Tuesday, January 28, 2020

हनुमान सिद्धि





हनुमान सिद्धि 


कलयुग में माता काली, भेरव बाबा और हनुमान जी को ही जागृत देवता माना जाता है ! इस युग में एक मात्र हनुमान जी ही ऐसे देवता है ! 

जो बहुत जल्दी प्रसन्न होते है ! बाबा को इसलिए ही संकट मोचन कहा जाता है कि हनुमान जी सभी के संकट हर लेते है ! हनुमान जी कृपया दृष्टी, प्राप्त होने से सभी ग्रह शांत हो जाते है ! 

कोई भी ग्रह उस व्यक्ति का अहित नहीं कर सकता ! इसलिए आज हम आप के लिए हनुमान जी कि सिद्धि हेतु ! शाबर मन्त्र ले कर आये है !

हनुमान सिद्धि शाबर मन्त्र !

अजरंग पहनू ! बजरंग पहनू ! सब रंग रखु पास ! दाये चले भीमसेन ! बाये हनुमंत ! आगे चले काजी साहब !! पीछे कुल बलारद ! आतर चौकी कच्छ कुरान ! आगे पीछे तुं रहमान ! धड़ खुदा, सिर राखे सुलेमान !! लोहे का कोट, ताम्बे का ताला !! करला हंसा बीरा ! करतल बसे समुंदर तीर ! हांक चले हनुमान कि ! निर्मल रहे शरीर !!

विधि - 

किसी शुभ मंगलवार से हनुमान जी के सभी नियम मानते हुए ! ११ माला प्रतिदिन जपे ! ११ दिन पुरे होने पर ! हनुमान जी के नाम पर हवन करे ! गरीब बच्चो और कन्याओ को दान-दक्षिणा दे कर, आशीर्वाद प्राप्त करे ! हनुमान जी के स्वप्न में दर्शन होगे ! बाद में भी प्रतिदिन १ माला जपते रहे ! हनुमान जी कि कृपया बनी रहेगी !

नोट-

 यदि ११ दिन से पहले ही हनुमान जी का आशीर्वाद मिल जाये तो भी  ११ दिन अवश्य पुरे करे ! जाप बीच में न छोड़े ! जितना विश्वास और श्रध्दा होगी ! उतनी जल्दी बाबा का आशीर्वाद प्राप्त होगा 

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

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Monday, January 27, 2020

काली पूजा में सिद्धि प्राप्ति के लिए तंत्र साधना






काली पूजा में सिद्धि प्राप्ति के लिए तंत्र साधना


यह आलेख केवल जानकरी के लिए है


हजारों तरह की साधनाओं का वर्णन मिलता है. साधना से सिद्धियां प्राप्त होती हैं. व्यक्ति सिद्धियां इसलिए प्राप्त करना चाहता है, क्योंकि या तो वह उनसे सांसारिक लाभ प्राप्त करना चाहता है या फिर आध्यात्मिक लाभ. मूलत: साधना के चार प्रकार माने जा सकते हैं - तंत्र साधना, मंत्र साधना, यंत्र साधना और योग साधना. तीनों ही तरह की साधना के कई उपभेद हैं. आइये जानते हैं साधना के विविध तरीके व उनसे प्राप्य लाभ.

तांत्रिक साधना : तांत्रिक साधना दो प्रकार की होती है- एक वाम मार्गी तथा दूसरी दक्षिण मार्गी. वाम मार्गी साधना बेहद कठिन है. वाम मार्गी तंत्र साधना में छह प्रकार के कर्म बताये गये हैं, जिन्हें षट कर्म कहते हैं.

शांति, वक्ष्य, स्तम्भनानि, विद्वेषणोच्चाटने तथा.

गोरणों तनिसति षट कर्माणि मणोषण:॥

अर्थात शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण. ये छह तांत्रिक षट कर्म बताये गये हैं. इनके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन भी है :

मारण मोहनं स्तम्भनं विद्वेषोच्चाटनं वशम्.

आकर्षण यिक्षणी चारसासनं कर त्रिया तथा॥

मारण, मोहनं, स्तंभनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यिक्षणी साधना, रसायन क्रि या तंत्र के ये नौ प्रयोग हैं.

रोग कृत्वा गृहादीनां निराण शिन्तर किता.

विश्वं जानानां सर्वेषां निधयेत्व मुदीरिताम्॥

पूधृत्तरोध सर्वेषां स्तम्भं समुदाय हृतम्.

स्निग्धाना द्वेष जननं मित्र, विद्वेषण मतत॥

प्राणिनाम प्राणं हरपां मरण समुदाहृमत्.

जिससे रोग, कुकृत्य और ग्रह आदि की शांति होती है, उसको शांति कर्म कहा जाता है और जिस कर्म से सब प्राणियों को वश में किया जाये, उसको वशीकरण प्रयोग कहते हैं तथा जिससे प्राणियों की प्रवृत्ति रोक दी जाए, उसको स्तंभन कहते हैं तथा दो प्राणियों की परस्पर प्रीति को छुड़ा देने वाला नाम विद्वेषण है और जिस कर्म से किसी प्राणी को देश आदि से पृथक कर दिया जाए, उसको उच्चाटन प्रयोग कहते हैं तथा जिस कर्म से प्राण हरण किया जाए, उसको मारण कर्म कहते हैं.

* मंत्र साधना : मंत्र साधना भी कई प्रकार की होती है. मंत्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है और मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है. मंत्र का अर्थ है मन को एक तंत्र में लाना. मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है. मंत्र साधना भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है.

* मुख्यत: तीन प्रकार के मंत्र होते हैं- 1. वैदिक मंत्र 2. तांत्रिक मंत्र और 3. शाबर मंत्र.

* मंत्र जप के भेद- 1. वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप.

वाचिक जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है. मानस जप का अर्थ है मन ही मन जप करना. उपांशु जप में जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनायी देती. बिल्कुल धीमी गति में जप करना ही उपांशु जप है.

* मंत्र नियम : मंत्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मंत्र का सही उच्चारण. दूसरी बात जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उसका अर्घ पहले से लेना चाहिए. मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखा जाये. प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है.

किसी विशिष्ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए. इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है. जप का दशांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए.

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

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लहसुन तंत्र





लहसुन तंत्र 


लहसुन का नाम सुना होगा सबने आज मैं लहसुन के तंत्र प्रयोग बताने जा रहा हूँ जो कि यह अनुभूत प्रयोग है करिये यह उपाय और जीवन मे धन की कमी होने के कारण यह अचूक उपाय करिये धन की ज्यादा तंगी है, तो लहसुन की दो कलियों को लाल रंग के कपड़े में बांधकर एक पोटली बना लें और इस पोटली को जमीन में दबा दें।

 इससे आपके धन में जबरदस्त वृद्धि होगी और तंगी दूर हो जाएगी।

व्यापार में अगर लगातार घाटा हो रहा है, तो लहसुन की 5-7 कलियों को एक कपड़े में बांध लें और अपने दुकान, ऑफिस या फैक्ट्री के मुख्य दरवाजे पर टांग दें।

Note:-

अगर आप योग से सम्बंधित किसी भी विषय पर जानना चाहते तो      नीचे लिखे दिए दिये पते पर संपर्क करे |

साधना प्रायोग से सम्बंधित जानकारी के लिए फ़ोन पर बात करें .

आपको कहीं भी नहीं मिलने वाली अगर आप को कहीं मिल भी जाती है तो उसकी सही  विधि और सही विधान नहीं मिलेगा यह साधना केवल गुरु मुख और गुरुद्वारा ही मिल सकता है

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 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है

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Sunday, January 26, 2020

तीव्र उच्छिष्ट गणपति साधना








तीव्र उच्छिष्ट गणपति साधना 


 कड़वे नीम की जड़ से कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन अंगूठे के बराबर की गणेश की प्रतिमा बनाकर रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वयं लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर पश्चिम मुख होकर झूठे मुँह से सामने थाली में प्रतिमा को स्थापित कर साधना में सफलता की सदगुरुदेव से प्रार्थना कर संकल्प करें और ततपश्चात गणपति का ध्यान कर  उनका पूजन लाल चन्दन,अक्षत,पुष्प के द्वारा पूजन करे और लाल चन्दन की ही माला से झूठे मुँह से ही ५ माला मन्त्र जप करें.

 सात दिनों तक ऐसे ही पूजन करे और आठवे दिन अर्थात अमावस्या को पञ्च मेवे से ५०० आहुतियाँ  करें इससे मंत्र सिद्ध हो जाता है. तब आप इनके विविध प्रयोगों को कर सकते हैं. २ प्रयोग नीचे दिए गए हैं.

१.     जिस व्यक्ति का आकर्षण करना हो चाहे वो आपका बॉस हो, सहकर्मी हो, प्रेमी,प्रेमिका या फिर कोई मित्र या शत्रु हो जिससे, आपको अपना काम करवाना हो.उसके फोटो पर इस सिद्ध प्रतिमा का स्थापन कर ३ दिनों तक १ माला मन्त्र जप करने से निश्चय ही उसका आकर्षण होता है.

२.     अन्न के ऊपर इस सिद्ध प्रतिमा का स्थापन कर ११ दिनों तक नित्य ३ माला मंत्र जप करने से वर्ष भर घर में धन धान्य का भंडार भरा रहता है और यदि इसके बाद नित्य ५१ बार मंत्र को जप कर लिया जाये तो ये भंडार भरा ही रहता है. नहीं तो आपको प्रति ६ माह या वर्ष में करना चाहिए.

ध्यान मन्त्र –

      दंताभये चक्र- वरौ दधानं कराग्रग्रम् स्वर्ण-घटं त्रि-नेत्रं ,

     धृताब्जयालिंगितमब्धि-पुत्र्या लक्ष्मी-गणेशं कनकाभमीडे.



