Thursday, October 31, 2019

नौवी महाविद्या मातंगी





नौवी महाविद्या मातंगी


सांसारिक रूप में महाविद्या कमला का आराधना से धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति के बाद किसी भी आदमी को जरूरत होती है, अपने आभामंडल और प्रभाव को बढ़ाने की। इंसान चाहता है कि लोग उसके धन व ऐश्वर्य को समझें और उसे सम्मान दें। 

दूसरी ओर आध्यात्मिक क्षेत्र का साधक कमला की साधना से खुद को अंदर से परिपूर्ण करने के बाद प्रकृति को मोहित कर अपने साधना के स्तर को उठाना चाहता है। इसके लिए आवश्यकता पड़ती है नौवीं महाविद्या मातंगी की। इनमें पूरे ब्रह्मांड को मोहित करने की शक्ति है। जैसा कि मैंने पहले ही कहा था कि सभी महाविद्या में सब कुछ प्रदान करने की शक्ति है लेकिन उनके विशेषज्ञता के खास क्षेत्र हैं। 

तंत्र के क्षेत्र में मातंगी की साधना का काफी महत्व है। यह ममता की मूर्ति हैं और सामन्यतया साधकों पर प्रसन्न होने में अधिक देर नहीं लगाती हैं। इनकी प्रसन्नता से ज्ञान वृद्धि, शास्त्राज्ञाता, कवित्व शक्ति एवं संगीत विद्या की भी प्राप्ति संभव है।

 यह सम्मोहन और वशीकरण की अधिष्ठात्री हैं। इनके प्रयोग से भंडार की अक्षयवृद्धि होती है। आवश्यकता सिर्फ श्रद्धा का नियमपूर्वक साधना करने की है। मातंगी की साधना के बारे में संक्षिप्त जानकारी नीचे दी जा रही है। विस्तृत जानकारी के लिए अपने आसपास के किसी योग्य व्यक्ति से या मेल से मुझसे जानकारी ली जा सकती है।

मातंगी के कई नाम हैं। इनमें प्रमुख हैं-सुमुखी, लघुश्यामा या श्यामला, उच्छिष्टचांडालिनी, उच्छिष्टमातंगी, राजमातंगी, कर्णमातंगी, चंडमातंगी, वश्यमातंगी, मातंगेश्वरी, ज्येष्ठमातंगी, सारिकांबा, रत्नांबा मातंगी एवं वर्ताली मातंगी।

1-अष्टाक्षर मातंगी मंत्र- कामिनी रंजनी स्वाहा

विनियोग— अस्य मंत्रस्य सम्मोहन ऋषिः, निवृत् छंदः, सर्व सम्मोहिनी देवता सम्मोहनार्थे जपे विनियोकगः।

ध्यान--- श्यामंगी वल्लकीं दौर्भ्यां वादयंतीं सुभूषणाम्। चंद्रावतंसां विविधैर्गायनैर्मोहतीं जगत्।

फल व विधि------ विनियोग से ही मंत्र का फल स्पष्ट 20 हजार जप कर मधुयुक्त मधूक पूष्पों से हवन करने पर अभीष्ट की सिद्धि होती है।
-------------------------------------------------------

2-दशाक्षर मंत्र------ ऊं ह्री क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा।

विनियोग— अस्य मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषिःर्विराट् छंदः, मातंगी देवता, ह्रीं बीजं, हूं शक्तिः, क्लीं कीलकं, सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः।

अंगन्यास--- ह्रां, ह्रीं, ह्रूं, ह्रैं, ह्रौं, ह्रः से हृदयादि न्यास करें।

फल व विधि------ साधक छह हजार जप नित्य करते हुए 21 दिन प्रयोग करें। फिर दशांस हवन करें। चतुष्पद श्मसान या कलामध्य में मछली, मांस, खीर व गुगल का धूप दे तो कवित्व शक्ति की प्राप्ति होती है। इससे जल, अग्नि एवं वाणी का स्तंभन भी संभव है।

 इसकी साधना करने वाला वाद-विवाद में अजेय बन जाता है। उसके घर में स्वयं कुबेर आकर धन देते हैं।

3-लघुश्यामा मातंगी का विंशाक्षर मंत्र--------- ऐं नमः उच्छिष्ट चांडालि मांतगि सर्ववशंकरि स्वाहा।

विधि--- 

विनियोग व न्यास आदि के साथ देवी की पूजा कर 11, 21, 41 दिन या पूर्णिमा/आमावास्या से पूर्णिमा/आमावास्या तक एक लाख जप पूर्ण करें। मंत्र से ऐसा प्रतीत होता है कि इसका जप उच्छिष्ट मुंह किया जाना चाहिए। ऐसा किया भी जा सकता है लेकिन विभिन्न ग्रंथों में इसे पवित्र होकर करने का भी विधान है।

 अतः साधक सुविधानुसार जप करें। जप पू्र्ण होने के बाद महुए के फूल व लकड़ी के दशांस होम कर तर्पन व मार्जन करें।

फल-------

 इसके प्रयोग से डाकिनी, शाकिनी एवं भूत-प्रेत बाधा नहीं पहुंचा सकते हैं। इसकी साधना से प्रसन्न होकर देवी साधक को देवतुल्य बना देती है। उसकी समस्त अभिलाषाएं  पूरी होती हैं। 

चूंकि मातंगी वशीकरण विद्या की देवी हैं, इसलिए इसके साधक की वह शक्ति भी अद्भुत बढ़ती है। राजा-प्रजा सभी उसके वश में रहते हैं।

4-एकोन विंशाक्षर उच्छिष्ट मातंगी तथा द्वात्रिंशदक्षरों मातंगी मंत्र

मंत्र (एक)--- नमः उच्छिष्ट चांडालि मातंगी सर्ववशंकरि स्वाहा।

मंत्र (दो)---- ऊं ह्रीं ऐं श्रीं नमो भगवति उच्छिष्टचांडालि श्रीमातंगेश्वरि सर्वजन वशंकरि स्वाहा।

विधि-----

 विधिपूर्वक दैनिक पूजन के बाद निश्चित (जो साधक जप से पूर्व तय करे) समयावधि (घंटे या दिन) में दस हजार जप कर पुरश्चरण करे। उसके बाद दशांस हवन करे।

फल----- 

मधुयुक्त महुए के फूल व लकड़ी से हवन करने पर वशीकरण का प्रयोग सिद्ध होता है। मल्लिका फूल के होम से योग सिद्धि, बेल फूल के हवन से राज्य प्राप्ति, पलास के पत्ते व फूल के हवन में जन वशीकरण, गिलोय के हवन से रोगनाश, थोड़े से नीम के टुकड़ों व चावल के हवन से धन प्राप्ति, नीम के तेल से भीगे नमक से होम करने पर शत्रुनाश, केले के फल के हवन से समस्त कामनाओं की सिद्धि होती है।

 खैर की लकड़ी से हवन कर मधु से भीगे नमक के पुतले के दाहिने पैर की ओर हवन की अग्नि में तपाने से शत्रु वश में होता है।

5-सुमुखी मातंगी प्रयोग

इसमें दो मंत्र हैं जिसमें सिर्फ ई की मात्रा का अंतर है पर ऋषि दोनों के अलग-अलग हैं। इसमें फल समान है।

पहला मंत्र---- उच्छिष्ट चांडालिनी सुमुखी देवी महापिशाचिनी ह्रीं ठः ठः ठः।

इसके ऋषि अज, छंद गायत्री और देवता सुमुखी मातंगी हैं।

विधि---- 

देवी के विधिपूर्वक पूजन के बाद जूठे मुंह आठ हजार जप करने से ही इसका पुरश्चरण होता है। साधक को धन की प्राप्ति होती है और उसका आभामंडल बढ़ता है। हवन की विधि नीचे है।

दूसरा मंत्र-----

 उच्छिष्ट चांडालिनि सुमुखि देवि महापिशाचिनि ह्रीं ठः ठः ठः।

इसके ऋषि भैरव, छंद गायत्री और देवता सुमुखी मातंगी हैं।

विधि---- 

इसकी कई विधियां हैं। एक में एक लाख मंत्र जप का भी विधान वर्णित है। लेकिन मेरा मानना है कि देवी के विधिपूर्वक पूजन के बाद जूठे मुंह दस हजार जप करने से ही इसका पुरश्चरण होता है और साधक को धन की प्राप्ति होती है तथा उसका आभामंडल बढ़ता है।

हवन विधि------ 

दही से सिक्त पीली सरसो व चावल से हवन करने पर राजा-मंत्री सभी वश में हो जाते हैं। बिल्ली के मांस से हवन करने पर शस्त्र का वसीकरण होता है। बकरे के मांस के हवन से धन-समृद्धि मिलती है। 

खीर के हवन से विद्या प्राप्ति तथा मधु व घी युक्त पान के पत्तों के हवन से महासमृद्धि की प्राप्ति होती है।

 कौवे व उल्लू के पंख के हवन से शत्रुओं का विद्वेषण होता है।

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

                     08601454449

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249


महाकाली वीर साधना






महाकाली वीर साधना


वीर साधना सदा से साधको के मध्य प्रचलित रही है।वीर कई प्रकार के होते है।उनमे से ही एक है महाकाली वीर।इस वीर की उत्पत्ति महाकाली से ही होती है तथा ये उन्ही में विलीन हो जाता है।

ये कई कार्य संपन्न कर सकता है जैसे साधक को सुरक्षा प्रदान करना,कई प्रकार की जानकारी लाकर देना,कई गोपनीय साधनाओ के विषय में बताना आदि सभी कार्य कर सकता है जो साधक आदेश देता है।

वास्तव में इस वीर की अपनी कोई शक्ति नहीं होती है।ये महाकाली से शक्ति प्राप्त करता है,अतः इससे कभी कोई अनेतिक कार्य नहीं करवाया जा सकता है अन्यथा ये साधक को छोड़कर पुनः महाकाली में समां जाता है,और दुबारा कभी सिद्ध नहीं होता है।

साधना जितनी रोचक है उतनी ही उग्र भी है अतः निडर व्यक्ति ही इसे करे।तथा गुरु आज्ञा से ही साधना की जाये।साधना में यदि कोई हानि होती है तो उसके लिये हम जिमीदार नहीं है,अतः स्वयं के विवेक का प्रयोग करे.

