Sunday, December 29, 2019

भूत, प्रेत और मसान बाधा के लिए एक अनुभूत प्रयोग




भूत, प्रेत और मसान बाधा के लिए एक अनुभूत प्रयोग


मित्रो अक्सर बहुत सारे ग्रुप्स में लोगो को भूत प्रेत या मसान बाधा से सम्बंधित प्रश्न पूछते देखता हूँ । आज उसके लिए ही एक ऐसा अनुभूत प्रयोग प्रस्तुत कर रहा हूँ जो यदि अपने ठीक से किया तो कुछ ही दिनों में पीड़ित व्यक्ति इन बाधाओं से मुक्त हो जायेगा नहीं तो जब तक आपको कोई सही व्यक्ति उपचार करने के लिए नहीं मिल जाता यानि कोई असली साधक या तांत्रिक तब तक ये फर्स्ट ऐड का काम अवश्य करेगा इसकी १००% गारंटी है ।

अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मंगल अथवा शनिवार का दिन चुन लें और यदि पीड़ित ज्यादा कष्ट में हो तो किसी भी दिन कर सकते हैं । इसके लिए हनुमानजी का एक चित्र या मूर्ति जप करते समय सामने रख लें। ऊनी अथवा कुशासन बैठने के लिए प्रयोग करें। । घर में यदि यह सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा एकान्त में स्थित हनुमानजी के मन्दिर में प्रयोग करें।

हनुमान जी के अनुष्ठान मे अथवा पूजा आदि में दीपदान का विशेष महत्त्व है। पाँच अनाजों (गेहूँ, चावल, मूँग, उड़द और काले तिल) को अनुष्ठान से पूर्व एक-एक मुट्ठी लेकर गंगाजल में भिगो दें। अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर उनका दीया बनाएँ। बत्ती के लिए अपनी लम्बाई के बराबर कलावा लें अथवा एक कच्चे सूत को लम्बाई के बराबर काटकर लाल रंग में रंग लें। इस धागे को पाँच बार मोड़ लें। इस बत्ती को तिल के तेल थोडा सा चमेली का तेल मिलकर दिए में डालकर प्रयोग करें। समस्त पूजा काल में यह दिया जलता रहना चाहिए। हनुमानजी के लिये गूगुल की धूप भी जलाएं ।

जप के प्रारम्भ में यह संकल्प अवश्य लें कि आपका कार्य जब भी सिद्ध होगा, हनुमानजी के निमित्त नियमित कुछ भी करते रहेंगे या प्रसाद चढ़ाएंगे सुन्दरकाण्ड का पाठ कराएँगे आदि । फिर हनुमान जी की पंचोपचार पूजा करें फिर जो आटे का दिया अपने बनाया था वो जलाएं , गुग्गुल की धूप दें गुलाब के पुष्प हनुमानजी को अर्पित करें ।  अब अपनी सुरक्षा  के लिए  एकादश मुख हनुमान कवच का पाठ  करें  और फिर शुद्ध उच्चारण से यानि जोर जोर से बोलते हुए हनुमान जी की छवि पर ध्यान केन्द्रित करके बजरंग बाण का जाप प्रारम्भ करें। “श्रीराम–” से लेकर “–सिद्ध करैं हनुमान” तक एक बैठक में ही इसकी एक माला जप करनी है अर्थात १०८ जप करने हैं । कुछ भी हो जाये पाठ बीच में छोड़कर उठाना नहीं है साथ में एक लोटे में जल रख लें । जप पूर्ण होने के पश्चात् इस जल के छींटे पीड़ित व्यक्ति पर डालें, उसे पिलायें, पूरे घर में डालें और घर के सब सदस्य इसे पियें इसमें समय अवश्य लगेगा पर इसका असर अतुलनीय है । बजरंगबली की कृपा हुई तो पीड़ित व्यक्ति या आपका घर उस पीड़ा से मुक्त हो जायेगा यदि कहीं कुछ कमी रह गयी हो फिर भी ये इतना असर करेगा की आपकी समस्या में फर्स्ट ऐड का कम करेगा इसके बाद जब तक कोई उचित ज्ञानी व्यक्ति न मिल जाये प्रतिदिन बजरंग बन का तीन बार नियमित पाठ करते रहें । 

गूगुल की सुगन्धि देकर जिस घर में बगरंग बाण का नियमित पाठ होता है, वहाँ दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य शारीरिक कष्ट आ ही नहीं पाते। समयाभाव में जो व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हो, उन्हें कम से कम प्रत्येक मंगलवार को यह जप अवश्य करना चाहिए।

यदि किसी असाध्य रोग से ग्रसित हों या कोई भी पीड़ा या कष्ट जिसका समाधान न मिल रहा हो उसके लिए ये प्रयोग अवश्य करें ।

इस प्रयोग से सम्बंधित किसी जानकारी या अन्य किसी भी प्रकार की जानकारी अथवा समस्या निराकरण के लिए सम्पर्क कर सकते हैँ ।

चेतावनी - 

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

चेतावनी - 

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ । बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है 

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249


कृत्या साधना साधना







कृत्या साधना  साधना .......


                  तंत्र साधना में यैसे यो सभी साधनायें अपने अपने स्थान पर विशेष महत्व रखते है । पर कुछ साधनाये यैसे भी है जो बहुत ही अहम और उच्चकोटी की है । यैसी साधनाये बहूत ही कम साधक करते है या कर पाते है । यैसी ही एक अति उच्चकोटी की साधना है कृत्या साधना ।

                 कृत्या साधना कीस ने और कब अस्तित्व में लाया ये कह पाना बहुत मुस्कील है । लेकीन इस का अस्तित्ब में आने का प्रमाण बहूत ही पुराना है । इस का अस्तित्व हमे हमारी प्राचिन गंन्थ्र शिव पुराण और महाभारत में मिलता है ।

                  धार्मिक ग्रंथो के अनुसार जब भस्मासुर ने भगवान् शिव को ही भस्म करने का मन बनाया तब मोहिनी अवतार लेकर श्री हरि ने उनका बचाव किया था । ये मोहिनी और कुछ नहीं मानस रचना ही थी । 

श्री हरि ने कृत्या साधना से मोहिनीका कृत्या बनाया था । इसके अलावा जब देवो और दानवो में अमृत को लेकर बहस हुई तब मोहिनी अवतार लेकर भगवान् विष्णु ने उनको अमृत पान से रोका था । भगवान शिव और श्री हरि दोनों कृत्या सिद्धिया में माहिर थे । नारद मुनि खुद ब्रह्मा की मानस रचना अर्थात कृत्या ही थे।

                 दूसरी कहानी केे अनुसार दैत्यों का कृत्या द्वारा दुर्योधन को रसातल में बुलाना भी कृत्या साधना अस्तित्व में होने का एक प्रमाण ही है ।

                 दुर्योधन के इस निश्‍चय को जानकर पातालवासी भयंकर दैत्‍यों और दानवों ने ( जो पूर्वकाल में देवताओं से पराजित हो चुके थे ) मन-ही-मन विचार किया कि इस प्रकार दुर्योधन का प्रणान्‍त होने से तो हमारा पक्ष ही नष्‍ट हो जायगा । 

