Sunday, January 27, 2019

बाबा कलवा पौन की कहानी





बाबा कलवा पौन की कहानी


शिव सती की देह को लेके जगत मे घूमे ये जाने हर प्राणी
अब सुनो वीरभद्र की कलवा पौन तक की बनने की कहानी
कहते है अपनी करनी का यही सुधार मे लाना पड़ता है
कुछ आत्म ईछा से हो निपटना आसान है

पर कोई भाव को पूर्ण तक लाना पहुचाना पड़ता है
दक्ष की सेना और उसकी की मौत से वीरभद्र का युद्ध करने की प्यास न मिट पायी
इस ईछा को मन मे लिए वीर वीरभद्र को कुछ कमी सताई

सोचा कोई तो वीर मिले जो मेरे मन भरने तक अपनी शक्ति का जोर दिखाए
प्यास तब मिटे मेरी या तो मैं मरू या वोह मेरे हाथो मारा जाए
श्मशानी शक्ति का धारक हर देव शक्ति को अपने परख मे ला रहा था
जगत मे फिरता रहा न कोई पाया न ही कोई मिल पाया जो ये निभाता

वीरभद्र को देव शक्ति मे बराबरी का गुण न पाया
शिव का अंश अब अपनी ईछा पूर्ती को शिव के आगे ही आया
समय ने फेरा मारा शिव का रूद्र रूप आज शिव के सौम्य रूप को ललकारा
देव सभा काँपी धरा अब किसका वजन संभाले लीलाधारी की माया

जब देह पर वजन डाले शिव ही शिव से लड़ता गया न कोई जीता न कोई हारा
शिव की माया ने शिव पर ही जोर मारा
सभ्य और असभ्य की माया ने दोनों पर जोर बनाया
सौम्य रूप रंग ढंग मे रहा एक सा विकराल ने अपना पूर्ण रूप पाया

वीरभद्र जितना लड़ा शिव से उतना काला रंग पाया
जैसे जैसे वीरभद्र काला रंग पाता गया
वैसे मरघट का विनासकारी माया बल उस मे आता गया

वीरभद्र की विनासकारी माया बनाये परकाले
शिव अपनी शक्ति को बल परिक्षण को वीर के आगे डाले
शिव की माया मस्तिक मे वीराने की शांति बनके आई
शिव ने मरघट की माया नारी रूप मे लड़ाई मे आगे करायी

भाव शक्ति का भी वीर जैसा था
पर ये ना जाना वीरभद्र वीरो का वीर शिव की आन निभाने को मरघट की माया
बांधे वीर का शरीर माया ने माया काटी तब परिणाम आया

शक्ति ने शक्ति भाव मे जाके शरीर को शक्ति भाव का अर्थ समझाया
वीरभद्र ने भाव के जोर पर तब मानी अपनी हार तब वीर शक्ति के जोड़े मे आया

जब हुयी ईछा पूर्ति की बात मानी
वीर को जन कल्याण मे लाये शिव संगत ने बात जानी
शक्ति ने वीर को धुनें की गार मे समाया
गोरख नागा ने शिव कृपा से वीर को काले रंग मे पूर्ण शक्ति मे पाया

मरघट की पूरी माया आज भी वीर के हाथ रहती है
आज मरघट की माया को मरघट की माई भगत जगत मे दुनिया कहती है

छप्पन कलवे सिद्ध हो सके तो गोरख नाथ मनाना
मरघट की माया मे पहला सबसे बड़ा कलवा पौन है वीरभद्र भगत जगत ने माना
आज भी कलवा पौन को गुरु जी ने जन कल्याण मे सदा भगत समाज मे बिठाया है

देव देवी ने खूब मनाली
मरघट की शक्ति पर आज भी कलवा पौन पर ही पूर्ण मरघट की माया है
भगत समाज मे ये एक ऐसा वीर बाबा कलवा पौन है जो मरघट की शान कहलाता है
खुले मरघट मे पूजना चाहे जोड़े मरघट की माई को साथ लाता है
शिव श्मशानी अघोरी बस चिंता की आग मे तपके मरघट की भभूत मे नहाता है
बाबा कलवा पौन वीरो का वीर हर करम को अकेला निभा के दिखाता है

जन कल्याण मे सदा कलवा पौन को मनाना मरघट की माया है सोच समझ के चलाना
प्रजापति दक्ष से जब जंग हुयी तब रूद्र की फ़ौज़ बनायीं थी

वीरभद्र वीरो का सरदार रहा है शिव आज्ञा की पहली बात मन को भायी थी
आज के कुछ गुरु बाबा कलवा पौन की कड़ी साधना को भूल नकली से काम चलाते है
असली दवा से आराम होता है नकली चीज़ लेके कुछ दुनिया से ही बेकार मे जाते है



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 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है

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