विधि : 

साधना शमशान,निर्जन स्थान,या नदी तट पर करे अगर ये संभव न हो तो किसी ऐसे कक्ष में करे जहा कोई साधना पूर्ण होने तक न आये।आपके आसन वस्त्र काले हो तथा दिशा दक्षिण हो।।

सामने एक नीला वस्त्र बिछाये,उस पर महाकाली का कोई भी चित्र स्थापित करे,गुरु तथा गणेश पूजन संपन्न करे,तथा सुरक्षा घेरा खीच ले।अब महाकाली का सामान्य पूजन करे,सरसों के तेल का दीपक लगाये।लोबान की अगरबत्ती जलाये,भोग में गुलाबजामुन रखे,ये नित्य साधना स्थल पर ही छोड़ कर आ जाना है,यदि आप घर में कर रहे है तो नित्य गाय को खिला दे,उत्तम रहेगा यदि आप नित्य भोग भैरव मंदिर में रख आये।

माँ से प्रार्थना करे की वे अपने वीर को भेजे।और रुद्राक्ष माला या काली हकिक माला से पहले निम्न मंत्र की ११ माला संपन्न करे .

मंत्र : 

||जंत्र काली मंत्र काली तंत्र काली||

अब निचे दिए गए मंत्र को लगातार माँ के चित्र की और देखते हुए एक घंटे तक जाप करे बिना किसी माला के।

मंत्र : 

||वीर वीर महाकाली को वीर,आवो टूटे मेरो धीर,महाकाली की दुहाई दू,तुझको काली मिठाई दू,मेरो हुकुम पूरण करो,जो यहाँ न आओ तो महाकाली को खडग पड़े,तू चटक कुआँ में गिर मरे ,आदेश आदिनाथ को आदेश आदेश आदेश||

साधना ४१ दिन करे,वीर माँ के चित्र से ही प्रत्यक्ष होता है।जब सामने आये तो डरे नहीं भोग की मिठाई उसे दे दे,और वचन ले ले की में जब तुम्हे बुलाऊंगा तब आना और मेरे कार्य पूर्ण करना।

स्मरण रहे कोई गलत कार्य न करवाना अन्यथा सिद्धि समाप्त,और पुनः कभी सिद्ध होगी भी नहीं अतः सावधान रहे।कभी कभी वीर साधना पूर्ण होने के पहले ही आ जाता है,तब भी उससे बोले नहीं जाप करते रहे।

यदि जाप के बाद भी वो वही रहे और आपसे बात करे तो मिठाई देकर वचन ले ले।और साधना को वही समाप्त कर दे।माँ आपका कल्याण करे

जय माँ



विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249

अघोर पंथियों के 10 तांत्रिक पीठ





अघोर पंथियों के 10 तांत्रिक पीठ




अघोर पंथ को शैव और शाक्त संप्रदाय की एक तांत्रिक शाखा माना गया है। अघोर पंथ की उत्पत्ति काल के बारे में कोई निश्चित प्रमाण नहीं है, लेकिन इन्हें कपालिक संप्रदाय के समकक्ष मानते हैं। वाराणसी या काशी को भारत के सबसे प्रमुख अघोर स्थान के तौर पर मानते हैं।

मान्यता है कि भगवान शिव ने स्वयं की इस पंथ की स्थापना की थी। अघोर पंथ का प्रारंभिक गढ़ शिव की नगरी काशी को माना गया है, लेकिन आगे चलकर यह शक्तिपीठों में साधना करने लगे। आओ जानते हैं कुछ प्रमुख अघोर तीर्थ के बारे में...

सबसे कठिन साधना का स्थल, 




तारापीठ :

 तारापीठ को तांत्रिकों, मांत्रिकों, शाक्तों, शैवों, कापालिकों, औघड़ों आदि सबमें समान रूप से प्रमुख और पूजनीय माना गया है। इस स्थान पर सती पार्वती की आंखें भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से कटकर गिरी थीं इसलिए यह शक्तिपीठ बन गया।

यह स्थल तारा साधन के लिए जगत प्रसिद्ध रहा है। यहां सती के रूप में तारा मां का मंदिर है और पार्श्व में महाश्मशान। सबसे पहले इस मंदिर की स्थापना महर्षि वशिष्ठ ने की थी। पुरातन काल में उन्होंने यहां कठोर साधना की थी।

मान्यता है कि वशिष्ठजी मां तारा को प्रसन्न नहीं कर पाए थे। कारण कि चीनाचार को छोड़कर अन्य किसी साधना विधि से भगवती तारा प्रसन्न नहीं होतीं। माना जाता है कि यह साधना भगवान बुद्ध जानते थे। बौधों में वज्रयानी साधक इस विद्या के जानकार बतलाए जाते हैं। अघोर साधुओं को भी इस विद्या की सटीक जानकारी है।

प्रमुख अघोराचार्य में बामा चट्टोपाध्याय का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इन्हें बामाखेपा कहा जाता था।

शताब्दियों से साधकों, सिद्धों में प्रसिद्ध यह स्थल पश्चिम बंगाल के बीरभूम अंचल में रामपुर हाट रेलवे स्टेशन के पास द्वारका नदी के किनारे स्थित है। कोलकाता से तारापीठ की दूरी लगभग 265 किलोमीटर है। यह स्थल रेल एवं सड़क मार्ग दोनों से जुड़ा है।

दूसरा प्रमुख तीर्थ 'नानी का हज', 





हिंगलाज धाम :

 हिंगलाज धाम अघोर पंथ के प्रमुख स्थलों में शामिल है। हिंगलाज धाम वर्तमान में विभाजित भारत के हिस्से पाकिस्तान के बलूचिस्तान राज्य में स्थित है। यह स्थान सिंधु नदी के मुहाने से 120 किलोमीटर और समुद्र से 20 किलोमीटर तथा कराची नगर के उत्तर-पश्चिम में 125 किलोमीटर की दूरी पर हिंगोल नदी के किनारे स्थित है।

माता के 52 शक्तिपीठों में इस पीठ को भी गिना जाता है। यहां हिंगलाज स्थल पर सती का सिरोभाग कट कर गिरा था। यह अचल मरुस्थल होने के कारण इस स्थल को मरुतीर्थ भी कहा जाता है। इसे भावसार क्षत्रियों की कुलदेवी माना जाता है।

अब यह क्षेत्र मुसलमानों के अधिकार में चला गया है। यहां के स्थानीय मुसलमान हिंगलाज पीठ को 'बीबी नानी का मंदर' कहते हैं। अप्रैल के महीने में स्थानीय मुसलमान समूह बनाकर हिंगलाज की यात्रा करते हैं और इस स्थान पर आकर लाल कपड़ा चढ़ाते हैं, अगरबत्ती जलाते है और शिरीनी का भोग लगाते हैं। वे इस यात्रा को 'नानी का हज' कहते हैं।

हिंगलाज देवी की गुफा रंगीन पत्थरों से निर्मित है। माना जाता है कि इस गुफा का निर्माण यक्षों द्वारा किया गया था, इसीलिए रंगों का संयोजन इतना भव्य बन पड़ा है। पास ही एक भैरवजी का भी स्थान है। भैरवजी को यहां पर 'भीमालोचन' कहा जाता है।

* यह हिस्सा पाकिस्तान के हिस्से में चले जाने के बाद वाराणसी की एक गुफा क्रीं कुण्ड में बाबा कीनाराम हिंगलाज माता की प्रतिमूर्ति स्थापित की गई है।

* इन दो स्थलों के अलावा हिंगलाज देवी एक और स्थान पर विराजती हैं, वह स्थान उड़ीसा प्रदेश के तालचेर नामक नगर से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

जनश्रुति की मानें तो विदर्भ क्षेत्र के राजा नल माता हिंगलाज के परम भक्त थे। अतः माता हिंगलाज अग्नि रूप में जगन्नाथ मंदिर के रंधनशाला में भी विराजमान हैं। उन्हीं अग्निरूपा माता हिंगलाज का मंदिर तालचेर के पास स्थापित है।

 महिषासुर के वध के बाद जहां ठहरी थी माता...





