ज्योतिष एवं यंत्र
ब्रह्मांड में विभिन्न प्रकार की रहस्यमयी शक्तियां निरंतर ऊर्जा के रूप में प्रवाहित होती रहती हैं। हमारे ऋषि मुनियों को इन शक्तियों का आभास था तथा उन्हें इस बात का भी ज्ञान था कि इन शक्तियों का यदि विधिवत तरीकों से आह्वान किया जाए तो ये मनुष्यों को उनके कष्टों एवं दुखों से मुक्ति दिलाने में उनकी सहायता करती है एवं मनुष्य को जीवन मे सही दिशा एवं मार्ग दर्शन प्राप्त होता है।
ज्योतिष मे उपयोग किए जाने वाले यंत्र एवं मंत्र ब्रह्मांड में स्थित विभिन्न शक्तियों तक पहुंचने का या उनका आह्वान करने का सशक्त माध्यम है। यदि इन यंत्रों की विधिवत प्रकार से अभिमंत्रित करके इनकी पूजा अर्चना की जाए तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि ये हमें संबन्धित शक्तियों की कृपा का पात्र बनाते हैं।
ग्रह या देव मंत्र जप करते समय यदि संबन्धित ग्रह या देवता का यंत्र भी स्थापित कर लिया जाए तो जप के प्रभाव में वृद्धि होती है। विभिन्न ज्योतिषिय यंत्रों एवं इनके उपयोग का उल्लेख वेदों एवं पुराणों में विस्तृत रूप से मिलता है। वेदों के बारे में कहा जाता है कि ये अपौरुषेय हैं। इस कारण इनमें विभिन्न यंत्रों का उल्लेख तो मिलता है परंतु इन यंत्रों के रचयिताओं के इतिहास एवं जीवन वृत का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता। वेदों में इन्हे जीवन दर्शन एवं रहस्य सूत्ररूप में ही निरूपित किया गया है।
यंत्रों मे प्रयुक्त विभिन्न आकृतियां एवं उनका महत्व
जिस प्रकार मानव शरीर विशालकाय ब्रह्मांड का सूक्ष्म रूप है उसी प्रकार ज्योतिषीय यंत्र भी विशालकाय ब्रह्मांड की रेखाचित्र के रूप में एक सूक्ष्म अभिव्यक्ति है। यंत्रों की रचना विभिन्न आकृतियों, अंकों एवं मंत्रों के संयोग से की गई है। आइए जानें क्या है इन आकृतियों का महत्व एवं उपयोगिता।
यंत्रों में मुख्यत: जिन 5 प्रकार की आकृतियों का प्रयोग किया गया है वे हैं बिन्दु, वृत, ऊर्ध्वमुखी त्रिकोण, अधोमुखी त्रिकोण एवं वर्ग जो कि क्रमश: आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
बिन्दु-
प्रत्येक यंत्र मे मध्य मे स्थित बिन्दु आकाश तत्व का ध्योतक है। पृथ्वी पर स्थित समस्त चर एवं अचर जगत का आरंभिक बिन्दु या केंद्र आकाश ही माना जाता है। यंत्र के केंद्र में स्थित बिन्दु को साक्षात शिव की संज्ञा दी जाती है जो की समस्त शक्तियों के स्त्रोत एवं केंद्र हैं।
वृत-
यंत्रों मे स्थित वृत वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। वृत की कल्पना करते ही आंखों के सामने एक चक्राकार आकृति उभर कर सामने आती है। जब एक बिन्दु को दूसरी बिन्दु के चारों ओर घुमाया जाए तो उसकी चक्राकार गति होती है। वायु सदैव चलायमान एवं गतिशील है। अत: यंत्रों में स्थित वृत वायु तत्व एवं गतिशीलता का प्रतिनिधित्व करते हैं।
त्रिकोण-
त्रिकोण को वैदिक साहित्य में अत्यधिक महत्व दिया गया है। त्रिकोण वह पहला द्विआयामी रेखाचित्र है जो की स्थान घेरता है। त्रिकोण दो प्रकार के होते हैं। ऊर्ध्वमुखी एवं अधोमुखी।
ऊर्ध्वमुखी त्रिकोण-
अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। क्योकि अग्नि की गति सदैव ऊर्ध्वमुखी होती है। यह त्रिकोण उन्नति एवं प्रगति का द्योतक है। वैदिक साहित्य में इसे शिव की संज्ञा दी जाती है। यह त्रिकोण धर्म, आध्यात्म एवं भक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
अधोमुखी त्रिकोण-
यह जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। जल की गति अधोमुखी होती है। जल के अभाव में संसार की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। यह सांसरिक कामनाओं, इच्छाओं एवं भौतिक तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।
षट्कोण -
ऊर्ध्व मुखी एवं अधोमुखी त्रिकोण से मिलकर बनने वाला षट्कोण शिव एवं शक्ति दोनों के संयोग को प्रदर्शित करता है। शिव एवं शक्ति के संयोग के बिना संसार की कल्पना भी करना असंभव है। इन षट्कोणों के मध्य में स्थित खाली स्थानों को यंत्रों में शिव एवं शक्ति का क्रीड़ा स्थल माना जाता है।
इन खाली स्थानों में विभिन्न अंक एवं मंत्र इस प्रकार लिखे जाते हैं जिससे की साधक को इन दोनों की अधिक से अधिक कृपा एवं आशीर्वाद प्राप्त हो सके जिससे उसके आध्यात्मिक एवं भौतिक जीवन में उचित संतुलन स्थापित हो सके, उसके जीवन में सुख शांति बनी रहे एवं वह सन्मार्ग पर चलता हुआ निरंतर उन्नति की ओर अग्रसर हो सके।
वर्ग -
वर्गाकार रेखाचित्र पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। वर्ग यंत्रों मे आकाश से आए हुए ऊर्जा के विस्तार का प्रतिनिधित्व करते हैं। विस्तार पृथ्वी का गुण है एवं आकाश से आई हुई ऊर्जा का विस्तार पृथ्वी पर ही होता है। अत: वर्ग पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।
ज्योतिष में प्रयुक्त यंत्र मुख्यत: इन पांच आकृतियों के संयोग से ही बनाए गए हैं एवं भिन्न-भिन्न यंत्रों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के मंत्रों एवं अंकों के चयन इस प्रकार से किया गया है जिससे कि साधक को संबन्धित शक्ति की अधिक से अधिक कृपा प्राप्त हो सके।
जब साधक मंत्रों द्वारा अभिमंत्रित यंत्र पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है तथा श्रद्धा से इसकी पूजा करता है तो उसका मस्तिष्क एवं शरीर उस यंत्र की आकार शक्ति से प्रभावित एवं मार्गदर्शित होता है और धीरे-धीरे साधक को संबन्धित शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त होने लगता है।
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
विशेष -
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महायोगी राजगुरु जी 《 अघोरी रामजी 》
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