Thursday, January 31, 2019

भैरवी चक्र साधना






भैरवी चक्र साधना:


इस साधना को ७ दिनों में पूरा किया जाता है। इस साधना में सबसे कम उम्र के भैरव को शिव स्वरुप मान के शिव की आसन पे बिठाया जाता है और सब से कम उम्र की भैरवी को माँ काली का स्वरुप मान कर काली के आसन पर बिठाया जाता है।

 यह क्रिया रात्रि १० बजे के बाद शुरू की जाती है। इसमें सभी भैरव और भैरवी दिगंबर रूप से साधना करते हैं।

 इस साधना के पुरोहित को कौलाचार्य कहते है और उनके आदेश को शिव का आदेश समझ कर यह साधना की जाती है। वहा अगर वो धर्म विरुद्ध बात भी कहें तो उसे वेदतुल्य समझा जाता है।

तत्पश्चात कौलाचार्य उस भैरव और भैरवी की पूजा शुरू करते हैं जिसे शिव और काली के रूप में स्थापित किया जाता है। 

भाग्यवश कम उम्र होने के कारन इस पूजा में उस शिव रूप का स्थान मुझे ही मिला था एवं भैरवी रूप में शिवानी नामक एक बंगाली साध्वी को माँ काली का रूप मिला था।

७ दिनों तक यह क्रिया रात्री १० बजे से सुबह ३ बजे तक की जाती थी। इस क्रिया को बोहत सारे भैरव, भैरवी पूरा करने में विफल रहे।

 पर माँ की कृपा से मैंने इसे दूसरी बार में ही पूरा कर लिया। इस साधना में अघोर भैरव और भैरवी मंत्र का प्रयोग किया जाता है जो की किसी गुरु की सहायता से ही करना चाहिए अन्यथा अनर्थ भी हो सकता है।

भैरव चक्र साधना:

यह साधना ३ दिन में पूरा किया जाता है। इस साधना को उस शमशान में पूरा किया जाता है जहा पर कम से कम नित्य एक शव जलता रहता हो। 

कामख्या और ब्रम्हपुत्र नदी के समीप एक शमशान में अष्टमी की रात को यह साधना सभी भैरवो ने शुरू की। इस साधना में भैरवी का प्रवेश निषेध होता है। 

यह साधना रात्री १२ बजे के बाद शुरू की जाती है और ब्रम्ह मुहूर्त तक चलती है। इस साधना में प्रथम दिन स्नान करने के बाद पूरे शरीर में भभूत लगा कर ३ दिनों तक शम्शाम में ही शिव के अघोर रूप में वास किया जाता है।

 इसमें प्रथम दिन भैरव के आकर्षण मंत्र मौरंग दौरंग मंत्र का जाप किया जाता है. दुसरे दिन झांग झांग झांग हांग हांग हांग हेंग हेंग महामंत्र से सभी क्रियाएँ की जाती हैं।

 फ़िर तीसरे दिन शमशान भैरव के महा मंत्र से साधना करने के बाद इस भैरव साधना का विसर्जन किया जाता है। 

भैरव साधना के बिना कोई भी वाम मार्गी पुरूष साधक नही हो सकता। जो साधक इस साधना को सफलता से पूरा कर लेता है उसके इक्षा मात्र से भक्तो के कष्ट दूर हो जाते हैं। 

अतः इसकी तांत्रिक साधना में बहुत महत्व है अतः आम लोगो से गुप्त रखा जाता है।

कामख्या योनी पूजा:

यह क्रिया १ दिवसीय होती है। इस पूजा में भैरव और भैरवी का होना अति आवश्यक होता है। तंत्र में योनी को ही श्रृष्टि का मुख्या द्वार बताया गया है। 

इसलिए जो उत्तम साधक होते हैं वह अपने किसी तांत्रिक साधना को करने से पहले योनी साधना अवश्य करते हैं।

 जो योनी का आदर नही करते उनपर माँ कभी प्रसन्न नही होती। इस पूजा की विधि को जान ने के लिए किसी वामाचार्य के पास जाना पड़ता है।यह भी गुप्त क्रिया है.

आप सभी को मेरी शुभकामनाएं साधना करें साधनामय बनें......

साधको को सूचित किया जाता हैं की हर चीज की अपनी एक सीमा होती हैं , इसलिए किसी भी साधना का प्रयोग उसकी सीमा में ही रहकर करे , और मानव होकर मानवता की सेवा करे अपने जीवन को उच्च स्तर पर ले जाएँ ,.

.चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

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Wednesday, January 30, 2019

प्रचंड भगवती धूमावती साधना




प्रचंड भगवती धूमावती साधना

प्रचंड भगवती धूमावती तंत्र की सातवी महाविद्या के रूप जगत में प्रसिद्धि हैं . दतिया मध्य प्रदेश में माँ बंगलामुखी सिद्धि पीठ के के समीप ही भगवती धूमावती का भी स्थान हैं .

 माँ भगवती धूमावती का साधना प्रयोग इस प्रकार हैं .

धूमावती मुखं पातु धूं धूं स्वाहास्वरूपिणी |
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुन्दरी ||
कल्याणी ह्रदयपातु हसरीं नाभि देशके |
सर्वांग पातु देवेशी निष्कला भगमालिना ||
सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेदभक्ति संयुतः |
सौभाग्यमयतं प्राप्य जाते देवितुरं ययौ ||

॥ धूं धूं धूं धूमावती स्वाहा॥

मंत्र जाप संख्या : - सवा लाख
दिशा :- दक्षिण
स्थान :- शमशान , शिवालय , सिद्धि पीठ , या निर्जन स्थान ,
समय :- रात्रि
दिन ;- शनिवार / या धूमावती जयंती
आसन :- सफ़ेद
वस्त्र :- काले रंग की धोती , कला वस्त्र , काला कम्बल ,
हवन :- ( दशांश ) हवन

