Thursday, August 31, 2023

विपरीत प्रत्यंगिरा तन्त्र


 


विपरीत प्रत्यंगिरा तन्त्र


शत्रु द्वारा बारम्बार तन्त्र क्रियाओं के किये जाने पर शत्रु यदि रुकने की बजाए और गहरे तन्त्र आघात देने लगें, प्राण हरण पर ही उतर आएँ अर्थात मानव संवेदनाओं की सीमा को लाँघ कर घिनौनी हरकतों पर उतर आएँ तो उसकी क्रिया को उस पर वापिस इस तरह से लौटना की शत्रु को आपके दर्द का एहसास हो इसे विपरीत प्रत्यंगिरा कहा जाता है I


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 प्रत्यंगिरा और विपरीत प्रत्यंगिरा में ये भेद है की प्रत्यंगिरा शक्ति तो सिर्फ वापिस लौटती है किन्तु विपरीत प्रत्यंगिरा शत्रु को ही वापिस चोट पहुंचाती है और खुद की निश्चित रूप से रक्षा करती है I 


इस प्रयोग के बाद शत्रु आप पर दोबारा यह प्रयोग कभी नहीं कर सकता I उसकी वह शक्ति खत्म हो जाती है I


मन्त्र : 


ॐ ऐं ह्रीं श्रीं प्रत्यंगिरे मां रक्ष रक्ष मम शत्रून् भंजय भंजय फें हुं फट् स्वाहा I


विनियोग :


 अस्य श्री विपरीत प्रत्यंगिरा मंत्रस्य भैरव ऋषि:, अनुष्टुप् छन्द:, श्री विपरीत प्रत्यंगिरा देवता ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोग: I

                                   


|| माला मन्त्र II


ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ कुं कुं कुं मां सां खां पां लां क्षां ॐ ह्रीं ह्रीं ॐ ॐ ह्रीं बां धां मां सां रक्षां कुरु I ॐ ह्रीं ह्रीं ॐ स: हुं ॐ क्षौं वां लां धां मां सा रक्षां कुरु I ॐ ॐ हुं प्लुं रक्षा कुरु I


 ॐ नमो विपरीतप्रत्यंगिरायै विद्याराज्ञी त्रैलोक्य वंशकरि तुष्टिपुष्टिकरि सर्वपीड़ापहारिणि सर्वापन्नाशिनि सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिनि मोदिनि सर्वशस्त्राणां भेदिनि क्षोभिणि तथा I 


परमंत्र तंत्र यंत्र विषचूर्ण सर्वप्रयोगादीन् अन्येषां निवर्तयित्वा यत्कृतं तन्मेSस्तु कपालिनि सर्वहिंसा मा कारयति अनुमोदयति मनसा वाचा कर्मणा ये देवासुर राक्षसास्तिर्यग्योनि सर्वहिंसका विरुपकं कुर्वन्ति मम मंत्र तंत्र यन्त्र विषचूर्ण सर्वप्रयोगादीनात्म 


साधना समाग्री दक्षिणा === 1500


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Wednesday, August 23, 2023

ना पहनें दो से ज्यादा रत्न नहीं तो अनेक प्रकार की बाधाएं आएगी ....


 


ना पहनें दो से ज्यादा रत्न नहीं तो अनेक प्रकार की बाधाएं आएगी ....


रत्नों का ग्रहों की राशियों से केवल गहरा संबंध ही नहीं है, अपितु यदि उनका सही ढंग से चुनाव किया जा सके तो वे धारण करने वाले व्यक्ति के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाने में सक्षम होते हैं और विरोधी शक्तियों का डटकर सामना करने की शक्ति और जीवन ऊर्जा से भरपूर बनाने में सामर्थ्य देते हैं।


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रत्न धारण से जो ग्रह शुभ स्थानों के स्वामी होकर अशुभ स्थानों में स्थित हो जाता है तो वह निर्बल हो जाता है तो इससे संबंधित रत्न धारण से ग्रह को शक्ति मिलती है और जो अशुभ स्थान का स्वामी हो, पाप ग्रहों की संगत में बैठा हो, उनसे देखा जाता हो या अन्य कारण से दूषित हो तो उससे संबंधित रत्न पहने का अर्थ होगा कि उसकी विघटनकारी, अमंगलकारी शक्ति को उत्प्रेरित करना है।


