Wednesday, July 29, 2020

हथेली में ऐसी रेखा सरकारी खजाने से लाभ दिलाती है ...




हथेली में ऐसी रेखा सरकारी खजाने से लाभ दिलाती है ...


 सरकार से धन का लाभ मिले भला यह कौन नहीं चाहेगा। लेकिन यह चाहत हर किसी की पूरी नहीं होती है। इसके लिए जरूरी है कि आपकी किस्मत में सरकार से लाभ का योग बना हो। 

कुण्डली में किस्मत को पढ़ने का काम एक कुशल ज्योतिषी ही कर सकता है लेकिन, अपनी हथेली को आप स्वयं देखकर समझ सकते हैं कि सरकार से आपको लाभ मिलेगा या नहीं।

समुद्रशास्त्र में बताया गया है कि जिनकी हथेली में सूर्य पर्वत उभरा हुआ होता है और उस पर बिना किसी कट के सीधी रेखा आती है तब सूर्य मजबूत होता है। सूर्य सरकार का कारक ग्रह है। 

इससे सरकारी क्षेत्र से धन का लाभ होता है। ऐसे लोगों को सरकारी नौकरी मिलने की भी अच्छी संभावना रहती है।

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सूर्य पर्वत अनामिका उंगली की जड़ में स्थित है। गुरू को भी सरकारी क्षेत्र से लाभ दिलाने वाला ग्रह माना जाता है। गुरू पर्वत पर सूर्य पर्वत से चलकर कोई रेखा आ रही है 

तो इसका अर्थ है कि व्यक्ति सरकारी क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त कर सकता है। राजनेता या कुशल सलाहकार होगा। ऐसा व्यक्ति सरकार से मान-सम्मान एवं धन प्राप्त करता है।

गुरू पर्वत पर कई सीधी रेखाओं का होना और गुरू पर्वत का उभरा होना भी सरकारी धन से लाभ को दर्शाता है। लेकिन जिनकी हथेली में गुरू पर्वत ज्यादा उभरा हुआ होता है वह अहंकारी होते हैं। 

इनमें अपनी बुद्घि और ज्ञान का अभिमान होता है। गुरू पर्वत हथेली में तर्जनी उंगली के नीचे होता है।

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राजगुरु जी

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Tuesday, July 28, 2020

बगलामुखी कवच






बगलामुखी कवच


यदि बगलामुखी कवच आपतक पहुँच जाए तो यह मत समझियेगा- कि यह आपके भाग्य पर मिला है.यह तो माँ का आशीर्वाद है- कि आप भाग्यशाली हैं. कि इस कवच को आप धारण करते हैं. मैं ऐसा विश्वास करता हूँ- कि माँ के दिशा निर्देश से पूर्ण शास्त्रीय ढंग से निर्माण करता हूँ. कवच का निर्माण तांत्रिक क्रिया है.

जिसमे एक दिव्य शक्ति का समावेश होता है. इसका निर्माण माँ के इच्छा अनुसार होता है मानव तो मात्र एक कठपुतली के समान है. इससे मुझे यकीन है- कि रक्षा कवच सिर्फ काम ही नहीं करता बल्कि यह प्रमाणित होता है.

                    »» यदि कोई मनुष्य अपने शरीर और कुल का कल्याण चाहता है तो इस कवच को आवश्य धारण करना चाहिए.

                    »»सुरक्षा कवच कि सहायता से मनुष्य अपने मनोकामना को पूर्ण करता है और एक सफल जीवन जीता है.

                    »»सुरक्षा कवच के धारण से मनुष्य निर्भीक साहसी हो जाता है, वह हर क्षेत्र में उन्नति करता है और खुशहाल जीवन जीता है.

                    »»जो मनुष्य सुरक्षा कवच धारण किए हुए हैं उसके उपस्थिति मात्र से सभी बुरे तांत्रिक क्रिया काला जादू आदि बुरी शक्ति नष्ट हो जाती है.

                     »»बगलामुखी सुरक्षा कवच धारण किए हुए व्यक्ति से जो न आँखों से दिखाई देता है और जो मनुष्य के जीवन पर गलत प्रभाव देतें हैं इससे दूर रहते हैं. सरल भाषा   में यदि कहा जाए तो किसी भी प्रकार की नकारात्मक उर्जा से यह कवच उसका बचाव करता है.

                    »»इसे धारण किए हुए व्यक्ति अपने से बड़े अधिकारियों से सम्मान प्राप्त करता है. यह कवच बुद्धि को स्थिर करके उनके कार्य करने कि शक्ति को बढ़ाता है.

                    »»इस कवच के धारणकर्ता के व्यक्तित्व मे निखार आता है. वह समाज मे सम्मान प्राप्त करता है, उसका नाम और प्रसिद्धि चारों दिशाओं में फैलता है.



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सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

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महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

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Monday, July 27, 2020

दंतेश्वरी मंदिर-






दंतेश्वरी मंदिर- 


एक शक्ति पीठ यहां गिरा था सती का दांत

छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र की हसीन वादियों में स्थित है, दन्तेवाड़ा का प्रसिद्ध दंतेश्वरी मंदिर। देवी पुराण में शक्ति पीठों की संख्या 51 बताई गई है जबकि तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। जबकि कई अन्य ग्रंथों में यह संख्या 108 तक बताई गई है।

 दन्तेवाड़ा को हालांकि देवी पुराण के 51 शक्ति पीठों में शामिल नहीं किया गया है लेकिन इसे देवी का 52 वा शक्ति पीठ माना जाता है। मान्यता है की यहाँ पर सती का दांत गिरा था इसलिए इस जगह का नाम दंतेवाड़ा और माता क़ा नाम दंतेश्वरी देवी पड़ा। 51 शक्ति पीठों की जानकारी और शक्ति पीठों के निर्माण कि कहानी आप हमारे पिछले लेख 51 शक्ति पीठ में पढ़ सकते है।

 दंतेश्वरी मंदिर शंखिनी और डंकिनी नदीयों के संगम पर स्थित हैं।

दंतेश्वरी देवी को बस्तर क्षेत्र की कुलदेवी का दजऱ्ा प्राप्त है। इस मंदिर की एक खासियत यह है की माता के दर्शन करने के लिए आपको लुंगी या धोति पहनकर ही मंदीर में जाना होगा। मंदिर में सिले हुए वस्त्र पहन कर जानें की मनाही है।

मंदिर के निर्माण की कथा-

दन्तेवाड़ा शक्ति पीठ में माँ दन्तेश्वरी के मंदीर का निर्माण कब व कैसे हूआ इसकि क़हानी कुछ इस तरह है। ऐसा माना जाता है कि बस्तर के पहले काकातिया राजा अन्नम देव वारंगल से यहां आए थे। उन्हें दंतेवश्वरी मैय्या का वरदान मिला था।

कहा जाता है कि अन्नम देव को माता ने वर दिया था कि जहां तक वे जाएंगे, उनका राज वहां तक फैलेगा। शर्त ये थी कि राजा को पीछे मुड़कर नहीं देखना था और मैय्या उनके पीछे-पीछे जहां तक जाती, वहां तक की ज़मीन पर उनका राज हो जाता। अन्नम देव के रूकते ही मैय्या भी रूक जाने वाली थी।

