Tuesday, July 30, 2019

पन्द्रिया यंत्र साधना -- साबर विधि से





पन्द्रिया यंत्र साधना -- साबर विधि से


जरुरी है| अतः इस साधना को उसी साधक को शुरू करना चाहिए जो इस साधना के नियम का पूर्ण शुद्धि से पालन करऔर जन कल्याण किया है | यह बहुत ही तीव्र  साधना है | इस में शुद्धि का 

खास ध्यान ख़ास तौर पर  रखा जाता है।। अन्यथा तकलीफ हो सकती है ..| 

हर  उस व्यक्ति का बहुत ही सौभाग्य उदय होता है जब ऐसी साधना प्राप्त होती है | मेरी नजर में ऐसा कोई काम  ही नहीं है।। जो इस साधना से पूरा ना हो | हिन्दू और इस्लामिक दोनों मतो में यह साधना की जाती
है|

मैंने कई मुसलमानी मौलवियों को भी इस यंत्र का प्रयोग करते हुए देखा है |

यह मैं स्वयं भी इस साधना का प्रयोग बहुत बार करके इसे परख चुका हूँ| और कई संतो ने भी इसे समय-समय पर सिद्ध किया है

यह साधना अगर शारदीय,चैत्र अथवा गुप्त नवरात्री में की जाये तो और भी फल मिलता है | 
इसे सिद्ध करने के

लिए समय तो अवश्य ही लगेगा लेकिन अगर आप इसे सिद्ध कर ले तो किसी सिद्धि के
पीछे
भागने की आवश्कता नहीं है | इस में धैर्य बहुत जरुरी है और ब्रह्मचर्य  का
पालन भी
सके |

नियम  --- 

१. एक समय शुद्ध भोजन करे, फलाहार कभी भी ले सकते हैं |

२.ब्रह्मचर्य अनिवार्य है |

३.सत्य बोलने की
कोशिश करे |

४.किसी से व्यर्थ
में ना उलझें |

५.बड़ों का हमेशा सम्मान करें !

विधि

-- शुद्ध धुले हुये वस्त्र  पहने सिले हुए ना हो तो जयादा बेहतर है (जैसे 
धोती, चादर) | पीले लाल या सफ़ेद रंग के कपडे ज्यादा बेहतर है | लाल रंग
विशेष फल दाई  है !

२.शुद्ध घी का दीपक लगाये और एक बेजोट पर लाल वस्त्र बिछा कर  माता जगदम्बा का 
सुन्दर चित्र स्थापत करें हर रोज पूजन करे और गुरु पूजन करे
और पूर्ण समर्पित भाव से साधना शुरू करे !

३.मन को विचलित ना

होने दे माता का दर्शन होने के बाद कन्या पूजन करे जा साधना पूर्ण होने के बाद
कन्या पूजन जरुरी है |

५.माता की हलवे का भोग लगा कर कन्या पूजन किया जा सकता है !

६. इस यंत्र को

निम्न मन्त्र पड़ते हए सवा लाख बार लिखना है और जितने रोज लिखो आटे में मिक्स कर के
गोलिया बना ले और मछलियों को डाल दे किसी तालाब या नदी पर जाकर |

इस यंत्र को जैसे नीचे दिया है बना ले |

साबर मंत्र ---

ॐ  सात पूनम काल का बारह  बरस क्वार ,एको देवी जानिए चौदह भुवन द्वार द्वि पक्षे निर्मलिये तेरह देवन देव अष्ट भुजी परमेशवरी ग्यारह रूद्र सेव ,सोलह कला समपुरनी तिन नयन भरपूर दसो द्वारी तुही माँ , पांचो बाजे नूर ,नव निधि षट दर्शनी पन्द्रह तिथि जान चारो युग में कालका कर काली कल्याण ......!

ये मन्त्र थोडा उग्र  का है ..इसलिए सात्विकता बरतिए ..और इसे प्रयोग में  लाइए 

 इस मन्त्र का जप करते हुए उपर वाला यन्त्र लिखे और जब  साधना पूरी हो जाती है साधक के लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं रहता |

प्रयोग  --

जिस किसी व्यक्ति पर कैसी भी प्रेत बाधा या किसी का किया तंत्र प्रयोग 

(जैसे-मूठ) हो, तो इस यन्त्र को अष्ट गंध से लिख कर उस व्यक्ति को पहना 
दिया जाये तो बाधा शांत हो जाती है | 

कार्य सिद्धि के लिए इस यन्त्र को अपने साथ ले कर कार्य के लिए जा सकते है | मुक़दमे में विजय पाने के लिए  है और घर छोड़  कर
गये व्यक्ति  को

वापिस लाने के लिए इसका अचूक असर होता है वशीकरण  के लिए भी इसका प्रयोग  किया 

जाता है आप पहले इसे सिद्ध कर ले इसके प्रयोग  तो सैकड़ो है उसे फिर
कभी दे दूंगा | यंत्र सिद्ध करते करते माँ का दर्शन हो जाता है ऐसा मेरा और
कई लोगो का अनुभव है |

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

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Monday, July 29, 2019

अप्सरा और यक्षिणी वशीकरण कवच




अप्सरा और यक्षिणी वशीकरण कवच


चेहरे पर निखार, आकर्षक शरीर और एक सेहतमंद शरीर की कामना भला आज कौन नहीं करता है। हर कोई आकर्षक नज़र आना चाहता है। तो इस मनोकामना को पूरा  करने के लिए व्यक्ति आमतौर पर अप्सरा वशीकरण मंत्र  और साधना का इस्तेमाल करता है, जिसे काफी कारगर व असरदार भी माना गया है। 

इसके बारे मे ये भी कहां गया है कि अप्सरा साधना की मदद से अप्सरा के जैसा  सौंदर्य व समृद्धि प्राप्त किया जा सकता है और ऐसा नहीं है की सिर्फ इसका इस्तेमाल स्त्रिया ही कर सकती है, क्यूकी सुंदर शरीर और खूबसूरत चेहरे की लालसा पुरुष भी रखता है।

तो अब हम आपको बताते है अप्सरा साधना के बारे मे की किस प्रकार आप इसे कर सकते है। जैसा की हमेशा से यह मान्यता रही है कि अप्सराओ को गुलाब, चमेली, रजनीगंधा और रातरानी जैसे फूलों की सुगंध काफी पसंद आती है। 

अप्सरा साधना करने के दौरान उस व्यक्ति को खास तौर पर अपनी यौन भावनाओं पर संयम रखना पड़ता है। ऐसा न कर पाने से साधना सिद्ध नहीं हो पाती है। 

साधक पूरे विश्वास और संकल्प व मंत्र की सहायता से अगर इस साधना को करता है, तो माना गया है कि अप्सरा प्रकट होती है और उस समय वो साधक उसे गुलाब के साथ इत्र भेंट करता है। साथ ही उसे दूध से बनी मिठाई व पान आदि भेंट देता है और उससे  जीवन भर साथ रहने का वचन लेता है।

 इन अप्सराओ मे चमत्कारिक शक्तिया होती है जो साधक की जिंदगी को सुंदर बनाने की योग्यता रखती है।
अब हम आपको रंभा अप्सरा साधना के बारे मे जानकारी देते हुए बताएँगे की इस साधना को करने के लिए आपको इस मंत्र का जप करना होता है, जोकि इस प्रकार है, 

मंत्र:

ऊँ दिव्यायै नमः! ऊँ वागीश्वरायै नमः!

