Thursday, September 28, 2023

स्वर्णप्रभा यक्षिणी मंत्र साधना


 



स्वर्णप्रभा यक्षिणी मंत्र साधना 


स्वर्णप्रभा यक्षिणी मंत्र यक्षिणी को प्रकट करने की एक दिव्य साधना है। यक्षिणी स्वभाव से बहुत सुंदर, सौम्य और सरल है। वह सोलह वर्ष की युवती के रूप में सुन्दर वस्त्रों से सुसज्जित रहती है। वह सदैव युवा है.


स्वर्णप्रभा बस अपने शरीर के पास सुनहरे रंग की आभा बिखेरती है। वह अद्भुत और आकर्षक दिखती हैं।


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उसके शरीर से एक अनोखी गंध आती रहती है, जो किसी भी पुरुष को सम्मोहित करने के लिए काफी है। वह साधक के इच्छित कार्य को पूर्ण करने के लिए पूर्णतया समर्पित रहती है. यक्षिणी साधक को धन, ऐश्वर्य और सुख प्रदान करती रहती है।


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'यक्ष' शब्द एक ऐसी विशेष जाति को दर्शाता है और यह जाति स्वयं धन, ऐश्वर्य, संप्रभुता और समृद्धि की स्वामी है। देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर हैं, जिनकी दिवाली के अवसर पर लक्ष्मी के साथ पूजा की जाती है। कुबेर 'यक्ष' जाति के हैं और रावण ने भी कुबेर साधना करके ऐश्वर्य प्राप्त किया था।


यक्षिणी साधना लक्ष्मी साधना से भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यक्षिणी साधना से हम वह सब कुछ हासिल कर सकते हैं, जो हमारे जीवन का उद्देश्य है। यक्षिणी साधना को निम्नलिखित पाँच कारणों से अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है:


1. यह साधना सरल है और इसमें अधिक जटिल अनुष्ठान नहीं हैं।


2. यह साधना न्यूनतम समय की है और इसमें साधक को अधिक समय भी बर्बाद नहीं करना पड़ता है।


3. यह साधना अत्यंत सफल और तुरंत फल देने वाली मानी जाती है।


4. यक्षिणी साधना से साधक को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती, बल्कि लाभ ही होता है।


5. यक्षिणी साधना पूरी करने के बाद यक्षिणी जीवन भर सौम्य रूप में साधक के वश में रहती है और उसके इच्छित कार्य को पूरा करती रहती है।


यक्षिणी साधना के लाभ


 साधना पूरी होने के बाद, यक्षिणी शारीरिक रूप से सुंदर-फिट कपड़ों में साधक से मिलती है और उसकी ही बनकर रह जाती है।


ऐसी यक्षिणी जीवन भर साधक की आज्ञा का पालन करती रहती है।


आदेश मिलने पर साधक जो भी चाहता है, यक्षिणी उसे प्रदान करती रहती है। यह धन, ऐश्वर्य, वस्त्र, सोना, शारीरिक सुख और मानसिक संतुष्टि आदि प्रदान करता है।


ऐसी यक्षिणी सलाहकार के रूप में साधक को निरंतर सलाह और मार्गदर्शन देती है। मुसीबत के समय वह जी-जान से सेवा करती है।


यक्षिणी सिद्ध होने पर साधक को शारीरिक एवं मानसिक रूप से संतुष्टि प्रदान करती है।


ऐसी यक्षिणी साधक को प्रत्यक्ष दिखाई देती है और कभी धोखा नहीं देती।


 किसी भी प्रकार की साधना या पूजा करने वाला साधक ऐसी साधना कर सकता है।


यक्षिणी साधना जीवन में धन-संपत्ति प्रदान करती रहती है। ऐसे साधक को बुढ़ापा नहीं घेरता। यक्षिणी के प्रभाव से साधक स्वयं निरंतर युवा बना रहता है।


यह सर्वोत्तम साधना है क्योंकि योगियों, यति और संन्यासियों ने भी इसमें सफलता प्राप्त की है और जंगल और पहाड़ों में भी सौभाग्य बनाए रखा है। ऐसी साधना एक गृहस्थ भी कर सकता है। इसे कोई भी पुरुष या महिला कर सकता है.


