Friday, August 31, 2018

बगलामुखी मंत्र



बगलामुखी   मंत्र 

एकक्षरि  बगलामुखी मंत्र   : --

ह्लीं॥

Hleem॥

 त्र्यक्षर बगलामुखी  मंत्र  :  ---    

ॐ ह्लीं ॐ॥

Om Hleem Om॥

 चतुरक्षर  बगलामुखी  मंत्र  : - -    

ॐ आं ह्लीं क्रों॥

Om Aam Hleem Krom॥

  पंचाक्षर  बगलामुखी मंत्र  : - -  
ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट्॥

Om Hreem Streem Hum Phat॥

 अष्तक्षर  बगलामुखी   मंत्र  : - -     

ॐ आं ह्लीं क्रों हुं फट् स्वाहा॥

Om Aam Hleem Krom Hum Phat Svaha॥

  नवक्शर  बगलामुखी मंत्र  : - - 

ह्रीं क्लीं ह्रीं बगलामुखि ठः॥

Hreem Kleem Hreem Bagalamukhi Thah॥

  एकदषक्षर  बगलामुखी  मंत्र  : - -  

ॐ ह्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि ठः ठः॥

Om Hleem Kleem Hleem Bagalamukhi

 Thah Thah॥

बगलामुखी   गायत्री  मंत्र  : - -

ह्लीं बगलामुखी विद्महे दुष्टस्तंभनी धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्॥

Hleem Bagalamukhi Vidmahe Dushtastambhani Dhimahi Tanno Devi Prachodayat॥

राजगुरु जी

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पीताम्बरा : - नवग्रह दोष निवारण साधना



पीताम्बरा : - नवग्रह दोष निवारण साधना

बगलामुखी जी को ही पीताम्बरा कहा जाता है,यह साधना नवरात्रि मे कियी जाने वाली साधना है और अपना प्रभाव तुरंत ही साधक के जीवन मे देखने मिलता है,.

साधना की यह विशेषता है के माँ पीताम्बरा नक्षत्र स्तंभीनी है और जब नक्षत्र स्तंभीनी से हम प्रार्थना करते है तो हमारे सभी प्रकार के कार्य सहज ही सम्पन्न हो जाते है,अभी तक आपने पीताम्बरा जी की कई साधना ये सम्पन्न की होगी परंतु यह साधना आज के युग मे अत्यंत आवश्यक साधना मानी गयी है.

,इस साधना से जहा नवग्रह देवता के दोष कम होते वैसे ही उनकी अखंड कृपा भी प्राप्त होती है और जीवन मे कई प्रकार के लाभ होते है,इसी साधना से भाग्योदय भी संभव है॰इस साधना से कालसर्प-दोष,नक्षत्र-दोष,पितृ-दोष,………………कुंडली मे जीतने भी दोष हो उनकी समाप्ती निच्छित ही होती है...............

साधना विधि-

किसी बड़ी सी स्टील के प्लेट मे माँ बगलामुखी यंत्र हल्दी के स्याही से अनार के कलम से निर्मित करे,साधना मे पीले रंग के पुष्प,आसन,वस्त्र का ही उपयोग करे अन्य रंग का उपयोग वर्जित है.

मंत्र जाप हल्दी माला या पीली हकीक माला से करना है,समय रात्रिकालीन होगा जो आपको उपयुक्त है,दिशा उत्तर/पच्छिम अति उत्तम है,साधना से पूर्व नित्य गुरु और गणेश पूजन अवश्य सम्पन्न करे और साधना के प्रथम दिवस पर संकल्प अवश्य लीजिये,यह साधना तभी की जाती है जब नवरात्रि का प्रारम्भ शनिवार/मंगलवार को होता है॰

मानसिक पीताम्बरा पूजन

श्री पीताम्बरायै नम: लं पृथ्वीव्यात्मकं गंन्ध समर्पयामी ।
श्री पीताम्बरायै नम: हं  आकाशात्मकं पुष्प समर्पयामी ।
श्री पीताम्बरायै नम: यं वार्यात्मकं धुपं समर्पयामी ।
श्री पीताम्बरायै नम: रं तेजसात्मकं दीपं समर्पयामी ।
श्री पीताम्बरायै नम: वं अमृतात्मकं नैवेद्द्य समर्पयामी ।

ध्यान

मातर्भजय मदविपक्षवदनं जिव्हाचलं कीलय,ब्राम्हीं मुद्रय वदामस्ते पदाचार्या गतीं स्तंभय ।
शत्रुनचूर्णय चूर्णयाशु गदया गौरांगी पीताम्बरे,विघ्नौघं बगले हर प्रणमतां कारुण्यपूर्णेक्षणे ॥

मंत्र-

॥ ॐ नमो भगवते मंगल शनि राहू केतू चतुर्भुजे पीताम्बरे अघोर रात्रि कालरात्रि मनुष्यानां सर्व मंगल तेजस राहवे शांतये शांतये केतवे क्रूर कर्मे दुर्भिक्षता विनाशाय फट स्वाहा ॥

3 माला मंत्र जाप नित्य 9 दिन तक करे और दशमी को विजय मुहूर्त पे पीली सरसो से २७० आहुतिया अग्नि मे समर्पित करे,हो सके तो किसी शिव मंदिर जाकर किसी गरीब भूके आदमी को अन्न दान करके संतुष्ट करे,माला को जल मे विसर्जित करना आवश्यक है और प्लेट मे जो यंत्र निर्माण किया था उसमे जल डालकर प्लेट धोकर वह जल घर मे ही किसी पौधे मे डाल दे..........

राजगुरु जी

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Thursday, August 30, 2018

महाकाली




महाकाली ::::::::::::::::::::

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भगवती कालिका अर्थात काली के अनेक स्वरुप, अनेक मन्त्र तथा अनेक उपासना विधियां है। यथा-श्यामा, दक्षिणा कालिका (दक्षिण काली) गुह्म काली, भद्रकाली, महाकाली आदि । दशमहाविद्यान्तर्गत भगवती दक्षिणा काली (दक्षिणकालीका) की उपासना की जाती है।

दक्षिण कालिका के मन्त्र :- 

भगवती दक्षिण कालिका के अनेक मन्त्र है, जिसमें से कुछ इस प्रकार है।

(1) क्रीं,

(2) ॐ ह्रीं ह्रीं हुं हुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं स्वाहा |

(3) ह्रीं ह्रीं हुं हुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।

(4) नमः ऐं क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा।

(5) नमः आं क्रां आं क्रों फट स्वाहा कालि कालिके हूं।

(6) क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रींह्रीं ह्रीं हुं हुं स्वाहा। इनमें से किसी भी मन्त्र का जप किया जा सकताहै।

पूजा -विधि :-

 दैनिक कृत्य स्नान-प्राणायम आदि से निवृत होकरस्वच्छ वस्त्र धारण कर, सामान्य पूजा-विधि से काली- यन्त्र का पूजन करें।तत्पश्चात ॠष्यादि- न्यास एंव करागन्यास करके भगवती का इस प्रकार

 ध्यानकरें-

शवारुढां महाभीमां घोरदृंष्ट्रां वरप्रदाम्।
हास्य युक्तां त्रिनेत्रां च कपाल कर्तृकाकराम्।
मुक्त केशी ललजिह्वां पिबंती रुधिरं मुहु:।
चतुर्बाहूयुतां देवीं वराभयकरां स्मरेत्॥”

इसके उपरान्त मूल-मन्त्र द्वारा व्यापक-न्यास करके यथा विधि मुद्रा-प्रदर्शन पूर्वक पुनः ध्यान करना चाहिए।

पुरश्चरण : –

 कालिका मन्त्र के पुरश्चरण में दो लाख की संख्या में मन्त्र-जप कियाहै। कुछ मन्त्र केवल एक लाख की संख्या में भी जपे जाते है। जप का दशांश होमघृत द्वारा करना चाहिए । होम का दशांश तर्पण, तर्प्ण का दशांश अभिषेक तथाअभिषेक का दशांश ब्राह्मण – भोजन कराने का नियम है।