विधि :-

मोहनी एकादशी या किसी भी शुक्रवार को स्नान आदि से निवित्र होकर कांशे की थाली में समस्त तांत्रिक पूजन सामग्री स्थापित करके पंचोपचार पूजन करना चाहिए

 व्यक्ति विशेष को वश में करने का अथवा सिद्धि का संकल्प लेते हुए , विधि - विधान पूर्वक गुरु - गणेश वंदना करके , मूल मंत्र का जाप करे , . जाप की पूर्णता पर दशांश हवन करके ब्राह्मण , एवं पांच कुवारी कन्यायो को भोजन सहित उपयुक्त दान - दक्षिणा देकर साधना को पूरा करे .इस महत्व पूर्ण सम्मोहनी साधना से साधक का व्यक्तित्व अत्यंत सम्मोहक और आकर्षक हो जाता हैं .उसके संपर्क में आने वाला कोई भी व्यक्ति प्रभावित हुए बिना नहीं रहता . 

यदि कोई साधना करने में असमर्थ हो , तो योग्य विद्द्वान द्वारा या साधना सम्पन्न करा के करवाकर सम्मोहनी कवच धारण करके उक्त लाभ प्राप्त कर सकता हैं .

साधना सामग्री :-

सिद्धि अधेर मंत्रो से अभिमंत्रित धूमावती यन्त्र . काले हकीक की या रुद्राक्ष की माला , गुड़हल के फूल , तेल का दीपक नैवेद्य , कपूर ,एवं पूजन की अन्य आवश्यक सामग्री ,. 

विधि :- 

भय रहित ह्रदय से नदी या तालाब में स्नान आदि से निवृत होकर पूर्ण विधि - विधान से एकाग्र भाव से साधना करें . 

मंत्र जाप की समाप्ति पर दशांश यज्ञ हवन करना चाहिए . किसी विशेष प्रयोजन हेतु यदि आप धूमावती साधना अनुष्ठान करने के इच्छुक हैं तो अपनी मनोकामना का स्पष्ट शब्दों में संकल्प करें . 

यह देवी साधक के सभी शत्रुओ को समाप्त कर देती हैं . इस देवी का सिद्ध साधक निर्भय हो जाता हैं .

किसी भी जानकारी और शंका के समाधान के लिये कमेन्ट कर सकते है,आपकी कोई भी राय मेरे लिये अमूल्य होगी.

Note:-

अगर आप योग से सम्बंधित किसी भी विषय पर जानना चाहते तो      नीचे लिखे दिए दिये पते पर संपर्क करे | 

साधना प्रायोग से सम्बंधित जानकारी के लिए फ़ोन पर बात करें .

आपको कहीं भी नहीं मिलने वाली अगर आप को कहीं मिल भी जाती है तो उसकी सही  विधि और सही विधान नहीं मिलेगा यह साधना केवल गुरु मुख और गुरुद्वारा ही मिल सकता है 

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है

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राजगुरु जी

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दाहिने और बायें गणेश






दाहिने और बायें गणेश

जीवन के दो रूप हर किसी के सामने होते है,पहला प्राप्त करना और दूसरा देना,देना तभी होता है जब प्राप्त होता है बिना मिले दिया भी क्या जा सकता है ? जीवन के प्रति दो धारणाये आदि काल से चली आ रही है जीवन का पहला हिस्सा लेने का और दूसरा हिस्सा देने का। 

पहले हिस्से मे कुंडली का बायां हिस्सा आता है,और देने के लिये दाहिना हिस्सा सामने आता है। इसी प्रकार से देवी देवता की द्रिष्टि की महत्ता को भी देखा गया है। दाहिनी नजर देने वाली होती है और बायीं नजर प्राप्त करने वाली होती है।

 बायां हिस्सा भौतिकता की नजर से और दाहिना हिस्सा आध्यात्मिकता की नजर से देखा जाता है। विघन हर्ता गणेश को हर कार्य मे पहले स्मरण किया जाता है उनकी पूजा भूतडामर तंत्र के अनुसार प्रथम मानी जाती है और उनके अन्दर एको रूप अनेका के प्रति भी मान्यता की धारणा आदिकाल से चली आ रही है। 

बायें सूंड वाले गणेश जी उन लोगो के लिये फ़लीभूत होती है जो कभी कभी गणेश जी की पूजा पाठ करना जानते है और केवल मानसिक धारणा को रखकर ही चलने वाले होते है लेकिन जो लोग जगत कल्याण की भावना से काम करते है लोगो के लिये सुख और समृद्धि का रूप प्रदान करते है साधारण जीवन नही जीकर बडे और विस्तृत जनसमुदाय के प्रति अपनी भावना को रखते है उनके लिये दाहिनी सूंड वाले गणेश जी की मान्यता काफ़ी हद तक फ़लीभूत होती है।

एक दोहा प्राचीन काल से भारतीय मान्यता मे गाया जाता है :-

सदा भवानी दाहिने सन्मुख रहे गणेश। पांच देव रक्षा करें ब्रह्मा विष्णु महेश॥

इस दोहे का अर्थ है कि शक्ति रूपा माता दुर्गा हमेशा दाहिने रहे,सामने गणेश जी रहे और इन दोनो के अलावा तीनो देव ब्रह्मा (शरीर के बीच में) विष्णु (शरीर के बायें) और महेश यानी शिवजी (शरीर के दाहिने) विराजकर रक्षा करते रहे। इस दोहे के अनुसार शक्ति का रूप हमेशा दाहिने ही होता है और दाहिने हाथ से दाहिने तरफ़ के कार्यों से और दाहिनी कार्य प्रणाली से लोग अपने अपने कार्य को शीघ्र निपटाने की क्षमता रखते है,

धरती की घूमने की क्रिया भी बायें से दाहिने होती है आदि बातो से दाहिनी तरफ़ का प्रकार हमेशा सही माना जाता है और सीधे उल्टे का रूप भी दाहिने और बायें से लिया जाता है। जिनका दाहिना सक्षम होता है वे दूसरो को सहायता दिया करते है और जिनका बांयां सक्षम होता है वे लोगो की सहायता लिया करते है।