मंत्र- ॐ नमो हस्ति मुखाय लम्बोदराय उच्छिष्ट महात्मने क्रां क्रीं ह्रीं घे घे उच्छिष्ठाय स्वाहा.

                                   

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Saturday, January 25, 2020

बगलामुखी साधना :





बगलामुखी साधना : 


सरल अनुष्ठान विधि

बगलामुखी साधना स्तम्भन की सर्वश्रेष्ट साधना मानी जाती है.यह साधना निम्नलिखित परिस्थितियों में अनुकूलता के लिए की जाती है.:-

शत्रु बाधा बढ़ गयी हो.

कोर्ट में केस चल रहा हो.

चुनाव लड़ रहे हों.

किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्ति के लिए .

सरल अनुष्ठान विधि :-

पीले रंग के वस्त्र पहनकर मंत्र जाप करेंगे .
आसन का रंग पिला होगा.

साधना कक्ष एकांत होना चाहिए , जिसमे पूरी नवरात्री आपके आलावा कोई नहीं जायेगा.

यदि संभव हो तो कमरे को पिला पुतवा लें.
बल्ब पीले रंग का रखें.

ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है,

साधनाकाल में प्रत्येक स्त्री को मातृवत मानकर सम्मान दें
हल्दी या पिली हकिक की माला से जाप होगा, यदि व्यवस्था न हो पाए तो रुद्राक्ष की माला से जाप कर सकते हैं.

उत्तर दिशा की ओर देखते हुए जाप करें.

साधना करने से पहले किसी तांत्रिक गुरु से बगलामुखी दीक्षा ले लेना श्रेष्ट होता है.

पहले दिन जाप से पहले हाथ में पानी लेकर कहे की " मै [अपना नाम लें ] अपनी [इच्छा बोले] की पूर्ति के लिए यह जाप कर रहा हूँ, आप कृपा कर यह इच्छा पूर्ण करें "
पहले गुरु मंत्र की एक माला जाप करें फिर बगला मंत्र का जाप करें.

अंत में पुनः गुरु मंत्र की एक माला जाप करें.

नौ दिन में कम से कम २१ हजार मन्त्र जाप करें. ज्यादा कर सकें तो ज्यादा बेहतर है.

अपने सामने माला या अंगूठी [जो आप हमेशा पहनते हैं ] को रख कर मन्त्र जप करेंगे तो वह मंत्रसिद्ध हो जायेगा और भविष्य मे रक्षाकवच जैसा कार्य करेगा.

ध्यान :-

मध्ये सुधाब्धि मणि मंडप रत्नवेदिम सिम्हासनो परिगताम  परिपीत वर्णाम ,पीताम्बराभरण माल्य विभूषिताँगिम देवीम स्मरामि घृत मुद्गर वैरी जिह्वाम ||

मंत्र :-
|| ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय बुद्धिम विनाशय ह्लीं फट स्वाहा ||

विशेष :-

बगलामुखी प्रचंड महाविद्या हैं , कमजोर दिल के साधक और महिलाएं व् बच्चे बिना गुरु की अनुमति और सानिध्य के यह साधना न करें.

Note:-

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Friday, January 24, 2020

अगर बिजनेस में हो रहा है नुकसान तो राशि के अनुसार जरूर करें ये छोटा सा उपाय, अगले ही दिन से दिखेगा प्रत्यक्ष असर







अगर बिजनेस में हो रहा है नुकसान तो राशि के अनुसार जरूर करें ये छोटा सा उपाय, अगले ही दिन से दिखेगा प्रत्यक्ष असर 


तेजी से बढ़ती तकनीकि ने नौकरी और बिजनेस दोनों में ही कॉम्पीटिशन लाकर खड़ा कर दिया है। कई बार देखा जाता है कि लोगों का बिजनेस बहुत अच्छा चल रहा होता है लेकिन एकदम से पता नहीं क्या हो जाता है कि सब कुछ तहस-नहस हो जाता है।

 कई बार जलन कि भावना से लोग दूसरे के बिजनेस को बंद कराने के लिए कई ऐसे टोटके करते है जो सफल हो जाते है और आपको परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

अगर आपका बिजनेस भी ठीक नहीं चल रहा है और परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो अब आपको घबराने की जरूरत नहीं है। 

शहर के ज्योतिषाचार्य पंडित ओम दीक्षित आपको राशि के अनुसार कुछ आसान से उपाय बताने जा रहे हे जिसकी मदद से आप अपने बिजनेस को फिर से एक नई राह दे सकते हो, हो रही बिजनेस में हानि से बहुत जल्द ही उभर सकते है।

मेष- बारह गोमती चक्र लेकर उसे लाल रंग के कपड़े में बांधकर दुकान या अपने ऑफिस के बाहर मुख्य दरवाजे पर लटका दें। दुकान ठीक से चलने लगेगी।

वृषभ- अगर किसी ने आपके व्यवसाय में टोटका कर दिया है तो उसे दूर करने के लिए रविवार के दिन दोपहर में पांच नींबू काटकर व्यापारिक प्रतिष्ठान में रख दें। इसके साथ एक मुट्ठी काली मिर्च और एक मुट्ठी पीली सरसों रख दें। सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी।

मिथुन- इस राशि के लोग अपने व्यापार को सही करने के लिए कांसे के छोटे से बर्तन में कपड़ा बांधकर दुकान की पूर्व दिशा की ओर रख दें।

कर्क- एक एकाक्षी नारियल लेकर व्यापारिक प्रतिष्ठान में पूजा स्थान पर रखें। नियमित इस नारियल को धूप-दीप दिखाएं इससे व्यापार में उन्नति होती है।

सिंह- इस राशि के लोग चांदी के बर्तन में सेंधा नमक का एक छाटा सा टुकड़ा लेकर पूजा स्थान की पूर्व दिशा में रखें।

love astrology
कन्या- इस राशि के लोग कपूर के पांच टुकड़ों को एक कटोरी में रखकर दुकान की पूर्व दिशा की ओर रखें।

तुला- इस राशि के लोग अपने ऑफिस में सफेद रंग की किसी भी भगवान की मूर्ति को पूर्व दिशा में रख दें।

वृश्चिक- इस राशि वालों को शहद की शीशी लाल कपड़े में लपेट कर घर या दुकान के दक्षिणी कोने में रखनी चाहिए।

धनु- इस राशि के लोग पीले कपड़े में कोई भी धार्मिक पुस्तक लपेट कर घर, दुकान या फैक्टरी के पूर्वी कोने में रखें।

मकर- इस राशि के लोग नारियल तेल में काले तिल एवं नारियल पर काला धागा बांध कर दोनों चीजें घर या दुकान के पूर्वी कोने में रखें।

कुंभ- नारियल के दो सूखे गोलों में अनाज भरकर एक का दान कर दें और दूसरा घर या दुकान में रखें।

मीन- इस राशि के लोग चांदी के सिक्के को लाल कपड़े में लपेटकर व्यापारिक स्थान की दक्षिण दिशा में टांग दे।

और भी अनेक प्रकार के समस्याओं में फंसे हुए हैं तो संपर्क करें और खास विधि प्रयोग करके जीवन में होने वाले हर प्रकार के समस्याओं का समाधान प्राप्त करें ...


और साथ में आपकी शनि की साढ़े साती की दशा , ढैया कब कब चलेगी और उनमे आपके साथ क्या क्या होगा तथा उसके उपाय भी बताते है और आपका भाग्य रतन भी.

गहराई में अपनी कुंडली की जांच कराये  या हमसे कुंडली विश्लेषण रिपोर्ट प्राप्त करें।

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दक्षिणा  -  201 मात्र .

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दुर्गा सप्तशती के सिद्ध चमत्कारी मंत्र






दुर्गा सप्तशती के सिद्ध चमत्कारी मंत्र


मार्कण्डेय पुराण में ब्रह्माजी ने मनुष्यों के रक्षार्थ परमगोपनीय साधन, कल्याणकारी देवी कवच एवं परम पवित्र उपाय संपूर्ण प्राणियों को बताया, जो देवी की नौ मूर्तियां-स्वरूप हैं, जिन्हें 'नवदुर्गा' कहा जाता है, उनकी आराधना आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी तक की जाती है। 

श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ मनोरथ सिद्धि के लिए किया जाता है, क्योंकि श्री दुर्गा सप्तशती दैत्यों के संहार की शौर्य गाथा से अधिक कर्म, भक्ति एवं ज्ञान की त्रिवेणी हैं। यह श्री मार्कण्डेय पुराण का अंश है। यह देवी महात्म्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने में सक्षम है। सप्तशती में कुछ ऐसे भी स्रोत एवं मंत्र हैं, जिनके विधिवत पारायण से इच्छित मनोकामना की पूर्ति होती है।

* सर्वकल्याण हेतु - 

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । 
शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥ 

* बाधा मुक्ति एवं धन-पुत्रादि प्राप्ति के लिए इस मंत्र का जाप फलदायी है-

सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः।
मनुष्यों मत्प्रसादेन भव‍िष्यंति न संशय॥

* आरोग्य एवं सौभाग्य प्राप्ति के चमत्कारिक फल देने वाले मंत्र को स्वयं देवी दुर्गा ने देवताओं को दिया है- 
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्‌। 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

* विपत्ति नाश के लिए-

शरणागतर्द‍िनार्त परित्राण पारायणे। 
सर्व स्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽतुते॥

* ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य, संपदा प्राप्ति एवं शत्रु भय मुक्ति के लिए- 

ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः।
शत्रु हानि परो मोक्षः स्तुयते सान किं जनै॥