अत: उसे अपने पास बुलाने के लिये मन्‍त्रविद्या में निपुण दैत्‍यों ने उस समय बृहस्‍पति और शुक्राचार्य के द्वारा वर्णित तथा अथर्ववेद में प्रतिपादित मन्‍त्रों द्वारा अग्रिविस्‍तारसाध्‍य यज्ञ- कर्म का अनुष्‍ठान आरम्‍भ किया और उपनिषद् ( आरण्‍यंक ) में जो मन्‍त्र जप से युक्‍त हवनादि क्रियाएं बतायी गयी हैं । उनका भी सम्‍पादन किया । तब दृढ़तापूर्वक व्रत का पालन करने वाले, वेद-वेदागों के पारंगत विद्वान ब्राह्मण एकाग्रचित्‍त हो मन्‍त्रोच्‍चारणपूर्वक प्रज्‍वलित अग्रि में घृत और खीर की आहुति देने लगे । 

राजन कर्म की सिद्धि होने पर वहाँ यज्ञकुण्‍ड से उस समय एक अत्‍यन्‍त अद्भुत कृत्‍या जंभाई लेती हुई प्रकट हुई और बोली- ‘मैं क्‍या करूं ?’  तब दैत्‍यों ने प्रसन्नचित्‍त होकर उस कृत्या से कहा- ‘तू प्रायोप वेशन करते हुए धृतराष्‍ट्र पुत्र राजा दुर्योधन को यहाँ ले आ’। 

              जो आज्ञा ।" कहकर वह कृत्‍या तत्‍काल वहाँ से प्रस्थित हुई और पलक मारते-मारते जहाँ राजा दुर्योधन था, वहाँ पहुँच गयी । फिर राजा को साथ ले दो ही घड़ी में रसातल आ पहुँची और दानवों को उसके लाये जाने की सूचना दे दी । राजा दुर्योधन को लाया देख सब दानव रात में एकत्र हुए उनके मन में प्रसन्नता भरी थी और नेत्र हर्ष तिरेक से कुछ खिल उठे थे। उन्‍होंने दुर्योधन से अभिमानपूर्वक यह बात कही ।

                कृत्या साधना शत्रु नाशक, हर आपद नाशक और जो भी आपद बिपद सब का नाश ये साधना से कीया जा सकता है । कारोबार और किसी भी चिज पर वाधा आ रही हो तो कृत्या का उपासना से हर वाधा दुर कीया जा सकता है । 

कृत्या सिद्धि होने पर धन की कमी नही रहता है । देवी साधक का रक्षा के साथ उसके परिवार का भी रक्षा करती है । जीसको कृत्या का कृपा प्राप्त जाता है उसका अल्पमूत्यु नही होती है ।

 कृत्या साधना सिद्धि होने पर शत्रुओँ पर विजय प्राप्त करने वाला और मन से तान से अतिवलसाली हो जाता है । देवी को जो काम के लिये आग्रह करे वह खुशि खुशि उस काम को कर देती है । चाहे वह नकारात्मक काम हो या सकारात्मक काम हो । 

साधक जीस तरह की नौकरी हो या वस्तू की चाहत करता है । देवी उस की मनोकामना को मिनटो मेँ पुर्ण कर देती है । देवी के कृपा प्राप्ति के बाद यदि साधक भोगविलास का जीवन जीने लग जाये तो ही कृत्या देवी शरीर मेँ विलिन हो जाता है । 

               यह साधना अत्यंत गोपनीय, दुर्लभ और प्राचीन है । यह कृत्या शरीर से उत्पन्न होती है । यह वशीकरण, सम्मोहन, मारण, उच्चाटन का प्रबल अस्त्र है । जब भगवान् शिव को क्रोध आया और उनके सैनिक परास्त होकर आ गए थे । तब उन्होंने अपने शरीर से कृत्या का निर्माण किया था और यज्ञ का नाश किया था ।

 बड़े बड़े ऋषि मुनियो के तंत्र मन्त्र भी कृत्या शक्ति के आगे काम नही कर पाये अर्थात उन के तंत्रमंत्र विफल हो गये थे । कृत्या मानव शरीर से उत्पन्न एक देवी शक्ति है । जिस तरह मनुष्य अपने शरीर से मन्त्र साधना से अपने तीन हमजाद सिद्धि करता है उसी तरह कृत्या सिद्ध हो जाती है । मन्त्र की शक्ति से कृत्या तंत्र की कृत्या सौ गुना ज्यादा तीव्र कार्य करती है ।       


              प्राचीन काल में शिव की कृपा से महा कृत्या गुरुदेव शुक्राचार्य जी ने सिद्ध की थी । यह कृत्या तीनो लोको के कार्य संपन्न करती है । अगर साधक अपने दोनों हाथ ऊपर की तरफ आकाश में करके कृत्या का मन्त्र जप कर कार्य कहे तो स्वर्ग में हा हा कार हो जाती है । पृथ्वी के तरफ करके करे तो मानव में हलचल पैदा कर देती है । 

भूमि की तरफ देखकर करे तो पाताल लोक काप्ने लग जाता है । अर्थात कृत्या साधक किसी भी देव देवी, अप्सरा आदि को वशीभूत कर सकता है । घर बैठे उनको दण्डित कर सकता है । इतर योनि को मारण कर सकता है ।

 इसी शक्ति मन्त्र के बल पर रावण ने लंका में बैठे हुए ही स्वर्गलोक में नृत्य करने वाली अप्सरा का शक्ति उच्चाटन किया था । जिससे वह बेहोश होकर गिर गयी थी ।

                 जब कृत्या देवी सिद्ध हो जाती है । तब मारण के लिये तो भूतप्रेत, ब्रह्म राक्षस, पिशाच, जिन, कर्णपिशाचिनी आदि शक्तियाँ भाग जाती है । नही तो यैसी शक्ती को कृत्या आपना कालग्रास बना देती है । सबको एक बबूले अर्थात बवंडर में लपेटकर अंतरिक्ष में विलीन हो जाती हैं ।

                कृत्या सिद्ध होने पर साधक मन्त्र से जल पड़कर रोगी को पिलाय तो रोगी रोगमुक्त हो जाता है । इसे सिद्ध करने के बाद कोई भी तंत्र साधक हानि नही पहुंचा सकता है । 

साधक मन में असीम बल धारण कर लेता है । चार कर्म सिध्द हो जाते हैं । कृत्या एक सात्विक साधना है ।मांस मदिरा का सेवन वर्जित है । कृत्या साधना गुरुकृपा, शिवकृपा से ही प्राप्त होती है । 

               कृत्या सिद्धि किसी भी मंगलवार या अमावस्या से शुरू कीया जा सकता है । इस साधना के लीए साधक को कला वस्त्र का उपयोग करना चाहीये और दक्षिण दिशा के और मुँह कर के बैठना चाहिये । आसन भी काले कपडा का ही होना चाहिये ।

 कडवे तेल का एक दीपक जालाकर अपने आगे रखना चाहिये ।साधना पुर्ण होने तक बह्मचर्य का पालन करनी की जरूरत होती है । ये साधना 21 दिन का होता है । जब साधना पुर्ण होती है तब कृत्या देवी  दर्शन देती है । कृपया कृत्या साधना विना गूरू के ना करे ।

                 कृत्या साधना मन्त्र

।। मंत्र-

ॐ कृत्या सर्व शत्रुणाँ मारय मारय हन हन ज्वालय ज्वालय जय जय साधक प्रिये ॐ स्वाहा॥

साधना काल के दौरान आपको कुछ आश्चर्य जनक अनुभव हो सकते हैं, पर इनसे न परेशान या बिचलित न हो , ये तो साधना सफलता के लक्षण हैं .

