Wednesday, January 27, 2016

बगलामुखी यंत्र






धर्मशास्त्रो के अनुसार,यंत्र शब्द का मतलब परेशानी दूर करने का तत्काल माध्यम.यह मिलाने का काम करता है,यह वश मे करता है,यह मनोवांछित फल देता है,यह परिवार को बांध कर रखता है.यन्त्र दूसरे कार्यो के लिए भी काफी उपयोगी है.जैसे-परिश्रम का उचित फल देना,कार्य करने मे उत्साह देना,ध्यान,दिमाग को स्थिर और एकाग्र करना,बुरी नजरो और बुरी शक्तियो से बचाना तथा पदोन्नति कराना.ऐसा विश्वास किया जाता है-कि यंत्र शब्द की उत्पति संस्कृत के शब्द"यम+तराना" से हुआ है.जिसका मतलब है सहायता या रक्षा करना और यंत्र का अर्थ है परेशानियों से निवारण.इस प्रकार यंत्र जन्म और मृत्यु के भंवर से निकाल कर मुक्त भी करता है.यंत्र की उत्पत्ति आज् से पाँच हजार साल पहले हुई. यंत्र का व्यापक तौर पर विकास क्रमवार से हुआ.सबसे पहले आध्य,पूर्व शास्त्रीय,महा काव्य,शास्त्रीय संगीत के बाद शास्त्रीय और आधुनिक योग में हुआ है.
यंत्र एक प्रकार से भगवान और देवताओं को प्रदर्शित करता हुआ चिन्ह है.यह विभिन्न प्रकार के पदार्थो द्वारा निर्मित किया जाता है.जैसे-
सोना,चांदी,तांबा,स्फटिक,भुर्ज हड्डिया और् शालिग्राम.यंत्र निर्माण के दौरान मंत्रों का उच्चारण,बिंदी,गुप्त पत्र,गुप्त मंत्र,रंग,आकार,आकड़ों का खास ख्याल रखा जाता है.जबकि यंत्र के रंग और रोगन के समय सटीकता,शुध्दता,अनुशासन,एकाग्रता,स्वच्छता और धैर्यता का काफी ज्यादा महत्व दिया जाता है.ये कार्य सिर्फ वही व्यक्ति कर सकता है जो धर्म को गहराई से जाने और शास्त्र का अध्ययन किया हो.यंत्र निर्माण के पहले ग्रह और नक्षत्र के अनुसार स्थान का चयन,संतुलित संरचना,खास स्याही और शुभ घड़ी का अध्ययन किया जाता है. यंत्र को हिन्दू और तिब्बत के तांत्रिक आगाढ ध्यान को केंद्रित कर निर्माण करतें हैं.यंत्र को सही मंत्र और सही उच्चरण के साथ उपयोग करना चाहिए.यह अध्यात्मिक स्तर का एक वास्तविक केन्द्र है.यंत्र किसी व्यक्ति को भगवान के शक्ति के द्वारा वह सब परिणाम देता है जो वह चाहता है.उन व्यक्तियों के लिए जो जन्म,पुनर्जन्म के चक्रव्यूह से निकलना चाहतें हैं उनके लिए यह यंत्र मददगार हैं.हिन्दु धर्म का मानना है-कि माँ बगलामुखी यंत्र मे निवास करती हैं.यंत्र धार्मिक कार्यो में काफी आदर और शुभ माना जाता है.यंत्र भगवान के हाथ हथलि का भी प्रतीक माना गया है.यंत्र को हर धार्मिक कार्य के प्रतीक के रूप मे दर्शाया गया है.यंत्र के उपयोग के पहले इसे शुध्द तथा उर्जावान बनाया जाता है.यंत्र बन जाने के पश्चात इसे स्नान कराया जाना चाहिए.स्वर्ण पत्र पर स्थापित कर इसे अष्ठसुगंध या कुन्दा फूल,गोला फूल,उध्दभा फूल से पूजा किया जाना चाहिए.चूंकि यंत्र भगवान को दर्शाता है.इसलिए इसकी पूजा उचित मंत्र का जप करते हुए करना चाहिए.इस प्रक्रिया से यंत्र मे भगवान की दिव्य शक्ति आ जाती है.यह् सारी तंत्रिक क्रिया रात मे करनी चाहिए.उस यंत्र की उर्जा ज्यादा शक्तिशाली और प्रभावकारी होता है.जिसका निर्माण महाशिव रात्रि,होली और दीपावली के दौरान होता है.यंत्र धारण करने से पहले इस पर महत्वपूर्ण मंत्र लिखा होना चाहिए.यंत्र के वाह्ये भाग मे रक्षा कवच और एक हजार नामों का उल्लेख होना चाहिए.यंत्र मे देवी की दिव्य शक्ति प्राप्त होने के बाद,यंत्र का ज्यादा से ज्यादा लाभ लेने के लिए इसे सोने या चंदी धातु के हार में पहनना चाहिए.यंत्र के रेखाचित्र बनाते समय लाल,नारंगी,पीले रंगो का उपयोग करना चाहिए.यंत्र को धारण करने से पहले सुबह में एकबार दिप प्रज्जवलित कर पूजा करना चाहिए.बगलामुखी महायंत्र की शक्ति का उपयोग अपने दुश्मन पर हावी और नियंत्रित करने में किया जाता है.बगलामुखी यंत्र दुश्मनों पर विजय प्राप्त करने,कानूनी दांव पेंच,कचहरी का मुकद्दमा.झगड़ो में सफलता,प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता में काफी कारगर और उपयोगी हैं.पीठासीन देवी बगलामुखी इस यंत्र के दिव्य शक्ति को नियंत्रित करती हैं.इस यंत्र की पूजा पीले वस्त्र धरण कर,पीले आसन पर बैठकर तथा पीले फूल और पीले दानें के साथ खास नक्षत्र में तब करें जब मंगल ग्रह से अधिकतम उर्जा का उत्सर्जन होता है.इस यंत्र को रेखाचित्र बनाने में हल्दी,धतूर फूल का रस उपयोग होता है.इस यंत्र को उन धतुओं पर उकेरा जा सकता है जो सिर्फ स्वर्ण आभा लिए हो.बगलामुखी का यंत्र बुरी शक्तियों से बचाव में अचूक हैं.बगलामुखी यंत्र शत्रुओं पर लगातार विजय श्री दिलाता है.यह यंत्र अकाल मृत्यु,दुर्घटना,दंगा फसाद,औपरेशन आदि से भी बचाव करता है.इसे गले में पहनने के साथ-साथ पूजा घर में भी रख सकतें हैं.इस यंत्र की पूजा पीले दाने,पीले वस्त्र,पीले आसन पर बैठकर निम्न मंत्र को प्रतिदिन जप करते हुए करना चाहिए.
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!!!ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुध्दिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा !!!
अपनी सफलता के लिए कोई भी व्यक्ति इस यंत्र का उपयोग कर सकता है.इसका वास्तविक रूप मे प्रयोग किया गया है.इसे अच्छी तरह से अनेक लोगों पर उपयोग करके देखा गया है.इस यंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा करने के बाद इसे अपने पूजा के स्थान पर या अपने गृह मंदिर मे लकड़ी के बने चौक जिसपर पीला आसन लगाया गया हो उसपर स्थापित कर दें.स्नान करने के बाद पूजा करें.अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए अपने दाहिने हाथ मे जल लेकर,माँ बगलामुखी मंत्र का जप करें और यंत्र पर छिड़क दें.आपकी मनोकामना आवश्य पूर्ण होगी.यंत्र के बारे मे दिशा निर्देश-यह यंत्र एक प्रकार का उपकरण है.एक तिलिस्म या दिव्य लेखाचित्र है जो स्वर्ण आभा लिए धातु पर अंकित है.अपने इच्छा और चाहत को साधारण और कम समय मे सफलता प्राप्त करने का रास्ता बतलाता है.ऐसा माना जाता है-कि यंत्र मे देवताओं का निवास है.इसीलिए यंत्र की पूजा होती है.इससे देवता खुश होते हैं और नाकारात्मक शक्तियों को हटाकर शुभ घड़ी को बढातें हैं.अपने यंत्र को उर्जावान और सौभग्यशाली बनाने के लिए निम्नलिखित प्रयास करें.
1.सबसे पहले अपने शरीर को शुध्द कर अपने दिमाग को एकाग्र रखते हुए विश्वास रखें.
2.आप अपने घर मे पूर्व दिशा की ओर एक ऐसा स्थान का चयन करें जहाँ आपको कोई परेशान ना करें.
3.द्वीप को प्रज्जवलित करें.(दीपों की संख्या से कोई मतलब नहीं).
4.अपने वेदी पर ताजे फल और सुगंधित फूल रखें.
5.अपने यंत्र को उस स्थान पर रखें जहाँ यंत्र के देवता का चित्र हो और आपके इष्ट देवता हों.
6.किसी भी पेड़ की कोई भी पत्ती से जल का छिड़काव अपने उपर और यंत्र पर करें.
7.उसके बाद अपने मन और शरीर को पूर्ण रूप से माँ बगलामुखी को समर्पित कर और 21(इक्कीस)बार इस मंत्र का जप करें.
"ॐ ह्लीं बगलामुखी नमः"
8.अपने आँखों को बंद कर माँ का ध्यान लगाईए.माँ मुझे आशिर्वाद दो की मेरी मनोकामना पूर्ण हो.अब आप पूरी ईमानदारी से अपने भाषा मे कहें-हे देवी मेरी इच्छा,मनोकामना को पूर्ण किजिए.
वैदिक यंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा सिर्फ जानकार पंडित या पुरोहित के द्वारा ही कराएं.(वैदिक मंत्र का उच्चारण के समय एक लाख 18 हजार देवी देवताओं का स्मरण किया जाता है.)यंत्र के साथ प्राण-प्रतिष्ठा का प्रसाद भेजा जायेगा.(किसी भी प्रकार की खाने की वस्तु को नहीं भेजा जायेगा).

