महाकाल साधना
महाकाल तंत्र उद्धृत चतुर्भुज तीव्र महाकाल साधना
गोपनीय तंत्र ग्रंथो मे महाकाल तंत्र का नाम प्रसिद्द है. ५० पटलो मे यह ग्रन्थ अपने आप मे अद्भुत है.
जिसमे मुख्य रूप से महाकाल से सबंधित साधनाए, देवी साधनाए तथा तंत्र चिकित्सा के ऊपर लिखा गया है.
यह ग्रन्थ मे निहित ज्यदातर साधनाए बौद्ध वज्रयान पद्धति पर ही आधारित है. मूल रूप से देखा जाए तो यह पद्धति भारतीय वाममार्ग पद्धति पर आधारित है. लेकिन समयानुसार इसमें परिवर्तन होता गया जो की तिब्बती लामाओ की शोध तथा अनुभवगम्य रहा होगा.
भगवान महाकाल जिस प्रकार भारतीय साधना पद्धति मे एक उग्र देव के रूप मे प्रचलित है ठीक उसी प्रकार तिब्बती वज्रयानी साधना मे भी उनका स्थान उतना ही महत्वपूर्ण रहा है.
वज्रयान मे महाकाल से सबंधित मंडल को ब्स्कांगग्सो कहा जाता है जिसमे कई उपासक एक साथ महाकाल की साधना मे प्रवृत होते है.
लेकिन इस ग्रन्थ मे मंत्र तिब्बती भाषा मे न हो कर संस्कृत मे दिये है जो की इसका मूल आधार भारतीय पद्दति को ही दर्शाता है. खैर, भगवान महाकाल नित्यकल्याणमय है. महाकाल आदि शिव का ही रूप है
और अघोर पंथ मे महाकाल का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान है. उग्र देवता की श्रेणी मे होने से इनकी साधनाए महत्तम तीक्ष्ण ही होती है.
इस ग्रन्थ मे महाकाल के विविध मंत्रो को दिया गया है. जिसमे से एक रूप हे चतुर्भुज रूप. भगवान महाकाल स्मशानाधिस्थ बेठे है जिनकी चार भुजाए है.
यह साधना मूल रूप से साधक मे आत्मिक शक्ति का विकास करती है तथा साधक मे साधना के विषयक मुख्य गुणों का विकास कराती है.
जेसे की निर्भयता एवं एकाग्रता. इस चतुर्भुज महाकाल मंत्र को साधक सोमवार की रात्री मे ११.३० के बाद जपना शुरू करे.
इससे पहले भगवान महाकाल का चित्र अपने सामने स्थापित करे और पूजन करे. उसके बाद रुद्राक्ष माला से निम्न चतुर्भुज महाकाल मंत्र का २१ माला जाप करे.
यह क्रम अगले सोमवार तक जारी रहे. वस्त्र तथा आसान काले रंग का हो. दिशा उत्तर रहे.
ॐ ह्रीं ह्रीं हूं फट स्वाहा
इस मंत्र के प्रभाव से साधक को शरीर मे तापमान बढ़ता हुआ लग सकता है लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है, इस साधना मे यह सफलता का ही एक लक्षण है.
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चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।
बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है
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राजगुरु जी
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