विशेष : -” 

दक्षिणाकालिका “

 देवी के मन्त्र रात्रि के समय जप करने से शीघ्र सिद्धि प्रदानकरते है। जप के पश्चात स्त्रोत, कवच, ह्रदय आदि उपलब्ध है, उनमें से चाहेंजिनका पाठ करना चाहिए । वे सभी साधकों के लिए सिद्धिदायक है।

परिचय- दुर्गाजी का एक रुप कालीजी है। यह देवी विशेष रुप से शत्रुसंहार, विघ्ननिवारण, संकटनाश और सुरक्षा की अधीश्वरी है।

यह तथ्य प्रसिद्ध है कि इनकी कृपा मात्र से भक्त को ज्ञान, सम्पति, यशऔर अन्य सभी भौतिक सुखसमृद्धि के साधन प्राप्त हो सकते है, पर विशेष रुप सेइनकी उपासन्न सुरक्षा, शौर्य, पराक्रम, युद्ध, विवाद और प्रभाव विस्तर केसंदर्भ में की जाती है। कालीजी की रुपरेखा भयानक है। देखकर सहसा रोमांच होआता है। पर वह उनका दुष्टदलन रुप है।

भक्तों के प्रति तो वे सदैव ही परम दयालु और ममतामयी रहती है। उनकी पूजाके द्वारा व्यक्ति हर प्रकार की सुरक्षा और समृद्धि प्राप्त कर सकता है।

विधि -

लाल आसन पर कालीजी की प्रतिमा अथवा चित्र या यन्त्र स्थापित करके, लालचन्दन, पुष्प तथा धूपदीप से पूजा करके मन्त्र जप करना चाहिए। नियमत रुप सेश्रद्धापूर्वक आराधना करने वालि जनों को कालीजी(प्रायः सभी शक्ति स्वरुप)स्वप्न मे दर्शन देती है।

 ऐसे दर्शन से घबङाना नहीं चाहिए और उस स्वप्न कीकहीं चर्चा भी नही चाहिए। कालीजी की पुजा में बली का विधान भी है। किन्तसात्विक उपासना की दृष्टि से बलि के नाम पर नारियल अथवा किसी फल का प्रयोगकिया जा सकता है।

वैसै, देवी – देवता मात्र श्रद्धा से ही प्रसन्न हो जाते है, ये भौतिकउपादान उनकी दृष्टि में बहुत महत्वपूर्ण नहीं होते । कुछ भी न हो और कोईसाधक केवल श्रद्धापूर्वक उनकी स्तुति ही करता रहे, तो भी वह सफल मनोरथ हो सकता है।

धयान स्तुति-

खडगं गदेषु चाप परिघां शूलम भुशुंडी शिरः
शंखं संदधतीं करैस्तिनयनां सर्वाग भूषावृताम्।
नीलाश्मद्युतिमास्य पाद द्शकां सेवै महाकालिकाम्।
यामस्तौत्स्वपितो हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम्॥

जप मन्त्र-

ॐ क्रां क्रीं क्रूं कालिकाय नमः।

प्रार्थना-

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै ससतं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै निततां प्रणतां स्मताम्॥

श्री महाकाली यन्त्र

श्मशान साधना मे काली उपासना का बङा महत्व है। इसी सन्दर्भ मे महाकालीयन्त्र का प्रयोग शत्रु नाश, मोहन, मारण, उच्चाट्न आदि कार्यों मेंप्रयुक्त होता है। मध्य मे बिन्दू, पांच उल्ट कोण, तीन वृत कोण, अष्टदल वृतएवं भूरपुर से आवृत महाकाली का यन्त्र तैयार करे।

इस यन्त्र का पूजन करते समय शव पर आरुढ, मुण्ड्माला धारण की हुई, खड्ग, त्रिशूल, खप्पर व एक हाथ मे नर-मुण्ड धारण की हुई, रक्त जिह्वा लपलपाती हुईभयंकर स्वरुप वाली महाकाली का ध्यान किया जाता है। जब अन्य विद्यायें विफलहो जाती है तब इस यन्त्र का सहारा लिया जाता है।

महाकाली की उपासना अमोघ मानी गई है। इस यन्त्र के नित्य पूजन से अरिष्टबाधाओं का स्वतः ही नाश होकर शत्रुओ का पराभव होता है। शक्ति के उपासकों केलिए यह यन्त्र विशेष फलदायी है। चैत्र, आषाढ, आश्विन एवं माघ की अष्टमीइसकी साधना हेतु सर्वश्रेष्ठ काल माना गया है।

काली सम्बन्ध में तंत्र-शास्त्र के 250-300 के लगभग ग्रंथ माने गये हैं, जिनमें बहुत से ग्रथं लुप्त है, कुछ पुस्तकालयों में सुरक्षित है । अंशमात्र ग्रंथ ही अवलोकन हेतु उपलब्ध हैं । ‘काम-धेनु तन्त्र’ में लिखा है कि –

 “काल संकलनात् काली कालग्रासं करोत्यतः”। तंत्रों में स्थान-स्थान पर शिव नेश्यामा काली (दक्षिणा-काली) औरसिद्धिकाली(गुह्यकाली) को केवल“काली”संज्ञा से पुकारा हैं । दशमहाविद्या के मत से तथालघुक्रमऔरह्याद्याम्ताय क्रमके मत सेश्यामाकालीकोआद्या, नीलकाली (तारा) कोद्वितीयाऔरप्रपञ्चेश्वरी रक्तकाली(महा-त्रिपुर सुन्दरी) कोतृतीयाकहते हैं, परन्तु श्यामाकाली आद्या काली नहीं आद्यविद्या हैं ।पीताम्बरा बगलामुखी को पीतकाली भी कहा है।

कालिका द्विविधा प्रोक्ता कृष्णा – रक्ता प्रभेदतः ।
कृष्णा तु दक्षिणा प्रोक्ता रक्ता तु सुन्दरीमता ।।

काली के अनेक भेद हैं -

पुरश्चर्यार्णवेः-

१॰ दक्षिणाकाली, २॰ भद्रकाली, ३॰श्मशानकाली, ४॰ कामकलाकाली, ५॰ गुह्यकाली, ६॰ कामकलाकाली, ७॰ धनकाली, ८॰सिद्धिकाली तथा ९॰ चण्डीकाली ।

जयद्रथयामलेः-

१॰ डम्बरकाली, २॰ गह्नेश्वरी काली, ३॰एकतारा, ४॰ चण्डशाबरी, ५॰ वज्रवती, ६॰ रक्षाकाली, ७॰ इन्दीवरीकाली, ८॰धनदा, ९॰ रमण्या, १०॰ ईशानकाली तथा ११॰ मन्त्रमाता ।

सम्मोहने तंत्रेः-

१॰ स्पर्शकाली, २॰ चिन्तामणि, ३॰ सिद्धकाली, ४॰ विज्ञाराज्ञी, ५॰ कामकला, ६॰ हंसकाली, ७॰ गुह्यकाली ।
तंत्रान्तरेऽपिः-

१॰ चिंतामणि काली, २॰ स्पर्शकाली, ३॰ सन्तति-प्रदा-काली, ४॰ दक्षिणा काली, ६॰ कामकला काली, ७॰ हंसकाली, ८॰ गुह्यकाली ।

उक्त सभी भेदों में से दक्षिणा और भद्रकाली ‘दक्षिणाम्नाय’के अन्तर्गत हैं तथा गुह्यकाली, कामकलाकाली, महाकाली और महा-श्मशान-कालीउत्तराम्नायसे सम्बन्धित है ।

 काली की उपासना तीन आम्नायों से होती है । तंत्रों में कहा हैं “दक्षिणोपासकः का`लः” अर्थात्दक्षिणोपासकमहाकाल के समान हो जाता हैं ।उत्तराम्नायोपासाकज्ञान योग से ज्ञानी बन जाते हैं ।

ऊर्ध्वाम्नायोपासकपूर्णक्रम उपलब्ध करने से निर्वाणमुक्ति को प्राप्त करते हैं ।दक्षिणाम्नाय में कामकला काली को कामकलादक्षिणाकाली कहते हैं । उत्तराम्नायके उपासक भाषाकाली में कामकला गुह्यकाली की उपासना करते हैं । विस्तृतवर्णन पुरुश्चर्यार्णव में दिया गया है ।

गुह्यकाली की उपासना नेपाल में विशेष प्रचलित हैं । इसके मुख्य उपासकब्रह्मा, वशिष्ठ, राम, कुबेर, यम, भरत, रावण, बालि, वासव, बलि, इन्द्र आदिहुए हैं.

