Sunday, May 21, 2023

आकस्मिक धन प्राप्ति साधना -

 



आकस्मिक धन प्राप्ति साधना - 


जीवनकाल मे व्यक्ति को अपनी इच्छाओ की पूर्ति तथा योग्य रूप से जीवन निर्वाह करने के लिए कितने ही कष्ट उठाने पड़ते है. कितने समय तक परिश्रम ग्रस्त भी रहना पड़ता है. और न जाने कितना ही शारीरिक तथा मानसिक रूप से गतिशील रहना पड़ता है. 


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इन सब के मूल मे पूर्ण रूप से भौतिक सुख की प्राप्ति है. और इस पूर्ण सुख प्राप्ति के लिए धन प्राप्ति एक बहोत ही बड़ा अंग है. हर एक व्यक्ति की इच्छा होती है की वह भौतिक द्रष्टि से सम्प्पन हो, वह सुखो का उपभोग करे तथा अपने परिवार को भी कराये. 


अपनी इछाओ तथा मनोकामनाओ की पूर्ति करे तथा अपना और परिवार का ऐश्वर्य बनाये रखे. लेकिन क्या यह हर व्यक्ति के लिए संभव है? नहीं. क्यों की हमारा जीवन कर्मप्रधान है. 


हमारे कर्मफल के निमित हमारा भाग्य होता है तथा उसी के अनुरूप हमें भोग तथा सुखो की प्राप्त होती है. लेकिन यह प्रारब्ध यह भाग्य को साधनाओ के माध्यम से परावर्तित किया जा सकता है. किसी भी क्षेत्र मे परिश्रम के साथ ही साथ श्रद्धा तथा विश्वास के साथ साधना कर दीव्य शक्तियो की कृपा प्राप्त कर ली जाए तो सफलता निश्चित रूप से मिलती है. 


धन प्राप्ति के सबंध मे भी तंत्र शास्त्र मे अनेको साधना है, जिनके द्वारा व्यक्ति अपनी धन प्राप्ति की इच्छा को पूर्ण कर सकता है. लेकिन गुप्त रूप से एसी साधनाओ का प्रचलन भी रहा जिससे व्यक्ति को निश्चित ही अत्यधिक कम समय मे अर्थात शीघ्र ही धन की प्राप्ति हो जाती है.


 चाहे किसी न किसी रूप मे साधक को कोई भी माध्यम से धन की प्राप्ति होती है. इस प्रकार के प्रयोगों को आकस्मिक धनप्राप्ति प्रयोग कहे जाते है. 


प्रस्तुत प्रयोग आकस्मिकधनप्राप्ति के प्रयोगों की श्रृंखला मे एक अजूबा है. यह प्रयोग बहोत ही कम समय का है तथा साधक को निश्चित सफलता देने मे पूर्ण समर्थ है.


 इस प्रकार जिन व्यक्तियो के पास लंबे अनुष्ठान करने का समय नहीं है ऐसे व्यक्तियो के लिए भी यह प्रयोग श्रेष्ट है. प्रयोग की पूर्णता पर साधक को आय के नए स्तोत्र प्राप्त होते है, रुका हुआ धन प्राप्त होता है. या फिर किसी न किसी रूप मे धन की प्राप्ति होती है.


इस साधना को किसी भी शुक्रवार से शुरू किया जा सकता है.


समय रात्री काल मे १० बजे के बाद का हो

साधक के आसान तथा वस्त्र लाल रंग के हो तथा दिशा उत्तर रहे

साधक को यह साधना पलाश वृक्ष के निचे बैठकर करनी चाहिए. 


अगर किसी भी रूप मे साधक के लिए यह संभव नहीं हो तो साधक जहा पर साधना कर रहा हो वहा पर अपने सामने पलाश वृक्ष की लकड़ी को लाल वस्त्र पर रख दे.


 साधक अपने सामने देवी महालक्ष्मी का चित्र स्थापित करे. संभव हो तो महालक्ष्मी यन्त्र या श्री यन्त्र स्थापित करे. तथा उसका पूजन करे. उसके बाद साधक देवी महालक्ष्मी को प्रणाम कर साधना मे सफलता के लिए प्रार्थना करे. उसके बाद साधक निम्न लिखित मंत्र का कमलगट्टे की माला से २१ माला जाप करे.