ऊँ सौंदर्या प्रियायै नमः! ऊँ यौवन प्रियायै नमः!

ऊँ सौभाग्दायै नमः! ऊँ आरोग्यप्रदायै नमः!

 ऊँ प्राणप्रियायै नमः! ऊँ उजाश्वलायै नमः! ऊँ देवाप्रियायै  नमः!

 ऊँ ऐश्वर्याप्रदायै नमः! ऊँ धनदायै रम्भायै नमः!

बाकी साधना के जैसे इसमे भी साधक को पूजा-अर्चना के बाद  रम्भेत्किलन यंत्र के सामने बताए मंत्र का जप करना होता है। 

साधना हो जाने के बाद साधक की इक्छा पूर्ण होने के साथ उसके जीवन मे खुशियों आ जाती है।

अप्सरा साधना विधि को करने के लिए साधक के लिए जरूरी होता है कि वो कोई एक शांत जगह चुन ले। फिर उस जगह पर सफ़ेद रंग का एक कपड़ा बिछाकर, पीले चावल के इस्तेमाल से एक यंत्र का निर्माण करे। 

इसके बाद साधक के लिए जरूरी है कि वो अपने वस्त्र पर इत्र लगा ले जिससे वो  सुगन्धित हो जाये और मखमल को अपना आसन बनाए। 

केवल शुक्रवार के दिन, आधी रात को आप इस साधना करे। ध्यान जरूर रखे की साधना करते वक़्त आपका मुख उत्तर दिशा की ओर हो और फिर बनाए हुए यंत्र का पंचोपकर पूजन करे।

 जिस एकांत जगह या कमरे मे साधक बैठा है वो वहाँ गुलाब के इत्र का प्रयोग करे। आस-पास एक सुगन्धित माहोल बना ले।

 इन सबके बाद आप गुरु गणपति का ध्यान करके स्फटिक मणिमाला का मंत्र के साथ 51 जप करे। 

मंत्र:

 “ऊँ उर्वशी प्रियं वशं करी हुं! ऊँ ह्रीं उर्वशी अप्सराय आगच्छागच्छ स्वाहा!!” 

इस अनुष्ठान को आप कुल 7, 11 या 21 दिनों तक करे और आखिरी दिन 10 माल का जाप करे। बताए मंत्र के नीचे अपना नाम लिखकर उर्वशी माला की मदद से बताए मंत्र का 101 बार जप करे,

 मंत्र:  

“ऊँ ह्रीं उर्वशी मम प्रिय मम चित्तानुरंजन करि करि फट”।

अप्सरा वशीकरण साधना से जुड़े एक शाबर मंत्र के बारे मे भी हम आपको बताते है। जिसको करने के लिए जरूरी है की आप एक बाजोट पर लाल रंग का कपड़ा बिछा ले और उस पर एक चावल से ढेरी बना ले, जो कुम्कुम से रंगे हो।

 आप जिस आसान पर बैठे वो भी लाल रंग का ही हो। इसके बाद उन चावल पर “पुष्पदेहा आकर्षण सिद्धि यंत्र” स्‍थापित कर दे और स्फटिक की माला से मंत्र जाप करे।

 मंत्र: 

“ॐ आवे आवे शरमाती पुष्पदेहा प्रिया रुप आवे आवे हिली हिली मेरो कह्यौ करै,मनचिंतावे,कारज करे वेग से  आवे आवे,हर क्षण साथ रहे हिली हिली पुष्पदेहा अप्सरा फट् ॐ ”।

 शुक्रवार के दिन इस साधना को शुरू करे जो 7 दिनों तक चलती है। आपका मुख उत्तर दिशा की ओर हो इसका खास ध्यान रखे और मंत्र का रोज 11 माला जप करना होगा। बनाए हुए यंत्र पर रोज गुलाब का इत्र चढाये और 5 गुलाब भी चढा दे।

 घी का दीपक जला दे, जो साधना विधि के समय जलता रहे। आप जो धूप इस्तेमाल करे वो गुलाब का ही हो। जब मंत्र का जप किया जा रहा हो उस समय नजर  यंत्र की ओर होनी चाहिए। इसी यंत्र के माध्यम से साधक को अप्सरा से वचन प्राप्त करने का मंत्र प्राप्त होता है।

तो यकीन है की रूप-रंग व यौवन की चाहत रखने वाले लोगों के लिए ऊपर बताई गई बाते मददगार होंगी, जिनके उपयोग से साधक अपनी मनोकामना को पूर्ण कर सकता है।

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महाकाली साधना





महाकाली साधना


काल की गति सूक्ष्म से अति सूक्ष्म हैं . काल केबल कोई समय मात्र नहीं हैं , काल सजीव व् निर्जीव की गतिशीलता की पृष्ठभूमि हैं . काल गति के हरेक बिंदु में असंख्य घटनाए समाहित हैं . 

इन्ही को हम काल योग या काल खंड कहते हैं . काल खंड में एक साथ हजारो प्रक्रियाए चलती रहती हैं , पर जिस भी प्रक्रिया का प्रभुत्व ज्यादा होता हे उसका असर हम पर प्रभाव ज्यादा रहता हे.

 इसी तरह अगर हम घटनाओ का अनावरण करे तो हरेक प्रक्रिया के लिए हमारे शास्त्रों में देवी एवं देवता निर्धारित हैं . 

आप ब्रम्हा, विष्णु, महेश, वरुण, इन्द्र, लक्ष्मी, सरस्वती, महाविद्या या किसी भी देवी देवता को देख लीजिए, प्रकृति में उनके कार्य निश्चित रूप से होते ही हैं .

अगर हम इसी बात को आगे लेकर बढे तो यह एक निष्कर्ष हैं कि पृथ्वी में जो भी गतिशीलता हैं या, काल खंड में समाहित जो भी घटनाए हैं उन हरएक घटना के स्वामी देव या देवी होते ही हैं.

हर एक क्षण में हमारे जीवन पर कोई न कई देवी देवता का प्रभाव पड़ता ही हैं . इसी को कहा गया हैं कि हरेक क्षण में कोई न कोई देवी या देवता शरीर में चैतन्य होते ही हैं . 

साधनाओ के द्वारा किसीभी देवी एवं देवताओ को सिद्ध कर के उनके द्वारा हमारी मनोकामना पूर्ति ,कार्य पूर्ति व इच्छा पूर्ति करवा सकते हैं . 

मगर हम ये नहीं जानते की किस क्षण में कौन देव / देवी चैतन्य हैं , और अगर हैं भी तो हम ये नहीं जानते कि प्रकृति आखिर कौन सा कार्य उस क्षण में करेगी और उसका हम पर क्या प्रभाव पड़ेगा.

