माँ धूमावती
दस महाविद्याओं में सातवीं महाविद्या हैं माँ धूमावती। इन्हे अलक्ष्मी या ज्येष्ठालक्ष्मी यानि लक्ष्मी की बड़ी बहन भी कहा जाता है।
ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष अष्टमी को माँ धूमावती जयन्ति के रूप मइ मनाया जाता है।
मां धूमावती विधवा स्वरूप में पूजी जाती हैं तथा इनका वाहन कौवा है, ये श्वेत वस्त्र धारण कि हुए, खुले केश रुप में होती हैं। धूमावती महाविद्या ही ऐसी शक्ति हैं जो व्यक्ति की दीनहीन अवस्था का कारण हैं। विधवा के आचरण वाली यह महाशक्ति दुःख दारिद्रय की स्वामिनी होते हुए भी अपने भक्तों पर कृपा करती हैं।
इनका ध्यान इस प्रकार बताया है ’- अत्यन्त लम्बी, मलिनवस्त्रा, रूक्षवर्णा, कान्तिहीन, चंचला, दुष्टा, बिखरे बालों वाली, विधवा, रूखी आखों वाली, शत्रु के लिये उद्वेग कारिणी, लम्बे विरल दांतों वाली, बुभुक्षिता, पसीने से आद्र्र, स्तन नीचे लटके हो, सूप युक्ता, हाथ फटकारती हुई, बडी नासिका, कुटिला , भयप्रदा,कृष्णवर्णा, कलहप्रिया, तथा जिसके रथ पर कौआ बैठा हो ऐसी देवी।
देवी का मुख्य अस्त्र है सूप जिसमे ये समस्त विश्व को समेत कर महाप्रलय कर देती हैं।
दस महाविद्यायों में दारुण विद्या कह कर देवी को पूजा जाता है। शाप देने नष्ट करने व संहार करने की जितनी भी क्षमताएं है वो देवी के कारण ही है। क्रोधमय ऋषियों की मूल शक्ति धूमावती हैं जैसे दुर्वासा, अंगीरा, भृगु, परशुराम आदि।
सृष्टि कलह के देवी होने के कारण इनको कलहप्रिय भी कहा जाता है , चौमासा ही देवी का प्रमुख समय होता है जब इनको प्रसन्न किया जाता है। नरक चतुर्दशी देवी का ही दिन होता है जब वो पापियों को पीड़ित व दण्डित करती हैं।
देश के कयी भागों में नर्क चतुर्दशी पर घर से कूड़ा करकट साफ कर उसे घर से बाहर कर अलक्ष्मी से प्रार्थना की जाती है की आप हमारे सारे दारिद्र लेकर विदा होइए।
ज्योतिष शास्त्रानुसार मां धूमावती का संबंध केतु ग्रह तथा इनका नक्षत्र ज्येष्ठा है। इस कारण इन्हें ज्येष्ठा भी कहा जाता है। ज्योतिष शस्त्र अनुसार अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में केतु ग्रह श्रेष्ठ जगह पर कार्यरत हो अथवा केतु ग्रह से सहयता मिल रही ही तो व्यक्ति के जीवन में दुख दारिद्रय और दुर्भाग्य से छुटकारा मिलता है। केतु ग्रह की प्रबलता से व्यक्ति सभी प्रकार के कर्जों से मुक्ति पाता है और उसके जीवन में धन, सुख और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है।
देवी का प्राकट्य :-
पहली कहानी तो यह है कि जब सती ने पिता के यज्ञ में स्वेच्छा से स्वयं को जला कर भस्म कर दिया तो उनके जलते हुए शरीर से जो धुआँ निकला, उससे धूमावती का जन्म हुआ. इसीलिए वे हमेशा उदास रहती हैं. यानी धूमावती धुएँ के रूप में सती का भौतिक स्वरूप है. सती का जो कुछ बचा रहा- उदास धुआँ।
दूसरी कहानी यह है कि एक बार सती शिव के साथ हिमालय में विचरण कर रही थी. तभी उन्हें ज़ोरों की भूख लगी. उन्होने शिव से कहा-” मुझे भूख लगी है.
मेरे लिए भोजन का प्रबंध करें.” शिव ने कहा-” अभी कोई प्रबंध नहीं हो सकता.” तब सती ने कहा-” ठीक है, मैं तुम्हें ही खा जाती हूँ। ” और वे शिव को ही निगल गयीं। शिव, जो इस जगत के सर्जक हैं, परिपालक हैं।
फिर शिव ने उनसे अनुरोध किया कि’ मुझे बाहर निकालो’, तो उन्होंने उगल कर उन्हें बाहर निकाल दिया. निकालने के बाद शिव ने उन्हें शाप दिया कि ‘ अभी से तुम विधवा रूप में रहोगी.’