ॐ श्रीं शीघ्र सिद्धिं तीव्र फलं पूरय पूरय देहि देहि श्रीं श्रीं श्रीं नमः


मंत्र जाप पूरा होने पर साधक को गाय के घी से १०१ आहुति इसी मंत्र के साथ अग्नि मे समर्पित करनी है. इसके बाद साधक नमस्कार कर सफलता प्राप्ति के लिए प्रार्थना करे.


यह क्रम व्यक्ति को ३ दिन तक रखना है. ३ दिन बाद साधक माला को तथा अगर पलाश की लकड़ी को उपयोग मे लाया है तो वह भी पानी मे प्रवाहित कर दे.


 साधक की शीघ्र धनप्राप्ति की इच्छा जल्द ही पूर्ण होती है.


निश्चय ही अगर साधना पूर्ण मनोभाव और समर्पण के साथ कि जाये तो साधक के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आने लगते है.और जीवन को एक नविन दिशा मिलती ही है.तो अब देर कैसी आज ही संकल्प ले और साधना के लिए आगे बड़े.


साधना समाग्री दक्षिणा === 1551


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Tuesday, May 16, 2023

जब एक स्त्री और पुरूष वैवाहिक जीवन में प्रवेश करते हें

 




जब एक स्त्री और पुरूष वैवाहिक जीवन में प्रवेश करते हें तब उनके कुछ सपने और ख्वाब होते हैं. कुण्डली में मौजूद ग्रह स्थिति कभी कभी ऐसी चाल चल जाते हैं कि पारिवारिक जीवन की सुख शांति खो जाती है.


पति पत्नी समझ भी नही पाते हैं कि उनके बीच कलह का कारण क्या है और ख्वाब टूट कर बिखरने लगते हैं.

वैवाहिक जीवन में मिलने वाले सुख पर गहों का काफी प्रभाव होता है.


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ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सप्तम यानी केन्द्र स्थान विवाह और जीवनसाथी का घर होता है. इस घर पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर या तो विवाह विलम्ब से होता है या फिर विवाह के पश्चात वैवाहिक जीवन में प्रेम और सामंजस्य की कमी रहती है. 


इसके अलावे भी ग्रहों के कुछ ऐसे योग हैं जो गृहस्थ जीवन में बाधा डालते हैं.


ज्योतिषशास्त्र कहता है जिस स्त्री या पुरूष की कुण्डली में सप्तम भाव का स्वामी पांचवें में अथवा नवम भाव में होता है उनका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहता है. 


इस तरह की स्थिति जिनकी कुण्डली में होती है उनमें आपस में मतभेद बना रहता है जिससे वे एक दूसरे से दूर जा सकते हैं. 


जीवनसाथी को वियोग सहना पड़ सकता है. हो सकता है कि जीवनसाथी को तलाक देकर दूसरी शादी भी करले. इसी प्रकार सप्तम भाव का स्वामी अगर शत्रु नक्षत्र के साथ हो तो वैवाहिक जीवन में बाधक होता है.


जिनकी कुण्डली में ग्रह स्थिति कमज़ोर हो और मंगल एवं शुक्र एक साथ बैठे हों उनके वैवाहिक जीवन में अशांति और परेशानी बनी रहती है. ग्रहों के इस योग के कारण पति पत्नी में अनबन रहती है. 


ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार कमज़ोर ग्रह स्थिति होने पर शुक्र की महादशा के दौरान पति पत्नी के बीच सामंजस्य का अभाव रहता है. केन्द्रभाव में मंगल, केतु अथवा उच्च का शुक्र बेमेल जोड़ी बनाता है.


 इस भाव में स्वराशि एवं उच्च के ग्रह होने पर भी मनोनुकल जीवनसाथी का मिलना कठिन होता है. शनि और राहु का सप्तम भाव होना भी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है क्योंकि दोनों ही पाप ग्रह दूसरे विवाह की संभावना पैदा करते हैं.


