Saturday, July 29, 2017

अप्सरा और यक्षिणी वशीकरण कवच

चेहरे पर निखार, आकर्षक शरीर और एक सेहतमंद शरीर की कामना भला आज कौन नहीं करता है। हर कोई आकर्षक नज़र आना चाहता है। तो इस मनोकामना को पूरा  करने के लिए व्यक्ति आमतौर पर अप्सरा वशीकरण मंत्र  और साधना का इस्तेमाल करता है, जिसे काफी कारगर व असरदार भी माना गया है।

इसके बारे मे ये भी कहां गया है कि अप्सरा साधना की मदद से अप्सरा के जैसा  सौंदर्य व समृद्धि प्राप्त किया जा सकता है और ऐसा नहीं है की सिर्फ इसका इस्तेमाल स्त्रिया ही कर सकती है, क्यूकी सुंदर शरीर और खूबसूरत चेहरे की लालसा पुरुष भी रखता है।

तो अब हम आपको बताते है अप्सरा साधना के बारे मे की किस प्रकार आप इसे कर सकते है। जैसा की हमेशा से यह मान्यता रही है कि अप्सराओ को गुलाब, चमेली, रजनीगंधा और रातरानी जैसे फूलों की सुगंध काफी पसंद आती है।

अप्सरा साधना करने के दौरान उस व्यक्ति को खास तौर पर अपनी यौन भावनाओं पर संयम रखना पड़ता है। ऐसा न कर पाने से साधना सिद्ध नहीं हो पाती है।

साधक पूरे विश्वास और संकल्प व मंत्र की सहायता से अगर इस साधना को करता है, तो माना गया है कि अप्सरा प्रकट होती है और उस समय वो साधक उसे गुलाब के साथ इत्र भेंट करता है। साथ ही उसे दूध से बनी मिठाई व पान आदि भेंट देता है और उससे  जीवन भर साथ रहने का वचन लेता है।

 इन अप्सराओ मे चमत्कारिक शक्तिया होती है जो साधक की जिंदगी को सुंदर बनाने की योग्यता रखती है।
अब हम आपको रंभा अप्सरा साधना के बारे मे जानकारी देते हुए बताएँगे की इस साधना को करने के लिए आपको इस मंत्र का जप करना होता है, जोकि इस प्रकार है,

मंत्र:

ऊँ दिव्यायै नमः! ऊँ वागीश्वरायै नमः!

ऊँ सौंदर्या प्रियायै नमः! ऊँ यौवन प्रियायै नमः!

ऊँ सौभाग्दायै नमः! ऊँ आरोग्यप्रदायै नमः!

 ऊँ प्राणप्रियायै नमः! ऊँ उजाश्वलायै नमः! ऊँ देवाप्रियायै  नमः!

 ऊँ ऐश्वर्याप्रदायै नमः! ऊँ धनदायै रम्भायै नमः!

बाकी साधना के जैसे इसमे भी साधक को पूजा-अर्चना के बाद  रम्भेत्किलन यंत्र के सामने बताए मंत्र का जप करना होता है।

साधना हो जाने के बाद साधक की इक्छा पूर्ण होने के साथ उसके जीवन मे खुशियों आ जाती है।

अप्सरा साधना विधि को करने के लिए साधक के लिए जरूरी होता है कि वो कोई एक शांत जगह चुन ले। फिर उस जगह पर सफ़ेद रंग का एक कपड़ा बिछाकर, पीले चावल के इस्तेमाल से एक यंत्र का निर्माण करे।

इसके बाद साधक के लिए जरूरी है कि वो अपने वस्त्र पर इत्र लगा ले जिससे वो  सुगन्धित हो जाये और मखमल को अपना आसन बनाए।

केवल शुक्रवार के दिन, आधी रात को आप इस साधना करे। ध्यान जरूर रखे की साधना करते वक़्त आपका मुख उत्तर दिशा की ओर हो और फिर बनाए हुए यंत्र का पंचोपकर पूजन करे।

 जिस एकांत जगह या कमरे मे साधक बैठा है वो वहाँ गुलाब के इत्र का प्रयोग करे। आस-पास एक सुगन्धित माहोल बना ले।

 इन सबके बाद आप गुरु गणपति का ध्यान करके स्फटिक मणिमाला का मंत्र के साथ 51 जप करे।

मंत्र:

 “ऊँ उर्वशी प्रियं वशं करी हुं! ऊँ ह्रीं उर्वशी अप्सराय आगच्छागच्छ स्वाहा!!”

इस अनुष्ठान को आप कुल 7, 11 या 21 दिनों तक करे और आखिरी दिन 10 माल का जाप करे। बताए मंत्र के नीचे अपना नाम लिखकर उर्वशी माला की मदद से बताए मंत्र का 101 बार जप करे,

 मंत्र:

“ऊँ ह्रीं उर्वशी मम प्रिय मम चित्तानुरंजन करि करि फट”।

अप्सरा वशीकरण साधना से जुड़े एक शाबर मंत्र के बारे मे भी हम आपको बताते है। जिसको करने के लिए जरूरी है की आप एक बाजोट पर लाल रंग का कपड़ा बिछा ले और उस पर एक चावल से ढेरी बना ले, जो कुम्कुम से रंगे हो।

 आप जिस आसान पर बैठे वो भी लाल रंग का ही हो। इसके बाद उन चावल पर “पुष्पदेहा आकर्षण सिद्धि यंत्र” स्‍थापित कर दे और स्फटिक की माला से मंत्र जाप करे।

 मंत्र:

“ॐ आवे आवे शरमाती पुष्पदेहा प्रिया रुप आवे आवे हिली हिली मेरो कह्यौ करै,मनचिंतावे,कारज करे वेग से  आवे आवे,हर क्षण साथ रहे हिली हिली पुष्पदेहा अप्सरा फट् ॐ ”।

 शुक्रवार के दिन इस साधना को शुरू करे जो 7 दिनों तक चलती है। आपका मुख उत्तर दिशा की ओर हो इसका खास ध्यान रखे और मंत्र का रोज 11 माला जप करना होगा। बनाए हुए यंत्र पर रोज गुलाब का इत्र चढाये और 5 गुलाब भी चढा दे।

 घी का दीपक जला दे, जो साधना विधि के समय जलता रहे। आप जो धूप इस्तेमाल करे वो गुलाब का ही हो। जब मंत्र का जप किया जा रहा हो उस समय नजर  यंत्र की ओर होनी चाहिए। इसी यंत्र के माध्यम से साधक को अप्सरा से वचन प्राप्त करने का मंत्र प्राप्त होता है।

तो यकीन है की रूप-रंग व यौवन की चाहत रखने वाले लोगों के लिए ऊपर बताई गई बाते मददगार होंगी, जिनके उपयोग से साधक अपनी मनोकामना को पूर्ण कर सकता है।

राजगुरु जी

.महाविद्या आश्रम

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Friday, July 28, 2017

कुलदेवी कृपा प्राप्ति साधना

कुलदेवी सदैव हमारी कुल कि रक्षा करती है,हम पर चाहे किसी भी प्रकार कि कोई भी बाधाये आने वाली हो तो सर्वप्रथम हमारी सबसे ज्यादा चिंता उन्हेही ही होती है.कुलदेवी कि कृपा से कई जीवन के येसे कार्य है जिनमे पूर्ण सफलता मिलती है.

