!!! मृतसंजीवनी मंत्र के चमत्कार !!!
आज की बदलती जीवन शैली के चलते एक से बढ़ कर एक नई-नई बीमारियां हमें घेरने लगी हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार एक से अधिक मार केश की दशा, अंतर्दशा या प्रत्यंतर्दशा का हमारे स्वास्थ्य और जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
असाध्य व गम्भीर व्याधियों से ग्रस्त व्यक्ति मृत्यु पर विजय प्राप्त करने व असामयिक निधन से बचाव के लिए मृत्युंजय मंत्र का जप व होम काफी लाभकारी माना गया है। तंत्रशास्त्र में मृत्युंजय मंत्र और गायत्री मंत्र के योग से बना यह मंत्र मृत संजीवनी के नाम से जाना जाता है, जिसका चैत्र मास में जप व होम करने से बड़ी से बड़ी बीमारियों से भी मुक्ति पाई जा सकती है-
विभिन्न प्रयोजनों में अनिष्टता के मान से 1 करोड़ 24 लाख, सवा लाख, दस हजार या एक हजार महामृत्युंजय जप करने का विधान उपलब्ध होता है। मंत्र दिखने में जरूर छोटा दिखाई देता है, किन्तु प्रभाव में अत्यंत चमत्कारी है।
देवता मंत्रों के अधीन होते हैं- मंत्रधीनास्तु देवताः।
मंत्रों से देवता प्रसन्न होते हैं। मंत्र से अनिष्टकारी योगों एवं असाध्य रोगों का नाश होता है तथा सिद्धियों की प्राप्ति भी होती है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता एवं निरुवतादि मंत्र शास्त्रीय ग्रंथों में त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। उक्त मंत्र मृत्युंजय मंत्र के नाम से प्रसिद्ध है।
शिवपुराण में सतीखण्ड में इस मंत्र को 'सर्वोत्तम' महामंत्र' की संज्ञान से विभूषित किया गया है-
मृत संजीवनी मंत्रों मम सर्वोत्तम स्मृतः।
इस मंत्र को शुक्राचार्य द्वारा आराधित 'मृतसंजीवनी विद्या' के नाम से भी जाना जाता है। नारायणणोपनिषद् एवं मंत्र सार में- मृत्युर्विनिर्जितो यस्मात तस्मान्यमृत्युंजय स्मतः अर्थात् मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के कारण इन मंत्र योगों को 'मृत्युंजय' कहा जाता है। सामान्यतः मंत्र तीन प्रकार के होते हैं-
वैदिक, तांत्रिक, एवं शाबरी। इनमें वैदिक मंत्र शीघ्र फल देने वाले त्र्यम्बक मंत्र भी वैदिक मंत्र हैं।
मृत्युंजय जप, प्रकार एवं प्रयोगविधि का मंत्र महोदधि, मंत्र महार्णव, शारदातिक, मृत्युंजय कल्प एवं तांत्र, तंत्रसार, पुराण आदि धर्मशास्त्रीय ग्रंथों में विशिष्टता से उल्लेख है।
मृत्युंजय मंत्र तीन प्रकार के हैं-
पहला मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र। पहला मंत्र तीन व्यह्यति-
भूर्भुवः स्वः से सम्पुटित होने के कारण मृत्युंजय,
दूसरा
ॐ हौं जूं सः (त्रिबीज) और भूर्भुवः स्वः
(तीन व्याह्यतियों) से सम्पुटित होने के कारण 'मृतसंजीवनी'
तथा उपर्युक्त हौं जूं सः (त्रिबीज) तथा भूर्भुवः स्वः (तीन व्याह्यतियों) के प्रत्येक अक्षर के प्रारंभ में ॐ का सम्पुट लगाया जाता है। इसे ही शुक्राचार्य द्वारा आराधित महामृत्युंजय मंत्र कहा जाता है।
"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"
ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ
* शुक्राचार्य द्वारा आराधित *
ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यबकंयजामहे
ॐ तत्सर्वितुर्वरेण्यं ॐ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम्
ॐ भर्गोदेवस्य धीमहि ॐ उर्वारुकमिव बंधनान्
ॐ धियो योन: प्रचोदयात् ॐ मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्
ॐ स्व: ॐ भुव: ॐ भू: ॐ स: ॐ जूं ॐ हौं ॐ ।।
इस मंत्र का अर्थ है :
हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं... उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए...
जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाएं.