अत्यंत उच्चकोटि के योगी, इस प्रकार का कालज्ञान रखते हैं , उन्हें मालूम रहता हैं कि कौन से क्षण में क्या होगा और उसका परिणाम किसके ऊपर क्या असर करेगा.

 कौनसे देवी या देवता उस क्षण में जागृत होंगे और कौन से देवी देवता उस क्षण अलग अलग मनुष्य में चैतन्य रहते हैं . 

इसी के आधार पर वे भविष्य में कौन से क्षण में किसके साथ क्या होगा और उसे अलग अलग व्यक्तियों के लिए कैसे अनुकूल या प्रतिकूल बनाना हैं इस प्रकार से अति सूक्ष्म ज्ञान रहता हैं .

जैसे कि पहले कहा गया हैं , कि काल खंड में घटित असंख्य घटनाओ में से किसी एक घटना का प्रभाव सब से ज्यादा रहता हैं हर एक व्यक्ति के लिए वो अलग अलग हो सकता हैं . और हम उसी को एक डोर में बांधते हुए "जीवन" नाम देते हैं . 

दरअसल हमारे साथ एक ही वक़्त में सेकड़ो घटनाए घटित होती हैं पर उनके न्यून प्रभाव के कारण हम उसे समझ नहीं पाते. अब जिस घटनाका प्रभाव सबसे ज्यादा होगा उसके देवता को अगर हम साधना के माध्यम से अनुकूल करले तो उस समय में होने वाले किसी भी घटना क्रम को हम आसानी से हमारे अनुकूल बना सकते हैं .

 पर हम इतने कम समय में कैसे समझ ले की क्या घटना हैं देवता कौन हैं प्रभाव कैसा रहेगा आदि आदि ...उच्चकोटि के योगियों के लिए ये भले ही संभव हो लेकिन सामान्य मनुष्यों के लिए ये किसी भी हिसाब से संभव नहीं हैं . 

और इसी को ध्यान में रखते हुए , एक ऐसी साधना का निर्माण हुआ जिससे अपने आप ही हर एक क्षण में रहा देव योग अपने आप में सिद्ध हो जाता हैं और देव योग का ज्ञान होता रहता हे जिससे कि ये पता चलेगा कि कौन से क्षण में क्या कार्य करना चाहिए. 

अपने आपही क्षमता आ जाती हैं की उसे कार्य के अनुकूल या प्रतिकूल होने का आभाष पहले से ही मिल जाता हैं और देवता उसके वश में रहते हैं

काल की देवी महाकाली को कहा गया हैं और काल उनके नियंत्रण में रहता हैं . इस साधना के इच्छुक लोगो को साधना के साथ साथ शक्ति चक्र पर त्राटक का भी अभ्यास करना चाहिए.

ये साधना रविवार या फिर किसी भी दिन शुरू की जा सकती हैं इस साधना में साधक को काले वस्त्र ही धारण करने चाहिए.

इस साधना में महाकाली यन्त्र व काले हकीक माला की जरुरत रहती हैं साधना काल के के सभी नियम इस साधना में पालन करने चाहिए .

रात्रि में ११ बजे के बाद साधक स्नान कर के, काले वस्त्र धारण कर के काले उनी आसन पर बेठे. अपने सामने महाकाली का चित्र स्थापित हो. यन्त्र की सामान्य पूजा करे. दीपक और लोबान धूप जरुर लगाए.

फिर निम्न लिखित ध्यान करे

मुंड माला धारिणी दिगम्बरा
शत्रुसम्हारिणी विचित्ररूपा
महादेवी कालमुख स्तंभिनी
नमामितुभ्यम मात्रुस्वरूपा

इसके बाद साधना में सफलता के लिए महाकाली से प्राथना करे एवं निम्न लिखित मन्त्र का २१ माला जाप करे.

क्लीं क्लीं क्रीं महाकाली काल सिद्धिं क्लीं क्लीं क्रीं फट .

११ दिन तक प्रति दिन साधना निर्देशित जप करे . इसके बाद माला को १ महीने तक धारण करे फिर इसे नदी में विसर्जित करदे. यन्त्र को पूजा स्थान में रखा
जा सकता हैं.

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बगलामुखी कवच






बगलामुखी कवच


यदि बगलामुखी कवच आपतक पहुँच जाए तो यह मत समझियेगा- कि यह आपके भाग्य पर मिला है

.यह तो माँ का आशीर्वाद है- कि आप भाग्यशाली हैं. कि इस कवच को आप धारण करते हैं.

 मैं ऐसा विश्वास करता हूँ- कि माँ के दिशा निर्देश से पूर्ण शास्त्रीय ढंग से निर्माण करता हूँ. कवच का निर्माण तांत्रिक क्रिया है.

जिसमे एक दिव्य शक्ति का समावेश होता है. इसका निर्माण माँ के इच्छा अनुसार होता है मानव तो मात्र एक कठपुतली के समान है. 

इससे मुझे यकीन है- कि रक्षा कवच सिर्फ काम ही नहीं करता बल्कि यह प्रमाणित होता है. 

                    »» यदि कोई मनुष्य अपने शरीर और कुल का कल्याण चाहता है तो इस कवच को आवश्य धारण करना चाहिए.

                    »»सुरक्षा कवच कि सहायता से मनुष्य अपने मनोकामना को पूर्ण करता है और एक सफल जीवन जीता है.

                    »»सुरक्षा कवच के धारण से मनुष्य निर्भीक साहसी हो जाता है, वह हर क्षेत्र में उन्नति करता है और खुशहाल जीवन जीता है.

                    »»जो मनुष्य सुरक्षा कवच धारण किए हुए हैं उसके उपस्थिति मात्र से सभी बुरे तांत्रिक क्रिया काला जादू आदि बुरी शक्ति नष्ट हो जाती है.

                     »»बगलामुखी सुरक्षा कवच धारण किए हुए व्यक्ति से जो न आँखों से दिखाई देता है और जो मनुष्य के जीवन पर गलत प्रभाव देतें हैं इससे दूर रहते हैं. सरल भाषा   में यदि कहा जाए तो किसी भी प्रकार की नकारात्मक उर्जा से यह कवच उसका बचाव करता है.

                    »»इसे धारण किए हुए व्यक्ति अपने से बड़े अधिकारियों से सम्मान प्राप्त करता है. यह कवच बुद्धि को स्थिर करके उनके कार्य करने कि शक्ति को बढ़ाता है.

                    »»इस कवच के धारणकर्ता के व्यक्तित्व मे निखार आता है. वह समाज मे सम्मान प्राप्त करता है, उसका नाम और प्रसिद्धि चारों दिशाओं में फैलता है.