राज गुरु जी
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बगलामुखी कवच








यदि बगलामुखी कवच आपतक पहुँच जाए तो यह मत समझियेगा- कि यह आपके भाग्य पर मिला है.यह तो माँ का आशीर्वाद है- कि आप भाग्यशाली हैं. कि इस कवच को आप धारण करते हैं. मैं ऐसा विश्वास करता हूँ- कि माँ के दिशा निर्देश से पूर्ण शास्त्रीय ढंग से निर्माण करता हूँ. कवच का निर्माण तांत्रिक क्रिया है.
जिसमे एक दिव्य शक्ति का समावेश होता है. इसका निर्माण माँ के इच्छा अनुसार होता है मानव तो मात्र एक कठपुतली के समान है. इससे मुझे यकीन है- कि रक्षा कवच सिर्फ काम ही नहीं करता बल्कि यह प्रमाणित होता है.
»» यदि कोई मनुष्य अपने शरीर और कुल का कल्याण चाहता है तो इस कवच को आवश्य धारण करना चाहिए.
»»सुरक्षा कवच कि सहायता से मनुष्य अपने मनोकामना को पूर्ण करता है और एक सफल जीवन जीता है.
»»सुरक्षा कवच के धारण से मनुष्य निर्भीक साहसी हो जाता है, वह हर क्षेत्र में उन्नति करता है और खुशहाल जीवन जीता है.
»»जो मनुष्य सुरक्षा कवच धारण किए हुए हैं उसके उपस्थिति मात्र से सभी बुरे तांत्रिक क्रिया काला जादू आदि बुरी शक्ति नष्ट हो जाती है.
»»बगलामुखी सुरक्षा कवच धारण किए हुए व्यक्ति से जो न आँखों से दिखाई देता है और जो मनुष्य के जीवन पर गलत प्रभाव देतें हैं इससे दूर रहते हैं. सरल भाषा में यदि कहा जाए तो किसी भी प्रकार की नकारात्मक उर्जा से यह कवच उसका बचाव करता है.
»»इसे धारण किए हुए व्यक्ति अपने से बड़े अधिकारियों से सम्मान प्राप्त करता है. यह कवच बुद्धि को स्थिर करके उनके कार्य करने कि शक्ति को बढ़ाता है.
»»इस कवच के धारणकर्ता के व्यक्तित्व मे निखार आता है. वह समाज मे सम्मान प्राप्त करता है, उसका नाम और प्रसिद्धि चारों दिशाओं में फैलता है.
राज गुरु जी
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कंकाली साधना :