कई लोग येसे है जिन्हें अपनी कुलदेवी पता ही नहीं और कुछ येसे भी है जिन्हें कुलदेवी पता है परन्तु उनकी पूजा या फिर साधना पता नहीं है.तो येसे समय यह साधना बड़ी ही उपयुक्त है.यह साधना पूर्णतः फलदायी है और गोपनीय है.यह दुर्लभ विधान मेरी प्यारी भाई/बहन कि लिए आज गुरुज कि कृपा से हम सभी के लिये.

इस साधना के माध्यम से घर मे क्लेश चल रही हो,कोई चिंता हो,या बीमारी हो,धन कि कमी,धन का सही तरह से इस्तेमाल न हो,या देवी/देवतओं कि कोई नाराजी हो तो इन सभी
समस्या ओ के लिये कुलदेवी साधना सर्वश्रेष्ट साधना है.

सामग्री :-

३ पानी वाले नारियल,लाल वस्त्र ,९ सुपारिया ,८ या १६ शृंगार कि वस्तुये ,खाने कि ९ पत्ते ,३ घी कि दीपक,कुंकुम ,हल्दी ,सिंदूर ,मौली ,तिन प्रकार कि मिठाई .

साधना विधि :-

सर्वप्रथम नारियल कि कुछ जटाये निकाले और कुछ बाकि रखे फिर एक नारियल को पूर्ण सिंदूर से रंग दे दूसरे को हल्दी और तीसरे नारियल को कुंकुम से,फिर ३ नारियल को मौली बांधे .

किसी बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाये ,उस पर ३ नारियल को स्थापित कीजिये,हर नारियल के सामने ३ पत्ते रखे,पत्तों पर १-१ coin रखे और coin कि ऊपर सुपारिया स्थापित कीजिये.फिर गुरुपूजन और गणपति पूजन संपन्न कीजिये.

अब ज्यो पूजा स्थापित कि है उन सबकी चावल,कुंकुम,हल्दी,सिंदूर,जल ,पुष्प,धुप और दीप से पूजा कीजिये.जहा सिन्दूर वाला नारियल है वह सिर्फ सिंदूर ही चढ़े बाकि हल्दी कुंकुम नहीं इस प्रकार से पूजा करनी है,और चावल भी ३ रंगों मे ही रंगाने है,अब ३ दीपक स्थापित कर दीजिये.और कोई भी मिठाई किसी भी नारियल के पास चढादे .साधना समाप्ति के बाद प्रसाद परिवार मे ही बाटना है.शृंगार पूजा मे कुलदेवी कि उपस्थिति कि भावना करते हुये चढादे और माँ को स्वीकार करनेकी विनती कीजिये.

और लाल मूंगे कि माला से ३ दिन तक ११ मालाये मंत्र जाप रोज करनी है.यह साधना शुक्ल पक्ष कि १२,१३,१४ तिथि को करनी है.३ दिन बाद सारी सामग्री जल मे परिवार के कल्याण कि प्रार्थना करते हुये प्रवाहित कर दे.

मंत्र :-

|| ओम ह्रीं श्रीं कुलेश्वरी प्रसीद - प्रसीद ऐम् नम : ||

साधना समाप्ति के बाद सहपरिवार आरती करे तो कुलेश्वरी कि कृपा और बढती है.

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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चंद्रज्योत्सना अप्सरा साधना प्रयोग

उच्चकोटि कि अप्सराओं कि श्रेणी में चंद्रज्योत्सना  का प्रथम स्थान है, जो शिष्ट और मर्यादित मणि जाती है, सौंदर्य कि दृष्टि से अनुपमेय कही जा सकती है | शारीरिक सौंदर्य वाणी कि मधुरता नृत्य, संगीत, काव्य तथा हास्य और विनोद यौवन कि मस्ती, ताजगी, उल्लास और उमंग ही तो चंद्रज्योत्सना है | जिसकी साधना से वृद्ध व्यक्ति भी यौवनवान होकर सौभाग्यशाली बन जाता है |

जिसकी साधना से योगी भी अपनी साधनाओं में पूर्णता प्राप्त करता है | अभीप्सित पौरुष एवं सौंदर्य प्राप्ति के लिए प्रतेक पुरुष एवं नारी को इस साधना में अवश्य रूचि लेनी चाहिए | सम्पूर्ण प्रकृति सौंदर्य को समेत कर यदि साकार रूप दिया तो उसका नाम चंद्रज्योत्सना होगा |

सुन्दर मांसल शारीर, उन्नत एवं सुडौल वक्ष: स्थल, काले घने और लंबे बाल, सजीव एवं माधुर्य पूर्ण आँखों का जादू मन को मुग्ध कर देने वाली मुस्कान दिल को गुदगुदा देने वाला अंदाज यौवन भर से लदी हुई चंद्रज्योत्सना बड़े से बड़े योगियों के मन को भी विचिलित कर देती है | जिसकी देह यष्टि से प्रवाहित दिव्य गंध से आकर्षित देवता भी जिसके सानिध्य के लिए लालायित देखे जाते हैं |

सुन्दरतम वर्स्त्रलान्कारों से सुसज्जित, चिरयौवन, जो प्रेमिका या प्रिय को रूप में साधक के समक्ष उपस्थित रहती है | साधक को सम्पूर्ण भौतिक सुख के साथ मानसिक उर्जा, शारीरिक बल एवं वासन्ती सौंदर्य से परिपूर्ण कर देती है |

इस साधना के सिद्ध होने पर वह साधक के साध छाया के तरह जीवन भर सुन्दर और सौम्य रूप में रहती है तथा उसके सभी मनोरथों को पूर्ण करने में सहायक होती है |

चंद्रज्योत्सना साधना सिद्ध होने पर सामने वाला व्यक्ति स्वंय खिंचा चला आये यही तो चुम्बकीय व्यक्तिव है|

साधना से साधक के शरीर के रोग, जर्जरता एवं वृद्धता समाप्त हो जाती है |

यह जीवन कि सर्वश्रेष्ठ साधना है | जिसे देवताओं ने सिद्ध किया इसके साथ ही ऋषि मुनि, योगी संन्यासी आदि ने भी सिद्ध किया इस सौम्य साधना को |