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ये_सावधानी_है_ना_कि_अंध_विश्वास






ये_सावधानी_है_ना_कि_अंध_विश्वास


👉तंत्र-मंत्र तथा काले जादू की प्रक्रिया देखने में जितनी जटिल होती है, करने में उतनी ही सरल होती है। अक्सर लोग जिस पर भी तांत्रिक शक्तियों का इस्तेमाल करते हैं, उसे फंसाने के लिए खाने की वस्तुओं का प्रयोग करते हैं।

 ऐसे लोग जिससे भी अपना काम निकलवाना चाहते हैं तो खाने की मिठाई पर अपने मंत्रों का प्रयोग कर सामने वाले व्यक्ति को खिला देते हैं। कुछ लोग दूध के जरिए भी इस प्रयोग को करते हैं।

👉इस तरह के तांत्रिक प्रयोगों से बचने का सबसे अच्छी तरीका यही है कि आप किसी अन्य की दी गई मिठाई को कभी भूलकर भी न खाएं। यदि सामने वाला व्यक्ति ऐसा है जिसे आप मना नहीं कर सकते तो बेहतर होगा कि मिठाई का एक छोटा-सा पीस तोड़ कर पहले उसी व्यक्ति को खिला दें। 

यदि वह सहज ही इसे खा लेता है तो इसका अर्थ है कि वह तांत्रिक प्रयोग नहीं कर रहा है। परन्तु यदि सामने वाला व्यक्ति खाने में हिचकिचाएं या ना नुकूर करें तो समझ जाएं कि दाल में कुछ काला है।*

👉खाने की मिठाई के अतिरिक्त लोग अन्य चीजों के माध्यम से भी टोटके करते हैं। इन चीजों में फूल, इत्र, पान, इलायची, लौंग, उड़द, लोबान आदि के जरिए किया जाता है। कुछ लोग पहनने के कपड़ों पर भी इसका प्रयोग करते हैं।

 अगर कोई व्यक्ति अचानक ही ऐसी कोई भी चीज आपको दें तो आपको उससे बचना चाहिए। ये सभी चीजें ऐसी हैं जो प्रचंड वशीकरण करने में काम ली जाती है।

 इसके अतिरिक्त भी अगर किसी भी दिन आपको अपने घर में ऐसी कोई भी चीज मिले जो आप या आपके परिवार में किसी ने नहीं रखी हो तो भी यह तंत्र प्रयोग होने का संकेत हो सकता है।

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Sunday, July 28, 2019

हनुमत् कवच व हनुमान चालीसा से ग्रह दोष व ऊपरी बाधा या छाया ग्रहों का निवारण कैसे करें ।






हनुमत् कवच व हनुमान  चालीसा से ग्रह दोष व ऊपरी बाधा या छाया ग्रहों का निवारण कैसे करें ।






हनुमत् कवच के पाठ के द्वारा या पंचमुख हनुमत् कवच के पाठ के द्वारा हम अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव को दूर करता सकते हैं ।

पंचमुख हनुमत् कवच द्वारा तंत्र के कुप्रभाव को शून्य किया जा सकता है हनुमत कवच के पाठ में विनियोग करन्यास हृदयादिन्यास आवश्यक है तदोपरांत मंत्र का जाप शुद्ध उच्चारण के द्वारा किया जाए तो निश्चित सफलता मिलेगी .


सर्वप्रथम कवच का पाठ करने के उपरांत मंत्र का जाप किया जाए क्योंकि यह मंत्र तांत्रिक मंत्र हैं इन के मंत्रों के उच्चारण में शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाए अन्यथा प्रभाव के बजाय कुप्रभाव मिलने की आशंका रहती है कार्य के अनुरूप कई मंत्र हैं.

 जैसे मान लीजिए किसी के ऊपर किसी ने तंत्र प्रयोग किया है तो उसके निवारण के लिए एक मंत्र


 ओम नमो हनुमते परकृतयंत्रमंत्रपराहंकारभूतप्रेत पिशाच परदृष्टि सर्वविघ्नदुर्जनचेटकविद्या सर्वग्रहान्निवारय निवारय बध बध पच पच  दल दल किल किल सर्बकुयंत्राणि दुष्टवाचं फट् स्वाहा ।।




दूसरा मंत्र इसी प्रकार



 ओम नमो हनुमते सर्व ग्रहानभूतभविष्यद्वर्त वर्तमानान्दूरस्थान समीपस्थान सर्बकाल दुष्टदुर्बुद्धीनुच्चाटयोच्चाटय पर बलानि क्षोभय क्षोभय मम् सर्वकार्याणि साधय साधय हनुमते ओम् ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं फट् देहि देहि स्वाहा। ओम शिवं सिद्धं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं स्वाहा।





इसी प्रकार अनेकानेक मंत्र हैं जिनके द्वारा किया कराया संतान बाधादि का निवारण किया जा सकता है ठीक इसी प्रकार हनुमान चालीसा के अनुष्ठान द्वारा भी निवारण किया जा सकता है ।


हनुमान चालीसा में स्पष्ट रूप से लिखा गया है 


अष्ट सिद्ध नव निधि के दाता और जो सत् बार पाठ कर कोई ।


यदि अनुष्ठान रूपसे हनुमान चालीसा का पाठ करवाया जाय तो निश्चित रूप से तंत्र के कुप्रभाव को दूर किया जा सकता है ।इसमें तनिक भी संदेह नहीं ।




जय श्री राम । ॐरामदुताय नमः





चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

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अपने ऊपर तान्त्रिक प्रयोग का कैसे पता करें :




अपने ऊपर तान्त्रिक प्रयोग का कैसे पता करें :


अक्सर लोग सोचते हैं की किसी ने उनपर कोई जादू टोना या तांत्रिक प्रयोग कर दी है तो आईये जानते हैं –

1) रात को सिरहाने एक लोटे मैं पानी भर कर रखे और इस पानी को गमले मैं लगे या बगीचे मैं लगे किसी छोटे पौधे मैं सुबह डाले । 3 दिन से एक सप्ताह मे वो पौधा सूख जायेगा है ।

2) रात्रि को सोते समय एक हरा नीम्बू तकिये के नीचे रखे और प्रार्थना करे कि जो भी नेगेटिव क्रिया हूई इस नीम्बू मैं समाहित हो जाये । सुबह उठने पर यदि नीम्बू मुरझाया या रंग काला पाया जाता है तो आप पर तांत्रिक क्रिया हुई है।

3) यदि बार बार घबराहट होने लगती है, पसीना सा आने लगता हैं, हाथ पैर शून्य से हो जाते है । डाक्टर के जांच मैं सभी रिपोर्ट नार्मल आती हैं।लेकिन अक्सर ऐसा होता रहता तो समझ लीजिये आप किसी तान्त्रिक क्रिया के शिकार हो गए है ।

4) आपके घर मैं अचानक अधिकतर बिल्ली,सांप, उल्लू, चमगादड़, भंवरा आदि घूमते दिखने लगे ,तो समझिये घर पर तांत्रिक क्रिया हो रही है।