अन्नम देव ने चलना शुरू किया और वे कई दिन और रात चलते रहे। वे चलते-चलते शंखिनी और डंकिनी नंदियों के संगम पर पहुंचे। यहां उन्होंने नदी पार करने के बाद माता के पीछे आते समय उनकी पायल की आवाज़ महसूस नहीं की। सो वे वहीं रूक गए और माता के रूक जाने की आशंका से उन्?होंने पीछे पलटकर देखा। माता तब नदी पार कर रही थी। राजा के रूकते ही मैय्या भी रूक गई और उन्?होंने आगे जाने से इनकार कर दिया।

 दरअसल नदी के जल में डूबे पैरों में बंधी पायल की आवाज़ पानी के कारण नहीं आ रही थी और राजा इस भ्रम में कि पायल की आवाज़ नहीं आ रही है, शायद मैय्या नहीं आ रही है सोचकर पीछे पलट गए।

वचन के अनुसार मैय्या के लिए राजा ने शंखिनी-डंकिनी नदी के संगम पर एक सुंदर घर यानि मंदिर बनवा दिया। तब से मैय्या वहीं स्थापित है। दंतेश्वरी मंदिर के पास ही शंखिनी और डंकिन नदी के संगम पर माँ दंतेश्वरी के चरणों के चिन्ह मौजूद है और यहां सच्चे मन से की गई मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है।

अदभुत है मंदिर-

दंतेवाड़ा में माँ दंतेश्वरी की षट्भुजी वाले काले ग्रेनाइट की मूर्ति अद्वितीय है। छह भुजाओं में दाएं हाथ में शंख, खड्ग, त्रिशुल और बाएं हाथ में घंटी, पद्य और राक्षस के बाल मांई धारण किए हुए है।

 यह मूर्ति नक्काशीयुक्त है और ऊपरी भाग में नरसिंह अवतार का स्वरुप है। माई के सिर के ऊपर छत्र है, जो चांदी से निर्मित है। वस्त्र आभूषण से अलंकृत है। द्वार पर दो द्वारपाल दाएं-बाएं खड़े हैं जो चार हाथ युक्त हैं। बाएं हाथ सर्प और दाएं हाथ गदा लिए द्वारपाल वरद मुद्रा में है।

इक्कीस स्तम्भों से युक्त सिंह द्वार के पूर्व दिशा में दो सिंह विराजमान जो काले पत्थर के हैं। यहां भगवान गणेश, विष्णु, शिव आदि की प्रतिमाएं विभिन्न स्थानों में प्रस्थापित है। मंदिर के गर्भ गृह में सिले हुए वस्त्र पहनकर प्रवेश प्रतिबंधित है। मंदिर के मुख्य द्वार के सामने पर्वतीयकालीन गरुड़ स्तम्भ से अड्ढवस्थित है।

बत्तीस काष्ठड्ढ स्तम्भों और खपरैल की छत वाले महामण्डप मंदिर के प्रवेश के सिंह द्वार का यह मंदिर वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। मांई जी का प्रतिदिन श्रृंगार के साथ ही मंगल आरती की जाती है।

माँ भुनेश्वरी देवी-

माँ दंतेश्वरी मंदिर के पास ही उनकी छोटी बहन माँ भुनेश्वरी का मंदिर है। माँ भुनेश्वरी को मावली माता, माणिकेश्वरी देवी के नाम से भी जाना जाता है। माँ भुनेश्वरी देवी आंध्रप्रदेश में माँ पेदाम्मा के नाम से विख्यात है और लाखो श्रद्धालु उनके भक्त हैं।

 छोटी माता भुवनेश्वरी देवी और मांई दंतेश्वरी की आरती एक साथ की जाती है और एक ही समय पर भोग लगाया जाता है। लगभग चार फीट ऊंची माँ भुवनेश्वरी की अष्टड्ढभुजी प्रतिमा अद्वितीय है। मंदिर के गर्भगृह में नौ ग्रहों की प्रतिमाएं है।

वहीं भगवान विष्णु अवतार नरसिंह, माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की प्रतिमाएं प्रस्थापित हैं। कहा जाता है कि माणिकेश्वरी मंदिर का निर्माण दसवीं शताब्दी में हुआ।

फाल्गुन में होता है मड़ई उत्सव का आयोजऩ-
होली से दस दिन पूर्व यहां फाल्गुन मड़ई का आयोजन होता है, जिसमें आदिवासी संस्कृति की विश्वास और परंपरा की झलक दिखाई पड़ती है।

नौ दिनों तक चलने वाले फाल्गुन मड़ई में आदिवासी संस्कृति की अलग-अलग रस्मों की अदायगी होती है। मड़ई में ग्राम देवी-देवताओं की ध्वजा, छत्तर और ध्वजा दण्ड पुजारियों के साथ शामिल होते हैं।

करीब 250 से भी ज्यादा देवी-देवताओं के साथ मांई की डोली प्रतिदिन नगर भ्रमण कर नारायण मंदिर तक जाती है और लौटकर पुनरू मंदिर आती है। इस दौरान नाच मंडली की रस्म होती है, जिसमें बंजारा समुदाय द्वारा किए जाने वाला लमान नाचा के साथ ही भतरी नाच और फाग गीत गाया जाता है।

मांई जी की डोली के साथ ही फाल्गुन नवमीं, दशमी, एकादशी और द्वादशी को लमहा मार, कोड़ही मार, चीतल मार और गौर मार की रस्म होती है। मड़ई के अंतिम दिन सामूहिक नृत्य में सैकड़ों युवक-युवती शामिल होते हैं और रात भर इसका आनंद लेते हैं।

 फाल्गुन मड़ई में दंतेश्वरी मंदिर में बस्तर अंचल के लाखों लोगों की भागीदारी होती है।

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Sunday, July 26, 2020

गणेशजी के 3 मंत्र, जो मात्र 7 दिन में बदल देंगे आपकी किस्मत-






गणेशजी के 3 मंत्र, जो मात्र 7 दिन में बदल देंगे आपकी किस्मत-


जब जीवन में हर तरफ दुख हो, संकट हो और निकलने का कोई मार्ग न दिखे तो गौरीपुत्र गजानन की आराधना तुरंत फल देती है। भगवान गणेश की सात्विक साधनाएं अत्यंत सरल तथा प्रभावी होती है।

 इनमें अधिक विधि-विधान की भी जरूरत नहीं होती केवल मन में भाव होने मात्र से ही गणेश अपने भक्त को हर संकट से बाहर निकालते हैं और सुख-समृदि्ध का मार्ग दिखाते हैं।
ऎसे करें श्रीगणेश की पूजा

गणेश गायत्री मंत्र

ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।।

यह गणेश गायत्री मंत्र है। इस मंत्र का प्रतिदिन शांत मन से 108 बार जप करने से गणेशजी की कृपा होती है। लगातार 11 दिन तक गणेश गायत्री मंत्र के जप से व्यक्ति के पूर्व कर्मो का बुरा फल खत्म होने लगता है और भाग्य उसके साथ हो जाता है।
गणेश जी की कृपा पाने के लिए करें बुधवार को ऋद्धि-सिद्धी की पूजा

तांत्रिक गणेश मंत्र

ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरू गणेश।
ग्लौम गणपति, ऋदि्ध पति, सिदि्ध पति। मेरे कर दूर क्लेश।।

यूं तो यह एक तांत्रिक मंत्र है जिसकी साधना में कुछ खास चीजों का ध्यान रखना पड़ता है। परन्तु रोज सुबह महादेवजी, पार्वतीजी तथा गणेशजी की पूजा करने के बाद इस मंत्र का 108 बार जाप करने व्यक्ति के समस्त सुख-दुख तुरंत खत्म होते हैं।