आर्थिक संकट से मुक्ति की गारंटी
शीघ्र सिद्धिदात्री, हर मनोकामना होती है पूरी
काली की ही रूप एक कंकाली देवी शीघ्र प्रसन्न होकर भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती है। शीघ्र सिद्धिप्रदा इस माता की साधना में न कोई झंझट है और न ज्यादा समय लगता है। आर्थिक संकट में फंसे लोगों के लिए इनकी साधना कामधेनु की तरह फलदायी है। इनका मंदिर कम है लेकिन जहां भी है, वहां भक्तों की भारी भीड़ लगती है और उनकी मनोकामना भी शीघ्र पूरी होती है।
लोककथा के अनुसार काली के विकराल रूप को कंकाली कहा जाता है। मथुरा में इनके नाम पर यह टीला है। कहा जाता है कि कंकाली देवी कंस द्वारा पूजी जाती थीं। पुरातत्त्व उत्खनन के अनुसार यहाँ एक प्राचीन जैन स्तूप स्थित होने के प्रमाण मिले। यहाँ मिली सभी वस्तुऐं जैनकालीन है। इसके सबसे पुराने अवशेष ई.पू. प्रथम शताब्दी के माने जाते है और सबसे नये 1177 ई. के माने जाते हैं। लखनऊ संग्रहालय में स्थित एक अभिलेख के अनुसार यहाँ के बौद्धस्तूप में प्रतिमा की स्थापना का विवरण 157 ई. का है। नये उत्खनन के अनुसार जो कि सड़क के किनारे वाले टीले का हुआ है जो बौद्ध विहार होने का संकेत देता है। साथ ही ईंटों के बने एक चौकोर कुण्ड भी है जिसकी संभावना कृष्णकालीन होने की हैं।
आर्थिक संकट से मुक्ति के लिए
1-काली कंकाली केलि कलाभ्यां स्वाहा--------
दस हजार रोज जप एवं एक हजार हवन (सूखी मछली से। न मिले तो त्रिमधु-- मधु, चीनी व घी से) 21 दिन में अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। इस अनुष्ठान से आर्थिक समस्या का शीघ्र निवारण होता है। इस विधि से अन्य मनोकामना की भी पूर्ति हो सकती है। मंत्र जप, हवन आदि के लिए कोई नियम व तरीका निर्धारित नहीं। अर्थात- इसके लिए शुद्धि-अशुद्धि, न्यासादि की भी जरूरत नहीं है। सिर्फ निर्धारित संख्या में जप व हवन से अभीष्ट की पूर्ति होती है। हालांकि इतना ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए कि देवी के प्रति अटूट भक्ति और विश्वास हो।
सर्व मनोकामना पूर्ति के लिए उपयोगी मंत्र
2-द्वादशाक्षर मंत्र---------ऊं काली कंकाली किल किले स्वाहा
3-त्रयोदशाक्षर मंत्र---------ऊं ह्रीं काली कंकाली किल किल स्वाहा
4-चतुर्दशाक्षर मंत्र---------(अ) ऊं काली महाकाली केलिकलाभ्यां स्वाहा
(ब) ऊं ह्रीं काली कंकाली किल किल फट स्वाहा
5-पंचादशाक्षर मंत्र---------(अ) क्लीं कालि कालि महाकालि कोले किन्या स्वाहा
(ब) ऊं कां काली महाकाली केलिकलाभ्यां स्वाहा
विधि--
उड्डामहेश्वर तंत्र एवं काली कल्पतरु में कंकाली के मंत्रों के जप के लिए दस हजार की संख्या में ही पुरश्चरण कहा गया है। उसके अनुसार दिन में दस हजार मंत्र का जप कर शाम को दसवें हिस्से के मंत्र से हवन करें। हवन की यह संख्या कम भी हो सकती है। एक अन्य मत के अनुसार--संध्याकाले सहस्रैकं होमयेत् ततः कंकाली वरदा भवति, सुवर्ण चतुष्टयं प्रत्यहं ददाति।
राज गुरु जी
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जिंदा हो सकता है रावण, श्रीलंका में है ममी!









कहा जाता है कि रावण की लाश एक ममी के रूप में आज भी सुरक्षित है। कई लोगों ने इस पर खोज कर इसे प्रामाणिकता देने की भी कोशिश की है। अब श्रीलंका में वह स्थान ढूंढ लिया गया है, जहां रावण की सोने की लंका थी और जहां रावण के मरने के बाद उसका शव रखा गया है। रावण से जुड़े ऐसे 50 स्थान ढूंढ लिए गए हैं जिनका ऐतिहासिक महत्व है। यह मान्यता है कि रावण की मौत के बाद वफादार सैनिक उसका शव लेकर भाग खड़े हुए थे। उन्होंने रावण के शव को इस आशा में ममी का रूप दे दिया कि भविष्य में रावण जिंदा हो जाएगा। ऐसा माना जाता है कि रैगला के जंगलों के बीच एक विशालकाय पहाड़ी पर रावण की गुफा है, जहां उसने घोर तपस्या की थी। उसी गुफा में आज भी रावण का शव सुरक्षित रखा हुआ है। रैगला के घने जंगलों और गुफाओं में कोई नहीं जाता है, क्योंकि यहां जंगली और खूंखार जानवरों का बसेरा है। यहां भयानक नाग भी रावण के शव की रखवाली करते हैं। रैगला के इलाके में रावण की यह गुफा 8 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। जहां 17 फुट लंबे ताबूत में रखा है रावण का शव। इस ताबूत के चारों तरफ लगा है एक खास लेप जिसके कारण यह ताबूत हजारों सालों से जस का तस रखा हुआ है। यह भी जानना जरूरी है कि उस समय शैव संप्रदाय में समाधि देने की रस्म थी। रावण शैवपंथी था। यह भी मान्यता है कि रावण के शव के नीचे उसका खजाना दबा हुआ है।
राज गुरु जी
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महाकाली साधना







काल की गति सूक्ष्म से अति सूक्ष्म हैं . काल केबल कोई समय मात्र नहीं हैं , काल सजीव व् निर्जीव की गतिशीलता की पृष्ठभूमि हैं . काल गति के हरेक बिंदु में असंख्य घटनाए समाहित हैं . इन्ही को हम काल योग या काल खंड कहते हैं . काल खंड में एक साथ हजारो प्रक्रियाए चलती रहती हैं , पर जिस भी प्रक्रिया का प्रभुत्व ज्यादा होता हे उसका असर हम पर प्रभाव ज्यादा रहता हे. इसी तरह अगर हम घटनाओ का अनावरण करे तो हरेक प्रक्रिया के लिए हमारे शास्त्रों में देवी एवं देवता निर्धारित हैं . आप ब्रम्हा, विष्णु, महेश, वरुण, इन्द्र, लक्ष्मी, सरस्वती, महाविद्या या किसी भी देवी देवता को देख लीजिए, प्रकृति में उनके कार्य निश्चित रूप से होते ही हैं .
अगर हम इसी बात को आगे लेकर बढे तो यह एक निष्कर्ष हैं कि पृथ्वी में जो भी गतिशीलता हैं या, काल खंड में समाहित जो भी घटनाए हैं उन हरएक घटना के स्वामी देव या देवी होते ही हैं.
हर एक क्षण में हमारे जीवन पर कोई न कई देवी देवता का प्रभाव पड़ता ही हैं . इसी को कहा गया हैं कि हरेक क्षण में कोई न कोई देवी या देवता शरीर में चैतन्य होते ही हैं . साधनाओ के द्वारा किसीभी देवी एवं देवताओ को सिद्ध कर के उनके द्वारा हमारी मनोकामना पूर्ति ,कार्य पूर्ति व इच्छा पूर्ति करवा सकते हैं . मगर हम ये नहीं जानते की किस क्षण में कौन देव / देवी चैतन्य हैं , और अगर हैं भी तो हम ये नहीं जानते कि प्रकृति आखिर कौन सा कार्य उस क्षण में करेगी और उसका हम पर क्या प्रभाव पड़ेगा.
अत्यंत उच्चकोटि के योगी, इस प्रकार का कालज्ञान रखते हैं , उन्हें मालूम रहता हैं कि कौन से क्षण में क्या होगा और उसका परिणाम किसके ऊपर क्या असर करेगा. कौनसे देवी या देवता उस क्षण में जागृत होंगे और कौन से देवी देवता उस क्षण अलग अलग मनुष्य में चैतन्य रहते हैं . इसी के आधार पर वे भविष्य में कौन से क्षण में किसके साथ क्या होगा और उसे अलग अलग व्यक्तियों के लिए कैसे अनुकूल या प्रतिकूल बनाना हैं इस प्रकार से अति सूक्ष्म ज्ञान रहता हैं .
जैसे कि पहले कहा गया हैं , कि काल खंड में घटित असंख्य घटनाओ में से किसी एक घटना का प्रभाव सब से ज्यादा रहता हैं हर एक व्यक्ति के लिए वो अलग अलग हो सकता हैं . और हम उसी को एक डोर में बांधते हुए "जीवन" नाम देते हैं . दरअसल हमारे साथ एक ही वक़्त में सेकड़ो घटनाए घटित होती हैं पर उनके न्यून प्रभाव के कारण हम उसे समझ नहीं पाते. अब जिस घटनाका प्रभाव सबसे ज्यादा होगा उसके देवता को अगर हम साधना के माध्यम से अनुकूल करले तो उस समय में होने वाले किसी भी घटना क्रम को हम आसानी से हमारे अनुकूल बना सकते हैं . पर हम इतने कम समय में कैसे समझ ले की क्या घटना हैं देवता कौन हैं प्रभाव कैसा रहेगा आदि आदि ...उच्चकोटि के योगियों के लिए ये भले ही संभव हो लेकिन सामान्य मनुष्यों के लिए ये किसी भी हिसाब से संभव नहीं हैं . और इसी को ध्यान में रखते हुए , एक ऐसी साधना का निर्माण हुआ जिससे अपने आप ही हर एक क्षण में रहा देव योग अपने आप में सिद्ध हो जाता हैं और देव योग का ज्ञान होता रहता हे जिससे कि ये पता चलेगा कि कौन से क्षण में क्या कार्य करना चाहिए. अपने आपही क्षमता आ जाती हैं की उसे कार्य के अनुकूल या प्रतिकूल होने का आभाष पहले से ही मिल जाता हैं और देवता उसके वश में रहते हैं
काल की देवी महाकाली को कहा गया हैं और काल उनके नियंत्रण में रहता हैं . इस साधना के इच्छुक लोगो को साधना के साथ साथ शक्ति चक्र पर त्राटक का भी अभ्यास करना चाहिए.
ये साधना रविवार या फिर किसी भी दिन शुरू की जा सकती हैं इस साधना में साधक को काले वस्त्र ही धारण करने चाहिए.
इस साधना में महाकाली यन्त्र व काले हकीक माला की जरुरत रहती हैं साधना काल के के सभी नियम इस साधना में पालन करने चाहिए .
रात्रि में ११ बजे के बाद साधक स्नान कर के, काले वस्त्र धारण कर के काले उनी आसन पर बेठे. अपने सामने महाकाली का चित्र स्थापित हो. यन्त्र की सामान्य पूजा करे. दीपक और लोबान धूप जरुर लगाए.
फिर निम्न लिखित ध्यान करे
मुंड माला धारिणी दिगम्बरा
शत्रुसम्हारिणी विचित्ररूपा
महादेवी कालमुख स्तंभिनी
नमामितुभ्यम मात्रुस्वरूपा
इसके बाद साधना में सफलता के लिए महाकाली से प्राथना करे एवं निम्न लिखित मन्त्र का २१ माला जाप करे.
क्लीं क्लीं क्रीं महाकाली काल सिद्धिं क्लीं क्लीं क्रीं फट .