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राजगुरु जी

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सम्भोग से कुंडलिनी जागरण साधना



सम्भोग से कुंडलिनी जागरण साधना

भैरवी को माध्यम बनाकर सभी देवी-देवता, काल्पनिक शक्तियों से लेकर भूत-प्रेत-पिशाचिनी-डाकिनी तक सिद्ध किया जाता है।महाकाल, रूद्र, काली, दुर्गा, कमला, अर्द्धनारीश्वर, श्री कृष्ण, विष्णु आदि की भी सिद्धि कि जाती है।

नित्या रुपी सभी देवियों की साधना भैरवी के माध्यम से की जाती है। भैरव जी, अगिया बैताल आदि की भी। वस्तुतः यह कोई साधना नहीं है, साधना मार्ग है। इसमें कुछ भी सिद्ध किया जा सकता है। मन्त्र भी और काल्पनिक शक्तियां भी।

इसमें इस ज्ञान की आवश्यकता है कि किस बिंदु से किस शक्ति का सम्बन्ध है। जैसे कर्ण पिशाचिनी। यह वायुतत्व से सबन्धित शक्ति है। यानी कंठ और स्वाधिष्ठान चक्र। इसकी ताकत को आज्ञाचक्र पर केन्द्रित किया जाता है।

हमारे शरीर की एक ऊर्जा –संरचना है और इसमें पृथ्वी के वातावरण के अनुसार परिवर्तन होता रहा है। हमारी ज्योतिष विद्या इसी पर आधारित है। पर तन्त्र में इस वैज्ञानिक सत्य का प्रयोग दूसरे ही रूप में होता है। विशेषकर अघोर विद्या , महाकाल विद्या, श्री विद्या और भैरवी विद्या की साधानाओं में।

भैरवी साधनाओं में शरीर के विष एवं अमृत स्थानों का ज्ञान और उनकी चन्द्रमा की तिथि से ‘गति क्रम’ को जानना प्रत्येक साधक साधिका के लिए आवश्यक है।

 यदि कोई स्त्री-पुरुष का जोड़ा चाहे वह प्रेमी-प्रेमिका हो या पति-पत्नी इन अंगों इनकी गति को जानकर रात्रि में 9 बजे के बाद केवल विधिवत आपस में अंग न्यास करें ; तो उन दोनों को देवी-तत्व की प्राप्ति होती है और सुख –शांति के साथ कुछ अलौकिक शक्तियों की भी प्राप्ति होती हैं।

यह केवल भैरवी साधना का ही सत्य नहीं है। सभी प्रकार की सिद्धि-साधनाओं में पूजन की प्रक्रिया को जटिल से जटिलतम बनाया गया है। पर जब साधना की बात आती है, तो वातावरण, मुद्राओं, शरीर के चक्रों पर ध्यान लगाकर मंत्र जप करना ही सर्वत्र है। 

चाहे श्मसान में साधना करनी हो या घर में इसकी वास्तविक वैज्ञानिक प्रक्रिया यही है; शेष सभी तामझाम है; जो केवल संकल्प को और साधक की धैर्य सीमा को परसने के लिए लिए है। 

कारण यह है कि यहाँ भी सभी मार्ग के प्रसिद्ध आचार्यों ने मानसिक पूजा का ही महत्तव दिया है। मानसिक पूजा के बिना बाह्यपूजा  का कोई अर्थ नहीं है।.

भैरवी साधना के लिए इच्छुक भैरवियों का स्वागत है, व्हाट्सप्प पर सम्पर्क करें 

क्रमशः   

        आगे  जारी हैं :-----------

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प्रत्यंगिरा मोहनी प्रयोग





प्रत्यंगिरा मोहनी प्रयोग

विपरीत प्रत्यंगिरा मोहनी प्रयोग

मंत्र : ऊँ हूँ मोहिनी स्प्रे स्प्रे मम ( शत्रुन ) मोहय मोहय फें हूँ फट् स्वाहा

L "शत्रुन " की 
जगह साध्य का नाम और स्मरण करें

हवन : हवन के लिए देशी गाय के दुध में पकायी हुई खीर में शहद 
मिलाकर 108 बार उपरोक्त मंत्र से हवन करने से साध्य व्यक्ति का 
आप से आकर्षण हो जाता है

मेरा अनुभव किया हुआ प्रयोग है.

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Wednesday, August 29, 2018

अघोर लक्षमी साधना




अघोर लक्षमी साधना

अघोर लक्षमी साधना ।।। 108 लक्षमी को आबद्ध करने की कला ।।। आप जो भी अघोर लक्षमी दीक्षा ले चुके माँ की कृपा हेतु कीजिये।।।

धर्म अर्थ काम और मोक्ष जीवन के चार मुख्य स्तंभ है. इन सभी पक्षों मे व्यक्ति पूर्णता प्राप्त करे यही उद्देश्य साधना जगत का भी है.

 इसी लिए व्यक्ति के गृहस्थ और आध्यात्मिक दोनों पक्ष के सबंध मे साधनाओ का अस्तित्व बराबर रहा है. हमारे ऋषि मुनि जहा एक और आध्याम मे पूर्णता प्राप्त थे वही भौतिक पक्ष मे भी वह पूर्ण रूप से सक्षम थे. 

साधना के सभी मार्गो मे इन मुख्य स्तंभों के अनुरूप साधनाऐ विद्यमान है ही. इस प्रकार अघोर साधनाओ मे भी गृहस्थ समस्याओ सबंधित निराकरण को प्राप्त करने के लिए कई साधना विद्यमान है. 

इन साधनाओ का प्रभाव अत्यधिक तीक्ष्ण होता है, तथा व्यक्ति को अल्प काल मे ही साधना का परिणाम तीव्र ही मिल जाता है. धन का निरंतर प्रवाह आज के युग मे ज़रुरी है. 

साधक के लिए यह एक नितांत सत्य है की सभी पक्षों मे पूर्णता प्राप्त करनी चाहिए. जब तक व्यक्ति भोग को नहीं जानेगा तब तक वह मोक्ष को भी केसे जान पाएगा. 

इस मुख्य चिंतन के साथ हर एक प्रकार की साधना का अपना ही एक अलग स्थान है. व्यक्ति चाहे कितना भी परिश्रम करे लेकिन भाग्य साथ ना दे तो सफलता मिलना सहज नहीं है. 

ऐसे समय पर व्यक्ति को साधनाओ का सहारा लेना चाहिए तथा अपने कार्यों की सिद्धि के लिए देवत्व का सहारा लेना चाहिए. पूर्णता प्राप्त करना हमारा हक़ है और साधनाओ के माध्यम से यह संभव है. 

किसी भी कार्य के लिए व्यक्ति को आज के युग मे पग पग पर धन की आवश्यकता होती है. हर व्यक्ति का सपना होता हे की वह श्रीसम्प्पन हो. 

लक्ष्मी से सबंधित कई प्रयोग अघोर मार्ग मे निहित है लेकिन जब बात तीव्र धन प्राप्ति की हो तो अघोर मार्ग की साधनाए लाजवाब है. अघोरियो के प्रयोग अत्यधिक त्वरित गति से कार्य करते है तथा इच्छापूर्ति करते है.