 लेकिन इस मंत्र के प्रयोग के समय व्यक्ति को पूर्ण सात्विकता रखनी होती है और क्रोध, मांस, मदिरा, परस्त्री से संबंधों से दूर रहना होता है।
गणेश कुबेर मंत्र

ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा।

यदि व्यक्ति पर अत्यन्त भारी कर्जा हो जाए, आर्थिक परेशानियां आए-दिन दुखी करने लगे। तब गणेशजी की पूजा करने के बाद गणेश कुबेर मंत्र का नियमित रूप से जाप क रने से व्यक्ति का कर्जा चुकना शुरू हो जाता है तथा धन के नए स्त्रोत प्राप्त होते हैं जिनसे व्यक्ति का भाग्य चमक उठता है

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Friday, July 24, 2020

महाविद्या आश्रम राजयोग पीठ फाउंडेशन ट्रस्ट






महाविद्या आश्रम राजयोग पीठ फाउंडेशन ट्रस्ट


तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

तंत्र अपनी कमियों को स्वीकार कर विजय प्राप्त करने की ही क्रिया है , यह प्रकृति,यह तारा मण्डल,मनुष्य का संबंध,चरित्र,विचार,भावनाये सब कुछ तो तंत्र से ही चल रहा है;जिसे हम जीवन तंत्र कहेते है॰

जीवन मे कोई घटना आपको सूचना देकर नहीं आता है,क्योके सामान्य व्यक्ति मे इतना अधिक सामर्थ्य नहीं होता है के वह काल के गति को पहेचान सके,भविष्य का उसको ज्ञान हो,समय चक्र उसके अधीन हो ये बाते संभव ही नहीं,इसलिये हमे तंत्र की शक्ति को समजना आवश्यक है यही इस ब्लॉग का उद्देश्य है.

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Tuesday, July 21, 2020

सट्टा जुआ मटका और शेयर मार्केट में विजय दिलाने वाला शकुनि साधना -

https://https://youtu.be/6blktxXOr-4







शकुनि  तंत्र  साधना -

सट्टा जुआ मटका और शेयर मार्केट में विजय दिलाने वाला शकुनि साधना -

साधना शुरू करने से कुछ दिन पहले ही इन मन्त्र को बहुत अच्छी तरह से याद करलें ताकि मन्त्र जप के समय कोई भूल न हो।इस साधना को दिन या रात कभी भी किया जा सकता है।किंतु जिस समय और काल से साधना प्रारम्भ करें,वही समय अगले दिन की साधना के लिए चुनें।

आसन - लाल रेशमी या ऊनि कंबल में पे पूर्व दिशा मुख करके बैठें।गाय के घी या सरसो के तेल की दीपक जलाएं अगर दीपक घी की हो तो आगे से दाहिने तरफ रखें और अगर तेल की हो तो आगे से बाएं तरफ रखें।एक या डेढ़ फीट की दूरी रखें।दीपक का अग्निमुख अपनी तरफ रखें।

इसके बाद एक दंतायै नमः का 15 बार जप करें।

इसके बाद बताए गए मूल मंत्र का जप श्वेतार्क या कमलगट्टे की सनस्कारित माला से 3 माला जप करें।आंखे बंद करके जप करें।
एक माला जप के बाद आंखे खोल के दीपक की जांच कर लें।इसके बाद पुनः आंखे बंद कर अगली माला जप करें।

इसी प्रकार 15 दिनों तक जप करें।।

ध्यान व दशांश हवन की जरूरत नही है।

जरूरत है तो सिर्फ दीक्षा की एक बार अच्छे से साधना कर ली तो समझिए बहुत बड़ी सिद्धि मिल गयी।

अब आप अपने मकसद के लिए उक्त मन्त्र का प्रयोग कर सकते है।

जब भी जुआ जैसे कर्म करना हो मात्र 15 बार मन ही मन मन्त्र का उच्चारण करें और अपने कार्यो में हाथ लगाएं।

जीत सर्वदा आपकी होगी।।

नोट - आध्यात्मिक सफलता के इक्षुक मित्र इस साधना को न करें।।

बिना दीक्षा के यह साधना करना समय की बर्बादी होगा।

मंत्र एवम् मुझसे व्यक्तिगत संपर्क हेतु टेलीग्राम ज्वॉइन करे।

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Wednesday, July 15, 2020

भैरव गंडा निर्माण एक रहस्यमयी विधि

भैरव गंडा निर्माण  एक रहस्यमयी विधि

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श्री भैरव भगवान शिव का एक रुप माने जाते है. पुराणों तथा तंत्र शास्त्र में भैरव जी के अनेक रुपों का वर्णन प्राप्त होता है. इनके प्रमुख रुप इस प्रकार हैं:-

असितांग भैरव, चण्ड भैरव, रुरु भैरव, क्रोध भैरव, कपालि भैरव, भीषण भैरव, संहार भैरव उन्मत्त भैरव इत्यादि ! श्री भैरव जी की साधना शत्रुओं से बचाती है तथा समस्त भय का नाश करने वाली होती है.

 श्री भैरव जी के दस नामों का प्रात: काल स्मरण करने मात्र से सभी संकट दूर होते हैं. भैरव, भीम, कपाली शूर, शूली, कुण्डली, व्यालोपवीती, कवची, भीमविक्रम तथा शिवप्रिय नामों का स्मरण साधक को बल एवं साहस प्रदान करता है उसे कोई यातना एवं पीड़ा नहीं सताती.

भैरव देव जी के राजस, तामस एवं सात्विक तीनों प्रकार की साधना तंत्र मैं प्राप्त होती हैं. बटुक भैरव जी के सात्विक स्वरूप का ध्यान करने से रोग दोष दूर होते हैं तथा दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है. इनके राजस स्वरूप का ध्यान करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. तथा इनके तामस स्वरूप का ध्यान करने से सम्मोहन, वशीकरण इत्यादि का प्रभाव समाप्त होता है

बहुध बच्चो एवं बड़ो को डरने , नींद मे चौकने की शिकायत हो जाती है ! उनको हवा का भी असर हो जाता है ! प्रेतात्माओ से रक्षा के लिए , आपदा विपदाओ से रक्षा का लिए , आरोग्य लाभ के लिए गंडो की जरुरत होती है ! यह गंडे काले डोरों की आठ लड़ मे करीब २ फुट लम्बे बट का बना लिए जाते है !

 डोरे को करीब पाच फुट लम्बी आठ लड़े करो ! उनको बट दो और उनको दुब्बर करके फिर बट दो तो तैयार डोरा २ फुट के करीब रह जाएगा ! काल भैरव अष्टमी रात आप स्नान आदि कर साफ़ धोती पहन कर दक्षिण की और मुह कर आसन पर बैठ जाए सर्व प्रथम गणेश -

गुरु पूजन कर श्री भैरव पूजन करे और उस डोरे का भी पूजन करे ( पंचोपचार ) अब रुद्राक्ष माला से ५ माला निम्न मंत्र की करे -

'ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं '

 मंत्र जप पूर्ण होने के बाद उस डोरे का भी पूजन करे ( पंचोपचार ) अब एक पाठ भैरव कवच का करे और एक लाल पुष्प भैरव जी के चरणों मे अर्पित करे और उस डोरे मे एक गाठ लगा दे फिर एक पाठ करे और एक लाल पुष्प अर्पित कर एक गाठ फिर उस डोरे मे लगा दे

