भैरवी कल्पुद्धरित त्रैलोक्य विजय काली साधना
गुप्त तंत्र ग्रंथो मे हमारे ऋषियो ने जो विधान दिये थे वह अपने आप मे रहस्यों से परिपूर्ण थे. तंत्र जगत का साहित्य कई रूप से गुढ़ रहा है तथा उसमे जो विधान दिये है वह भी अत्यधिक गुप्त रूप से लिखे गए थे ताकि अनाधिकारी व्यक्ति उसका दुरूपयोग ना कर सके. इस प्रकार जब यह साहित्य को समजने वाले लोग ही नहीं रहे तब तंत्र साधनाओ की अवलेहना हुई और इस प्रकार तंत्र साहित्य का एक बहोत ही बड़ा भाग लुप्त हो गया. और इन सब साहित्य को मिथ्या नाम दे दिया गया. ज़रा तटस्थ भाव से सोचे की जब नोट या कलम नहीं थि, उस समय ताड़पत्री, विविध पदार्थो के पर्ण, चर्म, धातु जेसे विविध पदार्थो पर अत्यधिक कष्ट और श्रमसाध्य लेखन कई प्रकार की स्याही बना कर हमारे ऋषियो ने लिखा. उसके पीछे उन लोगो का क्या व्यक्तिगत चिंतन हो सकता है? लेकिन पाश्चात्य संस्कृति से चकाचौंध हो कर हमने खुद का पतन करना शुरू कर दिया. खेर, लेकिन कई ग्रन्थ काल के थपेडो से भी सुरक्षित बचाए गए जो की कई तांत्रिक मठो और तंत्र ज्ञाताओ के पास सुरक्षित रहे. ऐसे अप्रकाशित ग्रंथो मे से एक है “भैरवी तंत्र” कई हज़ार श्लोको का यह ग्रन्थ अपने आप मे देवी साधनाओ के लिए बेजोड है. इसके कई पटल अपने आप मे पूर्ण तंत्र है जिसमे से एक पटल या भाग है “काली कल्प”. यह कल्प देवी काली की उपासना के लिए बेजोड है. जिसमे देवी सबंधित साधन एवं कवच दिया गया है. लेकिन यह कवच भी अपने आप मे अत्यधिक रहस्यों से परिपूर्ण है. यह कवच मात्र कवच नहीं लेकिन विविध ध्यान मंत्र तथा साधन मंत्रो का समूह है. जिसमे एक से एक बेजोड मंत्र है. उसी मे से एक मंत्र पद्धति है त्रैलोक्य विजय काली मंत्र. ग्रन्थ के अनुसार इस का उपयोग करने वाले व्यक्ति का देवता भी अहित करने की सोचते नहीं. फिर सामान्य शत्रु की तो बात ही क्या है. साधक शत्रुओ के ऊपर हावी हो जाता है तथा समस्त षड्यंत्रो से पार उतर कर सर्वत्र विजयी होता है. इस साधना को करने के बाद साधक मे एक अत्यधिक तीव्र मोहन शक्ति का भी विकास होता है जिससे सभी व्यक्ति उसके अनुकूल रहना ही योग्य समजते है. इस कल्याण प्रदाता गुढ़ साधना को साधक करे तो देवी काली का आशीर्वाद सदैव साधक पर बना रहता है.
साधक को चाहिए की वह यह साधना कृष्ण पक्ष की अष्टमी से शुरू करे. सुबह उठ कर देवी महाकाली की पूजा करे तथा देवी दक्षिण काली का ध्यान करे. अगर साधक अपने सामने काली यन्त्र तथा चित्र रखे तो उत्तम है. इसके पश्च्यात साधक निम्न मन्त्र की १० माला सुबह, १० माला दोपहर तथा १० माला शाम को (सूर्यास्त के बाद रात्री काल मे सोने से पहले) मंत्र जाप करे. यह २१ दिन की साधना है. रोज ३ समय मंत्र जाप होना चाहिए. इसमें दिशा पूर्व रहे. वस्त्र आसान सफ़ेद रहे तथा माला काले हकीक या रुद्राक्ष की हो. जाप से पहले विनियोग निम्न मंत्र से करे. हाथ मे जल ले कर विनियोग बोलने के बाद जल को भूमि पर छोड़ दे.
विनियोग :
अस्य श्री काली कल्पे जगमंगला कवच गुढ़ मन्त्रान त्रैलोक्य विजय मन्त्रस्य शिव ऋषि अनुष्टुप् छन्दः दक्षिण कालिका देवता मम त्रैलोक्य विजय त्रैलोक्य मोहन सर्व शत्रु बाधा निवारार्थाय जपे विनियोग
उसके बाद दक्षिण कालिका का ध्यान कर निम्न मंत्र का जाप करे.
हूं ह्रीं दक्षिण कालिके खड्गमुण्ड धारिणी नमः
साधक पूजा और विनियोग सुबह करे, दोपहर और शाम को विनियोग या पूजन की ज़रूरत नहीं है ध्यान के बाद सीधे मंत्र जाप शुरू कर सकते है.
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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