 आकस्मिक रूप से धन की प्राप्ति करने के लिए जो विधान है उसके माध्यम से व्यक्ति को किसी न किसी रूप मे धन की प्राप्ति होती है तथा त्वरित गति से होती है. 

इस महत्वपूर्ण और गुप्त विधान को साधक सम्प्पन करे तब चाहे कितने भी भाग्य रूठे हुए हो या फिर परिश्रम सार्थक नहीं हो रहे हो, व्यक्ति को निश्चित रूप से धन की प्राप्ति होती ही है.

साधक अष्टमी या अमावस्या की रात्रि को स्मशान मे जाए तथा तेल का दीपक लगाये. अपने सामने लाल वस्त्र बिछा कर ५ सफ़ेद हकीक पत्थर रखे तथा उस पर कुंकुम की बिंदी लगाये. 

साधक के वस्त्र लाल रहे. तथा दिशा उत्तर या पूर्व. उसके बाद साधक सफ़ेद हकीक माला से निम्न मंत्र की २१ माला जाप करे.

ॐ शीघ्र सर्व लक्ष्मी वश्यमे अघोरेश्वराय फट

साधक को यह क्रम ५ दिन तक करना चाहिए. ५ वे दिन उन हकिक पथ्थरो को उसी लाल कपडे मे पोटली बना कर अपनी तिजोरी या धन रखने के स्थान मे रख दे.

राजगुरु जी

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शीघ्रफ़लदायी बगलामुखी साधना




शीघ्रफ़लदायी बगलामुखी साधना



तंत्र शास्त्र भारत की एक प्राचीन विद्या है। तंत्र ग्रंथ भगवान शिव के मुख से आविर्भूत हुए हैं। उनको पवित्र और प्रामाणिक माना गया है। भारतीय साहित्य में 'तंत्र' की एक विशिष्ट स्थिति है, पर कुछ साधक इस शक्ति का दुरुपयोग करने लग गए, जिसके कारण यह विद्या बदनाम हो गई।

तंत्र शास्त्र वेदों के समय से हमारे धर्म का अभिन्न अंग रहा है। वैसे तो सभी साधनाओं में मंत्र, तंत्र एक-दूसरे से इतने मिले हुए हैं कि उनको अलग-अलग नहीं किया जा सकता, पर जिन साधनों में तंत्र की प्रधानता होती है, उन्हें हम 'तंत्र साधना' मान लेते हैं। 'यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे' की उक्ति के अनुसार हमारे शरीर की रचना भी उसी आधार पर हुई है जिस पर पूर्ण ब्रह्माण्ड की। तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। इसके लिए अन्तर्मुखी होकर साधनाएँ की जाती हैं। तांत्रिक साधना को साधारणतया तीन मार्ग : वाम मार्ग, दक्षिण मार्ग व मध्यम मार्ग कहा गया है।

श्मशान में साधना करने वाले का निडर होना आवश्यक है। जो निडर नहीं हैं, वे दुस्साहस न करें। तांत्रिकों का यह अटूट विश्वास है, जब रात के समय सारा संसार सोता है तब केवल योगी जागते हैं।

तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। यह एक अत्यंत ही रहस्यमय शास्त्र है । चूँकि इस शास्त्र की वैधता विवादित है अतः हमारे द्वारा दी जा रही सामग्री के आधार पर किसी भी प्रकार के प्रयोग करने से पूर्व किसी योग्य तांत्रिक गुरु की सलाह अवश्य लें। अन्यथा किसी भी प्रकार के लाभ-हानि की जिम्मेदारी आपकी होगी।

ऋषियों की मान्यता है कि सृष्टि की उत्पत्ति आदि के रहस्य का पूर्ण ज्ञान आगम-विद्या के माध्यम से ही सम्भव है। सम्पूर्ण विश्व-विद्या होने के कारण इसे महाविद्या की संज्ञा प्राप्त है। महाविद्याएं संख्या में दस हैं और इनका ‘मुंडमाला तन्त्र’ तथा ‘चामुंडा तन्त्र’ में विस्तृत उल्लेख है।

 आठवीं महाविद्या बगलामुखी एकवक्त्र महारुद्र की महाशक्ति है। यह शक्ति माया-मोह भ्रम पर प्राणी की विजय की प्रतीक है। बगलामुखी को अग्नि पुराण में सिद्ध-विद्या कहा गया है :

काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी।
भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा॥
बगला सिद्ध विद्याच मातंगी कमलाऽऽत्मिका।
एतादश महाविद्या: सिद्ध विद्या: प्रकीर्तिता:॥

देवी के बगलामुखी नाम से यह धारणा प्रचलित है कि मां का मुख बगुला पक्षी के समान है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं। वैदिक शब्द ‘बग्ला’ है, जिसका अपभ्रंश बगला बन गया है और इसी नाम से देवी की लोकप्रियता है। मां का दूसरा नाम पीतांबरा भी है- पीले हैं वस्त्र जिसके। समूचे विश्व में देवी की तांत्रिक सिद्ध-पीठ दतिया में है। 

झांसी (उत्तर प्रदेश) के समीप मध्य प्रदेश का एक छोटा-सा जनपद है – दतिया। ‘जन-जन के गले का हार’ दतिया की आज समूचे विश्व में पहचान स्तंभन-सम्मोहन की मातृशक्ति मां पीतांबरा की शक्ति-पीठ के कारण है। दतिया की पीतांबरा-पीठ जिस स्थान पर स्थित है, वहां पहले श्मशान भूमि थी।

 जनश्रुति के अनुसार पीठ के संस्थापक स्वामी जी ने महाभारतकालीन गुरु द्रोणाचार्य के अमृतजीवी पुत्र अश्वत्थामा के कहने पर इस क्षेत्र को अपनी लीला-भूमि के रूप में चुना।

 स्वामी जी का क्या नाम था — इसके संबंध में किसी को कोई जानकारी नहीं। भक्तजनों का कहना है कि सन् 1929 में धौलपुर (राजस्थान) से उनका यहां आगमन हुआ था। उन्होंने काशी में संन्यास ग्रहण किया था।

 दतिया में उस समय घने जंगल के मध्य एकमात्र चबूतरे पर जीर्ण-शीर्ण स्थिति में वन-खंडेश्वर महादेव का मंदिर था। जनश्रुति के अनुसार इस मंदिर की स्थापना अश्वत्थामा द्वारा हुई थी।

 स्वामी जी ने यहां निर्जन स्थान में मां पीतांबरा की आराधना की, मां ने जिस कुटिया में ध्यान लीन स्वामी जी को दर्शन दिए, वहीं ज्येष्ठ कृष्ण गुरुवार पंचमी सन् 1934-35 में मां के मंदिर की स्थापना हुई। यहां पर श्रीगणेश, श्री बटुक भैरव, श्री काल भैरव, श्री परशुराम, श्री हनुमान, षड़ाम्राया शिव ‘तत्पुरुष’, अघोर, ईशान, वामदेव, नीलकंठ तथा सद्यो जाता मां प्राण-प्रतिष्ठित हैं। स्वामी जी ने यहां ‘धूमावती’ की भी स्थापना की। 

देवी का सम्पूर्ण विश्व में यही एकमात्र मंदिर है। भक्तजनों का दावा है कि स्वामी जी के जीवनकाल में इस पीठ में मां पीतांबरा की आरती के बाद ‘धूमावती’ प्रत्यक्ष रूप में भक्तों के साथ पंक्ति में खड़ी होकर पीतांबरा का प्रसाद ग्रहण करती थी।

त्वरित फलदायी साधना में बगलामुखी का मंत्र 36 अक्षरों का है : -

ऊं ह्रीं बगलामुखि, सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभ्य।
जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ऊ स्वाहा॥

भगवती को पीत वस्त्र प्रिय हैं और 36 की संख्या। इसी कारण 3600, 36,000-इसी क्रम में मंत्र जाप के अनुष्ठान विशेष फलदायक माने जाते हैं। यह आराधना वीरवार रात्रि (मकर राशि में सूर्य के होने पर चतुर्दशी, मंगलवार) को विशेष सिद्धिदायक मानी गई है।