यदि किसी कारणवश यह साधना विफल भी हो जाए तो भी साधक को कोई हानि नहीं होती है। कई साधकों के लिए यह साधना पहली बार में ही सिद्ध हो जाती है।


स्वर्णप्रभा यक्षिणी मंत्र साधना मुहूर्त


यदि यह साधना दीपावली के आसपास की जाए तो अधिक उचित है। इस साधना को करने का सबसे शुभ समय दीपावली के बाद दूसरा दिन होता है।


साधना सामग्री


 जल का लोटा, कुमकुम, केसर और चावल,

यक्षिणी माला जिसके माध्यम से मंत्र का जाप करना होता है।


पहनने को पीला आसन और पीली धोती;

दिव्यांगना स्वर्णप्रभा यक्षिणी सिद्धि गुटिका ।

रात्रि के दस बजे के बाद साधक को पीला आसन बिछाकर उस पर शांत मन से बैठना चाहिए।


उपर्युक्त सामग्रियों के अलावा, कुछ गुलाब भी लें। फूलों की एक माला भी रखें, ताकि जब यक्षिणी दिखाई दे तो माला उसे पहना दी जाए और उससे यह वचन लें कि वह जीवन भर आपके वश में रहेगी और आप जो आदेश देंगे वही करेगी।


साधक को दिव्यांगना स्वर्णप्रभा यक्षिणी सिद्धि गुटिका को गले या दाहिनी भुजा पर धारण करना चाहिए। एक स्टील की थाली पर केसर से स्वस्तिक और श्री लिखें। साधक को अपने शरीर पर कोई इत्र लगाना चाहिए।


फूल और दूध से बनी मिठाई समर्पित करें. पास में तेल का दीपक और अगरबत्ती जला लें। साधक को स्वयं उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए और उसी रात्रि को माला से 21 माला मंत्र का जाप पूरा करना चाहिए। इस मंत्र साधना को 21 दिनों तक करें।


स्वर्णप्रभा यक्षिणी मंत्र


ॐ ऐं श्रीं ह्रीं दिव्यांगना आगच सिद्धिं देहि देहि फट्


स्वर्णप्रभा यक्षिणी साधना सिद्धि मंत्र


ॐ ऐं श्रीं ह्रीं विलक्षणना आगच्छ सिद्धिं देहि देहि फट |


मंत्र जाप के बाद एक अत्यंत मधुर सुगंध वाली षोडशी दिव्यांगना यक्षिणी पास आती है। जब यक्षिणी के प्रत्यक्ष दर्शन हो या ऐसा अनुभव हो कि कोई स्त्री बैठी है तो साधक को माला उसके गले में डाल देनी चाहिए और वचन लेना चाहिए कि दिव्यांगना यक्षिणी उसके वश में रहेगी तथा वह जो भी आदेश देगी, उसका पालन करेगी। उसके शेष जीवन के लिए.


इस साधना के पूरा होने के बाद गुटिका को अपनी बांह पर बांध लें। ऐसा करने से साधक को पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है।


आवश्यक साधना सामग्री :


यक्षिणी माला


दिव्यांगना स्वर्णप्रभा यक्षिणी सिद्धि गुटिका ।


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चौसठ महा कृत्या मन्त्र साधना


 


चौसठ महा कृत्या मन्त्र साधना


यह साधना अत्यंत गोपनीय,दुर्लभ और प्राचीन है।यह कृत्या शरीर से उत्पन्न होती है।यह वशीकरण ,मोहन,मारण,उच्चाटन का प्रबल अस्त्र है।जब भगवान् शिव को क्रोध आया और उनके सैनिक परास्त होकर आ गए थे तब उन्होंने अपने शरीर से कृत्या का निर्माण किया था और यज्ञ का नाश किया था,


