई मछ्ली मर जाय तो उसको निकाल कर नई मछ्ली लाकर उसमें डाल दें !

      परेशानी से मुक्ति के लिए

आज कल हर आदमी किसी न किसी कारण से परेशान है ! कारण कोई भी हो आप एक तांबे के पात्र में जल भर कर उसमें थोडा सा लाल चंदन मिला दें ! उस पात्र को सिरहाने रख कर रात को सो जांय ! प्रातः उस जल को तुलसी के पौधे पर चढा दें ! धीरे-धीरे परेशानी दूर होगी !

      कुंवारी कन्या के विवाह हेतु

१.       यदि कन्या की शादी में कोई रूकावट आ रही हो तो पूजा वाले 5 नारियल लें ! भगवान शिव की मूर्ती या फोटो के आगे रख कर “ऊं श्रीं वर प्रदाय श्री नामः” मंत्र का पांच माला जाप करें फिर वो पांचों नारियल शिव जी के मंदिर में चढा दें ! विवाह की बाधायें अपने आप दूर होती जांयगी !

२.      प्रत्येक सोमवार को कन्या सुबह नहा-धोकर शिवलिंग पर “ऊं सोमेश्वराय नमः” का जाप करते हुए दूध मिले जल को चढाये और वहीं मंदिर में बैठ कर रूद्राक्ष की माला से इसी मंत्र का एक माला जप करे ! विवाह की सम्भावना शीघ्र बनती नज़र आयेगी

       व्यापार बढाने के लिए

१.       शुक्ल पक्ष में किसी भी दिन अपनी फैक्ट्री या दुकान के दरवाजे के दोनों तरफ बाहर की ओर थोडा सा गेहूं का आटा रख दें ! ध्यान रहे ऐसा करते हुए आपको कोई देखे नही !

२.      पूजा घर में अभिमंत्रित श्र्री यंत्र रखें !

३.      शुक्र्वार की रात को सवा किलो काले चने भिगो दें ! दूसरे दिन शनिवार को उन्हें सरसों के तेल में बना लें ! उसके तीन हिस्से कर लें ! उसमें से एक हिस्सा घोडे या भैंसे को खिला दें ! दूसरा हिस्सा कुष्ठ रोगी को दे दें और तीसरा हिस्सा अपने सिर से घडी की सूई से उल्टे तरफ तीन बार वार कर किसी चौराहे पर रख दें ! यह प्रयोग 40 दिन तक करें ! कारोबार में लाभ होगा !

    लगातार बुखार आने पर

१.       यदि किसी को लगातार बुखार आ रहा हो और कोई भी दवा असर न कर रही हो तो आक की जड लेकर उसे किसी कपडे में कस कर बांध लें ! फिर उस कपडे को रोगी के कान से बांध दें ! बुखार उतर जायगा !

२.      इतवार या गुरूवार को चीनी, दूध, चावल और पेठा (कद्दू-पेठा, सब्जी बनाने वाला) अपनी इच्छा अनुसार लें और उसको रोगी के सिर पर से वार कर किसी भी धार्मिक स्थान पर, जहां पर लंगर बनता हो, दान कर दें !
३.      यदि किसी को टायफाईड हो गया हो तो उसे प्रतिदिन एक नारियल पानी पिलायें ! कुछ ही दिनों में आराम हो जायगा !

       नौकरी जाने का खतरा हो या ट्रांसफर रूकवाने के लिएपांच ग्राम डली वाला सुरमा लें ! उसे किसी वीरान जगह पर गाड दें ! ख्याल रहे कि जिस औजार से आपने जमीन खोदी है उस औजार को वापिस न लायें ! उसे वहीं फेंक दें दूसरी बात जो ध्यान रखने वाली है वो यह है कि सुरमा डली वाला हो और एक ही डली लगभग 5 ग्राम की हो ! एक से ज्यादा डलियां नहीं होनी चाहिए !

      कारोबार में नुकसान हो रहा हो या कार्यक्षेत्र में झगडा हो रहा हो तो
 यदि उपरोक्त स्थिति का सामना हो तो आप अपने वज़न के बराबर कच्चा कोयला लेकर जल प्रवाह कर दें ! अवश्य लाभ होगा !

       मुकदमें में विजय पाने के लिए

यदि आपका किसी के साथ मुकदमा चल रहा हो और आप उसमें विजय पाना चाहते हैं तो थोडे से चावल लेकर कोर्ट/कचहरी में जांय और उन चावलों को कचहरी में कहीं पर फेंक दें ! जिस कमरे में आपका मुकदमा चल रहा हो उसके बाहर फेंकें तो ज्यादा अच्छा है ! परंतु याद रहे आपको चावल ले जाते या कोर्ट में फेंकते समय कोई देखे नहीं वरना लाभ नहीं होगा ! यह उपाय आपको बिना किसी को पता लगे करना होगा !