इसके साथ जो शुभ ग्रह है और अन्य कारणों से भी शुभ है तो उसका रत्न पहनना निःसंदेह उपयोगी होगा, क्योंकि उसकी प्रखरता में वृद्धि होने से संभावित अवरोध भी दूर होंगे। सही रत्न का चुनाव कर शुभ मुहूर्त में अँगूठी बनवाकर व शुभ मुहूर्त में सही उँगली में अँगूठी धारण करने पर ही रत्न लाभकारी होता है।


रत्नों का ग्रहों की राशियों से केवल गहरा संबंध ही नहीं है, अपितु यदि उनका सही ढंग से चुनाव किया जा सके तो वे धारण करने वाले व्यक्ति के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाने में सक्षम होते हैं।


कई बार एक व्यक्ति दो या दो से अधिक रत्न धारण कर लेते हैं। आजकल तो पाँचों उँगलियों में और एक से अधिक रत्न एक ही उँगली में धारण कर लेते हैं। इससे रत्नों का फल निष्फल या विपरीत भी हो जाता है।  


ज्योतिष शास्त्रानुसार दो या दो रत्नों को धारण करते समय अति सावधानी रखना चाहिए। समान तत्व वाली राशियों के स्वामी के तथा मित्र ग्रहों के रत्नों को ही एकसाथ धारण करना चाहिए। शत्रु ग्रहों के रत्नों को धारण करना निषेध है। निम्नांकित सारिणी से भली-भाँति जानकारी मिल सकती है कि कौन-से रत्न एकसाथ धारण करना चाहिए एवं कौन-से रत्न धारण नहीं करना चाहिए।


ग्रहों के लिए निर्धारित उँगलियों में ही रत्न धारण करना चाहिए तभी प्रभावशाली होता है।


रत्न धारण का प्रभाव तभी होता है, जब 'कौन-सा रत्न धारण करना' का सही निर्णय आवश्यक है। रत्न निर्दोष होना चाहिए। सही वजन का होना चाहिए। सही धातु में अँगूठी बनवाकर शुभ मुहूर्त में सही उँगली में निषेध रत्नों के साथ न पहनने से ही लाभकारी होता है।


 अभी बहुत सारे तरीका है हमारे ज्योतिष शास्त्र में यदि आपको भी अपने भाग्य के अनुसार कुंडली के अनुसार ओरिजिनल रत्न धारण करना चाहते हैं तो संपर्क करें और रत्न की जानकारी और रत्न प्राप्त करें 


  


और भी बहुत कुछ कहती है आपकी जन्मकुंडली आपके जीवन और भविष्य जुड़े हुए कुछ संकेत जिसके बारे में आप जानना चाहते हैं ..


और अधिक जानकारी समाधान उपाय विधि प्रयोग या ओरिजिनल रत्न की जानकारी या रत्न प्राप्ति के लिए या कुंडली विश्लेषण कुंडली बनवाने के लिए संपर्क करें 


जन्म  कुंडली  देखने और समाधान बताने  की 


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Monday, August 21, 2023

माँ धूमावती सत्रु विनासक प्रयोग


 



माँ धूमावती सत्रु विनासक प्रयोग


यह प्रयोग अत्यंत भय कारक है। विचार पूर्वक इस मंत्र का जप करना चाईए।। बिना गुरु के इस प्रयोग को करना अत्यंत नुकसान पहुचा सकता है।।।


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मंत्र:::---


धूम धूम धूमावती। मसान में रहती मरघट जगाती। सूप छानती जोगनियो के संग नाचती। डाकनियो के संग मास खाती। मेरी बैरी -------का भी तू मास खाये।कलेजा खाये,लहू पिये प्यास भुजाएँ। मेरी बैरी तड़पा तड़पा मार।ना मारे तो तोहू को माता पारवती के सिंदूर की दुहाई। कनिपा औघड़ की आन।


विधि विधान::::---


एक छोटा सुप ले। थोड़ा सा  शराब और बकरे का कच्चा मास ले। अमावस्या की रात्रि में समशान जाए। वही एक कफन का टुकड़ा ले तथा जलती चिता के समक्ष बैठे । सुरक्षा घेरा लागये।।।


इस मंत्र की 11 माला करे। जप के बाद मंत्र को पढ़ते हुए चिता की राख को मुठी मे ले।


राख में थोड़ी शराब मिलाए तथा उसका एक लेप बना ले उसके बाद कफन के टुकड़े पे अपनी तर्जनी उंगली से मंत्र लिखे । 


रिक्त स्थान पे सत्रु का नाम लिखना है। फिर उसपर बकरे के मास का टुकड़ा रखें। चार तह बना ले फिर सूप मे मास रख कर उसमे बाकी शराब डाल दे। 