इस साधना से प्रेम और समर्पण के कला व्यक्ति में स्वतः प्रस्फुरित होती है | क्योंकि जीवन में यदि प्रेम नहीं होगा तो व्यक्ति तनावों में बिमारियों से ग्रस्त होकर समाप्त हो जायेगा | प्रेम को अभिव्यक्त करने का सौभाग्य और सशक्त माध्यम है चंद्रज्योत्सना साधना | जिन्होंने चंद्रज्योत्सना  साधना नहीं कि है, उनके जीवन में प्रेम नहीं है, तन्मयता नहीं है, प्रस्फुल्लता भी नहीं है |

साधना विधि

सामग्री – प्राण प्रतिष्ठित चंद्रज्योत्सनात्कीलन यंत्र, चंद्रज्योत्सना माला, सौंदर्य गुटिका  |

यह रात्रिकालीन २७ दिन कि साधना है | इस साधना को किसी भी पूर्णिमा को, शुक्रवार को अथवा किसी भी विशेष दिन प्रारम्भ करें | साधना प्रारम्भ करने से पूर्व साधक को चाहिए कि स्नान आदि से निवृत होकर अपने सामने चौकी पर गुलाबी वस्त्र बिछा लें, पीला या सफ़ेद किसी भी आसान पर बैठे, आकर्षक और सुन्दर वस्त्र पहनें | पूर्व दिशा कि ओर मुख करके बैठें | घी का दीपक जला लें | सामने चौकी पर एक थाली या पलते रख लें, दोनों हाथों में गुलाब कि पंखुडियां लेकर रम्भा का आवाहन करें |

|| ओम ! चंद्रज्योत्सने अगच्छ पूर्ण यौवन संस्तुते ||

यह आवश्यक है कि यह आवाहन कम से कम १०१ बार अवश्य हो प्रत्येक आवाहन मन्त्र के साथ एक गुलाब के पंखुड़ी थाली में रखें | इस प्रकार आवाहन से पूरी थाली पंखुड़ियों से भर दें |

अब अप्सरा माला को पंखुड़ियों के ऊपर रख दें इसके बाद अपने बैठने के आसान पर ओर अपने ऊपर इत्र छिडके | चंद्रज्योत्सनात्कीलन यन्त्र को माला के ऊपर आसान पर स्थापित करें | गुटिका को यन्त्र के दाँयी ओर तथा  यन्त्र के बांयी ओर स्थापित करें | सुगन्धित अगरबती एवं घी का दीपक साधनाकाल तक जलते रहना चाहिए |

सबसे पहले गुरु पूजन ओर गुरु मन्त्र जप कर लें | फिर यंत्र तथा अन्य साधना सामग्री का पंचोपचार से पूजन सम्पन्न करें |स्नान, तिलक, धुप, दीपक एवं पुष्प चढावें |

इसके बाद बाएं हाथ में गुलाबी रंग से रंग हुआ चावल रखें, ओर निम्न मन्त्रों को बोलकर यन्त्र पर चढावें

|| ॐ दिव्यायै नमः ||

|| ॐ प्राणप्रियायै नमः ||

|| ॐ वागीश्वये नमः ||

|| ॐ ऊर्जस्वलायै नमः ||

|| ॐ सौंदर्य प्रियायै नमः ||

|| ॐ यौवनप्रियायै नमः ||

|| ॐ ऐश्वर्यप्रदायै नमः ||

|| ॐ सौभाग्यदायै नमः ||

|| ॐ धनदायै चंद्रज्योत्सने नमः ||

|| ॐआरोग्य प्रदायै नमः ||

इसके बाद उपरोक्त चंद्रज्योत्सना माला से निम्न मंत्र का ११ माला प्रतिदिन जप करें |

मंत्र :

||ॐ हृीं चंद्रज्योत्सने ! आगच्छ आज्ञां पालय मनोवांछितं देहि ऐं ॐ नमः ||

प्रत्येक दिन अप्सरा आवाहन करें, ओर हर शुक्रवार को दो गुलाब कि माला रखें, एक माला स्वंय पहन लें, दूसरी माला को रखें, जब भी ऐसा आभास हो कि किसी का आगमन हो रहा है अथवा सुगन्ध एक दम बढने लगे अप्सरा का बिम्ब नेत्र बंद होने पर भी स्पष्ट होने लगे तो दूसरी माला सामने यन्त्र पर पहना दें |

२७ दिन कि साधना प्रत्येक दिन नये-नये अनुभव होते हैं, चित्त में सौंदर्य भव भाव बढने लगता है, कई बार तो रूप में अभिवृद्धि स्पष्ट दिखाई देती है | स्त्रियों द्वारा इस साधना को सम्पन्न करने पर चेहरे पर झाइयाँ इत्यादि दूर होने लगती हैं |

साधना पूर्णता के पश्चात मुद्रिका को अनामिका उंगली में पहन लें, शेष सभी सामग्री को जल में प्रवाहित कर दें | यह सुपरिक्षित साधना है | पूर्ण मनोयोग से साधना करने पर अवश्य मनोकामना पूर्ण होती ही है |

राजगुरु जी

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Wednesday, July 26, 2017

साबर भैरवी साधना

बहोत से लोगो ने यह पहली बार सुना होगा ,क्यू के यह साधना लुप्त हो रही है परन्तु मेरे पास यह साधना हो और आपको ना मिले ऐसा संभव नही।

इस साधना से भाग्योदय होता है ,शत्रुबंधा सम्पात समाप्त होती है,रोग खत्म होते है,आकर्षण शक्ति निर्मित होती है, चहरे पर सम्मोहन आ जाता है,शरीर मे विशेष ताकत आती है जीवन मे होने वाले  नुकसान की खबर देवी पाहिले ही स्वप्न  मे बता देती है मनोकामनाए भी पूर्ण होती है ,अभिचार कर्म समाप्त होते है, जहा जाओगे वाहा सिर्फ तारीफ सुनाने मिलेगी।

तो अब आप समज गऐ होगे साधना कितना महत्वपूर्ण है ,करिये यह साधना क्यू  के यह साधना करने के बाद साबर शिव मंत्र शीघ्र सफलता मिलता है, मंत्र तो बहोत मील जायेगा लेकिन साबर शिव मंत्र बहोत मुश्किल से प्राप्त होता है।

साधना ७ दिन का है, रोज दक्षिण दिशा मे मुख करके १०८ बार मंत्र का जाप करना है तो मंत्र सिद्ध होता है,घी का दीपक जलाये और धुप जलाये माला रुद्राक्ष का हो रात्रि मे ९ स्नान बजे  करके साधना मे बैठे तो उचित है।

जिन्हे मंत्र चाहिए उन्हे ही मंत्र देगे क्यू के मेरे लिए मंत्र का गोपनीयता सर्वप्रथम है। मंत्र प्रभावशाली है। इसलिए आप भी गोपनीयता रखे और हो सके तो गुरु आज्ञा से मंत्र का जाप करे श्रेष्ठ है