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बड़े बड़े ऋषि मुनियो के तंत्र मन्त्र भी कृत्या शक्ति के आगे काम नही कर पाये अर्थात फैल हो गए।कृत्या मानव शरीर से उत्पन्न एक देवी शक्ति है।जिस तरह मनुष्य अपने शरीर से मन्त्र साधना से अपने तीन हमजाद सिद्धि करता है उसी तरह कृत्या सिद्ध हो जाती है। 


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मन्त्र की कृत्या तंत्र की कृत्या से 100 गुना ज्यादा तीव्र कार्य करती है।कुछ ही सेकंडो में मात्र। प्राचीन काल में चौसठ महा कृत्या गुरुदेव शुक्राचार्य जी को सिद्ध थी।यह चौसठ कृत्या तीनो लोको के कार्य संपन्न करती है।


अगर साधक अपने दोनों हाथ ऊपर की तरफ आकाश में करके चौसठ कृत्या का मन्त्र जप कर कार्य कहे तो स्वर्ग में हा हा कार हो जाय, पृथ्वी पर करे तो मानव में हलचल हो जाये,भूमि की तरफ देखकर करे तो पाताल लोक में।


 अर्थात चौसठ कृत्या साधक किसी भी देव देवी ,अप्सराआदि को वशीभूत कर सकता है।घर बैठे उनको दण्डित कर सकता है,इतर योनि को मारण कर सकता है।इसी शक्ति मन्त्र के बल पर रावण ने लंका में बैठे हुए ही स्वर्गलोक में नृत्य करने वाली अप्सरा का शक्ति उच्चाटन किया था जिससे वह बेहोश होकर गिर गयी थी।


 जब चौसठ कृत्या देवी आती है तब मारण के लिये तो भूत प्रेत,ब्रह्म राक्षस ,पिशाच,जिन,कर्णपिशाचिनी आदि शक्तियाँ भाग जाती है नही तो कृत्या कालग्रास बना देती है सबको और एक बबूले अर्थात बवंडर में लपेटकर सबको अंतरिक्ष में विलीन हो जाती हैं। 


कृत्या सिद्ध होने पर साधक मन्त्र से जल पड़कर रोगी को पिलाय तो रोगी रोगमुक्त हो जाता है।कोई तंत्र साधक को हानि नही पहुंचा सकता है।साधक मन में असीम बल धारण कर लेता है।चार कर्म सिध्द हो जाते हैं।


वर्तमान में 26 योग्य साधको को चौसठ कृत्या प्रदान करायी गयी है।जो सफलता पूर्वक मानव भलाई के कार्य कर रहे हैं। कृत्या एक सात्विक साधना है।मांस मदिरा का सेवन वर्जित है। कृत्या साधना गुरुकृपा ,शिवकृपा से ही प्राप्त होती है।कृत्या साधना का पूर्ण विधान यहाँ नही दिया गया है,केवल साधको के ज्ञानार्थ है। 


चौसठ कृत्या सिद्धि किसी भी मंगलवार या अमावस्या से शुरू की जा सकती है।काले वस्त्र धारण करके तेल का दिया जलाकर सिद्ध की जाती है,इसमें सभी कर्म बांये हाथ से करने होते है जैसे दिशाबन्धन,देह रक्षा आदि। 


चौसठ कृत्या सिद्ध साधक सेकड़ो अधर्मी तांत्रिको पर भारी पड़ जाता है।(यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब कोई मारण ,बन्धन,तांत्रिक परयोग का शिकार आदमी हमारे पास आता है और इलाज के लिये बोलता है,तब ऑनलाइन माध्यम से उस का फ़ोटो ,माता का नाम पिता का नाम,पूरा पता लिया जाता है,,


तब पीड़ित को आत्मिक रूप से संपर्क करके यदि उसके ऊपर तांत्रिक प्रयोग होता है तो उसको उच्चाटन कर दिया जाता है।किसी भी तरह की आत्मा होती है तो उसका मारण या मुक्ति कर दिया जाता है 


या कोई चोकी लाट देवी या देवता की होती है तो उसको वापस् उठा कर उसके स्थान पर भेज दिया जाता है जिससे रोगी के प्राण बच जाते है।अपना शेष जीवन व्यतीत करता है ।उस तांत्रिक को शक्तिहीन कर दिया जाता है बन्धन से ,,