बगलामुखी मन्त्र प्रयोग

संकल्पः-

 ॐ अद्यैतस्य…………………….अमुक-मासे अमुक-पक्षे अमुक वासरे अमुक-गोत्रोत्पन्नो अमुक-शर्माऽहं (वर्माऽहं, गुप्तोऽहं वा) मम स्व-शरीरस्य (मम अमुक-यजमानस्य शरीरस्य वा) सम्पूर्ण-रोग-समूह-वात्तिक-पैत्तिक-श्लैष्मिक-द्वन्द्वज-नाना-रोगा-दुष्ट-रोगा-जन्मज-पातकज-नाना-ग्रहोपग्रह-प्रयोग-ग्रह-प्रवेश-ग्रह-प्रयोग-ग्रहादि-शान्त्यर्थे सर्व-ग्रहोच्चाटनार्थे श्रीबगलामुखी-देवता-मन्त्रस्य अयुत-जप-तद्-दशांश-होम-तर्पण-मार्जनाय संकल्पमहं करिष्ये ।

विनियोगः-

 ॐ अस्य श्रीबगलामुखी-मन्त्रस्य नारद ऋषिः । त्रिष्टुप् छन्दः । बगलामुखी देवता । ह्लीं बीजं । स्वाहा शक्तिः । मम शरीरे (यजमानस्य शरीरे वा) नाना-ग्रहोपग्रह-प्रयोग-ग्रह-प्रवेश-ग्रह-प्रयोग-सम्पूर्ण-रोग-समूह-वात्तिक-पैत्तिक-श्लैष्मिक-द्वन्द्वजादि-नाना-दुष्ट-रोग-जन्मज-पातकजादि-शान्त्यर्थे सर्व-दुष्ट-बाधा-कष्ट-कारक-ग्रहस्य उच्चाटनार्थे शीघ्रारोग्य-लाभार्थे एवं मम अन्य-अभीष्ट-कार्य-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

ऋष्यादिन्यासः- 

नारद ऋषये नमः शिरसि । त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे । बगलामुखी देवतायै नमः हृदि । ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये । स्वाहा शक्तये नमः पादयोः । मम शरीरे (यजमानस्य शरीरे वा) नाना-ग्रहोपग्रह-प्रयोग-ग्रह-प्रवेश-ग्रह-प्रयोग-सम्पूर्ण-रोग-समूह-वात्तिक-पैत्तिक-श्लैष्मिक-द्वन्द्वजादि-नाना-दुष्ट-रोग-जन्मज-पातकजादि-शान्त्यर्थे सर्व-दुष्ट-बाधा-कष्ट-कारक-ग्रहस्य उच्चाटनार्थे शीघ्रारोग्य-लाभार्थे एवं मम अन्य-अभीष्ट-कार्य-सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।

राज गुरु जी

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शिव भैरवी का योनि लिंग कुण्डलिनी तंत्र विद्या चक्र ज्ञान




शिव भैरवी का योनि लिंग कुण्डलिनी  तंत्र विद्या चक्र ज्ञान 

भगवती उन्हें सद्बुद्धि दे जो योनि पूजा को हेय दृष्टि से देखते हैं ,उन्हें पता नहीं कि वह जननी शक्ति ,श्रृष्टि शक्ति को हेय दृष्टि से देख रहे हैं | महादेव उनपर कोप न करें जो योनि पूजा नहीं करते हैं ,वह नहीं जानते की इसके बिना कोई साधना पूर्ण नहीं है | भगवती और महादेव की अति कृपा है की उन्होंने हमें यह ज्ञान दिया और हम शक्ति साधक हुए |हमें गर्व है की हम योनिपूजक हैं ,हम भैरवी साधक हैं ,हम शक्ति साधक हैं और हम उनकी शक्ति से कुंडलिनी साधना मार्ग पर अग्रसर हो सके |इस हेतु हम उनके कृतज्ञ हैं

लिंग पूजा पूरे विश्व में होती है ,सभी बड़ी ख़ुशी से छू छू कर करते हैं , पर योनिपूजा के नाम पर नाक भौं सिकुड़ता है ,जबकि मूल उत्पत्ति कारक यही है |  इसे मूर्खता और छुद्र मानसिकता नहीं तो और क्या कहेंगे |

जो लोग काम भावना से परेशान हैं। कामुकता से पीड़ित हैं ।सदैव न चाहते हुए भी दिमाग इस ओर ही जाता है ।पूजा पाठ में भी भावना शुद्ध नहीं तह पाती ।कामुकता जगती है ।अपराधबोध उपजता है ।वह मुक्ति चाहते है ।साधना करना चाहते हैं ।शक्ति पाना चाहते हैं ।उनके लिए भैरवी तंत्र मार्ग सर्वोत्तम है ।प्राकृतिक नियमो पर आधारित ऐसी साधना जो वह दे सकती है जो अन्य कोई साधना मुश्किल से दे पाती है ।काम उर्जा मोक्ष तक दिला सकती है ।

स्कन्द पुराण में भगवान् शिव ने ऋषि नारद को नाद ब्रह्म का ज्ञान दिया है और मनुष्य देह में स्थित चक्रों और आत्मज्योति रूपी परमात्मा के साक्षात्कार का मार्ग बताया है .स्थूल,सूक्ष्म और कारण शरीर प्रत्येक मनुष्य के अस्तित्व में हैं .

सूक्ष्म शारीर में मन और बुद्धि हैं .मन सदा संकल्प -विकल्प में लगा रहता है ;बुद्धि अपने लाभ के लिए मन के सुझावों को तर्क -वितर्क से विश्लेषण करती रहती है .कारण या लिंग शरीर ह्रदय में स्थित होता है जिसमें अहंकार और चित्त मंडल के रूप में दिखाई देते हैं .

अहंकार अपने को श्रेष्ठ और दूसरों के नीचा दिखने का प्रयास करता है और चित्त पिछले अनेक जन्मोंके घनीभूत अनुभवों,को संस्कार के रूप में संचित रखता है .आत्मा जो एक ज्योति है इससे परे है किन्तु आत्मा के निकलते ही स्थूल शरीर से सूक्ष्म और कारण शरीर अलग हो जाते हैं .कारण शरीर को लिंग शरीर भी कहा गया हैं क्योंकि इसमें निहित संस्कार ही आत्मा के अगले शरीर का निर्धारण करते हैं .

आत्मा से आकाश आकाश से वायु ;वायु से अग्नि 'अग्नि से जल और जल से पृथ्वी की उत्पत्ति शिवजी ने बतायी है पिछले कर्म द्वारा प्रेरित जीव आत्मा, वीर्य जो की खाए गए भोजन का सूक्ष्मतम तत्व है, के र्रूप में परिणत हो कर माता के गर्भ में प्रवेश करता है जहाँ मान के स्वभाव के अनुसार उसके नए व्यक्तित्व का निर्माण होता ह.

 गर्भ में स्थित शिशु अपने हाथों से कानों को बंद करके अपने पूर्व कर्मों को याद करके पीड़ित होता और और अपने को धिक्कार कर गर्भ से मुक्त होने का प्रयास करता है .जन्म लेते ही बाहर की वायु का पान करते ही वह अपने पिछले संस्कार से युक्त होकर पुरानी स्मृतियों को भूल जाता है . 

शरीर में सात धातु हैं त्वचा ,रक्त ,मांस वसा ,हड्डी ,मज्जा और वीर्य(नर शरीर में ) या रज (नारी शरीर में ). देह में नो छिद्र हैं ,-दो कान ,दो नेत्र ,दो नासिका ,मुख ,गुदा और लिंग .स्त्री शरीर में दो स्तन और एक भग यानी गर्भ का छिद्र अतिरिक्त छिद्र हैं .