 इस प्रकार ११ पाठ करे और प्रत्येक पाठ पूर्ण होने पर एक गाठ लगा दे जब सभी पाठ पूर्ण हो जाए तो वही किसी पात्र मे आम की सुखी लकड़ी लगा कर हवन सामग्री मे चावल -कलातिल- जौ- शक्कर -घी मिलाकर कर उपरोक्त मंत्र की १०८ आहुति प्रदान करे और हवन पूर्ण हो जाने के बाद हवन के धुए से उस डोरे को अभिसिचित कर दे

 और आरती कर छमा याचना करे और उस गंडे को गले या दाहिनी भुजा मे धारण करे ! यह गंडा अधिक प्रभावशाली और तंत्र बाधा -

उपरी बाधा मे रक्षा करता है यहाँ तक की ग्रह जनित दुष्प्रभावो से भी साधक की रक्षा करता है और साधक सर्वत्र विजयी होकर यश, मान, ऐश्वर्य प्राप्त करता है

चेतावनी -

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https://youtu.be/9mDYQz_vWT8

सर्व_सिद्धि_दायक_मन्त्र







सर्व_सिद्धि_दायक_मन्त्र


 १:- ॐ पर मंत्र पर यंत्र बन्धय बन्धय मां रक्ष रक्ष हूं हूं हूं स्वाहा ।
                          अ
२:- ॐ ठं ठः परकृतान बन्धय बन्धय छेदय छेदय स्वाहा ।
                                        शो
३:-ॐ क्रौं ह्रौं वैरिकृत विकृतं नाशय नाशय उलटवेधं कुरू कुरू स्वाहा ।

४:- ॐ परकृतभिचारं घातक घातक ठः ठः स्वाहा हूं।

५:- ॐ नमो ह्रों पर विधा छिन्दि छिन्दि स्वाहा ।
                 क
६:-ॐ शत्रु कृतान मंत्र यंत्र तंत्रान नाशय नाशय उद् बन्धन उद् बन्धन स्वाहा।

७:- ॐ नमः परमात्मने सर्वात्मने सर्वतो मां रक्ष रक्ष स्वाहा।

८:- ॐ ॐ ॐहुं हुं हुं अरिणा यत्कृतं कर्म तत्तस्यैव भवतु इति रूदाज्ञांपयति स्वाहा फट् ।
                                        वशिष्ठ
उपरोक्त आठो मंत्र क्रमबद्ध दिये है । ये सिद्ध मंत्र है जिन लोगो का कार्य नही चलता नित्य परेशानी का सामना करना पडता हो व्यापार मे रूकावट आ गई हो शत्रुओं से सदा आशंका बनी रहती हो क्या  पता कब कौन शत्रु हमारा बूरा कर दे। इन तमाम परेशानीओं  से मुक्ति दिलाने मे ये मंत्र परम लाभकारी है।

जो व्यक्ति इन मंत्रों का २१-२१ बार जाप नियमित श्रद्धा पूर्वक करेगा । उसकी समस्त परेशानिया कुछ दिनों मे दुर हो जायेगी। मंत्र का जाप नहा धोकर सुबह एकांत कक्ष मे करना है।

शरीर के इन अंगो पर तिल का निशान व्यक्ति को बनाते है करोड़पति चमकता हैं भाग्य !






शरीर के इन अंगो पर तिल का निशान  व्यक्ति को बनाते है  करोड़पति  चमकता हैं भाग्य  !


इंसान के शरीर के सभी तिल को हस्तरेखा ज्योतिष के मुताबिक काफी महत्वपूर्ण बताया गया है. कहा जाता है कि शरीर में लाल तिल का होना भी शुभ माना जाता है. लेकिन शरीर के अन्य अन्य भागों में काले तिल का होना शुभ और अशुभ दोनों के अलग अलग प्रभाव होते हैं.

 इसी के साथ शरीर में मौजूद मस्सों का भी तिल जैसा ही प्रभाव होता है. चलिए बतातें हैं आपको शरीर के अलग अलग अंगों पर मौजूद तिलों के मतलब के बारे में.

होठ पर तिल होना-

यदि स्त्री और पुरुष के होठों के दाएं तिल का निशान होता है. तो उनका उनके जीवनसाथी के साथ प्रेमपूर्ण रिश्ता रहता है. इनके बीच बेहद संबंध बना रहता है. वहीं यदि विपरीच होंठ के बाएं ओर तिल का निशान होने पर जीवनसाथी के साथ मतभेद बना रहता है.

वहीं जिन लोगों के निचले होठों पर तिल होता है वो खाने पीने के शौकिन होते हैं. साथ ही ऐसे व्यक्ति अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं.

छाती पर तिल होना-

यदी बायीं ओर तिल या मस्सा होता है तो उस व्यक्ति की शादी ज्यादा उम्र में होने की संभावना रहती है. ऐसे व्यक्ति कामुक होते हैं. उन्हें ह्दय रोग की आशंका रहती है.वहीं जिन व्यक्ति की छाती पर दायीं ओर तिल का निशान होता है वो धनवान होते हैं और इनका जीवनसाथी भी सुंदर और योग्य होता है.

हथेली पर तिल-

हथेली पर अंगूठे के नीचे का भाग शुक्र पर्वत कहलाता है. जिनकी हथेली में यहां पर तिल होता है वो जीवन में अपार सफलता हासिल करते हैं. अंगूठे पर तिल हो तो व्यक्ति कितनी भी अच्छा काम क्यों न करे उसे यश नहीं मिलता है.

पेट पर तिल-

जिन लोगों के पेट में तिल होता है वो बहुत फूडी होते हैं. तिल यदी नाभि के बायीं ओर हो तो व्यक्ति को उदर रोग की परेशानी होती है. जिनके नाभि के नीचे तिल का निशान होता है. उन्हें यौन रोग की संभावना रहती है.

माथे पर तिल-

जिस इंसान के माथे पर दाएं और बाई तिल का निशान होता है वो धन खूब कमाते हैं लेकिन भोग विलास की चीजों में धन को खर्च कर देते हैं. कई बार इन्हें आर्थिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है.वहीं जिन लोगों के माथे के बीच में तिल होता है तो बहुत भाग्यवान होते हैं. वो लोग जिन क्षेत्रों में प्रयास करते हैं उनमें भाग्य इन्हें सहयोग करता है और जीवन में सफल होते हैं.

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राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

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शत्रु नाशक बगला प्रयोग






शत्रु नाशक बगला प्रयोग


जिस साधक पर भगवती बगलामुखी की कृपा हो जाती है, उसके शत्रु कभी अपने षड़यंत्र मे सफल नही हो पाते है.क्युकी भगवती का मुद्गर उन शत्रुओ की समस्त क्रियाओ को निस्तेज कर देता है.

प्रस्तुत साधना उन साधको के लिये है,जो शत्रू के कारण समस्याओ से घिर जाते है.वैसे दरिद्रता,रोग,दुख ये भी माँ कि दृष्टि मे आपके शत्रू ही है.अतः सभी को यह साधना करनी करनी चाहिये.

यह साधना आपको २६ तारीख को करना है.किसी कारणवश ना कर पाये तो किसी भी रविवार को करे.समय रात्रि १० के बाद का रखे.आसन वस्त्र पिले हो.आपका मुख उत्तर की और होना चाहिये.सामने बाजोट रखकर उस पर पिला वस्त्र बिछा दे.और वस्त्र पर पिले सरसो कि एक ढ़ेरी बनाये.

इस ढ़ेरी पर एक मिट्टि का दिपक सरसो का तेल डालकर प्रज्जवलित करे.ईसके अतिरिक्त किसी सामग्री की आवश्यक्ता नही है.दिपक की सामान्य पुजन कर गुड़ का भोग अर्पित करे.अब संकल्प ले .

