Saturday, June 6, 2015

दुर्गा उपासना







जीवन की व्याख्या ही अपने आप मे एक कठिन बात है,साथ मे जीवन की सारी इच्छाये ही हमे पाप-पुण्य की और अग्रेसर करती है॰ कही येसी भी बाते है जिन्हे सिर्फ एक नाम दी जाती है जैसे ‘तंत्र या तन्त्रोक्त साधना’ पर क्या किसिने ये जान्ने की कोशिश की है की इस साधना की वास्तविकता क्या है ? शायद समय ही नहीं है किसिके पास,इसिलिये सारी साधनात्मक गलतिया हमारे ही नसीब मे लिखी गयी है,क्या मै ये पूछ सकती हु की साधक अपने पतन और प्रगति मे किस गति से चल रहे है। चलो जानेदो गलतिया भूलानेसे ही आगे प्रगति होगी। ‘‘माँ जगदंबा की इच्छा रही,तो हम इस साधना विषय पर आगे भी बात करेगे” और इस बात से तो एक बात हमारे समज मे तो आहि जाती है की “ दुर्गा जी की उपासना ” कितनी महत्वपूर्ण है,मै तो सिर्फ इतना ही कहेना चाहत हु की चाहे दुनिया की लाखो साधनाये आप कर लीजिये परंतु अंतता आना है आपको माँ भगवती जी की शरण मे और गुरु जी की शरण मे। अगर आप ये बात जानते है तो फिर येसी भटकन क्यू चल रही है मस्तिष्य मे की नवरात्रि आयेगी तभी हम दुर्गाजी की साधना सम्पन्न करेगे , कोई contract sign की है क्या हमने माँ के साथ ? जब येसी कोई बात ना हो तो आज से ही दुर्गा उपासना आवश्यक है , हमने जन्म लेते समय पंचांग नहीं देखि थी और नहीं मृत्यु की समय देखने वाले है क्यूकी जीवन-मृत्यु कोई कहानी नहीं एक पूर्ण सत्य है तो ये बात भी समजनी आवश्यक है की दुर्गा उपासना भी एक पूर्ण सत्य है कोई भी कहानी नहीं। दुर्गा साधना मे मेरी अनुभूतिया आज तक तो 100% ही है आगे माँ जगदंबा की इच्छा । कोई भी भगवती साधक/साधिका विश्व-कल्याण की ही बात करेगे,स्वयं के कल्याण की नहीं , अगर उन्हे साधनात्मक अनुभूतिया हो तो । इस साधना मे कई प्रकार की अनुभूतिया मिलती ही है,संसार मे येसी कोई इच्छा ही बाकी नहीं रहेती है ज्यो हमे नवार्ण मंत्र जाप से ना मिले,नवार्ण साधना साभिकी प्रिय साधना है चाहे फिर वह
शिव,विष्णु,ब्रम्ह,इन्द्र,सन्यासी,गृहस्थ या अन्य कोई देवी देवताये ही क्यू न हो। जब यह इतनी प्रिय साधना है तो बाकी साधनात्मक चिंतन तो नहीं होनी चाहिये, आपकी ध्येय आपको ही सोचनी है ताकि लक्ष्य प्राप्ति मे पूर्णता मिले ,मै तो ग्यारंन्टी और चुनौती के साथ बोल सकती हु की मनोकामना पूर्ति हेतु इस्से बड़ी कोई साधना इस पूरे संसार मे ही नहीं है , यह साधना हर मनोकामना पूर्ति की लिये सभी लोको मे प्रचलित साधना है , आज मै जहा तक भी पहोचि हु इस बात की सारी श्रेय मै गुरू
साधना और नवार्ण को ही देत हु अन्य साधना ओ को नहीं,मेरी सारी इच्छाये इन दो ही साधना ओ से मैंने पूर्ण होते हुये देखि है और हुयी ही है,जब येसी साधनाये आपके पास हो और फिर भी आप समस्याओसे ग्रसित है तो इस बात से मै बहोत ज्यादा दुखी हु ……………
इसी विषय पर अब तो आगे भी बात चलेगी,अब हम साधनात्मक बात करते है।
साधना सामग्री:-
नवार्ण यंत्र , कार्य सिद्धि यंत्र , स्फटिक माला ,जगदंबा जी का भव्य चित्र , लाल वस्त्र , लाल आसन ।
नोट:
ये मत सोचिये की आपके पास की सामग्री चैतन्य है या नहीं है,आपको तो सिर्फ यही बात सोचनी है की कही से भी यह सामग्री शीघ्र ही आपको प्राप्त हो जाये,सामग्री को चैतन्य करने की क्रिया की ज़िम्मेदारी मै लेत हु।
साधना विधि :-
ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम :।
नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्म ताम ॥
यह मंत्र 11 बार बोलनी है ताकि साधनात्मक वातावरण चैतन्य बने,
शुद्धिकरण:-(एक-एक मंत्र उच्चारण की साथ जल पीनी है)
हाथ मे जल लेकर मंत्र बोलिए,
ॐ ऐं आत्मतत्वं शोधयामी नम: स्वाहा ॥
ॐ ह्रीं विद्यातत्वं शोधयामी नम: स्वाहा ॥
ॐ क्लीं शिवतत्वं शोधयामी नम: स्वाहा ॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्वं शोधयामी नम: स्वाहा ॥ (बोलते हुये हाथ धो लीजिये)
विनियोग:-
ॐ अस्य श्रीनवार्णमंत्रस्य ब्रम्हाविष्णुरुद्रा ऋषय:गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छंन्दांसी , श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवता: , ऐं बीजम , ह्रीं शक्ति: , क्लीं कीलकम श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो प्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥
विलोम बीज न्यास:-
ॐ च्चै नम: गूदे ।
ॐ विं नम: मुखे ।
ॐ यै नम: वाम नासा पूटे ।
ॐ डां नम: दक्ष नासा पुटे ।
ॐ मुं नम: वाम कर्णे ।
ॐ चां नम: दक्ष कर्णे ।
ॐ क्लीं नम: वाम नेत्रे ।
ॐ ह्रीं नम: दक्ष नेत्रे ।
ॐ ऐं ह्रीं नम: शिखायाम ॥
(विलोम न्यास से सर्व दुखोकी नाश होती है,संबन्धित मंत्र उच्चारण की साथ दहीने हाथ की
उँगलियो से संबन्धित स्थान पे स्पर्श कीजिये)
ब्रम्हारूपन्यास:-
ॐ ब्रम्हा सनातन: पादादी नाभि पर्यन्तं मां पातु ॥
ॐ जनार्दन: नाभेर्विशुद्धी पर्यन्तं नित्यं मां पातु ॥
ॐ रुद्र स्त्रीलोचन: विशुद्धेर्वम्हरंध्रातं मां पातु ॥
ॐ हं स: पादद्वयं मे पातु ॥
ॐ वैनतेय: कर इयं मे पातु ॥
ॐ वृषभश्चक्षुषी मे पातु ॥
ॐ गजानन: सर्वाड्गानी मे पातु ॥
ॐ सर्वानंन्द मयोहरी: परपरौ देहभागौ मे पातु ॥
( ब्रम्हारूपन्यास से सभी मनोकामनाये पूर्ण होती है, संबन्धित मंत्र उच्चारण की साथ दोनों हाथो की उँगलियो से संबन्धित स्थान पे स्पर्श कीजिये )
ध्यान:-
खड्गमं चक्रगदेशुषुचापपरिघात्र्छुलं भूशुण्डीम शिर:
शड्ख संदधतीं करैस्त्रीनयना सर्वाड्ग भूषावृताम ।
नीलाश्मद्दुतीमास्यपाददशकां सेवे महाकालीकां
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम ॥
अब हमे जितनी भी जानकारी माँ की प्रति है उसी हिसाब से उनकी नित्य ध्यान और स्तुति करनी है,
निम्न मंत्र 21 बार बोलनी है,
ॐ ह्रीं सर्वबाधा प्रशमनं ,त्रैलोकस्याखिलेश्वरी ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि , विनाशनम ॥ ह्रीं ॐ ॥ फट स्वाहा: ॥
माला पूजन:-जाप आरंभ करनेसे पूर्व ही इस मंत्र से मालाकी पुजा कीजिये,इस विधि से आपकी माला भी चैतन्य हो जाती है ॰
“ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नंम:’’
ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिनी ।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ॥
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृहनामी दक्षिणे करे ।
जपकाले च सिद्ध्यर्थ प्रसीद मम सिद्धये ॥
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देही देही सर्वमन्त्रार्थसाधिनी साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा ।
नवार्ण मंत्र :-
!! ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे !!
जप पूरा करके उसे भगवतीजी की चरणोमे समर्पित करते हुए कहे
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम ।
सिद्धिर्भवतू मे देवी त्वत्प्रसादान्महेश्वरी ॥
नवार्ण मंत्र की सिद्धि 9 दिनो मे 1,25,000 मंत्र जाप से होती है,परंतु आप येसे नहीं कर सकते है तो रोज 3,5,7,11,21………….इत्यादि माला मंत्र जाप भी हम कर सकते है,इस विधि से सारी इच्छाये पूर्ण होती है,सारी दुख समाप्त होती है और धन की वसूली भी सहज ही हो जाती है। हमे शास्त्र की हिसाब से यह सोलह प्रकार की न्यास देखने मिलती है जैसे ऋष्यादी ,कर ,हृदयादी ,अक्षर ,दिड्ग ,सारस्वत ,प्रथम मातृका ,द्वितीय मातृका ,तृतीय मातृका ,षडदेवी ,ब्रम्हरूप ,बीज मंत्र ,विलोम बीज ,षड ,सप्तशती ,शक्ति जाग्रण न्यास और बाकीकी 8 न्यास गुप्त न्यास नाम से जानी जाती है,इन सारी न्यासो की अपनी एक अलग ही अनुभूतिया होती है,उदाहरण की लिये शक्ति जाग्रण न्यास से माँ सुष्म रूप से साधकोके सामने शीघ्र ही आ जाती है और मंत्र जाप की प्रभाव से प्रत्यक्ष होती है और जब माँ चाहे किसिभी रूप मे क्यू न आये हमारी कल्याण तो निच्छित है।
यहा से आगे भी एक और साधना हमे गुरु जी की असीम कृपा से गुरु जी की श्रीमुख से प्राप्त हुयी है,यह साधना बहुत ही अद्वितीय है। जिसे हमे आगे की साधनाओमे करनी है........
( नोट:-कृपया अनुष्ठान की रूप मे साधना करते समय कलश स्थापना आवश्यक मानी जाती है , इस बात की ध्यान रखिये
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महाविद्या छिन्नमस्ता प्रयोग