5) आपको अचानक भूख लगती लेकिन खाते वक्त मन नही करता ।

6) भोजन मैं अक्सर बाल, या कंकड़ आने लगते है ।

7) घर मे सुबह या शाम मन्दिर का दीपक जलाते समय विवाद होने लगे या बच्चा रोने लगे ।

8) घर के मन्दिर मैं अचानक आग लग जाये ।

9) घर के किसी सदस्य की अचानक मौत ।

10) घर के सदस्यों की एक के बाद एक बीमार पढ़ना ।

11) घर के जानवर जैसे गाय, भैंस, कुत्ता अचानक मर जाना।

12) शरीर पर अचानक नीले रंग के निशान बन जाना ।

13) घर मे अचानक गन्दी बदबू आना ।

14) घर मैं ऐसा महसूस होना की कोई आसपास है ।

15) आपके चेहरे का रंग पीला पड़ना ये भी एक कारण हैं की जितना प्रबल तन्त्र प्रयोग होगा आपके मुह का रंग उतना ही पिला पड़ता जायेगा आप दिन प्रतिदिन अपने आपको कमज़ोर महसूस करेंगे।

16) आपके पहने नए कपड़े अचानक फट जाए, उस पर स्याही या अन्य कोई दाग लगने लग जाए, या जल जाए।

17) घर के अंदर या बाहर नीम्बू, सिंदूर, राई , हड्डी आदि सामग्री बार बार मिलने लगे।

18) चतुर्दशी या अमावस्या को घर के किसी भी सदस्य या आप अचानक बीमार हो जाये या चिड़चिड़ापन आने लग जाये ।

19) घर मैं रुकने का मन नही करे, घर मे आते ही भारीपन लगे,जब आप बाहर रहो तब ठीक लगे****** दशमहाविद्द्या माँ

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

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Saturday, July 27, 2019

दंतेश्वरी मंदिर-






दंतेश्वरी मंदिर- 


एक शक्ति पीठ यहां गिरा था सती का दांत

छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र की हसीन वादियों में स्थित है, दन्तेवाड़ा का प्रसिद्ध दंतेश्वरी मंदिर। देवी पुराण में शक्ति पीठों की संख्या 51 बताई गई है जबकि तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। जबकि कई अन्य ग्रंथों में यह संख्या 108 तक बताई गई है।

 दन्तेवाड़ा को हालांकि देवी पुराण के 51 शक्ति पीठों में शामिल नहीं किया गया है लेकिन इसे देवी का 52 वा शक्ति पीठ माना जाता है। मान्यता है की यहाँ पर सती का दांत गिरा था इसलिए इस जगह का नाम दंतेवाड़ा और माता क़ा नाम दंतेश्वरी देवी पड़ा। 51 शक्ति पीठों की जानकारी और शक्ति पीठों के निर्माण कि कहानी आप हमारे पिछले लेख 51 शक्ति पीठ में पढ़ सकते है।

 दंतेश्वरी मंदिर शंखिनी और डंकिनी नदीयों के संगम पर स्थित हैं।

दंतेश्वरी देवी को बस्तर क्षेत्र की कुलदेवी का दजऱ्ा प्राप्त है। इस मंदिर की एक खासियत यह है की माता के दर्शन करने के लिए आपको लुंगी या धोति पहनकर ही मंदीर में जाना होगा। मंदिर में सिले हुए वस्त्र पहन कर जानें की मनाही है।

मंदिर के निर्माण की कथा-

दन्तेवाड़ा शक्ति पीठ में माँ दन्तेश्वरी के मंदीर का निर्माण कब व कैसे हूआ इसकि क़हानी कुछ इस तरह है। ऐसा माना जाता है कि बस्तर के पहले काकातिया राजा अन्नम देव वारंगल से यहां आए थे। उन्हें दंतेवश्वरी मैय्या का वरदान मिला था। 

कहा जाता है कि अन्नम देव को माता ने वर दिया था कि जहां तक वे जाएंगे, उनका राज वहां तक फैलेगा। शर्त ये थी कि राजा को पीछे मुड़कर नहीं देखना था और मैय्या उनके पीछे-पीछे जहां तक जाती, वहां तक की ज़मीन पर उनका राज हो जाता। अन्नम देव के रूकते ही मैय्या भी रूक जाने वाली थी।

अन्नम देव ने चलना शुरू किया और वे कई दिन और रात चलते रहे। वे चलते-चलते शंखिनी और डंकिनी नंदियों के संगम पर पहुंचे। यहां उन्होंने नदी पार करने के बाद माता के पीछे आते समय उनकी पायल की आवाज़ महसूस नहीं की। सो वे वहीं रूक गए और माता के रूक जाने की आशंका से उन्?होंने पीछे पलटकर देखा। माता तब नदी पार कर रही थी। राजा के रूकते ही मैय्या भी रूक गई और उन्?होंने आगे जाने से इनकार कर दिया।

 दरअसल नदी के जल में डूबे पैरों में बंधी पायल की आवाज़ पानी के कारण नहीं आ रही थी और राजा इस भ्रम में कि पायल की आवाज़ नहीं आ रही है, शायद मैय्या नहीं आ रही है सोचकर पीछे पलट गए।

वचन के अनुसार मैय्या के लिए राजा ने शंखिनी-डंकिनी नदी के संगम पर एक सुंदर घर यानि मंदिर बनवा दिया। तब से मैय्या वहीं स्थापित है। दंतेश्वरी मंदिर के पास ही शंखिनी और डंकिन नदी के संगम पर माँ दंतेश्वरी के चरणों के चिन्ह मौजूद है और यहां सच्चे मन से की गई मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है।

अदभुत है मंदिर-

दंतेवाड़ा में माँ दंतेश्वरी की षट्भुजी वाले काले ग्रेनाइट की मूर्ति अद्वितीय है। छह भुजाओं में दाएं हाथ में शंख, खड्ग, त्रिशुल और बाएं हाथ में घंटी, पद्य और राक्षस के बाल मांई धारण किए हुए है।

 यह मूर्ति नक्काशीयुक्त है और ऊपरी भाग में नरसिंह अवतार का स्वरुप है। माई के सिर के ऊपर छत्र है, जो चांदी से निर्मित है। वस्त्र आभूषण से अलंकृत है। द्वार पर दो द्वारपाल दाएं-बाएं खड़े हैं जो चार हाथ युक्त हैं। बाएं हाथ सर्प और दाएं हाथ गदा लिए द्वारपाल वरद मुद्रा में है। 

इक्कीस स्तम्भों से युक्त सिंह द्वार के पूर्व दिशा में दो सिंह विराजमान जो काले पत्थर के हैं। यहां भगवान गणेश, विष्णु, शिव आदि की प्रतिमाएं विभिन्न स्थानों में प्रस्थापित है। मंदिर के गर्भ गृह में सिले हुए वस्त्र पहनकर प्रवेश प्रतिबंधित है। मंदिर के मुख्य द्वार के सामने पर्वतीयकालीन गरुड़ स्तम्भ से अड्ढवस्थित है। 

बत्तीस काष्ठड्ढ स्तम्भों और खपरैल की छत वाले महामण्डप मंदिर के प्रवेश के सिंह द्वार का यह मंदिर वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। मांई जी का प्रतिदिन श्रृंगार के साथ ही मंगल आरती की जाती है।