सप्तमेश अगर अष्टम या षष्टम भाव में हो तो यह पति पत्नी के मध्य मतभेद पैदा करता है. इस योग में पति पत्नी के बीच इस प्रकार की स्थिति बन सकती है कि वे एक दूसरे से अलग भी हो सकते हैं. 


यह योग विवाहेत्तर सम्बन्ध भी कायम कर सकता है अत: जिनकी कुण्डली में इस तरह का योग है उन्हें एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और समर्पण की भावना रखनी चाहिए।


 सप्तम भाव अथवा लग्न स्थान में एक से अधिक शुभ ग्रह हों या फिर इन भावों पर दो से अधिक शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो यह जीवनसाथी को पीड़ा देता है जिसके कारण वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है.


सप्तम भाव का स्वामी अगर कई ग्रहों के साथ किसी भाव में युति बनाता है अथवा इसके दूसरे और बारहवें भाव में अशुभ ग्रह हों और सप्तम भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो गृहस्थ जीवन सुखमय नहीं रहता है.


 चतुर्थ भाव में जिनके शुक्र होता है उनके वैवाहिक जीवन में भी सुख की कमी रहती है. कुण्डली में सप्तमेश अगर सप्तम भाव में या अस्त हो तो यह वैवाहिक जीवन के सुख में कमी लाता है.


आप अपनी जन्म कुण्डली दिखा सकते हैं 


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ज्योतिष विद्या और यंत्र मंत्र तंत्र विद्या द्वार किसी भी समस्या का समाधान कर इन्से निजात पाया जा सकता है

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दक्षिणा  -  501  मात्र .


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Monday, May 15, 2023

धन की परेशानी दूर करते है बटुक दानी


 


धन की परेशानी दूर करते है बटुक दानी


यदि आप है धन से परेशान, नही दिख रहा कोई समाधान , करते है बटुक साधना और नही मिल रहा कोई रास्ता तो आओ हम चलते है श्मशानी बटुकनाथ दानी के पास , जो है मात्र एक सहारा और भक्तों को देगा किनारा । वो है शिव का नटखट अवतार इसी लिए भरता है भण्डार।


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 मैं राजकुमार तिवारी नही कह रहा कोई मन गढ़न्त कहानी ये है ग्रन्थों की वाणी । चरा चर ब्रह्माण्डमें सभी देव है दानी पर नही है हमारे बटुकनाथ का कोई शानी क्यों कि बाबा है मेरे महादानी । बाबा के सभी मन्त्र है कल्याणी जपते ही छूट जाती है जन्मों की परेशानी ।


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जैसा कि हमें ज्ञात है की अर्थ न हो तो व्यक्ति का समस्त कार्य बाधित हो जाता है । बिना धन के कोई भी कार्य नही किया जा सकता फिर चाहे वो शिक्षा, दवा, भोजन या भजन धन के अभाव में कुछ भी सम्भव नही और सबसे बड़ी बात की आप बहुत अच्छे हो पर धन नही है तो कोई सम्मान तक नही करता । इस लिए अब हम को बाबा की अर्थ प्राप्ति की साधना बताते है।


जी हाँ आज हम श्री बटुक भक्तों को एक नवीन मार्ग से अवलोकन करायेंगे, कुछ के लिए ये नवीन है तो कुछ के लिये ये पहले से जाना समझा हो सकता है । पर इस मार्ग से भक्त 1000% सन्तुष्ट ही रहा है । 


जैसा कि आपको ज्ञात है कि श्री बटुक भैरवनाथ जी भगवान सदा शिव के बाल रूप है, शैव सम्प्रदाय धर्म का एक मार्ग है नाथ सम्प्रदाय इस मार्ग में भगवान भैरवनाथ का पूजन होता है । 


यदि कोई बटुक उपासक है, धन से परेशान है तो उसे भगवान स्वर्णाकर्षण का जाप करना आवस्यक है इससे आपकी पुकार आपके बटुकनाथ तक पहुंच जाती है ।


 यह रूप श्री बटुक भैरव ने इस लिए रखा कि उनके भक्त कभी कष्ट में न रहे । इस रूप में बाबा ने स्वर्ण की आभा युक्त रूप रखा है और मन्दार के पेड़ के नीचे माणिक्य का सिंहासन लगा कर विराजमान है और अपने भक्तों पे धन और स्वर्ण की बरसा सदैव करते रहते है । 