एक बार देवी पार्वती हिमालय भ्रमण कर रही थी उनके साथ उनकी दो सहचरियां जया और विजया भी थीं, हिमालय पर भ्रमण करते हुये वे हिमालय से दूर आ निकली, मार्ग में सुनदर मन्दाकिनी नदी कल कल करती हुई बह रही थी, जिसका साफ स्वच्छ जल दिखने पर देवी पार्वती के मन में स्नान की इच्छा हुई, उनहोंने जया विजया को अपनी मनशा बताती व उनको भी सनान करने को कहा, किन्तु वे दोनों भूखी थी, बोली देवी हमें भूख लगी है, हम सनान नहीं कर सकती, तो देवी नें कहा ठीक है मैं सनान करती हूँ तुम विश्राम कर लो, किन्तु सनान में देवी को अधिक समय लग गया, जया विजया नें पुनह देवी से कहा कि उनको कुछ खाने को चाहिए, देवी सनान करती हुयी बोली कुच्छ देर में बाहर आ कर तुम्हें कुछ खाने को दूंगी, लेकिन थोड़ी ही देर में जया विजया नें फिर से खाने को कुछ माँगा, इस पर देवी नदी से बाहर आ गयी और अपने हाथों में उनहोंने एक दिव्य खडग प्रकट किया व उस खडग से उनहोंने अपना सर काट लिया, देवी के कटे गले से रुधिर की धारा बहने लगी तीन प्रमुख धाराएँ ऊपर उठती हुयी भूमि की और आई तो देवी नें कहा जया विजया तुम दोनों मेरे रक्त से अपनी भूख मिटा लो, ऐसा कहते ही दोनों देवियाँ पार्वती जी का रुधिर पान करने लगी व एक रक्त की धारा देवी नें स्वयं अपने ही मुख में ड़ाल दी और रुधिर पान करने लगी, देवी के ऐसे रूप को देख कर देवताओं में त्राहि त्राहि मच गयी, देवताओं नें देवी को प्रचंड चंड चंडिका कह कर संबोधित किया, ऋषियों नें कटे हुये सर के कारण देवी को नाम दिया छिन्नमस्ता, तब शिव नें कबंध शिव का रूप बना कर देवी को शांत किया, शिव के आग्रह पर पुनह: देवी ने सौम्य रूप बनाया, नाथ पंथ सहित बौद्ध मताब्लाम्बी भी देवी की उपासना क्जरते हैं, भक्त को इनकी उपासना से भौतिक सुख संपदा बैभव की प्राप्ति, बाद विवाद में विजय, शत्रुओं पर जय, सम्मोहन शक्ति के साथ-साथ अलौकिक सम्पदाएँ प्राप्त होती है, इनकी सिद्धि हो जाने ओपर कुछ पाना शेष नहीं रह जाता,
दस महाविद्यायों में प्रचंड चंड नायिका के नाम से व बीररात्रि कह कर देवी को पूजा जाता है
देवी के शिव को कबंध शिव के नाम से पूजा जाता है
छिन्नमस्ता देवी शत्रु नाश की सबसे बड़ी देवी हैं,भगवान् परशुराम नें इसी विद्या के प्रभाव से अपार बल अर्जित किया था
गुरु गोरक्षनाथ की सभी सिद्धियों का मूल भी देवी छिन्नमस्ता ही है
देवी नें एक हाथ में अपना ही मस्तक पकड़ रखा हैं और दूसरे हाथ में खडग धारण किया है
देवी के गले में मुंडों की माला है व दोनों और सहचरियां हैं
देवी आयु, आकर्षण,धन,बुद्धि,रोगमुक्ति व शत्रुनाश करती है
देवी छिन्नमस्ता मूलतया योग की अधिष्ठात्री देवी हैं जिन्हें ब्ज्रावैरोचिनी के नाम से भी जाना जाता है
सृष्टि में रह कर मोह माया के बीच भी कैसे भोग करते हुये जीवन का पूरण आनन्द लेते हुये योगी हो मुक्त हो सकता है यही सामर्थ्य देवी के आशीर्वाद से मिलती है
सम्पूरण सृष्टि में जो आकर्षण व प्रेम है उसकी मूल विद्या ही छिन्नमस्ता है
शास्त्रों में देवी को ही प्राणतोषिनी कहा गया है
देवी की स्तुति से देवी की अमोघ कृपा प्राप्त होती है
स्तुति
छिन्न्मस्ता करे वामे धार्यन्तीं स्व्मास्ताकम,
प्रसारितमुखिम भीमां लेलिहानाग्रजिव्हिकाम,
पिवंतीं रौधिरीं धारां निजकंठविनिर्गाताम,
विकीर्णकेशपाशान्श्च नाना पुष्प समन्विताम,
दक्षिणे च करे कर्त्री मुण्डमालाविभूषिताम,
दिगम्बरीं महाघोरां प्रत्यालीढ़पदे स्थिताम,
अस्थिमालाधरां देवीं नागयज्ञो पवीतिनिम,
डाकिनीवर्णिनीयुक्तां वामदक्षिणयोगत:,
देवी की कृपा से साधक मानवीय सीमाओं को पार कर देवत्व प्राप्त कर लेता है
गृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्य रूप में साधना पूजा करनी चाहिए
देवी योगमयी हैं ध्यान समाधी द्वारा भी इनको प्रसन्न किया जा सकता है
इडा पिंगला सहित स्वयं देवी सुषुम्ना नाड़ी हैं जो कुण्डलिनी का स्थान हैं
देवी के भक्त को मृत्यु भय नहीं रहता वो इच्छानुसार जन्म ले सकता है
देवी की मूर्ती पर रुद्राक्षनाग केसर व रक्त चन्दन चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है
महाविद्या छिन्मस्ता के मन्त्रों से होता है आधी व्यादी सहित बड़े से बड़े दुखों का नाश
देवी माँ का स्वत: सिद्ध महामंत्र है-
श्री महाविद्या छिन्नमस्ता महामंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा
इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं व देवी को पुष्प अत्यंत प्रिय हैं इसलिए केवल पुष्पों के होम से ही देवी कृपा कर देती है,आप भी मनोकामना के लिए यज्ञ कर सकते हैं,जैसे-
1. मालती के फूलों से होम करने पर बाक सिद्धि होती है व चंपा के फूलों से होम करने पर सुखों में बढ़ोतरी होती है
2.बेलपत्र के फूलों से होम करने पर लक्ष्मी प्राप्त होती है व बेल के फलों से हवन करने पर अभीष्ट सिद्धि होती है
3.सफेद कनेर के फूलों से होम करने पर रोगमुक्ति मिलती है तथा अल्पायु दोष नष्ट हो 100 साल आयु होती है
4. लाल कनेर के पुष्पों से होम करने पर बहुत से लोगों का आकर्षण होता है व बंधूक पुष्पों से होम करने पर भाग्य बृद्धि होती है
5.कमल के पुष्पों का गी के साथ होम करने से बड़ी से बड़ी बाधा भी रुक जाती है
6 .मल्लिका नाम के फूलों के होम से भीड़ को भी बश में किया जा सकता है व अशोक के पुष्पों से होम करने पर पुत्र प्राप्ति होती है
7 .महुए के पुष्पों से होम करने पर सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं व देवी प्रसन्न होती है
महाअंक-देवी द्वारा उतपन्न गणित का अंक जिसे स्वयं छिन्नमस्ता ही कहा जाता है वो देवी का महाअंक है -"4"
विशेष पूजा सामग्रियां-पूजा में जिन सामग्रियों के प्रयोग से देवी की विशेष कृपा मिलाती है
मालती के फूल, सफेद कनेर के फूल, पीले पुष्प व पुष्पमालाएं चढ़ाएं
केसर, पीले रंग से रंगे हुए अक्षत, देसी घी, सफेद तिल, धतूरा, जौ, सुपारी व पान चढ़ाएं
बादाम व सूखे फल प्रसाद रूप में अर्पित करें
सीपियाँ पूजन स्थान पर रखें
भोजपत्र पर ॐ ह्रीं ॐ लिख करा चदएं
दूर्वा,गंगाजल, शहद, कपूर, रक्त चन्दन चढ़ाएं, संभव हो तो चंडी या ताम्बे के पात्रों का ही पूजन में प्रयोग करें
पूजा के बाद खेचरी मुद्रा लगा कर ध्यान का अभ्यास करना चाहिए
सभी चढ़ावे चढाते हुये देवी का ये मंत्र पढ़ें-ॐ वीररात्रि स्वरूपिन्ये नम:
देवी के दो प्रमुख रूपों के दो महामंत्र
१)देवी प्रचंड चंडिका मंत्र-ऐं श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा
२)देवी रेणुका शबरी मंत्र-ॐ श्रीं ह्रीं क्रौं ऐं
सभी मन्त्रों के जाप से पहले कबंध शिव का नाम लेना चाहिए तथा उनका ध्यान करना चाहिए
सबसे महत्पूरण होता है देवी का महायंत्र जिसके बिना साधना कभी पूरण नहीं होती इसलिए देवी के यन्त्र को जरूर स्थापित करे व पूजन करें
यन्त्र के पूजन की रीति है-
पंचोपचार पूजन करें-धूप,दीप,फल,पुष्प,जल आदि चढ़ाएं
ॐ कबंध शिवाय नम: मम यंत्रोद्दारय-द्दारय
कहते हुये पानी के 21 बार छीटे दें व पुष्प धूप अर्पित करें
देवी को प्रसन्न करने के लिए सह्त्रनाम त्रिलोक्य कवच आदि का पाठ शुभ माना गया है
यदि आप बिधिवत पूजा पात नहीं कर सकते तो मूल मंत्र के साथ साथ नामावली का गायन करें
छिन्नमस्ता शतनाम का गायन करने से भी देवी की कृपा आप प्राप्त कर सकते हैं
छिन्नमस्ता शतनाम को इस रीति से गाना चाहिए-
प्रचंडचंडिका चड़ा चंडदैत्यविनाशिनी,
चामुंडा च सुचंडा च चपला चारुदेहिनी,
ल्लजिह्वा चलदरक्ता चारुचन्द्रनिभानना,
चकोराक्षी चंडनादा चंचला च मनोन्मदा,
देदेवी को अति शीघ्र प्रसन्न करने के लिए अंग न्यास व आवरण हवन तर्पण व मार्जन सहित पूजा करें
अब देवी के कुछ इच्छा पूरक मंत्र
1) देवी छिन्नमस्ता का शत्रु नाशक मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्र वैरोचिनिये फट
लाल रंग के वस्त्र और पुष्प देवी को अर्पित करें
नवैद्य प्रसाद,पुष्प,धूप दीप आरती आदि से पूजन करें
रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें
देवी मंदिर में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
काले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
दक्षिण दिशा की ओर मुख रखें
अखरो व अन्य फलों का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
2) देवी छिन्नमस्ता का धन प्रदाता मंत्र
ऐं श्रीं क्लीं ह्रीं वज्रवैरोचिनिये फट
गुड, नारियल, केसर, कपूर व पान देवी को अर्पित करें
शहद से हवन करें
रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें
3) देवी छिन्नमस्ता का प्रेम प्रदाता मंत्र
ॐ आं ह्रीं श्रीं वज्रवैरोचिनिये हुम
देवी पूजा का कलश स्थापित करें
देवी को सिन्दूर व लोंग इलायची समर्पित करें
रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें
किसी नदी के किनारे बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
भगवे रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
उत्तर दिशा की ओर मुख रखें
खीर प्रसाद रूप में चढ़ाएं
4) देवी छिन्नमस्ता का सौभाग्य बर्धक मंत्र
ॐ श्रीं श्रीं ऐं वज्रवैरोचिनिये स्वाहा
देवी को मीठा पान व फलों का प्रसाद अर्पित करना चाहिए
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें
किसी ब्रिक्ष के नीचे बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
संतरी रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
पूर्व दिशा की ओर मुख रखें
पेठा प्रसाद रूप में चढ़ाएं
5) देवी छिन्नमस्ता का ग्रहदोष नाशक मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं वं वज्रवैरोचिनिये हुम
देवी को पंचामृत व पुष्प अर्पित करें
रुद्राक्ष की माला से 4 माला का मंत्र जप करें
मंदिर के गुम्बद के नीचे या प्राण प्रतिष्ठित मूर्ती के निकट बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
पीले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
उत्तर दिशा की ओर मुख रखें
नारियल व तरबूज प्रसाद रूप में चढ़ाएं
देवी की पूजा में सावधानियां व निषेध-
बिना "कबंध शिव" की पूजा के महाविद्या छिन्नमस्ता की साधना न करें
सन्यासियों व साधू संतों की निंदा बिलकुल न करें
साधना के दौरान अपने भोजन आदि में हींग व काली मिर्च का प्रयोग न करें
देवी भक्त ध्यान व योग के समय भूमि पर बिना आसन कदापि न बैठें
सरसों के तेल का दीया न जलाएं
विशेष गुरु दीक्षा-
महाविद्या छिन्नमस्ता की अनुकम्पा पाने के लिए अपने गुरु से आप दीक्षा जरूर लें आप कोई एक दीक्षा ले सकते हैं
छिन्नमस्ता दीक्षा
वज्र वैरोचिनी दीक्षा
रेणुका शबरी दीक्षा
बज्र दीक्षा
पञ्च नाडी दीक्षा
सिद्ध खेचरी दीक्षा
छिन्न्शिर: दीक्षा
त्रिकाल दीक्षा
कालज्ञान दीक्षा
कुण्डलिनी दीक्षा.................आदि में से कोई एक