गणेश जी की मान्यता के लिये मेष राशि वालो के लिये लाल रंग के दाहिने वृष राशि वालो के लिये सफ़ेद गणेश बायें मिथुन राशि के लिये हरे गणेश दाहिने कर्क राशि के लिये स्फ़टिक के गणेश बायें सिंह राशि के लिये गुलाबी गणेश दाहिने कन्या राशि के लिये मटमैले रंग के गणेश बायें तुला राशि के लिये सफ़ेद गणेश दाहिने वृश्चिक राशि के लिये कत्थई गणेश बायें धनु राशि के लिये पीले गणेश दाहिने मकर राशि के लिये काले गणेश बायें कुम्भ राशि के लिये काले सफ़ेद धारी वाले गणेश दाहिने और मीन राशि के लिये सुरमई (स्लेटी) रंग के गणेश बायें की मान्यता है जिनके पास अलावा रंगो के गणेश जी है और वे अपने अपने अनुसार प्राप्त नही कर सकते है तो गणेश जी की प्रतिमा को अपनी अपनी राशि के अनुसार पोशाक पहिनाकर बनाया जा सकता है।

दाहिनी सूंड वाले गणेश जी को घर मे रखा जा सकता है लेकिन पूजा स्थान मे ही रखा जाता है लेकिन बायें सूंड वाले गणेश जी को दरवाजे तक ही सीमित रखा जाता है घर के अन्दर उनकी मान्यता नही होती है बायीं तरफ़ वाले गणेश जी को दरवेश यानी दरवाजे की रक्षा करने वाले देवता के रूप मे मानी जाती है। 

अक्सर वास्तु विद अपनी बुद्धि से कहने लगते है कि गणेश जी के पीछे गरीबी होती है और आगे अमीरी होती है लेकिन यह कथन वास्तव मे आस्तित्वहीन है,कारण गणेश जी सामने से विघ्न विनाशक है तो पीछे से रक्षा करने वाले है,इसलिये गणेश जी के पीछे चलने वाले लोग काफ़ी सम्पन्न और सुखी रहते है गणेश जी के आगे रहने वाले लोग हमेशा किसी न किसी बाधा से इसलिये पीडित होते है क्योंकि मानवीय शरीर के अन्दर कोई न कोई अवगुण होगा ही और उस अवगुण की प्रताणित होने वाली पीडा मे लोग आहत होते रहते है।

बायीं तरफ़ सूंड वाले गणेश जी को किसी भी समय पूजा जा सकता है और कहीं भी पूजा की जा सकती है लेकिन दाहिनी सूंड वाले गणेश जी को केवल पूजा स्थान मे ही मान्यता है और उनकी पूजा गणेश जी के लिये मान्य अवसरो पर ही की जाती है। 

गणेश जी को भूल कर भी गीली मिठाई या शर्बत आदि नही चढाया जाता है इनके लिये बुध प्रधान होने के कारण केवल गोल और सूखी मिठाई ही चढाई जाती है। गणेशजी को लोग दूर्वा चढाने का उपक्रम भी करते है लेकिन दूर्वा को केवल गणेश जी को स्थापित करने के समय या घर मे लाने के समय प्रयोग मे लाया जाता है,इसका भी एक भेद माना जाता है कि दूर्वा गणेश जी को प्रिय नही है यह उनकी सवारी मूषकराज को पसंद है और गणेश जी को स्थान तक लाने मे उनका भी योगदान होता है।

 जिसके पूजा स्थान मे चूहे और चुहियाओं के द्वारा मींगणी छोड दी जाती है उन्हे समझ लेना चाहिये कि उनके पूजा स्थान की जगह को गणेश जी छोड चुके है,उन्हे दुवारा से गणेश की तिथि में स्थापना करने के बाद उनकी पूजा अर्चना शुरु करनी चाहिये। गणेश जी का आसन भी गोल होना चाहिये और उनके लिये पूजा मे प्रयोग करने वाले बर्तन आदि भी गोल होने चाहिये,गणेश जी को केवल उनकी पूजा की तिथियों मे ही स्नान करवना चाहिये रोजाना उन्हे स्नान नही करवाया जाता है।

 वस्त्र बदलने के समय भी उनके जनेऊ को कभी नही उतारना चाहिये,दशहरा के दिन उनके डंड को बदल देना चाहिये और डंड का रंग और बनावट भी बदलते रहना चाहिये। पूजा मे इन्हे रखने के लिये दाहिनी सूंड वाले गणेश जी को पहले रखना चाहिये और उनका चेहरा दक्षिण दिशा को देखते हुये होना चाहिये।
(श्री गणेशाय नम:)

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आपको कहीं भी नहीं मिलने वाली अगर आप को कहीं मिल भी जाती है तो उसकी सही  विधि और सही विधान नहीं मिलेगा यह साधना केवल गुरु मुख और गुरुद्वारा ही मिल सकता है 

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है

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राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

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नाहरसिंह वीर साधना






वीर साधना


नाहरसिंह वीर साधना 

नाहरसिंह वीर किसी भी बड़ी से बड़ी भूत प्रेत आदि समस्या का तुरंत निपटारा करने में सक्षम है ! सिद्ध होने के बाद यह वीर पूर्ण रूप से आज्ञाकरी होता है ! यह साधना हिमाचल प्रदेश और हिमाचल के साथ सटे पंजाब के इलाके में अधिक प्रचलित है ! 

