Saturday, August 27, 2016

छुपी है मंत्रों में अलौकिक शक्तियां

मंत्र-तंत्र-यंत्र में असीम अलौकिक शक्तियां निहित है। इसके द्वारा नर से नारायण बना जा सकता है। आवश्यकता है सविधि साधना के साथ-साथ श्रध्दा एवं विश्वास की। अब प्रश्न उठता है कि मंत्र-तंत्र-यंत्र आखिर क्या है?

अभी हम मंत्रों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। मंत्र शब्दों या वाक्यों का वह वर्ण समूह है, जिसके निरंतर मनन से विशेष शक्ति प्राप्त की जाती है। मंत्र शास्त्र हमारे दिव्य दृष्टि युक्त ऋषि महर्षियों की देन है। मंत्र का सीधा संबंध मानव के मन से ही है, मन की एकाग्रता एवं तन्मयता मंत्र सिध्दि की मंजिल तक पहुंचाती है। मन को एकाग्र करके किसी भी देवी-देवता की सिध्दि प्राप्त की जा सकती है। मन की चंचलता हमें सामान्य रूप से किसी भी क्षेत्र में या कार्य में सफलता नहीं दिलवा सकती है। जब हम अपने को भौतिक जगत में असफल पाते हैं तो मंत्रों के रहस्यात्मक आलौकिक देव जगत में कैसे सफल हो सकते हैं? यह एक विचारणीय प्रश्न है। आज का मानव पूर्वापेक्षा अधिक परेशान है। वह जटिल समस्याओं के भंवर में बुरी तरह फंस चुका है।

भटका हुआ मानव

उसे सही रास्ते में तलाश है। भटका हुआ मानव अपने आप में ही परेशान है। उचित क्या है, उसे और क्या करना है और क्या नहीं करना है वह स्वयं निश्चय नहीं कर पाता है। अविश्वास के गहन अंधकार में दिग्भ्रमित होकर चक्कर काट रहा है। आज का बुध्दिजीवी वर्ग तो और भी ज्यादा परेशान है। परेशानी का मूल कारण है अपने आप को एडजस्ट न कर पाना। उसकी दिली तमन्ना रहती है कि उसकी हर चाह पूरी हो। यह हकीकत है कि हर तमन्ना तो एक शहंशाह की भी पूरी नहीं होती। हम दैनिक जीवन में आने वाली बहुत-सी समस्याओं का समाधान एवं इच्छित पदार्थों की प्राप्ति मंत्र की साधना से प्राप्त कर सकते हैं।

कार्य कोई भी हो व्यक्ति विशेष के भाग्य के अनुसार ही पूरा होता है। उसी प्रकार मंत्र-यंत्र-तंत्र की साधना का फल भी भाग्य के अनुसार ही प्राप्त होता है किसी को कम किसी को ज्यादा। सोये हुए भाग्य को जागृत करने में भगवत आराधना, तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना, अति सहायक सिध्द होती है। मंत्र शास्त्र के अन्तर्गत विविध कार्यों के लिये विविध मंत्र मिलते हैं। मंत्र मानव के विभिन्न कार्यों के अनुसार निश्चित हैं।
मूल रूप से वैदिक, साबर एवं तांत्रिक मंत्र है। वैदिक एवं साबर ये दोनों मंत्र एक साथ नहीं जपे जाते। साबर मंत्र अपने आप में स्वयं सिध्द है। गुरु गोरखनाथ एवं भगवान दत्तात्रेय द्वारा कृत ये मंत्री अत्यंत ही चमत्कारिक एवं प्रभाविक हैं।

मंत्र शास्त्र के अनुसार किसी मंत्र विशेष का निरंतर मनन करना यानि जपना मंत्र सिध्दि का सुलभ मार्ग है। ग्रह जनित पीड़ा, दोष, अनिष्ठ निवारण, शत्रुओं पर विजय प्राप्ति हेतु भगवत आराधना एवं मंत्र साधना अत्यंत ही कारगर सिध्द होती है। मंत्र साधना के द्वारा आत्मिक शक्ति को जाग्रत करके घातक रोगों से भी मुक्ति पायी जा सकती है। मंत्र साधना के द्वारा हम अपने जीवन को सुखपन, शांतिमय साथ ही साथ आनंदमय बनाने में सफल हो सकते हैं।