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धूमावती एक एसी महाविद्या है







धूमावती एक एसी महाविद्या है जिनके बारे मे साहित्य अत्यधिक कम मात्र मे मिलता है. इस महाविद्या के साधक भी बहोत कम मिलते है. मूल रूप से इनकी साधना शत्रु स्तम्भन और नाशन के लिए की जाती है. लेकिन इस महाविद्या से सबंधित कई ऐसे प्रयोग है जिनके बारे मे व्यक्ति कभी सोच भी नहीं सकता. चरपटभंजन नाम धूमावती के उच्चकोटि के साधको के मध्य प्रचलित रहा है, चरपट भंजन को ही चरपटनाथ या चरपटीनाथ कहा गया है. चरपटनाथ ने अपने जीवन काल मे धूमावती सबंधित साधनाओ का प्रचुर अभ्यास किया था और मांत्रिक धूमावती को सिद्ध करने वाले गिने चुने व्यक्ति मे इनकी गणना होती है, वे कालजयी रहे है और आज भी वे सदेह है. उनके बारे मे ये प्रचलित है की वह किसी भी तत्व मे अपने आप को बदल सकते है चाहे वह स्थूल हो या सूक्ष्म, जैसे मनुष्य पशु पक्षी पानी अग्नि या कुछ भी. ७५०-८०० साल पहले धूमावती साधना के सबंध मे फैली भ्रान्ति को दूर करने के लिए इस महान धूमावती साधक ने कई ग्रंथो की रचना की जिसमे धूमावतीरहस्य, धूमावतीसपर्या, धूमावती पूजा पध्धति जैसे अत्यधिक रोचक ग्रंथ सामिल है. कई गुप्त तांत्रिक मठो मे आज भी यह ग्रन्थ सुरक्षित है. लेकिन यह साधना पद्धतिया लुप्त हो गयी और जन सामान्य के मध्य कभी नहीं आई. धूमावती अलक्ष्मी होते हुए भी लक्ष्मी प्राप्ति से लेके वैभव ऐश्वर्य तथा जीवन के पूर्ण भोग प्राप्त करने के लिए भी धूमावती साधना के कई विधानों का उन्होंने प्रचार किया था. लेकिन ये साधनाओ को गुप्त रखने की पीछे का मूल चिंतन सायद तब की परिस्थिति हो या कुछ और लेकिन इससे जन सामान्य के मध्य साधको का हमेशा ही नुक्सान रहा है. चरपटभंजन ने जो कई गुप्त पध्धातियो का विकास किया था उनमे से एक साधना एसी भी थि जिसको करने से व्यक्ति अपने सामने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व के बारे मे कुछ भी जान लेता है. जैसे की चरित्र कैसा है, इस व्यक्ति की प्रकृति क्या है, इसके दिमाग मे इस वक्त कौनसे विचार चल रहे होंगे? इस प्रकार की साधना अत्यधिक दुस्कर है क्यों जीवन के रोज ब रोज के कार्य मे ऐसी साधनाओ से कितना और क्या विकास हो सकता है कैसे फायदा हो सकता है ये तो व्यक्ति खुद ही समज सकता है. मानसिक शक्तियो के विकास की अत्यधिक दुर्लभ साधनाओ मे यह साधना अपना एक विशेष स्थान लिए हुए है. चरपटनाथ द्वारा प्रणित धूमावती प्रयोग आप सब के मध्य रख रहा हू.
इस साधना को करने से पूर्व साधक अपने स्थान का चुनाव करे. साधक के साधना स्थल पर और आसान पर साधक की जब तक साधना चले कोई और व्यक्ति न बैठे. इस साधना मे साधक को ११ माला मंत्र जाप एक महीने (३० दिन) तक करना है. माला काले हकीक की रहे. वस्त्र काले रहे. समय रात्रि काल मे ११ बजे के बाद का हो. धूमावती का यन्त्र चित्र अपने सामने स्थापित करे. तेल का दीपक साधना समय मे जलते रहना चाहिए.
यन्त्र चित्र का पूजन कर के विनियोग करे
विनियोग: अस्य श्री चरपटभंजन प्रणित धूमावती प्रयोगस्य पूर्ण विनियोग अभीष्ट सिद्धियर्थे करिष्यमे पूर्ण सिद्धियर्थे विनियोग नमः

इसके बाद निम्न मंत्र का ११ माला जाप करे

ओम धूमावती करे न काम, तो अन्न हराम, जीवन तारो सुख संवारो, पुरती मम इच्छा, ऋणी दास तमारो ओम छू

मंत्र जाप के बाद साधक धूमावती देवी को ही मंत्र जाप समर्पित कर दे.
ये अत्यधिक दुर्लभ विधान सम्प्पन करने के बाद व्यक्ति यु कहा जाए की अजेय बन जाता है तो भी अतिशियोक्ति नहीं होगी.