हे माता बगलामुखी हर शत्रू से,रोगो से,दुखो से,दरिद्रता से तथा हर कष्ट प्रद स्थिती से रक्षा हेतु मै यह प्रयोग कर रहा हु.आप मेरी साधना को स्विकार कर.मुझे सफलता प्रदान करे.

अब निम्न मंत्र कि पिली हकीक माला,हल्दि माला,अथवा रूद्राक्ष माला से २१ माला करे.

क्रीं ह्लीं क्रीं सर्व शत्रू मर्दिनी क्रीं ह्लीं क्रीं फट्

Kreem hleem kreem sarv shatru mardini kreem hleem kreem phat

यह मंत्र महाकाली समन्वित बगला मंत्र है.जो कि अत्यंत तिव्र है.ईसका जाप वाचिक कर पाये तो उत्तम होगा अन्यथा उपांशु करे.पंरतु मानसिक ना करे.जाप समाप्त होने के बाद.घृत मे सरसो मिलाकर १०८ आहुति प्रदान करे.इस प्रकार साधना पुर्ण होगी.साधना के बाद पुनः स्नान करना आवश्यक है.

अगले दिन गुड़,सरसो पिला वस्त्र किसी वृक्ष के निचे रख आये.यह एक दिवसीय प्रयोग साधक को शत्रू से मुक्त कर देता है.साधक चाहे तो साधना को ३,७, या २१ दिवस के अनुष्ठान रूप मे भी कर सकता है.

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

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महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

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Monday, July 13, 2020

सर्व_सिद्धि_दायक_मन्त्र







सर्व_सिद्धि_दायक_मन्त्र


 १:- ॐ पर मंत्र पर यंत्र बन्धय बन्धय मां रक्ष रक्ष हूं हूं हूं स्वाहा ।
                          

उपरोक्त आठो मंत्र क्रमबद्ध दिये है । ये सिद्ध मंत्र है जिन लोगो का कार्य नही चलता नित्य परेशानी का सामना करना पडता हो व्यापार मे रूकावट आ गई हो शत्रुओं से सदा आशंका बनी रहती हो क्या  पता कब कौन शत्रु हमारा बूरा कर दे। इन तमाम परेशानीओं  से मुक्ति दिलाने मे ये मंत्र परम लाभकारी है।

जो व्यक्ति इन मंत्रों का २१-२१ बार जाप नियमित श्रद्धा पूर्वक करेगा । उसकी समस्त परेशानिया कुछ दिनों मे दुर हो जायेगी। मंत्र का जाप नहा धोकर सुबह एकांत कक्ष मे करना है।

कल नतीजा आपके सामने आ जायेगा, इसके लिए आपको अपने दैनिक जीवन पर बड़ी बारीकी से नज़र रखनी पड़ती है क्योकि बड़े बदलाव की शुरुआत छोटे छोटे परिवर्तनों से होती है.

(नोट – कृपा साधना करने के पश्चात हर दिन या कुछ दिनों के अंतराल से की गयी साधना की न्यूनतम एक माला या अधिकतम अपनी क्षमता के अनुसार जितनी चाहें उतनी माला मंत्र जाप कर लें जिससे की यह मंत्र सदा सर्वदा आपको सिद्ध रहे.)

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

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Sunday, July 12, 2020

खुद से खुद के मिलन हेतु – काल भैरव साधना






खुद से खुद के मिलन हेतु – काल भैरव साधना)


आपने यह तथ्य मन से संबंधित लेख में पढ़ा है किन्तु यह तथ्य मात्र पढ़ने के लिए नहीं लिखा गया था, अपितु इसके बहुत गहन अर्थ हैं. मैंने अपने हर लेख में मेरे मास्टर द्वारा समझाई गयी एक बात को हमेशा और बार – बार दोहराया है कि शून्य या ब्रह्मांड एक ऐसे साम्राज्य का नाम है जिसमें असंभव जैसे शब्दों का कोई स्थान नहीं है.....वहाँ हर वो चीज सम्भव है जो सामान्य बातों में सोच के भी परे हो.

“ संभव “ शब्द के संभवतः हाजारों करोड़ों अर्थ हो सकते हैं क्योंकि कौन कैसी मानसिकता के साथ इस शब्द की व्याख्या करता है यह निर्भर करता है इस बात पर कि हर एक से दूसरे इंसान के बीच विचारों का मतभेद कितना गहरा है. किन्तु तंत्र में इस शब्द का एक ही अर्थ है......” सक्षम बनो तांकि काल का पहिया भी तुम्हारे हिसाब से चले “..... और यही बात मुझे मेरे मास्टर हमेशा समझाते हैं कि तंत्र मूर्खों की अपेक्षाओं पर नहीं चलता और जिसने काल का वरण कर लिया उसके लिए करने को कुछ और शेष नहीं रह जाता. हम सब जानते हैं कि दशानन रावण कालजयी थे क्योंकि उन्होंने अपने काल को अपने पलंग के खूंटे से बाँध रखा था....पर हमने कभी यह जानने की चेष्टा नहीं की कि उन्होंने ऐसा किया कैसे था....वो यह सब इसलिए संभव कर पाए थे क्योंकि वो एक श्रेष्ठ तांत्रिक थे....और उन्होंने अपने अंदर के काल पुरुष पर विजय प्राप्त कर ली थी.

हम सब के अंदर एक काल पुरुष होता है जिससे हम शिव के प्रतिरूप काल भैरव के रूप में परिचित हैं. भैरव कुल ५२ होते हैं पर इनमें से सबसे श्रेष्ठ काल भैरव हैं. इसमें कोई दो-राय नहीं है कि हर भैरव एक विशेष शक्ति के अधिपति हैं पर काल भैरव को इन सब भैरवों के स्वामित्व का सम्मान प्राप्त है और ज़ाहिर है यदि यह स्वामी है तो हर परिस्थिति में अपने साधक को अधिक से अधिकतम सुख और फल प्रदान करने वाले होंगे, इसीलिए इनकी साधना को जीवन की श्रेष्टतम साधना कहा गया है. वैसे तो हर साधना का हमारे जीवन में विशेष स्थान है पर कुबेर साधना, दुर्गा साधना और काल भैरव साधना को जीवन की धरोहर माना गया है.

अब सबसे बड़ी बात यह है कि भैरव नाम सुनते ही मन में एक अजीब से भय का संचार होने लगता है, भयंकर से भयंकर आकृति आँखों के सामने उभरने लगती है, गुस्से से भरी लाल सुर्ख आँखें, सियाह काला रंग, लंबा – चौड़ा डील डोल और ना-जाने क्या, क्या??? इसके विपरीत एक सच यह भी है जहाँ भय हो वहाँ साधना नहीं हो सकती और साक्षत्कार तो दूर की बात है.

किन्तु जहाँ समस्या वहाँ समाधान....तो काल भैरव की साधना से सम्बंधित डर से मुक्ति पाने के लिए हमें इनको समझना पड़ेगा. जैसे सिक्के के दो पहलु होते हैं वैसे ही काल और भैरव एक सिक्के के दो पक्ष हैं. काल का अर्थ है समय और भैरव का अर्थ है वो पुरुष जिसमें काल पर विजय प्राप्त करने की क्षमता हो. अब यहाँ काल का अर्थ सिर्फ मृत्यु नहीं है अपितु हर उस वस्तु से है जो हमारे मानसिक सुखों को क्षीण करने में सक्षम हो. अब यह समस्या शारीरिक, आंतरिक, मानसिक, और रुपये पैसे से संबंधित कैसी भी हो सकती है.