यही वीर सिद्ध बाबा बालक नाथ जी के मंदिर के बाहर पहरा देता है और उनके भक्तो की समस्याएँ दूर करता है ! नाहरसिंह वीर की साधना करने के बाद व्यक्ति बड़े से बड़े कार्य को भी बड़ी आसानी से सिद्ध कर सकता है ! इस साधना में वीर प्रत्यक्ष होता है !

|| मन्त्र ||

वीर दा वीर बाबा बडभाग सिंह दा वजीर
हाजिर हो मेरे नाहरसिंह वीर

|| विधि ||

इस मन्त्र की प्रतिदिन 21माला जाप करे ! माला कोई भी इस्तेमाल कर सकते है और आसन का भी कोई विधान नहीं है ! किसी उजाड़ स्थान में रात्रि 10 बजे के बाद आसन लगाये और आसन जाप पढ़ शरीर कीलन मन्त्र जपे और अपने चारों तरफ रक्षा घेरा बनाये !

उस घेरे के अन्दर मिटटी के बर्तन में शराब रखे और सरसों के तेल का दीपक जलाये ! फिर गुरु मन्त्र का जाप करे और गुरुदेव से मन्त्र जप की आज्ञा ले !

उसके बाद गणेश पूजन करे और मन्त्र जप करे ! जाप समाप्त होने तक किसी भी हालत में बाहर न आये, कुछ डरावने अनुभव होंगे

यह क्रिया आपको पूरे 41 दिन करनी है !
जब वीर प्रत्यक्ष हो तो वीर से इच्छित वर मांग ले और इस साधना और सिद्धि की चर्चा और अपना अनुभव गुप्त रखे ! इस साधना को भूलकर भी अपने घर में न करे !

इस साधना के दम पर आप अपने शत्रुओं को परास्त कर सकते है और अपने बहुत से रुके हुए कार्य करवा सकते है ! यह साधना बहुत उग्र है इसलिए गुरु आज्ञा से ही करे ! साधना के दौरान कुछ आवाजें सुनाई देगी पर कुछ दिनों के बाद सब शांत हो जायेगा !


लौन्किया वीर

।। मन्त्र ।।

लौन्कडिया वीर भागे भागे आओ
दौड़े दौड़े आओ, जैसे दुर्गा द्वारे कूदे
वैसे मेरे द्वारे कूदो
रावण जी के सेनापति पाताल के राजा
देखा लौन्कडिया वीर तेरी हजारी का तमाशा!

।। साधना विधि ।।

इस साधना को आप किसी भी दिन से शुरू कर सकते है !

आसन पर बैठकर आसन जाप पढ़े और शरीर कीलन कर रक्षा घेरा बनाये !

एक तेल का दीपक जलाएं और गुरुदेव से आज्ञा लेकर गुरुमंत्र जपे और गणेश जी का पूजन करे , फिर इस मन्त्र का 15 माला जाप करे !

यह क्रिया आपको 41 दिन करनी है ! हररोज दूध में जलेबी उबालकर पूजा के समय पास रखले और बाद में उजाड़ स्थान पर रख आये !

अंतिम दिन किसी ११ साल के लड़के को एक गुली डंडा और दक्षिणा दे!

।। प्रयोग विधि ।।

लौन्कडिया वीर से जब भी कोई काम करवाना हो तो जलेबी को दूध में उबालकर भोग तैयार करले और एक माला मन्त्र की जपकर कार्य बोल दे और सामग्री उजाड़ स्थान में रखे

रखता वीर

|| मन्त्र ||

रखता वीर लै कर्द कलेजा चीर
मेरा वैरी तेरा भछ
ताइओ मुड़ी पीके रत्त
चले मन्त्र फुरे वाचा
देखां रखता वीर तेरी हाजरी का तमाशा !

|| विधि ||

प्रतिदिन रात्रि 10 बजे आसन पर बैठे और आसन जाप और शरीर कीलन मंत्र पढकर रक्षा घेरा बनाएँ ! उसके बाद गुरु पूजन और गणेश पूजन करे और उनसे मंत्र जप की आज्ञा ले ! फिर अपने सामने उबले हुए चावलों में पांच चम्मच घी और पांच चम्मच शक्कर मिलाकर मिटटी के बर्तन में रखे और थोड़ी सी शराब भी मिटटी के बर्तन में रखे ! अब ऊपर दिए मंत्र का ढाई घंटे जप करे , जप के दौरान किसी भी हालत में रक्षा घेरे से बाहर ना आयें ! यह साधना किसी नदी के किनारे या उजाड़ स्थान में करे और इस पूरी क्रिया के दौरान गाय के घी का दीपक जलता रहना चाहिए ! यह साधना आपको 41 दिन करनी है !

|| प्रयोग विधि ||

जब भी कोई काम करवाना हो तो इसी प्रकार मिटटी के बर्तन में सारी सामग्री और शराब उजाड़ स्थान में रखे और 11 बार मंत्र पढ़कर अपना कार्य बोल दे , आपका कार्य सिद्ध हो जायेगा ! यदि वीर प्रत्यक्ष हो जाएँ तो उसे जाहरवीर बाबा और गुरु गोरखनाथ जी की कसम खिलाकर अंगूठे पर स्थापित होने के लिए कहे और यह वचन ले कि जब भी मैं चुटकी बजाकर कोई कार्य कहूँगा उस कार्य को सिद्ध करना पड़ेगा !

चेतावनी – 

यह एक तीव्र साधना है इसलिए इसे गुरु आज्ञा से ही करे ! किसी भी तरह के फायदे और नुक्सान की जिम्मेदारी हमारी नहीं है !

इस साधना को करते समय मे बडि विचित्र अनुभूतिया देखनि मिल सकति है.ज्यो किसीके पास plz share मत किजिये.

नोटः-

शुद्ध उच्चारण के साथ किसी साधक के मार्गदर्शन में इन मंत्रों का प्रयोग करना ही लाभकर होगा।यदि किसी भी प्रकार की दिक्कते हो,तो मुझसे सम्पर्क कर सकते है।

आप सभी को मेरी शुभकामनाएं साधना करें साधनामय बनें......

साधको को सूचित किया जाता हैं की हर चीज की अपनी एक सीमा होती हैं , इसलिए किसी भी साधना का प्रयोग उसकी सीमा में ही रहकर करे , और मानव होकर मानवता की सेवा करे अपने जीवन को उच्च स्तर पर ले जाएँ ,.

.चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

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Tuesday, January 29, 2019

हेरम्ब गणपति साधना




हेरम्ब गणपति साधना

रोग, चिंता, सर्वदुःख निवारण के लिए 

रोग, चिंता, मानसिक तनाव आदि मानव जीवन का अभिशाप है, जो अच्छे-भले चल रहे जीवन में विष घोल देता है। रोग छोटा या बड़ा कोई भी हो, 

यदि उसका समय पर निवारण न किया जाए, तो मनुष्य की समस्त कार्यशक्ति क्षीण हो जाती है, और वह कुछ भी नहीं कर पाता है, दूसरों की दया दृष्टी पर निर्भर होकर मात्र पंगु बनकर रह जाता है। 

आज जिस वातावरण में हम सांस ले रहे है, इसमे मनुष्य का रोगी होना स्वाभाविक है। जहां न शुद्ध वायु है, न जल है, और न ही शुद्ध भोजन है, ऐसी स्थिति में रोगी होना कोई आश्चर्यजनक नहीं। इसलिए मधुमेह, ह्रदय रोग, टी. बी. आदि असाध्य रोग तीव्रता से हो रहे है।

हेरम्ब गणपति साधना आरोग्य एवं मानसिक शांति प्राप्ति का एक सुंदर उपाय है, इसके प्रभाव से जहां कायाकल्प होता है, वहीं साधक में एक संजीवनी शक्ति का संचार होता है, जिससे उसे कैसा भी भयंकर रोग हो, उस पर नियंत्रण प्राप्त कर वह स्वस्थ, यौवनवान बन जाता है।

आप प्रातः स्नान आदि नित्य क्रिया के बाद अपने पूजा स्थान में पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठें। धुप और दीप जला लें। अपने सामने पंचपात्र में जल भी ले लें। 

इन सभी सामग्रियों को आप चौकी पर रखें जिस पर लाल वस्त्र बिछा हुआ हो। पहले स्नान, तिलक, अक्षत, धुप, दीप, पुष्प आदि से गुरु चित्र का संक्षिप्त पूजन करें। उसके बाद गुरु मंत्र की दो माला जप करें।

गणपति पूजन

फिर गुरु चित्र के सामने किसी प्लेट पर कुंकुम या केसर से स्वस्तिक चिन्ह बनाकर 'हेरम्ब गणपति यंत्र' को स्थापित करें।

दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करें -

ॐ गनाननं भूत गणाधिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारू भक्षणं ।
उमासुतं शोकविनाशकरकंनमामि विघ्नेश्वर पंड़्क्जम ॥

फिर निम्न मंत्रों का उच्चारण करते हुए पूजन करें -

ॐ गं मंगलमूर्तये नमः समर्पयामी ।
ॐ गं एकदन्ताय नमः तिलकं समर्पयामी ।
ॐ गं सुमुखाय नमः अक्षतान समर्पयामी ।
ॐ गं लम्बोदराय नमः धूपं दीपं अघ्रापयामी , दर्शयामि ।
ॐ गं विघ्ननाशाय नमः पुष्पं समर्पयामी ।

इसके बाद अक्षत और कुंकुम से निम्न मंत्र बोलते हुए यंत्र पर चढाएं -

ॐ लं नमस्ते नमः । ॐ त्वमेव तत्वमसि । ॐ त्वमेव केवलं कर्त्तासि ।
ॐ त्वमेवं केवलं भार्तासि । ॐ त्वमेवं केवलं हर्तासी । 

फिर 'हेरम्ब माला' से निम्न मंत्र की ५ माला ११ दिन तक जप करे -

ॐ क्लीं ह्रीं रोगनाशाय हेरम्बाय फट

इस साधना को करते समय मे बडि विचित्र अनुभूतिया देखनि मिल सकति है.ज्यो किसीके पास plz share मत किजिये.

नोटः-

शुद्ध उच्चारण के साथ किसी साधक के मार्गदर्शन में इन मंत्रों का प्रयोग करना ही लाभकर होगा।यदि किसी भी प्रकार की दिक्कते हो,तो मुझसे सम्पर्क कर सकते है।

आप सभी को मेरी शुभकामनाएं साधना करें साधनामय बनें......

साधको को सूचित किया जाता हैं की हर चीज की अपनी एक सीमा होती हैं , इसलिए किसी भी साधना का प्रयोग उसकी सीमा में ही रहकर करे , और मानव होकर मानवता की सेवा करे अपने जीवन को उच्च स्तर पर ले जाएँ ,.

.चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

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वामाचार काली योनी साधना



वामाचार काली योनी साधना


महाकाली, महाकाल की वह शक्ति है जो काल व समय को नियन्त्रित करके सम्पूर्ण सृष्टि का संचालन करती हैं। आप दसों महाविद्याओं में प्रथम हैं और आद्याशक्ति कहलाती हैं। 

चतुर्भुजा के स्वरूप में आप चारों पुरूषार्थों को प्रदान करने वाली हैं जबकि दस सिर, दस भुजा तथा दस पैरों से युक्त होकर आप प्राणी की ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों को गति प्रदान करने वाली हैं।

 शक्ति स्वरूप में आप शव के उपर विराजित हैं। इसका अभिप्राय यह है कि शव में आपकी शक्ति समाहित होने पर ही शिव, शिवत्व को प्राप्त करते हेैं। यदि शक्ति को शिव से पृथक कर दिया जाये तो शिव भी शव-तुल्य हो जाते हैं। शिव-ई = शव । 

बिना शक्ति के सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड और शिव शव के समान हैं। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि इस सम्पूर्ण सृष्टि में शिव और शक्ति ही सर्वस्व हैं। उनके अतिरिक्त किसी का कोई आस्तित्व नहीं है।

आज के युग में माँ महाकाली की साधना कल्पवृक्ष के समान है क्योकि ये कलयुग में शीघ्र अतिशीघ्र फल प्रदान करने वाली महाविद्याओं में से एक महा विद्या है. 