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Wednesday, June 3, 2015

विशेष सुचना




आप सभी को बताते हुए मुझे हर्ष हो रहा हैं की महाविद्या आश्रम जो अभी तक एक परिकल्पना थी मेरी और आप की या कहे सभी साधको की , या उन सभी की जो तंत्र मंत्र के क्षेत्र में आना तो चाहते हैं लेकिन उनको कोई मंजिल नहीं दिखाई दे रही हैं , और अगर दिख भी रहा हैं तो मात्र पाखंड ढोंग , या चमत्कार के नाम पर लूट , इन सब को सुनकर देखकर क्रोध भी आता हैं और दुख भी होता हैं , क्यूंकि इस में कुछ दोस हम सब का भी हैं और कुछ उनका भी , हम करना तो कुछ भी चाहते और पाना बहुत कुछ चाहते ओ भी रेडीमेड ,
आज सबसे बड़ी विडंबना , यह हैं कि योग्य गुरु को योग्य शिष्य नहीं मिल पा रहे हैं , और योग्य शिष्य को योग्य गुरु , इन सब को देखते हुए ही महाविद्या आश्रम की परिकल्पना मैंने किया था , जिस के लिए मैं हरिद्वार , ऋषिकेश , और ओंकरेस्वर , या गढ़ गंगा में से किसी एक जगह का चयन कर रहा हूँ , जन्हा शांत और प्राकृतिक वातावरण में साधक लोग अपनी साधनाए सम्पन्न कर जीवन का परमानन्द का अनुभूव प्राप्त करते हुए जीवन का आनंद ले सके ,
महाविद्या आश्रम के निर्माण के लिए जो भी मानव साधक अपना सहयोग तन मन धन से देना चाहते हैं वो कृपया अपना सहयोग प्रदान कर सकते हैं , इसके लिए आप सभी का स्वागत हैं
धन से सहयोग के लिए आप सब रसीद भी मगवा सकते हैं
सहयोग के लिए कृपया आप सब अपना फ़ोन या मोबाइल नंबर कॉमेंट बॉक्स में लिखे
आपका
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम


किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
08467905069
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जीवन के उतार-चढ़ाव में डूबते को तिनके का सहारा देगा यह मंत्र






शनि से प्रत्येक जन भयभीत रहता है क्योंकि उनका सोचना होता है की शनि अंधकारमयी, भावहीन, गुस्सैल, निर्दयी और उत्साहहीन देव हैं वास्तव में ऐसा नहीं है। विशिष्ट ज्योतिषचार्यों के अनुसार शनि देव सच्चे लोगों के लिए यश, धन, पद और सम्मान पाने के लिए सबसे जल्दी खुश होने वाले देव हैं। नवग्रहों में एकमात्र शनि ही ऐसे देव हैं जो अर्थ, धर्म, कर्म और न्याय का प्रतीक हैं। अपने अच्छे कर्मों के द्वारा शनि देव से मनचाही धन-संपत्ति, वैभव और मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है।

शनि की दशा, ढैय्या और साढसत्ती में जीवन में बहुत सारे उतार-चढ़ाव आते हैं, जिससे जीवन रूपी नैया पूरी तरह से डगमगा सकती है ऐसे समय में श्रद्धापूर्वक किया गया शनि मन्त्र का जाप डूबते को तिनके का सहारा दे सकता है।
शनि मन्त्र
ॐ ऐं हीं श्रीं श्नैश्चराय नमः
उपरोक्त मंत्र का शनिवार के दिन शनि देव के मंदिर में जाकर कम से कम 5 माला जाप करें। शनि देव को उड़द व तेल से बने पदार्थों का भोग लगाएं।
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शनिवार को तांत्रिक क्रियाओं को करें बेअसर


1 घर में हमेशा लक्ष्मी का वास रहे तो गेंहू हमेशा शनिवार को ही पीसवाए और उसमें थोड़े से काले चने जरूर मिला लें। उस आटे की सबसे पहली रोटी गाय को खिलाएं और अन्तिम रोटी पर सरसों तेल लगा कर कुत्ते को खिलाएं।
2 सात शनिवार तक एक नारियल किसी पवित्र नदी में प्रवाहित करें और इस मंत्र का जाप करें ऊँ रामदूताय नम: लगातार सात शनिवार इस प्रकार करने से समस्याओं का प्रभाव कम हो जाएगा और हनुमान जी के साथ ही शनिदेव की कृपा भी प्राप्त होगी।
3 मंगलवार और शनिवार को हनुमान चालीसा का पाठ करने से हनुमान जी के भक्तों पर शनिदेव का कुप्रभाव नहीं होता।
4 अगर ऐसा लगे की कोई शत्रु आपकी दूकान या ऑफिस में तांत्रिक क्रिया करके आपको हानि पंहुचाने का प्रयास कर रहा है तो शनिवार प्रातः पांच पीपल के पत्ते और आठ पान के साबुत डंडीदार पत्ते लेकर लाल धागे में पिरोकर दूकान में पूर्व की तरफ बांध दें और ऐसा अगर आप हर शनिवार करें तो तांत्रिक क्रिया बेअसर हो जाएगी तथा आपका लाभ बढ़ जाएगा।
5 शनिवार के दिन गरीब व्यक्ति को एक जोड़ी जूते दान करें।
6 सुबह उठकर अपनी हथेलियों को तीन बार चुंबन करें। यह उपाय शनिवार से शुरू करें।
7 कमाई अच्छी है मगर आप संचय नहीं कर पा रहें है तो प्रत्येक शनिवार को काले कुत्ते को तेल के साथ चुपड़ कर चपाती दें।
8 बुरी नजर से बचाने के लिए शनिवार को थोड़ा कच्चा दूध लें और प्रभावित व्यक्ति के सिर के चारों ओर इसको 7 बार घुमाएं और उस के बाद काले कुत्ते को पिलाएं।
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धन-धान्य और वैभव से भरा रहेगा आपका संसार







लक्ष्मी के आठ स्वरूपों में से धन लक्ष्मी का स्थान हर व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है। जो व्यक्ति अपने जीवन में कमाते तो बहुत हैं परंतु अधिक कमाई के पश्चात भी धन का संचय नहीं कर पाते हैं अर्थात धन की बचत नही कर पाते वो शुक्रवार को निम्न मंत्र का जाप करें।
मंत्र: ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।।
संचित लक्ष्मी का ये सरल उपाय है। इस सरल उपाय से आपके संचित धन की वृद्धि होगी। घर में कभी पैसे की कमी नहीं आएगी। धन-धान्य और वैभव से भरा रहेगा आपका संसार।
सफेद चंदन अथवा कमलगट्टे की माला से उत्तर दिशा की ओर मुख करके 108 बार इस मंत्र का जाप करें। इस सरल उपाय की वजह से आपका धन निश्चित रूप से संचित होगा। इस साधना से घर परिवार में सुख-समृद्धि रहती है और भात के भंडार सदैव अन्न और धन से भरे रहते है।
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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कालिका माता के 7 रहस्य जानें और सुख पाएं