विंध्याचल :

 विंध्याचल की पर्वत श्रृंखला जगप्रसिद्ध है। यहां पर विंध्यवासिनी माता का एक प्रसिद्ध मंदिर है। इस स्थल में तीन मुख्य मंदिर हैं- विंध्यवासिनी, कालीखोह और अष्टभुजा। इन मंदिरों की स्थिति त्रिकोण यंत्रवत है। इनकी त्रिकोण परिक्रमा भी की जाती है।

यहां छोटे-बड़े सैकड़ों मंदिर हैं और तीन प्रमुख कुंड हैं। प्रथम है सीताकुंड जहां से ऊपर सीढ़ियों से यात्रा शुरू होती है। यात्रा में पहले अष्टभुजा मंदिर है, जहां माता सरस्वती की मूर्ति विराजमान है। उससे ऊपर कालीखोह है, जहां माता काली विराजमान हैं। फिर आता है और ऊपर विंध्याचल का मुख्य मंदिर माता विंध्यवासिनी मंदिर।

स्थान का महत्व : कहा जाता है कि महिषासुर वध के पश्चात माता दुर्गा इसी स्थान पर निवास हेतु ठहर गई थीं। भगवान राम ने यहां तप किया था और वे अपनी पत्नी सीता के साथ यहां आए थे। इस पर्वत में अनेक गुफाएं हैं जिनमें रहकर साधक साधना करते हैं। आज भी अनेक साधक, सिद्ध, महात्मा, अवधूत, कापालिक आदि से यहां भेंट हो सकती है।

भैरवकुंड के पास यहां की एक गुफा में अघोरेश्वर रहते थे। गुफा के भीतर भक्तों, श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ अघोरेश्वर की चरण पादुका एक चट्टान में जड़ दी गई है। यहां कई साधक आकर नाना प्रकार की साधनाएं करते और अघोरेश्वर की कृपा से सिद्धि पाकर कृतकृत्य होते हैं।

विंध्याचल पर्वत से किलोमीटर की दूरी पर मिरजापुर में रेलवे स्टेशन है। सड़क मार्ग से यह स्थान बनारस, इलाहाबाद, मऊनाथभंजन, रीवा और औरंगाबाद से जुड़ा हुआ है। बनारस से 70 किलोमीटर तथा इलाहाबाद से 83 किलोमीटर की दूरी पर विंध्याचल धाम स्थित है।

 भगवान दत्तात्रेय की जन्म स्थली...





चित्रकूट : अघोर पथ के अन्यतम आचार्य दत्तात्रेय की जन्मस्थली चित्रकूट सभी के लिए तीर्थस्थल है। औघड़ों की कीनारामी परंपरा की उ‍त्पत्ति यहीं से मानी गई है। यहीं पर मां अनुसूया का आश्रम और सिद्ध अघोराचार्य शरभंग का आश्रम भी है।

यहां का स्फटिक शिला नामक महाश्मशान अघोरपंथियों का प्रमुख स्थल है। इसके पार्श्व में स्थित घोरा देवी का मंदिर अघोर पंथियों का साधना स्थल है। यहां एक अघोरी किला भी है, जो अब खंडहर बन चुका है।

पांचवां प्रसिद्ध अघोर तीर्थ...





कालीमठ : 

हिमालय की तराइयों में नैनीताल से आगे गुप्तकाशी से भी ऊपर कालीमठ नामक एक अघोर स्थल है। यहां अनेक साधक रहते हैं। यहां से 5,000 हजार फीट ऊपर एक पहाड़ी पर काल शिला नामक स्थल है, जहां पहुंचना बहुत ही मुश्किल है। कालशिला में भी अघोरियों का वास है।

माना जाता है कि कालीमठ में भगवान राम ने एक बहुत बड़ा खड्ग स्थापित किया है।

जगन्नाथ पुरी...





जगन्नाथ पुरी :

 जगतप्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर और विमला देवी मंदिर, जहां सती का पाद खंड गिरा था, के बीच में एक चक्र साधना वेदी स्थित है जिसे वशिष्ठ कहते हैं।

इसके अलावा पुरी का स्वर्गद्वार श्मशान एक पावन अघोर स्थल है। इस श्मशान के पार्श्व में मां तारा मंदिर के खंडहर में ऋषि वशिष्ठ के साथ अनेक साधकों की चक्रार्चन करती हुई प्रतिमाएं स्थापित हैं।

जगन्नाथ मंदिर में भी श्रीकृष्णजी को शुभ भैरवी चक्र में साधना करते दिखलाया गया है।

मदुरई का कपालेश्वर मंदिर...




मदुरई : 

दक्षिण भारत में औघड़ों का कपालेश्वर का मंदिर है। आश्रम के प्रांगण में एक अघोराचार्य की मुख्य समाधि है और भी समाधियां हैं। मंदिर में कपालेश्वर की पूजा औघड़ विधि-विधान से की जाती है।

सबसे प्रसिद्ध कोलकाता का काली मठ...




कोलकाता का काली मंदिर :

 रामकृष्ण परमहंस की आराध्या देवी मां कालिका का कोलकाता में विश्वप्रसिद्ध मंदिर है। कोलकाता के उत्तर में विवेकानंद पुल के पास स्थित इस मंदिर को दक्षिणेश्वर काली मंदिर कहते हैं। इस पूरे क्षेत्र को कालीघाट कहते हैं। इस स्थान पर सती देह की दाहिने पैर की 4 अंगुलियां गिरी थीं इसलिए यह सती के 52 शक्तिपीठों में शामिल है।

यह स्थान प्राचीन समय से ही शक्तिपीठ माना जाता था, लेकिन इस स्थान पर 1847 में जान बाजार की महारानी रासमणि ने मंदिर का निर्माण करवाया था। 25 एकड़ क्षेत्र में फैले इस मंदिर का निर्माण कार्य सन् 1855 पूरा हुआ।

नेपाल में अघोर कुटी...




नेपाल : 

नेपाल में तराई के इलाके में कई गुप्त औघड़ स्थान पुराने काल से ही स्थित हैं। अघोरेश्वर भगवान राम के शिष्य बाबा सिंह शावक रामजी ने काठमांडू में अघोर कुटी स्थापित की है।

उन्होंने तथा उनके बाद बाबा मंगलधन रामजी ने समाजसेवा को नया आयाम दिया है। कीनारामी परंपरा के इस आश्रम को नेपाल में बड़ी ही श्रद्धा से देखा जाता है।

अफगानिस्तान में लालजी पीर...


अफगानिस्तान : 

अफगानिस्तान के पूर्व शासक शाह जहीर शाह के पूर्वजों ने काबुल शहर के मध्य भाग में कई एकड़ में फैला जमीन का एक टुकड़ा कीनारामी परंपरा के संतों को दान में दिया था। इसी जमीन पर आश्रम, बाग आदि निर्मित हैं। औघड़ रतनलालजी यहां पीर के रूप में आदर पाते हैं। उनकी समाधि तथा अन्य अनेक औघड़ों की समाधियां इस स्थल पर आज भी श्रद्धा-नमन के लिए स्थित हैं।

उपरोक्त स्थलों के अलावा अन्य जगहों पर भी जैसे रामेश्वरम, कन्याकुमारी, मैसूर, हैदराबाद, बड़ौदा, बोधगया आदि अनेक औघड़, अघोरेश्वर लोगों की साधना स्थली, आश्रम, कुटिया पाई जाती हैं।



चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249

Wednesday, October 30, 2019

क्या आप धन की बचत नहीं कर पाते ?







क्या आप धन की बचत नहीं कर पाते ?


धनदायक लक्ष्मी कुबेर यन्त्र का पूजन करे और अपने मनोकामना पूर्णकरे

प्रथम श्री लक्ष्मी कुबेर यन्त्र को वेद की दीक्षा लिया हुए पंडित से संपूर्ण मंत्रो से चैतन्य युक्त करवा ले मंत्र की संख्या कमसे कम ( सवा लाख ) होनी चाहिए, उसके बाद शुक्ला पक्ष की सप्तमी के दिन शाम के ६-३० से ०७-०० बजे के बिच में घर के इशान कोने में पूर्व या उत्तर में उनी आशन बिछाकर बैठे और यह मंत्र से चैतन्य युक्त श्री लक्ष्मी कुबेर यंत्र को अपने सामने लाल वस्त्र पर स्थापन करे बाद में एक शुद्ध घी का दीपक जलाये और हो शके तो धुप भी जलाये, बाद में एक हाथ में थोड़ा जल ले कर धन प्राप्ति के उद्येश के साथ संकल्प करे बाद में प्रथम पूज्य श्री गणेशजी का मंत्र " ॐ गंग गणपतये नमः २१ बार करे

अब सर्वप्रथम धनप्रदायिनी महालक्ष्मी की पूजा करे और निचे दिए गए मंत्र की स्फटिक की माला से एक माला जप करे ....