* विघ्ननाशक मंत्र-

सर्वबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी।
एवमेव त्याया कार्य मस्माद्वैरि विनाशनम्‌॥

जाप विधि- 

नवरात्रि के प्रतिपदा के दिन घटस्थापना के बाद संकल्प लेकर प्रातः स्नान करके दुर्गा की मूर्ति या चित्र की पंचोपचार या दक्षोपचार या षोड्षोपचार से गंध, पुष्प, धूप दीपक नैवेद्य निवेदित कर पूजा करें। मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें। 

शुद्ध-पवित्र आसन ग्रहण कर रुद्राक्ष या तुलसी या चंदन की माला से मंत्र का जाप एक माला से पांच माला तक पूर्ण कर अपना मनोरथ कहें। पूरी नवरात्रि जाप करने से वांच्छित मनोकामना अवश्य पूरी होती है। समयाभाव में केवल दस बार मंत्र का जाप निरंतर प्रतिदिन करने पर भी मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं।

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

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भुतिनि साधना






भुतिनि साधना


मनुष्य की कल्पना का एक निश्चित दायरा होता है जिसके आगे वह सोच भी नहीं सकता है और तर्क बुद्धि उनको स्व ज्ञान से आगे कुछ स्वीकार करने के लिए हमेशा रोक लगा देती है, लेकिन आज के आधुनिक युग में वैज्ञानिक परिक्षण में भी ऐसे कई तथ्य सामने आये है जिसके माध्यम से यह सिद्ध होता है की मनुष्य की गति सिर्फ जन्म से ले कर मृत्यु तक की यात्रा मात्र नहीं है वरन मृत्यु तो एक पड़ाव मात्र ही है.

मनुष्य मृत्यु के समय शरीर त्याग के बाद कोई विविध योनी को धारण करता है विविध नाम और उपनाम दिए जाते है.

भले ही आज का विज्ञान उसके अस्तित्व पर अभी भी शोध कर रहा हो लेकिन हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने इस विषय पर सेकडो हज़ारो सालो पहले ही अत्यंत ही प्रगाढ़ अन्वेषण कर के अत्यधिक विस्मय युक्त जानकारी जनमानस को प्रदान की थी.

मनुष्य के मृत्यु के बाद उसकी निश्चय ही कार्मिक गति होती है तथा इसी क्रम में विविध प्रकार की योनी उसे प्राप्त होती है या उसका पुनर्जन्म होता है. इसके भी कई कई भेद है, लेकिन जो प्रचलित है वह योनी है भुत, प्रेत, पिशाच, राक्षस या ब्रह्मराक्षस आदि है जो की कर्मजन्य होते है. यह विषय अत्यंत ही वृहद है. यहाँ पर हम चर्चा करेंगे तंत्र में इन से जुडी हुई प्रक्रिया की.

विविध योनियो से सबंधित विविध प्रकार के प्रयोग तंत्र में प्राप्त होते है. जिसमे साधनाओ के माध्यम से विविध प्रकार के कार्य इन इतरयोनियो से करवाए जाते है. लेकिन यह साधनाए दिखने में जितनी सहज लगती है उतनी सहज होती नहीं है इस लिए साधक के लिए उत्तम यह भी रहता है की वह इन इतरयोनियों के सबंध में लघु प्रयोग को सम्प्पन करे.

जिस प्रकार भुत एक पुरुषवाचक संज्ञा है उसी प्रकार भुतिनी एक स्त्रीवाचक संज्ञा है. वस्तुतः यह भ्रम ही है की भुतिनियाँ डरावनी होती है तथा कुरुप होती है, वरन सत्य तो यह है की भुतिनि का स्वरुप भी उसी प्रकार से होता है जिस प्रकार से एक सामान्य लौकिक स्त्री का. उसमे भी सुंदरता तथा माधुर्य होता है.

 वस्तुतः यह साधना तथा साध्य के स्वरुप के चिंतन पर उनका रूप हमारे सामने प्रकट होता है, तामसिक साधना में भयंकर रूप प्रकट होना एक अलग बात है लेकिन सभी साधना में ऐसा ही हो यह ज़रुरी नहीं है.

प्रस्तुत  प्रयोग  इक्कीश दिन अचरज पूर्ण प्रयोग है, जिसे सम्प्पन करने पर साधक को भुतिनी को स्वप्न के माध्यम से प्रत्यक्ष कर उसे देख सकता है तथा उसके साथ वार्तालाप भी कर सकता है. साधको के लिए यह प्रयोग एक प्रकार से इस लिए भी महत्वपूर्ण है की इसके माध्यम से व्यक्ति अपने स्वप्न में भुतिनी से कोई भी प्रश्न का जवाब प्राप्त कर सकता है.

यह प्रयोग भुतिनी के तामस भाव के साधन का प्रयोग नहीं है, अतः व्यक्ति को भुतिनी सौम्य स्वरुप में ही द्रश्यमान होगी.

यह प्रयोग साधक किसी भी अमावस्या को करे तो उत्तम है, वैसे यह प्रयोग किसी भी बुधवार को किया जा सकता है.

साधक को यह प्रयोग रात्री काल में १० बजे के बाद करे. सर्व प्रथम साधक को स्नान आदि से निवृत हो कर लाल वस्त्र पहेन कर लाल आसान पर बैठ जाए. गुरु पूजन तथा गुरु मंत्र का जाप करने के बाद दिए गए यन्त्र को सफ़ेद कागज़ पर बनाना चाहिए.

इसके लिए साधक को केले के छिलके को पिस कर उसका घोल बना कर उसमे कुमकुम मिला कर उस स्याही का प्रयोग करना चाहिए. साधक वट वृक्ष के लकड़ी की कलम का प्रयोग करे. यन्त्र बन जाने पर साधक को उस यन्त्र को अपने सामने किसी पात्र में रख देना है तथा तेल का दीपक लगा कर मंत्र जाप शुरू करना चाहिए.

साधक को निम्न मंत्र की ११ माला मंत्र जाप करनी है इसके लिए साधक को रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना चाहिए.

भ्रं भ्रं भ्रं भुतेश्वरी भ्रं भ्रं भ्रं फट्

(bhram bhram bhram bhuteshwari bhram bhram bhram phat)

मंत्र जाप पूर्ण होने पर जल रहे दीपक से उस यन्त्र को जला देना है. यन्त्र की जो भष्म बनेगी उस भष्म से ललाट पर तिलक करना है तथा तिन बार उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करना है. इसके बाद साधक अपने मन में जो भी प्रश्न है उसके मन ही मन ३ बार उच्चारण करे तथा सो जाए. साधक को रात्री काल में भुतिनी स्वप्न में दर्शन देती है तथा उसके प्रश्न का जवाब देती है.

जवाब मिलने पर साधक की नींद खुल जाती है, उस समय प्राप्त जवाब को लिख लेना चाहिए अन्यथा भूल जाने की संभावना रहती है. साधक दीपक को तथा माला को किसी और साधना में प्रयोग न करे लेकिन इसी साधना को दुबारा करने के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है. 

जिस पात्र में यन्त्र रखा गया है उसको धो लेना चाहिए. उसका उपयोग किया जा सकता है. अगर यन्त्र की राख बची हुई है तो उस राख को तथा जिस लकड़ी से यन्त्र का अंकन किया गया है उस लकड़ी को भी साधक प्रवाहित कर दे. साधक दूसरे दिन सुबह उठ कर उस तिलक को चेहरा धो कर हटा सकता है लेकिन तिलक को सुबह तक रखना ही ज़रुरी है.

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

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अद्भुत सरस्स्वती साधना





अद्भुत सरस्स्वती साधना –


ज्योतिष में रूचि रखने वालो के लिए ..

ज्योतिष  तो  वह शास्त्र   हैं जिसे   दिव्यतम  कहा  जा  सकता हैं  और प्राचीन ग्रंथो  में  इस  शास्त्र के  पंडितो   को .मर्मज्ञों   ज्योतिर्विद कहा  जाता  रहा हैं और  यह उचित भी हैं  क्योंकि   जो आने  वाले  समय  को  आपके सामने  रख दे  पहले   से पथ  प्रदार्शित   कर  दे  वह  एक प्रकाश  किरण   ही  तो हैं जिस  भविष्य  में   अभी  पर्दा   पड़ा हुआ  हैं उसे  भी  वह अनावृत  करने का साहस  रखे .. वह  हैं   ज्ञान ...

 और आज परिणाम  आपके  सामने  हैं   हजारो की  संख्यामे  उच्च  वर्ग  के और  पढ़े लिखे  वर्ग  के लोग   भी  विज्ञानं के प्रति  न केबल  दृष्टी  कोण बदल  रहे  हैं  बल्कि   इसको  सीखने के लिए  आगे भी आ रहे हैं .

पर  यह  विज्ञानं  चूँकि  भविष्य से  भी  सबंध  रखता हैं  तो   ज्योतिष का एक  उच्च आचरण करने  वाला  हों  चाहिए  साथ ही साथ   उसे  कुछ ऐसी साधनों का भी  ज्ञान  होना  चाहिए  जो उसके  भविष् कथन  को बल प्रदान  करे ..उसे अपने  इष्ट की साधना  का  भी  एक योग्य  साधक  होना  ही चहिये .

एक बात  जो  सबसे  ज्यादा  महत्वपूर्ण हैंकि   उसे  वाक् शक्ति  संपन्न होना  ही चहिये   क्योंकि   जो भी कथन उसके   मुख से  निकले  वह निरर्थक  न  हो और   सत्य भी  हो ..  इसके  लिए   सस्स्वती    साधना  से बढकर और क्या होगा ..