यदि वो अपने गुरुओ के पास जाता है और उनके गुरु भी उसकी गलती नही मानते ,उसकी हेल्प करते है तो उनको भी बंधन कर दिया जाता है।) 


मन्त्र 


ॐ ब्रह्मसूत्रसमस्त मम देह आवद्ध आवद्ध वज्र देह फट् ॐ ऐम् क्लीम् ह्रीम् क्रीम ॐ फट ॐ चौसठ शिवकृत्या प्रयोगाय दस दिशा बंधाये क्रीम क्रोम फट् ॐ रम् देहत्व रक्षा य फट्। 


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Monday, September 25, 2023

सर्व संकट नाशक मंत्र..


 



सर्व संकट नाशक मंत्र..


ॐ ह्रीं बगुला मुखी, सर्व दुष्टानाम वाचं मुखंपदम् स्तम्भय, जिहवाम् कीलय, कीलय बुद्धि विनाशाय ह्रीं ॐ स्वाहा।


 (साधक का नाम अवश्य अंत में जोड़ा जाये और जय बगुला मुखी भी अन्त में कहा जाये)


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समस्या- किसी भी प्रकार की समस्या हो, चाहे सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक, राजनैतिक व झगड़ा-फसाद, नौकरी का न मिलना या प्रमोशन पाना, मुकद्दमे में विजय, परीक्षा में सफलता, विवाह शादी न होना या पति-पत्नी का आपस न निभ पाना, फिल्म या किसी प्रकार व्यापार, क्रिया कलाप, बीमारी शत्रु रक्षा सभी के लिये अचूक राम बाण है यह मंत्र ।


विधि विधान-


 बगुलामुखी देवी या किसी भी देवी का उपलब्ध चित्र सामने रखकर, फूलों से, धूप दीप जलाकर, प्रतिमा या चित्र के सामने अपना मनोरथ स्पष्ट प्रकट करे और प्रतिदिन 31 से 51 बार मंत्र जप करें। जितनी शुद्धता व मन में पवित्रता आती जायेगी, उतनी ही शीघ्रता से बगुलामुखी साधक की मनोकामना पूर्ण करती है।


और अधिक जानकारी समाधान उपाय विधि प्रयोग या ओरिजिनल रत्न की जानकारी या रत्न प्राप्ति के लिए या कुंडली विश्लेषण कुंडली बनवाने के लिए संपर्क करें 


जन्म  कुंडली  देखने और समाधान बताने  की 


दक्षिणा  -  501  मात्र .


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Tuesday, September 12, 2023

इन्द्राक्षी साधना


 



इन्द्राक्षी साधना 


माँ इन्द्राक्षी की साधना सम्पूर्ण वैभव देने वाली तथा रोगों का नाश करने वाली मानी जाती है।साधक के जीवन में आर्थिक अनुकूलता आने लगती है तथा समाज में उसे मान सम्मान की प्राप्ति होती है।


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इन्द्राक्षी साधना के बारे में ये भी कहा जाता है की जो साधक इसे पूर्ण निष्ठां तथा समर्पण के साथ करता है माँ उसे इंद्र की ही तरह सम्पूर्ण वैभव तथा आरोग्यता प्रदान कर देती है।साधक के समस्त आतंरिक तथा बाहरी भय का नाश हो जाता है।तथा वो साधनाओ में सफलता की और बढता है


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 विशेषकर लक्ष्मी साधना में।माँ इन्द्राक्षी की साधना से सम्बंधित कई प्रयोग है अभी केवल एक साधना यहाँ दे रहा हु।आशा करता हु आप इसे संपन्न कर माँ की कृपा के पात्र बनेंगे।


विधि:


यह साधना किसी भी शुक्रवार से आरम्भ की जा सकती है।साधक समय स्वयं निर्धारित करे।पर प्रतिदिन समय एक ही हो।और ऐसे समय का चुनाव करे जब आप शांति के साथ साधना कर सके।आसन तथा वस्त्र आपके पीले हो,तथा मुख उत्तर या पूर्व की और हो।