इसी लिए इस रूप को स्वर्णा कर्षण कहा जाता है । बटुक उपासक विरला होता है। उसका कोई कुछ नही कर सकता और उसको कभी किसी की परवाह नही करनी चाहिए चाहे कोई बड़ाई करे या बुराई सब बाबा पे छोड़ देना चाहिए । 


कोशिश ये रहे कि लोगो से अलग ही रहो उतना अच्छा ज्यादा अपने बारे में बात न करो, खास कर साधना से सम्बंधित पर हाँ ये कभी न छुपाओ की आप बाबा बटुकनाथ की सेवा करते हो जो पूंछे बता सकते हो,  बाबा का जय कारा लगता रहे इससे बाबा बहुत प्रसन्न होते है । 


यदि कोई बाबा के बारे में उल्टा बोले तो वहाँ से हट जाओ बस इतना कह दो * बाबा आपही देखो* उसके बाद चले जाओ । फिर उसे ब्रह्माण्ड में कोई नही बचा सकता । अब आपको बताते है उस अमोघ मंत्र के बारे में जिसे करने से भक्त धनवान होता है पर ये मंत्र उनपे ही काम करता है जो बटुक उपासक होंगे । 


स्वर्णाकर्षण भैरव मन्त्र -


 *ॐ ऐं क्लीं क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं ह्रूं सः वं आपदुद्धारणाय अजामल बद्धाय लोकेश्वराय स्वर्णा कर्षण भैरवाय मम् दारिद्रय विद्वेषणाय ॐ ह्रीं महा भैरवाय नमः ॐ नमः शिवाय*


 कृष्ण पक्ष की रात्रि व्यापी अष्टमी यानी भैरवाष्टमी  से रात्रि  व्यापी चतुर्दशी मतलब मासशिवरात्रि तक 11 हजार जप से मंत्र सिध्द होने लगता है फिर उसके बाद जितना अधिक करें उतना अच्छा । 


वैसे स्वर्णाकर्षण साधना का क्रम बहुत ही बृहद है , तो आगे के लेख में आपको जानकारी प्राप्त होती रहेगी ।।


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भुवनेश्वरी दरिद्रता नाशक साधना


 


भुवनेश्वरी दरिद्रता नाशक साधना


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नाम से ही स्पष्ट है की ये साधना कितनी महत्वपूर्ण है,जिस पर माँ भुवनेश्वरी की कृपा हो जाये,वो कभी दरिद्र नहीं रह सकता,क्युकी माँ कभी अपनी संतान को दुखी नहीं देख सकती है।


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ग्रहण काल में स्नान कर सफ़ेद वस्त्र धारण करे,और उत्तर की और मुख कर सफ़ेद आसन पर बैठ जाये।


सामने ज़मीन पर सफ़ेद वस्त्र बिछाये और उस पर,अक्षत से बीज मंत्र " ह्रीं " लिखे और उस पर एक कोई भी रुद्राक्ष स्थापित करे,गुरु तथा गणेश पूजन संपन्न करे,अब रुद्राक्ष का सामान्य पूजन करे,तथा निम्न मंत्र को २१ बार पड़े और अक्षत अर्पण करते जाये,अक्षत भी २१ बार अर्पण करने होंगे।


मंत्र :


||ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी इहागच्छ इहतिष्ठ इहस्थापय मम सकल दरिद्रय नाशय नाशय ह्रीं ॐ||


अब पुनः रुद्राक्ष का सामान्य पूजन कर मिठाई का भोग 

लगाये,तील के तेल का दीपक लगाये।


और बिना किसी माला के निम्न मंत्र का लगातार २ घंटे तक जाप करे,जाप करते वक़्त लगातार अक्षत रुद्राक्ष प

र अर्पण करते रहे।


साधना के बाद भोग स्वयं खा ले,और रुद्राक्ष को स्नान कराकर लाल धागे में पिरो ले और गले में धारण कर ले।और सारे अक्षत उसी वस्त्र में बांध कर कुछ दक्षिणा के साथ देवी मंदिर में रख आये और दरिद्रता नाश की प्रार्थना कर ले।


मंत्र :


||हूं हूं ह्रीं ह्रीं दारिद्रय नाशिनी भुवनेश्वरी ह्रीं ह्रीं हूं हूं फट||


यह साधना अद्भूत है,अतः स्वयं कर अनुभव प्राप्त करे।


सभी बीजाक्षरों मे मकार का उच्चारन होग।.