अमूल्य निधि

मंत्र शास्त्र भारत की प्राचीन अमूल्य निधि है इस विद्या का प्रचार एवं प्रसार करना, सर्वहितकारी एवं इस लोक के सामान्य जन के लिये प्रस्तुत करना तथा शोध के द्वारा अनुभवों में सत्य पाये गये मंत्र तंत्र यंत्र की जानकारी देना, जिससे आज के जन लाभ प्राप्त कर सकें और अपना जीवन सहज रूप में व्यतीत कर सकें, यही मेरा उद्देश्य है। यंत्र-मंत्र-तंत्र के साधक का परम पिता परमेश्वर पर असीम विश्वास रहता है। वे अपने सारे कार्य प्रभु कृपा को सुपुर्द कर देते हैं प्रभु की इच्छा ही साधक की इच्छा होती है और साधक की इच्छी ही प्रभु की इच्छा होती है। साधक को कभी भी किसी प्रकार की कमी नहीं खटकती है। उसे अपार आंतरिक सुख की अनुभूति होती है, उसका सीधा संबंध इष्ट देवता से यानि जिस देवता के मंत्र का साधक है, बना रहता है। उच्चकोटि के साधकों को भूत, भविष्य तथा वर्तमान का भी ज्ञान रहता है, ऐसे चमत्कार हमको प्राय: सुनने एवं पढ़ने को मिलते रहते हैं। उच्च कोटि के साधक को, जो भाव से साधना करते हैं उन्हें प्रभु चाह के अतिरिक्त और कोई चाह नहीं रहती। जहां प्रभु ही मिल गये वहां कमी किस बात की।

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Friday, August 19, 2016

श्रीऋद्धि-सिद्धि के लिए श्री गणपति -साधना एवं अस्थिर लक्ष्मी स्थिर करने का लक्ष्मी मंत्र

अगर घर में आर्थिक स्थिति ठीक न हो  तो मायूस होने की जरुरत नहीं स्वच्छ और निर्मल भाव से इस साधना को करे निश्चित ही आप को परिवर्तन नजर आयेगा इसमें विशेष विधि विधान की जरुरत नहीं

‘कलौ चण्डी-विनायकौ’- कलियुग में ‘चण्डी’ और ‘गणेश’ की साधना ही श्रेयस्कर है। सच पूछा जाए, तो विघ्न-विनाशक गणेश और सर्व-शक्ति-रुपा माँ भगवती चण्डी के बिना कोई उपासना पूर्ण हो ही नहीं सकती। ‘भगवान् गणेश’ सभी साधनाओं के मूल हैं, तो ‘चण्डी’ साधना को प्रवहमान करने वाली मूल शक्ति है। यहाँ भगवान् गणेश की साधना की एक सरल विधि प्रस्तुत है।

वैदिक-साधनाः

यह साधना ‘श्रीगणेश चतुर्थी’ से प्रारम्भ कर ‘चतुर्दशी’ तक (१० दिन) की जाती है। ‘साधना’ हेतु “ऋद्धि-सिद्धि” को गोद में बैठाए हुए भगवान् गणेश की मूर्ति या चित्र आवश्यक है।

विधिः पहले ‘भगवान् गणेश’ की मूर्ति या चित्र की पूजा करें। फिर अपने हाथ में एक नारियल लें और उसकी भी पूजा करें। तब अपनी मनो-कामना या समस्या को स्मरण करते हुए नारियल को भगवान् गणेश के सामने रखें। इसके बाद, निम्न-लिखित स्तोत्र का १०० बार ‘पाठ‘ करें। १० दिनों में स्तोत्र का कुल १००० ‘पाठ‘ होना चाहिए। यथा-

स्वानन्देश गणेशान्, विघ्न-राज विनायक ! ऋद्धि-सिद्धि-पते नाथ, संकटान्मां विमोचय।।१