माँ भुनेश्वरी देवी-

माँ दंतेश्वरी मंदिर के पास ही उनकी छोटी बहन माँ भुनेश्वरी का मंदिर है। माँ भुनेश्वरी को मावली माता, माणिकेश्वरी देवी के नाम से भी जाना जाता है। माँ भुनेश्वरी देवी आंध्रप्रदेश में माँ पेदाम्मा के नाम से विख्यात है और लाखो श्रद्धालु उनके भक्त हैं।

 छोटी माता भुवनेश्वरी देवी और मांई दंतेश्वरी की आरती एक साथ की जाती है और एक ही समय पर भोग लगाया जाता है। लगभग चार फीट ऊंची माँ भुवनेश्वरी की अष्टड्ढभुजी प्रतिमा अद्वितीय है। मंदिर के गर्भगृह में नौ ग्रहों की प्रतिमाएं है। 

वहीं भगवान विष्णु अवतार नरसिंह, माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की प्रतिमाएं प्रस्थापित हैं। कहा जाता है कि माणिकेश्वरी मंदिर का निर्माण दसवीं शताब्दी में हुआ।

फाल्गुन में होता है मड़ई उत्सव का आयोजऩ-
होली से दस दिन पूर्व यहां फाल्गुन मड़ई का आयोजन होता है, जिसमें आदिवासी संस्कृति की विश्वास और परंपरा की झलक दिखाई पड़ती है। 

नौ दिनों तक चलने वाले फाल्गुन मड़ई में आदिवासी संस्कृति की अलग-अलग रस्मों की अदायगी होती है। मड़ई में ग्राम देवी-देवताओं की ध्वजा, छत्तर और ध्वजा दण्ड पुजारियों के साथ शामिल होते हैं। 

करीब 250 से भी ज्यादा देवी-देवताओं के साथ मांई की डोली प्रतिदिन नगर भ्रमण कर नारायण मंदिर तक जाती है और लौटकर पुनरू मंदिर आती है। इस दौरान नाच मंडली की रस्म होती है, जिसमें बंजारा समुदाय द्वारा किए जाने वाला लमान नाचा के साथ ही भतरी नाच और फाग गीत गाया जाता है। 

मांई जी की डोली के साथ ही फाल्गुन नवमीं, दशमी, एकादशी और द्वादशी को लमहा मार, कोड़ही मार, चीतल मार और गौर मार की रस्म होती है। मड़ई के अंतिम दिन सामूहिक नृत्य में सैकड़ों युवक-युवती शामिल होते हैं और रात भर इसका आनंद लेते हैं।

 फाल्गुन मड़ई में दंतेश्वरी मंदिर में बस्तर अंचल के लाखों लोगों की भागीदारी होती है।

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Friday, July 26, 2019

कई बार ऐसा होता है कि शत्रु आपकी सफलता व तरक्की से चिढ़कर तांत्रिकों द्वारा अभिचार कर्म करा देता है। इससे व्यवसाय बाधा एवं गृह क्लेश होता है .





कई बार ऐसा होता है कि शत्रु आपकी सफलता व तरक्की से चिढ़कर तांत्रिकों द्वारा अभिचार कर्म करा देता है। इससे व्यवसाय बाधा एवं गृह क्लेश होता है .


अतः इसके दुष्प्रभाव से बचने हेतु सवा 1 किलो काले उड़द, सवा 1 किलो कोयला को सवा 1 मीटर काले कपड़े में बांधकर अपने ऊपर से २१ बार घुमाकर शनिवार के दिन बहते जल में विसर्जित करें व मन में हनुमान जी का ध्यान करें। ऐसा लगातार ७ शनिवार करें।

 तांत्रिक अभिकर्म पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगा।

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विष्णु के श्वसुर महर्षि भृगु और उनके वंश को जानिए...

विष्णु के श्वसुर महर्षि भृगु और उनके वंश को जानिए...






यदि हम ब्रह्मा के मानस पुत्र भृगु की बात करें तो वे आज से लगभग 9,400 वर्ष पूर्व हुए थे। इनके बड़े भाई का नाम अंगिरा था। अत्रि, मरीचि, दक्ष, वशिष्ठ, पुलस्त्य, नारद, कर्दम, स्वायंभुव मनु, कृतु, पुलह, सनकादि ऋषि इनके भाई हैं। ये विष्णु के श्वसुर और शिव के साढू थे। महर्षि भृगु को भी सप्तर्षि मंडल में स्थान मिला है।

पिता : ब्रह्मा

पत्नी : ख्याति

भृगु के पुत्र : धाता और विधाता

पुत्री : लक्ष्मी (भार्गवी)

रचना :

भृगु संहिता, ऋग्वेद के मंत्र रचयिता।
महर्षि भृगु की पहली पत्नी का नाम ख्याति था, जो उनके भाई दक्ष की कन्या थी। इसका मतलब ख्याति उनकी भतीजी थी। दक्ष की दूसरी कन्या सती से भगवान शंकर ने विवाह किया था। ख्याति से भृगु को दो पुत्र दाता और विधाता मिले और एक बेटी लक्ष्मी का जन्म हुआ। लक्ष्मी का विवाह उन्होंने भगवान विष्णु से कर दिया था।

भृगु पुत्र धाता के आयती नाम की स्त्री से प्राण, प्राण के धोतिमान और धोतिमान के वर्तमान नामक पुत्र हुए। विधाता के नीति नाम की स्त्री से मृकंड, मृकंड के मार्कण्डेय और उनसे वेद श्री नाम के पुत्र हुए। पुराणों में कहा गया है कि इनसे भृगु वंश बढ़ा। भृगु की पुत्री लक्ष्मी का विवाह भगवान विष्णु से हुआ।

भृगु ने ही भृगु संहिता की रचना की। उसी काल में उनके भाई स्वायंभुव मनु ने मनु स्मृति की रचना की थी। भृगु के और भी पुत्र थे जैसे उशना, च्यवन आदि। ऋग्वेद में भृगुवंशी ऋषियों द्वारा रचित अनेक मंत्रों का वर्णन मिलता है जिसमें वेन, सोमाहुति, स्यूमरश्मि, भार्गव, आर्वि आदि का नाम आता है। भार्गवों को अग्निपूजक माना गया है। दाशराज्ञ युद्ध के समय भृगु मौजूद थे।

इनके रचित कुछ ग्रंथ हैं- 'भृगु स्मृति' (आधुनिक मनुस्मृति), 'भृगु संहिता' (ज्योतिष), 'भृगु संहिता' (शिल्प), 'भृगु सूत्र', 'भृगु उपनिषद', 'भृगु गीता' आदि। 'भृगु संहिता' आज भी उपलब्ध है जिसकी मूल प्रति नेपाल के पुस्तकालय में ताम्रपत्र पर सुरक्षित रखी है। इस विशालकाय ग्रंथ को कई बैलगाड़ियों पर लादकर ले जाया गया था। भारतवर्ष में भी कई हस्तलिखित प्रतियां पंडितों के पास उपलब्ध हैं किंतु वे अपूर्ण हैं।