अब अपने सामने एक बजोट रखे और उस पर एक पिला वस्त्र बिछा दे।अब एक कागज़ पर या भोजपत्र पर इन्द्राक्षी यन्त्र बनाये।इसमें अष्टगंध की स्याही का उपयोग होगा तथा कलम होगी दडिम की।यन्त्र बनाने के बाद उसे स्थापित कर उसका पूजन करे।


शुद्ध घी का दीपक हो तथा भोग में खीर या पञ्च मेवा चड़ाए।एक कोई भी फल अर्पण करे।तथा माँ से सफलता की प्रार्थना करे।अब स्फटिक माला से,निम्न मंत्र की 51 माला करे।ये क्रम 10 दिन तक रखे।आखरी दिन घी तथा पञ्च मेवा मिलाकर कम से कम 1008 आहुति प्रदान करे


।इस तरह ये साधना संपन्न होती है।साधक चाहे तो सवा लाख मंत्रो को अनुष्ठान भी कर सकता है।साधन के बाद यन्त्र को पूजा घर में स्थापित करदे।प्रसाद स्वयं तथा परिवार वाले ग्रहण करे।कम से कम एक कन्या को भोजन कर दक्षिणा दे संतुष्ट करे।


आप स्वयं इस साधन का प्रभाव अपने जीवन में अनुभव करने लगेंगे।अगर इसके साथ की इन्द्राक्षी कवच का पाठ भी नित्य किया जाये तो परिणाम और अनुकूल होते है।


मंत्र: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं इन्द्राक्षी नमः .


om shreem hreem kleem aim indrakshi namah


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Saturday, September 9, 2023

प्रेम लव मैरिज अरेंज मैरिज कोर्ट मैरिज या वैवाहिक सुख या शादी सुख प्राप्ति के लिए ओपल धारण करें ...


 


प्रेम लव मैरिज अरेंज मैरिज कोर्ट मैरिज या वैवाहिक सुख या शादी सुख प्राप्ति के लिए ओपल धारण करें ...


सौंदर्य प्रसाधनों से जुड़ा व्यापार या व्यवसाय कर रहें व्यक्तियों को ओपल रत्न धारण करने से लाभ बेहतर होते हैं।


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दूध और दूध से बनी वस्तुओं जैसे- डेयरी उत्पादों, मिठाई और इसी प्रकार के व्यवसायों में कार्यरत व्यक्तियों को ओपल रत्न धारण करने से लाभ होता हैं।


प्रेम संबंधों में सफलता पाने के लिए भी ओपल रत्न धारण किया जाता हैं।


कला जगत, कलात्मक कॄतियों के निर्माता, रचनात्मक विषयों से जुड़े व्यक्तियों का रत्न धारण करना शुभ और अनुकूल फलदायक साबित होता हैं।


चिकित्सा क्षेत्र में ओपल का उपयोग हार्मोनल स्त्राव को संतुलित करने के लिए किया जाता हैं।


यह माना जाता है कि यह रत्न अपने धारक की भावनाओं को दर्शाता हैं। इसमें किसी भी प्रकार का कोई असंतुलन होने पर यह भावनाओं को संतुलित करने का कार्य भी करता हैं।


सबसे अच्छी बात यह है कि ओपल रत्न को वफादारी, सच्चाई और सहजता का प्रतीक रत्न हैं। मन की चंचलता में स्थिरता लाने का कार्य यह करता हैं।


अपनी मनमोहक छ्टा से यह व्यक्ति की भावनात्मक स्थिति को बेहतर करता हैं और जीवन में शांति लाता हैं।

नेत्र चिकित्सा में इसका उपयोग किया जाता हैं।


दांपत्य जीवन में किसी भी प्रकार की कोई समस्या चल रही हों तो ओपल रत्न धारण करने से वैवाहिक जीवन के सु्खों में बढ़ोतरी होती हैं।