तभी से वे विधवा हैं-अभिशप्त और परित्यक्त.भूख लगना और पति को निगल जाना सांकेतिक है. यह इंसान की कामनाओं का प्रतीक है, जो कभी ख़त्म नही होती और इसलिए वह हमेशा असंतुष्ट रहता है. माँ धूमावती उन कामनाओं को खा जाने यानी नष्ट करने की ओर इशारा करती हैं।
नोट :-
अनुभवी साधको का मन्ना है की गृहस्त लोगों को देवी की साधना नही करनी चाहिए। वहीँ कुछ का ऐसा मन्ना है की यदि इनकी साधना करनी भी हो घर से दूर एकांत स्थान में अथवा एकाँकी रूप से करनी चाहिए।
विशेष ध्यान देने की बात ये है की इन महाविद्या का स्थायी आह्वाहन नहीं होता अर्थात इन्हे लम्बे समय तक घर में स्थापित या विराजमान होने की कामना नहीं करनी चाहिए क्यूंकि ये दुःख क्लेश और दरिद्रता की देवी हैं ।
इनकी पूजा के समय ऐसी भावना करनी चाहिए की देवी प्रसन्न होकर मेरे समस्त दुःख, रोग , दरिद्रता ,कष्ट ,विघ्न ,बढ़ाये, क्लेशादी को अपने सूप में समेत कर मेरे घर से विदा हो रही हैं और हमें धन , लक्ष्मी , सुख एवं शांति का आशीर्वाद दे रही हैं ।
निरंतर इनकी स्तुति करने वाला कभी धन विहीन नहीं होता व उसे दुःख छूते भी नहीं , बड़ी से बड़ी शक्ति भी इनके सामने नहीं टिक पाती इनका तेज सर्वोच्च कहा जाता है। श्वेतरूप व धूम्र अर्थात धुंआ इनको प्रिय है पृथ्वी के आकाश में स्थित बादलों में इनका निवास होता है।
देवी की कृपा से साधक धर्म अर्थ काम और मोक्ष प्राप्त कर लेता है। गृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्य रूप में सिर्फ पूजा करनी चाहिए।
ऐसा मन जाता है की कुण्डलिनी चक्र के मूल में स्थित कूर्म में इनकी शक्ति विद्यमान होती है। देवी साधक के पास बड़े से बड़ी बाधाओं से लड़ने और उनको जीत लेने की क्षमता आ जाती है।
महाविद्या धूमावती के मन्त्रों से बड़े से बड़े दुखों का नाश होता है।
१- देवी माँ का स्वत: सिद्ध महामंत्र है-
ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा
अथवा
ॐ धूं धूं धूमावती ठ: ठ:
इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं व देवी को पुष्प अत्यंत प्रिय हैं इसलिए केवल पुष्पों के होम से ही देवी कृपा कर देती है,आप भी मनोकामना के लिए यज्ञ कर सकते हैं,जैसे-
1. राई में नमक मिला कर होम करने से बड़े से बड़ा शत्रु भी समूल रूप से नष्ट हो जाता है
2.नीम की पत्तियों सहित घी का होम करने से लम्बे समस से चला आ रहा ऋण नष्ट होता है
3.जटामांसी और कालीमिर्च से होम करने पर काल्सर्पादी दोष नष्ट होते हैं व क्रूर ग्रह भी नष्ट होते हैं
4. रक्तचंदन घिस कर शहद में मिला लेँ व जौ से मिश्रित कर होम करें तो दुर्भाग्यशाली मनुष्य का भाग्य भी चमक उठता है
5.गुड व गाने से होम करने पर गरीबी सदा के लिए दूर होती है
6 .केवल काली मिर्च से होम करने पर कारागार में फसा व्यक्ति मुक्त हो जाता है
7 .मीठी रोटी व घी से होम करने पर बड़े से बड़ा संकट व बड़े से बड़ा रोग अति शीग्र नष्ट होता है
२- धूमावती गायत्री मंत्र:-
ओम धूमावत्यै विद्महे संहारिण्यै धीमहि तन्नो धूमा प्रचोदयात।
वाराही विद्या में इन्हे धूम्रवाराही कहा गया है जो शत्रुओं के मारन और उच्चाटन में प्रयोग की जाती है।
३ ) देवी धूमावती का शत्रु नाशक मंत्र
ॐ ठ ह्रीं ह्रीं वज्रपातिनिये स्वाहा
सफेद रंग के वस्त्र और पुष्प देवी को अर्पित करें, नवैद्य प्रसाद,पुष्प,धूप दीप आरती आदि से पूजन करें।
रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें, रात्री में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
सफेद रंग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें दक्षिण दिशा की ओर मुख रखें