जो साधक महाविद्या के इस स्वरुप की साधना करता है उसका मानव योनि में जन्म लेना सार्थक हो जाता है क्योकि एक तरफ जहाँ माँ काली अपने साधक की भौतिक आवश्कताओं को पूरा करती है वहीँ दूसरी तरफ उसे सुखोपभोग करवाते हुए एक-छत्र राज प्रदान करती है।

किसी भी शक्ति का बाह्य स्वरुप प्रतीक होता है उनकी अन्तः शक्तियों का जो की सम्बंधित साधक को उन शक्तियों का अभय प्रदान करती हैं, अष्ट मुंडों की माला पहने माँ यही तो प्रदर्शित करती है की मैं अपने हाथ में पकड़ी हुयी ज्ञान खडग से सतत साधकों के अष्ट पाशों को छिन्न-भिन्न करती रहती हूँ, उनके हाथ का खप्पर प्रदर्शित करता है 

ब्रह्मांडीय सम्पदा को स्वयं में समेट लेने की क्रिया का,क्यूंकि खप्पर मानव मुंड से ही तो बनता है और मानव मष्तिष्क या मुंड को तंत्र शास्त्र ब्रह्माण्ड की संज्ञा देता है,अर्थात माँ की साधना करने वाला भला माँ के आशीर्वाद से ब्रह्मांडीय रहस्यों से भला कैसे अपरिचित रह सकता है।कालीकी साधना से

 वीरभाव,ऐश्वर्य,सम्मान,वाक् सिद्धि और उच्च तंत्रों का ज्ञान स्वतः ही प्राप्त होने लगता है,अद्भुत है माँ काली जिसने सम्पूर्ण ब्रह्मांडीय रहस्यों को ही अपने आप में समेत हुआ है और जब साधक इनकी कृपा प्राप्त कर लेता है तो एक तरफ उसे समस्त आंतरिक और बाह्य शत्रुओं से अभय प्राप्त हो जाता है वही उसे माँ काली की मूल आधार भूत शक्ति और गोपनीय तंत्रों में सफलता की कुंजी भी तो प्राप्त हो जाती है।

वाममार्ग

 शाक्तवाद का ही एक रूप माना जाता है। किसी काल में लघु एशिया से लेकर चीन तक, मध्य एशिया और भारत आदि दक्षिणी एशिया में शाक्तमत का एक न एक रूप में प्रचार रहा। कनिष्क के समय में महायानऔर वज्रयान मत का विकास हुआ था और बौद्ध शाक्तों के द्वारा पंचमकार की उपासना इनकी विशेषता थी।

वामतंत्र में जो प्रयोग ऋषियों ने किये वे सुख की खोज में अद्वितीय तो हैं ही उनके परिणाम विश्वसनीय भी हैं। वामाचार में प्रत्येक साधक को उसकी कामना और क्षमता के अनुसार भोग करने के संसाधन दिये जाते थे, जिन्हें पंच मकार कहते हैं, यथा, मांस, मदिरा, मछली, मुद्रा तथा मैथुन।

वाममार्ग के साधक ‘योनि’ को आद्याशक्ति मानते हैं क्योंकि सृष्टि का प्रथम बीजरूप उत्पत्ति यही है। ‘लिंग’ का अवतरण इसकी ही प्रतिक्रिया में होता है। इन दोनों के मिलने से सृष्टि का आदि परमाणु रूप उत्पन्न होता है।

 इन दोनों संरचनाओं के मिलने से ही इस ब्रह्माण्ड का या किसी भी इकाई का शरीर बनता है और इनकी क्रिया से ही उसमें जीवन और प्राणतत्व ऊर्जा का संरचना होता है। यह योनि  एवं लिंग का संगम प्रत्येक के शरीर में चल रहा है।

योनी तंत्र के अनुसार (जो माता पारवती और भगवान् शिव कासंवाद है ) ब्रह्मा ,विष्णु और महेश तीनों शक्तियों का निवासप्रत्येक नारी की योनी में है क्योंकि हर स्त्री देवी भगवती का ही अंशहै ।दश महाविद्या अर्थात देवी के दस पूजनीय रूप  भी योनी में निहित है.

 अतः पुरुष को अपना आध्यात्मिक उत्थान करने के लिएमन्त्र उच्चारण के साथ देवी के दस रूपों की अर्चना योनी पूजाद्वारा  करनी चाहिए। योनी तंत्र में भगवान् शिव ने स्पष्ट कहा हैकी श्रीकृष्ण ।श्रीराम और स्वयं शिव भी योनी पूजा से ही शक्तिमानहुए हैं ।

 भगवान् राम ,शिव जैसे योगेश्वर भी योनी पूजा कर योनीतत्त्व को सादर मस्तक पर धारण करते थे ऐसा योनी तंत्र में कहागया है क्योंकि बिना योनी की दिव्य उपासना के पुरुष कीआध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं है । 

सभी स्त्रियाँ परमेश्वरी भगवतीका अंश होने के कारण इस सम्मान की अधिकारिणी हैं”। अतःअपना भविष्य उज्जवल चाहने वाले पुरुषों को कभी भी स्त्रियों कातिरस्कार या अपमान नहीं करना चाहिए ।

यह साधना अत्यंत महत्वपूर्ण साधना है,जो आज तक गोपनीय रहा है। 

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Monday, January 28, 2019

अघोर भैरवी साधना








अघोर भैरवी साधना


अगर दुर्भाग्य साथ न छोडे और हर कदम पर बाधा बनकर उपस्थित हो,हर तरफ से जिवन मे खूशीया कौन नहि चाहते है परंतु पूर्वजन्म के येसे भि दोष है हमारे ज्यो हमे रुलाते है,ज्यो हमे शिष्य नहि बल्कि अनुयायि बनाते है.अब तो इन सारि दोषो से लढना है,नहि तो ये दोष हमे ज्योतीष्यीयो के गुलाम बना देगे.गुरु और इष्ट मे अविश्वास का जन्म कर देगे.