मंत्र:

 ॐ महादेव्ये च विद्महे विष्णु पत्नये च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात ....

महालक्ष्मी के पूजन के बाद धन को आपके घर में स्थाई करने लिए धन को संग्रह करने वाले देव श्री कुबेर का पूजन करे और निचे दिए गए मंत्र की एक माला करे

मंत्र: ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

                     08601454449

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249



क्रोध मंत्र साधना :





क्रोध मंत्र साधना :


भैरव शब्द का संक्षिप्त भावार्थ : 

जिससे क्लेश भयभीत रहता है , जिसके भय से वायु चलती है , सूर्य तपता है , इन्द्र जल वृष्टि करता है , लोकपाल भयभीत होते हैं , जो विश्व का भरण - पोषणकर्ता और संहारकर्ता है तथा जो महाभयंकर शब्दकारी है , उसका नाम भैरव है । भगवान् भैरव सबके ग्रहीता , दाता एवं कर्ता हैं । मास , पक्ष भैरव के शरीर हैं , दिनरात्रि वस्त्र हैं , ऋतुएं इन्द्रियां हैं । 

यही कालसंज्ञक ब्रहम है । योगवसिष्ठ में भगवान् राम मुनि वसिष्ठ से कहते हैं कि ' सर्व पदार्थों से महाभयंकर यह काल ही संहारकर्ता नहारुद्र है । यह काल बड़े - बड़े बुद्धिमानों और बलवानों की भी क्षणभर प्रतिक्षा नहीं करता , अपितु तत्काल मार देता है ।

 अतिरमणीय सुब्दाराकृति वाले सुमेरु जैसे बड़े - बडे पदार्थों को भी यह काल ऐसे निगल जाता है , जैसे गरुड़जी सर्पो को । हरण करना , नाश करना , भक्षण करना , मारना तथा अन्य प्रकार की क्रियाओं को करना - यह सब काल के आधीन है ।

क्रोधराज की सिद्धि होने पर मनुष्य क्रोधराज के समान अतुल बल प्राप्त करता है । विशेष संख्या में जप कर लेने के पश्चात् साधक समस्त प्रकार की दुर्लभ सिद्धियों को स्वतः प्राप्त कर लेता है । 

क्रोधमंत्र भगवान् भैरव का अत्यन्त घातक एवं उग्र मंत्र है जिसके समुचित प्रयोग करने पर तत्काल शत्रुकुल , महाभयंकर परप्रयोग , व्याधिदुःख ,असाध्यरोग,सभी इतर योनिया  भूत , प्रेत , पिशाच , राक्षस , ब्रह्मराक्षस , देव , यक्ष , गन्धर्व , किन्नर , पितृ , अप्सरा , परि , जिन्नात,मसान,वेताल,कच्चा कलुआ आदि,आदि भगवान् क्रोधराज की ज्वाला से विनष्ट हो जाते हैं । सर्व मंत्रों में यह मारक मंत्र है , जो महाप्रबल दुर्भाग्य का विनाश करने में सक्षम हैं ,यह प्रयोग केवल उच्चकोटि साधक ही कर सकते हैं । 

साधारण साधक इससे विरक्त रहें । इस प्रयोग में भूलचूक होने पर साधक को भगवान् भैरव के महाक्रोध का सामना करना पड़ सकता है । 

अतः यह महाक्रोध मंत्र अनुभवी गुरु के संरक्षण में ही करने का प्रावधान है । 

इस साधना को करने से पहले गुरु और इष्ट मंत्र (62500/125000 से अधिक) और महाविद्या साधना करना जरुरी है

किसी परलौकिक सक्ती पे प्रयोग करने से पहले उस सक्ती की कम से कम 2-3 बार साधना करने पर भी वह ना आवे तो ही इस मंत्र का प्रयोग किया जा सक्ता है अन्यथा स्वं का विनाश होना तय है 

एक दिवसीय साधना विधि-विधान :

विधि-विधा

इस मंत्र की साधना के प्रारम्भ में साधक में क्रोध एवं आवेश की अधिकता रहती है , जो कि देवता के स्वभाव से प्राप्त होती है ।

साधना वाले दिन खप्पर दिया जाता है 

खप्पर सामाग्री:

ताम्सिक खप्पर

बकरे की कलेजी, तम्बाकू(सिगरेट),चमेली का इत्र,शराब,2 अण्डे .

सात्विक खप्पर सामग्री :

4 केले ,4 बूंदी के लड्डू, 1 बर्फी , 
अनार  या नीम्बू (बली के तोर पे दिया जाता है ) ,
1-सिगरेट, चमेली का इत्र ,
लोंग का जोडा (बर्फी पे और लड्डू पे)

खप्पर को सिन्दूर से तिलक करना है 
खप्पर मंत्र 21 बार पढ के खप्पर समसान मे रख के आना है.

समसान मे जातें वक़्त सुरक्षा जरुर रखे
सुरक्षा मंत्र - औम हुं महाविकराल कपाल कालभैरवाय रक्ष रक्ष  हुं फट् ।।

देह-दिशा बन्धन- 

औम हुं महाविकराल कपाल कालभैरवाय रक्ष रक्ष  हुं फट् ।।(इस मंत्र को 11 बार पढ के छाती पे फुक मारे 3 बार)
इस मन्त्र को पढ के ही साधना समय मे 11 बार पढके दसो दिसा मे जल फेके .

आसन बंदन मंत्र - 

औम रं अग्नी प्रकाराय नमः
 सात बार पढ के किल से घेरा बनाये .

स्थान : परिस्थिति एवं साधक की योग्यतानुसार  जंगल,साधना कक्ष , शिवालय (एकान्त)
अथवा श्मशान में साधना की जाती है ।

तिथी: 

चतुर्दशी , शनिवार , रविवार , सोमवार , अमावस्या अथवा पूर्णिमा तिथि को साधना कर सकते है ।

मंत्र संख्या 8000 (80  माला) 
दीपक- चोमुखा दीपक तेल का
दिशा -दक्षिण
आसन -काला
वस्त्र- काला (काले वस्त्र को  निर्वस्त्र की संज्ञा दी गई हैं)
माला-रुद्राक्ष 
गूगल की धुणी 
समय -9 बजे बाद
क्रोध मुद्रा मे मन्त्र जाप होता है 
(क्रोध से जोर जोर से बोलके )

मन्त्र यहा नही दिया जा रहा है वियक्ती विशेश को जान कर ही मंत्र दिया जायेगा ,

यह महाक्रोध मंत्र अनुभवी गुरु के संरक्षण में ही करने का प्रावधान है.

मंत्र निसुल्क दिया जायेगा ।।

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

व्हाट्सप्प न०;- 09958417249


एक मंत्र जो पलट देगा टोने-टोटके का वार












एक मंत्र जो पलट देगा टोने-टोटके का वार


दोस्तों की भीड़ में दुश्मनों को पहचानना मुश्किल हो जाता है. आप नहीं समझ सकते कि कब कौन आपके पीठ पीछे वार कर आपको धोखा देकर चला जाए. दोस्ती और प्यार के नाम पर दगा देने वाले भी बहुत लोग होते हैं.

आपकी कोई बात किसी को कितनी बुरी लग गई और इसका बदला लेने के लिए वो किस हद तक पहुंच जाएगा आप इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा सकते.

बगलामुखी, एक ऐसी तंत्र साधना है जिसके जरिए लोग वशीकरण, मारण, उच्चाटन आदि जैसी क्रियाओं को अंजाम देते हैं. अपने दुश्मन को हर तरह की हानि पहुंचाने के लिए लोग इस तंत्र साधना का प्रयोग करते हैं और तंत्र-मंत्र पर विश्वास करने वाले लोगों की मानें तो इससे बेहतर और कोई विकल्प हो भी नहीं सकता.

तांत्रिक साधना करने वाले लोगों का कहना है कि मुकद्दमा जीतना हो या फिर किए गए टोने के असर को शिथिल करना हो तो बगलामुखी इसका रामबाण इलाज है. जानकारों की मानें तो बाहरी शत्रु इतना नुकसान नहीं पहुंचा सकते जितना आपके अपने साथी और संबंधी पहुंचा सकते हैं. अगर परिवार का कोई सदस्य अपने ही परिवार के सदस्य के साथ कुछ गलत कर रहा है तो भी बगलामुखी के द्वारा उस टोने के असर को पलटा जा सकता है.

बगलामुखी साधना के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां:

1. बगलामुखी साधना के दौरान पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना अत्याधिक आवश्यक है.

2. इस क्रम में स्त्री का स्पर्श, उसके साथ किसी भी प्रकार की चर्चा या सपने में भी उसका आना पूर्णत: निषेध है. अगर आप ऐसा करते हैं तो आपकी साधना खण्डित हो जाती है.

3. किसी डरपोक व्यक्ति या बच्चे के साथ यह साधना नहीं करनी चाहिए. बगलामुखी साधना के दौरान साधक को डराती भी है. साधना के समय विचित्र आवाजें और खौफनाक आभास भी हो सकते हैं इसीलिए जिन्हें काले अंधेरों और पारलौकिक ताकतों से डर लगता है, उन्हें यह साधना नहीं करनी चाहिए.