यदि शत्रु से दुखी हैं तो इनकी पूजा करते हुए ऐसी कामना करनी चाहिए की देवी समस्त दुःख रोग क्लेश दारिद्र के साथ अपने रौद्र रूप में शत्रु के घर में स्थायी रूप से विराजमान हो गयी हैं। देवी के वहां कौए ने अपने कुटुंब के साथ शत्रु के घर को अपना डेरा बना लिया है और शत्रु का घर निर्जन होने लगा है।
४ ) देवी धूमावती का धन प्रदाता मंत्र
ॐ धूं धूं सः ह्रीं धुमावतिये फट
नारियल, कपूर व पान देवी को अर्पित करें, काली मिर्च से हवन करें , रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें।
५ ) देवी धूमावती का ऋण मोचक मंत्र
ॐ धूं धूं ह्रीं आं हुम
देवी को वस्त्र व इलायची समर्पित करें , रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें।
किसी बृक्ष के किनारे बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है। सफेद रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें , उत्तर दिशा की ओर मुख रखें। खीर प्रसाद रूप में चढ़ाएं।
६ ) देवी धूमावती का सौभाग्य बर्धक मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं धूं धूं धुमावतिये ह्रीं ह्रीं स्वाहा
देवी को पान अर्पित करना चाहिए
पूर्व दिशा की ओर मुख रख रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें। एकांत में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है , सफेद रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें।
पेठा प्रसाद रूप में चढ़ाएं।
७ ) देवी धूमावती का ग्रहदोष नाशक मंत्र
ॐ ठ: ठ: ठ: ह्रीं हुम स्वाहा
देवी को पंचामृत अर्पित करें
उत्तर दिशा की ओर मुख रख रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें। देवी की मूर्ती के निकट बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है सफेद रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें।
नारियल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
विशेष पूजा सामग्रियां- पूजा में जिन सामग्रियों के प्रयोग से देवी की विशेष कृपा मिलाती है
सफेद रंग के फूल, आक के फूल, सफेद वस्त्र व पुष्पमालाएं , केसर, अक्षत, घी, सफेद तिल, धतूरा, आक, जौ, सुपारी व नारियल , चमेवा व सूखे फल प्रसाद रूप में अर्पित करें।
सूप की आकृति पूजा स्थान पर रखें
दूर्वा, गंगाजल, शहद, कपूर, चन्दन चढ़ाएं, संभव हो तो मिटटी के पात्रों का ही पूजन में प्रयोग करें।
देवी की पूजा में सावधानियां व निषेध-
बिना गुरु दीक्षा के इनकी साधना कदापि न करें। थोड़ी सी भी चूक होने पर विपरीत फल प्राप्त होगा और पारिवारिक कलह दरिद्र का शिकार होंगे।
लाल वस्त्र देवी को कभी भी अर्पित न करें
साधना के दौरान अपने भोजन आदि में गुड व गन्ने का प्रयोग न करें
देवी भक्त ध्यान व योग के समय भूमि पर बिना आसन कदापि न बैठें
पूजा में कलश स्थापित न करें
व्यक्तिगत अनुभव :-
एक मित्र जो माँ धूमावती की साधना करते थे ने एक अष्टाक्षरी मन्त्र दिया था। रोज 21 जप मात्र करता था।
अचानक कुछ ऐसा हुआ की बड़ी देनदारी हो गयी और कुछ समझ नहीं आया की अब पैसे का इंतज़ाम कैसे हो।
माँ के उसी मन्त्र का जप शुरू कर दिया। 4 दिन में ही माँ की कृपा हुई और पैसों का इंतज़ाम हो गया।
ऐसा दो बार हुआ है इसलिए व्यक्तिगत अनुभव से तो यही कहूँगा की कृपा करने और धन देने में माँ धूमावती किसी दूसरी महाविद्या से कम नहीं हैं।
नोट -
साधना प्रायोग से सम्बंधित जानकारी के लिए फ़ोन पर बात करें .
आपको कहीं भी नहीं मिलने वाली अगर आप को कहीं मिल भी जाती है तो उसकी सही विधि और सही विधान नहीं मिलेगा यह साधना केवल गुरु मुख और गुरुद्वारा ही मिल सकता है
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।
बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है
विशेष -
किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें
राजगुरु जी
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