अब जो काल पुरुष होगा उसे इनमें से किसी समस्या का भय नहीं होगा क्योंकि समस्या उसके सामने ठहर ही नहीं सकती. देवता और मनुष्यों में सबसे बड़ा अंतर यही है कि देवताओं की सीमाएं होती है जैसे अग्नि देव मात्र अग्नि से संबंधित कार्य कर सकते हैं उनका वरुण देव से कोई लेना देना नहीं, इसी प्रकार काम देव का इन दोने और अन्य देवताओं से कोई सरोकार नहीं, जबकि इसके विपरीत केवल मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी हैं जिसके अंदर पूरा ब्रह्मांड समाहित है, जिसकी किसी भी कार्य को करने की कोई सीमा नहीं बस जरूरत है तो उसे अपने अंदर के पुरुष को जगाने की और यह तभी संभव है जब हमने हमारे ही अंदर के ब्रह्मांड को अर्थात काल को जीत लिया हो.

ऐसा ही एक साधना विधान यहाँ दे रह हूँ जो करने में बेहद सरल तो है ही पर इस विधान को करने के बाद के नतीजे आपको आश्चर्यचकित कर देंगे. इस साधना को करने के बाद ना केवल आपमें आत्म विश्वास बढ़ेगा बल्कि जटिल से जटिल साधनाएं भी आप बिना किसी भय और समस्या के कर पायेंगे. इस साधना को करने के पश्चात काल साधना करना सहज हो जाता है जो आपको काल ज्ञाता बनाने में सक्षम है अर्थात आप भूत, भविष्य, वर्तमान सब देखने में सामर्थ्यवान हो जाते हैं. आँखों में एक ऐसी तीव्रता आ जाती है कि हठी से हठी मनुष्य भी आपके समक्ष घुटने टेक देता है.

इसके लिए आपको बस यह एक छोटा सा विधान करना है. किसी भी रविवार मध्यरात्रि काल में नहा धोकर अपने पूजा के स्थान में पीले वस्त्र पहन कर पीले आसान पर बैठ कर आपको निम्न मंत्र का मात्र ११ माला मंत्र जाप करना है.

विनियोगः 

अस्य महाकाल कालभैरवाय  मंत्रस्य कालाग्नि रूद्र ऋषिः अनुष्टुप छंद कालभैरवाय देवता ह्रीं बीजं भैरवी वल्लभ शक्तिः दण्डपाणि कीलक सर्वाभीष्ट प्राप्तयर्थे समस्तापन्निवाराणार्थे जपे विनियोगः  

इसके बाद न्यास क्रम को संपन्न करें.

ऋष्यादिन्यास –

कालाग्नि रूद्र ऋषये नमः शिरसि
अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे
आपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवताये नमः हृदये
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये
भैरवी वल्लभ शक्तये नमः पादयो
सर्वाभीष्ट प्राप्तयर्थे समस्तापन्निवाराणार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे

करन्यास -

 ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
 ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः
 ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः
 ह्रैं  अनामिकाभ्यां नमः
 ह्रौं  कनिष्टकाभ्यां नमः
 ह्रः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः

अङ्गन्यास-  

ह्रां हृदयाय नमः
ह्रीं शिरसे स्वाहा
ह्रूं शिखायै वषट्
ह्रैं कवचाय हूम
ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
ह्रः अस्त्राय फट्

अब हाथ में कुमकुम मिश्रित अक्षत लेकर निम्न मंत्र का ११ बार उच्चारण करते हुए ध्यान करें और उन अक्षतों को दीप के समक्ष अर्पित कर दें.

नील जीमूत संकाशो जटिलो रक्त लोचनः 
दंष्ट्रा कराल वदन: सर्प यज्ञोपवीतवान |
दंष्ट्रायुधालंकृतश्च कपाल स्रग विभूषितः 
हस्त न्यस्त किरीटीको भस्म भूषित विग्रह: ||

मंत्र -

॥ ऊं भ्रं कालभैरवाय फ़ट ॥

|| ओम क्रीं भ्रं क्लीं भ्रं ऐं भ्रं भैरवाय भ्रं ऐं भ्रं क्लीं भ्रं क्रीं फट ||
OM KREEM BHRAM KLEEM BHRAM AING BHRAM BHAIRAVAAY BHRAM AING BHRAM KLEEM BHRAM KREEM PHAT

साधना को करते समय आपकी दिशा पश्चिम होगी और दीपक तिल के तेल का जलाना है. किसी भी साधना में सफलता हेतु गुरु का और विघ्नहर्ता भगवान गणपति का आशीर्वाद अति अनिवार्य है इसलिए भागवान गणपति की अर्चना करने के पश्चात ही साधना प्रारंभ करें और मूल मंत्र की माला शुरू करने से पहले कम से कम गुरुमंत्र की ११ माला का जाप जरूर कर लें. 

मास्टर द्वारा दिए गए विधान में यदि आपने कोई माला सिद्ध की हो तो आप उसका उपयोग करें अन्यथा गुरु माला जिससे आप अपनी नित्य साधना करते हैं उसी का उपयोग कर सकते हैं. साधना करते समय आपका वक्षस्थल अनावर्त होना चाहिए और यदि कोई गुरु बहन इस विधान को सम्पन्न कर रही है तो उन पर यह नियम लागू नहीं होता. साधना के पश्चात अपना पूरा मंत्र जाप गुरु को समर्पित कर दें और एक जरूरी बात हो सकता है

 की साधना के दौरान आपका शरीर बहुत जादा गर्म हो जाए या ऐसा लगे जैसे गर्मी के कारण मितली आ रही है तो घबरायें नहीं, जब आपके अंदर उर्जा का प्रस्फुटन होता है तो ऐसा होना स्वाभाविक है. अपनी साधना पर केंद्रित रहें थोड़ी देर बाद स्थिति अपने आप सामान्य हो जायेगी.

खुद इस अद्भुत विधान को करके देखें और अपने सामान्य जीवन में बदलाव का आनंद लें, पर एक बात का ध्यान जरूर रखें किसी भी साधना में ऐसा कभी नहीं होता है की आज साधना की और कल नतीजा आपके सामने आ जायेगा, इसके लिए आपको अपने दैनिक जीवन पर बड़ी बारीकी से नज़र रखनी पड़ती है क्योकि बड़े बदलाव की शुरुआत छोटे छोटे परिवर्तनों से होती है.

(नोट – कृपा साधना करने के पश्चात हर दिन या कुछ दिनों के अंतराल से की गयी साधना की न्यूनतम एक माला या अधिकतम अपनी क्षमता के अनुसार जितनी चाहें उतनी माला मंत्र जाप कर लें जिससे की यह मंत्र सदा सर्वदा आपको सिद्ध रहे.)

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

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महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

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Saturday, July 11, 2020

भूत-प्रेत ,वायव्य बाधा और तांत्रिक अभिचार से मुक्ति के उपाय







भूत-प्रेत ,वायव्य बाधा और तांत्रिक अभिचार से मुक्ति के उपाय


भूत-प्रेत-चुड़ैल जैसी समस्याओं से व्यक्ति अथवा परिवार के सहयोग से मुक्ति पायी जा सकती है ,किन्तु उच्च स्तर की शक्तियां सक्षम व्यक्ति ही 
हटा सकता है ,कुछ शक्तियां ऐसी होती हैं की अच्छे अच्छे साधक के छक्के छुडा देती हैं और उनके तक के लिए जान के खतरे बन जाती है ,ऐसे में 
केवल श्मशान साधक अथवा बेहद उच्च स्तर का साधक ही उन्हें हटा या मना सकता है ,किन्तु यहाँ समस्या यह आती है की इस स्तर का साधक सब 
जगह मिलता नहीं ,उसे सांसारिक लोगों से मतलब नहीं होता या सांसारिक कार्यों में रूचि नहीं होती ,पैसे आदि का उसके लिए महत्व नहीं होता या 
यदि वह सात्विक है तो इन आत्माओं के चक्कर में पना नहीं चाहता ,क्योकि इसमें उसकी उस शक्ति का खर्च होता है जो वह अपनी मुक्ति के लिए 
अर्जन कर रहा होता है .