4. साधना से पहले आपको अपने गुरू का ध्यान जरूर करना चाहिए.

5. मंत्रों का जाप शुक्ल पक्ष में ही करें. बगलामुखी साधना के लिए नवरात्रि सबसे उपयुक्त है.

6. उत्तर की ओर देखते हुए ही साधना आरंभ करें.

7. मंत्र जाप करते समय अगर आपकी आवाज अपने आप तेज हो जाए तो चिंता ना करें.

8. जब तक आप साधना कर रहे हैं तब तक इस बात की चर्चा किसी से भी ना करें.

9. साधना करते समय अपने आसपास घी और तेल के दिये जलाएं.

10. साधना करते समय आपके वस्त्र और आसन पीले रंग का होना चाहिए.

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249

Friday, October 25, 2019

अपराजिता का अर्थ है जो कभी पराजित नहीं होता






अपराजिता का अर्थ है जो कभी पराजित नहीं होता। 


देवी अपराजिता के सम्बन्ध में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य भी जानने योग्य हैं जैसे कि उनकी मूल प्रकृति क्या है ?

देवी अपराजिता के पूजनारम्भ तब से हुआ जब देवासुर संग्राम के दौरान नवदुर्गाओं ने जब दानवों के संपूर्ण वंश का नाश कर दिया तब माँ दुर्गा अपनी मूल पीठ शक्तियों में से अपनी आदि शक्ति अपराजिता को पूजने के लिए शमी की घास लेकर हिमालय में अन्तरध्यान हुईं।

क्रमशः बाद में आर्यावर्त के राजाओं ने विजय पर्व के रूप में विजय दशमी की स्थापना की। जो कि नवरात्रों के बाद प्रचलन में आई।

स्मरण रहे कि उस वक्त की विजय दशमी मूलतः देवताओं द्वारा दानवों पर विजय प्राप्त के उपलक्ष्य में थी। स्वभाविक रूप से नवरात्र के दशवें दिन ही विजय दशमी मनाने की परंपरा चली। इसके पश्चात पुनः जब त्रेता युग में रावण के अत्याचारों से पृथ्वी एवं देव-दानव सभी त्रस्त हुए तो पुनः पुरुषोत्तम राम द्वारा दशहरे के दिन रावण का अंत किया गया जो एक बार पुनः विजयादशमी के रूप सामने आया और इसके साथ ही एक सोपान और जुड़ गया दशमी के साथ।

अगर यह कहा जाये कि विजय दशमी और देवी अपराजिता का सम्बन्ध बहुत हद तक क्षत्रिय राजाओं के साथ ज्यादा गहरा और अनुकूल है तो संभवतः कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी किन्तु इसे किसी पूर्वधारणा की तरह नहीं स्वीकार करना चाहिए कि अपराजिता क्षत्रियों की देवी हैं और अन्य वर्ण के लोग इनकी साधना-आराधना नहीं कर सकते ।

बहुत से स्थलों में देवी अपराजिता के सम्बन्ध में विभिन्न कथाएं और विधियां मिल जाती हैं लेकिन उनमे मूल भेद बहुत परिलक्षित होते हैं अस्तु उनका साधन करने से पूर्व किसी जानकार व्यक्ति से सलाह अवश्य ही कर लेनी चाहिए जिससे अशुद्धिओं और गलतियों से कुछ हद तक छुटकारा पाया जा सके हालाँकि शत प्रतिशत शुद्धता ला पाना सर्वसाधारण के वश की बात नहीं हैं किन्तु अल्प अशुद्धियाँ सफलता के मापदंडों को बढ़ा ही देती हैं साथ ही भावयुक्त साधना भी अशुद्धिओं को तिरस्कृत कर देती है जिससे अधिक अच्छे परिणाम मिल ही जाते हैं -!

देवी अपराजिता शक्ति की नौ पीठ शक्तियों में से एक हैं जिनका क्रम निम्न प्रकार है एवं जया और विजया से सम्बंधित बहुत सी कथाएं भी प्रचलित हैं जो देवी पार्वती की बहुत ही अभिन्न सखियों के रूप में जानी जाती हैं - शक्ति की बहुत ही संहारकारी शक्ति है अपराजिता जो कभी अपराजित नहीं हो सकती और ना ही अपने साधकों को कभी पराजय का मुख देखने देती है - विषम परिस्थिति में जब सभी रास्ते बंद हों उस स्थिति में भी हंसी-खेल में अपने साधक को बचा ले जाना बहुत मामूली बात है अपराजिता के लिए।

जया
विजया
अजिता
अपराजिता
विलासिनी
दोमर्ध्य
अघोरा
मंगला
नित्या

अपराजिता की साधना के सम्बन्ध में" धर्मसिन्धु "जो वर्णन है वह निम्न प्रकार है :

धर्मसिंधु में अपराजिता की पूजन की विधि संक्षेप में इस प्रकार है‌ :
"अपराह्न में गाँव के उत्तर पूर्व जाना चाहिए, एक स्वच्छ स्थल पर गोबर से लीप देना चाहिए, चंदन से आठ कोणों का एक चित्र खींच देना चाहिए उसके पश्चात संकल्प करना चहिए :

"मम सकुटुम्बस्य क्षेमसिद्ध्‌यर्थमपराजितापूजनं करिष्ये"

राजा के लिए विहित संकल्प अग्र प्रकार है :

" मम सकुटुम्बस्य यात्रायां विजयसिद्ध्‌यर्थमपराजितापूजनं करिष्ये"

इसके उपरांत उस चित्र (आकृति) के बीच में अपराजिता का आवाहन करना चाहिए और इसी प्रकार उसके दाहिने एवं बायें जया एवं विजया का आवाहन करना चहिए और 'साथ ही क्रियाशक्ति को नमस्कार' एवं 'उमा को नमस्कार' कहना चाहिए।
इसके उपरांत :
"अपराजितायै नम:,
जयायै नम:,
विजयायै नम:, मंत्रों के साथ अपराजिता, जया, विजया की पूजा 16 उपचारों के साथ करनी चाहिए और यह प्रार्थना करनी चाहिए, 'हे देवी, यथाशक्ति जो पूजा मैंने अपनी रक्षा के लिए की है, उसे स्वीकर कर आप अपने स्थान को गमन करें जिससे कि मैं अगली बार पुनः आपका आवाहन और पूजन वंदन कर सकूँ "।

राजा के लिए इसमें कुछ अंतर है।

राजा को विजय के लिए ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए :

"वह अपाराजिता जिसने कंठहार पहन रखा है, जिसने चमकदार सोने की मेखला (करधनी) पहन रखी है, जो अच्छा करने की इच्छा रखती है, मुझे विजय दे"

इसके उपरांत उसे उपर्युक्त प्रार्थना करके विसर्जन करना चाहिए। तब सबको गाँव के बाहर उत्तर पूर्व में उगे शमी वृक्ष की ओर जाना चाहिए और उसकी पूजा करनी चाहिए।

शमी की पूजा के पूर्व या या उपरांत लोगों को सीमोल्लंघन करना चाहिए। कुछ लोगों के मत से विजयादशमी के अवसर पर राम और सीता की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि उसी दिन राम ने लंका पर विजय प्राप्त की थी। राजा के द्वारा की जाने वाली पूजा का विस्तार से वर्णन हेमाद्रि तिथितत्त्व में वर्णित है। निर्णय सिंधु एवं धर्मसिंधु में शमी पूजन के कुछ विस्तार मिलते हैं।

यदि शमी वृक्ष ना हो तो अश्मंतक वृक्ष की पूजा की जानी चाहिए।

अस्तु मेरे अपने हिसाब से देवी अपराजिता का पूजन शक्ति क्रम में ही किया जाना चाहिए ठीक जैसे अन्य शक्ति साधनाएं संपन्न की जाती हैं -!

प्रथम गुरु पूजन
द्वितीय गणपति पूजन
भैरव पूजन
देवी पूजन
अपनी सुविधानुसार पंचोपचार,षोडशोपचार इत्यादि से पूजन संपन्न करें मन्त्र जप - स्तोत्र जप आदि संपन्न करें और अंत में होम विधि संपन्न करें।

मन्त्र जप : मंत्रों के सम्बन्ध में बहुधा भ्रम की स्थिति रहती है क्योंकि यदि आपने थोड़ा सा भी अध्ययन और खोज आदि पूर्व में की हैं तो उस स्थिति में बहुत से मंत्र ऐसे होते हैं जो आपकी जानकारी से बाहर के होते हैं अर्थात कई बार उनके बीज भिन्न हो सकते हैं और कई बार मंत्र विन्यास भिन्न हो सकता है तो इस दशा में सीमित ज्ञान आपको भ्रमित कर देता है - अस्तु सभी मित्रों को मेरी एक ही सलाह है कि शक्ति मंत्रों में यदि "ह्रीं,क्लीं,क्रीं, ऐं,श्रीँ आदि आते हैं तो उन मंत्रों को भेदात्मक दृष्टि से ना देखें क्योंकि एक परम आद्या शक्ति के तीन भेद भक्तों के हितार्थ बने जिन्हे त्रिशक्ति के नाम से भी जाना जाता है ( महाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती) अन्य शक्ति भेद अथवा क्रम इन्ही तीन मूलों से निःसृत हैं अस्तु समस्त मन्त्र आदि इन्ही कुछ मूल बीजों के आस-पास घूमते हैं इसके अतिरिक्त इस बात पर मंत्र विन्यास निर्भर करता है कि जिस भी मंत्र वेत्ता ने उस मंत्र का निर्माण किया होगा उस समय वास्तव में उनका दृष्टिकोण और आवश्यकता क्या रही होगी ?