महाकाल की काली। ‘काली’ का अर्थ है समय और काल। काल, जो सभी को अपने में निगल जाता है। भयानक अंधकार और श्मशान की देवी। वेद अनुसार ‘समय ही आत्मा है, आत्मा ही समय है’। मां कालिका की उत्पत्ति धर्म की रक्षा और पापियों-राक्षसों का विनाश करने के लिए हुई है।
काली को माता जगदम्बा की महामाया कहा गया है। मां ने सती और पार्वती के रूप में जन्म लिया था। सती रूप में ही उन्होंने 10 महाविद्याओं के माध्यम से अपने 10 जन्मों की शिव को झांकी दिखा दी थी।
नाम : माता कालिका
शस्त्र : त्रिशूल और तलवार
वार : शुक्रवार
दिन : अमावस्या
ग्रंथ : कालिका पुराण
मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा
दुर्गा का एक रूप : माता कालिका 10 महाविद्याओं में से एक
मां काली के 4 रूप हैं- दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ काली और महाकाली।
राक्षस वध : माता ने महिषासुर, चंड, मुंड, धूम्राक्ष, रक्तबीज, शुम्भ, निशुम्भ आदि राक्षसों के वध किए थे।
कलियुग में 3 देवता जाग्रत कहे गए हैं- हनुमान, कालिका और भैरव। कालिका की उपासना जीवन में सुख, शांति, शक्ति, विद्या देने वाली बताई गई है। मां कालिका की भक्ति का प्रभाव व्यावहारिक जीवन में मानसिक, शारीरिक और सांसारिक बुराइयों के अंत के रूप में दिखाई देता है जिससे किसी भी इंसान के तनाव, भय और कलह का नाश हो जाता है।
हिन्दू धर्म में सबसे जागृत देवी हैं मां कालिका। मां कालिका को खासतौर पर बंगाल और असम में पूजा जाता है। ‘काली’ शब्द का अर्थ काल और काले रंग से है। ‘काल’ का अर्थ समय। मां काली को देवी दुर्गा की 10 महाविद्याओं में से एक माना जाता है।
विशेष : कालिका के दरबार में जो एक बार चला जाता है उसका नाम-पता दर्ज हो जाता है। यहां यदि दान मिलता है तो दंड भी। आशीर्वाद मिलता है तो शाप भी। यदि आप कालिका के दरबार में जो भी वादा करने आएं, उसे पूरा जरूर करें। जो भी मन्नत के बदले को करने का वचन दें, उसे पूरा जरूर करें अन्यथा कालिका माता रुष्ट हो सकती हैं। जो एकनिष्ठ, सत्यवादी और वचन का पक्का है समझो उसका काम भी तुरंत होगा।
मां दुर्गा ने कई जन्म लिए थे। उनमें से दो जन्मों की कथाएं ज्यादा प्रसिद्ध हैं। पहला, जब उन्होंने राजा दक्ष के यहां सती के रूप में जन्म लिया था और फिर वे यज्ञ की आग में कूदकर भस्म हो गई थीं। दूसरा, जब उन्होंने पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया, तब वे पार्वती कहलाईं।
दक्ष प्रजापति ब्रह्मा के पुत्र थे। उनकी दत्तक पुत्री थीं सती, जिन्होंने तपस्या करके शिव को अपना पति बनाया, लेकिन शिव की जीवनशैली दक्ष को बिलकुल ही नापसंद थी। शिव और सती का अत्यंत सुखी दांपत्य जीवन था, पर शिव को बेइज्जत करने का खयाल दक्ष के दिल से नहीं गया था। इसी मंशा से उन्होंने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमें शिव और सती को छोड़कर सभी देवी-देवताओं को निमंत्रित किया।
जब सती को इसकी सूचना मिली तो उन्होंने उस यज्ञ में जाने की ठान ली। शिव से अनुमति मांगी, तो उन्होंने साफ मना कर दिया। उन्होंने कहा कि जब हमें बुलाया ही नहीं है, तो हम क्यों जाएं? सती ने कहा कि मेरे पिता हैं तो मैं तो बिन बुलाए भी जा सकती हूं। लेकिन शिव ने उन्हें वहां जाने से मना किया तो माता सती को क्रोध आ गया और क्रोधित होकर वे कहने लगीं- ‘मैं दक्ष यज्ञ में जाऊंगी और उसमें अपना हिस्सा लूंगी, नहीं तो उसका विध्वंस कर दूंगी।’
वे पिता और पति के इस व्यवहार से इतनी आहत हुईं कि क्रोध से उनकी आंखें लाल हो गईं। वे उग्र-दृष्टि से शिव को देखने लगीं। उनके होंठ फड़फड़ाने लगे। फिर उन्होंने भयानक अट्टहास किया। शिव भयभीत हो गए। वे इधर-उधर भागने लगे। उधर क्रोध से सती का शरीर जलकर काला पड़ गया।
उनके इस विकराल रूप को देखकर शिव तो भाग चले लेकिन जिस दिशा में भी वे जाते वहां एक-न-एक भयानक देवी उनका रास्ता रोक देतीं। वे दसों दिशाओं में भागे और 10 देवियों ने उनका रास्ता रोका और अंत में सभी काली में मिल गईं। हारकर शिव सती के सामने आ खड़े हुए। उन्होंने सती से पूछा- ‘कौन हैं ये?’
सती ने बताया- ‘ये मेरे 10 रूप हैं। आपके सामने खड़ी कृष्ण रंग की काली हैं, आपके ऊपर नीले रंग की तारा हैं, पश्चिम में छिन्नमस्ता, बाएं भुवनेश्वरी, पीठ के पीछे बगलामुखी, पूर्व-दक्षिण में द्यूमावती, दक्षिण-पश्चिम में त्रिपुर सुंदरी, पश्चिम-उत्तर में मातंगी तथा उत्तर-पूर्व में षोडशी हैं और मैं खुद भैरवी रूप में अभयदान देने के लिए आपके सामने खड़ी हूं।’ माता का यह विकराल रूप देख शिव कुछ भी नहीं कह पाए और वे दक्ष यज्ञ में चली गईं।
दुखों को तुरंत दूर करतीं काली : 10 महाविद्याओं में से साधक महाकाली की साधना को सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली मानते हैं, जो किसी भी कार्य का तुरंत परिणाम देती हैं। साधना को सही तरीके से करने से साधकों को अष्टसिद्धि प्राप्त होती है। काली की पूजा या साधना के लिए किसी गुरु या जानकार व्यक्ति की मदद लेना जरूरी है।
महाकाली को खुश करने के लिए उनकी फोटो या प्रतिमा के साथ महाकाली के मंत्रों का जाप भी किया जाता है। इस पूजा में महाकाली यंत्र का प्रयोग भी किया जाता है। इसी के साथ चढ़ावे आदि की मदद से भी मां को खुश करने की कोशिश की जाती है। अगर पूरी श्रद्धा से मां की उपासना की जाए तो आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं। अगर मां प्रसन्न हो जाती हैं तो मां के आशीर्वाद से आपका जीवन बहुत ही सुखद हो जाता है।
कालरात्रि और काली : दुर्गा के 9 रूपों में 7वां रूप हैं देवी कालरात्रि का इसलिए नवरात्र के 7वें दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है। कालरात्रि माता गले में विद्युत की माला धारण करती हैं। इनके बाल खुले हुए हैं और गर्दभ की सवारी करती हैं, जबकि काली नरमुंड की माला पहनती हैं और हाथ में खप्पर और तलवार लेकर चलती हैं।
काली माता के हाथ में कटा हुआ सिर है जिससे रक्त टपकता रहता है। भयंकर रूप होते हुए भी माता भक्तों के लिए कल्याणकारी हैं। कालरात्रि माता को काली और शुभंकरी भी कहा जाता है।
कालरात्रि माता के विषय में कहा जाता है कि यह दुष्टों के बाल पकड़कर खड्ग से उसका सिर काट देती हैं। रक्तबीज से युद्घ करते समय मां काली ने भी इसी प्रकार से रक्तबीज का वध किया था।
जीवनरक्षक मां काली : माता काली की पूजा या भक्ति करने वालों को माता सभी तरह से निर्भीक और सुखी बना देती हैं। वे अपने भक्तों को सभी तरह की परेशानियों से बचाती हैं।
* लंबे समय से चली आ रही बीमारी दूर हो जाती हैं।
* ऐसी बीमारियां जिनका इलाज संभव नहीं है, वह भी काली की पूजा से समाप्त हो जाती हैं।
* काली के पूजक पर काले जादू, टोने-टोटकों का प्रभाव नहीं पड़ता।
* हर तरह की बुरी आत्माओं से माता काली रक्षा करती हैं।
* कर्ज से छुटकारा दिलाती हैं।
* बिजनेस आदि में आ रही परेशानियों को दूर करती हैं।
* जीवनसाथी या किसी खास मित्र से संबंधों में आ रहे तनाव को दूर करती हैं।
* बेरोजगारी, करियर या शिक्षा में असफलता को दूर करती हैं।
* कारोबार में लाभ और नौकरी में प्रमोशन दिलाती हैं।
* हर रोज कोई न कोई नई मुसीबत खड़ी होती हो तो काली इस तरह की घटनाएं भी रोक देती हैं।
* शनि-राहु की महादशा या अंतरदशा, शनि की साढ़े साती, शनि का ढइया आदि सभी से काली रक्षा करती हैं।
*पितृदोष और कालसर्प दोष जैसे दोषों को दूर करती हैं।
कालिका का यह अचूक मंत्र है। इससे माता जल्द से सुन लेती हैं, लेकिन आपको इसके लिए सावधान रहने की जरूरत है। आजमाने के लिए मंत्र का इस्तेमाल न करें। यदि आप काली के भक्त हैं तो ही करें।
मंत्र :
ॐ नमो काली कंकाली महाकाली मुख सुन्दर जिह्वा वाली,
चार वीर भैरों चौरासी, चार बत्ती पूजूं पान ए मिठाई,
अब बोलो काली की दुहाई।
इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप करने से आर्थिक लाभ मिलता है। इससे धन संबंधित परेशानी दूर हो जाती है। माता काली की कृपा से सब काम संभव हो जाते हैं। 15 दिन में एक बार किसी भी मंगलवार या शुक्रवार के दिन काली माता को मीठा पान व मिठाई का भोग लगाते रहें।
रक्तबीज का वध : ब्रह्माजी के शरीर से ब्राह्मी, विष्णु से वैष्णवी, महेश से महेश्वरी और अम्बिका से चंडिका प्रकट हुईं। पलभर में सारा आकाश असंख्य देवियों से आच्छादित हो उठा। ब्राह्मणी ने अपने कमंडल से जल छिड़का जिससे राक्षस तेजहीन होने लगे, वैष्णवी अपने चक्र, महेश्वरी अपने त्रिशूल से, इन्द्राणी वज्र से और सभी देवियां अपने अपने आयुधों से आक्रमण कर रही थीं। राक्षस सेना भागने लगीं।
तब रक्तबीज ने राक्षसों को धिक्कारा कि वे स्त्रियों से डरकर भाग रहे हैं? रक्तबीज हमला करने आया, तो इन्द्राणी ने उस पर शक्ति चलाई जिससे उसका सर कट गया और रक्त भूमि पर गिरा। किंतु पूर्व वरदान के प्रभाव से उस रक्त से फिर एक रक्तबीज उठ खड़ा हुआ और अट्टहास करने लगा। जैसे ही शक्तियां उसे मारतीं, उसके रक्त से और असुर उठ खड़े होते। जल्द ही असंख्य रक्तबीज सब और दिखने लगे।
मां चंडिका ने श्रीकाली से कहा कि इसका रक्त भूमि पर गिरने से रोकना होगा जिससे और रक्तबीज न जन्में। देवी काली ने कहा कि आप सब इन्हें मारें, मैं एक बूंद रक्त भी भूमि पर न पड़ने दूंगी। और ऐसा ही हुआ भी, जल्द ही सारे नए रक्तबीज युद्ध में मारे गए। तब रक्तबीज समझ गया कि काली उसे पुनर्जीवित नहीं होने दे रही हैं, तो वह चंडिका को मारने दौड़ा। तब चंडिका ने उसे मार दिया और काली ने रक्त को भूमि पर न गिरने दिया। देवता चंडिका की जय-जयकार करने लगे।
महाकाली की उत्पत्ति कथा : श्रीमार्कण्डेय पुराण एवं श्रीदुर्गा सप्तशती के अनुसार काली मां की उत्पत्ति जगत जननी मां अम्बा के ललाट से हुई थी।
कथा के अनुसार शुम्भ-निशुम्भ दैत्यों के आतंक का प्रकोप इस कदर बढ़ चुका था कि उन्होंने अपने बल, छल एवं महाबली असुरों द्वारा देवराज इन्द्र सहित अन्य समस्त देवतागणों को निष्कासित कर स्वयं उनके स्थान पर आकर उन्हें प्राणरक्षा हेतु भटकने के लिए छोड़ दिया। दैत्यों द्वारा आतंकित देवों को ध्यान आया कि महिषासुर के इन्द्रपुरी पर अधिकार कर लिया है, तब दुर्गा ने ही उनकी मदद की थी। तब वे सभी दुर्गा का आह्वान करने लगे।
उनके इस प्रकार आह्वान से देवी प्रकट हुईं एवं शुम्भ-निशुम्भ के अति शक्तिशाली असुर चंड तथा मुंड दोनों का एक घमासान युद्ध में नाश कर दिया। चंड-मुंड के इस प्रकार मारे जाने एवं अपनी बहुत सारी सेना का संहार हो जाने पर दैत्यराज शुम्भ ने अत्यधिक क्रोधित होकर अपनी संपूर्ण सेना को युद्ध में जाने की आज्ञा दी तथा कहा कि आज छियासी उदायुद्ध नामक दैत्य सेनापति एवं कम्बु दैत्य के चौरासी सेनानायक अपनी वाहिनी से घिरे युद्ध के लिए प्रस्थान करें। कोटिवीर्य कुल के पचास, धौम्र कुल के सौ असुर सेनापति मेरे आदेश पर सेना एवं कालक, दौर्हृद, मौर्य व कालकेय असुरों सहित युद्ध के लिए कूच करें। अत्यंत क्रूर दुष्टाचारी असुर राज शुंभ अपने साथ सहस्र असुरों वाली महासेना लेकर चल पड़ा।
उसकी भयानक दैत्यसेना को युद्धस्थल में आता देखकर देवी ने अपने धनुष से ऐसी टंकार दी कि उसकी आवाज से आकाश व समस्त पृथ्वी गूंज उठी। पहाड़ों में दरारें पड़ गईं। देवी के सिंह ने भी दहाड़ना प्रारंभ किया, फिर जगदम्बिका ने घंटे के स्वर से उस आवाज को दुगना बढ़ा दिया। धनुष, सिंह एवं घंटे की ध्वनि से समस्त दिशाएं गूंज उठीं। भयंकर नाद को सुनकर असुर सेना ने देवी के सिंह को और मां काली को चारों ओर से घेर लिया। तदनंतर असुरों के संहार एवं देवगणों के कष्ट निवारण हेतु परमपिता ब्रह्माजी, विष्णु, महेश, कार्तिकेय, इन्द्रादि देवों की शक्तियों ने रूप धारण कर लिए एवं समस्त देवों के शरीर से अनंत शक्तियां निकलकर अपने पराक्रम एवं बल के साथ मां दुर्गा के पास पहुंचीं।
तत्पश्चात समस्त शक्तियों से घिरे शिवजी ने देवी जगदम्बा से कहा- ‘मेरी प्रसन्नता हेतु तुम इस समस्त दानव दलों का सर्वनाश करो।’ तब देवी जगदम्बा के शरीर से भयानक उग्र रूप धारण किए चंडिका देवी शक्ति रूप में प्रकट हुईं। उनके स्वर में सैकड़ों गीदड़ों की भांति आवाज आती थी।
असुरराज शुम्भ-निशुम्भ क्रोध से भर उठे। वे देवी कात्यायनी की ओर युद्ध हेतु बढ़े। अत्यंत क्रोध में चूर उन्होंने देवी पर बाण, शक्ति, शूल, फरसा, ऋषि आदि अस्त्रों-शस्त्रों द्वारा प्रहार प्रारंभ किया। देवी ने अपने धनुष से टंकार की एवं अपने बाणों द्वारा उनके समस्त अस्त्रों-शस्त्रों को काट डाला, जो उनकी ओर बढ़ रहे थे। मां काली फिर उनके आगे-आगे शत्रुओं को अपने शूलादि के प्रहार द्वारा विदीर्ण करती हुई व खट्वांग से कुचलती हुईं समस्त युद्धभूमि में विचरने लगीं। सभी राक्षसों चंड मुंडादि को मारने के बाद उसने रक्तबीज को भी मार दिया।
शक्ति का यह अवतार एक रक्तबीज नामक राक्षस को मारने के लिए हुआ था। फिर शुम्भ-निशुंभ का वध करने के बाद बाद भी जब काली मां का गुस्सा शांत नहीं हुआ, तब उनके गुस्से को शांत करने के लिए भगवान शिव उनके रास्ते में लेट गए और काली मां का पैर उनके सीने पर पड़ गया। शिव पर पैर रखते ही माता का क्रोध शांत होने लगा।
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कहीं आपके साथ भी तो ऐसा नही हो रहा ?





