Wednesday, February 22, 2023

पित्रों की शांति निवारण हेतु


 



पित्रों की शांति निवारण हेतु -


धर्मशास्त्रों के अनुसार पितरों का निवास चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है। ये आत्माएं मृत्यु के बाद 1 से लेकर 100 वर्ष तक मृत्यु और पुनर्जन्म की मध्य की स्थिति में रहती हैं। पितृलोक के श्रेष्ठ पितरों को न्यायदात्री समिति का सदस्य माना जाता है। 

 

यमराज की गणना भी पितरों में होती है। काव्यवाडनल, सोम, अर्यमा और यम- ये चार इस जमात के मुख्य गण प्रधान हैं। अर्यमा को पितरों का प्रधान माना गया है और यमराज को न्यायाधीश। 

 

इन चारों के अलावा प्रत्येक वर्ग की ओर से सुनवाई करने वाले हैं, यथा- अग्निष्व, देवताओं के प्रतिनिधि, सोमसद या सोमपा-साध्यों के प्रतिनिधि तथा बहिर्पद-गंधर्व, राक्षस, किन्नर सुपर्ण, सर्प तथा यक्षों के प्रतिनिधि हैं। इन सबसे गठित जो जमात है, वही पितर हैं। यही मृत्यु के बाद न्याय करती है

इसलिए पितरों  को तृप्त किया जाना आवश्यक है ।

अगर किशी कारण वश आपके पितरों नाराज हो जाये तो यह आपके कार्य स्वरूप बाधा भी डाल सकते है । आम जीवन से लेकर विवाह में भी बाधा डाल सकते है । एवम गृहकलेश , संतान न होना , 

आस्कमिक नुकसान एवम दुर्घटना । एवम मौत भी शामिल होती है ।

इसलिए इनकी शान्ति के उपाय यम नियम से करवाये।


पित्रों के दोष से बचें ।

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जब व्यक्ति के जीवन मे पित्र दोष का काल होता है ।या समय होता है तो अच्छे अच्छे व्यक्ति का दिमाग भृमित हो जाता है। और परिवार में किसी के एक अलग किस्म की बीमारी भी बन जाती है। और ग्रहस्थ होते हुए भी  निसंतान जीवन व्यतीत करते है । व्यक्ति के विवाह में बाधा हो जाती है । अकारण जी गृहकलेश होता है । और परिवार में भी मौत होती है । आस्कमिक दुर्घटना हो जाती है । इसलिए पितरों को शांति के लिये पूर्ण उपाय करें ।

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