पर   भगवती सरस्वती के  भी अनेको मंत्र हैं   और कौन  सा मंत्र  उसे  जयादा खासकर   ज्योतिष  क्षेत्र में  सहयोगी  होगा  इसका  पता कैसे  चले ...
हर साधना मंत्र  भगवती सस्स्वती  का मह्त्वपूर्ण  हैं ही  क्योंकि  उनका  ही मंत्र   हैं पर  यह  जो  मंत्र  आपको  दिया जा  रहा  हैं  यह विशेष  रूप से ज्योतिष क्षेत्र में काम करने  वालो के लिए  अद्भुत   हैं .

मंत्र :

ओम नमो ब्रह्माणी ब्रह्म पुत्री वद वद वाचा  सिद्धिम कुरु कुरु स्वाहा||

साधनात्मक  नियम :

ब्रम्ह महूर्त  में  सरस्स्वती मंत्र  का  जप  मतलब  सूर्योदय  से  दो  घंटे  पहले का  बहुत   उपयोगी माना गया  हैं .

साधना  काल में सफ़ेद  वस्त्र और सफ़ेद  आसन का  ही प्रयोग करे  और  सफ़ेद  हकीक माला   से  जप  कहीं ज्यदा  लाभ दायक  होगा .

 मंत्र जप संख्या   १ लाख   हैं इसमें  दिन  निर्धारित नही हैं , किसी भी  शुभ महूर्त   से  मंत्र जप  प्रारंभ कर सकते हैं   और   जब मंत्र  जप पूरा   हो जाये उसके  बाद  प्रतिदिन  केबल  एक माला मन्त्र  जप  ही   पर्याप्त होगा .

यह मंत्र की साधना  आपको  ज्योतिष  क्षेत्र में  बहुत प्रवीणता  दे  सकती हैं  अतः   इस मंत्र  जप को करने  में  लाभ ही लाभ हैं क्योंकि  माँ  सरस्वती का क्षेत्र     तो बहुत विशाल  हैं  और उनकी कृपापात्रता मिल जाना   कितना न सौभ्ग्दायक  होगा .

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Thursday, January 23, 2020

श्री गणेश की चमत्कारी सिद्ध यं‍त्र साधना चमत्कारी सिद्ध गणेश यंत्र साधना





श्री गणेश की चमत्कारी सिद्ध यं‍त्र साधना चमत्कारी सिद्ध गणेश यंत्र साधना


यह गणपति यंत्र नि:संदेह चमत्कारी है। यह गणेश यंत्र मानव के समस्त कार्यों को सिद्ध करता है। इस यंत्र साधना द्वारा मानव को गणेश भगवान की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है और मानव पूर्ण लाभान्वित होता है।

निम्न वर्णित विधि अनुसार गणेश यंत्र को शुक्ल पक्ष की चतुर्थी ति‍थि को शुभ मुहूर्त में शास्त्रोक्त विधान से ताम्रपत्र पर निर्माण करा लें। यंत्र को खुदवाना नि‍षेध है। यंत्र साथ कुम्हार के चाक की मृण्मय गणेश प्रतिमा, जो उसी दिन बनाई गई हो, स्थापित करें।

यं‍त्र साधना को 4 भागों में बांटा गया है- (1) दारिद्रय- नाश, व्यापारोन्नति, आर्थिक लाभ, (2) संतान प्राप्ति, (3) विद्या, ज्ञान, बुद्धि की प्राप्ति, (4) सारविक, कल्याण मनोकामना पूर्ति।

चारों कार्यों की सिद्धि के लिए एक ही मंत्र है-

ॐ गं गणपतये नम:, 

किंतु जप संख्या और विधि भिन्न है। प्रथम कार्य की सिद्धि के लिए सायंकाल, दूसरे कार्य के लिए मध्याह्न काल, तीसरे-चौथे कार्य के लिए प्रात:काल के समय कंबल के आसन पर पीत वस्त्र धारण करके पूर्व या पश्चिम दिशा की तरफ मुख करके यं‍त्र के सम्मुख बैठें।

रुद्राक्ष की माला से प्रतिदिन 31 माला का जाप यंत्र एवं प्रतिमा का पंचोपचार पीतद्रव्यों से पूजन करके 31 दिन तक करना चाहिए। बाद में दयांश हवन, तर्पण, मार्जन करके 5 बटुक ब्राह्मण भोजन कराएं। यह कार्य अनुष्ठान पद्धति से होना चाहिए। मंत्र जाप करते समय 5 घी के दीपक एवं 5 बेसन के लड्डुओं का नैवेद्य अर्पण करना अनिवार्य है।

एक यंत्र और एक प्रतिमा एक ही कार्य के निमित्त एक ही प्रयुक्त होते हैं। बाद में उन्हें किसी पवित्र नदी में विसर्जित कर देना चाहिए। यह सिद्ध यंत्र तत्काल फल प्रदान करने वाला तथा अत्यंत चमत्कारी है।

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Wednesday, January 22, 2020

धन प्राप्ति का मंत्र






धन प्राप्ति का मंत्र


मित्रो ! मेरे पास जितनी भी समस्याओं के मेल या मेसेज आते है उनमे 70 % समस्याएं आर्थिक संकट की होती हैं।  किसी का उधार वापस नहीं मिल पा रहा है या किसी की आमदनी उसकी ज़रूरतों से कहीं कम है।  

चूँकि  समय बदलता जा रहा है, सभी की जरूरतें बदल रही हैं, हमारी आदतें बदली है और इनकी पूर्ति के लिए पैसों की चाहत बढ़ती जा रही है। कोई भी व्यक्ति कितना भी धन कमाए परंतु वह उसे कम ही लगता है। जरूरतें इतनी बढ़ गई हैं कि पैसों की कमी महसूस होने लगती है।  

साथ ही मैं यह भी कहना चाहूंगा कि इच्छाओं का कोई अंत नहीं है इसलिए अपनी चादर के अनुसार ही हमें पैर फ़ैलाने चाहिए।  सामान्यत: हमारे कर्मों के आधार पर ही हमें प्रतिफल स्वरूप धन प्राप्त होता है। परन्तु अथक प्रयासों के बाद भी अगर उतना धन प्राप्त नहीं हो रहा है इसका सीधा सा अर्थ है कि आपके ग्रह आपका साथ नहीं दे रहे है। तब आप ईश्वर भक्ति या शक्ति का प्रयोग कर सकते है।

  मित्रो ! मंत्रो में अपार शक्ति होती है।  अगर पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से इनका जप किया जाय तो यह आपके हाथों की लकीरें भी बदल सकते हैं।  

यहाँ आप सभी के आग्रह पर मैं एक अति सरल मंत्र आप को बता रहा हूँ जो आपके जीवन से 'आर्थिक तंगी' को जड़ से समाप्त कर देगा -

ऊँ सरस्वती ईश्वरी भगवती माता क्रां क्लीं, श्रीं श्रीं मम धनं देहि फट् स्वाहा।

OM SARASWATI ISHWARI BHAGWATI MATA KRAM KLIM SHRIM SHRIM MAM DHANAM DEHI FAT SWAHA   

मंत्र सिद्ध करने की विधि  -

 किसी भी शुभ मुहूर्त में पूरे विधि-विधान के साथ इस मंत्र का जप करें। मंत्र का जप 40 दिनों तक प्रतिदिन 108 बार करें। मंत्र जप के समय लक्ष्मी और सरस्वती का चित्र अपने सामने रखें।

इस मंत्र के सिद्ध होने के बाद साधक का रुका हुआ पैसा वापस मिल जाएगा और मां सरस्वती की कृपा से बुद्धि और विवेक बढ़ेगा। यदि साधक की किसी व्यक्ति पर उधारी बाकी है और वह उसे प्राप्त नहीं हो रही है तो इस मंत्र के सिद्ध होने के बाद पैसा वापस आना शुरू हो जाएगा  तथा जीवन में नये नये आय के स्रोत खुलते चले जायेंगे। 

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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तंत्र साधना में नारी क्यों है जरूरी...





तंत्र साधना में नारी क्यों है जरूरी...






ऋग्वेद के नासदीय सूक्त (अष्टक 8, मं. 10 सू. 129) में वर्णित है कि प्रारंभ में अंधकार था एवं जल की प्रधानता थी और संसार की उत्पत्ति जल से ही हुई है। जल का ही एक पर्यायवाची 'नार' है।

सृजन के समय विष्णु जल की शैया पर विराजमान होते हैं और नारायण कहलाते हैं एवं उस समय उनकी नाभि से प्रस्फुटित कमल की कर्णिका पर स्थित ब्रह्मा ही संसार का सृजन करते हैं और नारी का नाभि से ही सृजन प्रारंभ होता है तथा उसका प्रस्फुटन नाभि के नीचे के भाग में स्थि‍त सृजन पद्म में होता है।

सृजन की प्रक्रिया में नारायण एवं नारी दोनों समान धर्मी हैं एवं अष्टकमल युक्त तथा पूर्ण हैं जबकि पुरुष केवल सप्त कमलमय है, जो अपूर्ण है। इसी कारण तंत्र शास्त्र में तंत्रराज श्रीयंत्र की रचना में रक्तवर्णी अष्ट कमल विद्यमान होता है, जो नारी की अथवा शक्ति की सृजनता का प्रतीक है।

इसी श्रीयंत्र में अष्ट कमल के पश्चात षोडश दलीय कमल सृष्टि की आद्या शक्ति 'चन्द्रा' के सृष्टि रूप में प्रस्फुटन का प्रतीक है। चंद्रमा 16 कलाओं में पूर्णता को प्राप्त करता है। इसी के अनुरूप षोडशी देवी का मंत्र 16 अक्षरों का है तथा श्रीयंत्र में 16 कमल दल होते हैं। तदनुरूप नारी 27 दिन के चक्र के पश्चात 28वें दिन पुन: नवसृजन के लिए पुन: कुमारी रूपा हो जाती है।