यदि जीवन में निरंतर समस्याए आ रही है। और यह प्रतीत हो की जीवन में कही कुछ सही नही हो रहा तो निश्चित रूप से हो सकता है आप पैरानार्म्ल समस्याओं से ग्रस्त है। आपके आस पास नेगेटिव एनर्जी है। यदि ऐसा है तो कुछ पहलुओ पर जरुर गौर करे।
1) पूर्णिमा या अमावस्या में घर के किसी सदस्य का Depression या Aggression काफी बढ़ जाना या स्वास्थ्य संबंधी समस्याओ का बढ़ जाना।
2) बृहस्पतिवार, शुक्रवार या शनिवार में से किसी एक दिन प्रत्येक सप्ताह कुछ ना कुछ नकारात्मक घटनाएं घटना।
3) किसी ख़ास रंग के कपडे पहनने पर कुछ समस्याए या स्वास्थ्य पर असर जरुर होना।
4) घर में किसी एक सदस्य द्वारा दुसरे सदस्य को देखते ही अचानक से क्रोधित हो जाना।
5) पुरे मोहल्ले में सिर्फ आपके घर के आस पास कुत्तों का इकट्ठा होना।
6) घर में किसी महिला को हर माह अमावस्या में Period होना।
7) घर में किसी ना किसी सदस्य को अक्सर चोट चपेट लगना।
8) वैवाहिक संबंधो में स्थिरता का ना होना।
9) घर में किसी सदस्य का उन्मादी या नशे में होना।
10) सोते समय दबाव या स्लीपिंग पैरालाइसेस महसूस करना।
11) डरावने स्वप्न देखना।
12) स्वप्न में किसी के डर से खुद को भागते हुए देखना।
13) स्वप्न में अक्सर साँप या कुत्ते को देखना।
14) स्वप्न में खुद को सीढ़ी से नीचे उतरते देखना और आख़िरी सीढ़ी का गायब होना।
15) किसी प्रकार के गंध का अहसास होना।
16) पानी से और ऊँचाई से डर लगना।
17) सोते वक्त अचानक से कुछ अनजान चेहरों का दिखना।
18) अनायास हाथ पाँव का कांपना।
19) अक्सर खुद के मृत्यु की कल्पना करना।
20) व्यापार में अचानक उतार चढ़ाव का होना।
ये मुख्य ल्क्ष्ण है, जिनसे आप खुद जान सकते है की आपको या आपके घर में किसी प्रकार की पैरानार्म्ल प्राब्लम तो नही।
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प्रेत के बारे में और उनके प्रकार
भूतप्रेतो से सुरक्षा





