Wednesday, August 8, 2018

हनुमान चालीसा के.. VISHISHTH PRAYOG



हनुमान चालीसा के.. VISHISHTH PRAYOG

भारतीय आगम तथा निगम में स्तोत्र का एक महत्वपूर्ण स्थान है. सामान्य रूप से स्तोत्र की व्याख्या कुछ इस प्रकार की जा सकती है की स्तोत्र विशेष शब्दों का समूह है जिसके माध्यम से इष्ट की अभ्यर्थना की जाती है.

 वस्तुतः स्तोत्र के भी कई कई प्रकार है लेकिन तंत्र में इन स्तोत्र को सहजता से नहीं लिया जा सकता है, तंत्र वह क्षेत्र है जहां पर पग पग पर अनन्त रहस्य बिखरे पड़े है. चाहे वह शिवतांडव स्तोत्र हो या सिद्ध कुंजिका, सभी अपने आप में कई कई गोपनीय प्रक्रिया तथा साधनाओ को अपने आप में समाहित किये हुवे है. 

कई स्तोत्र, कवच, सहस्त्रनाम, खडगमाल आदि शिव या शक्ति से श्रीमुख से उच्चारित हुवे है जो की स्वयं सिद्ध है और यही स्तोत्र विभिन्न तंत्र के भाग है. इसके अलावा कई महासिद्धो ने भी अपने इष्ट की साधना कर उनको प्रत्यक्ष किया था तथा तदोपरांत स्तोत्र की रचना कर उन स्तोत्र की जनमानस के कल्याण सिद्धि हेतु अपने इष्ट से वरदान प्राप्त किया था.

 ऐसे स्तोत्र निश्चय ही सर्व सिद्धि प्रदाता होते है. उपरोक्त पंक्तियाँ हनुमान चालीसा की है.

 हनुमान चालीसा के बारे में आज के युग में कोन व्यक्ति अनजान है. वस्तुतः हनुमान चालीसा एक विलक्षण साधना क्रम है जिसमे कई सिद्धो की शक्ति कार्य करती है, विविध साबर मंत्रो के समूह सम यह चालीसा अनंत शक्तियों से सम्प्पन है. 

खेर, देखा देखि में आज के युग में हर देवी देवता से सबंधित चालीसा प्राप्त हो जाती है लेकिन तंत्र की द्रष्टि से देखे तो वह मात्र काव्य से ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है क्यों की न ही उसमे कोई स्वयं चेतना है और ना ही इष्ट शक्ति. इसके अलावा उसमे कोई महासिद्ध का कोई प्रभाव आदि भी नहीं है. 

एसी चालीसा और दूसरे काव्यों में कोई अन्तर नहीं है उसका पठन करने पर साधक को क्या और केसे कोई उपलब्धि हो सकती है इसका निर्णय साधक खुद ही कर सकता है. निश्चय ही आदी चालीसा अर्थात हनुमान चालीसा के अलावा कोई भी चालीसा का पठन सिद्धि प्रदान करने में असमर्थ है.

अगर सूक्ष्म रूप से अध्ययन किया जाए तो हनुमान जी के मूल शिव स्वरुप के आदिनाथ स्वरुप की ही साबर अभ्यर्थना है, कानन कुंडल, संकर सुवन, तुम्हारो मन्त्र, आपन तेज, गुरुदेव की नाइ, अष्ट सिद्धि आदि विविध शब्द के बारे में साधक खुद ही अध्ययन कर विविध पदों के गूढार्थ समजने की कोशिश करे तो कई प्रकार के रहस्य साधक के सामने उजागर हो सकते है.

कई वर्षों पूर्व साधना जगत में प्रवेश के प्रारंभिक दिनों में ही जूनागढ़ के एक साधक से मुलाकात हुई, जिनका नाम जिज्ञेश था. योग और तांत्रिक साधना में बचपन से ही काफी रुजान था उनका. गिरनार क्षेत्र के सिद्धो के सबंध में खोज में उनकी विशेष रूचि थी.

 सम्मोहन तथा वशीकरण आदि विद्याओ के बारे में काफी अच्छा ज्ञान रखते थे. उनके इष्ट हनुमान थे. तंत्र सबंधित चर्चा में सर्व प्रथम उन्होंने हनुमान चालीसा के बारे में विशेष जानकारी प्रदान की थी. उन्होंने बताया की

“जो सत् बार पाठ करे कोई, छूटही बंदी महासुख होई”

जो हनुमान चालीसा का 100 बार पाठ कर लेता है तो बंधन से मुक्त होता है तथा महासुख को प्राप्त होता है. लेकिन यह सहज ही संभव नहीं होता है, भौतिक अर्थ इसका भले ही कुछ और हो लेकिन आध्यात्मिक रूप से  यहाँ पर बंधन का अर्थ आतंरिक तथा शारीरिक दोनों बंधन से है.

 तथा महासुख अर्थात शांत चित की प्राप्ति होना है. लेकिन कोई भी स्थिति की प्राप्ति के लिए साधक को एक निश्चित प्रक्रिया को करना अनिवार्य है क्यों की एक निश्चित प्रक्रिया ही एक निश्चित परिणाम की प्राप्ति को संभव बना सकती है.

हनुमान चालीसा से सबंधित एक प्रयोग उन्होंने ही मुझे बताया था, उसका उल्लेख यहाँ पर किया जा रहा है. लेकिन उससे पहले इससे सबंधित कुछ अनिवार्य तथ्य भी जानने योग्य है.