चेतावनी - 

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

चेतावनी - 

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ । बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है 

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

.किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249'

                     

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249

Friday, December 27, 2019

प्रेत बाधाओं से बचने का उपाय




प्रेत बाधाओं से बचने का उपाय


प्रायः आपने सुना होगा कि अमुक प्राणी अथवा स्त्री, युवा युवतियों पर भूत-प्रेत की छाया है। यह सत्य है आपको विश्वास आये या न आये परंतु जब आत्माएं किसी को अपने चंगुल मंे जकड़ लेती हंै तो बड़ी कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है। 

यह तो सत्य है कि शरीर का ही अंत होता है जीवात्मा का नहीं। जो मकान खंडहर हो जाते हैं, तालाबों के किनारों पर अथवा जंगल में बरगद के पेड़ पर इनका डेरा मिलेगा। भूतप्रेत, जिन्न, चुडै़ल व ब्रह्म राक्षस आदि विनाशकारी आसुरी शक्तियां हैं जो प्राणियों के पीछे लग जाती हैं। 

बहुत सी आत्माएं तो अपना पुराना बदला भी लेती हैं। उस घर पर अचानक आक्रमण करती रहती हैं। घर वालों को हानि पहुंचाना, बनते हुए कामों को बिगाड़ना आदि समस्याएं उत्पन्न करती हैं।

उपाय:

शनिवार के दिन दोपहर को सवा दो किलो बाजरे का दलिया तैयार करके उसमें गुड़ मिला दें। इस दलिया को मिट्टी की एक हाँडी में डालकर सूर्यास्त के समय उस हाँडी को रोगग्रस्त पुरूष अथवा स्त्री पूरे शरीर पर बाएं से दायें सात बार घुमाकर किसी चैराहे पर रख दें। आते समय पीछे मुड़कर न देखें। 

यदि कोई मिल जाय व पूछना चाहे तो उससे बात न करें। यह क्रिया करते समय किसी को सामने नहीं करके धूप देकर सीधे हाथ में बांध दें। ऊँ हं हनुमते नमः मंत्र से जाप करने से ऊपरी बाधा से मुक्ति मिल जायेगी।

ऊँ नमो भगवते रुद्राय नमः कोशेश्वरस्य नमो ज्योति पतंगाय नमो रुद्राय नमः सिद्धि स्वाहा।

उपरोक्त मंत्र का स्नान करके शु़द्ध कपड़े पहनकर 1 माला का जाप प्रातः-सायं करने से प्रेतबाधा से मुक्ति मिल जाती है। हनुमान चालीसा का पाठ बजरंग बाण सहित करने से घर से ऐसी आत्माएं चली जाती हैं। उपरोक्त मंत्र से हनुमान जी का हवन भी करें। साथ ही गायत्री मंत्र से भी हवन करें। घर में सुख शांति हो जायेगी।

धूनिया:

प्रेतात्माओं को घर से भगाने के लिए घर में प्रतिदिन सुबह शाम धूनी दें। गाय के उपलों पर कोपलों की आग बनाकर उसपर लोहबान, गुग्गल- लाख दंत सर्प की कंेचुली, पीड़ित व्यक्ति या महिला के सिर का बाल लेकर सबको पीसकर तब अग्नि पर डालकर भुक्त भोगी को सूंघाते रहना चाहिए।

अश्विनी नक्षत्र में घोड़े के पैरों के नाखून को अग्नि में जलाकर धूनी दें उक्त मंत्र बोलते हुए- मंत्र - ऊँ नमः श्मशान वासिने भूतादीनां कुरू कुरू स्वाहा। उक्त मंत्र को सिद्ध कर लेना चाहिए। शीघ्र लाभ हो जाएगा।

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

.
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

                      

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249


रावण सहिंता के ये उपाय चमका देंगे आपकी किस्मत




रावण सहिंता के ये उपाय चमका देंगे आपकी किस्मत को ..........................


बहुत कम लोग जानते हैं।  रावण सभी शास्त्रों का जानकार और श्रेष्ठ विद्वान था।

रावण ने भी ज्योतिष और तंत्र शास्त्र की रचना की है। दशानन ने ऐसे कई उपाय बताए हैं जिनसे किसी भी व्यक्ति की किस्मत रातोंरात बदल सकती है।

यहां जानिए रावण संहिता के अनुसार कुछ ऐसे तांत्रिक उपाय जिनसे किसी भी व्यक्ति की किस्मत चमक सकती है...

1. धन प्राप्ति का उपाय: किसी भी शुभ मुहूर्त में या किसी शुभ दिन में सुबह जल्दी उठें। इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत्त होकर किसी पवित्र नदी या जलाशय के किनारे जाएं। किसी शांत एवं एकांत स्थान पर वट वृक्ष के नीचे चमड़े का आसन बिछाएं। आसन पर बैठकर धन प्राप्ति मंत्र का जप करें।

धन प्राप्ति का

 मंत्र: ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं नम: ध्व: ध्व: स्वाहा।

इस मंत्र का जप आपको 21 दिनों तक करना चाहिए। मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें। 21 दिनों में अधिक से अधिक संख्या में मंत्र जप करें।
जैसे ही यह मंत्र सिद्ध हो जाएगा आपको अचानक धन  प्राप्ति अवश्य कराएगा।

2.यदि किसी व्यक्ति को धन प्राप्त करने में बार-बार रुकावटें आ रही हों तो उसे यह उपाय करना चाहिए।
यह उपाय 40 दिनों तक किया जाना चाहिए। इसे अपने घर पर ही किया जा सकता है। उपाय के अनुसार धन प्राप्ति मंत्र का जप करना है। प्रतिदिन 108 बार।

मंत्र:

 ऊँ सरस्वती ईश्वरी भगवती माता क्रां क्लीं, श्रीं श्रीं मम धनं देहि फट् स्वाहा।

इस मंत्र का जप नियमित रूप से करने पर कुछ ही दिनों महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो जाएगी और आपके धन में आ रही रुकावटें दूर होने लगेंगी।

3. यदि आप दसों दिशाओं से यानी चारों तरफ से पैसा प्राप्त करना चाहते हैं तो यह उपाय करें। यह उपाय दीपावली के दिन किया जाना चाहिए।

दीपावली की रात में विधि-विधान से महालक्ष्मी का पूजन करें। पूजन के सो जाएं और सुबह जल्दी उठें। नींद से जागने के बाद पलंग से उतरे नहीं बल्कि यहां दिए गए मंत्र का जप 108 बार करें।

मंत्र: 

ऊँ नमो भगवती पद्म पदमावी ऊँ ह्रीं ऊँ ऊँ पूर्वाय दक्षिणाय उत्तराय आष पूरय सर्वजन वश्य कुरु कुरु स्वाहा।

शय्या पर मंत्र जप करने के बाद दसों दिशाओं में दस-दस बार फूंक मारें। इस उपाय से साधक को चारों तरफ से पैसा प्राप्त होता है

4.सफेद आंकड़े को छाया में सुखा लें। इसके बाद कपिला गाय यानी सफेद गाय के दूध में मिलाकर इसे पीस लें और इसका तिलक लगाएं। ऐसा करने पर व्यक्ति का समाज में वर्चस्व हो जाता है।

5.यदि आपको ऐसा लगता है कि किसी स्थान पर धन गढ़ा हुआ है और आप वह धन प्राप्त करना चाहते हैं तो यह उपाय करें।

गड़ा धन प्राप्त करने के लिए यहां दिए गए मंत्र का जप दस हजार बार करना होगा।

मंत्र: 