राजगुरु जी

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Sunday, July 23, 2017

तिलोत्तमा अप्सरा

तिलोत्तमा अप्सरा की गिनती भी श्रेष्ठ अप्सराओं मे होती हैं। यह अप्सरा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनो ही रुप मे साधक की सहायता करती रहती हैं। यह साधना अनुभुत हैं। इस साधना को करने से सभी सुखो की प्राप्ति होती हैं। इस साधना को शुरु करते ही एक – दो दिन में धीमी धीमी खुशबू का प्रवाह होने लगता हैं। यह खुशबू तिलोत्तमा के सामने होने की पूर्व सुचना हैं।

अप्सरा का प्रत्यक्षीकरण एक श्रमसाध्य कार्य हैं। मेहनत बहुत ही जरुरी हैं। एक बार अप्सरा के प्रत्यक्षीकरण के बाद कुछ भी दुर्लभ नहीं रह जाता, इसमे कोई दोराय नहीं हैं। यह प्रक्रिया आपकी सेवा में प्रस्तुत करने की कोशिश करता हूँ।

सामान्यतः अप्सरा साधना भी गोपनीयता की श्रेष्णी में आती हैं। सभी को इस प्रकार की साधना जीवन मे एक बार सिद्ध करने की पुरी कोशिश करनी चाहिए क्योंकि कलियुग में जो भी कुछ चाहिए वो सब इस प्रकार की साधना से सहज ही प्राप्त किया जा सकता हैं। इन साधनाओं की अच्छी बात यह हैं कि इन साधनाओं को साधारण व्यक्ति भी कर सकता हैं मतलब उसको को पंडित तांत्रिक बनाने की कोई अवश्यकता नहीं हैं।

साधक स्नान कर ले अगर नही भी कर सको तो हाथ-मुहँ अच्छी तरह धौकर, धुले वस्त्र पहनकर, रात मे ठीक 10 बजे के बाद साधना शुरु करें। रोज़ दिन मे एक बार स्नान करना जरुरी है। मंत्र जाप मे कम्बल का आसन रखे और अप्सरा और स्त्री के प्रति सम्मान आदर होना चाहिए।

 अप्सरा , गुरु, धार्मिक ग्रंथो और विधि मे पुर्ण विश्वास होना चाहिए, नहीं तो सफलत होना मुश्किल हैं। अविश्वास का साधना मे कोई स्थान नही है। साधना का समय एक ही रखने की कोशिश करनी चाहिए।

एक स्टील की प्लेट मे सारी सामग्री रख ले। साधना करते समय और मंत्र जप करते समय जमीन को स्पर्श नही करते। माला को लाल या किसी अन्य रंग के कपडे से ढककर ही मंत्र जप करे या गौमुखी खरीदे ले। मंत्र जप को अगुँठा और माध्यमा से ही करे ।

मंत्र जपते समय माला मे जो अलग से एक दान लगा होता हैं उसको लांघना नहीं है मतलब जम्प नहीं करना हैं। जब दुसरी माला शुरु हो तो माला के आखिए दाने/मनके को पहला दान मानकर जप करें, इसके लिए आपको माला को अंत मे पलटना होगा। इस क्रिया का बैठकर पहले से अभ्यास कर लें।

पूजा सामग्री:-

सिन्दुर, चावल, गुलाब पुष्प, चौकी, नैवैध, पीला आसन, धोती या कुर्ता पेजामा, इत्र, जल पात्र मे जल, चम्मच, एक स्टील की थाली, मोली/कलावा, अगरबत्ती,एक साफ कपडा बीच बीच मे हाथ पोछने के लिए, देशी घी का दीपक, (चन्दन, केशर, कुम्कुम, अष्टगन्ध यह सभी तिलक के लिए))

विधि :

पूजन के लिए स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ-सुथरे आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके बैठ जाएं। पूजन सामग्री अपने पास रख लें।

बायें हाथ मे जल लेकर, उसे दाहिने हाथ से ढ़क लें। मंत्रोच्चारण के साथ जल को सिर, शरीर और पूजन सामग्री पर छिड़क लें या पुष्प से अपने को जल से छिडके।
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ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
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(निम्नलिखित मंत्र बोलते हुए शिखा/चोटी को गांठ लगाये / स्पर्श करे)
ॐ चिद्रूपिणि महामाये! दिव्यतेजःसमन्विते। तिष्ठ देवि! शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥
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(अपने माथे पर कुंकुम या चन्दन का तिलक करें)
ॐ चन्दनस्य महत्पुण्यं, पवित्रं पापनाशनम्। आपदां हरते नित्यं, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा॥
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(अपने सीधे हाथ से आसन का कोना जल/कुम्कुम थोडा डाल दे) और कहे
ॐ पृथ्वी! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम्॥
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संकल्प:-

 दाहिने हाथ मे जल ले।
मैं ........अमुक......... गोत्र मे जन्मा,................... यहाँ आपके पिता का नाम.......... ......... का पुत्र .............................यहाँ आपका नाम....................., निवासी.......................आपका पता............................ आज सभी देवी-देव्ताओं को साक्षी मानते हुए देवी तिलोत्त्मा अप्सरा की पुजा, गण्पति और गुरु जी की पुजा देवी तिलोत्त्मा अप्सरा के साक्षात दर्शन की अभिलाषा और प्रेमिका रुप मे प्राप्ति के लिए कर रहा हूँ जिससे देवी तिलोत्त्मा अप्सरा प्रसन्न होकर दर्शन दे और मेरी आज्ञा का पालन करती रहें साथ ही साथ मुझे प्रेम, धन धान्य और सुख प्रदान करें।
जल और सामग्री को छोड़ दे।
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गणपति का पूजन करें।

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात पर ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
ॐ श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः। ॐ श्री गुरवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
गुरु पुजन कर लें कम से कम गुरु मंत्र की चार माला करें या जैसा आपके गुरु का आदेश हो।
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणि नमोअस्तुते
ॐ श्री गायत्र्यै नमः। ॐ सिद्धि बुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।
ॐ लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः। ॐ उमामहेश्वराभ्यां नमः। ॐ वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः।
ॐ शचीपुरन्दराभ्यां नमः। ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
ॐ भ्रं भैरवाय नमः का 21 बार जप कर ले।
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अब अप्सरा का ध्यान करें और सोचे की वो आपके सामने हैं।

दोनो हाथो को मिलाकर और फैलाकर कुछ नमाज पढने की तरफ बना लो। साथ ही साथ “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीं तिलोत्त्मा अप्सरा आगच्छ आगच्छ स्वाहा” मंत्र का 21 बार उचारण करते हुए एक एक गुलाब थाली मे चढाते जाये। अब सोचो कि अप्सरा आ चुकी हैं।