भगवान से भिक मांगना ये शिष्यो के कार्य नहि है.येसि अनुमति हमारे सदगुरुजी हमे नहि देते
 है..................................

जिवन मे खूशिया गुरुजी कि क्रुपा आर्शिवाद से हि मिल सकति है. और उन्हिकि क्रुपा से मिलि है  अघोर भैरवी साधना ज्यो अत्यंत प्रभावि है और जिवन कि सारि बाधाओको दुर कर देति है दोषो सहित.

साधना सामग्री :-

कालि हकीक माला, मट्टि का दीपक , काले वस्त्र और आसन ,कपूर .

विधि :-

सर्वप्रथम स्नान करके साधना मे प्रवेश किजिये ,दक्षिण दिशा कि और मुख करते हुये साधना करनी है. अघोर भैरवी साधना से पूर्व हि गुरुपूजन एवँ गुरुमंत्र जाप और निखिल रक्षा कवच कि पाठ आवश्यक है. 

मट्टि कि दीपक मे कपूर जलाये और अग्नि कि लौ को देखते हुये कालि हकिक माला से 9 मालाये जाप 8 दिन करनी आवश्यक है और 9 वे दिन हवन किजिये ( हवन मे आहुति के लिये काले तिल, लौंग, कालि मिर्च का हि उपयोग करे ) तभी साधना पूर्ण मानी जाति है ,यह साधना गुप्त नवरात्रि मे करनी है , किसि विशेष मनोकामना हेतु हम संकल्प ले सकते है.


मंत्र : -
॥ ॐ अघोरे ऎँ घोरे ह्रीँ सर्वत: सर्वसर्वेभ्यो घोरघोरतरे श्री नमस्तेस्तु रुद्ररुपेभ्य: क्लीँ सौ: नम: ॥

साधना समाप्ति के बाद माला को जल मे किसी भि काले वस्त्र मे एक नारियल और सुपारि कि साथ बान्धकर विसर्जित किजिये.और जिवन मे कोइ भि समस्या आये तो इसि दीपक मे थोडि कपूर जलाते हुये अपनि समस्या बोलकर थोडि मंत्रा जाप कर लिजिये किसी भि समय मे अनुकुलता प्राप्त होगि.

इस साधना को करते समय मे बडि विचित्र अनुभूतिया देखनि मिल सकति है.ज्यो किसीके पास plz share मत किजिये.

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Sunday, January 27, 2019

महाकाल साधना




महाकाल साधना


महाकाल तंत्र उद्धृत चतुर्भुज तीव्र महाकाल साधना
गोपनीय तंत्र ग्रंथो मे महाकाल तंत्र का नाम प्रसिद्द है. ५० पटलो मे यह ग्रन्थ अपने आप मे अद्भुत है.

 जिसमे मुख्य रूप से महाकाल से सबंधित साधनाए, देवी साधनाए तथा तंत्र चिकित्सा के ऊपर लिखा गया है. 

यह ग्रन्थ मे निहित ज्यदातर साधनाए बौद्ध वज्रयान पद्धति पर ही आधारित है. मूल रूप से देखा जाए तो यह पद्धति भारतीय वाममार्ग पद्धति पर आधारित है. लेकिन समयानुसार इसमें परिवर्तन होता गया जो की तिब्बती लामाओ की शोध तथा अनुभवगम्य रहा होगा.

 भगवान महाकाल जिस प्रकार भारतीय साधना पद्धति मे एक उग्र देव के रूप मे प्रचलित है ठीक उसी प्रकार तिब्बती वज्रयानी साधना मे भी उनका स्थान उतना ही महत्वपूर्ण रहा है. 

वज्रयान मे महाकाल से सबंधित मंडल को ब्स्कांगग्सो कहा जाता है जिसमे कई उपासक एक साथ महाकाल की साधना मे प्रवृत होते है. 

लेकिन इस ग्रन्थ मे मंत्र तिब्बती भाषा मे न हो कर संस्कृत मे दिये है जो की इसका मूल आधार भारतीय पद्दति को ही दर्शाता है. खैर, भगवान महाकाल नित्यकल्याणमय है. महाकाल आदि शिव का ही रूप है

और अघोर पंथ मे महाकाल का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान है. उग्र देवता की श्रेणी मे होने से इनकी साधनाए महत्तम तीक्ष्ण ही होती है.

 इस ग्रन्थ मे महाकाल के विविध मंत्रो को दिया गया है. जिसमे से एक रूप हे चतुर्भुज रूप. भगवान महाकाल स्मशानाधिस्थ बेठे है जिनकी चार भुजाए है. 

यह साधना मूल रूप से साधक मे आत्मिक शक्ति का विकास करती है तथा साधक मे साधना के विषयक मुख्य गुणों का विकास कराती है. 

जेसे की निर्भयता एवं एकाग्रता. इस चतुर्भुज महाकाल मंत्र को साधक सोमवार की रात्री मे ११.३० के बाद जपना शुरू करे.

 इससे पहले भगवान महाकाल का चित्र अपने सामने स्थापित करे और पूजन करे. उसके बाद रुद्राक्ष माला से निम्न चतुर्भुज महाकाल मंत्र का २१ माला जाप करे.

 यह क्रम अगले सोमवार तक जारी रहे. वस्त्र तथा आसान काले रंग का हो. दिशा उत्तर रहे.

ॐ ह्रीं ह्रीं हूं फट स्वाहा

इस मंत्र के प्रभाव से साधक को शरीर मे तापमान बढ़ता हुआ लग सकता है लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है, इस साधना मे यह सफलता का ही एक लक्षण है.

Note:-

अगर आप योग से सम्बंधित किसी भी विषय पर जानना चाहते तो      नीचे लिखे दिए दिये पते पर संपर्क करे | 

साधना प्रायोग से सम्बंधित जानकारी के लिए फ़ोन पर बात करें .