स्त्रियों में बीस पेशियाँ पुरुषों से अधिक होती हैं . उनके वक्ष में दस और भग में दस और पेशियाँ होती हैं .योनी में तीन चक्र होते हैं तीसरे चक्र में गर्भ शैय्या स्थित होती है .लाल रंग की पेशी वीर्य को जीवन देती है .शरीर में एक सो सात मर्म स्थान और तीन करोड़ पचास लाख रोम कूप होते हैं .जो व्यक्ति योग अभ्यास में निरत रहता है वह नाद ब्रह्म और तीनों लोकों को सुखपूर्वक जानता और भोगता है .

 मूल आधार

 स्वाधिष्ठान ,मणिपूरक ,अनाहत ,विशुद्ध ,आज्ञा और सहस्त्रार नामक साथ ऊर्जा केंद्र शरीर में है जिन पर ध्यान का अभ्यास करने से देवीय शक्ति प्राप्त होती है .सहस्रार में प्रकाश दीखने पर वहां से अमृत वर्षा का सा आनंद प्राप्त होता है जो मनुष्य शरीर की परम उपलब्धि है .

जिसको अपने शरीर में दिव्य आनंद मिलने लगता है वह फिर चाहे भीड़ में रहे या अकेले में ;चाहे इन्द्रियों से विषयों को भोगे या आत्म ध्यान का अभ्यास करे उसे सदा परम आनंद और मोह से मुक्ति का अनुभव होता है .

 मनुष्य का शरीर अनु -परमाणुओं के संघटन से बना है . जिस तरह इलेक्ट्रौन,प्रोटोन ,सदा गति शील रहते हैं किन्तु प्रकाश एक ऊर्जा मात्र है जो कभी तरंग और कभी कण की तरह व्यवहार करता है उसी तरह आत्म सूर्य के प्रकाश से भी अधिक सूक्ष्म और व्यापक है .

 यह इस तरह सिद्ध होता है की सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक आने में कुछ मिनट लगे हैं जब की मनुष्य उसे आँख खोलते ही देख लेता है .

अतः आत्मा प्रकाश से भी सूक्ष्म है जिसका अनुभव और दर्शन केवल ध्यान के माध्यम से होता है . जब तक मन उस आत्मा का साक्षात्कार नहीं कर लेता उसे मोह से मुक्ति नहीं मिल सकती . 

मोह मनुष्य को भय भीत करता है क्योंकि जो पाया है उसके खोने का भय उसे सताता रहता है जबकि आत्म दर्शन से दिव्य प्रेम की अनुभूति होती है जो व्यक्ति को निर्भय करती है क्योंकि उसे सब के अस्तित्व में उसी दिव्य ज्योति का दर्शन होने लगता है |

राज गुरु जी

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राज्यलक्ष्मी (महायोग लक्ष्मी) मांत्रोक्त साधना




राज्यलक्ष्मी (महायोग लक्ष्मी) मांत्रोक्त साधना

यह साधना राज्य पक्ष को अपने अनुकूल करने की साधना है। राज्य का तात्पर्य व्यक्ति के जीवन में कर, मुकदमा इत्यादि से आने वाली बाधाओं से है।

 हर व्यक्ति का नित्य राज्य -पक्ष के पचास कार्यालयों में कार्य पड़ता है और यदि ये कार्य सरल रूप से हो जाए तो व्यक्ति अपने जीवन में शीघ्र उन्नति कर सकता है और इसका एक ही उपाय है, राज्य लक्ष्मी महायोग मांत्रोक्त साधना।

केवल व्यापारी ही नहीं, सामान्य वर्ग भी राज्यपक्ष से विवाद में फंसना नहीं चाहता क्योंकि सामान्य व्यक्ति के पास इतने साधन नहीं होते, जिससे वह पुरे राजतंत्र और उसकी जटिलताओं से बच कर निकल सके। ऐसे में क्या उपाय शेष रह जाता है?

 क्या व्यक्ति ऐसे ही विभिन्न कार्यालयों के चक्कर काटता रहे और अपने जीवन के सुख-चैन, शांति के क्षण दिन-दिन भर कोर्ट कचहरी के जटिल और उबाऊ कार्य पद्धति में खपा दे? 

क्या वह एक सामान्य से कार्य के लिए अधिकारियों के दरवाजे पर नाक घिसता रहे और अपने स्वाभिमान व आत्मसम्मान को गिरवी रख दे? 

निश्चित रूप से नहीं। ऐसी दशा में तो एक ही प्रयोग शेष रह जाता है, की वह अपने जीवन में पूर्णता से राज्यलक्ष्मी की साधना सम्पन्न करे। इस लेख में दिए गए अन्य प्रयोगों की भांति यह भी तांत्रोक्त प्रयोग है।

जीवन में व्याप्त ऐसी प्रत्येक कटु व अपमानजनक स्थितियों के निवारण की व्यावहारिक विधि है। निवारण का तात्पर्य यह नहीं होता हम किसी का विनाश कर देंगे, अपितु यह होता है कि दुर्भाग्यवश जो हमारे जीवन में प्रतिकूल स्थिति है वह समाप्त हो, तथा अनुकूलता प्रारम्भ हो। राज्यलक्ष्मी प्रयोग ऐसा ही प्रयोग है, राज्य पक्ष में मधुरता व सहजता की स्थिति निर्मित करने का प्रयोग है।

साधक के लिए आवश्यक है कि वे पूर्ण रूप से सिद्ध लक्ष्मी लघु शंख प्राप्त करें और उसे पूरी तरह से काजल में रंग दे तथा मूंगे की माला द्वारा निम्न मंत्र का पांच माला मंत्र जप करें।

यह प्रयोग मंगलवार के दिन ही किया जा सकता है। मंत्र जप की समाप्ति पर साधक मूंगे की माला को स्वयं धारण करें तथा शंख को काले कपड़े में लपेट कर जेब अथवा बैग में रखें जिस पर किसी कि नजर न पड़े।

मंत्र
॥ ॐ श्रीं श्रीं राज्यलक्ष्म्यै नमः ॥

जब भी आवश्यकता हो, तब उपरोक्त शंख को वार्तालाप करते समय अपने साथ ले जाएं और आप पाएंगे कि स्थितियां आपके अनुकूल हो रही हैं। अनावश्यक रूप से लगने वाली बाधाएं और अड़चनें समाप्त हो रही हैं तथा आपके प्रति सहयोग का वातावरण बनने लगा है।

 सामान्य साधक भी ऐसे शंख को अपने साथ रखकर जिस दिन मुकदमों में पेशी हो या कहीं अन्य कोई महत्वपूर्ण कार्य हो तो इसका प्रभाव प्रत्यक्ष अनुभव कर सकते हैं।

राज गुरु जी

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गुरु गोरखनाथ का सरभंगा (जञ्जीरा) मन्त्र




गुरु गोरखनाथ का सरभंगा (जञ्जीरा) मन्त्र

“ॐ गुरुजी में सरभंगी सबका संगी, दूध-मास का इक-रणगी, अमर में एक तमर दरसे, तमर में एक झाँई, झाँई में परछाई दरसे, वहाँ दरसे मेरा साँई। मूल चक्र सर-भंग आसन, कुण सर-भंग से न्यारा है, वाँहि मेरा श्याम विराजे। ब्रह्म तन्त से न्यारा है, औघड़ का चेला-फिरुँ अकेला, कभी न शीश नावाऊँगा, पुत्र-पूर परत्रन्तर पूरुँ, ना कोई भ्रान्त ल्लावूँगा, अजर-बजर का गोला गेरूँ परवत पहाड़ उठाऊँगा, नाभी डंका करो सनेवा, राखो पूर्ण बरसता मेवा, जोगी जुग से न्यारा है, जुग से कुदरत है न्यारी, सिद्धाँ की मुँछयाँ पकड़ो, गाड़ देओ धरणी माँही, बावन भैरुँ, चौंसठ जोगन, उलटा चक्र चलावे वाणी, पेडू में अटके नाड़ा, ना कोई माँगे हजरत भाड़ा, मैं भटियारी आग लगा दियूँ, चोरी चकारी बीज मारी, सात राँड दासी म्हारी, वाना-धारी कर उपकारी, कर उपकार चल्यावूँगा, सीवो दावो ताप तिजारी, तोडूँ तीजी ताली, खट-चक्र का जड़ दूँ ताला, कदेई ना निकले गोरख बाला, डाकिनी शाकिनी, भूताँ जा का करस्यूँ जूता, राजा पकडूँ, हाकिम का मुँह कर दूँ काला, नौ गज पाछे ठेलूँगा, कुँएं पर चादर घालूँ गहरा, मण्ड मसाणा, धुनी धुकाऊँ नगर बुलाऊँ डेरा। यह सरभंग का देह, आप ही कर्ता, आपकी देह, सरभंग का जाप सम्पूर्ण सही, सन्त की गद्दी बैठ के गुरु गोरखनाथ जी कही।”