इस मंत्र के जप से असाध्य रोग कैंसर, क्षय, टाइफाइड, हैपेटाइटिस बी, गुर्दे, पक्षाघात, ब्रेन ट्यूमर जैसी बीमारियों को दूर करने में भी मदद मिलती है। इस मंत्र का प्रतिदिन विशेषकर सोमवार को 101 जप करने से सामान्य व्याधियों के साथ ही मानसिक रोग, डिप्रैशन व तनाव आदि दूर किए जा सकते हैं।
तेज बुखार से शांति पाने के लिये औंगा की समिधाओं द्वारा पकाई गई दूध की खीर से हवन करवाना चाहिए। मृत्यु-भय व अकाल मृत्यु निवारण के लिए हवन में दही का प्रयोग करना चाहिए।
इतना ही नहीं मृत्युंजय जप व हवन से शनि की साढ़ेसाती, वैधव्य दोष, नाड़ी दोष, राजदंड, अवसादग्रस्त मानसिक स्थिति, चिंता व चिंता से उपजी व्यथा को कम किया जा सकता है। भयंकर बीमारियों के लिए मृत्युंजय मंत्र के सवा लाख जप व उसका दशमांश का हवन करवाना उत्तम रहता है।
प्राय: हवन के समय अग्निवास, ब्रह्मचर्य पालन, सात्विक भोजन व विचार, शिव पर पूर्ण श्रद्धा व भक्तिभाव पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। जप के बाद बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ व इस दौरान घी का दीपक प्रज्ज्वलित रखना चाहिए। जप के साथ हवन व तर्पण और मार्जन के साथ ही साथ हवन की समाप्ति में ब्राह्मणों को भोजन करवा कर दान देना उत्तम माना गया है। जप व हवन का कार्य चैत्र मास में किसी पवित्र तीर्थ स्थल, शिवालय, नदी, सरोवर, पर्वतादि के पास शिवलिंग बनाकर करना चाहिए।
महामृत्युमञ्जय मंत्र : "मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र"
भक्ति में अविश्वास की कोई जगह नहीं होती।
आस्था और भरोसा ही वह कारण है, जिनके बूते ही भक्त और भगवान का मिलन हो जाता है।
धर्मशास्त्र भी यही कहते हैं कि प्रेम और भाव ईश्वर को भी भक्त के पास आने को मज़बूर करती है।
भगवान शिव भी ऐसे ही देवता माने जाते हैं, जो भक्तो की थोड़ी ही उपासना से प्रसन्न हो जाते हैं।
शिव की प्रसन्नता के ही इन उपायों में महामृत्युञ्जय मंत्र को बहुत ही अचूक माना जाता है। यह मंत्र रोग, शोक, काल और कलह कोदूर करने वाला माना गया है। शिव के इस मंत्र का अलग-अलग रूप और संख्या में जप बहुत ही असरदार माना जाता है। लेकिन इसकेलिए यह भी जरूरी है कि भक्त पूरी पवित्रता के साथ परोपकार व निस्वार्थ भावना रख शिव का ध्यान करे।
शिव पुराण के मुताबिक जानिए, कितनी संख्या में शिव के इस महामंत्र को बोलने या जप करने से मनचाहे सुख पाने के अलावा क्या-क्या चमत्कार हो जाते हैं
जानें, कितनी बार महामृत्युञ्जय मंत्र बोलने पर क्या हो जाता है?
महामृत्युञ्जय मंत्र के एक लाख जप करने पर शरीर हर तरह से पवित्र हो जाता है। यानी सारे दर्द, रोग या कलह दूर हो जाते हैं।
दो लाख मंत्र जप पूरे होने पर पूर्वजन्म की बातें याद आ जाती हैं।
तीन लाख मंत्र जप पूरे होने पर सभी मनचाही सुख-सुविधा और वस्तुएं मिल जाती है।
चार लाख मंत्र जप पूरे होने पर भगवान शिव सपनों में दर्शन देते हैं।
पांच लाख महामृत्युञ्जय मंत्र पूरे होते ही भगवान शिव तुरंत ही भक्त के सामने प्रकट हो जाते हैं।
महामृत्युञ्जय मंत्र - मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र, जिसे त्रयंबकम मंत्र भी कहा जाता है l ऋग्वेद का एक श्लोक है, यह त्रयंबक"त्रिनेत्रों वाला", रुद्र का विशेषण जिसे बाद में शिव के साथ जोड़ा गया l
महामृत्युञ्जय मंत्र यजुर्वेद के रूद्र अध्याय स्थित एक मंत्र है, यह श्लोक यजुर्वेद में भी आता है ।
इसमें शिव की स्तुति की गयी है । शिव को 'मृत्यु को जीतने वाला' माना जाता है।
यह मंत्र सर्वाधिक फल देने वाला माना गया है।
राजगुरु जी
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