देवी भागवत के चतुर्थ स्कंध विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, श्रीमद् भागवत में खंडों में बिखरे वर्ण के अनुसार महर्षि भृगु प्रचेता-ब्रह्मा के पुत्र हैं, इनका विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री ख्याति से हुआ था जिनसे इनके दो पुत्र काव्य शुक्र और त्वष्टा तथा एक पुत्री श्रीलक्ष्मी का जन्म हुआ। इनकी पुत्री श्रीलक्ष्मी का विवाह श्रीहरि विष्णु से हुआ।

दैत्यों के साथ हो रहे देवासुर संग्राम में महर्षि भृगु की पत्नी ख्याति, जो योगशक्ति संपन्न तेजस्वी महिला थीं, दैत्यों की सेना के मृतक सैनिकों को जीवित कर देती थीं जिससे नाराज होकर श्रीहरि विष्णु ने शुक्राचार्य की माता व भृगुजी की पत्नी ख्याति का सिर अपने सुदर्शन चक्र से काट दिया।

अपनी पत्नी की हत्या होने की जानकारी होने पर महर्षि भृगु भगवान विष्णु को शाप देते हैं कि तुम्हें स्त्री के पेट से बार-बार जन्म लेना पड़ेगा। उसके बाद महर्षि अपनी पत्नी ख्याति को अपने योगबल से जीवित कर गंगा तट पर आ जाते हैं, तमसा नदी की सृष्टि करते हैं।

धरती पर पहली बार महर्षि भृगु ने ही अग्नि का उत्पादन करना सिखाया था। उन्होंने ही बताया था कि किस तरह अग्नि प्रज्वलित किया जा सकता है और किस तरह हम अग्नि का उपयोग कर सकते हैं। इसीलिए उन्हें अग्नि से उत्पन्न ऋषि मान लिया गया। जबकि वे प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने पृथ्वी पर अग्नि को प्रदीप्त किया था।

ऋग्वेद में वर्णन है कि उन्होंने मातरिश्वन् से अग्नि ली और उसको पृथ्वी पर लाए। इसी कारण सर्वप्रथम भृगु कुल के लोगों ने ही अग्नि की आराधना करना शुरू किया था। आज भी पारसी लोग ऋषि भृगु की अथवन् के रूप में पूजा करते हैं। पारसी धर्म के लोग भी अग्निपूजक हैं।

भृगु ने संजीवनी विद्या की भी खोज की थी। उन्होंने संजीवनी-बूटी खोजी थी अर्थात मृत प्राणी को जिन्दा करने का उन्होंने ही उपाय खोजा था। परम्परागत रूप से यह विद्या उनके पुत्र शुक्राचार्य को प्राप्त हुई।

महर्षि भृगु का आयुर्वेद से भी घनिष्ठ संबंध था। अथर्ववेद एवं आयुर्वेद संबंधी प्राचीन ग्रंथों में स्थल-स्थल पर इनको प्रामाणिक आचार्य की भांति उल्लेखित किया गया है। आयुर्वेद में प्राकृतिक चिकित्सा का भी महत्व है।

भृगु ऋषि ने सूर्य की किरणों द्वारा रोगों के उपशमन की चर्चा की है। वर्षा रूपी जल सूर्य की किरणों से प्रेरित होकर आता है। वह शल्य के समान पीड़ा देने वाले रोगों को दूर करने में समर्थ है।

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Thursday, July 25, 2019

साबर भैरवी साधना





साबर भैरवी साधना


बहोत से लोगो ने यह पहली बार सुना होगा ,क्यू के यह साधना लुप्त हो रही है परन्तु मेरे पास यह साधना हो और आपको ना मिले ऐसा संभव नही। 

इस साधना से भाग्योदय होता है ,शत्रुबंधा सम्पात समाप्त होती है,रोग खत्म होते है,आकर्षण शक्ति निर्मित होती है, चहरे पर सम्मोहन आ जाता है,शरीर मे विशेष ताकत आती है .

जीवन मे होने वाले  नुकसान की खबर देवी पाहिले ही स्वप्न  मे बता देती है मनोकामनाए भी पूर्ण होती है ,अभिचार कर्म समाप्त होते है, जहा जाओगे वाहा सिर्फ तारीफ सुनाने मिलेगी।

तो अब आप समज गऐ होगे साधना कितना महत्वपूर्ण है ,करिये यह साधना क्यू  के यह साधना करने के बाद साबर शिव मंत्र शीघ्र सफलता मिलता है, मंत्र तो बहोत मील जायेगा लेकिन साबर शिव मंत्र बहोत मुश्किल से प्राप्त होता है।

साधना ७ दिन का है, रोज दक्षिण दिशा मे मुख करके १०८ बार मंत्र का जाप करना है तो मंत्र सिद्ध होता है,घी का दीपक जलाये और धुप जलाये माला रुद्राक्ष का हो रात्रि मे ९ स्नान बजे  करके साधना मे बैठे तो उचित है।

जिन्हे मंत्र चाहिए उन्हे ही मंत्र देगे क्यू के मेरे लिए मंत्र का गोपनीयता सर्वप्रथम है। मंत्र प्रभावशाली है। इसलिए आप भी गोपनीयता रखे और हो सके तो गुरु आज्ञा से मंत्र का जाप करे श्रेष्ठ है .

  सिद्ध सामग्री     :-     सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , हकिक  .

  

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Wednesday, July 24, 2019

लीलावती अप्सरा






लीलावती अप्सरा 


यह एक विशेष साधना है,जिसको सिर्फ चंद्रग्रहण पर ही शुरू किया जा सकता है,अन्य समय पर शुरुआत करने से लाभ प्राप्त करना कठिन है। यहा दिया जाने वाला लीलावती अप्सरा मंत्र पुर्ण और प्रामाणिक है,

साधना के लाभ:

जो व्यक्ति पूर्ण रूप से हष्ट पुष्ट होते हुए भी आकर्षक व्यक्तित्व न होने के कारण अन्य लोगों को अपनी और आकर्षित नहीं कर पाते हैं तथा हीनभावना से ग्रस्त होते हैं , 

इस साधना के प्रभाव से उनका व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक व चुम्बकीय हो जाता है तथा उनके संपर्क में आने वाले सभी लोग उनकी और आकर्षित होने लगते हैं ।

 जो मन के अनुकूल सुंदर जीवन साथी पाना चाहते हैं किन्तु किसी कारणवश यह संभव न हो रहा हो, इस साधना के प्रभाव से उनको मन के अनुकूल सुंदर जीवन साथी प्राप्त होने की स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं और मनचाहा जीवनसाथी मिल जाता है ।

जिस व्यक्ति के वैवाहिक, पारिवारिक, सामाजिक जीवन में क्लेश व तनाव की स्थिति उत्पन्न हो, इस साधना के प्रभाव से उनके वैवाहिक, पारिवारिक व सामाजिक जीवन में प्रेम सौहार्द की स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं !

