श्री देवी प्रत्यंगिरा तन्त्र
शत्रु की प्रबल से प्रबलतम तांत्रिक क्रियाओं को वापिस लौटने वाली एवं रक्षा करने वाली ये दिव्य शक्ति है I पर प्रयोग को नाश करने के लिए, शत्रुओं के -
किए करायों को नाश करने के लिए इस तन्त्र का प्रयोग किया जाता है I
एक तन्त्र सिद्ध एवं चलन क्रियाओं को जानने वाला तांत्रिक ही इस विद्या का प्रयोग कर सकता है क्योंकि इस विद्या को प्रयोग करने से पूर्व शत्रुओं के तन्त्र शक्ति, उसकी प्रकृति एवं उसकी मारक क्षमता का ज्ञान होना अति आवश्यक है क्योंकि साधारण युद्ध में भी शत्रु की गति और शक्ति को ना पहचानने वाला, उसको कम आंकने वाला हमेशा मारा जाता है I फिर यह तो तरंगों से होने वाला अदृश्य युद्ध है I
वास्तव में प्रत्यंगिरा स्वयं में शक्ति ना होकर नारायण, रूद्र, कृत्य, भद्रकाली आदि महा शक्तियों की संवाहक है I जैसे तारें स्वयं में विद्युत् ना होकर करंट की सम्वाहिकाएँ हैं I
आइए प्रत्यंगिरा के कुछ मंत्रों को जानें एवं अपनी रूचि अनुसार इनको साधें !
II ध्यानम् II
नानारत्नार्चिराक्रान्तं वृक्षाम्भ: स्त्रव??र्युतम् I
व्याघ्रादिपशुभिर्व्याप्तं सानुयुक्तं गिरीस्मरेत् II
मत्स्यकूर्मादिबीजाढ्यं नवरत्न समान्वितम् I
घनच्छायां सकल्लोलम कूपारं विचिन्तयेत् II
ज्वालावलीसमाक्रान्तं जग स्त्री तयमद्भुतम् I
पीतवर्णं महावह्निं संस्मरेच्छत्रुशान्तये II
त्वरा समुत्थरावौघमलिनं रुद्धभूविदम् I
पवनं संस्मरेद्विश्व जीवनं प्राणरूपत: II
नदी पर्वत वृक्षादिकालिताग्रास संकुला I
आधारभूता जगतो ध्येया पृथ्वीह मंत्रिणा II
सूर्यादिग्रह नक्षत्र कालचक्र समन्विताम् I
निर्मलं गगनं ध्यायेत् प्राणिनामाश्रयं पदम् II
II प्रत्यंगिरा माला यन्त्र II
ॐ ह्रीं नमः कृष्णवाससेशते विश्वसहस्त्रहिंसिनि सहस्त्रवदने महाबलेSपराजितो प्रत्यंगिरे परसैन्य परकर्म विध्वंसिनि परमंत्रोत्सादिनि सर्वभूतदमनि सर्वदेवान् वंध बंध सर्वविद्यां छिन्धि क्षोभय क्षोमय परयंत्राणि स्फोटय स्फोटय सर्वश्रृंखलान् त्रोटय त्रोटय ज्वालाजिह्वे करालवदने प्रत्यंगिरे ह्रीं नमः I
विनियोग
अस्य मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि अनुष्टप् छंद: देवीप्रत्यंगिरा देवता ॐ बीजं, ह्रीं शक्तिं, कृत्यानाशने जपे विनियोग: I
II ध्यानम् II
सिंहारुढातिकृष्णांगी ज्वालावक्त्रा भयंकरराम् I
शूलखड्गकरां वस्त्रे दधतीं नूतने भजे II
1 . अन्य मंत्र - ॐ ह्रीं कृष्णवाससे नारसिंहवदे महाभैरवि ज्वल- ज्वल विद्युज्जवल ज्वालाजिह्वे करालवदने प्रत्यंगिरे क्ष्म्रीं क्ष्म्यैम् नमो नारायणाय घ्रिणु: सूर्यादित्यों सहस्त्रार हुं फट् I
2 . ॐ ह्री
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम ( राजयोग पीठ ) ट्रस्ट
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