यह संपूर्ण संसार द्वंद्वात्मक है, मिथुनजन्य है एवं इसके समस्त पदार्थ स्त्री तथा पुरुष में विभाजित हैं। इन दोनों के बीच आकर्षण शक्ति ही संसार के अस्तित्व का मूलाधार है जिसे आदि शंकराचार्यजी ने सौंदर्य लहरी के प्रथम श्लोक में व्यक्त किया है।

शिव:शक्तया युक्तो यदि भवति शक्त: प्रभवितुं।
न चेदेवं देवो न खलु कुशल: स्पन्दितुमपि।

यह आकर्षण ही कामशक्ति है जिसे तंत्र में आदिशक्ति कहा गया है। यह परंपरागत पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में से एक है। तंत्र शास्त्र के अनुसार नारी इसी आदिशक्ति का साकार प्रतिरूप है। षटचक्र भेदन व तंत्र साधना में स्त्री की उपस्थिति अनिवार्य है, क्योंकि साधना स्थूल शरीर द्वारा न होकर सूक्ष्म शरीर द्वारा ही संभव है।



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तूफानों से टक्कर लेने वाली बगुलामुखी देवी





तूफानों से टक्कर लेने वाली बगुलामुखी देवी 


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संसार में कोई साधना प्रयोग सफल हो न हो मगर बगुलामुखी देवी की साधना आज भी  उतनी ही तीव्र है जितनी कि हजारो वर्ष पूर्व थी समय
के साथ साथ सभी साधना प्रयोगो में कुछ ना कुछ अंतर अवश्य आता है

और उनके मंत्रो में सुधार करना पड़ता है मगर कहना ही पड़ता है कि ये
साधना आज भी उतना ही पैनापन लिए हुए है इसमें रत्तीभर का फर्क न- ही पड़ा है हमारे जीवन में कोई न कोई परेशानी अवश्य ही लगीरहती है

कोई न कोई शत्रु नया पैदा होता ही रहता है और हम  प्रयास करके  भी
छुटकारा प्राप्त नहीं कर सकते लिहाजा दिन पर दिन अंदर ही अंदर घुटते
रहते है कभी किसी तांत्रिक ,मांत्रिक ,ज्योतिषी के चक्कर लगाते रहते है ले -
किन हमें कही सफलता नहीं मिलती आज के वैज्ञानिक युग में  सोचते  है
कि मन्त्र,तंत्र जैसा कुछ होता नहीं है मगरअपने पडोसी को या अपने नज -दीक पहचान वालो को आगे बढ़ता हुआ देख जलने लगते है और किसी भी प्रकार उनको नुकसान करने कीकोशिश करते है ऐसे में वे किसी टोना टोटका
करने वाले  व्यक्ति से कुछ ख़राब क्रियाएँ या कहे टोना ,टोटका करा देते है

यह  टोना, टोटका करना -कराना तो बहुत ही आसान होता है  मगर इस
तरह की क्रियाओ को समाप्त करना काफी कठिन होता है इस सब के चक्कर
में व्यक्ति  उलझता जाता है कि उसका तन, मन , धन तीनो नष्ट होते रहते
है औरउसको  मानसिक रूप से भी परेशानी रहने लगती है वह बेचारा ऐसे कुचक्र में फस जाता है मगर खुद उसे ही कुछ भी पता नहीं चलता शत्रु भी  हमेशा पीठ पीछे वार पे वार किया करता है और हमें पता ही नहीं चलता ऐसे में हम करे भी तो क्या करे किस पर दोषारोपड करेकुछ समझ  में नहीं आता ऐसे में लोग अक्सर किसी झड़ फूक करने वाले व्यक्ति में पद जाते है 

और वह भी धीरे धीरे धन ऐंठता रहता है क्योकि सच बात यह है कि ऐसी 
क्रियाओ को  करना तो बहुत आसान है मगर पूर्णरूप से निदान कर पाना
इतना आसान काम नहीं है ऐसे में हमारे पास एक ही रास्ता बचता है कि
 हम ऐसे सिद्धपुरुष को ढूढे जिसे बंगलामुखी  सिद्ध हो मगर ऐसे योगी 
सन्यासीमिलना बहुत कठिन कार्य है मुझे याद है किजब में साधक के रूप में साधना करता था तब गुरु मुख से सुनने को मिला था कि ऐसी साधना सीखने के लिए जीवन के पूरे दस साल लगा दिए मगर कोई भी पूर्णता से जानने वाला कोई सिद्ध पुरुष नहीं नहीं मिला साधना को प्राप्त करने के लिए.

 हिमा- लय ,जंगलो ,पहाड़ो ,नगर -नगर गांवो मतलब  कि कहा -कहा  नहीं  ढूढ़ा  मगर निराशा ही  हाथ लगी तब कही जाकर एक सिद्ध पुरुष से मुलाकात  हुई यह सिद्धपुरुष ,झाँसी के पास दतिया के रहने वाले थे जब गुरू जी ने प्रमाण माँगा तो वे दूर एक खाली स्थान पर ले गए एक खम्बे पर कौआ बैठा था उन सिद्ध नेउस कौआ की औरदेखा कौआ भटाक से नीचे आ गिरा कहने का मतलब ये साधना इतनी तीव्र होती है  कि कोई भी शत्रु आपके  सामने  खड़ा नहीं रह सकता इसी शक्ति के माध्यम से किसी भी प्रकार का तांत्रिक प्रयोग को या टोना टोटके को दूर किया जा सकता है इसके माध्यम से अनेक कार्य किये जा सकते है शेष आगे ---------

Note:-

अगर आप योग से सम्बंधित किसी भी विषय पर जानना चाहते तो      नीचे लिखे दिए दिये पते पर संपर्क करे |

साधना प्रायोग से सम्बंधित जानकारी के लिए फ़ोन पर बात करें .

आपको कहीं भी नहीं मिलने वाली अगर आप को कहीं मिल भी जाती है तो उसकी सही  विधि और सही विधान नहीं मिलेगा यह साधना केवल गुरु मुख और गुरुद्वारा ही मिल सकता है

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है

विशेष -

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ज्योतिष एवं यंत्र


ज्योतिष एवं यंत्र


ब्रह्मांड में विभिन्न प्रकार की रहस्यमयी शक्तियां निरंतर ऊर्जा के रूप में प्रवाहित होती रहती हैं। हमारे ऋषि मुनियों को इन शक्तियों का आभास था तथा उन्हें इस बात का भी ज्ञान था कि इन शक्तियों का यदि विधिवत तरीकों से आह्वान किया जाए तो ये मनुष्यों को उनके कष्टों एवं दुखों से मुक्ति दिलाने में उनकी सहायता करती है एवं मनुष्य को जीवन मे सही दिशा एवं मार्ग दर्शन प्राप्त होता है।

ज्योतिष मे उपयोग किए जाने वाले यंत्र एवं मंत्र ब्रह्मांड में स्थित विभिन्न शक्तियों तक पहुंचने का या उनका आह्वान करने का सशक्त माध्यम है। यदि इन यंत्रों की विधिवत प्रकार से अभिमंत्रित करके इनकी पूजा अर्चना की जाए तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि ये हमें संबन्धित शक्तियों की कृपा का पात्र बनाते हैं।

ग्रह या देव मंत्र जप करते समय यदि संबन्धित ग्रह या देवता का यंत्र भी स्थापित कर लिया जाए तो जप के प्रभाव में वृद्धि होती है। विभिन्न ज्योतिषिय यंत्रों एवं इनके उपयोग का उल्लेख वेदों एवं पुराणों में विस्तृत रूप से मिलता है। वेदों के बारे में कहा जाता है कि ये अपौरुषेय हैं। इस कारण इनमें विभिन्न यंत्रों का उल्लेख तो मिलता है परंतु इन यंत्रों के रचयिताओं के इतिहास एवं जीवन वृत का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता। वेदों में इन्हे जीवन दर्शन एवं रहस्य सूत्ररूप में ही निरूपित किया गया है।

यंत्रों मे प्रयुक्त विभिन्न आकृतियां एवं उनका महत्व

जिस प्रकार मानव शरीर विशालकाय ब्रह्मांड का सूक्ष्म रूप है उसी प्रकार ज्योतिषीय यंत्र भी विशालकाय ब्रह्मांड की रेखाचित्र के रूप में एक सूक्ष्म अभिव्यक्ति है। यंत्रों की रचना विभिन्न आकृतियों, अंकों एवं मंत्रों के संयोग से की गई है। आइए जानें क्या है इन आकृतियों का महत्व एवं उपयोगिता।

यंत्रों में मुख्यत: जिन 5 प्रकार की आकृतियों का प्रयोग किया गया है वे हैं बिन्दु, वृत, ऊर्ध्वमुखी त्रिकोण, अधोमुखी त्रिकोण एवं वर्ग जो कि क्रमश: आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करते हैं।

बिन्दु-

 प्रत्येक यंत्र मे मध्य मे स्थित बिन्दु आकाश तत्व का ध्योतक है। पृथ्वी पर स्थित समस्त चर एवं अचर जगत का आरंभिक बिन्दु या केंद्र आकाश ही माना जाता है। यंत्र के केंद्र में स्थित बिन्दु को साक्षात शिव की संज्ञा दी जाती है जो की समस्त शक्तियों के स्त्रोत एवं केंद्र हैं।