विधिः-

किसी एकान्त स्थान में धूनी जलाकर उसमें एक चिमटा गाड़ दें। उस धूनी में एक रोटी पकाकर पहले उसे चिमटे पर रखें। इसके बाद किसी काले कुत्ते को खिला दें।

धूनी के पास ही पूर्व तरफ मुख करके आसन बिछाकर बैठ जाएँ तथा २१ बार उक्त मन्त्र का जप करें।

उक्त क्रिया २१ दिन तक करने से मन्त्र सिद्ध हो जाता है। सिद्ध होने पर ३ काली मिर्चों पर मन्त्र को सात बार पढ़कर किसी ज्वर-ग्रस्त रोगी को दिया जाए, तो आरोग्य-लाभ होता है।

भूत-प्रेत, डाकिनी, शाकिनी, नजर झपाटा होने पर सात बार मन्त्र से झाड़ने पर लाभ मिलता है। कचहरी में जाना हो, तो मन्त्र का ३ बार जप करके जाएँ। इससे वहाँ का कार्य सिद्ध होगा

राज गुरु जी

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Monday, August 27, 2018

हेरम्ब गणपति साधना



हेरम्ब गणपति साधना

रोग, चिंता, सर्वदुःख निवारण के लिए 

रोग, चिंता, मानसिक तनाव आदि मानव जीवन का अभिशाप है, जो अच्छे-भले चल रहे जीवन में विष घोल देता है। 

रोग छोटा या बड़ा कोई भी हो, यदि उसका समय पर निवारण न किया जाए, तो मनुष्य की समस्त कार्यशक्ति क्षीण हो जाती है, और वह कुछ भी नहीं कर पाता है, दूसरों की दया दृष्टी पर निर्भर होकर मात्र पंगु बनकर रह जाता है। 

आज जिस वातावरण में हम सांस ले रहे है, इसमे मनुष्य का रोगी होना स्वाभाविक है। जहां न शुद्ध वायु है, न जल है, और न ही शुद्ध भोजन है, ऐसी स्थिति में रोगी होना कोई आश्चर्यजनक नहीं। इसलिए मधुमेह, ह्रदय रोग, टी. बी. आदि असाध्य रोग तीव्रता से हो रहे है।

हेरम्ब गणपति साधना आरोग्य एवं मानसिक शांति प्राप्ति का एक सुंदर उपाय है, इसके प्रभाव से जहां कायाकल्प होता है, वहीं साधक में एक संजीवनी शक्ति का संचार होता है, जिससे उसे कैसा भी भयंकर रोग हो, उस पर नियंत्रण प्राप्त कर वह स्वस्थ, यौवनवान बन जाता है।

आप प्रातः स्नान आदि नित्य क्रिया के बाद अपने पूजा स्थान में पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठें। धुप और दीप जला लें। अपने सामने पंचपात्र में जल भी ले लें।

 इन सभी सामग्रियों को आप चौकी पर रखें जिस पर लाल वस्त्र बिछा हुआ हो। पहले स्नान, तिलक, अक्षत, धुप, दीप, पुष्प आदि से गुरु चित्र का संक्षिप्त पूजन करें। उसके बाद गुरु मंत्र की दो माला जप करें।

गणपति पूजन

फिर गुरु चित्र के सामने किसी प्लेट पर कुंकुम या केसर से स्वस्तिक चिन्ह बनाकर 'हेरम्ब गणपति यंत्र' को स्थापित करें।

दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करें -

ॐ गनाननं भूत गणाधिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारू भक्षणं ।
उमासुतं शोकविनाशकरकंनमामि विघ्नेश्वर पंड़्क्जम ॥

फिर निम्न मंत्रों का उच्चारण करते हुए पूजन करें -

ॐ गं मंगलमूर्तये नमः समर्पयामी ।
ॐ गं एकदन्ताय नमः तिलकं समर्पयामी ।
ॐ गं सुमुखाय नमः अक्षतान समर्पयामी ।
ॐ गं लम्बोदराय नमः धूपं दीपं अघ्रापयामी , दर्शयामि ।
ॐ गं विघ्ननाशाय नमः पुष्पं समर्पयामी ।

इसके बाद अक्षत और कुंकुम से निम्न मंत्र बोलते हुए यंत्र पर चढाएं -

ॐ लं नमस्ते नमः । ॐ त्वमेव तत्वमसि । ॐ त्वमेव केवलं कर्त्तासि ।
ॐ त्वमेवं केवलं भार्तासि । ॐ त्वमेवं केवलं हर्तासी । 

फिर 'हेरम्ब माला' से निम्न मंत्र की ५ माला ११ दिन तक जप करे -

ॐ क्लीं ह्रीं रोगनाशाय हेरम्बाय फट

राज गुरु जी

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सर्व दोष नाशक - भगवती दुर्गा साधना




सर्व दोष नाशक  - भगवती दुर्गा साधना

भगवती दुर्गा का रूप अपने आप मे साधको के मध्य हमेशा से ही अत्याधिक प्रचलित रहा है। बुराई पर अच्छाई की जित का प्रतीक है देवी। दुर्गा के कई रूपों की साधना तन्त्र ग्रंथो मे निहित है। देवी नित्य कल्याणमई है तथा अपने साधको पर अपनी अमी द्रष्टि सदैव रखती है।

 भगवती की साधना करना जीवन का एक अत्यधिक उच्च सोपान है। व्यक्ति अपने कर्म दोषों से जब तक मुक्त नहीं होता तब तक उन्नति की गति मंद रूप से ही चलती है चाहे वह भौतिक क्षेत्र हो या आध्यात्मिक क्षेत्र हो।

 भौतिक रूप मे चाहे हम कर्मफलो को प्राप्त कर दोषों का निवारण एक बार कर भी ले लेकिन मानसिक दोषों तथा मन मे जो उन दोषों का अंश रह गया है उसका शमन भी उतना ही ज़रुरी है जितना भौतिक दोषों का निवारण। कई बार व्यक्ति अपने अत्यधिक परिश्रमो के बाद भी सफलता को प्राप्त नहीं कर सकता है। या फिर कोई न कोई बाधा व्यक्ति के सामने आ जाती है, या फिर परिवारजनो से अचानक ही अनबन होती रहती है। 

इन सब के पीछे कही न कही व्यक्ति के वे दोष शामिल होते है जो की पाप कर्मो के आचरण से उन पर हावी हो जाते है। चाहे वह इस जन्म से सबंधित हो या पूर्व जन्म के संदर्भ मे।

 कर्म की गति न्यारी है लेकिन साधना का भी अपने आप मे एक विशेष महत्व है, साधना के माध्यम से हम अपने दोषों की समाप्ति कर सकते है, निवृति कर सकते है। इस प्रकार की साधनाओ मे भगवती की साधनाए आधार रूप रही है। 