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Sunday, May 14, 2023

भैरव गंडा निर्माण विधि


 



भैरव गंडा निर्माण विधि


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श्री भैरव भगवान शिव का एक रुप माने जाते है. पुराणों तथा तंत्र शास्त्र में भैरव जी के अनेक रुपों का वर्णन प्राप्त होता है. इनके प्रमुख रुप इस प्रकार हैं:- 


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असितांग भैरव, चण्ड भैरव, रुरु भैरव, क्रोध भैरव, कपालि भैरव, भीषण भैरव, संहार भैरव उन्मत्त भैरव इत्यादि ! श्री भैरव जी की साधना शत्रुओं से बचाती है तथा समस्त भय का नाश करने वाली होती है.


 श्री भैरव जी के दस नामों का प्रात: काल स्मरण करने मात्र से सभी संकट दूर होते हैं. भैरव, भीम, कपाली शूर, शूली, कुण्डली, व्यालोपवीती, कवची, भीमविक्रम तथा शिवप्रिय नामों का स्मरण साधक को बल एवं साहस प्रदान करता है उसे कोई यातना एवं पीड़ा नहीं सताती. 


भैरव देव जी के राजस, तामस एवं सात्विक तीनों प्रकार की साधना तंत्र मैं प्राप्त होती हैं. बटुक भैरव जी के सात्विक स्वरूप का ध्यान करने से रोग दोष दूर होते हैं तथा दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है. इनके राजस स्वरूप का ध्यान करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. तथा इनके तामस स्वरूप का ध्यान करने से सम्मोहन, वशीकरण इत्यादि का प्रभाव समाप्त होता है


बहुध बच्चो एवं बड़ो को डरने , नींद मे चौकने की शिकायत हो जाती है ! उनको हवा का भी असर हो जाता है ! प्रेतात्माओ से रक्षा के लिए , आपदा विपदाओ से रक्षा का लिए , आरोग्य लाभ के लिए गंडो की जरुरत होती है ! यह गंडे काले डोरों की आठ लड़ मे करीब २ फुट लम्बे बट का बना लिए जाते है !


 डोरे को करीब पाच फुट लम्बी आठ लड़े करो ! उनको बट दो और उनको दुब्बर करके फिर बट दो तो तैयार डोरा २ फुट के करीब रह जाएगा ! काल भैरव अष्टमी रात आप स्नान आदि कर साफ़ धोती पहन कर दक्षिण की और मुह कर आसन पर बैठ जाए सर्व प्रथम गणेश - 


गुरु पूजन कर श्री भैरव पूजन करे और उस डोरे का भी पूजन करे ( पंचोपचार ) अब रुद्राक्ष माला से ५ माला निम्न मंत्र की करे -


'ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं '


 मंत्र जप पूर्ण होने के बाद उस डोरे का भी पूजन करे ( पंचोपचार ) अब एक पाठ भैरव कवच का करे और एक लाल पुष्प भैरव जी के चरणों मे अर्पित करे और उस डोरे मे एक गाठ लगा दे फिर एक पाठ करे और एक लाल पुष्प अर्पित कर एक गाठ फिर उस डोरे मे लगा दे


 इस प्रकार ११ पाठ करे और प्रत्येक पाठ पूर्ण होने पर एक गाठ लगा दे जब सभी पाठ पूर्ण हो जाए तो वही किसी पात्र मे आम की सुखी लकड़ी लगा कर हवन सामग्री मे चावल -कलातिल- जौ- शक्कर -घी मिलाकर कर उपरोक्त मंत्र की १०८ आहुति प्रदान करे और हवन पूर्ण हो जाने के बाद हवन के धुए से उस डोरे को अभिसिचित कर दे


 और आरती कर छमा याचना करे और उस गंडे को गले या दाहिनी भुजा मे धारण करे ! यह गंडा अधिक प्रभावशाली और तंत्र बाधा -