११ दिन तक प्रति दिन साधना निर्देशित जप करे . इसके बाद माला को १ महीने तक धारण करे फिर इसे नदी में विसर्जित करदे. यन्त्र को पूजा स्थान में रखा
जा सकता हैं.
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तीव्र उच्छिष्ट गणपति साधना






कड़वे नीम की जड़ से कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन अंगूठे के बराबर की गणेश की प्रतिमा बनाकर रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वयं लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर पश्चिम मुख होकर झूठे मुँह से सामने थाली में प्रतिमा को स्थापित कर साधना में सफलता की सदगुरुदेव से प्रार्थना कर संकल्प करें और ततपश्चात गणपति का ध्यान कर उनका पूजन लाल चन्दन,अक्षत,पुष्प के द्वारा पूजन करे और लाल चन्दन की ही माला से झूठे मुँह से ही ५ माला मन्त्र जप करें. सात दिनों तक ऐसे ही पूजन करे और आठवे दिन अर्थात अमावस्या को पञ्च मेवे से ५०० आहुतियाँ करें इससे मंत्र सिद्ध हो जाता है. तब आप इनके विविध प्रयोगों को कर सकते हैं. २ प्रयोग नीचे दिए गए हैं.
१. जिस व्यक्ति का आकर्षण करना हो चाहे वो आपका बॉस हो, सहकर्मी हो, प्रेमी,प्रेमिका या फिर कोई मित्र या शत्रु हो जिससे, आपको अपना काम करवाना हो.उसके फोटो पर इस सिद्ध प्रतिमा का स्थापन कर ३ दिनों तक १ माला मन्त्र जप करने से निश्चय ही उसका आकर्षण होता है.
२. अन्न के ऊपर इस सिद्ध प्रतिमा का स्थापन कर ११ दिनों तक नित्य ३ माला मंत्र जप करने से वर्ष भर घर में धन धान्य का भंडार भरा रहता है और यदि इसके बाद नित्य ५१ बार मंत्र को जप कर लिया जाये तो ये भंडार भरा ही रहता है. नहीं तो आपको प्रति ६ माह या वर्ष में करना चाहिए.
ध्यान मन्त्र –
दंताभये चक्र- वरौ दधानं कराग्रग्रम् स्वर्ण-घटं त्रि-नेत्रं ,
धृताब्जयालिंगितमब्धि-पुत्र्या लक्ष्मी-गणेशं कनकाभमीडे.
मंत्र- ॐ नमो हस्ति मुखाय लम्बोदराय उच्छिष्ट महात्मने क्रां क्रीं ह्रीं घे घे उच्छिष्ठाय स्वाहा.

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बगलामुखी साधना - दुर्लभ - प्रयोग