और मंत्र बोल कर सूप को चिता पे रख दे और कफन का टुकड़ा लेकर सत्रु के यह डाल दे या घर के बाहर डाल दे छोटी सी टुकड़ा बना कर। सत्रु नाश उसी दिन से हो जाएगा।।


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Saturday, August 19, 2023

यदि शत्रु से परेशानी बढ़ गई हो तो हर रोज रात को लाल आसान पर बैठे,


 



यदि शत्रु से परेशानी बढ़ गई हो तो हर रोज रात को लाल आसान पर बैठे,


अपना मुह दक्षिण दिशा की ओर रखकर तेल का दिया और कोई फल


( बिना कटा ) प्रसाद रख कर ५ बार हनुमान चालीसा और ५ बार 


बजरंग बाण का पाठ करके प्रसाद खुद खाले .राहत मिल ने लगेगी.


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Friday, August 11, 2023

महाकाली दुर्गा भैरवी शाम्भवी साधना प्रयोग


 


महाकाली दुर्गा भैरवी शाम्भवी साधना प्रयोग 


साधक मित्रो को एक विशेष  भगवती की साधना दे रहा हूँ ,जो अपने आप में दिव्य हैं , इस साधना को करने के बाद कुछ शेष नहीं रह जाता

ये  आसान भी है और इसके लाभ भी बहुत हैं |


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 दुर्गा अपने साधको  को किसी भी कठिन परिस्थिति से निकाल देती हैं और साधक के  दुर्भाग्य  का नाश करती हैं | उस पर आने वाले हर संकट को पल में दूर कर देती है, है और अपनी दिव्य शक्ति  से साधक के चक्षु  दिव्य दृष्टि देती हैं 


राज राजेश्वरी हर प्रकार काऐश्वर्य और उच्च पद देने में सक्षम है | सरकारी नौकरी भी दे देती है या बेरोजगारी दूर कर  दरिद्रता का नाश कर उसे विलासी  जीवन प्रदान करती है |महाकाली जो चंडिका का स्वरुप है उसे हर प्रकार के शत्रु से सुरक्षा प्रदान कर भय मुक्त जीवन देती है.


 |भगवती चामुंडा उसे मुक्ति प्रदान कर हर प्रकार के सुख प्रदान करती है और उसकी साधना की सफलता में सहायक होती है |  |भगवती के इन् दिव्य स्वरूपों की साधना कर नवरात्रि में  या अन्य किसी भीशुक्ल पक्ष के प्रतिपदा से शुरू कर के अपने जीवन से अमंगल को हमेशा हमेशा  के लिए दूर करें और भगवती की कृपा प्राप्त कर उसके दिव्य दर्शनों से अपने अपने जीवन को सक्षम बना सकते हैं 


इस साधना के लिए सर्व प्रथम गुरु आज्ञा , गुरु का आशीर्वाद गुरु को दान पुण्य अवश्य करे , तभी साधना की शुरुवात करे।।।।  .


 अन्यथा लाभ की गुंजाईश मत रखना। ..क्यों की दुनिया की हर वो डोर गुरु से बंधी हैं  जिससे ज्ञान मिलता हैं सिख मिलती हैं  वो सब  गुरु देते हैं , जीवन में सफलता पाना चाहते हो तो हमेशा गुरु जनो को खुश रखना उनका आदर सम्मान अवश्य करे , यहीं सफलता का सूत्र हैं। ... 


यह साधना सात दिन की है |  |  इस साधना को तुम नौरात्रि में  प्रथमा से शुरू कर अष्टमी तक भीकर सकते हो ,


. शुद्ध घी की ज्योत लगाकर लाल फूल, कुमकुम और लाल फल, धूप, नैवेद्य, अक्षत से पूजन करें| पहले गुरु पूजन और श्री गणेश जी का पूजन करें | फिर माँ भगवती से प्रार्थना कर इन् सर्व शक्तियों का   पूजन करें, या फिर पंचौप्चार पूजन कर सकते हैं |


माला .  रुद्राक्ष की या हकीक की कोई भी ले लें |


पूजन आवाहन --


प्रार्थना करें कि हे चामुंडा आदि शक्ति भगवती आप मेरे सभी पापो  का नाश कर मुझे वर प्रदान करें |


फिर नीचे दिया मंत्र 11 माला जपें और अष्टमी के दिन आम्र की समिधा की लकड़ी जला कर 108 आहुति शुद्ध घी कीआहुतिया  दें और कन्या पूजन करें | सप्त कन्याओं का पूजन कर उन्हें भोजन दक्षिणा प्रदान करे | अगर घर में संभव न हो तो किसी मंदिर में हलवा आदि कन्याओं को देकर दक्षिणा दें आशीर्वाद लें | 


इस तरह यह साधना पूर्ण हो जाती है और जीवन के सभी बंद दरवाजे खुल जाते हैं ये अनुभव हैं | इस साधना के पूर्ण होते ही आप के जीवन में परिवर्तन आना शुरू हो जायेगा , ये सत्य अटल हैं।  एक बार अवश्य इस साधना काअनुभव कर के देख लीजिये। .. 