हालंकि यह सब बातें तो बहुत दूर की और लम्बी सोच की हैं अस्तु ज्यादा ना भटकते हुए बस इतना ही कहूँगा कि यदि कभी भी मंत्रों का संसार समझ में ना आये तो सबसे आसान उपाय है कि उस देवता या देवी के गायत्री मंत्र का प्रयोग करें।

यथा :

"ॐ सर्वविजयेश्वरी विद्महे शक्तिः धीमहि अपराजितायै प्रचोदयात"

अपनी सामर्थ्यानुसार उपरोक्त गायत्री का जप करें और देवी अपराजिता का वरदहस्त प्राप्त करें - देवी आपको सदा अजेय और संपन्न रखें यही मेरी कामना है।

।।अथ श्री अपराजिता स्तोत्र ।।

ॐ नमोऽपराजितायै ।।
ॐ अस्या वैष्णव्याः पराया अजिताया महाविद्यायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्केण्डेया ऋषयः ।
गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहती छन्दांसि ।
श्री लक्ष्मीनृसिंहो देवता ।
ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजम् ।
हुं शक्तिः ।
सकलकामनासिद्ध्यर्थं अपराजितविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः ।।
ध्यान:

ॐ निलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणान्विताम् ।।
शुद्धस्फटिकसङ्काशां चन्द्रकोटिनिभाननाम् ।।१।।

शङ्खचक्रधरां देवी वैष्ण्वीमपराजिताम् ।।
बालेन्दुशेखरां देवीं वरदाभयदायिनीम् ।।२।।

नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कण्डेयो महातपाः ।।३।।

मार्ककण्डेय उवाच :

शृणुष्वं मुनयः सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम् ।।
असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम् ।।४।।

ॐ नमो नारायणाय,
नमो भगवते वासुदेवाय,
नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रशीर्षायणे,
क्षीरोदार्णवशायिने,
शेषभोगपर्य्यङ्काय,
गरुडवाहनाय,
अमोघाय
अजाय
अजिताय
पीतवाससे ।।

ॐ वासुदेव सङ्कर्षण प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, हयग्रिव, मत्स्य कूर्म्म, वाराह नृसिंह, अच्युत, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर राम राम राम ।
वरद, वरद, वरदो भव, नमोऽस्तु ते, नमोऽस्तुते, स्वाहा ।।

ॐ असुर-दैत्य-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत -पिशाच-कूष्माण्ड-सिद्ध-योगिनी-डाकिनी-शाकिनी-स्कन्दग्रहान् उपग्रहान्नक्षत्रग्रहांश्चान्या हन हन पच पच मथ मथ विध्वंसय विध्वंसय विद्रावय विद्रावय चूर्णय चूर्णय शङ्खेन चक्रेण वज्रेण शूलेन गदया मुसलेन हलेन भस्मीकुरु कुरु स्वाहा ।।

ॐ सहस्रबाहो सहस्रप्रहरणायुध, जय जय, विजय विजय, अजित, अमित, अपराजित, अप्रतिहत, सहस्रनेत्र, ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल, विश्वरूप बहुरूप, मधुसूदन, महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्मनाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषीकेश, केशव, सर्वासुरोत्सादन, सर्वभूतवशङ्कर, सर्वदुःस्वप्नप्रभेदन, सर्वयन्त्रप्रभञ्जन, सर्वनागविमर्दन, सर्वदेवमहेश्वर, सर्वबन्धविमोक्षण, सर्वाहितप्रमर्दन, सर्वज्वरप्रणाशन, सर्वग्रहनिवारण, सर्वपापप्रशमन, जनार्दन, नमोऽस्तुते स्वाहा ।।

विष्णोरियमनुप्रोक्ता सर्वकामफलप्रदा ।।
सर्वसौभाग्यजननी सर्वभीतिविनाशिनी ।।५।।

सर्वैंश्च पठितां सिद्धैर्विष्णोः परमवल्लभा ।।
नानया सदृशं किङ्चिद्दुष्टानां नाशनं परम् ।।६।।

विद्या रहस्या कथिता वैष्णव्येषापराजिता ।।
पठनीया प्रशस्ता वा साक्षात्सत्त्वगुणाश्रया ।।७।।

ॐ शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये ।।८।।

अथातः सम्प्रवक्ष्यामि ह्यभयामपराजिताम् ।।
या शक्तिर्मामकी वत्स रजोगुणमयी मता ।।९।।

सर्वसत्त्वमयी साक्षात्सर्वमन्त्रमयी च या ।।
या स्मृता पूजिता जप्ता न्यस्ता कर्मणि योजिता ।।
सर्वकामदुधा वत्स शृणुष्वैतां ब्रवीमि ते ।।१०।।

य इमामपराजितां परमवैष्णवीमप्रतिहतां पठति सिद्धां स्मरति सिद्धां महाविद्यां जपति पठति शृणोति स्मरति धारयति कीर्तयति वा न तस्याग्निवायुवज्रोपलाशनिवर्षभयं, न समुद्रभयं, न ग्रहभयं, न चौरभयं, न शत्रुभयं, न शापभयं वा भवेत् ।।

क्वचिद्रात्र्यन्धकारस्त्रीराजकुलविद्वेषि-विषगरगरदवशीकरण-विद्वेष्णोच्चाटनवधबन्धनभयं वा न भवेत् ।।
एतैर्मन्त्रैरुदाहृतैः सिद्धैः संसिद्धपूजितैः ।।

।। ॐ नमोऽस्तुते ।।

अभये, अनघे, अजिते, अमिते, अमृते, अपरे, अपराजिते, पठति, सिद्धे जयति सिद्धे, स्मरति सिद्धे, एकोनाशीतितमे, एकाकिनि, निश्चेतसि, सुद्रुमे, सुगन्धे, एकान्नशे, उमे ध्रुवे, अरुन्धति, गायत्रि, सावित्रि, जातवेदसि, मानस्तोके, सरस्वति, धरणि, धारणि, सौदामनि, अदिति, दिति, विनते, गौरि, गान्धारि, मातङ्गी कृष्णे, यशोदे, सत्यवादिनि, ब्रह्मवादिनि, कालि, कपालिनि, करालनेत्रे, भद्रे, निद्रे, सत्योपयाचनकरि, स्थलगतं जलगतं अन्तरिक्षगतं वा मां रक्ष सर्वोपद्रवेभ्यः स्वाहा ।।

यस्याः प्रणश्यते पुष्पं गर्भो वा पतते यदि ।।
म्रियते बालको यस्याः काकवन्ध्या च या भवेत् ।।११।।

धारयेद्या इमां विद्यामेतैर्दोषैर्न लिप्यते ।।
गर्भिणी जीववत्सा स्यात्पुत्रिणी स्यान्न संशयः ।।१२।।

भूर्जपत्रे त्विमां विद्यां लिखित्वा गन्धचन्दनैः ।।
एतैर्दोषैर्न लिप्येत सुभगा पुत्रिणी भवेत् ।।१३।।

रणे राजकुले द्यूते नित्यं तस्य जयो भवेत् ।।
शस्त्रं वारयते ह्योषा समरे काण्डदारुणे ।।१४।।

गुल्मशूलाक्षिरोगाणां क्षिप्रं नाश्यति च व्यथाम् ।।
शिरोरोगज्वराणां न नाशिनी सर्वदेहिनाम् ।।१५।।

इत्येषा कथिता विध्या अभयाख्याऽपराजिता ।।
एतस्याः स्मृतिमात्रेण भयं क्वापि न जायते ।।१६।।

नोपसर्गा न रोगाश्च न योधा नापि तस्कराः ।।
न राजानो न सर्पाश्च न द्वेष्टारो न शत्रवः ।।१७।।

यक्षराक्षसवेताला न शाकिन्यो न च ग्रहाः ।।
अग्नेर्भयं न वाताच्व न स्मुद्रान्न वै विषात् ।।१८।।

कार्मणं वा शत्रुकृतं वशीकरणमेव च ।।
उच्चाटनं स्तम्भनं च विद्वेषणमथापि वा ।।१९।।

न किञ्चित्प्रभवेत्तत्र यत्रैषा वर्ततेऽभया ।।
पठेद् वा यदि वा चित्रे पुस्तके वा मुखेऽथवा ।।२०।।

हृदि वा द्वारदेशे वा वर्तते ह्यभयः पुमान् ।।
हृदये विन्यसेदेतां ध्यायेद्देवीं चतुर्भुजाम् ।।२१।।