ऊँ नमो विघ्नविनाशाय निधि दर्शन कुरु कुरु स्वाहा।

गड़े हुए धन के दर्शन करने के लिए विधि इस प्रकार है। किसी शुभ दिवस में यहां दिए गए मंत्र का जप हजारों की संख्या करें। मंत्र सिद्धि हो जाने के बाद जिस स्थान पर धन गड़ा हुआ है वहां धतुरे के बीज, हलाहल, सफेद घुघुंची, गंधक, मैनसिल, उल्लू की विष्ठा, शिरीष वृक्ष का पंचांग बराबर मात्रा में लें और सरसों के तेल में पका लें।

 इसके बाद इस सामग्री से गड़े धन की शंका वाले स्थान पर धूप-दीप ध्यान करें। यहां दिए गए मंत्र का जप हजारों की संख्या में करें।

ऐसा करने पर उस स्थान से सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों का साया हट जाएगा। भूत-प्रेत का भय समाप्त हो जाएगा। साधक को भूमि में गड़ा हुआ धन दिखाई देने लगेगा।

ध्यान रखें तांत्रिक उपाय करते समय किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी का परामर्श अवश्य लें।

6.शास्त्रों के अनुसार दूर्वा घास चमत्कारी होती है। इसका प्रयोग कई प्रकार के उपायों में भी किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति सफेद दूर्वा को कपिला गाय यानी सफेद गाय के दूध के साथ पीस लें और इसका तिलक लगाएं तो वह किसी भी काम में असफल नहीं होता है।

7.महालक्ष्मी की कृपा तुरंत प्राप्त करने के लिए यह तांत्रिक उपाय करें।

किसी शुभ मुहूर्त जैसे दीपावली, अक्षय तृतीया, होली आदि की रात यह उपाय किया जाना चाहिए। दीपावली की रात में यह उपाय श्रेष्ठ फल देता है। इस उपाय के अनुसार आपको दीपावली की रात कुमकुम या अष्टगंध से थाली पर यहां दिया गया मंत्र लिखें।

मंत्र: 

ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्मी, महासरस्वती ममगृहे आगच्छ-आगच्छ ह्रीं नम:।

इस मंत्र का जप भी करना चाहिए। किसी साफ एवं स्वच्छ आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला या कमल गट्टे की माला के साथ मंत्र जप करें। मंत्र जप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए। अधिक से अधिक इस मंत्र की आपकी श्रद्धानुसार बढ़ा सकते हैं।

इस उपाय से आपके घर में महालक्ष्मी की कृपा बरसने लगेगी।

8.अपामार्ग के बीज को बकरी के दूध में मिलाकर पीस लें, लेप बना लें। इस लेप को लगाने से व्यक्ति का समाज में आकर्षण काफी बढ़ जाता है। सभी लोग इनके कहे को मानते हैं।

9.यदि आप देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर की कृपा से अकूत धन संपत्ति चाहते हैं तो यह उपाय करें।
उपाय के अनुसार आपको यहां दिए जा रहे मंत्र का जप तीन माह तक करना है। प्रतिदिन मंत्र का जप केवल 108 बार करें।

मंत्र: ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवाणाय, धन धन्याधिपतये धन धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा।
मंत्र जप करते समय अपने पास धनलक्ष्मी कौड़ी रखें। जब तीन माह हो जाएं तो यह कौड़ी अपनी तिजोरी में या जहां आप पैसा रखते हैं वहां रखें। इस उपाय से जीवनभर आपको पैसों की कमी नहीं होगी।

10.यदि आप घर या समाज या ऑफिस में लोगों को आकर्षित करना चाहते हैं तो बिल्वपत्र तथा बिजौरा नींबू लेकर उसे बकरी के दूध में मिलाकर पीस लें। इसके बाद इससे तिलक लगाएं। ऐसा करने पर व्यक्ति का आकर्षण बढ़ता है।

ध्यान रखें तांत्रिक उपाय करते समय किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी का परामर्श अवश्य लें।

सम्पूर्ण जन्म कुंडली विश्लेषण हेतु आप सम्पर्क कर सकते हो *"कुंडली परामर्श के लिए संपर्क करें:-* जन्म  कुंडली  देखने और समाधान बताने  की

दक्षिणा -  251 मात्र .

पेटियम : --    9958417249

विशेष

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.) 

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249  

                      

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249

काले तिल के टोटके





काले तिल के टोटके 


कार्यों में आ रही परेशानियों और दुर्भाग्य को दूर करने के लिए ज्योतिष शास्त्र की किताबों में कई तरह के टोटके या उपाय बताए गए हैं उन्हीं में से एक है काले तिल के असरकार और चमत्कारिक उपाय। आप भी जानिए...

1 : --   राहु-केतु और शनि से मुक्ति हेतु

        
कुंडली में शनि के दोष हों या शनि की साढ़ेसाती या ढय्या चल रहा हो तो प्रत्येक शनिवार को बहते जल की नदी में काले तिल प्रवाहित करना चाहिए। इस उपाय से शनि के दोषों की शांति होती है।आप काले तिल भी दान कर सकते हैं। इससे राहु-केतु और शनि के बुरे प्रभाव समाप्त हो जाते हैं। इसके अलावा कालसर्प योग, साढ़ेसाती, ढय्या, पितृदोष आदि में भी यह उपाय कारगर है।

2.

 धन की समस्या दूर करने हेतु   

 हर शनिवार काले तिल, काली उड़द को काले कपड़े में बांधकर किसी गरीब व्यक्ति को दान करें। इस उपाय से पैसों से जुड़ी समस्याएं दूर हो सकती हैं।
धनहानि रोकने हेतु : मुठ्ठी भर काले तिल को परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर सात बार उसारकर घर के उत्तर दिशा में फेंक दें, धनहानि बंद होगी|   

 3.   बुरे समय से मुक्ति हेतु     
                  
 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जप करते हुए प्रत्येक शनिवार को दूध में काले तिल मिलाकर पीपल पर चढ़ाएं। इससे कैसा भी बुरा वक्त चल रहा होगा तो वह दूर हो जाएगा।            
                    
4. रोग कटे सुख मिले  

हर रोज एक लोटे में शुद्ध जल भरें और उसमें काले तिल डाल दें। अब इस जल को शिवलिंग पर ऊँ नम: शिवाय मंत्र जप करते हुए चढ़ाएं। जल पतली धार से चढ़ाएं और मंत्र का जप करते रहें। जल चढ़ाने के बाद फूल और बिल्व पत्र चढ़ाएं। इससे शनि के दोष तो शांत होंगे ही पुराने समय से चली आ रही बीमारियां भी दूर हो सकती हैं। दूसरा उपाय यह है कि शनिवार को यह उपय करें।

 जौ का 125 पाव (सवा पाव) आटा लें। उसमें साबुत काले तिल मिलाकर रोटी बनाएं। अच्छी तरह सेंके, जिससे वे कच्ची न रहें। फिर उस पर थोड़ा-सा तिल्ली का तेल और गुड़ डाल कर पेड़ा बनाएं और एक तरफ लगा दें। फिर उस रोटी को बीमार व्यक्ति के ऊपर से 7 बार वार कर किसी भैंसे को खिला दें। पीछे मुड़ कर न देखें और न कोई आवाज लगाए। भैंसा कहां मिलेगा, इसका पता पहले ही मालूम करके रखें। भैंस को रोटी नहीं खिलानी है।

 5.