ओपल रत्न शुक्र का उपरत्न होने के कारण इसे प्रेम, स्नेह और विपरीत लिंग संबंधों को मजबूत करने के लिए धारण किया जाता हैं।


धन की देवी लक्ष्मी जी की शुभता प्राप्ति के लिए भी ओपल रत्न को धारण किया जा सकता हैं।

यह रत्न अपने धारक को सुख-शांति और सहजता देता हैं।


यदि कुंडली में शुक्र रत्न बलवान हों, शुभ भावों का स्वामी होकर, शुभ भाव में स्थित हों तो यह रत्न धारण करना धारक को स्वास्थ्य, संतान और भाग्य सभी कुछ दे सकता हैं।


ओपल रत्न वॄषभ राशि वृषभ लग्न, तुला राशि तुला लग्न और मिथुन लग्न, कन्या लग्न, मकर लग्न और कुम्भ लग्न वालों को विशेष रुप से ओपल रत्न धारण करना चाहिए। कुम्भ लग्न और कन्या लग्न वालों के लिए तो यह भाग्य रत्न होता हैं।


ओपल रत्न कैसे धारण करें / ओपल रत्न धारण विधि

ओपल रत्न को स्वर्ण धातु शुक्रवार के दिन धारण करना चाहिए।


 स्वर्ण धातु लेना संभव न हों तो चांदी या वाईट गोल्ड् में भी इस रत्न को धारण किया जा सकता हैं। यह रत्न अनामिका अंगूली में धारण करना चाहिए। 


धारण और अंगूठी में रत्न धारण करने के लिए शुक्ल पक्ष के शुक्रवार का प्रयोग करना चाहिए।


और अधिक जानकारी या कुंडली परामर्श या रत्न परामर्श से संबंधित किसी भी प्रकार की जानकारी या समस्याओं का समाधान निराकरण उपाय विधि प्रयोग या ओरिजिनल रत्न के लिए संपर्क करें ..


 


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महायोगी  राजगुरु जी  《  महायोगी अघोराचार्य   》


तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान


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Tuesday, September 5, 2023

पंचागुली साधना


 



पंचागुली साधना 


पंचांगुली मूल मन्त्र है -- 


" ॐ ह्रीं श्री पंचांगुली देवी मम शरीरे सर्व अरिष्टान निवारणाय नमः स्वाहा ठ : ठ : " 


इसका सवा लाख जप का विधान है . जैन तंत्र के  भी पंचांगुली कल्प साधना हस्तरेखा पंडितों और भविष्य वक्ताओं के लिए वरदान है इसका मूलमंत्र है -


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 " ॐ ठं ठं ठं पंचांगुलि भूत भविष्यं दर्शय ठं ठं ठं स्वाहा "


विधान


साधना के लिए पंचांगुली यंत्र , पंचांगुली चित्र तथा प्राण प्रतिष्ठित स्फटिक माला होना चाहिए साधना शुक्ल पक्ष की द्वितीया , पंचमी , सप्तमी या पूर्णमासी में से किसी भी दिन की जा सकती है सात दिन की साधना है .ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर पीले वस्त्र पहिन , पीले आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुँह करके बैठे .


एक बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर शिवजी और पंचांगुली देवी का चित्र तथा ताम्र प्लेट में पंचांगुली यंत्र रखें गणपति का ध्यान करें ॐ नमः शिवाय की एक माला जपें .


यंत्र पर कुमकुम से स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर षोडशोपचार पूजन करें संकल्प लें स्फटिक माला से मन्त्र की एक माला का जाप करें.ऐसा सात दिन तक करें .


पंचांगुली ( पांच अंगुलियां इसमें अंगूठा भी शामिल है , याने हथेली ) को देवी माना गया है .गृहस्थों के लिए ब्राह्ममुहूर्त में उठकर यह मन्त्र बोलते हुए अपना हाथ देखने का विधान है 


और मन्त्र जप करके हाथ को देखना

-कराग्रे वसते लक्ष्मी : करमध्ये सरस्वती करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते कर दर्शनम ( हाथों के अग्रभाग में लक्ष्मी , मध्य में सरस्वती और मूल में ब्रह्मा हैं .अतः सुबह उठते ही माथों का दर्शन करें ) 


 देवी का चित्र भी हथेली के बीच में बिराजमान अवस्था में है पंचांगुली देवी की मन्त्र साधना से किसी का भी भूत भविष्य , वर्तमान जाना जा सकता है .