महान ऊर्जाशक्ति की स्रोत दशमहाविद्याओं में मां पीतांबरा अथवा मां बगलामखी का आठवां स्थान है। इनका एक नाम वल्गा भी है। जो भी मां बगलामुखी का सिद्ध साधक है, उसके चारों ओर वल्गा का एक सुरक्षाचक्र घूमता रहता है और हमेसा उसकी रक्षा करता है। इस शक्ति का मूल सूत्र है अथर्वा प्राण सूत्र । रोचक यह है कि यह सूत्र हर प्राणी में सुप्तावस्था में विद्यमान होता है। साधना द्वारा यह सूत्र जाग्रत हो जाता है। भगवती बगलामुखी की साधना श्रेष्ठ साधना कही गई है। यह पीतांबरधारी श्री विष्णु की अमोघ शक्ति सहचरी है, इसलिए यह सोलह शक्तियों से पूर्ण ऊर्जा शक्ति पीतांबरा है। विष्णु पुराण में वर्णन आया है कि एक बार पृथ्वी पर भयंकर तूफान आया। ऐसा लगा कि इस प्रलय में सृष्टि समाप्त हो जाएगी। सभी देवताओं के साथ भगवान श्री विष्णु भी यह स्थिति देख कर अत्यंत चिंतित हुए और हरिद्रा सरोवर के तट पर गए। सभी ने सम्मिलित रूप से मां बगला का ध्यान किया। तपस्या की पूर्णता के साथ मंगलवार चतुर्दशी के दिन सौराष्ट्र के हरिद्रा सरोवर में मां का अविर्भाव हुआ। उन श्रीविद्या के रूप में प्रकट हुई मां बगला का रंग चंपई था और वे पीत वस्त्रों तथा स्वर्णाभूषणों से सुसज्जित थीं। उन्होंने प्रकट होते ही प्रलय का स्तंभन कर दिया। कहते हैं इनके उपासक के सभी कार्य बिना कहे, सोचने मात्र से संपन्न हो जाते हैं। अपने साधकों के लिए ये साक्षात कल्पतरु के समान हैं । मानव जीवन में अनेक प्रकार की उलझनें आती ही रहती हैं। विरोध, वैमनस्य आर्थिक समस्या व्यावसायिक संकट, मुकदमे तथा राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता आदि से पीडि़त लोगों के लिए मां बगला का अनुष्ठान कल्याणकारी सिद्ध होता है। मां पीतांबरा की उपासना तांत्रिक अनुष्ठान के नियमों के अंतर्गत की जाती है। पीले वस्त्र ,पीले पुष्प तथा पीला नैवेद्य इन्हें अत्यंत प्रिय है। वाक्सिद्धि, शत्रु नाश तथा स्तंभन, उच्चाटन व वशीकरण के लिए इनका प्रयोग अधिक प्रभावी है। किसी भी कार्य के लिए पहले इनकी सिद्धि करनी आवश्यक है। बगलामुखी साधना की पद्धति अपने आप में महत्त्वपूर्ण व दुर्लभ है
-मंत्र-
ऊं ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानाम् वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वां कीलय बुद्धि विनाशय ह्लीं ऊं स्वाहा।
इनकी साधना किसी भी मंगलवार से आरंभ की जा सकती है। सिद्धि के लिए सबसे पहले एकांत कमरा चुनें तथा उसे शुद्ध करके एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछा कर मां बगला का चित्र स्थापित करें। अनुष्ठान से पहले कवच का पाठ अवश्य करें। पूजा में आपका वस्त्र और आसन पीला होना आवश्यक है। हल्दी की माला ,पीला चंदन पीले पुष्पों और पीले ही नैवेद्य का प्रयोग करें।
हल्दी की माला से 108 मंत्र जप पूरे 21 दिनों तक करें। मंत्र जप समाप्त होने के बाद हवन सामग्री के साथ इसी मंत्र से 108 आहुति घी की दें। संभव हो तो पांच या सात कन्याओं को भोजन करवा कर दक्षिणा आदि देकर विदा करें।
बगलामुखी का प्रयोग कई कार्यों के लिए प्रभावी सिद्ध होता है।देव स्तंभन- एक लाख जप करने के बाद चंपा पुष्प से हवन करने से देवता भी वश में हो जाते हैं और सदा आपकी रक्षा करते हैं ।
मनुष्य स्तंभन-
पीत वस्त्र धारण कर केसरिया चंदन लगाएं और हल्दी की माला से एक लाख बगलामुखी का मंत्र पाठ करें तथा पीली वस्तुओं से ही उनका पूजन करें। शहद,घी,और शक्कर मिले तिल से हवन करने पर मनुष्य का स्तंभन होता है।
आकर्षण-
शहद, घी शक्कर और नमक से हवन करने पर प्राणीमात्र का आकर्षण होता है।
शत्रु स्तंभन-
ताड़पत्र तथा नमक,हल्दी मिला कर हवन करने से शत्रु स्तंभन होता है।
रोगनाशक-
शहद,चीनी दूर्वा तथा धान के लावे से हवन करने से समस्त रोग शांत होते हैं।
समस्त कार्य साधक-
समस्त कार्य की सिद्धि के लिए पर्वत की चोटी पर,घनघोर वन में ,नदी तट पर अथवा एकांत में बने शिव मंदिर में अपनी कामना का संकल्प कर ब्रह्मचर्य पूर्वक मां बगला के मंत्र का एक लाख जप करें तथा हवन कर अनुष्ठान समाप्त करें।
शत्रु शक्ति नाशक-
चीनी तथा शहद से युक्त एक वर्ण वाली गौ के दूध को बगलामुखी मंत्र से तीन सौ बार अभिमंत्रित करें। इस दूध का पान करने से शत्रुओं की शक्ति का पराभव होता है।
अति वृष्टि स्तंभन-
जहां घनघोर वर्षा हो रही हो वहां बगलामुखी यंत्र बना कर संकल्प के साथ उसकी पूजा करने से वर्षा रुक जाती है।एक बात का ध्यान अवश्य रखें कि सिद्धि के लिए किसी योग्य एवं जानकार गुरु के दिशा निर्देश में ही अनुष्ठान करें अन्यथा कोई अप्रिय घटना हो सकती है। जहां तक हो सके मंत्र का प्रयोग किसी के अहित के लिए न करें क्योंकि ऐसा करने से आपकी मिली हुई शक्ति छिन सकती है। मां पीतांबरा दयालु हैं, सर्व शक्तिमान हैं, पर अनुचित कार्यों का दंड देने में देर नहीं लगातीं।
राज गुरु जी
महाविद्या आश्रम
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Tuesday, January 26, 2016

गुप्त नवरात्र: सिद्धि पाने का महान पर्व










इन नवरात्रों में साधना का विधान देवी भागवत व अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। दस महाविद्याओं की गुप्त साधना से वशीकरण, उच्चाटन, सम्मोहन, स्तंभन, आकर्षण और मारण जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
मनोकामनाओं की सिद्धि प्राप्त करने का यह महान पर्व है। श्रृंग ऋषि के अनुसार जिस प्रकार वासंतिक नवरात्र में विष्णु पूजा और शारदीय नवरात्र में देवी शक्ति के नौ रूपों की पूजा की प्रधानता है, उसी प्रकार गुप्त नवरात्र दस महाविद्याओं के होते हैं।
इनकी प्रमुख देवी के स्वरूप का नाम स्र्वेश्वर्यकारिणी देवी है। उनकी आराधना कर न केवल शक्ति संचय किया जाता है वरन् नवग्रहों से जनित दोषों का शमन भी सुगमता से किया जा सकता है।
महाविद्याओं की साधना- दस महाविद्याएं काली, तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला हैं। प्रवृति के अनुसार इनके तीन समूह हैं। पहला- सौम्य कोटि (त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला), दूसरा- उग्र कोटि (काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी), तीसरा- सौम्य-उग्र कोटि (तारा और त्रिपुर भैरवी)। ये महाविद्याएं तंत्र की प्रमुख देवी हैं। वैशनो, पारम्बा देवी, कामाख्या देवी व हिन्गुलाज देवी का यही मुख्य पर्व है।
कामना के मंत्र : नौ दिन तक रोजाना रूद्राक्ष की माला से ग्यारह माला \"ऊँ ह्नीं सर्वैश्वर्याकारिणी देव्यै नमो नम:\" मंत्र का जाप करें। इसके अलावा दस महाविद्याओं की पूजा के लिए भी मंत्रों का जाप करें।
काली : हकीक की माला से नौ माला \"क्रीं ह्नीं ह्नुं दक्षिणे कालिके स्वाहा:\" का जाप करें।
तारा : नीले कांच की माला से बारह माला प्रतिदिन \"ऊँ ह्नीं स्त्रीं हुम फट\" जपें।
त्रिपुर सुंदरी : रूद्राक्ष माला से दस माला \"ऎं ह्नीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम:\" मंत्र जपें।
भुवनेश्वरी : स्फटिक की माला से ग्यारह माला प्रतिदिन \"ह्नीं भुवनेश्वरीयै ह्नीं नम:\" मंत्र का जाप करें।
छिन्नमस्ता : रूद्राक्ष माला से दस माला प्रतिदिन \"श्रीं ह्नीं ऎं वज्र वैरोचानियै ह्नीं फट स्वाहा\" मंत्र जपें।
त्रिपुर भैरवी : मंुगे की माला से पंद्रह माला \"ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा:\" मंत्र का जाप करें।
धूमावती : मोती की माला से नौ माला \"ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा:\" का जाप करें।
बगलामुखी : हल्दी या पीले कांच की माला से आठ माला \"ऊँ ह्लीं बगुलामुखी देव्यै ह्लीं ओम नम:\" मंत्र जपें।
मातंगी :
स्फटिक की माला से बारह माला \"ऊँ ह्नीं ऎं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:\"
जपें।
कमला : कमलगट्टे की माला से रोजाना दस माला \
"हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा:\"
मंत्र का जाप करें।
राज गुरु जी
महाविद्या आश्रम
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बगलामुखी साधना : सरल अनुष्ठान विधि