वृत-

 यंत्रों मे स्थित वृत वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। वृत की कल्पना करते ही आंखों के सामने एक चक्राकार आकृति उभर कर सामने आती है। जब एक बिन्दु को दूसरी बिन्दु के चारों ओर घुमाया जाए तो उसकी चक्राकार गति होती है। वायु सदैव चलायमान एवं गतिशील है। अत: यंत्रों में स्थित वृत वायु तत्व एवं गतिशीलता का प्रतिनिधित्व करते हैं।

त्रिकोण-

 त्रिकोण को वैदिक साहित्य में अत्यधिक महत्व दिया गया है। त्रिकोण वह पहला द्विआयामी रेखाचित्र है जो की स्थान घेरता है। त्रिकोण दो प्रकार के होते हैं। ऊर्ध्वमुखी एवं अधोमुखी।

ऊर्ध्वमुखी त्रिकोण-

 अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। क्योकि अग्नि की गति सदैव ऊर्ध्वमुखी होती है। यह त्रिकोण उन्नति एवं प्रगति का द्योतक है। वैदिक साहित्य में इसे शिव की संज्ञा दी जाती है। यह त्रिकोण धर्म, आध्यात्म एवं भक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।

अधोमुखी त्रिकोण-

 यह जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। जल की गति अधोमुखी होती है। जल के अभाव में संसार की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। यह सांसरिक कामनाओं, इच्छाओं एवं भौतिक तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।

षट्कोण -

 ऊर्ध्व मुखी एवं अधोमुखी त्रिकोण से मिलकर बनने वाला षट्कोण शिव एवं शक्ति दोनों के संयोग को प्रदर्शित करता है। शिव एवं शक्ति के संयोग के बिना संसार की कल्पना भी करना असंभव है। इन षट्कोणों के मध्य में स्थित खाली स्थानों को यंत्रों में शिव एवं शक्ति का क्रीड़ा स्थल माना जाता है।

इन खाली स्थानों में विभिन्न अंक एवं मंत्र इस प्रकार लिखे जाते हैं जिससे की साधक को इन दोनों की अधिक से अधिक कृपा एवं आशीर्वाद प्राप्त हो सके जिससे उसके आध्यात्मिक एवं भौतिक जीवन में उचित संतुलन स्थापित हो सके, उसके जीवन में सुख शांति बनी रहे एवं वह सन्मार्ग पर चलता हुआ निरंतर उन्नति की ओर अग्रसर हो सके।

वर्ग -

 वर्गाकार रेखाचित्र पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। वर्ग यंत्रों मे आकाश से आए हुए ऊर्जा के विस्तार का प्रतिनिधित्व करते हैं। विस्तार पृथ्वी का गुण है एवं आकाश से आई हुई ऊर्जा का विस्तार पृथ्वी पर ही होता है। अत: वर्ग पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।

ज्योतिष में प्रयुक्त यंत्र मुख्यत: इन पांच आकृतियों के संयोग से ही बनाए गए हैं एवं भिन्न-भिन्न यंत्रों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के मंत्रों एवं अंकों के चयन इस प्रकार से किया गया है जिससे कि साधक को संबन्धित शक्ति की अधिक से अधिक कृपा प्राप्त हो सके।

 जब साधक मंत्रों द्वारा अभिमंत्रित यंत्र पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है तथा श्रद्धा से इसकी पूजा करता है तो उसका मस्तिष्क एवं शरीर उस यंत्र की आकार शक्ति से प्रभावित एवं मार्गदर्शित होता है और धीरे-धीरे साधक को संबन्धित शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त होने लगता है।

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

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Tuesday, January 21, 2020

शमशानवासिनी साधना





शमशानवासिनी  साधना


यह अनंत ब्रह्माण्ड का एक अत्यंत ही सूक्ष्म भाग यह पृथ्वी है, और इस पृथ्वी पर हर एक व्यक्ति का स्वयं का अस्तित्व भी अत्यधिक सूक्ष्म से सूक्ष्मतम ही कहा जा सकता है, फिर भी हम अपने ज्ञान को अपनी सीमा बना कर उससे आगे न सोचने के लिए कटिबद्ध हो जाते है.

 आज के युग में भले ही मनुष्य के अलावा इतरयोनी पर विविध प्रकार के प्रश्न कई कई लोग लगाते है लेकिन ऐसे अनगिनत सवाल है जिसका उत्तर अभी तक विज्ञान के द्वारा प्राप्त नहीं हुआ है. क्यों की आधुनिक विज्ञान की विचारधारा की एक सीमा है जिसके आगे सोचना संभव नहीं है. लेकिन आज के युग में भी तथा पुरातन काल में हज़ारो प्रकार के उदहारण देखने को मिलते है जो की इतरयोनी से सबंधित होते है.

यूँ कुछ भूत प्रेत या दूसरी इतरयोनी के जीव अत्यधिक संवेदनशील तथा शालीन और मर्यादापूर्ण भी हो सकते है लेकिन ज्यादातर इसके विपरीत ही देखा जाता है. समजने के लिए इसे कुछ इस प्रकार समजा जा सकता है की वस्तुतः मनुष्य के अपने पुरे जीवन काल में वासनात्मक रूप से अत्यधिक सक्रीय रहा है, तो मृत्यु परंत उसको सूक्ष्म शरीर की प्राप्ति न हो कर विविध वासना शरीर की प्राप्ति होती है. 

वासना का अर्थ यहाँ पर मात्र काम से नहीं है, मनुष्य के अंदर की सभी नकारात्मक और अनैतिक भावना जिसके माध्यम से किसी का भी अहित करने की विचार मस्तिष्क में जन्म ले उसे भी वासना ही कहा जा सकता है. यही विविध शरीर से भुत, प्रेत, ब्रह्मराक्षस आदि का अस्तित्व है. मृत्यु परंत भी इनकी मानसिक दशा-अवदशा से मुक्ति न होने के कारण यह अपने स्वभावगत कर्म ही करते है तथा दूसरों को हानि पहोचाने के कार्य में विशेष तृप्ति होती है और इसी कारण कई बार कई भूत प्रेत इत्यादि कोई जगह या किसी व्यक्ति के मानस पर अपना प्रभाव डालना शुरू कर देते है.

 व्यक्ति के आत्मिक बल की या शक्ति की कमी होने पर कई व्यक्तियो के शरीर में भी प्रवेश कर अपनी पैशाचिक इछाओ की पूर्ति कई इतरयोनी करती है ऐसे कई किस्से सामने आते रहते है. लेकिन इस प्रकार की पीड़ा से मुक्ति के लिए व्यक्ति या साधक किस प्रकार कार्य कर सकता है.
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प्रस्तुत प्रयोग भगवती महाकाली शमशानवासिनी के सबंध में है. इस प्रयोग के माध्यम से साधक एक और स्वयं तथा अपने परिवार की सुरक्षा कर सकता है, उसके साथ व्यक्ति अपने जीवन में एसी बाधाओ से ग्रस्त पीडितो की मदद भी कर सकता है. साधक के अंदर यह तीव्रता की प्राप्ति होती है जिसके कारण व्यक्ति इतरयोनी की बाधा को दूर कर सकता है तथा भगवती शमशानवासिनी की कृपा फल से कई लोगो की समस्या को दूर कर सकता है. 

यह प्रयोग तीव्र प्रयोग है लेकिन साधक का अहित होने की कोई चिंता नहीं है. अतः कोई भी साधक निश्चिंत हो कर यह प्रयोग सम्प्पन कर सकता है. इस प्रकार साधक एक प्रयोग कर के सेकडो लोगो की मदद कर सकता है. हाँ, साधक को अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए. हमेशा लोक हित तथा लोक कल्याण के कार्य में रत साधक को देवी किसी भी प्रकार की असुविधा नहीं होने देती.

साधक यह प्रयोग कृष्ण पक्ष की अष्टमी या किसी भी रविवार को शुरू करे. समय रात्रि में १० बजे के बाद का रहे.

साधक के लिए यह उत्तम है की वह शमशान में जा कर यह प्रयोग करे लेकिन अगर यह संभव न हो तो साधक इसे घर पर भी सम्प्पन कर सकता है. अगर शमशान में यह प्रयोग करना हो तो साधक को पूर्ण रक्षा विधान आदि प्रक्रियाओ की पूर्ण समज ले कर ही यह प्रयोग शमशान में करना चाहिए.

साधक रात्रि में स्नान से निवृत हो कर, लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर बैठ जाए. साधक का मुख उत्तर की तरफ ही होना चाहिए.

इसके बाद साधक सदगुरुदेव, गणपति, भैरव पूजन सम्प्पन करे, तथा महाकाली का यन्त्र या विग्रह अपने सामने रखे. और पूजन करे. पूजन में जो दीपक रहे वह चार मुख वाला हो. यह दीपक आटे से भी बनाया जा सकता है.

साधक न्यास आदि प्रक्रिया को कर देवी शमशानकाली का ध्यान करे. तथा उसके बाद साधक मूल मन्त्र का जाप करे.

करन्यास

क्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
क्रीं तर्जनीभ्यां नमः
क्रूं मध्यमाभ्यां नमः
क्रैं अनामिकाभ्यां नमः
क्रौं कनिष्टकाभ्यां नमः
क्रः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः

अङ्गन्यास

क्रां हृदयाय नमः
क्रीं शिरसे स्वाहा
क्रूं शिखायै वषट्
क्रैं कवचाय हूम
क्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
क्रः अस्त्राय फट्

साधक को निम्न मन्त्र की 51 माला मंत्र जाप करना है. साधक 21 माला के बाद थोड़ी देर विश्राम ले सकता है. साधक को रुद्राक्ष माला का प्रयोग करना चाहिए. यह क्रम साधक को 21 दिन करना चाहिए. 21 दिन पूर्ण होने पर साधक माला को शमशान में फेंक दे.