हमारे समाज में ऐसे दो गुट है जिनमे एक जो इन सक्तियो को मानते हो एक जो उनके आस्तित्व को नहीं मानते लेकिन सच बात ये है की इस तरह की सक्तिया होती है जिनको हम प्रेत कहते या कोई दुसरे नाम से जानते है ये सक्तिया कभी किसको परेसान नहीं करती लेकिन जब इन्सान उनको छेड़ने की कोसिस करता है तो इन्सान को गंभीर परिणामो से गुजरना पड़ता है कभी कभी ऐसा भी होता है की कोई इन्सान दुसरे इन्सान को चोट या दुसमनी निकल ने के लिए तांत्रिक की मदद लेता है और तांत्रिक इसे सक्तियो को इन्सान को परेसान करने के लिए भेजता है
मैंने मेरे जीवन में जितने भी किस्से देखे है उनमे ज्यादातर इसे शक्तियो जानबू जकर भेजने वाले किस्से देखे है ऐसा बोहोत कम होता है जब प्रेत या भुत इन्सान को जान बू जकर परेसान करते है ये तब होता है जब आप उनको अनजाने में परेसान करे लेकिन में इस शक्तियो को मानता हु और उनके संपर्क में आया भी हु और उनकी शक्तियो को जनता और महसूस करता हु
अब में आप को बताउगा की जिससे आप जान सके की क्या आप घर सच में प्रेतग्रस्त है ? या आप का वेहम है ? और अगर है तो में खुछ टोटके बताउगा जिससे आप को फायदा होगा
पहले ये जान ले की आप के घर में बुरी सक्तिया है या नहीं
शक्तिया आप को अपनी शक्तियो का परिचय खुद दे देगी जैसे की घर में तोड़ फोड़ करेगी , आप के ऊपर चीजे फेकेगी , और ये सब रात में ज्यादा होगा कभी कभी ये शक्ति सरीर में प्रवेश भी कर सकती है
अगर है तो आप को क्या करना है
** जितना हो सके उसको नजरंदाज करे
** ॐ एम हिम कलीम चामुन्दाये विच्छे नमः (काली महा मंत्र ) का पाठ करे
** गूगल का धुप करे
** साप की केचुही जो साप ने छोड़ दी है उसको लेकर आये और ऊपर दिए मंत्र को पड़ते हुए उसको कोयले के ऊपर रखकर धुप करे
** धुप करते वक़्त ये ध्यान रखे की धुप आप को घर के पिछले हिस्से से सरू करते हुए आगे आये घर का कोई भी रूम या कोना बाकि न रहे , धुप करते वक़्त घर को बंद करदे और धुप होने के बाद घर को खोल दे
** सबसे आसन तरीका ये है की आप ऊपर दिए गई मंत्र की रोज एक माला करे और महाकाली माँ को प्रार्थना करे की आप को इस शक्ति से आज़ाद करे में एक बार फिर ये बताना चाहता हु की महाकाली माँ की शक्तियो के आगे तीनो लोक में ऐसी कोई शक्ति नहीं है जो उनको चुनोती दे सके उनमे अपार शक्ति है उनका क्रोध आप के लिए नहीं बल्कि आप के खिलाफ इस्तेमाल होने वाली शक्तियो से है वो तो अपने बच्चो के लिए बोहोत सोम्य है और वो अपने भक्तो को दुखी नहीं देख सकती इस लिए में आप को महाकाली के सरन में जाने की सलाह दूगा
महाकाली माँ के आगे इस तरह की शक्तिया हार ही नहीं मानती बल्कि टूट जाती है वो उनके सामने पलभर भी नहीं टिकते लेकिन माँ को सच्चे दिल से पुकारना होता है वो आपकी मदद के किये जरुर आएगी
अगर प्रेत इन्सान के सरीर में प्रवेश करता है तो उसको जानने का एक तरीका है रोगी के दाया कान को पकडिये वो गर्म होगा
** रोगी सो नहीं पायेगा
** चिल्लाएगा और अपने कपडे फाडेगा
** किसीको अपने नजदीक नहीं आने देगा
** गाली गलोच करेगा
** अपनी मांगे मनवाएगा
** धमकिया देगा
इन सब बातो से आप घबराये नहीं ये याद रखये की प्रेत ज्यादा देर तक इंसानी सरीर के अन्दर नहीं रह सकता क्योकि जितनी देर वो सरीर में रहेगा उतनाही उसके पकडे जाने की सम्भावना है और उनको आज़ादी ज्यादा पसंद है ये उसके लिए ये एक खेल है जो ज्यादा डरेगावो हारेगा
तब आप ये जान ले की आप की तरफ से जितना हो सके उसको चोट न पहुचाये क्योकि चाहे वो प्रेत कोई भी हो लेकिन वो आप के घरवाले के सरीर में है आत्मा को चोट नहीं लगती चोट सरीर को लगती है में ये इस लिए बता रहा हु की ज्यादातर तांत्रिक रोगी को बोहोत बुरी तरह से मारते है और रोगी के घर वाले ये सब देखते है ये सब से उस को कोई नुकसान नहीं पहुचता नुकसान रोगी के सरीर को होगा और इस तरह प्रेत भागते नहीं है ये बात आप बोहोत अच्छी तरह से जान ले इसलिए ये सब आप रोंके
अगर फिर भी रोगी को असर नहीं हो रहा है तो आप को तुरंत कोई ऐसे इन्सान को खोजना सरू करे जो मारपीट न करे और प्रेतों को भगाना जानता हो या फिर मुजको मेल कर
प्रेत कितने प्रकार के होते ?
डाकिनी - अति भयंकर , निर्दय , स्मशान में मुर्दे और बच्चे को खाती है
शाकिनी - अविवाहित लड़की जब मर जाती है तो वो शाकिनी बनती है
जखिन - बुद्दी ओरत बन के फिरती है उसके बल सफ़ेद और बंधे हुवे नहीं होते है जो कोई उसके साथ सम्बन्ध बनाता है वो उस इन्सान का कल्याण करती है इस लिए कोई कोई उसको '' बलवंत '' के नाम से भी जानता है जब ओरत गर्भवास्ता या रजस्वला में मरी हुई सौभाग्यवती स्त्री के भुत को जखीन कहा जाता है
लाल या लावसर - रजस्वला अवस्था में जिनकी मृत्यु हो जाती है उसको लाव कहते है ये विधवा का भुत होता है ये स्मशान में रहती है और यो पसु पंखी को हेरान करती है मुर्दा उसका भोजन है
सटवाई - सगर्भा ओरतो को परेसान करती है पैदा हुए बच्चो को पांचवे या छठे दिन मार देती है
हदल - स्वभाव में बोहोत ही ख़राब , दुष्ट ,सुन्दर रूप लेके इन्सान को फसाती है उनका शिकार ज्यादातर बच्चे होते है ,जिन ओरत को बच्चा होता है और वो दस दिन के अन्दर मर जाती है वो खिजदा के पेड़ ऊपर रहती है और रातको हरे रंग के कपडे पहन के शिकार करती है
ये स्त्री वर्ग के भुत है अब पुरुष वर्ग के भूतो के बारे में जानेगे
भुत + पिचास - ये ज्यादा इंसानों को परेसान नहीं करते जब इनकी इच्छा होती है तभी वो बहार आते है इनको अंडे ,तीखा और ज्वार की ठंडी रोटी पसंद है
खाविस - लमान, मुस्लमान या म्हार लोगो के भुत को खाविस कहा जाता है वो १५ से १७ फिट ऊँचे होते है अविवाहित पुरुस मरने के बाद खाविस बनते है ये गुस्सेल होते है लेकिन खुस होने पर इन्सान को जो चाहेये वो देता है ये सफ़ेद रंग में होते है उनके पैर उलटे हो ते है वो जिनका चाहे रूप ले सकते है
भ्रमभुत - रत को या दिन को एकदम वीराने में या पीपल के पेड़ निचे स्नान संध्या करते है किसीको परेसान नहीं करते अगर किसी ब्रह्मण का खून होता है तो वो ब्रह्मभुत बनता
बेताल - इसको भूतो का राजा माना जाता है इसको सिद्ध करने पर ही आता है वो किसी के सरीर से भुत निकालना हो या प्रेत ग्रस्त इन्सान को ठीक करना हो तो मदद करता है सभी भुत इसकी बातो को मानते है इनके मंदिर भी होते है ये मुर्दे में भी जान दाल सकते है वेताल के दो रूप है एक रूद्र और एक जो आग लगाता है ये नग्न रहते है ये उनकी निसानी है तमिलनाडु में वेताल को अथ्य्नार , दुर्ग में मलदेव , तेलंगन में पेंक्तासु भी कहते हे
जोड़ - मुसलमान , कोली , खारवा की आत्मा ओ को जोड़ कहा जाता है ये एक पेड़ पर एक पैर और दुसरे पेड़ पर दूसरा पैर रखकर खड़ा रहता है इसको गर्दन नहीं होती है जिस पैड पर ये रहते है उसके निचे से जाने पर इन्सान बीमार पद जाता है
गिरहा - पानी डूबकर या पानी के अन्दर जिनका खून होता है वो गिरहा बनते है वो पानी में ही रहते है रात को अकेले जा रहे इंसान को आवाज लगा कर बुलाता है रात को नाव लेके जा रहे नाविकों को आवाज दे कर बुलाता है और गहरे पानी में लेजाकर डूबा देता है वो ज्यादा शक्ति साली नहीं होते अगर कोई उनके सर का एक बाल तोड़ ले तो वो उसके गुलाम बन जाते है
मुंजा -ब्रहमचारी युवान ,रूपवान ब्रहामन या ब्रहमचारी की मृत्यु होती है तो वो मुंजा बनता है ये पीपल के पेड़ पर रहता है और आने जाने वालो को परेसान करता है उसके कमर पर घंटिया होती है उसको बजाकर वो सबको परेसान करता है
देवचार - विवाहित शुद्ध मृत्यु के बाद जिसका अग्निसंस्कार ठीक से नहीं किया जाता वो देवचार बनता है गाव के सभी भुत उसके आधीन रहते है मुर्गी या बकरी की बलि उसको पसंद है और ये पुरे गाव की रक्षा करता है
पितृ - ये भुत छोटे होते है और जुंड में रहते है तांत्रिक उनको बस रखते है और ये परेसान ज्यादा करते है
वीर - अतिसय सुरवीर ,शक्तिशाली सभी भूतो के मालिक होते है दिन रात गुमते है किसीका भी रूप ले सकते है डरते है किसके भी सरीर में जा सकते है आग पैदा कर सकते है दिया जला सकते है अमावस्या के दिन ये ज्यादा दिक्ते है इन्सान को पकड़ के उनके सरीर में जा कर उनकी इच्छा को मनवाते है इनको पहचानना बहुत ही कठिन है वो वायु रूप होते है इस लिए उनको पकड़ना यानि अपनी मृत्यु को बुलाना होता है
आशेव - नाक से बोलता है अतिभ्यंकर प्रकार का पिचास है
चुडेल -इस प्रकार के भुत के पैर उलटे होते हे
गोल बियावानी - हाथ में मसाल के साथ जंगलो में गुमता है
दरया - आकार में अति प्रचंड होते है उसके सर पर सिंग होते है उनके पंजे भी बोहोत बड़े होते है
हमजाद - इंसानों के साथ रह सकता है उनको वस् में किया जा सकता है ज्यादा परेसान नहीं करते
और भी इस प्रकार के बोहोत से भुत पिचासो का वर्णन है जिनको हम नाल्खाम्भा ,जिद , पिलर , डाकिनी , कुस्थामंदा , मंत्री , भूचर , खेचर , जलाई , जोगनी , गावती ,मधुपर्वानी , मस्ख्वानी , और नाधोबा कहते हे
में ये सब आपकी जानकारी के लिए बता रहा हु ज्यादा तर लोग इन शक्तियो को भुत के नाम से जानते है और उनको सिर्फ एक ही नज़र से देखते है इन सबकी शक्तिया अलग है और ये सब अपने आप में अलग है
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2 चमत्कारी देवी बीज मंत्र, परेशानियों का कर दे सूपड़ा साफ