साधना समाग्री दक्षिणा === 1500


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विशेष -


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Sunday, September 3, 2023

सिद्धिलक्ष्मीस्तोत्रम् ॥


 



सिद्धिलक्ष्मीस्तोत्रम् ॥


श्री गणेशाय नमः।


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     विनियोग:- 


ॐ अस्य श्रीसिद्धिलक्ष्मी स्तोत्रस्य हिरण्यगर्भ ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः सिद्धि लक्ष्मीर्देवता मम समस्त दुःख क्लेश पीडादारिद्र्य विनाशार्थं सर्वलक्ष्मी प्रसन्न करणार्थं महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवताप्रीत्यर्थं च सिद्धिलक्ष्मी स्तोत्र जपे विनियोगः।


कर न्यास:-


ॐ सिद्धिलक्ष्मी अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।

ॐ ह्रीं विष्णुहृदये तर्जनीभ्यां नमः ।

ॐ क्लीं अमृतानन्दे मध्यमाभ्यां नमः ।

ॐ श्रीं दैत्यमालिनी अनामिकाभ्यां नमः।

ॐ तं तेजःप्रकाशिनी कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।

ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं ब्राह्मी वैष्णवी माहेश्वरी

करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। 


हृदयादिन्यास:-


ॐ सिद्धिलक्ष्मी हृदयाय नमः ।

ॐ ह्रीं वैष्णवी शिरसे स्वाहा ।

ॐ क्लीं अमृतानन्दे शिखायै वौषट् ।

ॐ श्रीं दैत्यमालिनी कवचाय हुम् ।

ॐ तं तेजःप्रकाशिनी नेत्रद्वयाय वौषट् ।

ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं ब्राह्मीं वैष्णवीं फट् ॥ 


अथ ध्यानम् ॥


ब्राह्मीं च वैष्णवीं भद्रां षड्भुजां च चतुर्मुखाम्।

त्रिनेत्रां च त्रिशूलां च पद्मचक्रगदाधराम् ॥१॥


पीताम्बरधरां देवीं नानालङ्कार भूषिताम्।

तेजःपुञ्जधरां श्रेष्ठां ध्यायेद्बाल कुमारिकाम्॥२॥


ॐकारलक्ष्मीरूपेण विष्णोर्हृदयम व्ययम्।

विष्णुमानन्दमध्यस्थं ह्रींकारबीज रूपिणी॥३॥


ॐ क्लीं अमृतानन्दभद्रे सद्य आनन्ददायिनी।

ॐ श्रीं दैत्यभक्षरदां शक्तिमालिनी शत्रुमर्दिनी॥४॥


तेजःप्रकाशिनी देवी वरदा शुभकारिणी।

ब्राह्मी च वैष्णवी भद्रा कालिका रक्तशाम्भवी॥५॥


आकारब्रह्मरूपेण ॐकारं विष्णुम व्ययम्।

सिद्धिलक्ष्मि परालक्ष्मि लक्ष्यलक्ष्मि नमोऽस्तुते॥६॥


सूर्यकोटिप्रतीकाशं चन्द्रकोटिसमप्रभम्।

तन्मध्ये निकरे सूक्ष्मं ब्रह्मरूप व्यवस्थितम्॥७॥


ॐकारपरमानन्दं क्रियते सुखसम्पदा ।

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके॥ ८॥


प्रथमे त्र्यम्बका गौरी द्वितीये वैष्णवी तथा ।

तृतीये कमला प्रोक्ता चतुर्थे सुरसुन्दरी॥ ९॥


पञ्चमे विष्णुपत्नी च षष्ठे च वैएष्णवी तथा ।

सप्तमे च वरारोहा अष्टमे वरदायिनी॥ १०॥


नवमे खड्गत्रिशूला दशमे देवदेवता ।

एकादशे सिद्धिलक्ष्मीर्द्वादशे ललितात्मिका ॥ ११॥


एतत्स्तोत्रं पठन्तस्त्वां स्तुवन्ति भुवि मानवाः ।