     धन के ठहराव के लिए

आप जो भी धन मेहनत से कमाते हैं उससे ज्यादा खर्च हो रहा हो अर्थात घर में धन का ठहराव न हो तो ध्यान रखें को आपके घर में कोई नल लीक न करता हो ! अर्थात पानी टप–टप टपकता न हो ! और आग पर रखा दूध या चाय उबलनी नहीं चाहिये ! वरना आमदनी से ज्यादा खर्च होने की सम्भावना रह्ती है

      मानसिक परेशानी दूर करने के लिए

रोज़ हनुमान जी का पूजन करे व हनुमान चालीसा का पाठ करें ! प्रत्येक शनिवार को शनि को तेल चढायें ! अपनी पहनी हुई एक जोडी चप्पल किसी गरीब को एक बार दान करें !

    बच्चे के उत्तम स्वास्थ्य व दीर्घायु के लिए

१.       एक काला रेशमी डोरा लें ! “ऊं नमोः भगवते वासुदेवाय नमः” का जाप करते हुए उस डोरे में थोडी थोडी दूरी पर सात गांठें लगायें ! उस डोरे को बच्चे के गले या कमर में बांध दें !

२.      प्रत्येक मंगलवार को बच्चे के सिर पर से कच्चा दूध 11 बार वार कर किसी जंगली कुत्ते को शाम के समय पिला दें ! बच्चा दीर्घायु होगा !
      किसी रोग से ग्रसित होने पर

सोते समय अपना सिरहाना पूर्व की ओर रखें ! अपने सोने के कमरे में एक कटोरी में सेंधा नमक के कुछ टुकडे रखें ! सेहत ठीक रहेगी !

       प्रेम विवाह में सफल होने के लिए

यदि आपको प्रेम विवाह में अडचने आ रही हैं तो :

शुक्ल पक्ष के गुरूवार से शुरू करके विष्णु और लक्ष्मी मां की मूर्ती या फोटो के आगे “ऊं लक्ष्मी नारायणाय नमः” मंत्र का रोज़ तीन माला जाप स्फटिक माला पर करें ! इसे शुक्ल पक्ष के गुरूवार से ही शुरू करें ! तीन महीने तक हर गुरूवार को मंदिर में प्रशाद चढांए और विवाह की सफलता के लिए प्रार्थना करें !
    नौकर न टिके या परेशान करे

हर मंगलवार को बदाना (मीठी बूंदी) का प्रशाद लेकर मंदिर में चढा कर लडकियों में बांट दें ! ऐसा आप चार मंगलवार करें !
      बनता काम बिगडता हो, लाभ न हो रहा हो या कोई भी परेशानी हो
हर मंगलवार को हनुमान जी के चरणों में बदाना (मीठी बूंदी) चढा कर उसी प्रशाद को मंदिर के बाहर गरीबों में बांट दें !

      यदि आपको सही नौकरी मिलने में दिक्कत आ रही हो

१.       कुएं में दूध डालें! उस कुएं में पानी होना चहिए !
२.      काला कम्बल किसी गरीब को दान दें !
३.      6 मुखी रूद्राक्ष की माला 108 मनकों वाली माला धारण करें जिसमें हर मनके के बाद चांदी के टुकडे पिरोये हों !

       अगर आपका प्रमोशन नहीं हो रहi

१.       गुरूवार को किसी मंदिर में पीली वस्तुये जैसे खाद्य पदार्थ, फल, कपडे इत्यादि का दान करें !

२.      हर सुबह नंगे पैर घास पर चलें !

      पति को वश में करने के लिए यह प्रयोग शुक्ल  पक्ष में करना चाहिए ! एक पान का पत्ता लें ! उस पर चंदन और केसर का पाऊडर मिला कर रखें ! फिर दुर्गा माता जी की फोटो के सामने बैठ कर दुर्गा स्तुति में से चँडी स्त्रोत का पाठ 45 दिन तक करें ! पाठ करने के बाद चंदन और केसर जो पान के पत्ते पर रखा था, का तिलक अपने माथे पर लगायें ! और फिर तिलक लगा कर पति के सामने जांय ! यदि पति वहां पर न हों तो उनकी फोटो के सामने जांय ! पान का पता रोज़ नया लें जो कि साबुत हो कहीं से कटा फटा न हो ! रोज़ प्रयोग किए गए पान के पत्ते को अलग किसी स्थान पर रखें ! 45 दिन के बाद उन पान के पत्तों को जल प्रवाह कर दें ! शीघ्र समस्या का समाधान होगा

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम
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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...