 कार्य में सफलता हेतु    
              
अपने हाथ में एक मुट्ठी काले तिल लेकर घर से निकलें। मार्ग में जहां भी कुत्ता दिखाई दे उस कुत्ते के सामने वह तिल डाल दें और आगो बढ़ जाए। यदि वह काले तिल कुत्ता खाता हुआ दिखाई दे तो यह समझना चाहिए कि कैसा भी कठिन कार्य क्यों न हो, उसमें सफलता प्राप्त होगी।             

6.

 नजरदोष      

जब कभी किसी छोटे बच्चों को नजर लग जाती है तो, वह दूध उलटने लगता है और दूध पीना बन्द कर देता है, ऐसे में परिवार के लोग चिंतित और परेशान हो जाते है। ऐसी स्थिति में एक बेदाग नींबू लें और उसको बीच में आधा काट दें तथा कटे वाले भाग में थोड़े काले तिल के कुछ दाने दबा दें। और फिर उपर से काला धागा लपेट दें। अब उसी नींबू को बालक पर उल्टी तरफ से 7 बार उतारें। इसके पश्चात उसी नींबू को घर से दूर किसी निर्जन स्थान पर फेंक दें। इस उपाय से शीघ्र ही लाभ मिलेगा।
                   
7. आयु वृद्धि

मंगल या शनिवार के दिन काले तिल, जौ का पीसा हुआ आटा और तेल मिश्रित करके एक रोटी पकावें, उसे अच्छी तरह से दोनों तरफ से सेकें, फिर उस पर तेल मिश्रित गुड़ चुपड़ कर व्यक्ति पर सात बार वारकर भैंसे को खिलावें।

सम्पूर्ण जन्म कुंडली विश्लेषण हेतु आप सम्पर्क कर सकते हो *"कुंडली परामर्श के लिए संपर्क करें:-* जन्म  कुंडली  देखने और समाधान बताने  की

दक्षिणा -  251 मात्र .

पेटियम : --    9958417249

विशेष

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.) 

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249  

                      

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249



Wednesday, December 25, 2019

लग्न अनुसार गुरु रत्न पुखराज धारण





लग्न अनुसार गुरु रत्न पुखराज धारण


भारतीय ज्योतिष के आधार पर हम कोई भी रत्न धारण करते हैं तो सर्वप्रथम
लग्न व लग्नेश की स्थिति देखते हैं। जो भी रत्न धारण कर रहे हैं उसके लग्न व लग्नेश
के साथ कैसे सम्बन्ध हैं. मित्र हैं अथवा शत्र हैं ? इसके अतिरिक्त हम अकारक ग्रह
अथवा कष्टकारी ग्रह की दशा- अन्तर्दशा के आधार पर रत्न धारण करते हैं।

 गुरु  रत्न:-

पुखराज बहुत ही शुभ रत्न है। कन्या अथवा विवाहित स्त्री के लिये तो यह बहुत ही आवश्यक हो जाता है परन्तु फिर भी इसको धारण करने से पहले पत्रिका में
स्थति का ज्ञान आवश्यक है, क्योंकि जैसे पत्रिका में यदि गुरु अशुभ हो तथा पुखराज
धारण करना आवश्यक हो, फिर पुखराज धारण करने से पहले कुछ अन्य प्रयोग
करना होता है। यहां हम केवल लग्न के आधार पर ही पुखराज धारण की चर्च
रहे हैं।

मेष लग्न:-

इस लग्न का स्वामी मंगल होता है जो गुरु का परम मित्र है।
भी इस लग्न में भाग्य भाव तथा व्यय भाव का स्वामी होता है परन्तु नवम भाव
आने पर गुरु भाग्य भाव का ही फल अधिक प्रदान करता है। इसलिये पुखराज
लग्न वालों के लिये बहुत ही शुभ होता है। यदि इसको लग्नेश मंगल के रत्न मूंगे के
साथ धारण किया जाये तो गुरु के शुभ फल में और अधिक वृद्धि होती है।

वृषभ लग्न :-

इस लग्न का स्वामी शुक्र है जो गुरु का परम शत्रु है। गुरु भी इस लग्न में अष्टम व एकादश जैसे अशुभ भावों का स्वामी होता है, इसलिये इस लग्न वालों
को पुखराज अशुभ होता है। मेरे शोध में लग्नेश शुक्र की महादशा तथा गुरु की अंतर्दशा में अथवा गुरु की महादशा में पुखराज धारण कर लाभ लिया जा सकता है।

मिथुन लग्न :-

 इस लग्न में बुध लग्न स्वामी है। गुरु भी दो केन्द्र स्थान सप्तम
व दशम स्थान का स्वामी होकर केन्द्राधिपति दोष से दूषित होता है, इसलिये गुरु यदि लग्न, द्वितीय, एकादश अथवा किसी अन्य केन्द्र या त्रिकोण में होने पर संतान अथवा आर्थिक कष्ट होने पर गुरु की महादशा में आप पुखराज धारण कर सकते हैं परन्तु इतना अवश्य ध्यान रखें कि गुरु इस लग्न में प्रबल मारकेश होता है। सेहत पर नकारात्मक असर मिल सकते है।

कर्क लग्न :- 

इस लग्न का स्वामी चन्द्र होता है जो गुरु का मित्र है। गुरु भी यहां रोग भाव तथा भाग्य भाव का स्वामी है, इसलिये आप भाग्य प्रबल करने के लिये
पुखराज धारण कर सकते हैं लेकिन आपको पूर्ण लाभ तभी मिल पायेगा जब पुखराज के साथ मोती भी धारण करें।

सिंह लग्न :- 

 इस लग्न का स्वामी सूर्य भी गुरु का मित्र है। गुरु भी पंचम जैसे त्रिकोण व अष्टम जैसे अशुभ भाव का स्वामी होता है लेकिन यहां पर गुरु पंचम भाव का शुभ फल प्रदान करता है, इसलिये आप पुखराज धारण कर सकते हैं। यदि आप
पुखराज के साथ सूर्य रत्न माणिक्य भी धारण करें तो और भी अधिक लाभ प्राप्त होगा।

कन्या लग्न :-

इस लग्न का स्वामी बुध है। गुरु यहां भी दो केन्द्र स्थान चतुर्थ व सप्तम भाव का स्वामी होकर केन्द्राधिपति दोष से दूषित होने के साथ मारकेश भी होता है। इसलिये गुरु यदि लग्न, द्वितीय, पंचम, सप्तम, नवम, दशम अथवा एकादश भाव में हो तो आप गुरु की महादशा अथवा संतान या आर्थिक कष्ट होने पर पुखराज धारण कर सकते हैं लेकिन मारकेश का भी ध्यान रखें। मेरे अनुभव में पुखराज के साथ रत्न पन्ना भी धारण किया जाये व गुरु की पूजा की जाये जिसमें मुख्यतः 108 नाम का उच्चारण हो तो फिर गुरु इतना अशुभ प्रभाव नहीं देता है।

तुला लग्न :-

 इस लग्न का स्वामी शुक्र होता है जो गुरु का परम शत्रु है। गुरु पष्ठम जैसे अशुभ भाव का स्वामी है, इसलिये ऐसे जातक पुखराज से दूर ही रहें। मेरे अनुभव में तुला लग्न में गुरु जितने कमजोर व शान्त होंगे, जातक को उतना ही अधिक शुभ फल प्रदान करेंगे।