हे सुन्दरी तुम तीनो लोकों को मोहने वाली हो तुम्हारी देह गोरे गोरे रंग के कारण अतयंत चमकती हुई हैं। तुम नें अनेको अनोखे अनोखे गहने पहने हुये और बहुत ही सुन्दर और अनोखे वस्त्र को पहना हुआ हैं। आप जैसी सुन्दरी अपने साधक की समस्त मनोकामना को पुरी करने मे जरा सी भी देरी नही करती। ऐसी विचित्र सुन्दरी तिलोत्तमा अप्सरा को मेरा कोटि कोटि प्रणाम।
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इन गुलाबो के सभी गन्ध से तिलक करे। और स्वयँ को भी तिलक कर लें।
ॐ अपूर्व सौन्दयायै, अप्सरायै सिद्धये नमः।
मोली/कलवा चढाये : वस्त्रम् समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
गुलाब का इत्र चढाये : गन्धम समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
फिर चावल (बिना टुटे) : अक्षतान् समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
पुष्प : पुष्पाणि समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
अगरबत्ती : धूपम् आघ्रापयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
दीपक (देशी घी का) : दीपकं दर्शयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
मिठाई से पुजा करें।: नैवेद्यं निवेदयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
फिर पुजा सामप्त होने पर सभी मिठाई को स्वयँ ही ग्रहण कर लें।
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पहले एक मीठा पान (पान, इलायची, लोंग, गुलाकन्द का) अप्सरा को अर्प्ति करे और स्वयँ खाये। इस मंत्र की स्फाटिक की माला से 21 माला जपे और ऐसा 11 दिन करनी हैं।
ॐ क्लीं तिलोत्त्मा अप्सरायै मम वश्मनाय क्लीं फट
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यहाँ देवी को मंत्र जप समर्पित कर दें। क्षमा याचना कर सकते हैं। जप के बाद मे यह माला को पुजा स्थान पर ही रख दें। मंत्र जाप के बाद आसन पर ही पाँच मिनट आराम करें।

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात पर ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

ॐ श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः।

यदि कर सके तो पहले की भांति पुजन करें और अंत मे पुजन गुरु को समर्पित कर दे।

अंतिम दिन जब अप्सरा दर्शन दे तो फिर मिठाई इत्र आदि अर्पित करे और प्रसन्न होने पर अपने मन के अनुसार वचन लेने की कोशिश कर सकते हैं।

पुजा के अंत मे एक चम्मच जल आसन के नीचे जरुर डाल दें और आसन को प्रणाम कर ही उठें।
॥ हरि ॐ तत्सत ॥
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नियम जिनका पालन अधिक से अधिक इस साधना मे करना चाहिए वो सब नीचे लिखे हैं।

ब्रह्मचरी रहना परम जरुरी होता हैं अगर कुछ विचारना हैं तो केवल अपने ईष्‍ट का या ॐ नमः शिवाय या अप्सरा का ध्यान करें, आप सदैव यह सोचे कि वो सुन्दर सी अप्सरा आपके पास ही मौजुद हैं और आपको देख रही हैं। ऐसी अवस्था मे क्या शोभनीय हैं आप स्वयँ अन्दाजा लगा सकते हैं।

भोजन: मांस, शराब, अन्डा, नशे, तम्बाकू, तामसिक भोजन आदि सभी से ज्यादा से ज्यादा दुर रहना हैं। इनका प्रयोग मना ही हैं। केवल सात्विक भोजन ही करें क्योंकि यह काम भावना को भडकाने का काम करते हैं।

 मंत्र जप के समय कृपा करके नींद्, आलस्य, उबासी, छींक, थूकना, डरना, लिंग को हाथ लगाना, सेल फोन को पास रखना, जप को पहले दिन निधारित संख्या से कम-ज्यादा जपना, गा-गा कर जपना, धीमे-धीमे जपना, बहुत् ही ज्यादा तेज-तेज जपना, सिर हिलाते रहना, स्वयं हिलते रहना, मंत्र को भुल जाना (पहले से याद नहीं किया तो भुल जाना), हाथ-पैंर फैलाकर जप करना यह सब कार्य मना हैं।

मेरा मतलब हैं कि बहुत ही गम्भीरता से मंत्र जप करना हैं। यदि आपको पैर बदलने की जरुरत हो तो माला पुरी होने के बाद ही पैरों को बदल सकते हैं या थोडा सा आराम कर सकते हैं लेकिन मंत्र जप बन्द ना करें।

यदि आपको सिद्धि चाहिए तो भगवन श्री शिव शंकर भगवान के कथन को कभी ना भुलना कि "जिस साधक की जिव्हा परान्न (दुसरे का भोजन खाना) से जल गयी हो, जिसका मन में परस्त्री (अपनी पत्नि के अलावा कोई भी) हो और जिसे किसी से प्रतिशोध लेना हो उसे भला केसै सिद्धि प्राप्त हो सकती हैं"।

यदि उसे एक बार भी प्रेमिका की तरह प्रेम/पुजा किया तो आने मे कभी देरी नही करती है। साधना के समय वो एक देवी मात्र ही हैं और आप साधक हैं। इनसे सदैव आदर से बात करनी चाहिए। समस्त अप्सराएँ वाक सिद्ध होती हैं।

किसी भी साधना को सीधे ही करने नही बैठना चाहिए। उससे पहले आपको अपना कुछ अभ्यास करना चाहिए। मंत्रो का उचारण कैसे करना है यह भी जान लेना चाहिए और बार बार बोलकर अभ्यास कर लेना चाहिए।

ऐसा करने पर अप्सरा जरुर सिंद्ध होती हैं बाकी जो देवी कालिका की इच्छा क्योंकि होता वही हैं जो देवी जगत जननी चाहती हैं। साधना से किसी को नुकसान पहुँचाने पर साधना शक्ति स्वयँ ही समाप्त होने लगती हैं। इसलिए अपनी साधना की रक्षा करनी चाहिए।

किसी को अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने की जरुरत नहीं हैं। यहाँ कोई किसी के काम नहीं आता हैं लेकिन फिर भी कभी कभार किसी ना किसी जो बहुत ही जरुरत मन्द हो की सहायता करी जा सकती हैं। वैसे यह साधना साधक का ही ज्यादा भला करने वाले हैं।

मैं तो इतना ही कहुगाँ कि इस साधना को नए साधक और ऐसे आदमी को जरुर करना चाहिए जो देवी देवता मे यकीन ना रखता हो। यदि ऐसे लोगों थोडा सा विश्वास करके भी इस साधना को करते हैं तो उन्हें कुछ ना कुछ अच्छे परिणाम जरुर मिलने चाहिए।

यदि किसी को साधना करने मे कोई दिक्कत हो रही हैं तो हमसे भी सम्पर्क (ईमेल का पता सबसे उपर दिया गया हैं) किया जा सकता हैं।

यदि पहली बार में साधना मे सिद्धि प्राप्त नहीं हो रही है तो आप सहायता के लिए ईमेल कर सकते हैं। देवी माँ आपको सभी सिद्धि प्रदान करें इस कामना के साथ इस लेख को विराम देता हूँ।

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Friday, July 14, 2017

दरिद्त्रता  नाशक प्रचंड प्रयोग

     

 प्रसिद्ध तांत्रिक ग्रन्थ  "" शारदा तिलक  """ में इस पवित्र मुद्रिका के विषय  और प्रयोग के बारे में विशद उल्लेख किया गया हैं . त्रिधातु   ( सोना २ रत्ती , चाँदी १२ रत्ती , और तांबा १६ रत्ती , ) से शास्त्रोक्त पद्धतिके अनुसार निर्मित तथा श्री यन्त्र जड़ित इस चमत्कारी मुद्रिका को धारण करने से दरिद्रता का समूल नाश हो जाता हैं .
   