सर्वोपद्रवमुक्तास्ते नात्र कार्या विचारणा ॥१२॥


एकमासं द्विमासं वा त्रिमासं च चतुर्थकम् ।

पञ्चमासं च षण्मासं त्रिकालं यः पठेन्नरः ॥१३॥


ब्राह्मणाः क्लेशतो दुःखदरिद्रा भयपीडिअताः ।

जन्मान्तरसहस्त्रेषु मुच्यन्ते सर्वक्लेशतः ॥ १४॥


अलक्ष्मीर्लभते लक्ष्मीमपुत्रः पुत्रमुत्तमम्।

धन्यं यशस्यमायुष्यं वह्निचौरभयेषु च ॥ १५॥


शाकिनीभूतवेतालसर्वव्याधिनिपातके ।

राजद्वारे महाघोरे सङ्ग्रामे रिपुसङ्कटे ॥ १६॥


सभास्थाने श्मशाने च कारागेहारि बन्धने।

अशेषभयसम्प्राप्तौ सिद्धिलक्ष्मीं जपेन्नरः॥१७॥


ईश्वरेण कृतं स्तोत्रं प्राणिनां हितकारणम! ।

स्तुवन्ति ब्राह्मणा नित्यं दारिद्र्यं न च वर्धते ॥ १८॥


या श्रीः पद्मवने कदम्बशिखरे राजगृहे कुञ्जरे

श्वेते चाश्वयुते वृषे च युगले यज्ञे च यूपस्थिते।


शङ्खे देवकुले नरेन्द्रभवनी गङ्गातटे गोकुले

सा श्रीस्तिष्ठतु सर्वदा मम गृहे भूयात्सदा निश्चला॥१९॥


॥इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे ईश्वरविष्णु संवादे दारिद्र्य नाशनं सिद्धिलक्ष्मी स्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

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राक्षसी बगलामुखी प्रयोग


 


राक्षसी बगलामुखी प्रयोग


शत्रुओं का पूर्णत: शमन


यह एक विशेष उच्च कोटि का तंत्र प्रयोग है। जब भगवती असुरों का वध करते-करते उनके संघार हेतु क्रोधित हुईं तब असुरों ने भगवती का क्रोध को जान कर ब्रह्मा, विष्णु, महेश, रूद्र, सदाशिव, पाँचों का पंच अस्त्रों के रूप में आह्वान किया तब भगवती भयानक रूप धारण कर आसुरी बगला के विराट रूप में प्ररकट हो गयीं।


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 वे ब्रह्मा, विष्णु, महेश, रूद्र, और सदाशीव अस्त्र-रूपों को पकड़ अपना कमला आसन बना कर बैठ गयीं अंत: पंच प्रेत आसन पर बिराजमान होकर कलल असुर की जिह्वा पकड़ बज्र से प्रहार कर उसका सघारं कर दिया। 


उस समय माँ स्वयं ही असुर की समस्त शक्तियों को छीनकर आसुरी रूप में प्रकट हुयीं और उसे मार पंच-प्रेत- आसन विराजित भगवती आसुरी बगलामुखी कहलाईं कुछे एक दुष्ट साधक ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि का आह्वान कर स्वयंम् का बचाव कर लेते है, तथा दूसरों को शैतानी विद्या के माध्यम से कष्ट पहुँचाते हैं। इसके लिए वे आसुरी बगलामुखी का विशेष व उच्चकोटि के तंत्र अस्त्र का प्रयोग करते हैं जिसके प्रभाव से बचना असंभव है।


 इसे ही अभिचार कर्म की संज्ञा दी गयी है। अभिचार कर्म से मुक्ती हेतु आसुरी बगलामुखी प्रयोग को सबमे श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि यह अघोरी, शमशानी, आदि का भी नाश कर देतीं है।


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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...