वृश्चिक लग्न :-

इस लग्न का स्वामी मंगल है जो गुरु का मित्र है। गुरु भी यहां तृतीय व पंचम भाव का स्वामी है । एक तरफ गुरु मारक प्रभाव रखता है तो दूसरी और शुभ त्रिकोण का स्वामी है, इसलिये इस लग्न वाले लोग आर्थिक समस्या वा गुरु की महादशा में पुखराज धारण कर सकते हैं लेकिन सामान्य रूप से पुखराज के साथ लग्न रत्न मूगा भी धारण करे तो फिर गुरु के अशुभ फल की समस्या समाप्त हो जायेगी।

धनु लग  :---

इस लग्न का स्वामी स्वयं गुरु है, इसलिये लग्न व चतुर्थ भाव का स्वामी है और लग्नेश होने के आधार पर केन्द्राधिपति दोष से बचता है । इस लग्न वाले लोगों के लिये तो पुखराज कवच का कार्य करता है।

मकर लग्न। :----

 इस लग्न का स्वामी शनि होता है। गुरु इस लग्न में तृतीय व द्वादश भाव का स्वामी होता है जो कि दोनों ही अशुभ भाव हैं, इसलिये ऐसे जातक
पुखराज से दूर ही रहें।

कुंभ लग्न :--

इस लग्न का स्वामी भी शनि होता है। गुरु यहां द्वितीय व एकादश
भाव का स्वामी होता है तथा दोनों ही अशुभ भाव हैं। गुरु एकादश भाव में कारकत्व दोष से पीड़ित होता है। सामान्यतः इस लग्न वालों को पुखराज अशुभ फल के साथ मारक प्रभाव भी प्रदान करता है, इसलिये इस लग्न वालों को पुखराज से दूर ही रहना चाहिये। मेरे अनुभव में गुरु यदि इनमें से किसी भी भाव में बैठा हो अथवा गुरु की महादशा में पुखराज धारण करने से जातक को आर्थिक लाभ के साथ यश भी प्राप्त होगा लेकिन नीलम भी धारण करना आवश्यक है।

मीन लग्न  :----

लग्न इस लग्न का स्वामी स्वयं गुरु है। गुरु दो केन्द्र का स्वामी है। जैसे
मैंने धनु लग्न में बताया कि गुरु लग्नेश होने कारण केन्द्राधिपति दोष से मुक्त होता है,
इसलिये इस लग्न वाले जातक को पुखराज तुरन्त धारण करना चाहिये।

सम्पूर्ण जन्म कुंडली विश्लेषण हेतु आप सम्पर्क कर सकते हो

*"कुंडली परामर्श के लिए संपर्क करें:-*

जन्म  कुंडली  देखने और समाधान बताने  की

दक्षिणा  -  201 मात्र .

पेटियम  : -  9958417249

विशेष

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

                     

व्हाट्सप्प न०;- 09958417249


Tuesday, December 24, 2019

पर स्त्री गमन





पर स्त्री गमन


लग्न / लग्नेश :

1. 
यदि लग्न और बारहवें भाव के स्वामी एक हो कर केंद्र /त्रिकोण में बैठ जाएँ या एक दूसरे से केंद्रवर्ती हो या आपस में स्थान परिवर्तन कर रहे हों तो पर्वत योग का निर्माण होता है । 

 इस योग के चलते जहां व्यक्ति भाग्यशाली , विद्या -प्रिय ,कर्म शील , दानी , यशस्वी , घर जमीन का अधिपति होता है वहीं अत्यंत कामी और कभी कभी पर स्त्री गमन करने वाला भी होता है ।

2. 
यदि लग्नेश सप्तम स्थान पर हो ,तो ऐसे व्यक्ति की रूचि विपरीत सेक्स के प्रति अधिक होती है । उस व्यक्ति का पूरा चिंतन मनन ,विचार व्यवहार का केंद्र बिंदु उसका प्रिय ही होता है ।

3. 
यदि लग्नेश सप्तम स्थान पर हो और सप्तमेश लग्न में हो , तो जातक स्त्री और पुरुष दोनों में रूचि रखता है , उसे समय पर जैसा साथी मिल जाए वह अपनी भूख मिटा लेता है । 

 यदि केवल सप्तमेश लग्न में स्थित हो तो जातक में काम वासना अधिक होती है तथा उसमें रतिक्रिया करते समय पशु प्रवृति उत्पन्न हो जाती है और वह निषिद्ध स्थानों को अपनी जिह्वा से चाटने लगता है ।

4.  यदि लग्नेश ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो जातक अप्राकृतिक सेक्स और मैस्टरबेशन आदि प्रवृतियों से ग्रसित रहता है और ये क्रियाएँ उसे आनंद और तृप्ति प्रदान करती हैं ।

5. 
लग्न में शुक्र की युति 2 /7 /6 के स्वामी के साथ हो तो जातक का चरित्र संदिग्ध ही रहता है ।

6.  मीन लग्न में सूर्य और शुक्र की युति लग्न/चतुर्थ भाव में हो या सूर्य शुक्र की युति सप्तम भाव में हो और अष्टम में पुरुष राशि हो तो स्त्री , स्त्री राशि होने पर पुरुष अपनी तरक्की या अपना कठिन कार्य हल करने के लिए अपने साथी के अतिरिक्त अन्य से सम्बन्ध स्थापित करते हैं ।

सम्पूर्ण जन्म कुंडली विश्लेषण हेतु आप सम्पर्क कर सकते हो *"कुंडली परामर्श के लिए संपर्क करें:-* जन्म  कुंडली  देखने और समाधान बताने  की

दक्षिणा -  251 मात्र .

विशेष

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.) 

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249  

                      08601454449

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249

शाबर मंत्र :






शाबर मंत्र :


ॐ आठ-भुजी अम्बिका,एक नाम ओंकार , खट्-दर्शन त्रिभुवन में,
पाँच पण्डवा सात दीप , चार खूँट नौ खण्ड में,
चन्दा सूरज दो प्रमाण , हाथ जोड़ विनती करूँ , मम करो कल्याण !!!

मंत्र-

॥ ॐ नमो भगवते मंगल शनि राहू केतू चतुर्भुजे पीताम्बरे अघोर रात्रि कालरात्रि मनुष्यानां सर्व मंगल तेजस राहवे शांतये शांतये केतवे क्रूर कर्मे दुर्भिक्षता विनाशाय फट स्वाहा ॥


योनि तंत्र







योनि तंत्र.....


         सृष्टि का प्रथम बीज रूप उत्पत्ति योनि से ही होने के कारण तंत्र मार्ग के सभी साधक ‘योनि’ को आद्याशक्ति मानते हैं । लिंग का अवतरण इसकी ही प्रतिक्रिया में होता है । लिंग और योनि के घर्षण से ही सृष्टि आदि का परमाणु रूप उत्पन्न होता है ।

 इन दोनों संरचनाओं के मिलने से ही इस ब्रह्माण्ड और सम्पुर्ण इकाई का शरीर बनता है और इनकी क्रिया से ही उसमें जीवन और प्राणतत्व ऊर्जा का संरचना होता है । यह योनि एवं लिंग का संगम प्रत्येक के शरीर में चल रहा है ।     
       
         शक्तिमन्त्रमुपास्यैव यदि योनिं न पुजयेत् ।
    तेषा दीक्षाश्चय मन्त्रश्चय ठ नरकायोपेपधते ।। ७ ।।
        अहं मृत्युञ्जयो देवी तव योनि प्रसादतः ।
    तव योनिं महेशनि भाव यामि अहर्निशम् ।। ८ ।।

         योनी तंत्र के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों
शक्तियों का निवास प्रत्येक नारी की योनी में है । क्योंकि
हर स्त्री देवी भगवती का ही अंश है ।