  सामग्री -     जल पात्र , घी का दीपक , अगरबत्ती , भोजपत्र , मंत्र सिद्धि पवित्री  मुद्रिका .

     माला -  पवित्री माला  ( मंत्र सिद्धि  चैतन्य  )
     समय -  दिन या रात में कोई भी समय
     दिन  -  शुक्रवार .
     धारणीय  -   वस्त्र -   पीले रंग की धोती
     आसन  -  पीले रंग का
     दिशा -  पूर्व

     जप संख्या  -  ११००० हजार

    अवधि -  ११ दिन

    मंत्र -      ॐ  क्लीं  नमः   ( कनकधारा  स्त्रोत  )

    प्रयोग -

 सर्व प्रथम भोजपत्र पर केशर से उपरोक्त यन्त्र को अंकित कर दे  और उसके ऊपर पवित्री मुद्रिका रख दे ,  ( जो की मंत्र सिद्धि  प्राण - प्रतिष्ठा युक्त हो )  इसके बाद सामने अगरबत्ती व दीपक लगा दे तथा कनक धरा स्त्रोत का जाप प्रारम्भ कर दे . उसके बाद निम्न मंत्र का ११०० मंत्र का जाप प्रतिदिन करे , ११ दिन . ११ वे दिन जाप पूरा कर के भोजपत्र को चांदी के ताबीज में बंद कर गले में धारण कर ले और मंत्र सिद्धि प्राण - प्रतिष्ठा युक्त पवित्री मुद्रिका दाहिने हाथ की किसी भी ऊँगली में धारण कर ले ,
   इस अगूंठी के प्रभाव से राज्य से सम्बंधित सभी बंधाये दूर हो जाती हैं . और उसे मान सम्मान प्राप्त होता हैं साथ ही यह  पवित्री मुद्रिका धारण करता की दरिद्रता का विनाश कर के उसके लिए लक्ष्मी प्राप्त में परम सहायक होती हैं .



राजगुरु जी

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Wednesday, July 12, 2017

 कामदेव वशीकरण मंत्र

जब किसी व्यक्ति को किसी से प्रेम हो जाए या वह आसक्त हो। विवाहित स्त्री या पुरुष की अपने जीवनसाथी से संबंधों में कटुता हो गई हो या कोई युवक या युवती अपने रुठे साथी को मनाना चाहते हो। किंतु तमाम कोशिशों के बाद भी वह मन के अनुकूल परिणाम नहीं पाता। तब उसके लिए तंत्र क्रिया के अंतर्गत कुछ मंत्र के जप प्रयोग बताए गए हैं। जिससे कोई अपने साथी को अपनी भावनाओं के वशीभूत कर सकता है।

धर्मशास्त्र में कामदेव को प्रेम, सौंदर्य और काम का देव माना गया है। इसलिए परिणय, प्रेम-संबंधों में कामदेव की उपासना और आराधना का महत्व बताया गया है। इसी क्रम में तंत्र विज्ञान में कामदेव वशीकरण मंत्र का जप करने का महत्व बताया गया है। इस मंत्र का जप हानिरहित होकर अचूक भी माना जाता है। यह मंत्र है -

“ॐ नमः काम-देवाय। सहकल सहद्रश सहमसह लिए वन्हे धुनन जनममदर्शनं उत्कण्ठितं कुरु कुरु, दक्ष दक्षु-धर कुसुम-वाणेन हन हन स्वाहा”

कामदेव के इस मन्त्र को सुबह, दोपहर और रात्रिकाल में एक-एक माला जप का करें। माना जाता है कि यह जप एक मास तक करने पर सिद्ध हो जाता है। मंत्र सिद्धि के बाद जब आप इस मंत्र का मन में जप कर जिसकी तरफ देखते हैं, वह आपके वशीभूत या वश में हो जाता है।

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Monday, July 3, 2017

स्वप्नेस्वरी  साधना

मनुष्य के शरीर की आतंरिक रचना बहोत ही पेचीदा है और आधुनिक विज्ञान भी इसे अभी तक पूर्ण रूप से समजने के लिए प्रयासरत है.

वस्तुतः हमारे पुरातन महापुरुषों ने साधनाओ के माध्यम से ब्रम्हांड की इस जटिल संरचना को समजा था और इसके ऊपर शोधकार्य लगातार किया था जिससे की मानव जीवन पूर्ण सुखो की प्राप्ति कर सके.

 कालक्रम में उनकी शोध की अवलेहना कर हमने उनके निष्कर्षों को आत्मसार करने की वजाय उसे भुला दिया और इसे कई सूत्र लुप्त हो गए जो की सही अर्थो में मनुष्य जीवन की निधि कही जा सकती है. मनुष्य के अंदर का ऐसा ही एक भाग है मन.

मन ऐसा भाग है जो मनुष्य को अपने आतंरिक और बाह्य ब्रम्हांड को जोड़ सकता है. क्यों की ब्रम्हांड और मन दोनों ही अनंत है. आतंरिक ब्रम्हांड की पृष्ठभूमि मन ही है क्यों की शरीर के अंदर ही सही लेकिन मन अनंत है. और आतंरिक ब्रम्हांड भी बाह्य ब्रम्हांड की तरह अनंत भूमि पर स्थित होना चाहिए इस लिए इसका पूर्ण आधार मन है.

मन के भी कई प्रकार के भेद हमारे ऋषियोने कहे है उसमे से प्रमुख है, जागृत, अर्धजागृत और सुषुप्त मन. यहाँ पर एक तथ्य ध्यान देने योग्य है की आतंरिक और बाह्य ब्रम्हांड की गति समान और नितांत है.

 इस लिए जो भी घटना बाह्य ब्रम्हांड में होती है वही घटना आतंरिक ब्रम्हांड में भी होती है. साधको की कोशिश यही रहती है की वह किसी युक्ति से इन दोनों ब्रम्हांड को जोड़ दे तो वह प्रकृति पर अपना आधिपत्य स्थापित कर सकता है.

 वह ब्रम्हांड में घटित कोई भी घटना को देख सकता है तथा उसमे हस्तक्षेप भी कर सकता है. लेकिन यह सफर बहोत ही लंबा है और साधक में धैर्य अनिवार्य होना चाहिए. लेकिन इसके अलावा इन्ही क्रमो से सबंधित कई लघु प्रयोग भी तंत्र में निहित है.