रक्तमाल्याम्बरधरां पद्मरागसमप्रभाम् ।।
पाशाङ्कुशाभयवरैरलङ्कृतसुविग्रहाम् ।।२२।।

साधकेभ्यः प्रयच्छन्तीं मन्त्रवर्णामृतान्यपि ।।
नातः परतरं किञ्चिद्वशीकरणमनुत्तमम् ।।२३।।

रक्षणं पावनं चापि नात्र कार्या विचारणा ।
प्रातः कुमारिकाः पूज्याः खाद्यैराभरणैरपि ।।
तदिदं वाचनीयं स्यात्तत्प्रीत्या प्रीयते तु माम् ।।२४।।

ॐ अथातः सम्प्रवक्ष्यामि विद्यामपि महाबलाम् ।।
सर्वदुष्टप्रशमनीं सर्वशत्रुक्षयङ्करीम् ।।२५।।

दारिद्र्यदुःखशमनीं दौर्भाग्यव्याधिनाशिनीम् ।।
भूतप्रेतपिशाचानां यक्षगन्धर्वरक्षसाम् ।।२६।।

डाकिनी शाकिनी-स्कन्द-कूष्माण्डानां च नाशिनीम् ।।
महारौद्रिं महाशक्तिं सद्यः प्रत्ययकारिणीम् ।।२७।।

गोपनीयं प्रयत्नेन सर्वस्वं पार्वतीपतेः ।।
तामहं ते प्रवक्ष्यामि सावधानमनाः शृणु ।।२८।।

एकान्हिकं द्व्यन्हिकं च चातुर्थिकार्द्धमासिकम् ।।
द्वैमासिकं त्रैमासिकं तथा चातुर्मासिकम् ।।२९।।

पाञ्चमासिकं षाङ्मासिकं वातिक पैत्तिकज्वरम् ।।
श्लैष्पिकं सात्रिपातिकं तथैव सततज्वरम् ।।३०।।

मौहूर्तिकं पैत्तिकं शीतज्वरं विषमज्वरम् ।
द्व्यहिन्कं त्र्यह्निकं चैव ज्वरमेकाह्निकं तथा ।।
क्षिप्रं नाशयेते नित्यं स्मरणादपराजिता ।।३१।।

ॐ हॄं हन हन, कालि शर शर, गौरि धम्, धम्, विद्ये आले ताले माले गन्धे बन्धे पच पच विद्ये नाशय नाशय पापं हर हर संहारय वा दुःखस्वप्नविनाशिनि कमलस्तिथते विनायकमातः रजनि सन्ध्ये, दुन्दुभिनादे, मानसवेगे, शङ्खिनि, चाक्रिणि गदिनि वज्रिणि शूलिनि अपमृत्युविनाशिनि विश्वेश्वरि द्रविडि द्राविडि द्रविणि द्राविणि केशवदयिते पशुपतिसहिते दुन्दुभिदमनि दुर्म्मददमनि ।।

शबरि किराति मातङ्गि ॐ द्रं द्रं ज्रं ज्रं क्रं क्रं तुरु तुरु ॐ द्रं कुरु कुरु ।।

ये मां द्विषन्ति प्रत्यक्षं परोक्षं वा तान् सर्वान् दम दम मर्दय मर्दय तापय तापय गोपय गोपय पातय पातय शोषय शोषय उत्सादय उत्सादय ब्रह्माणि वैष्णवि माहेश्वरि कौमारि वाराहि नारसिंहि ऐन्द्रि चामुन्डे महालक्ष्मि वैनायिकि औपेन्द्रि आग्नेयि चण्डि नैरृति वायव्ये सौम्ये ऐशानि ऊर्ध्वमधोरक्ष प्रचण्डविद्ये इन्द्रोपेन्द्रभगिनि ।।

ॐ नमो देवि जये विजये शान्ति स्वस्ति-तुष्टि पुष्टि-विवर्द्धिनि ।
कामाङ्कुशे कामदुधे सर्वकामवरप्रदे ।।
सर्वभूतेषु मां प्रियं कुरु कुरु स्वाहा ।
आकर्षणि आवेशनि-, ज्वालामालिनि-, रमणि रामणि, धरणि धारिणि, तपनि तापिनि, मदनि मादिनि, शोषणि सम्मोहिनि ।।
नीलपताके महानीले महागौरि महाश्रिये ।।
महाचान्द्रि महासौरि महामायूरि आदित्यरश्मि जाह्नवि ।।
यमघण्टे किणि किणि चिन्तामणि ।।
सुगन्धे सुरभे सुरासुरोत्पन्ने सर्वकामदुघे ।।
यद्यथा मनीषितं कार्यं तन्मम सिद्ध्यतु स्वाहा ।।

ॐ स्वाहा ।।
ॐ भूः स्वाहा ।।
ॐ भुवः स्वाहा ।।
ॐ स्वः स्वहा ।।
ॐ महः स्वहा ।।
ॐ जनः स्वहा ।।
ॐ तपः स्वाहा ।।
ॐ सत्यं स्वाहा ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा ।।

यत एवागतं पापं तत्रैव प्रतिगच्छतु स्वाहेत्योम् ।।
अमोघैषा महाविद्या वैष्णवी चापराजिता ।।३२।।

स्वयं विष्णुप्रणीता च सिद्धेयं पाठतः सदा ।।
एषा महाबला नाम कथिता तेऽपराजिता ।।३३।।

नानया सद्रशी रक्षा. त्रिषु लोकेषु विद्यते ।।
तमोगुणमयी साक्षद्रौद्री शक्तिरियं मता ।।३४।।

कृतान्तोऽपि यतो भीतः पादमूले व्यवस्थितः ।।
मूलधारे न्यसेदेतां रात्रावेनं च संस्मरेत् ।।३५।।

नीलजीमूतसङ्काशां तडित्कपिलकेशिकाम् ।।
उद्यदादित्यसङ्काशां नेत्रत्रयविराजिताम् ।।३६।।

शक्तिं त्रिशूलं शङ्खं च पानपात्रं च विभ्रतीम् ।।
व्याघ्रचर्मपरीधानां किङ्किणीजालमण्डिताम् ।।३७।।

धावन्तीं गगनस्यान्तः तादुकाहितपादकाम् ।।
दंष्ट्राकरालवदनां व्यालकुण्डलभूषिताम् ।।३८।।

व्यात्तवक्त्रां ललज्जिह्वां भृकुटीकुटिलालकाम् ।।
स्वभक्तद्वेषिणां रक्तं पिबन्तीं पानपात्रतः ।।३९।।

सप्तधातून् शोषयन्तीं क्रुरदृष्टया विलोकनात् ।।
त्रिशूलेन च तज्जिह्वां कीलयनतीं मुहुर्मुहः ।।४०।।

पाशेन बद्ध्वा तं साधमानवन्तीं तदन्तिके ।।
अर्द्धरात्रस्य समये देवीं धायेन्महाबलाम् ।।४१।।

यस्य यस्य वदेन्नाम जपेन्मन्त्रं निशान्तके ।।
तस्य तस्य तथावस्थां कुरुते सापि योगिनी ।।४२।।

ॐ बले महाबले असिद्धसाधनी स्वाहेति ।।
अमोघां पठति सिद्धां श्रीवैष्ण्वीम् ।।४३।।

श्रीमदपराजिताविद्यां ध्यायेत् ।।
दुःस्वप्ने दुरारिष्टे च दुर्निमित्ते तथैव च ।।
व्यवहारे भेवेत्सिद्धिः पठेद्विघ्नोपशान्तये ।।४४।।

यदत्र पाठे जगदम्बिके मया, विसर्गबिन्द्वऽक्षरहीनमीडितम् ।।
तदस्तु सम्पूर्णतमं प्रयान्तु मे, सङ्कल्पसिद्धिस्तु सदैव जायताम् ।।४५।।

तव तत्त्वं न जानामि कीदृशासि महेश्वरि ।।
यादृशासि महादेवी तादृशायै नमो नमः ।।४६।।

इस स्तोत्र का विधिवत पाठ करने से सब प्रकार के रोग तथा सब प्रकार के शत्रु और बन्ध्या दोष नष्ट हो जाते हैं ।

विशेष रूप से मुकदमादि में सफलता और राजकीय कार्यों में अपराजित रहने के लिये यह पाठ रामबाण है ।

जय माँ  कामाख्या  !!!

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

व्हाट्सप्प न०;- 09958417249

Wednesday, October 16, 2019

अघोरी राज जी



आज जयपुर मैं बहुत ही आनंद आ रहा हैं

 अघोरी राज जी

  दिनाँक - 16 / 10 / 2019

मोबाइल न - 6306762688

व्हाट्सएप - 6306762688


Tuesday, October 15, 2019

दस महाविद्या और उनके भैरव




दस महाविद्या और उनके भैरव

 महाविद्या————–शिव के रूप काली——————- महाकाल तारा——————– अक्षोभ्य षोडषी—————— कामेश्वर भुवनेश्वरी————— त्रयम्बक त्रिपुर भैरवी———— दक्षिणा मूर्ति छिन्नमस्ता———— क्रोध भैरव धूमावती————— चूंकि विधवा रूपिणी हैं, अत: शिव नहीं हैं बगला—————– मृत्युंजय मातंगी—————- मातंग कमला————— विष्णु रूप यक्षिणी सिद्धि

विशेष

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

                   

व्हाट्सप्प न०;- 09958417249


Monday, October 14, 2019

हाथाजोडी साधना






हाथाजोडी साधना 


     हाथाजोडी की साधना में लौंग अवश्य चढाये . इसके साथ ही महाकाली जी के मंत्र की प्रतिदिन  ७  या ११ माला जपें . 