मंत्र-


|| ॐ नमो दुर्गे भगवती राज राजेश्वरी महाकाली भैरवी शाम्भवी स्वाहा || 


दक्षिणा  -  2100 ,  मात्र .


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Thursday, August 10, 2023

तांबे की अंगूठी पहनने से स्वास्थ्य लाभ -


 


तांबे की अंगूठी पहनने से स्वास्थ्य लाभ -


कॉपर यानी तांबा एक ऐसी प्राचीन धातु है जिसका इस्तेमाल कई सालों से होता आ रहा है।


तांबे में पानी के कीटाणुओं को खत्म करने का एक विशेष गुण है इसलिए ताबें के बर्तन में रखे हुए पानी को पीने की सलाह भी दी जाती है।


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तांबे से बनी अंगूठी को उंगलियों में धारण करने से होनेवाले फायदे।


उंगलियों में तांबे की अंगूठी धारण करने से शरीर का ब्लड सर्कुलेशन सुधरता है. इसके अलावा ब्लड सर्कुलेशन की कमी से होनेवाली स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से राहत मिलती है।


तांबे की अंगूठी पहनने से रक्त की अशुद्धियां दूर होती है और शरीर का इम्युन सिस्टम मजबूत होता है।


तांबे की अंगूठी शरीर की गर्मी को कम करने में मदद करता है ।शारीरिक और मानसिक तनाव कम होता है। अंगूठी तन और मन दोनों को शांत रखने मे मदद करती है 


तांबे की अंगूठी ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करती है।  आप शरीर कीसूजन को भी कम कर सकते हैं।


तांबे की अंगूठी पेट से संबंधित सभी समस्याओं में काफी फायदेमंद है ।यह पेट दर्द, पाचन में गड़बड़ी और एसिडिटी की समस्याओं में फायदा पहुंचाती है। 

तांबे के बरतन मे रखा हुआ जल पीने से कभी बिमारी पास   नही आयेगी।


त्वचा की समस्या में फायदा मिलेगा।

ज्‍योतिष 1शास्त्र के मुताबिक एक तांबे की अंगूठी पहनने से सूर्य से संबंधित सारे रोग मे लाभ होगा ।


एक छोटी सी अंगूठी आपको इतने सारे फायदे पहुंचा

 सकती है ।


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Wednesday, August 9, 2023

आकाश परी साधना


 


आकाश परी साधना :-


एँकात कुँतु रमणीक स्थान मे रात्रि 10 बजे से बारह बजे तक एक स्वर मे उपयुक्त मँत्र जपे।एक कलश स्थापित कर सुगँधीत धुप दीप जला कर ईसे दीवाली या नवरात्री से शुरु करे।और तीस दीन जाप करे नित्य।जाप करते समय पान का बिङा.लौँग,और मिठाई हाथ मे ही रखे।जब परी प्रकट हो उक्त वस्तुएँ उसे देकर साष्टाँग प्रणाम कर माँ,बहीन,या पत्नी का सँबन्ध कायम कि वचनबद्दता करा ले।प्रसन्न परि जो साधक कि वाँछा होगी देगी।मँत्र अनुभुत सिद्द है।


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मँत्र :-


आकाश परि के पाँव घुँघरा नाचति आवे बजाती आवे सोति हो तो जग के आवे जगती हो तो जल्दी आवे छमा छम करे बादल मे घोर करे मेरा हुकुम नही माने तो परि लोक से नीचे जगत लोक मे गीरे हजार साल नरक भोगे लाख लाख विच्छुन कि पिङा भोगे आन गौरा पार्वति कि दुहाई शाबर बाबा कि हिँगलाज की मेरि भक्ति गुरु कि शक्ति।


इस जाप मे माला कि आवश्यकता नही,आसन कोई भी उनी,उत्तर दीशा ।


आज  मुंबई  में ,  6/8/2022


दक्षिणा  -  2100 मात्र .


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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...