धर्मशास्त्रों में देव स्मरण से सुखी जीवन के लिये मंत्र जप का बहुत महत्व बताया गया है। मन्त्र का शाब्दिक अर्थ मन के त्राण यानी दु:ख हरने वाला माना गया है। दु:खनाशक इन मंत्रो के अलग-अलग रूपों में अलग-अलग प्रभाव और फल होते हैं।
मंत्र के ऐसे ही पीड़ाहारी और असरदार रूप है बीज मंत्र। असल में बीज मंत्र देवशक्तियों का सूचक होता है, जिसमें देव विशेष की विराट शक्ति और गुण छुपे होते हैं। बीज मंत्रों के अक्षर, ध्वनि और स्वर द्वारा संबंधित देवशक्तियों को संकेत रूप में स्मरण कर जाग्रत किया जाता है। जिससे देव विशेष की शक्ति के मुताबिक प्रभाव उपासक को प्राप्त होते हैं। यही कारण है कि श्रद्धा और आस्था से बीज मंत्रों के जप चमत्कारिक फल देने वाले माने गए हैं।
बीज मंत्रों की इस कड़ी में यहां बताए जा रह हैं, दुर्गा और काली के बीज मंत्र संकट और पीड़ानाशक बहुत ही असरदार माने गए हैं। जानते हैं इन मंत्रों और उनके अर्थ -
क्रीं -
यह कालीबीज के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें क का अर्थ काली, र यानी प्रकृति, ई मतलब महामाया, नाद का अर्थ जगत माता, बिंदु यानी दु:खहर्ता। इस तरह बीज मंत्र का सार है महादेवी काली सभी दु:खों का नाश करे।
इस बीज मंत्र के साथ महाकाली की प्रसन्नता का नीचे लिखा मंत्र काल रक्षक माना गया है। इस मंत्र की सामान्य रूप से भी एक माला यानी 108 बार सुबह या
शाम को जप घर को कलह और काल मुक्त रखता है।
क्रीं ह्रीं काली ह्रीं क्रीं स्वाहा
दुं -
यह दुर्गा बीज मंत्र है। जिसमें द यानी दुगर्तिनाशिनी, उ व नाद यानी रक्षा और बिंदु का अर्थ शोकनाशक है। पूरे बीज का सार है कि जगतजननी दुर्गा दुर्गति से रक्षा करे।
इस बीज मंत्र के साथ महादुर्गा का नीचे लिखे मंत्र का जप साधक को दु:ख-दरिद्रता से रक्षा करता है। शुक्रवार के दिन देवी की सामान्य पूजा यानी गंध, अक्षत, फूल, नैवेद्य और धूप, दीप से पूजा कर नीचे लिखे मंत्र का यथाशक्ति जप मातृशक्ति को प्रसन्न करने वाला माना गया है -
ऊँ ह्रीं दुं दुर्गायै नम:
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मंत्र







शंकराचार्य ने पुरे भारतवर्ष में घूमकर एक ही बात कही कि संसार का सब कुछ मंत्रों के आधीन हैं! बिना मंत्रों के जीवन गतिशील नहीं हो सकता, बिना मंत्रों के जीवन की उन्नति नहीं हो सकती, बिना साधना के सफलता नहीं प्राप्त हो सकती!
गुरु तो वह हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति को एक मंदिर बना दे, मंत्रों के माध्यम से! वैष्णो देवी जायें और देवी के दर्शन करे, उससे भी श्रेष्ठ हैं कि मंत्रों के द्वारा वैष्णो देवी का भीतर स्थापन हो, अन्दर चेतना पैदा हो जिससे वह स्वयं एक चलता फिरता मंदिर बनें, जहाँ भी वह जायें ज्ञान दे सकें, चेतना व्याप्त कर सकें तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्ञान को सुरक्षित रख सकें!
जब मेरे पास लोग आते हैं या फ़ोन पर बात करते हैं तो, उन्होंने भी स्वीकार किया कि मंत्रों का ज्ञान प्राप्त होना चाहिए! उन्होंने कीर्तन किया, मगर कीर्तन के बाद मंत्रो को सीखने का प्रयास भी किया, निरंतर जप किया और उनकी आत्मा को शुद्धता, पवित्रता का भाव हुआ! मैक्स म्युलर जैसे विद्वान ने भी कहा हैं कि वैदिक मंत्रों से बड़ा ज्ञान संसार में हैं ही नहीं ! उसने कहा हैं कि मैं विद्वान हु और पूरा यूरोप मुझे मानता हैं, मगर वैदिक ज्ञान, वैदिक मंत्रों के आगे हमारा सारा ज्ञान अपने आप में तुच्छ हैं, बौना हैं ! आईंस्टीन जैसे वैज्ञानिक ने भी कहा कि एक ब्रह्मा हैं, एक नियंता हैं, वह मुझे वापस भारत में पैदा करें, ऐसी जगह पैदा करें, जहाँ किसी योगी, ऋषि या वेद मंत्रों के जानकार के संपर्क में आ सकूँ, उनसे मंत्रों को सीख सकूँ! अपने आप में सक्षमता प्राप्त करूँ और संसार के दुसरे देशों मे भी इस ज्ञान को फैलाऊँ!
गुरु वह हैं जो आपकी समस्याओं को समझे, आपकी तकलीफों को दूर करने के लिए उस मंत्र को समझाएं, जिसके माध्यम से तकलीफ दूर हो सकें! मंत्र जप के माध्यम से दैवी सहायता को प्राप्त कर जीवन में पूर्णता संभव हैं! दैवी सहायता के लिए जरुरी हैं कि आप देवताओं से परिचित हो और देवता आपसे परिचित हो!
परन्तु देवता आपसे परिचित हैं नहीं! इसलिए जो भगवान् शिव का मंत्र हैं, जो सरस्वती का मंत्र हैं, जो लक्ष्मी का मंत्र हैं, उसका नित्य जप करें और पूर्णता के साथ करें, तो निश्चय ही आपके और उनके बीच की दुरी कम होगी! जब दुरी कम होगी तो उनसे वह चीज प्राप्त हो सकेगी! एक करोडपति से हम सौ-हजार रुपये प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु लक्ष्मी अपने आपमें करोडपति ही नहीं हैं, असंख्य धन का भण्डार हैं उसके पास, उससे हम धन प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु तभी जब आपके और उनके बीच की दुरी कम हो…. और वह दुरी मंत्र जप से कम हो सकती हैं! मंत्र का तात्पर्य हैं – उन शब्दों का चयन जिन्हें देवता ही समझ सकते हैं! मैं अभी आपको ईरान की भाषा में या चीन की भाषा में आधे घंटे भी बताऊं, तो आप नहीं समझ सकेंगे! दस साल भी भक्ति करेंगे, तो उसके बीस साल बाद भी समस्याएं सुलझ नहीं पाएंगी, क्योंकि उसका रास्ता भक्ति नहीं हैं उसका रास्ता साधना हैं, मंत्र हैं!
जो कुछ बोले और बोल करके इच्छानुकूल प्राप्त कर सकें वह मंत्र हैं!
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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...