भगवती की साधना मात्रु स्वरुप मे ही ज्यादातर की जाती है। इस महत्वपूर्ण साधना को सम्प्पन करने पर साधक की भौतिक तथा आध्यात्मिक गति मंद से तीव्र हो जाती है, समस्त बाधाओ का निराकारण होता है तथा व्यक्ति अपने दोषों से मुक्त हो कर निर्मल चित युक्त बन जाता है। आगे के सभी कार्यों मे देवी साधक की सहायता करती है तथा साधक का सतत कल्याण होता रहता है।

इस साधना को करने के लिए साधक के पास शुद्ध पारद दुर्गा विग्रह हो तो ज्यादा अच्छा है, लेकिन यह संभव नहीं हो तो साधक को देवी दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति को अपने सामने स्थापित करना चाहिए। 

साधक इस साधना को रविवार से शुरू करे। रात्री काल मे 11 बजे के बाद इस साधना को शुरू करना चाहिए।

 साधक लाल वस्त्र पहन कर लाल आसान पर बैठ कर देवी का पूजन करे तथा उसके बाद निम्न मंत्र की मूंगामाला से 21 माला जाप करे। साधक चाहे तो 51 माला भी जाप कर सकता है। दिशा उत्तर रहे।

ओम दुं सर्वदोष शमनाय सिंहवासिनि नमः

यह क्रम 11 दिनों तक रहे। 11 वे दिन साधक को मंत्रजाप के बाद शुद्ध घी की 108 आहुति यही मन्त्र से अग्नि मे प्रदान करे तो संभव हो। 

साधना काल मे कमल की सुगंध आने लगती है तथा सौभाग्यशाली साधको को देवी बिम्बात्मक रूप से दर्शन भी देती है। 

साधना के दिनों मे ही उत्तरोत्तर साधक का चित निर्मलता की और अग्रसर होता रहता है जिसे साधक स्पष्ट रूप से अनुभव कर पाएगा।

राजगुरु जी 

महाविद्या आश्रम  ( राजयोग पीठ  ) फॉउन्डेशन ट्रस्ट  ( रजि . )

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Sunday, August 26, 2018

प्रेम प्राप्ति महायोगमाया मोहिनी साधना



प्रेम प्राप्ति महायोगमाया मोहिनी साधना

 असल में मोहिनी देवी योग माया है !और योग माया दो स्वरूप में है एक तो वोह जो अपने मोह माया में प्राणिओ को उलझय रखती है !

 देवी मोहिनी के दिव्य अशीर्बाद से ही मोह माया के बंदन से निकल सकते है! और अपनी साधना को पूरा कर सकते है बिना माया भंग हुए साधना में सफलता का शांशय रेहता है !

 दूसरा इस जीवन में भोतिक सुखो की कामना हर एक मनुष्य को रहती है और उनकी पूर्ति के लिए भी हम मोहिनी देवी से प्रथना कर सकते है देवी मोहिनी सर्व पापो से मुक्त कर साधक को अपूर्व सोंद्र्य और समोहन प्रदान करती है और हर प्रकार के भोतिक सुख देवी है ! 

दूसरा स्वरूप प्रेम का है अगर आप किसी से प्रेम करते है और उस प्रेम की प्राप्ति के लिए भी इस विशव मोहिनी के स्वरूप की उपासना कर सकते है ! क्यू के देवी योग माया का यह स्वरूप वास्तव में प्रेम प्रदान करने वाला है !और प्रेम विवाह में सफलता प्रदान करता है !क्यू के देवी के इस स्वरूप में आकर्षण शक्ति है !

जब देवी ने भगवान के साहमने इस स्वरूप में प्रकट हुई तो भगवान के मुख से निकला के तुम मोहिनी हो तुमारे जैसा तो सुंदर कोई है ही नहीं तो भगवान के मुख से मोहिनी सबद निकलने से इस स्वरूप का नाम मोहिनी पै गया और इस स्वरूप में इतनी आकर्षण शक्ति है के जिस को देख कर भगवान शिव भी इस के पीछे पीछे चले गए थे यह देखने के ऐसी सोंद्र्य इस्त्री पैदा कैसे हो सकती है !

इस लिए ऋषिओ ने इस दिन इसकी पुजा अर्चना रखी के जीवन में सभी सुख प्राप्त किए जा सके ! 

देवी योग माया का विश्व मोहिनी स्वरूप अपूर्व सोंद्र्य प्रदान करने वाला है! इस से बोल चाल का ढंग भी बदल जाता है !

 उस में गज़ब का समोहन या जाता है !वाणी में समोहन और दृष्टि में स्मोहन जहां तक के उसे जो भी देखता है उस के समोहन में बंध जाता है !

सभी प्राणिओ में आकर्षण शक्ति का संचार देवी योग माया ही करती है और देवी के इस स्वरूप का आशिर्बाद मिलने से आकर्षण शक्ति पैदा हो जाती है ! 

अगर आप के रिश्तो में मधुरता नहीं है घर में पत्नी से जा पति से मन मुटाव है तो भी इस साधना से उस को दूर किया जा सकता है ! 

यह साधना आपस में प्रेम पैदा करके रिश्तो में मधुरता लाती है !इसे इस्त्री और पुरश दोनों समान रूप में कर सकते है !

यह साधना इस्त्रीयो में भी सोंद्र्य और स्मोहन पैदा करती है और उन्हे हमेशा तनाव मुक्त रखती है !

यह व्यक्ति को कठिन से कठिन परस्थिति से निकाल देती है !इस के साथ अगर आपकी कोई बात नहीं मान रहा जा उच अधिकारी खफा रहता है तो भी यह साधना बहुत काम आती है !

 साधना विधि –

एक देवी की प्रितमा(मूर्ति ) स्थापत करे अगर देवी योग माया की मूर्ति न मिले तो दुर्गा की मूर्ति स्थापन कर ले !

 फिर उसे सुंगदत द्रव्य से ईशनान कराये और उस पे इत्र और चुनरी चढ़ाए ! 16 प्रकार का सिंगार ले और जहां बेजोटपे लाल वास्तर के उपर देवी की मूर्ति स्थापन करनी है और उसके सहमने बेजोट पे ही 16 सिंगार रख देने है

 और सात किसम की मिठाई का भोग लगाए और एक तिल की ढेरी पे तिल के तेल का दिया लगा दे जो देवी के चित्र के ठीक सहमने रखे देवी का पंचो उपचार पूजन करना है फल फूल धूप दीप नवेध अक्षत आदि से लाल रंग के फूल चढ़ाये देवी !

 और सहमने ही लाल रंग के आसान पे लाल रंग के वस्त्र पहन कर बैठे दिशा पूर्व की तरफ मुख रखे ! 

पूजन से पहले गुरु जी और गणेश पूजन कर आज्ञा ले और देवी का पूजन करे फिर सफटिक जा मोती की माला से जप करे !आप एकादशी से शुरू करके 7 दिनो में जप पूर्ण कर सकते है !

साधना के बाद सिंगार का समान जा तो किसी मंदिर में कुश दक्षणा के साथ चढ़ा दे जा किसी कन्या को दे दे अगर संभव न हो तो नदी के पास किनारे पे छोड़ दे !

साधना का समय रात को करे 8 से शुरू कर कभी भी कर ले !मंत्र संख्या 9000 हजार है !आप चाहे एक सप्ताह में कर ले जा जैसा आप उचित समझे ! 

दिन संख्या निर्धारित नहीं है जप 9000 करना है !आप चाहे तो 16 माला रोज कर एक सप्ताह में जप पूर्ण कर सकते है !

इस तरीके से भी साधना पूर्ण हो जाती है !जप मधुरता से ही करे जल्दबाज़ी न करे इसी लिए एक सप्ताह का वक़्त दिया है ! 

जल्दबाज़ी में कभी धीरे जा तेजी से जाप करना श्रेष्ठ नहीं है क्यू के यह साधना बहुत तीक्ष्ण है ! साधना काल में ब्रह्मचर्य अनिवार्य है !

 मंत्र –

ॐ ह्रीं सर्व चक्र मोहिनी जाग्रय जाग्रय ॐ हुं स्वाहा !!

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

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