जो व्यक्ति अभिनय के क्षेत्र में सफल होने की इच्छा रखते हैं किन्तु सफल नहीं हो पाते हैं, इस साधना के प्रभाव से उनके अंदर उत्तम अभिनय की क्षमता की वृद्धि होने के साथ-साथ अभिनय के क्षेत्र में सफल होने की स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं । 

जो व्यक्ति युवावस्था में होने पर भी पूर्ण यौवन से युक्त नहीं होते हैं, इस साधना से उनके अंदर उत्तम यौवन व व्यक्तित्व निखर आता है ।

जो व्यक्ति सुन्दर रूप सौन्दर्य की इच्छा रखते हैं किन्तु प्रकृति द्वारा कुरूपता से दण्डित हैं, इस साधना के प्रभाव से उनके अंदर आकर्षक रूप सौन्दर्य निखर आता है ।

 जो व्यक्ति कार्यक्षेत्र में मन के अनुकूल अधिकारी या सहकर्मी न होने के कारण असहज परिस्थियों में नौकरी करते हैं, या नौकरी चले जाने का भय रहता है, इस साधना के प्रभाव से उनके अधिकारी व सहकर्मी उनके साथ मित्रवत हो जाते हैं तथा नौकरी चले जाने का भय भी समाप्त हो जाता है ।

जो व्यक्ति ऐसा मानते हैं कि वह अन्य लोगों को अपनी बात या कार्य से प्रभावित नहीं कर पाते हैं, इस साधना के प्रभाव से उनका व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक व चुम्बकीय हो जाता है तथा उनके संपर्क में आने वाले सभी लोग उनकी और आकर्षित होकर उनकी बातों या कार्य से प्रभावित होने लगते हैं ।

उपरोक्त विषयों में अत्यंत कम समय में ही अपेक्षित परिणाम देकर आनंदमय जीवन को प्रशस्त करने वाली यह लीलावती अप्सरा साधना अवश्य ही संपन्न कर लेनी चाहिए, जिससे निश्चित ही आप अपनी इच्छा की पूर्णता को प्राप्त कर सकते हैं व आनंदमय भौतिक जीवन व्यतीत कर सकते हैं ।

all क्योंकि अप्सराएं सौन्दर्य, यौवन, प्रेम, अभिनय, रस व रंग का ही प्रतिरूप होती हैं, अतः इनका प्रभाव जहाँ भी होता है वहां पर सौन्दर्य, यौवन, प्रेम, अभिनय, रस व रंग ही व्याप्त होता है ।

लीलावती अप्सरा की साधना अनेक रूपों में की जाती है, जैसे माँ, बहन, पुत्री, पत्नी अथवा प्रेमिका के रूप में इनकी साधना की जाती है ओर साधक जिस रूप में इनको साधता है.

 ये उसी प्रकार का व्यवहार व परिणाम भी साधक को प्रदान करती हैं, अप्सराओं को पत्नी या प्रेमिका के रूप में साधने पर साधक को कोई कठिनाई या हानी नहीं होती है, क्योंकि यह तो साधक के व्यक्तित्व को इतना अधिक प्रभावशाली बना देती हैं कि साधक के संपर्क में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति अप्सरा साधक के मन के अनुकूल आचरण करने लगता है ।

 अप्सरा को प्रत्यक्ष सिद्ध कर लिए जाने पर वह अपने गुण, धर्म, प्रभाव व सीमा के अधीन बिना किसी बाध्यता के अपनी सीमाओं के अधीन साधक की सभी इच्छाओं की पूर्ति करती है । 

माँ के रूप में साधने पर वह ममतामय होकर साधक का सभी प्रकार से पुत्रवत पालन करती हैं तो बहन व पुत्री के रूप में साधने पर वह भावनामय होकर सहयोगात्मक होती हैं ओर पत्नी या प्रेमिका के रूप में साधने पर उस साधक को उनसे अनेक सुख प्राप्त हो सकते हैं ।

साधना विधी:-

यह साधना ग्रहण शुरुआत होने के कुछ ही समय पहिले  ही शुरू करना है,जैसे 5-10 मिनट पुर्व शुरु कर सकते है और ग्रहण के समाप्ति के बाद भी 5-10 मिनट तक मंत्र जाप करते रहना है। मंत्र जाप बिना किसी माला के जाप करना भी सम्भव है।

 साधना करने हेतु किसी बाजोट पर पिला वस्त्र बिछाये और उसके उपर एक चमेली के फुलो का माला रखे,किसी प्लेट मे कुछ मिठाइयाँ रखे,एक छोटे ग्लास मे पानी रखें। बडा सा दिपक जलाये जो ग्रहण काल तक चलता रहे और दिपक मे शुद्ध देसी गाय के घी का ही उपयोग करें। 

धूप कोई भी चलेगा और साधना काल मे बुझ जाये तो कोई चिंता का बात नही है। मंत्र जाप उत्तर दिशा के तरफ ही मुख करके करना है,आसन वस्त्र का कोई बंधन नही है,किसी भी रंग के ले सकते हो ।

 यह एक दिवसीय साधना है परंतु साधक चाहे तो चंद्रग्रहण के बाद भी नित्य जब तक चाहे तब तक मंत्र जाप कर सकता है।

मंत्र:-

।। ॐ हूं हूं लीलावती कामेश्वरी अप्सरा प्रत्यक्षं सिद्धि हूं हूं फट् ।।

om hoom hoom lilaawati kaameshwari apsaraa pratyaksham siddhi hoom hoom phat

साधना समाप्ति के बाद रखा हुआ मिठाइयों का भोग स्वयं ग्रहण करले और ग्लास मे रखा हुआ जल पिपल के पेड़ के जड पर चढा दे,जल चढाने के बाद भगवान श्रीकृष्ण जी से मन ही मन साधना सफलता हेतु प्रार्थना करें। 

साधना से आपको अपने जिवन मे परिवर्तन नजर आयेगा,इस साधना से किसी प्रकार का कोई नुकसान नही होता है सिर्फ अप्सरा प्रति स्वयं का भावना शुद्ध रखें। जब भी जिवन मे किसी विशेष मनोकामना को पुर्ण करवाना हो तो शुक्रवार या सोमवार के रात्री मे 9 बजे के बाद अप्सरा से प्रार्थना करते हुए मंत्र का 1 घण्टे तक जाप करने से आपका कोई भी मनोकामना शिघ्र ही पुर्ण हो सकता है।

 मंत्र जाप से पहिले वही विधी करना है जैसे हमने चंद्रग्रहण के समय किया था। जो साधक अप्सरा को प्रत्यक्ष सिद्ध करना चाहते है उन्हे यह साधना कम से कम नित्य रात्रिकाल मे 2-3 घण्टे तक करते रहना चाहिए।

 येसा कम से कम 21 दिनो तक करने से लीलावती अप्सरा का प्रत्यक्षीकरण होना सा सम्भव है। यह विशेष साधना करने से आपको बहोत सारी अनुभुतिया हो सकती है,जिसमे आपको सुगंध का एहसास हो सकता है और पायल/घुंगरु के बजने का आवाज भी आसकता है।

आप सभी को साधना मे अवश्य ही सफलता प्राप्त हो,यही मातारानी से प्रार्थना है।

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

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महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

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(रजि.)

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