बगलामुखी साधना स्तम्भन की सर्वश्रेष्ट साधना मानी जाती है.यह साधना निम्नलिखित परिस्थितियों में अनुकूलता के लिए की जाती है.:-
शत्रु बाधा बढ़ गयी हो.
कोर्ट में केस चल रहा हो.
चुनाव लड़ रहे हों.
किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्ति के लिए .
सरल अनुष्ठान विधि :-
पीले रंग के वस्त्र पहनकर मंत्र जाप करेंगे .
आसन का रंग पिला होगा.
साधना कक्ष एकांत होना चाहिए , जिसमे पूरी नवरात्री आपके आलावा कोई नहीं जायेगा.
यदि संभव हो तो कमरे को पिला पुतवा लें.
बल्ब पीले रंग का रखें.
ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है,
साधनाकाल में प्रत्येक स्त्री को मातृवत मानकर सम्मान दें
हल्दी या पिली हकिक की माला से जाप होगा, यदि व्यवस्था न हो पाए तो रुद्राक्ष की माला से जाप कर सकते हैं.
उत्तर दिशा की ओर देखते हुए जाप करें.
साधना करने से पहले किसी तांत्रिक गुरु से बगलामुखी दीक्षा ले लेना श्रेष्ट होता है.
पहले दिन जाप से पहले हाथ में पानी लेकर कहे की " मै [अपना नाम लें ] अपनी [इच्छा बोले] की पूर्ति के लिए यह जाप कर रहा हूँ, आप कृपा कर यह इच्छा पूर्ण करें "
पहले गुरु मंत्र की एक माला जाप करें फिर बगला मंत्र का जाप करें.
अंत में पुनः गुरु मंत्र की एक माला जाप करें.
नौ दिन में कम से कम २१ हजार मन्त्र जाप करें. ज्यादा कर सकें तो ज्यादा बेहतर है.
अपने सामने माला या अंगूठी [जो आप हमेशा पहनते हैं ] को रख कर मन्त्र जप करेंगे तो वह मंत्रसिद्ध हो जायेगा और भविष्य मे रक्षाकवच जैसा कार्य करेगा.
ध्यान :-
मध्ये सुधाब्धि मणि मंडप रत्नवेदिम सिम्हासनो परिगताम परिपीत वर्णाम ,पीताम्बराभरण माल्य विभूषिताँगिम देवीम स्मरामि घृत मुद्गर वैरी जिह्वाम ||
मंत्र :-
|| ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय बुद्धिम विनाशय ह्लीं फट स्वाहा ||
विशेष :-
बगलामुखी प्रचंड महाविद्या हैं , कमजोर दिल के साधक और महिलाएं व् बच्चे बिना गुरु की अनुमति और सानिध्य के यह साधना न करें.
राज गुरु जी
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भागे या रूठ के गये हुये को वापिस बुलाने का मंत्र








ओम नमो काली कलिका .......... को आकर्शय आकर्शय .
बड़े वेग आकर्शाय जिन वाटेई जाई सोई वाट खिलूँ .
ओम श्रीं ह्रीं आकर्षण आकर्षण स्वाहा।

इस मंत्र के प्रभाव से रूठ कर विदेश या कंही बाहर अथवा भाग कर गया हुआ व्यक्ति
या पत्नी घर वापिस आ जाते है।
मैने कई बार इस मंत्र का प्रयोग किया है आप भी कर सकते है।
विधि --
इस मंत्र का जाप 1000 की सांख्या मे करना चाहिये जाप आप खुद भी कर सकते हो
या
किसी अच्छे कर्म कांड करने वाले ब्राह्मण से भी करवा सकते हो।
जाप के पस्चात हवन करना जरूरी है. हवन हर रोज भी किया जा सकता है।
108 आहुति देते हुये हर रोज हवन कर सकते है खाली जगह पर उसका नाम लें जिसको बुलाना हो।
काली पूजन करें मंदिर मे हर रोज सरसों के तेल का दीपक जलाएं इसके साथ 15 का यंत्र भी प्रयोग करे तो कार्य अति शीघ्र पूर्ण होगा .
राज गुरु जी
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ये शक्तिशाली कुंजिका मंत्र है इस मंत्र की सिद्धि से 6 कर्म सिद्ध होते है








ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्यै ओम ग्लौं हूँ क्लीं जूँ स: ज्वाल्य ज्वाल्य ज्वल् ज्वल् प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्यै ज्वल् हँ सं लं क्षं फट् स्वाहा !!
ये शक्तिशाली कुंजिका मंत्र है इस मंत्र की सिद्धि से 6 कर्म सिद्ध होते है इसका प्रभाव कुछ ही दिन के जाप करने से प्रगट होने लगता है। जो लोग माँ दुर्गा या काली कीउपासना करते हैं उनको इस मंत्र का तुरंत असर मिलता है हर मनो कामना की सिद्धि होती है
इस के साथ यदि 15 का यंत्र भी धारण् किया जाये तो शत्रु नाश होकर कार्य सिद्ध होता है। भगवान शिव ने स्वयम् इस मंत्र की प्रशंशा की है।
ओर इस समय गुप्त नवरात्र का काल चल रहा है तो आधिक प्रभाव आपको मिल सकता है। जाप केवल हर रोज 5माला का करे ओर प्रभाव देखे !!
राज गुरु जी
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शक्ति के पुँज श्री हनुमान