आपको कहीं भी नहीं मिलने वाली अगर आप को कहीं मिल भी जाती है तो उसकी सही  विधि और सही विधान नहीं मिलेगा यह साधना केवल गुरु मुख और गुरुद्वारा ही मिल सकता है 

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लहसुन तंत्र




लहसुन तंत्र 


लहसुन का नाम सुना होगा सबने आज मैं लहसुन के तंत्र प्रयोग बताने जा रहा हूँ जो कि यह अनुभूत प्रयोग है करिये यह उपाय और जीवन मे धन की कमी होने के कारण यह अचूक उपाय करिये धन की ज्यादा तंगी है, तो लहसुन की दो कलियों को लाल रंग के कपड़े में बांधकर एक पोटली बना लें और इस पोटली को जमीन में दबा दें।

 इससे आपके धन में जबरदस्त वृद्धि होगी और तंगी दूर हो जाएगी।

व्यापार में अगर लगातार घाटा हो रहा है, तो लहसुन की 5-7 कलियों को एक कपड़े में बांध लें और अपने दुकान, ऑफिस या फैक्ट्री के मुख्य दरवाजे पर टांग दें।

Note:-

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बाबा कलवा पौन की कहानी





बाबा कलवा पौन की कहानी


शिव सती की देह को लेके जगत मे घूमे ये जाने हर प्राणी
अब सुनो वीरभद्र की कलवा पौन तक की बनने की कहानी
कहते है अपनी करनी का यही सुधार मे लाना पड़ता है
कुछ आत्म ईछा से हो निपटना आसान है

पर कोई भाव को पूर्ण तक लाना पहुचाना पड़ता है
दक्ष की सेना और उसकी की मौत से वीरभद्र का युद्ध करने की प्यास न मिट पायी
इस ईछा को मन मे लिए वीर वीरभद्र को कुछ कमी सताई

सोचा कोई तो वीर मिले जो मेरे मन भरने तक अपनी शक्ति का जोर दिखाए
प्यास तब मिटे मेरी या तो मैं मरू या वोह मेरे हाथो मारा जाए
श्मशानी शक्ति का धारक हर देव शक्ति को अपने परख मे ला रहा था
जगत मे फिरता रहा न कोई पाया न ही कोई मिल पाया जो ये निभाता

वीरभद्र को देव शक्ति मे बराबरी का गुण न पाया
शिव का अंश अब अपनी ईछा पूर्ती को शिव के आगे ही आया
समय ने फेरा मारा शिव का रूद्र रूप आज शिव के सौम्य रूप को ललकारा
देव सभा काँपी धरा अब किसका वजन संभाले लीलाधारी की माया

जब देह पर वजन डाले शिव ही शिव से लड़ता गया न कोई जीता न कोई हारा
शिव की माया ने शिव पर ही जोर मारा
सभ्य और असभ्य की माया ने दोनों पर जोर बनाया
सौम्य रूप रंग ढंग मे रहा एक सा विकराल ने अपना पूर्ण रूप पाया

वीरभद्र जितना लड़ा शिव से उतना काला रंग पाया
जैसे जैसे वीरभद्र काला रंग पाता गया
वैसे मरघट का विनासकारी माया बल उस मे आता गया

वीरभद्र की विनासकारी माया बनाये परकाले
शिव अपनी शक्ति को बल परिक्षण को वीर के आगे डाले
शिव की माया मस्तिक मे वीराने की शांति बनके आई
शिव ने मरघट की माया नारी रूप मे लड़ाई मे आगे करायी

भाव शक्ति का भी वीर जैसा था
पर ये ना जाना वीरभद्र वीरो का वीर शिव की आन निभाने को मरघट की माया
बांधे वीर का शरीर माया ने माया काटी तब परिणाम आया

शक्ति ने शक्ति भाव मे जाके शरीर को शक्ति भाव का अर्थ समझाया
वीरभद्र ने भाव के जोर पर तब मानी अपनी हार तब वीर शक्ति के जोड़े मे आया

जब हुयी ईछा पूर्ति की बात मानी
वीर को जन कल्याण मे लाये शिव संगत ने बात जानी
शक्ति ने वीर को धुनें की गार मे समाया
गोरख नागा ने शिव कृपा से वीर को काले रंग मे पूर्ण शक्ति मे पाया

मरघट की पूरी माया आज भी वीर के हाथ रहती है
आज मरघट की माया को मरघट की माई भगत जगत मे दुनिया कहती है

छप्पन कलवे सिद्ध हो सके तो गोरख नाथ मनाना
मरघट की माया मे पहला सबसे बड़ा कलवा पौन है वीरभद्र भगत जगत ने माना
आज भी कलवा पौन को गुरु जी ने जन कल्याण मे सदा भगत समाज मे बिठाया है

देव देवी ने खूब मनाली
मरघट की शक्ति पर आज भी कलवा पौन पर ही पूर्ण मरघट की माया है
भगत समाज मे ये एक ऐसा वीर बाबा कलवा पौन है जो मरघट की शान कहलाता है
खुले मरघट मे पूजना चाहे जोड़े मरघट की माई को साथ लाता है
शिव श्मशानी अघोरी बस चिंता की आग मे तपके मरघट की भभूत मे नहाता है
बाबा कलवा पौन वीरो का वीर हर करम को अकेला निभा के दिखाता है

जन कल्याण मे सदा कलवा पौन को मनाना मरघट की माया है सोच समझ के चलाना
प्रजापति दक्ष से जब जंग हुयी तब रूद्र की फ़ौज़ बनायीं थी

वीरभद्र वीरो का सरदार रहा है शिव आज्ञा की पहली बात मन को भायी थी
आज के कुछ गुरु बाबा कलवा पौन की कड़ी साधना को भूल नकली से काम चलाते है
असली दवा से आराम होता है नकली चीज़ लेके कुछ दुनिया से ही बेकार मे जाते है



Note:-

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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...