मन्त्र :- ॐ क्रीं शमशानवासिने भूतादिपलायन कुरु कुरु नमः

(OM KREENG SHAMSHAANVAASINE BHUTAADIPALAAYAN KURU KURU NAMAH)

इसके बाद साधक को जब भी मन्त्र का प्रयोग करना हो तो भुत प्रेत ग्रस्त किसी भी जगह में या व्यक्ति के पास जा कर उपरोक्त मंत्र को ७ बार मन ही मन उच्चारण कर शमशान कालिका को प्रणाम कर, मन्त्र का मानसिक जाप करते हुवे उस जगह या सबंधित व्यक्ति पर पानी छिडके तो बाधा दूर होती है.

राजगुरु जी

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Monday, January 20, 2020

वाक् सिद्धि विकास हेतु श्री तारा साधना




वाक् सिद्धि विकास हेतु श्री तारा साधना


 देवी तारा दस महाविद्याओं में से एक है इन्हे नील सरस्वती भी कहा जाता है ! ये सरस्वती का तांत्रिक स्वरुप है

अब आप एक एक अनार निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ गणेश जी व् अक्षोभ पुरुष को काट कर बली दे ..

ॐ गं उच्छिस्ट गणेशाय नमः भो भो देव प्रसिद प्रसिद मया दत्तं इयं बलिं गृहान हूँ फट .

.ॐ भं क्षं फ्रें नमो अक्षोभ्य काल पुरुष सकाय प्रसिद प्रसिद मया दत्तं इयं बलिं गृहान हूँ फट ..

अब आप इस मंत्र की एक माल जाप करे ..
॥क्षं अक्षोभ्य काल पुरुषाय नमः स्वाहा॥

फिर आप निम्न मंत्र की एक माला जाप करे ..
॥ह्रीं गं हस्तिपिशाची लिखे स्वाहा॥

इन मंत्रो की एक एक माला जाप शरू में व् अंत में  करना अनिवार्य है क्यों नील तारा देवी के बीज मंत्र की जाप से अत्यंत भयंकर उर्जा का विस्फोट होता है शरीर के अंदर ..

ऐसा लगता है जैसे की आप हवा में उड़ रहे हो .. एक हि क्षण में सातो आसमान के ऊपर विचरण की अनुभति तोह दुसरे ही क्षण अथाह समुद्र में गोता  लगाने  की ..

 इतना  उर्जा का विस्फोट होगा की आप कमजोर पड़ने लग जायेंगे आप के शारीर उस उर्जा का प्रभाव व् तेज को सहन नहीं कर सकते इस के लिए ही यह दोनों मात्र शुरू व् अंत में एक एक माला आप लोग अवस्य करना .. नहीं तोह आप को विक्षिप्त होने से स्वं माँ भी नहीं बचा सकती ..

इस साधना से आप के पांच चक्र जाग्रत हो जाते है तोह आप स्वं ही समझ सकते हो इस मंत्र में कितनी उर्जा निर्माण करने की क्षमता है .. 

एक एक चक्र को उर्जाओ के तेज धक्के मार मार के जागते है ..अरे परमाणु बम  क्या चीज़ है भगवती की इस बीज मंत्र के सामने ?

सब के सब धरे रह जायेंगे ..

मूल मंत्र-

॥स्त्रीं ॥   ॥ STREENG ॥

जप के उपरांत रोज  देवी के दाहिने हात में समर्पण व् क्षमा पार्थना करना ना भूले ..

साधना समाप्त करने की उपरांत यथा साध्य हवन  करना .. व् एक कुमारी कन्या को भोजन करा देना ..अगर किसी कन्या को भोजन करने में कोई असुविधा हो तोह आप एक वक्त में खाने की जितना मुल्य हो वोह आप किसी जरुरत मंद व्यक्ति को दान कर देना ...

भगवती आप सबका कल्याण करे ..

जब भगवती का बीजमंत्र का एक लाख से ऊपर जप पूर्ण हो जाये तब उनके अन्य मंत्रो का जाप लाभदायी होता है

कुछ लॊग अपने आपको वयक्त नहीं कर पाते, उनमे बोलने की छमता नहीं होती ,उनमे वाक् शक्ति का विकास नहीं होता ऐसे जातको को बुधवार के दिन तारा यन्त्र की स्थापना करनी चाहिए ! उसका पंचोपचार पूजन करने के पश्चात स्फटिक माला से इस मंत्र का २१ माला जप करना चाहिए -

मंत्र -

 ॐ नमः पद्मासने शब्दरुपे ऐं ह्रीं क्लीं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा

२१ वे दिन हवन सामग्री मे जौ-घी मिलाकर उपरोक्त मंत्र का १०८ आहुति दे और पूर्ण आहुति प्रदान करे !

इस साधना से वाक् शक्ति का विकास होता है , आवाज़ का कम्पन जाता रहता है ! यह मोहिनी विद्या है एवं बहुत से प्रवचनकार,कथापुराण वाचक इसी मंत्र को सिद्ध कर जन समूह को अपने शब्द जालो से मोहते है !

अपने पास कुछ भी गोपनीय नहीं रख रहा सब आप लोगो से शेयर कर रहा हु !! प्रतिदिन साधना से पूर्व माँ तारा का पूजन कर एक -एक माला (स्त्रीम ह्रीं हुं ) तारा कुल्लुका एवं ( अं मं अक्षोभ्य श्री ) की अवश्य करे

Note:-

अगर आप योग से सम्बंधित किसी भी विषय पर जानना चाहते तो      नीचे लिखे दिए दिये पते पर संपर्क करे |

साधना प्रायोग से सम्बंधित जानकारी के लिए फ़ोन पर बात करें .

आपको कहीं भी नहीं मिलने वाली अगर आप को कहीं मिल भी जाती है तो उसकी सही  विधि और सही विधान नहीं मिलेगा यह साधना केवल गुरु मुख और गुरुद्वारा ही मिल सकता है

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है

विशेष -

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राजगुरु जी

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तिलोत्तमा अप्सरा साधना




तिलोत्तमा अप्सरा  साधना


तिलोत्तमा अप्सरा की गिनती भी श्रेष्ठ अप्सराओं मे होती हैं। यह अप्सरा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनो ही रुप मे साधक की सहायता करती रहती हैं। यह साधना अनुभुत हैं। इस साधना को करने से सभी सुखो की प्राप्ति होती हैं।

 इस साधना को शुरु करते ही एक – दो दिन में धीमी धीमी खुशबू का प्रवाह होने लगता हैं। यह खुशबू तिलोत्तमा के सामने होने की पूर्व सुचना हैं। अप्सरा का प्रत्यक्षीकरण एक श्रमसाध्य कार्य हैं। मेहनत बहुत ही जरुरी हैं।

 एक बार अप्सरा के प्रत्यक्षीकरण के बाद कुछ भी दुर्लभ नहीं रह जाता, इसमे कोई दोराय नहीं हैं। यह प्रक्रिया आपकी सेवा में प्रस्तुत करने की कोशिश करता हूँ।

 सामान्यतः अप्सरा साधना भी गोपनीयता की श्रेष्णी में आती हैं। सभी को इस प्रकार की साधना जीवन मे एक बार सिद्ध करने की पुरी कोशिश करनी चाहिए क्योंकि कलियुग में जो भी कुछ चाहिए वो सब इस प्रकार की साधना से सहज ही प्राप्त किया जा सकता हैं।

इन साधनाओं की अच्छी बात यह हैं कि इन साधनाओं को साधारण व्यक्ति भी कर सकता हैं मतलब उसको को पंडित तांत्रिक बनाने की कोई अवश्यकता नहीं हैं।

साधक स्नान कर ले अगर नही भी कर सको तो हाथ-मुहँ अच्छी तरह धौकर, धुले वस्त्र पहनकर, रात मे ठीक 10 बजे के बाद साधना शुरु करें। रोज़ दिन मे एक बार स्नान करना जरुरी है। मंत्र जाप मे कम्बल का आसन रखे और अप्सरा और स्त्री के प्रति सम्मान आदर होना चाहिए।

 अप्सरा , गुरु, धार्मिक ग्रंथो और विधि मे पुर्ण विश्वास होना चाहिए, नहीं तो सफलत होना मुश्किल हैं।

 अविश्वास का साधना मे कोई स्थान नही है। साधना का समय एक ही रखने की कोशिश करनी चाहिए।

एक स्टील की प्लेट मे सारी सामग्री रख ले। साधना करते समय और मंत्र जप करते समय जमीन को स्पर्श नही करते। माला को लाल या किसी अन्य रंग के कपडे से ढककर ही मंत्र जप करे या गौमुखी खरीदे ले। मंत्र जप को अगुँठा और माध्यमा से ही करे ।

मंत्र जपते समय माला मे जो अलग से एक दान लगा होता हैं उसको लांघना नहीं है मतलब जम्प नहीं करना हैं। जब दुसरी माला शुरु हो तो माला के आखिए दाने/मनके को पहला दान मानकर जप करें, इसके लिए आपको माला को अंत मे पलटना होगा। इस क्रिया का बैठकर पहले से अभ्यास कर लें।

पूजा सामग्री:-

 सिन्दुर, चावल, गुलाब पुष्प, चौकी, नैवैध, पीला आसन, धोती या कुर्ता पेजामा, इत्र, जल पात्र मे जल, चम्मच, एक स्टील की थाली, मोली/कलावा, अगरबत्ती,एक साफ कपडा बीच बीच मे हाथ पोछने के लिए, देशी घी का दीपक, (चन्दन, केशर, कुम्कुम, अष्टगन्ध यह सभी तिलक के लिए))

विधि :

पूजन के लिए स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ-सुथरे आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके बैठ जाएं। पूजन सामग्री अपने पास रख लें।