स्वप्न एक एसी ही क्रिया है जो मन के माध्यम से सम्प्पन होती है. निंद्रा समय में अर्धजागृत मन क्रियावान हो कर व्यक्ति को अपनी चेतना के माध्यम से जो द्रश्य दिखता तथा अनुभव करता है वही स्वप्न है.

चेतना ही वो पूल है जो आतंरिक और बाह्य ब्रम्हांड को जोडता है, मनुष्य की चेतना से सबंधित होने के कारण स्वप्न भी एक धागा है जो की इस कार्य में अपना योगदान करता है.

यु इसी तथ्य को ध्यान में रख कर हमारे ऋषिमुनि तथा साधको ने इस दिशा में शोध कार्य कर ये निष्कर्ष निकला था की हर एक स्वप्न का अपना ही महत्त्व है तथा ये मात्र द्रश्य न हो कर मनुष्य के लिए संकेत होते है लेकिन इसका कई बार अर्थ स्पष्ट तो कई बार गुढ़ होता है.

इसी के आधार पर स्वप्नविज्ञान, स्वप्न ज्योतिष, स्वप्न तंत्र आदि स्वतंत्र शाखाओ का निर्माण हुआ. स्वप्न तंत्र के अंतर्गत कई प्रकार की साधना है जिनमे स्वप्नों के माध्यम से कार्यसिद्ध किये जाते है.

इस तंत्र में मुख्य देव स्वप्नेश्वर है तथा देवी स्वप्नेश्वरी. देवी स्वप्नेश्वरी से सबंधित कई इसे प्रयोग है जिससे व्यक्ति स्वप्न में अपने प्रश्नों का उत्तर प्राप्त कर सकता है. व्यक्ति के लिए यह एक नितांत आवश्यक प्रयोग है क्यों की जीवन में आने वाले कई प्रश्न ऐसे होते है जो की बहोत ही महत्वपूर्ण होते है लेकिन उसका जवाब नहीं मिलने पर जीवन कष्टमय हो जाता है.

लेकिन तंत्र में ऐसे विधान है जिससे की स्वप्न के माध्यम से अपने किसी भी प्रकार के प्रश्नों का समाधान प्राप्त हो सकता है. ऐसा ही एक सरल और गोपनीय विधान है देवी स्वप्नेश्वरी के सबंध में. अन्य प्रयोगों की अपेक्षा यह प्रयोग सरल और तीव्र है.

इस साधना को साधक किसी भी सोमवार की रात्रिकाल में ११ बजे के बाद शुरू करे.

साधक के वस्त्र आसान वगेरा सफ़ेद रहे. दिशा उत्तर.
साधक को अपने सामने सफ़ेदवस्त्रों को धारण किये हुए देवी स्वप्नेश्वरी का चित्र या यन्त्र स्थापित करना चाहिए.

 अगर ये उपलब्ध ना हो तो सफ़ेद वस्त्र माला को धारण किये हुए अंत्यंत ही सुन्दर और प्रकाश तथा दिव्य आभा से युक्त चतुर्भुजा शक्ति का ध्यान कर केअपने प्रश्न का उतर देने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए. उसके बाद साधक अपने प्रश्न को साफ़ साफ़ अपने मन ही मन ३ बार दोहराए. उसके बाद मंत्र जाप प्रारंभ करे.

इस साधना में ११ दिन रोज ११ माला मंत्र जाप करना चाहिए. यह मंत्रजाप सफ़ेदहकीक, स्फटिक या रुद्राक्ष की माला से किया जाना चाहिए.

ॐ स्वप्नेश्वरी स्वप्ने सर्व सत्यं कथय कथय ह्रीं श्रीं ॐ नमः

मन्त्र जाप के बाद साधक फिर से प्रश्न का तिन बार मन ही मन उच्चारण कर जितना जल्द संभव हो सो जाए.

 निश्चित रूप से साधक को साधना के आखरी दिन या उससे पूर्व भी स्वप्न में अपना उत्तर मिल जाता है और समाधान प्राप्त होता है.

 जिस दिन उत्तर मिल जाए साधक चाहे तो साधना उसी दिन समाप्त कर सकता है. साधक को माला को सुरक्षित रख ले. भविष्य में इस प्रयोग को वापस करने के लिए इसी माला का प्रयोग किया जा सकता है.

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Saturday, July 1, 2017

एक अनोखी साधना है कर्ण पिशाचिनी।

 इस साधना को व्यक्ति स्वयं कभी संपन्ननहीं कर सकता। उसे विशेषज्ञों और सिद्ध गुरुओं के मार्गदर्शन से ही सीखा जासकता है। स्वयं करने से इसके नकारात्मक परिणाम भी देखे गए हैं।

प्रयोग 1

यहप्रयोग निरंतर ग्यारह दिन तक किया जाता है। सर्वप्रथम काँसे की थाली मेंसिंदूर का त्रिशूल बनाएँ। इस त्रिशूल का दिए गए मंत्र द्वारा विधिवत पूजनकरें। यह पूजा रात और दिन उचित चौघड़िया में की जाती है।
गाय केशुद्ध घी का दीपक जलाएँ और 1100 मंत्रों का जाप करें। रात में भी इसीप्रकार त्रिशूल का पूजन करें। घी एवं तेल दोनों का दीपक जलाकर ग्यारह सौबार मंत्र जप करें।

इस प्रकार ग्यारह दिन तक प्रयोग करने पर कर्णपिशाचिनी सिद्ध हो जाती है। तत्पश्चात् किसी भी प्रश्न का मन में स्मरणकरने पर साधक के कान में ‍पिशाचिनी सही उत्तर दे देती है।

सावधानियाँ :

एक समय भोजन करें।
* काले वस्त्र धारण करें।
* स्त्री से बातचीत भी वर्जित है। (साधनाकाल में)
* मन-कर्म-वचन की शुद्धि रखें।

मंत्

।।ॐ नम: कर्णपिशाचिनी अमोघ सत्यवादिनि मम कर्णे अवतरावतर अतीता नागतवर्तमानानि दर्शय दर्शय मम भविष्य कथय-कथय ह्यीं कर्ण पिशाचिनी स्वहा।।

- इस मंत्र को अज्ञानतावश आजमाने की कोशिश न करें।
- यह अत्यंत गोपनीय एवं दुर्लभ मंत्र है। इसे किसी सिद्ध पुरुष एवं प्रकांड विद्वान के मार्गदर्शन में ही करें।
- इस मंत्र को सिद्ध करने में अगर मामूली त्रुटि भी होती है तो इसका घोर नकारात्मक असर हो सकता है।

