आकाश परी साधना :-
एँकात कुँतु रमणीक स्थान मे रात्रि 10 बजे से बारह बजे तक एक स्वर मे उपयुक्त मँत्र जपे।एक कलश स्थापित कर सुगँधीत धुप दीप जला कर ईसे दीवाली या नवरात्री से शुरु करे।और तीस दीन जाप करे नित्य।जाप करते समय पान का बिङा.लौँग,और मिठाई हाथ मे ही रखे।जब परी प्रकट हो उक्त वस्तुएँ उसे देकर साष्टाँग प्रणाम कर माँ,बहीन,या पत्नी का सँबन्ध कायम कि वचनबद्दता करा ले।प्रसन्न परि जो साधक कि वाँछा होगी देगी।मँत्र अनुभुत सिद्द है।
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मँत्र :-
आकाश परि के पाँव घुँघरा नाचति आवे बजाती आवे सोति हो तो जग के आवे जगती हो तो जल्दी आवे छमा छम करे बादल मे घोर करे मेरा हुकुम नही माने तो परि लोक से नीचे जगत लोक मे गीरे हजार साल नरक भोगे लाख लाख विच्छुन कि पिङा भोगे आन गौरा पार्वति कि दुहाई शाबर बाबा कि हिँगलाज की मेरि भक्ति गुरु कि शक्ति।
इस जाप मे माला कि आवश्यकता नही,आसन कोई भी उनी,उत्तर दीशा ।
आज मुंबई में , 6/8/2022
दक्षिणा - 2100 मात्र .
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चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
विशेष -
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महायोगी राजगुरु जी 《 अघोरी रामजी 》
तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान अनुसंधान संस्थान
महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट
(रजि.)
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