ओउम नमो भगवते वासुदेवाय
शक्ति के पुँज श्री हनुमान जी का नाम समस्त प्रकार के सॅंक्टो को समूल नष्ट करने मे सहायक 
है एसे रुद्र अवतार का नित्य ध्यान पूजन वन्दन हमारी भीतरी शक्ति को जागृत करने व
आत्मविश्वास को बढाने मे निरंतर सहाय्क रहे इसी बात को ध्यान मे रख कर आज मैं हनुमान जी का अष्टड्स आक्षरी मंत्र दे रहा हु
जिसके भी मन मे जरा सा भी भाव श्री हनुमान जी के चरणो मे है तो उसको भी इस मंत्र का सम्पूर्ण लाभ मिलेगा
अटके काम बनेंगे शत्रु भय नष्ट होगा धनलाभ भी होगा श्री हनुमान जी की कृपा से आजीविका लाभ भी होगा
रोग समुलता से नष्ट हो जायेंगे . हर रोज सुबह शाम केवल 20 मिनट हर रोज इस मंत्र का जाप करके इसका प्रभाव आप देख सकते है बस हर मंगलवार को श्री हनुमान जी को भोग लगाते रहे . आप स्वयम् इसके साक्षी बनेंगे.
यदि आप चाहे आपको अधिक शीघ्र लाभ हो तो हमारे यंहा से शाबर मन्त्र शक्ति यन्त्र व हनुमान यन्त्र मँगवा कर धारण् कर सकते है।
मन्त्र
ओउम नमो भगवते आंजनेयाय महाबलाय स्वाहा
राज गुरु जी
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आज मैं आपको एक शक्तिशाली मंत्र बता रहा हु ; जो लोग खूब मेहनत कर के भी धन और मान प्राप्त नहीं कर पाते.....









पाठ करे और चमत्कार देख्ने
प्यारे पाठको ..
.
आज मैं आपको एक शक्तिशाली मंत्र बता रहा हु ;
जो लोग खूब मेहनत कर के भी धन और मान प्राप्त नहीं कर पाते ऐसे मेरे बंधुओ
आप इस मंत्र का सिर्फ एक 40 दिन हर रोज सिर्फ २० मिनट पाठ करे और चमत्कार देख्ने
इसके पाठ से आपके सभी काम अपने आप बनाने लगेंगे .....
मंत्र
ॐ नमो आदि योगिनी परम माया महादेवी
शत्रु टालनी दैत्य मारनी मनोवांछित पुरनी
धन वृदी मान्वृधी आन जस सौभाग्य आन
न आने तो आदि भैरवी तेरी आज्ञा न फूटे
मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र इश्वरो वाचा |
राज गुरु जी
महाविद्या आश्रम
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Monday, January 25, 2016

श्री खड्गरावण महातन्त्र








समस्त तन्त्र शक्ति के नाश के लिए मारण प्रयोगों को नष्ट करने के लिए कृत्याद्रोह नाम के तन्त्र उन्मूलन के लिए इस प्रयोग को किया जाता है I इससे तन्त्र के छ: प्रकार के अभिचार कर्मों का नाश होकर रक्षा की प्राप्ति होती है I
मन्त्र : ॐ नमो भगवते पशुपतये ॐ नमो भूताधिपतये ॐ नमो खड्गरावण लं लं विहर विहर सर सर नृत्य नृत्य व्यसनं भस्मार्चित शरीराय घण्टा कपाल- मालाधराय व्याघ्रचर्मपरिधानाय शशांककृतशेखराय कृष्णसर्प यज्ञोपवीतिने चल चल बल बल अतिवर्तिकपालिने जहि जहि भुतान् नाशय नाशय मण्डलाय फट् फट् रुद्राद्कुशें शमय शमय प्रवेशय प्रवेशय आवेणय आवेणय रक्षांसि धराधिपति रुद्रो ज्ञापयति स्वाहा I
शत्रुओं के प्रयोगों के द्वारा जो लम्बे समय से तरह- तरह के कष्ट झेलते आ रहे हैं और किसी प्रकार भी इससे मुक्ति नहीं मिल पा रही हो तो इस प्रयोग को अवश्य सम्पन्न करें I त्रिलोक विजयी रावण इसी मन्त्र के बल पर ही महारूद्र को प्रसन्न करके उस युग के तन्त्र- मन्त्र वेत्ता, ऋषि- मुनियों का भी सम्राट बना I
इस मन्त्र को छ: महीने तक प्रतिदिन दस मालाओं का जाप करके एक माला के द्वारा अर्थात 108 आहुतियों से नित्यप्रति हवन करें, इससे इस मन्त्र का एक पुरश्चरण हो जाता है और इस प्रकार के 18 पुरश्चरण करने पर मन्त्र सिद्ध होने लगता है I
इस शरभ तन्त्र के अनेक मन्त्र हैं, अनेक प्रयोग हैं I संसार में रोग निवारण से लेकर शत्रु को नष्ट करने तक, समृद्धिवान बनने तक सभी कार्य इसके द्वारा संभव हैं I वास्तव में यह स्वयं में महातंत्र है I
जैसे शत्रु नाश के लिए शत्रु के पैरों की मिट्टी से पुतला बनाकर, प्राणप्रतिष्ठा करके आँक या धतूरे की जड़ में दबा करके उसके सामने बैठकर यदि इस मन्त्र का 125000 जाप किया जाए तो उस पुतले के साथ जो किया जाए शत्रु को वैसे ही पीड़ा प्राप्त होती है I यदि उस पुतले को शमशान के अंगारे से तपा दिया जाएं तो शत्रु को कभी न ठीक होने वाला बुखार हो जाता है और यदि पिघले हुए लाख से उसको लपेटकर यदि उसे आँक की लकड़ियों में जला दिया जाए तो तीन दिन में शत्रु नष्ट हो जाता है I
आकर्षण के लिए क्लीं बीज से संपुटित करके इस मन्त्र का जाप करना चाहिए I
शत्रुओं के मध्य झगडे कराने के लिए मन्त्र के दोनों तरफ रूद्र बीज "क्षौं" या "हौं" लगा करके जाप करना चाहिए I
शत्रुओं के उच्चाटन के लिए मन्त्र के दोनों तरफ वायु बीज "यं" या "हं" लगा करके जाप करना चाहिए I
मोक्ष प्राप्ति के लिए "ऐं" बीज व "चिंतामणि बीजमन्त्र" से पुटित करके जाप करें I
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श्री शरभमहातन्त्रराज