प्रयोग- 2

आम की लकड़ी से बने पटिए पर गुलाल बिछाएँ। अनार की कलम से रात्रि में एकसौ आठ बार मंत्र लिखें और मिटाते जाएँ। लिखते हुए मंत्र का उच्चारण भीजरूरी है। अंतिम मंत्र का पंचोपचार पूजन कर फिर से 1100 बार मंत्र काउच्चारण करें।
मंत्र को अपने सिरहाने रख कर सो जाए। लगातार 21 दिन करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। यह मंत्र अक्सर होली, दीवाली या ग्रहणसे आरंभ किया जाता है। 21 दिन तक इसका प्रयोग होता है।

सावधानी :-

- मंत्र के पश्चात जिस कमरे में साधक सोए वहाँ और कोई नहीं सोए।
- जहाँ बैठकर मंत्र लिखा जाए वहीं पर साधक सो जाए वहाँ से उठे नहीं।

मंत्र :-

‘ॐ नम: कर्णपिशाचिनी मत्तकारिणी प्रवेशे अतीतानागतवर्तमानानि सत्यं कथय में स्वाहा।।‘
हैं।

प्रयोग-3

इस प्रयोग में काले ग्वारपाठे कोअभिमंत्रित कर उसका हाथ-पैरों में लेप कर नीचे दिए गए मंत्र का 21 दिनों तकजप करें। यह मंत्र प्रतिदिन पाँच हजार बार किया जाता है। 21 दिनों मेंमंत्र सिद्ध हो जाता है और साधक को कान में सभी अपेक्षित बातें स्पष्टसुनाई देने लग जाती हैं।

मंत्र :

ओम ह्यीं नमो भगवति कर्णपिशाचिनी चंडवेगिनी वद वद स्वाहा।।

नोट : अन्य सावधानियाँ पूर्व में दिए मंत्रों के समान ही हैं।

कर्णपिशाचिनी साधना के दौरान की गई मामूली त्रुटि भी दिमाग पर नकारात्मक असर डाल सकतीप है।
यह प्रयोग किसी सिद्ध पुरुष अथवा गुरु के मार्गदर्शन में ही संपन्न कियाजाए। प्रयोग 4 पूरी तरह से प्रयोग 3 की तरह है। लेकिन इस प्रयोग में मंत्रनया सिद्ध किया जाता है।

- मंत्र- ‘ओम् ह्रीं सनामशक्ति भगवति कर्णपिशाचिनी चंडरूपिणि वद वद स्वाहा।‘

प्रयोग में काले ग्वारपाठे को अभिमंत्रित कर उसका हाथ-पैरों में लेप करनीचे दिए गए मंत्र का 21 दिनों तक जप करें। यह मंत्र प्रतिदिन पाँच हजारबार किया जाता है। 21 दिनों में मंत्र सिद्ध होता है और साधक को कान मेंसभी अपेक्षित बातें स्पष्ट सुनाई देती है।

- इस मंत्र ओम् प्रतिदिन 5 हजार जब करना अनिवार्य है।
- 21 दिनों में मंत्र सिद्ध हो जाता है।

- कान में सारी बातें स्पष्ट् सुनने के लिए सभी‍ सावधानियाँ ध्यान में रखना आवश्यक है।

पाठकों की सुविधा के लिए तीसरे प्रयोग की विधि पुन: प्रस्तुत है:

प्रयोग-3

इस प्रयोग में काले ग्वारपाठे को अभिमंत्रित कर उसका हाथ-पैरों में लेप करनीचे दिए गए मंत्र का 21 दिनों तक जप करें। यह मंत्र प्रतिदिन पाँच हजारबार किया जाता है। 21 दिनों में मंत्र सिद्ध हो जाता है और साधक को कान मेंसभी अपेक्षित बातें स्पष्ट सुनाई देने लग जाती हैं।

नोट : कृपया कर्णपिशाचिनी साधना -1 व 2 भी अवश्य देखें।

कर्णपिशाचिनी साधना अत्यंत गोपनीय मानी जाती है। यह साधना किसी सिद्ध गुरुके मार्गदर्शन में ही संपन्न की जा‍ती है।

इस प्रयोग मेंसाधक को गाय के गोबर में पीली मिट्टीि मिलाकर उससे पूरा कमरा लीपना चाहिए।उस पर हल्दी-कुँमकुँम-अक्षत डालकर कुशासन बिछाए।

भगवतीकर्णपिशाचिनी का विधिवत पूजन कर रूद्राक्ष की माला से 11 दिन तक प्रतिदिन 10 हजार मंत्र का जाप करे। इस तरह 11 दिनों में कर्णपिशाचिनी सिद्ध हो जातीहै।

मंत्र : – ओम् हंसो हंस: नमो भगवति कर्णपिशाचिनी चंडवेगिनी स्वाहा।।

प्रयोग – 6

इस प्रयोग में साधक को लाल वस्त्र पहनकर रात को घी का दीपक जलाकर नित्य 10 हजार मंत्र का जप करना चाहिए। इस प्रकार 21 दिन तक मंत्र का जप करने सेकर्णपिशाचिनी साधना सिद्ध हो जाती है।

मंत्र – ओम् भगवति चंडकर्णे पिशाचिनी स्वाहा

प्रयोग-7

कर्णपिशाचिनी के पूर्व में ‍वर्णित प्रयोगों की तुलना में यह प्रयोग सबसेअधिक पवित्र और महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि स्वयं वेद व्यास जी ने इसमंत्र को इसी विधि द्वारा सिद्ध किया था।

सबसे पहले आधी रात को (ठीक मध्यरात्रिको कर्णपिशाचिनी देवी का ध्यान करें। फिर लाल चंदन (रक्तचंदनसे मंत्र लिखें। यह मंत्र बंधक पुष्प से ही पूजा जाता है। ‘ओम अमृतकुरू कुरू स्वाहा‘ इस मंत्र से लिखे हुए मंत्र की पूजा करनी चाहिए। बाद मेंमछली की बलि देनी चाहिए।

बलि निम्न मंत्र से दी जानी चाहिए।

”ओम कर्णपिशाचिनी दग्धमीन बलि

गृहण गृहण मम सिद्धि कुरू कुरू स्वाहा।”

रात्रि को पाँच हजार मंत्रों का जाप करें। प्रात: काल निम्नलिखित मंत्र से तर्पण किया जाता है -

”ओम् कर्णपिशाचिनी तर्पयामि स्वाहा”

कर्णपिशाचिनी मंत्र
”ओम ह्रीं नमो भगवति कर्णपिशाचिनी चंडवेगिनी वद वद स्वाहा”

चेतावनी –

यह मंत्र साधनाएँ आसान प्रतीत होती हैं किंतु इनके संपन्न करनेपर मामूली सी गलती भी साधक के लिए घातक हो सकती है। साधक इन्हें किसीविशेषज्ञ गुरु के साथ ही संपन्न करें। पाठकों को जानकारीदी जाती है किकर्णपिशाचिनी साधना के प्रयोगों की श्रृंखला अब संपूर्ण हो रही है

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम
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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...