पूर्ण योग-मय स्वामिन्, संयोगातोग-शान्तिद। ज्येष्ठ-राज गणाधीश, संकटान्मां विमोचय।।२

वैनायकी महा-मायायते ढुंढि गजानन ! लम्बोदर भाल-चन्द्र, संकटान्मां विमोचय।।३

मयूरेश एक-दन्त, भूमि-सवानन्द-दायक। पञ्चमेश वरद-श्रेष्ठ, संकटान्मां विमोचय।।४

संकट-हर विघ्नेश, शमी-मन्दार-सेवित ! दूर्वापराध-शमन, संकटान्मां विमोचय।।५

उक्त स्तोत्र का पाठ करने से पूर्व अच्छा होगा, यदि निम्न-लिखित मन्त्र का १०८ बार ‘जप’ किया जाए। यथा-


ॐ श्री वर-वरद-मूर्त्तये वीर-विघ्नेशाय नमः ॐ”

साधना-काल में (१० दिन) साधना करने के बाद दिन भर उक्त मन्त्र का मन-ही-मन स्मरण करते रहें। ११ वें दिन, पहले दिन जो नारियल रखा था, उसे पधारे (फोड़कर) ‘प्रसाद’ स्वरुप अपने परिवार में बाँटे। ‘प्रसाद’ किसी दूसरे को न दें।

इस साधना से सभी प्रकार की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। सभी समस्याएँ, बाधाएँ दूर होती है।

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम
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व्यापार वृद्धि प्रयोग -

-: मंत्र :-

॥ धां धीं धूं धूर्जटे पत्नीं वां वीं वुं वागधीश्वरी
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देव्ये शां शीं शुं में शुभम कुरु ॥

विधी :-

उपरोक्त मन्त्र सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में से हैं । कुछ शुद्ध गुलाब में से बनी अगरबत्ती लेकर उपरोक्त मन्त्र 108 बार जप
कर अगरबत्ती अभिमंत्रित कर लीजिए । उसके बाद उन अगरबत्ती में से 5 अगरबत्ती लेकर प्रज्वलित करे । उसके बाद अपने पुरे व्यवसाय स्थल में एंटी क्लोक वाइस (घडी की उलटी दिशा में) घुमाले और एक जगह लगादे और फिर देखे आपका व्यापार कैसे नहीं चलता । यह प्रयोग पूर्ण प्रामाणिक एवं कई बार परिक्षीत हैं ।

माँ भगवती ने चाहा तो आप व्यापार को लेकर जल्द ही चिंता मुक्त हो जायेंगे ॥

राज गुरु जी

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Monday, August 1, 2016

अक्षय-धन-प्राप्ति मन्त्र

प्रार्थना

हे मां लक्ष्मी, शरण हम तुम्हारी।
पूरण करो अब माता कामना हमारी।।
धन की अधिष्ठात्री, जीवन-सुख-दात्री।
सुनो-सुनो अम्बे सत्-गुरु की पुकार।
शम्भु की पुकार, मां कामाक्षा की पुकार।।
तुम्हें विष्णु की आन, अब मत करो मान।
आशा लगाकर अम देते हैं दीप-दान।।

मन्त्र-

 “ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै। ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं श्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”

विधि

- ‘दीपावली’ की सन्ध्या को पाँच मिट्टी के दीपकों में गाय का घी डालकर रुई की बत्ती जलाए। ‘लक्ष्मी जी’ को दीप-दान करें और ‘मां कामाक्षा’ का ध्यान कर उक्त प्रार्थना करे। मन्त्र का १०८ बार जप करे। ‘दीपक’ सारी रात जलाए रखे और स्वयं भी जागता रहे। नींद आने लगे, तो मन्त्र का जप करे। प्रातःकाल दीपों के बुझ जाने के बाद उन्हें नए वस्त्र में बाँधकर ‘तिजोरी’ या ‘बक्से’ में रखे। इससे श्रीलक्ष्मीजी का उसमें वास हो जाएगा और धन-प्राप्ति होगी। प्रतिदिन सन्ध्या समय दीप जलाए और पाँच बार उक्त मन्त्र का जप करे।

राजगुरु जी

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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...