उपरी बाधा मे रक्षा करता है यहाँ तक की ग्रह जनित दुष्प्रभावो से भी साधक की रक्षा करता है और साधक सर्वत्र विजयी होकर यश, मान, ऐश्वर्य प्राप्त करता है


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Saturday, May 13, 2023

आप परेशान है अन सुलझे मामलो मे फसे हुए है


 



आप परेशान है अन सुलझे मामलो मे

फसे हुए है नींद  कम आती शरीर मे दर्द रहता है काम नही बनते पैसा नही आता तमाम साधना कर चुके लाभ नही हुवा  

तो समझे ग्रह आपको कष्ट दे रहे है 


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तौ कैसे जाने की कौन से ग्रह है किसी तरह पता भी चला की कौन है तो तीन ग्रह चार ग्रह निकल आए 

अब क्या करे पैसे है नही खर्चे लाखो के आ गए 

लेकिन हार नही मानना ठानना है 

तो क्या करे 


ले आए एक माला रूद्राक्ष की  

एक नव ग्रह यन्त्र

किसी शुभ रविवार को शुबह

नवग्रह यत्र स्थापित कर 

संकल्प कर 


11 माला शुबह


ॐ ब्रह्मामुरारी त्रिपुरान्तकारी भानु शशि भूमि सुतो बुध्दश्च गुरू शुक्र शनि राहु केतवा सर्वे ग्रह   शान्ति कराभवन्तु


यह मंत्र  51      दिन।  11 माला रोज शुबह जपे फिर 

51 पर हवन के


बाकी ग्रहो को अलग कर कर के उनकी समिधा से हवन करे न समिधा मिले 

तो घी से ही कम से कम एक हजार आहूतिया दे


जप चालू करने के 10  वे दिन से आराम दिखने लगेगा क्योकि 10 वे दिन  ब्रह्मा मुरारी  त्रिपुर नाशक शिव व 

नव ग्रहो का  सभी का 10 हजार नाम जपा जा चुका होगा 


 एक बार फलाहार करे शाम को भोजन करे ब्रत न रह सके तो दो बार भोजन करे घर का भोजन खाए

होटल पर न खाए 


लेकिन पूर्ण कृपा हेतु ब्रह्मचर्य से रहे 


यह साधना आपको सभी क्षेत्रो मे सफलता सौभाग्य और शान्ति देने वाली है जीवन मे यह आपको मजबूती देगी


न कर सके आपके पास ब्यवस्था हो योग्य आचार्य व पडितो से संकल्प सहित नियम सहित सवा लाख जप 11  दिन मे करावे हवन करावे  असाध्य सम्सयाओ को नष्ट होते देर देखेगे


जानते बहुत लोग है फर बताते नही क्योकि अपना आईडिया फ्री नही बेचते वे


जब शरीर मे दर्द हो नीद न आए दवा से ठीक न हो 

नीद की दवा लेनी पडे 

एक ग्रह और है वरूण देव उनका


ॐ वं वरूणाय नमः


मंत्र जप करे और पानी ना जादा न बर्बाद करे 

इससे लाभ होगा 


दर दर भटकने से कुछ नही मिलता कर्म करना फडता है


जब साधनाओ के दौराना काम भावना प्रबल हो तो चामुण्डा देवी का जप करे क्योकि चामुण्डा देवी अतिकाम का हान करने वाली है


और मोटापा कम करने मे भी चंण्डी चामुण्डा आदि मंत्र काम करते है जिस तरह माँ चामुण्डा है उसी तरह अपने भक्त को भी हलका फुलका तेज तर्रार बना देती है


और अधिक जानकारी समाधान उपाय विधि प्रयोग या ओरिजिनल रत्न की जानकारी या रत्न प्राप्ति के लिए या कुंडली विश्लेषण कुंडली बनवाने के लिए संपर्क करें 


जन्म  कुंडली  देखने और समाधान बताने  की 


दक्षिणा  -  351  मात्र .


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सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।


विशेष -


किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें


महायोगी  राजगुरु जी  《  महायोगी अघोराचार्य   》


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(रजि.)


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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...