धयान रहे कि हाथाजोडी में देवी चामुण्डा जी का वास रहता हैं . 

जो देवी महाकाली का ही प्रतिरूप हैं . 

अतः महाकाली का मंत्र जपने से उनकी कृपा अवस्य प्राप्ति होती हैं . महाकाली का सब से सरल मंत्र इस प्रकार हैं .

   मंत्र 

           ""     ॐ  किलि  किलि स्वाहा  """

      इस मंत्र को नित्य ११ माला जापे . जप के  पूरा होने पर  हाथाजोडी कि लौंग , धूप , डीप से पूजा करे  और कोई सिक्का भी चढ़ाये .  यह प्रयोग आपकी  आर्थिक  दशा अवस्य सुधर देगा 

चेतावनी - 

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

     राजगुरुजी 

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

                    

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249


Sunday, October 13, 2019

शत्रु मारण मंत्र







शत्रु मारण मंत्र 


ॐ ऐं ह्रीं महा महा बिकराल भैरवाय ज्वालाक्ताय मम शत्रुं दह दह हन हन पच पच उन्मूलय उन्मूलय ॐ ह्रीं ह्रीं हुं फट् ।।

  सामग्री  -

 श्मशान भैरव यंत्र . गुटिका  . भूत केशी जड़ . काली हकीक माला . प्राण प्रतिष्ठा युक्त मंत्र सिद्धि चैतन्य .

विधि –

 उपरोक्त मंत्र का शनिवार या मंगलवार से जप शुरु करे, जप एक सप्ताह मे ३१०० इकत्तीस हजार जप करने के पश्चात सवा सेर सरसों लेकर हवन करें ।। अवश्य शत्रु नाश होगा ।।

शत्रु शमन के लिए

साबुत उड़द की काली दाल के 38 और चावल के 40 दाने मिलाकर किसी गड्ढे में दबा दें और ऊपर से नीबू निचोड़ दें। नीबू निचोड़ते समय शत्रु का नाम लेते रहें, उसका शमन होगा और वह आपके विरुद्ध कोई कदमनहींउठाएगा।

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

                     08601454449

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249

सावधान! आने वाली है महारात्रि, तंत्र-मंत्र और अदृश्य शक्तियों से बचें


सावधान! आने वाली है महारात्रि, तंत्र-मंत्र और अदृश्य शक्तियों से बचें


तंत्रशास्त्र में अनेक विधान हैं जैसे की टोना, टोटका, उपाय, उतारा, साधना सिद्धि आदि। टोना का उपयोग शत्रु के अनिष्ट के लिए होता है। जबकि टोटका स्वार्थ पूर्ति के लिए ही किया जाता है।

तंत्रशास्त्र का उपयोग त्यौहारों के आते ही आरंभ हो जाता है मगर तंत्रशास्त्र के अनुसार दीपावली पर किए गए टोटके अत्यधिक प्रभावशाली होते हैं। दीपावली पर मंत्र जगाए जाते हैं व विशेष सिद्धियों पर विजय पाई जाती है।

 मॉडर्न युग में चाहे व्यक्ति मंगल पर पहुंच गया है मगर तंत्र-मंत्र में उसका विश्वास अडिग बना हुआ है। शास्त्रों में सांकेतिक भाषा में तंत्र-मंत्र के संबंध में कहा गया है। तंत्रशास्त्र में दो बातें मिलती हैं पहला साधना का फल व दूसरा विधि का अंश।

विधि विधान संकेतों में बताए गए हैं। किस मनोभूमि का व्यक्ति, किस काल, किन मंत्रों का किन उपकरणों द्वारा क्या प्रयोग करें, यह सब संकेत सूत्र में छिपाकर रखा गया है। तंत्रशास्त्र गुप्त इस कारण है कि अनाधिकारी लोग इसे प्रयोग न कर सकें। साधना और उसके विधि-विधान को गुप्त रखने के अनेक आध्यात्मिक कारण हैं।

संसार की रचना के साथ ही कई चीजों का अविष्कार हुआ है। जैसे-जैसे मनुष्य ने उन्नति की अपने स्वार्थ, पुरुषार्थ, परोपकार के लिए कुछ न कुछ खोजता रहा, ये जिज्ञासा संसार में सदैव प्रबल रही है।

कई ऐसे सिद्धिप्रद मुहुर्त होते हैं जिनमें तंत्रशास्त्र में रुचि लेने वाले तथा इसके प्रकांड ज्ञाता तंत्र-मंत्र की सिद्धि, प्रयोग, व अनेक क्रियाएं करते हैं।

इन महूर्तों में सर्वाधिक प्रबल महूर्त हैं धनतेरस, दीपावली की रात, दशहरा, नवरात्र व महाशिवरात्री। इसमें दीपावली की रात्र को तंत्रशास्त्र की महारात्रि कहा जाता है।

बदलते समय के साथ दीपावली पर होने वाले टोने-टोटके और ‍तांत्रिक गतिविधियों में अब कई तरह के बदलाव आ गए हैं। माना जाता है‍ कि दीपावली के पांच दिनों में खास करके दीपावली की रात्रि कई तांत्रिक अनेक प्रकार की तंत्र साधनाएं करते हैं।

वे कई प्रकार के तंत्र-मंत्र अपना कर शत्रुओं पर विजय पाने, गृह शांति बढ़ाने, लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने तथा जीवन में आ रही कई तरह की बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए विचित्र टोने-टोटके अपनाते हैं।

मान्यतानुसार दीपावली की महारात्रि देवी लक्ष्मी अपनी बहन दरिद्रा के साथ भू-लोक की सैर पर आती हैं। जिस घर में साफ-सफाई और स्वच्छता रहती है, वहां मां लक्ष्मी अपने कदम रखती हैं और जिस घर में ऐसा नहीं होता वहां दरिद्रा अपना डेरा जमा लेती है।

जादू-टोना, व टोटका आदि का संबंध ऋग्वेदकाल से माना जाता है। अथर्ववेद में भी इन विषयों का वर्णन है। कई स्थानों पर नवरात्र आरंभ होते ही लोग सजग हो जाते हैं तथा उनकी यह सजगता दीपावली के खत्म होने तक बनी रहती है।

यहां तक की घर में बुजुर्ग स्त्रियों द्वारा भी घरेलू टोटके अपनाए जाते हैं। यह केवल गांवों ओर कस्बों तक ही सीमित नहीं बल्कि छोटे-बड़े शहरों में भी किए जाते हैं। त्यौहारों के मौसम में जब किसी दूसरे के घर से मिष्ठान आता है तो घर की महिलाएं उससे चुटकी भर पकावान निकाल कर फेंक देती हैं।

इसके बाद ही वह पारिवारिक सदस्यों को खाने के लिए देती हैं। उनका मानना होता है कि अगर खाने में कोई टोना-टोटका किया गया होगा तो परिजनो पर इसका दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा।

कुछ परिवारों में नजर उतारने हेतु थोड़ा सा नमक हाथों में लेकर नजर लगने वाले से उतारा जाता है और बाद में इसे पानी में बहा दिया जाता है।

 मान्यता है कि इस टोटके से बुरी बलाएं पास नहीं फटकती। लड़कियों को बाल खोल कर न घूमने की हिदायत दि जाती है। यहां तक कि घर में छत या सुनसान जगहों पर खेलने की इजाजत नहीं देते।

मान्यतानुसार टोना सिद्ध करना मंत्र सिद्ध करने की अपेक्षा कठिन होता है। मंत्र को पढ़ उसे फेंका जाता है जबकि टोना केवल संकेत मात्र से काम कर जाता है। मंत्र को सिद्ध करने हेतु मांस-मदिरा की आवश्यकता पड़ती है।

टोना सिद्ध करने हेतु विभिन्न जानवरों के मल-मूत्र की आवश्यकता होती है। मंत्र झाड़ने हेतु पलीते का उपयोग होता है। टोना झाड़ने हेतु मोर पंख या झाड़ू का उपयोग होता है।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह सभी कर्म रात्रि के समय किए जाते हैं अर्थात सूर्य के आभाव में। जब महामावस्या अर्थात दीपावली पर चंद्रमा बलहीन हो जाता है तभी अभिचार कर्मा अपने परचम पर होता है।

नोट:

इस लेख का उद्देश्य नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से बचने के लिए जानकारी देना मात्र है। दीपावली पर अनेक प्रकार के शास्त्रीय कवच अपनाकर व यंत्र पहनकर ऐसी नकारात्मक शक्तियों से बचा जा सकता है।

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

       राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

                     08601454449

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249







महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...