हनुमान चालीसा का यह प्रयोग सकाम प्रयोग तथा निष्काम प्रकार दोनों रूप में होता है. इस लिए साधक को अनुष्ठान करने से पूर्व अपनी कामना का संकल्प लेना आवश्यक है. अगर कोई विशेष इच्छा के लिए प्रयोग किया जा रहा हो तो साधक को संकल्प लेना चाहिए की

 “ में अमुक नाम का साधक यह प्रयोग ____कार्य के लिए कर रहा हू, भगवान हनुमान मुझे इस हेतु सफलता के लिए शक्ति तथा आशीर्वाद प्रदान करे. ” अगर साधक निष्काम भाव से यह प्रयोग कर रहा है तो संकल्प लेना आवश्यक नहीं है.

साधक अगर सकाम रूप से साधना कर रहा है तो साधक को अपने सामने भगवान हनुमान का वीर भाव से युक्त चित्र स्थापित करना चाहिए. अर्थात जिसमे वह पहाड़ को उठा कर ले जा रहे हो या असुरों का नाश कर रहे हो. लेकिन अगर निष्काम साधना करनी हो तो साधक को अपने सामने दास भाव युक्त हनुमान का चित्र स्थापित करना चाहिए अर्थात जिसमे वह ध्यान मग्न हो या फिर श्रीराम के चरणों में बैठे हुवे हो.

साधक को यह क्रम एकांत में करना चाहिए, अगर साधक अपने कमरे में यह क्रम कर रहा हो तो जाप के समय उसके साथ कोई और दूसरा व्यक्ति नहीं होना चाहिए.

स्त्री साधिका हनुमान चालीसा या साधना नहीं कर सकती यह मात्र मिथ्या धारणा है. कोई भी साधिका हनुमान साधना या प्रयोग सम्प्पन कर सकती है. रजस्वला समय में यह प्रयोग या कोई साधना नहीं की जा सकती है. साधक साधिकाओ को यह प्रयोग करने से एक दिन पूर्व, प्रयोग के दिन तथा प्रयोग के दूसरे दिन अर्थात कुल 3 दिन ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिए.

सकाम उपासना में वस्त्र लाल रहे निष्काम में भगवे रंग के वस्त्रों का प्रयोग होता है. दोनों ही कार्य में दिशा उत्तर रहे. साधक को भोग में गुड तथा उबले हुवे चने अर्पित करने चाहिए. कोई भी फल अर्पित किया जा सकता है. साधक दीपक तेल या घी का लगा सकता है. 

साधक को आक के पुष्प या लाल रंग के पुष्प समर्पित करने चाहिए.

यह प्रयोग साधक किसी भी मंगलवार की रात्रि को करे तथा समय १० बजे के बाद का रहे. सर्व प्रथम साधक स्नान आदि से निवृत हो कर वस्त्र धारण कर के लाल आसान पर बैठ जाये. साधक अपने पास ही आक के १०० पुष्प रखले. 

अगर किसी भी तरह से यह संभव न हो तो साधक कोई भी लाल रंग के १०० पुष्प अपने पास रख ले. अपने सामने किसी बाजोट पर या पूजा स्थान में लाल वस्त्र बिछा कर उस पर हनुमानजी का चित्र या यन्त्र या विग्रह को स्थापित करे. 

उसके बाद दीपक जलाये. साधक गुरु पूजन गुरु मंत्र का जाप कर हनुमानजी का सामान्य पूजन करे. इस क्रिया के बाद साधक ‘हं’ बीज का उच्चारण कुछ देर करे तथा उसके बाद अनुलोम विलोम प्राणायाम करे. प्राणायाम के बाद साधक हाथ में जल ले कर संकल्प करे तथा अपनी मनोकामना बोले. 

इसके बाद साधक राम रक्षा स्तोत्र या ‘रां रामाय नमः’ का यथा संभव जाप करे. जाप के बाद साधक अपनी तीनों नाडी अर्थात इडा पिंगला तथा सुषुम्ना में श्री हनुमानजी को स्थापित मान कर उनका ध्यान करे. तथा हनुमान चालीसा का जाप शुरू कर दे.

 साधक को उसी रात्रि में १०० बार पाठ करना है. हर एक बार पाठ पूर्ण होने पर एक पुष्प हनुमानजी के यंत्र/चित्र/विग्रह को समर्पित करे. इस प्रकार १०० बार पाठ करने पर १०० पुष्प समर्पित करने चाहिए.

 १०० पाठ पुरे होने पर साधक वापस ‘हं’ बीज का थोड़ी देर उच्चारण करे तथा जाप को हनुमानजी के चरणों में समर्पित कर दे.

इस प्रकार यह प्रयोग पूर्ण होता है. साधक दूसरे दिन पुष्प का विसर्जन कर दे.

 इसके अलावा भी हनुमान चालीसा से सबंधित कई महत्वपूर्ण प्रयोग मुझे उस साधक ने बताये थे जो की कई बार अनुभूत है, वो प्रयोग भी समय समय पर आप के मध्य रखने का प्रयास रहेगा जिससे की समस्त साधकगण लाभान्वित हो सके.

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम  (  राजयोग पीठ  )  फॉउन्डेशन ट्रस्ट 

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