भूत-प्रेत चुड़ैल जैसी समस्याओं को कौवा तंत्र के प्रयोग से हटाया जा सकता है किन्तु यह जानकार साधक ही कर सकता है ,

प्रेत अथवा पिशाच-

पिशाचिनी साधक भी इन्हें हटा सकता है ,अच्छा तांत्रिक भी इन्हें हटा सकता है ,देवी साधक,हनुमान-भैरव साधक इन्हें हटा सकता है ,किन्तु उच्च 
शक्तिया केवल उच्च साधक ही हटा सकता है,इन्हें देवी[दुर्गा-काली-बगला आदि महाविद्या ]साधक ,भैरव-हनुमान साधक ,श्मशान साधक ,अघोर 
साधक ,रूद्र साधक हटा सकता है , .

कुछ क्रियाएं इन समस्याओं पर अंकुश लगाती हैं ,पर यहाँ भी योग्य का मार्गदर्शन आवश्यक होता है ,फिर भी प्रसंगवश कुछ क्रियाएं निम्न हैं

[१]भूत-प्रेत ग्रस्त व्यक्ति को हरसिंगार की जड़ के साथ घोड़े की नाल धारण कराने से लाभ होता है .

[२]भूत ग्रस्त व्यक्ति के सामने उल्लू का मांस जलाने से उसे राहत मिलती है .

[३]नागदमन के पत्ते के साथ सियार के बाल को टोना टोटका ग्रस्त व्यक्ति के ऊपर से उतार कर अग्नि में डालने से उसे लाभ होता है .

[४]नागदमन और अपामार्ग की जड़ को धारण करने से बाधा में लाभ होता है .

[५]रविपुष्य में निकली और अभिमंत्रित श्वेतार्क की जड़ धारण करने से भूत-प्रेत बाधा दूर होती है .

[६]भूत-प्रेत ग्रस्त व्यक्ति के सामने गुडमार के सूखे पत्तों की धूनी जलाने से उसे लाभ होता है .

[७]कटहल की ज धारण करने से टोन से बचाव होता है .
[८]महानिम्ब की जड़ धारण करने से भूत-प्रेत से सुरक्षा होती है .

[९]गरुड़ वृक्ष के ९ इंच के बराबर की लकड़ी को ९ बराबर हिस्सों में काटकर ९ सूअर के दांत के साथ अलग अलग घर के चारो और जमीन में ठोंक देने से 
घर में भूतों का उपद्रव शांत हो जाता है .

[१०]मंत्र सिद्ध सूअर दांत को व्यक्ति के पुराने कपडे में लपेटकर बहते पानी में छोड़ देने से भूत-प्रेत की पीड़ा शांत होती है .

[११]भालू के बालों की धूनी देने से भूत-प्रेत दूर होते हैं .

[१२]टिटहरी के पंख को बढ़ा ग्रस्त व्यक्ति पर से उतारकर जलाने से भूत-प्रेत से राहत मिलती है .

[१३]दक्षिणमुखी हनुमान जी के दाहिने पैर पर लगे सिन्दूर के तिलक से भूत-प्रेत बाधा में राहत मिलती है .

[१४]तुलसी-कालीमिर्च-सहदेई की जड़ धारण करने से भूत बाधा में राहत मिलती है .

[१५]सफ़ेद घुंघुची की जड़ या काले धतूरे की जड़ धारण कराने से ऐसी पीड़ा दूर होती है .,,

उपरोक्त प्रयोगों को बिना उचित मार्गदर्शन के खुद करने से यथा संभव बचें ,क्योकि अगर आपके उपाय की शक्ति कम हुई और वायव्य बाधा की 
शक्ति अधिक हुई तो वह चिढ़कर अथवा कुपित होकर अधिक नुकसान कर सकती है अथवा कष्ट दे सकती है |इन प्रयोगों में शक्ति संतुलन का बहुत 
महत्व होता है |

उपरोक्त प्रयोगों के अतिरिक्त अन्य कई प्रकार के प्रयोग और उतारे होते हैं जिनसे ऐसी समस्याओं से मुक्ति मिलती है ,साधक मंत्र 
और तंत्र प्रयोग से ऐसे समस्याओं से मुक्ति दिलाते है .
बजरंग बाण का पाठ ,सुदर्शन कवच ,दुर्गा कवच,काली सहस्त्रनाम ,बगला सहस्त्रनाम ,काली कवच, बगला कवच, आदि के पाठ से इनके प्रभाव पर 
अंकुश लगता है ,उग्र शक्तियों की आराधना इनके प्रभाव को रोकती है ,बगला अनुष्ठान ,शतचंडी यज्ञ ,काली अनुष्ठान ,बगला प्रत्यंगिरा ,काली 
प्रत्यंगिरा,गायत्री हवन ,महामृत्युंजय हवन से इनसे मुक्ति पायी जा सकती है ,सिद्ध साधक द्वारा बनाई यन्त्र -ताबीज आदि से इनके प्रभाव को रोका 
भी जा सकता है और मुक्ति भी पायी जा सकती है ,यद्यपि अनेक प्रकार के टोटके इन शक्तियों पर उपयोग किये जाते हैं पर यह कम शक्तिशाली 
प्रभावों पर ही अधिक प्रभावी होते हैं ,उच्च शक्तियों पर इनका बहुत प्रभाव नहीं पड़ता कुछ अंकुश अवश्य हो सकता है ,कभी-कभी कुछ छोटे टोटके 

जिनका इन पर बहुत प्रभाव न पड़े इन्हें और अधिक उग्र भी कर देते है अतः सावधानी और उपयुक्त मार्गदर्शन आवश्यक होता है ,

सबसे बेहतर तो यही होता है की यदि इस प्रकार की कोई समस्या हो तो किसी अच्छे जानकार व्यक्ति को दिखाया जाए ,किन्तु यदि कोई बेहतर 
जानकार न मिले या आसपास न हो अथवा आसपास के कम जानकारों से न लाभ मिल पा रहा हो तो ,किसी उच्च स्तर के साधक से संपर्क करना 
चाहिए ,यदि वह पीड़ित तक न जाए तो पीड़ित को वहां ले जाएँ ,यह भी न हो सके तो साधक से यन्त्र- ताबीज बनवाकर पीड़ित को धारण करवाए 

,,यदि पीड़ित करने वाली शक्ति कम शक्तिशाली होगी तो तुरंत हट जायेगी नहीं तो उसके प्रभाव में कमी तो आ ही जायेगी ,उसे व्यक्ति को प्रभावित 
करने में तो दिक्कत आएगी ही ,,यंत्रो-ताबीजो से निकलने वाली तरंगे और सकारात्मक ऊर्जा से उस नकारात्मक शक्ति को कष्ट होता है ,कभी कभी 
यह ताबीज उतारने या हटवाने का भी प्रयास करते हैं ,,