समस्त तंत्रों में सर्वाधिक घातक तन्त्र शरभ तन्त्र कहलाता है I जब हिरण्यकश्यप का वध करने के उपरान्त भी भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ और तीनों लोकों को खाने को उद्यत हुए तब समस्त देवों के द्वारा प्रार्थना किये जाने पर भगवान शिव नें एक विचित्र पक्षी का रूप धारण किया जिसका मुह उल्लू की तरह, नेत्र में अग्नि, सूर्य एवं चन्द्र का वास था I दो पंखों में जिनके दुर्गा और काली का वास था I कमर के बाद का हिस्सा हिरण की तरह एवं पूंछ शेर की तरह थी I जिनके पेट में व्याधि एवं मृत्यु का वास था ऐसे शरभ रूप पक्षी राज नें नृसिंह भगवान को चोंच मारकर मूर्छित कर दिया I अपने हाथों से उनको पकड़कर आकाश की तरफ उड़ चले I इनको शास्त्रों में आकाश भैरव भी कहा गया है I इस गारुडी विद्या को गुप्त रखना चाहिए I
इस साधना की विशेष विधियां आकाश भैरव कल्प, शरभार्चापारिजात, आशुगरुड़ इत्यादि तन्त्र ग्रंथों में दी गयी हैं I कृष्णपक्ष की अष्टमी से लेकर चतुर्दशी तक इसकी साधना श्रेष्ठ मानी गयी है I
विनियोग :
ॐ अस्य मन्त्रस्य श्रीवासुदेव ऋषि: जगतीछन्द:, कालाग्निरूद्र शरभ देवता, खं बीजं, स्वाहा शक्ति:, मम सर्वशत्रु क्षयार्थे सर्वोपद्रव शमनार्थे जपे विनियोग: I
II ध्यानम् II
विद्युज्जिह्वं वज्र नखं वडवाग्न्युदरं तथा
व्याधिमृत्युरिपुघ्नं चण्डवाताति वेगिनम् I
हृद् भैरव स्वरूपं च वैरिवृन्द निषूदनं
मृगेन्द्रत्वक्- छरीरेSस्य पक्षाभ्यां चञ्चुनारव: I
अघोवक्त्रश्चतुष्पाद उर्ध्व दृष्टिश्चतुर्भुज:
कालान्त- दहन- प्रख्यो नीलजीमूत- नि:स्वन: I
अरिर्यद् दर्शनादेव विनष्टबलविक्रम:
सटाक्षिप्त गृहर्क्षाय पक्षविक्षिप्त- भूभृते I
अष्टपादाय रुद्राय नमः शरभमूर्तये II
मन्त्र :
ॐ खें खां खं फट् प्राणग्रहासि प्राणग्रहासि हुं फट् सर्वशत्रु संहारणाय शरभशालुवाय पक्षिराजाय हुं फट् स्वाहा I
इस मन्त्र को छ: महीने तक प्रतिदिन दस मालाओं का जाप करके एक माला के द्वारा अर्थात 108 आहुतियों से नित्यप्रति हवन करें, इससे इस मन्त्र का एक पुरश्चरण हो जाता है और इस प्रकार के 18 पुरश्चरण करने पर मन्त्र सिद्ध होने लगता है I
इस शरभ तन्त्र के अनेक मन्त्र हैं, अनेक प्रयोग हैं I संसार में रोग निवारण से लेकर शत्रु को नष्ट करने तक, समृद्धिवान बनने तक सभी कार्य इसके द्वारा संभव हैं I वास्तव में यह स्वयं में महातंत्र है I
जैसे शत्रु नाश के लिए शत्रु के पैरों की मिट्टी से पुतला बनाकर, प्राणप्रतिष्ठा करके आँक या धतूरे की जड़ में दबा करके उसके सामने बैठकर यदि इस मन्त्र का 125000 जाप किया जाए तो उस पुतले के साथ जो किया जाए शत्रु को वैसे ही पीड़ा प्राप्त होती है I यदि उस पुतले को शमशान के अंगारे से तपा दिया जाएं तो शत्रु को कभी न ठीक होने वाला बुखार हो जाता है और यदि पिघले हुए लाख से उसको लपेटकर यदि उसे आँक की लकड़ियों में जला दिया जाए तो तीन दिन में शत्रु नष्ट हो जाता है I
आकर्षण के लिए क्लीं बीज से संपुटित करके इस मन्त्र का जाप करना चाहिए I
शत्रुओं के मध्य झगडे कराने के लिए मन्त्र के दोनों तरफ रूद्र बीज "क्षौं" या "हौं" लगा करके जाप करना चाहिए I
शत्रुओं के उच्चाटन के लिए मन्त्र के दोनों तरफ वायु बीज "यं" या "हं" लगा करके जाप करना चाहिए I
मोक्ष प्राप्ति के लिए "ऐं" बीज व "चिंतामणि बीजमन्त्र" से पुटित करके जाप करें I
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Sunday, January 24, 2016

व्यापार वृद्धि प्रयोग - 2







-: मंत्र :-
॥ धां धीं धूं धूर्जटे पत्नीं वां वीं वुं वागधीश्वरी
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देव्ये शां शीं शुं में शुभम कुरु ॥
विधी :-
उपरोक्त मन्त्र सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में से हैं । कुछ शुद्ध गुलाब में से बनी अगरबत्ती लेकर उपरोक्त मन्त्र 108 बार जप
कर अगरबत्ती अभिमंत्रित कर लीजिए । उसके बाद उन अगरबत्ती में से 5 अगरबत्ती लेकर प्रज्वलित करे । उसके बाद अपने पुरे व्यवसाय स्थल में एंटी क्लोक वाइस (घडी की उलटी दिशा में) घुमाले और एक जगह लगादे और फिर देखे आपका व्यापार कैसे नहीं चलता । यह प्रयोग पूर्ण प्रामाणिक एवं कई बार परिक्षीत हैं । माँ भगवती ने चाहा तो आप व्यापार को लेकर जल्द ही चिंता मुक्त हो जायेंगे ॥
राज गुरु जी
महाविद्या आश्रम
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बंधा ब्यापार खोलने का मंत्र





..........मंत्र.........
॥ॐ ह्रीं व्यापार बंधं मोचय मोचय ॐ फट्॥
यदि ईष्याबश किसी ने तंत्र द्वारा व्यापार को बांध दिया हो तो साधक को चाहिए कि वह किसी पवित्र पात्र मेँ लक्ष्मी का प्रिय श्रियंत्र स्थापित कर कुंकुम,अक्षतादि से उसका पूजन करे,दिपक जलाए और मंत्रका 21 दिन तक अनुष्ठानपूर्वक नित्य 108 बार जप करे।ऐसा करके यंत्रको व्यापार स्थान मे रख दे तो बाधा दुर हो जाएगा
राज गुरु जी
महाविद्या आश्रम
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भागे या रूठ के गये हुये को वापिस बुलाने का मंत्र









ओम नमो काली कलिका .......... को आकर्शय आकर्शय .
बड़े वेग आकर्शय जिन वाटे जाई सोई वाट खिलूँ .
ओम श्रीं ह्रीं आकर्षण आकर्षण स्वाहा।
इस मंत्र के प्रभाव से रूठ कर विदेश या कंही बाहर अथवा भाग कर गया हुआ व्यक्ति
या पत्नी घर वापिस आ जाते है।
मैने कई बार इस मंत्र का प्रयोग किया है आप भी कर सकते है।
विधि --
इस मंत्र का जाप 1000 की सांख्या मे करना चाहिये जाप आप खुद भी कर सकते हो
या किसी अच्छे कर्म कांड करने वाले ब्राह्मण से भी करवा सकते हो।
जाप के पस्चात हवन करना जरूरी है. हवन हर रोज भी किया जा सकता है।
108 आहुति देते हुये हर रोज हवन कर सकते है खाली जगह पर उसका नाम लें जिसको बुलाना हो।
काली पूजन करें काली मंदिर मे हर रोज सरसों के तेल का दीपक जलाएं इसके साथ 15 का यंत्र भी प्रयोग करे तो कार्य अति शीघ्र पूर्ण होगा .
राज गुरु जी
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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...