बायें हाथ मे जल लेकर, उसे दाहिने हाथ से ढ़क लें। मंत्रोच्चारण के साथ जल को सिर, शरीर और पूजन सामग्री पर छिड़क लें या पुष्प से अपने को जल से छिडके।
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ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
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(निम्नलिखित मंत्र बोलते हुए शिखा/चोटी को गांठ लगाये / स्पर्श करे)

ॐ चिद्रूपिणि महामाये! दिव्यतेजःसमन्विते। तिष्ठ देवि! शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥
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(अपने माथे पर कुंकुम या चन्दन का तिलक करें)

ॐ चन्दनस्य महत्पुण्यं, पवित्रं पापनाशनम्। आपदां हरते नित्यं, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा॥
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(अपने सीधे हाथ से आसन का कोना जल/कुम्कुम थोडा डाल दे) और कहे
ॐ पृथ्वी! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम्॥
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संकल्प:- दाहिने हाथ मे जल ले।
मैं ........अमुक......... गोत्र मे जन्मा,.........
.......... यहाँ आपके पिता का नाम.......... ......... का पुत्र .............................यहाँ आपका नाम....................., निवासी.......................आपका पता............................ आज सभी देवी-देव्ताओं को साक्षी मानते हुए देवी तिलोत्त्मा अप्सरा की पुजा, गण्पति और गुरु जी की पुजा देवी तिलोत्त्मा अप्सरा के साक्षात दर्शन की अभिलाषा और प्रेमिका रुप मे प्राप्ति के लिए कर रहा हूँ जिससे देवी तिलोत्त्मा अप्सरा प्रसन्न होकर दर्शन दे और मेरी आज्ञा का पालन करती रहें साथ ही साथ मुझे प्रेम, धन धान्य और सुख प्रदान करें।
जल और सामग्री को छोड़ दे।
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गणपति का पूजन करें।

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात पर ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
ॐ श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः। ॐ श्री गुरवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
गुरु पुजन कर लें कम से कम गुरु मंत्र की चार माला करें या जैसा आपके गुरु का आदेश हो।
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणि नमोअस्तुते
ॐ श्री गायत्र्यै नमः। ॐ सिद्धि बुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधि
पतये नमः।

ॐ लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः। ॐ उमामहेश्वराभ्यां नमः। ॐ वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः।
ॐ शचीपुरन्दराभ्यां नमः। ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
ॐ भ्रं भैरवाय नमः का 21 बार जप कर ले।
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अब अप्सरा का ध्यान करें और सोचे की वो आपके सामने हैं।

दोनो हाथो को मिलाकर और फैलाकर कुछ नमाज पढने की तरफ बना लो। साथ ही साथ

 “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीं तिलोत्त्मा अप्सरा आगच्छ आगच्छ स्वाहा”

मंत्र का 21 बार उचारण करते हुए एक एक गुलाब थाली मे चढाते जाये। अब सोचो कि अप्सरा आ चुकी हैं।

हे सुन्दरी तुम तीनो लोकों को मोहने वाली हो तुम्हारी देह गोरे गोरे रंग के कारण अतयंत चमकती हुई हैं। तुम नें अनेको अनोखे अनोखे गहने पहने हुये और बहुत ही सुन्दर और अनोखे वस्त्र को पहना हुआ हैं।

आप जैसी सुन्दरी अपने साधक की समस्त मनोकामना को पुरी करने मे जरा सी भी देरी नही करती। ऐसी विचित्र सुन्दरी तिलोत्तमा अप्सरा को मेरा कोटि कोटि प्रणाम।
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इन गुलाबो के सभी गन्ध से तिलक करे। और स्वयँ को भी तिलक कर लें।

ॐ अपूर्व सौन्दयायै, अप्सरायै सिद्धये नमः।

मोली/कलवा चढाये : वस्त्रम् समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
गुलाब का इत्र चढाये : गन्धम समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
फिर चावल (बिना टुटे) : अक्षतान् समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः

पुष्प : पुष्पाणि समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
अगरबत्ती : धूपम् आघ्रापयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः

दीपक (देशी घी का) : दीपकं दर्शयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
मिठाई से पुजा करें।: नैवेद्यं निवेदयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
फिर पुजा सामप्त होने पर सभी मिठाई को स्वयँ ही ग्रहण कर लें।
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पहले एक मीठा पान (पान, इलायची, लोंग, गुलाकन्द का) अप्सरा को अर्प्ति करे और स्वयँ खाये। इस मंत्र की स्फाटिक की माला से 21 माला जपे और ऐसा 11 दिन करनी हैं।

ॐ क्लीं तिलोत्त्मा अप्सरायै मम वश्मनाय क्लीं फट
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यहाँ देवी को मंत्र जप समर्पित कर दें। क्षमा याचना कर सकते हैं। जप के बाद मे यह माला को पुजा स्थान पर ही रख दें। मंत्र जाप के बाद आसन पर ही पाँच मिनट आराम करें।

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात पर ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
ॐ श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः।

यदि कर सके तो पहले की भांति पुजन करें और अंत मे पुजन गुरु को समर्पित कर दे।

अंतिम दिन जब अप्सरा दर्शन दे तो फिर मिठाई इत्र आदि अर्पित करे और प्रसन्न होने पर अपने मन के अनुसार वचन लेने की कोशिश कर सकते हैं।
पुजा के अंत मे एक चम्मच जल आसन के नीचे जरुर डाल दें और आसन को प्रणाम कर ही उठें।
॥ हरि ॐ तत्सत ॥
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नियम जिनका पालन अधिक से अधिक इस साधना मे करना चाहिए वो सब नीचे लिखे हैं।
ब्रह्मचरी रहना परम जरुरी होता हैं अगर कुछ विचारना हैं तो केवल अपने ईष्ट का या ॐ नमः शिवाय या अप्सरा का ध्यान करें, आप सदैव यह सोचे कि वो सुन्दर सी अप्सरा आपके पास ही मौजुद हैं और आपको देख रही हैं। ऐसी अवस्था मे क्या शोभनीय हैं आप स्वयँ अन्दाजा लगा सकते हैं।

भोजन: मांस, शराब, अन्डा, नशे, तम्बाकू, तामसिक भोजन आदि सभी से ज्यादा से ज्यादा दुर रहना हैं। इनका प्रयोग मना ही हैं। केवल सात्विक भोजन ही करें क्योंकि यह काम भावना को भडकाने का काम करते हैं।

 मंत्र जप के समय कृपा करके नींद्, आलस्य, उबासी, छींक, थूकना, डरना, लिंग को हाथ लगाना, सेल फोन को पास रखना, जप को पहले दिन निधारित संख्या से कम-ज्यादा जपना, गा-गा कर जपना, धीमे-धीमे जपना, बहुत् ही ज्यादा तेज-तेज जपना, सिर हिलाते रहना, स्वयं हिलते रहना, मंत्र को भुल जाना (पहले से याद नहीं किया तो भुल जाना), हाथ-पैंर फैलाकर जप करना यह सब कार्य मना हैं।

 मेरा मतलब हैं कि बहुत ही गम्भीरता से मंत्र जप करना हैं। यदि आपको पैर बदलने की जरुरत हो तो माला पुरी होने के बाद ही पैरों को बदल सकते हैं या थोडा सा आराम कर सकते हैं लेकिन मंत्र जप बन्द ना करें।

यदि आपको सिद्धि चाहिए तो भगवन श्री शिव शंकर भगवान के कथन को कभी ना भुलना कि "जिस साधक की जिव्हा परान्न (दुसरे का भोजन खाना) से जल गयी हो, जिसका मन में परस्त्री (अपनी पत्नि के अलावा कोई भी) हो और जिसे किसी से प्रतिशोध लेना हो उसे भला केसै सिद्धि प्राप्त हो सकती हैं"।

यदि उसे एक बार भी प्रेमिका की तरह प्रेम/पुजा किया तो आने मे कभी देरी नही करती है। साधना के समय वो एक देवी मात्र ही हैं और आप साधक हैं। इनसे सदैव आदर से बात करनी चाहिए। समस्त अप्सराएँ वाक सिद्ध होती हैं।

किसी भी साधना को सीधे ही करने नही बैठना चाहिए। उससे पहले आपको अपना कुछ अभ्यास करना चाहिए। मंत्रो का उचारण कैसे करना है यह भी जान लेना चाहिए और बार बार बोलकर अभ्यास कर लेना चाहिए।

ऐसा करने पर अप्सरा जरुर सिंद्ध होती हैं बाकी जो देवी कालिका की इच्छा क्योंकि होता वही हैं जो देवी जगत जननी चाहती हैं। साधना से किसी को नुकसान पहुँचाने पर साधना शक्ति स्वयँ ही समाप्त होने लगती हैं।

 इसलिए अपनी साधना की रक्षा करनी चाहिए। किसी को अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने की जरुरत नहीं हैं। यहाँ कोई किसी के काम नहीं आता हैं लेकिन फिर भी कभी कभार किसी ना किसी जो बहुत ही जरुरत मन्द हो की सहायता करी जा सकती हैं। वैसे यह साधना साधक का ही ज्यादा भला करने वाले हैं।

मैं तो इतना ही कहुगाँ कि इस साधना को नए साधक और ऐसे आदमी को जरुर करना चाहिए जो देवी देवता मे यकीन ना रखता हो। यदि ऐसे लोगों थोडा सा विश्वास करके भी इस साधना को करते हैं तो उन्हें कुछ ना कुछ अच्छे परिणाम जरुर मिलने चाहिए।

यदि किसी को साधना करने मे कोई दिक्कत हो रही हैं तो हमसे भी सम्पर  किया जा सकता हैं

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सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...