 दश महाविद्या


अर्थात देवी के दस पूज्नीय रूप भी योनी में निहित है ।अतः पुरुष को अपना आध्यात्मिक उत्थान करने के लिए मन्त्र उच्चारण के साथ देवी के दस रूपों की अर्चना योनी
पूजन द्वारा करनी चाहिए ।

 योनी तंत्र में भगवान् शिव ने
स्पष्ट कहा है की श्रीकृष्ण, श्रीराम और स्वयं शिव भी
योनी पूजा से ही शक्तिमानहुए हैं । भगवान् राम, शिव
जैसे योगेश्वर भी योनी पूजा कर योनीतत्त्वको सादर मस्तक पर धारण करते थे ।

योनी तंत्र में कहा गया है क्यों कि बिना योनी की दिव्य उपासना के पुरुषकीआध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं है । सभी स्त्रियाँ परमेश्वरी भगवती
का अंश होने के कारण इस सम्मान की अधिकारिणी हैं ।     
          अतः तंत्र साधक हो या फीर आम मनुष्य कभी
भी स्त्रियों का तिरस्कार या अपमान नहीं करना चाहिए ।

नोटः-

शुद्ध उच्चारण के साथ किसी साधक के मार्गदर्शन में इन मंत्रों का प्रयोग करना ही लाभकर होगा।यदि किसी भी प्रकार की दिक्कते हो,तो मुझसे सम्पर्क कर सकते है।

आप सभी को मेरी शुभकामनाएं साधना करें साधनामय बनें......

साधको को सूचित किया जाता हैं की हर चीज की अपनी एक सीमा होती हैं , इसलिए किसी भी साधना का प्रयोग उसकी सीमा में ही रहकर करे , और मानव होकर मानवता की सेवा करे अपने जीवन को उच्च स्तर पर ले जाएँ ,.

.चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

.
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

                     

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249

Sunday, December 22, 2019

पुष्पदेहा अप्सरा साधना (शाबर मंत्र)







पुष्पदेहा अप्सरा साधना (शाबर मंत्र)


गुरु गोरखनाथ प्रणित एक श्रेष्ठ ग्रंथ मे वर्णित यह साधना अचुक और प्रामाणीक है

अप्सरा साधना से रूपवती स्त्री का आकर्षण होता है, सीधना सफल होने पर अप्सरा आपको स्वर्ग से द्रव्य और दिव्य रसायन लाकर देगी , जिसे पीने के बाद आपको कभी बुड़ापा नही आएगा 

मेनका अप्सरा सिद्ध् पुरुष जो ब्रम्हश्री कहेलाये और उन्होने स्वयं विश्वामित्र ने यह कहा है 'कि पुष्पदेहा के समान अन कोइ अप्सरा स्वर्गलोक मे हो ही नही सकती,इसके आगे सभि सिद्धो ने स्वीकार्य किया है "कि पुष्प से भी ज्यादा सुंदर,पुष्प से भी ज्यादा कोमल और पुष्पदेहा अप्सरा से ज्यादा योवनवति और सुंदर अप्सरा है ही नही,उसका सौन्दर्य तो इतना अद्वितीय है कि इसके शरीर से निरंतर मादक,मनमोहक,कामभाव को उत्तेजित करने वाला सुगंध प्रवाहित होता रहता है। 

पुष्पदेहा इतनी नाजुक है कि एक बार उसको जो भी देख ले वह उसको जिंदगी भर नही भुला सकता,उसके  नयन अत्यंत दर्शनीय है

आज लाखों लोग अप्सरा साधना करना चाहते है
पर एक बात याद रखें कि उसका सही प्रयोग करेंगे तो जीवन में किसी वस्तु की कामना बाकी नही रहेगी
कौन नही चाहता कि स्वर्ग की सबसे शक्तिशाली अप्सरा उसके साथ हो वो चाहे तो आपको स्वर्ग का दर्शन भी करा सकती है 

अप्सरा साधना से होने वाले मुख्य लाभ 

1:- जो साधक पूर्ण रूप से हष्ट पुष्ट होते हुए भी आकर्षक व्यक्तित्व न होने के कारण अन्य लोगों को अपनी और आकर्षित नहीं कर पाते हैं तथा हीन भावना से ग्रस्त होते हैं , इस साधना के प्रभाव से उनका व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक व चुम्बकीय हो जाता है तथा उनके संपर्क में आने वाले सभी लोग उनकी और आकर्षित होने लगते हैं.

2:- जो साधक मन के अनुकूल सुंदर जीवन साथी पाना चाहते हैं किन्तु किसी कारणवश यह संभव न हो रहा हो, इस साधना के प्रभाव से उनको मन के अनुकूल सुंदर जीवन साथी प्राप्त होने की स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं और मनचाहा जीवनसाथी मिल जाता है.

3:- जिन साधक के वैवाहिक, पारिवारिक, सामाजिक जीवन में क्लेश व तनाव की स्थिति उत्पन्न हो, इस साधना के प्रभाव से उनके वैवाहिक, पारिवारिक व सामाजिक जीवन में प्रेम सौहार्द की स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं.

4:- जो व्यक्ति अभिनय के क्षेत्र में सफल होने की इच्छा रखते हैं किन्तु सफल नहीं हो पाते हैं, इस साधना के प्रभाव से उनके अंदर उत्तम अभिनय की क्षमता की वृद्धि होने के साथ-साथ अभिनय के क्षेत्र में सफल होने की स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं.

5:- जो साधक युवावस्था में होने पर भी पूर्ण यौवन से युक्त नहीं होते हैं, इस साधना से उनके अंदर उत्तम यौवन व व्यक्तित्व निखर आता है.

6:- जो साधक/साधिका सुन्दर रूप सौन्दर्य की इच्छा रखते हैं किन्तु प्रकृति द्वारा कुरूपता से दण्डित हैं, इस साधना के प्रभाव से उनके अंदर आकर्षक रूप सौन्दर्य निखर आता है.

7:- जो साधक कार्यक्षेत्र में मन के अनुकूल अधिकारी या सहकर्मी न होने के कारण असहज परिस्थियों में नौकरी करते हैं, या नौकरी चले जाने का भय रहता है, इस साधना के प्रभाव से उनके अधिकारी व सहकर्मी उनके साथ मित्रवत हो जाते हैं तथा नौकरी चले जाने का भय भी समाप्त हो जाता है.

8:- जो साधक ऐसा मानते हैं कि वह अन्य लोगों को अपनी बात या कार्य से प्रभावित नहीं कर पाते हैं, इस साधना के प्रभाव से उनका व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक व चुम्बकीय हो जाता है तथा उनके संपर्क में आने वाले सभी लोग उनकी और आकर्षित होकर उनकी बातों या कार्य से प्रभावित होने लगते हैं.

9:- जो पुरुष/स्त्री जिवन मे अपने जिवनसाथी से प्राप्त होनेवाले सुखो से वंचित हो उनके लिये तो यह साधना सबसे ज्यादा करना उत्तम है क्युके इस साधना से पुरुष/स्त्री मे कामतत्व जाग्रत होकर जिवन मे पुर्ण सुख प्राप्त किया जाता है.