यह क्रिया उसी प्रकार की है की जैसे किसी व्यक्ति का भोजन बंद कर दिया जाए तो वह कितने 
दिन तक जीवित रहेगा ,उसी प्रकार अतृप्त आत्मा या अभिचार जिस उद्देश्य से आया है यदि उसमे रुकावट उत्पन्न कर दिया जाए तो वह कब तक 
रुका रहेगा ,इस प्रकार धीरे-धीरे व्यक्ति को राहत मिल जाती है ,साथ में अगर जानकार के बताये टोटके भी किये जाए और उपाय अपनाए जाए तो 
जल्दी राहत मिल सकती है ,

इस प्रकार उच्च शक्तियों को भी रोका जा सकता है ,हां यन्त्र की शक्ति भी उसी अनुपात में होनी चाहिए की वह उसके 
प्रभाव को रोक सके ,,बगलामुखी यन्त्र ,काली यन्त्र ,छिन्नमस्ता यन्त्र ,धूमावती यन्त्र ,तारा यन्त्र ,हनुमान यन्त्र ,भैरव यन्त्र ,दुर्गा यन्त्र आदि इस 
श्रेणी में आते हैं की किसी भी शक्ति के प्रभाव को रोक सकते हैं

 बशर्ते की यह उनके सिद्ध साधक द्वारा निर्मित हों |

राजगुरु जी

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Friday, July 10, 2020

धन, सम्मान और विवाह सुख प्रदान करती है हरिद्रा माला








धन, सम्मान और विवाह सुख प्रदान करती है हरिद्रा माला


नई दिल्ली। हिंदू पूजा पद्धति में हल्दी एक महत्वपूर्ण पूजा सामग्री मानी गई है। आयुर्वेद में भी हल्दी को स्वास्थ्यवर्धक, रक्त शुद्ध कारक और एंटीबायोटिक का महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। लेकिन क्या आप जानते हैं हल्दी आपके जीवन की अनेक परेशानियों का हल भी प्रदान करती है। 

जी हां, कर्मकांड और आयुर्वेद की तरह ज्योतिष शास्त्र में भी हल्दी को अनेक ग्रह जनित समस्याओं को दूर करने वाला माना गया है। हल्दी की गांठ के अनेक प्रयोग वैदिक ज्योतिष में वर्णित हैं जिन्हें अपनाकर धन, संपत्ति, वैभव, सुख, निरोगी काया, वैवाहिक सुख आदि प्राप्त किया जा सकता है।

हल्दी का संबंध नवग्रहों में प्रमुख बृहस्पति से है

हल्दी का संबंध नवग्रहों में प्रमुख बृहस्पति से है। जिस जातक की जन्मकुंडली में बृहस्पति मजबूत होता है, उसके जीवन की अनेक समस्याएं खुद ब खुद हल हो जाती हैं। हल्दी की गांठ के अनेक प्रयोग हैं। आइए जानते हैं किस समस्या के लिए हल्दी की गांठ का क्या प्रयोग किया जाता है।

हल्दी की गांठ से बनाई गई माला को हरिद्रा माला कहा जाता है। हरिद्रा माला उन जातकों के लिए सबसे उत्तम मानी गई है जिनका भाग्य साथ नहीं देता। ऐसे जातकों को एक वर्ष तक लगातार प्रत्येक बुधवार को भगवान श्री गणेश को हरिद्रा माला पहनाना है। माला में हल्दी की 27 गांठ होना चाहिए, जो 27 नक्षत्रों की प्रतीक हैं।

  

जड़ में कच्चा दूध, जल और बताशा चढ़ाएं ...

यदि आपको लगातार पैसों की कमी बनी रहती है, बार-बार कर्ज लेने की नौबत आती है तो अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की जड़ में कच्चा दूध, जल और बताशा चढ़ाएं और पीपल की टहनी पर एक हरिद्रा माला अर्पित करें। भगवान विष्णु-लक्ष्मी से धन की कामना करें, शीघ्र ही आपके आर्थिक संकटों का निदान होगा।

हरिद्रा माला अनेक रोगों का सटीक इलाज भी है। इसकी माला पहनने से अच्छी सेहत प्राप्त होती है। आयु में वृद्धि होती है। श्वांस संबंधी रोग दूर होते हैं। खासकर पीलिया से पीड़ित व्यक्ति यदि हरिद्रा माला धारण करे तो रोग शीघ्र दूर होता है। हरिद्रा माला पहनने वाले के आसपास एंटीबायोटिक माहौल बनाती है, जिससे मच्छर, मक्खियां आदि पास नहीं आती।



मानसिक शांति प्राप्त होती है...

हरिद्रा माला धारण करने से व्यक्ति को मानसिक मजबूती प्राप्त होती है। तनाव, डिप्रेशन दूर होता है। मानसिक शांति प्राप्त होती है।

प्रतिदिन भगवान गणेश के मंत्र ऊं गं गणपतये नम: का जाप हरिद्रा माला से करने पर वे शीघ्र प्रसन्न् होते हैं। हरिद्रा माला से बृहस्पति के मंत्रों का जाप करने से धन, सम्मान, वैभव आदि प्राप्त होता है।

जिन लोगों की जन्मकुंडली में बृहस्पति बुरे प्रभाव दे रहा हो, बुरे ग्रहों के साथ बैठा हो या बृहस्पति पर बुरे ग्रहों की दृष्टि हो तो हरिद्रा माला धारण करने से बृहस्पति के दोष दूर हो जाते हैं। बृहस्पति शुभ फल देने लगता है।

जिन युवक-युवतियों के विवाह में बाधा आ रही है यदि वे प्रत्येक गुरुवार को बृहस्पति का पूजन करते हुए हरिद्रा माला धारण करें तो उनका विवाह शीघ्र होता है

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

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कामदेव मन्त्र | कामदेव वशीकरण मंत्र






कामदेव मन्त्र | कामदेव वशीकरण मंत्र


जब किसी व्यक्ति को किसी से प्रेम हो जाए या वह आसक्त हो। विवाहित स्त्री या पुरुष की अपने जीवनसाथी से संबंधों में कटुता हो गई हो या कोई युवक या युवती अपने रुठे साथी को मनाना चाहते हो। किंतु तमाम कोशिशों के बाद भी वह मन के अनुकूल परिणाम नहीं पाता। तब उसके लिए तंत्र क्रिया के अंतर्गत कुछ मंत्र के जप प्रयोग बताए गए हैं। जिससे कोई अपने साथी को अपनी भावनाओं के वशीभूत कर सकता है।

धर्मशास्त्र में कामदेव को प्रेम, सौंदर्य और काम का देव माना गया है। इसलिए परिणय, प्रेम-संबंधों में कामदेव की उपासना और आराधना का महत्व बताया गया है। इसी क्रम में तंत्र विज्ञान में कामदेव वशीकरण मंत्र का जप करने का महत्व बताया गया है। इस मंत्र का जप हानिरहित होकर अचूक भी माना जाता है। यह मंत्र है -

“ॐ नमः काम-देवाय। सहकल सहद्रश सहमसह लिए वन्हे धुनन जनममदर्शनं उत्कण्ठितं कुरु कुरु, दक्ष दक्षु-धर कुसुम-वाणेन हन हन स्वाहा”

कामदेव के इस मन्त्र को सुबह, दोपहर और रात्रिकाल में एक-एक माला जप का करें। माना जाता है कि यह जप एक मास तक करने पर सिद्ध हो जाता है। मंत्र सिद्धि के बाद जब आप इस मंत्र का मन में जप कर जिसकी तरफ देखते हैं, वह आपके वशीभूत या वश में हो जाता है।

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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...