उपरोक्त विषयों में अत्यंत कम समय में ही अपेक्षित परिणाम देकर आनंदमय जीवन को प्रशस्त करने वाली यह अप्सरा साधना अवश्य ही संपन्न कर लेनी चाहिए, जिससे निश्चित ही आप अपनी इच्छा की पूर्णता को प्राप्त कर सकते हैं व आनंदमय भौतिक जीवन व्यतीत कर सकते हैं क्योंकि अप्सराएं सौन्दर्य, यौवन, प्रेम, अभिनय, रस व रंग का ही प्रतिरूप होती हैं, अतः इनका प्रभाव जहाँ भी होता है वहां पर सौन्दर्य, यौवन, प्रेम, अभिनय, रस व रंग ही व्याप्त होता है.

अप्सराओं की साधना अनेक रूपों में की जाती है, जैसे माँ, बहन, पुत्री, पत्नी अथवा प्रेमिका के रूप में इनकी साधना की जाती है, ओर साधक जिस रूप में इनको साधता है ये उसी प्रकार का व्यवहार व परिणाम भी साधक को प्रदान करती हैं, 

अप्सराओं को पत्नी या प्रेमिका के रूप में साधने पर साधक को कोई कठिनाई या हानी नहीं होती है, क्योंकि यह तो साधक के व्यक्तित्व को इतना अधिक प्रभावशाली बना देती हैं कि साधक के संपर्क में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति अप्सरा साधक के मन के अनुकूल आचरण करने लगता है और अप्सरा को प्रत्यक्ष कर लिए जाने पर वह बिना किसी बाध्यता के साधक की सभी इच्छाओं की पूर्ति करती है.

माँ के रूप में साधने पर वह ममतामय होकर साधक का सभी प्रकार से पुत्रवत पालन करती हैं तो बहन व पुत्री के रूप में साधने पर वह भावनामय होकर सहयोगात्मक होती हैं, ओर पत्नी या प्रेमिका के रूप में साधने पर उस साधक को उनसे अनेक सुख प्राप्त हो सकते हैं.अनेक प्रकार के द्रव्य अप्सरा साधक को स्वयम ही प्रदान करती है.

समाग्री   : - 

 पुष्पदेहा आकर्षण सिद्धि यंत्र . गुटिका  . सिफलल्या  मुद्धिका . स्फटिक का माला .  गुलाब का इत्र . 

साधना विधी

सबसे पहिले किसी बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाये और उस पर एक चावल का ढेरि बनाये,चावल कुम्कुम से रंगे होने चाहीये.अब चावल पर "पुष्पदेहा आकर्षण सिद्धि यंत्र" स्‍थापित करके मंत्र का जाप करना है।इस साधना मे स्फटिक का माला होना जरुरी है,साधना सात दिवसीय  है और शुक्रवार से शुरू करना है,मंत्र का नित्य 11माला जाप करना जरुरी है।

साधक का मुख उत्तर दिशा के तरफ होना चाहीये,आसन-वस्त्र भी लाल रंग के होने चाहिये। यंत्र पर रोज गुलाब का इत्र और पाच गुलाब के फूल चढाये,घी का दिपक लगाये जो मंत्र जाप के समय प्रज्वलित रहे,धूप भी गुलाब का ही होना जरुरी है।

मंत्र जाप के समय नजर यंत्र के तरफ हो और बिना यंत्र के साधना ना करे क्युके इस यंत्र मे विशेष उर्जा है जो अप्सरा को स्वर्ग से लेकर पाताल लोक तक आकर्षित करने का क्षमता युक्त है।यंत्र के साथ आपको अप्सरा से वचन प्राप्त करने का मंत्र भी प्राप्त होगा जो यहा पर देना उचित नही है

मंत्र

।। ॐ आवे आवे शरमाती पुष्पदेहा प्रिया रुप आवे आवे हिली हिली मेरो कह्यौ करै,मनचिंतावे,कारज करे वेग से  आवे आवे,हर क्षण साथ रहे हिली हिली पुष्पदेहा अप्सरा फट् ॐ ।।

नोटः-

शुद्ध उच्चारण के साथ किसी साधक के मार्गदर्शन में इन मंत्रों का प्रयोग करना ही लाभकर होगा।यदि किसी भी प्रकार की दिक्कते हो,तो मुझसे सम्पर्क कर सकते है।

आप सभी को मेरी शुभकामनाएं साधना करें साधनामय बनें......

साधको को सूचित किया जाता हैं की हर चीज की अपनी एक सीमा होती हैं , इसलिए किसी भी साधना का प्रयोग उसकी सीमा में ही रहकर करे , और मानव होकर मानवता की सेवा करे अपने जीवन को उच्च स्तर पर ले जाएँ ,.

दक्षिणा शुल्क : -   2100  रू +डाक व्यय

.चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

                     

व्हाट्सप्प न०;- 09958417249



कुछ अचूक उपाय




कुछ अचूक उपाय


~~~~~~~~~~

चाहे कोई प्रयोग कितना भी छोटा या बड़ा हो पर यदि वह आपके जीवन को आरामदायक बनाने में सहयोगी सा होता हैं तो उसे निश्चय ही जीवन में स्थान देना चाहिए . इसी तरह के कुछ प्रयोग आपके लिए …......

1. यदि हर बुधवार , एक पीला केला गाय को खिलाया जाये तो यह धन दायक होता हैं .

2. यदि धतूरे की जड़ को अपने कमर में बाँध लिया जाये तो यह जो व्यक्ति विशेष स्वपन दोष से पीड़ित हैं उनके लिए लाभदायक होगा.

3. सूर्योदय के पहले किसी भी चोराहे पर जाकर थोडा सा गुड चवा कर थूक दे फिर बिना किसी से बात करे बिना , नहीं पीछे देखे ओरअपने घर आ जाये , आपकी सिरदर्द की बीमारी में यह लाभदायक होगा .

4. अपने व्यापारिक स्थल को यदि वह उन्नति नहीं दे रहा हैं तो एक नीबू लेकर उसे अपने प्रतिष्ठान के चारों ओर घुमाएँ तथा बहार लाकर चार भाग में काट दे ओर फ़ेंक दे. आपकी उन्नति के लिए यही भी लाभदायक होगा.

5. किसी भी शुक्रवार को यदि तेल में थोडा सा गाय का गोबर मिला कर मालिश अपने शरीर की जाये फिर स्नान कर लिया जाये , तो यह व्यक्ति के विभिन्न दोषों को दूर करने में सहयोगी होता हैं .

6. सुबह उठ कर यदि थोडा सा आटा यदि चीटीयों के सामने डाल दे तो यह भी एक पूरे दिन का रक्षाकारक प्रयोग होता हैं .

7. यदि रवि पुष्प के दिन अपामार्ग के पौधे को विधि विधान से उखाड़ लाये ओर फिर तीन माला नवार्ण मंत्र जप करें, इसे पूजा स्थान या अपने व्यापारिक स्थान पर रखे आपके यहाँ धनागम में वृद्धि होगी .

8. परिवार में दोषों को समाप्त करने के लिए कुछ मीठा या मिठाई ओर उसके ऊपर थोडा सा मीठा पानी भी पीपल के वृक्ष की जड़ में अर्पित करे .

9. रविवार के दिन पीपल का वृक्ष नाछुये .

10. यदि व्यक्ति दोपहर के बाद यही पीपल के वृक्ष को स्पर्श करे तो व्यक्ति की अनेको बीमारी स्वतः ही नष्ट होती जाती हैं .

सम्पूर्ण जन्म कुंडली विश्लेषण हेतु आप सम्पर्क कर सकते हो

*"कुंडली परामर्श के लिए संपर्क करें:-*

जन्म  कुंडली  देखने और समाधान बताने  की

दक्षिणा  -  201 मात्र .

पेटियम  : -  9958417249

विशेष

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

                     

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249


महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...