क्रोध मंत्र साधना :
भैरव शब्द का संक्षिप्त भावार्थ :
जिससे क्लेश भयभीत रहता है , जिसके भय से वायु चलती है , सूर्य तपता है , इन्द्र जल वृष्टि करता है , लोकपाल भयभीत होते हैं , जो विश्व का भरण - पोषणकर्ता और संहारकर्ता है तथा जो महाभयंकर शब्दकारी है , उसका नाम भैरव है । भगवान् भैरव सबके ग्रहीता , दाता एवं कर्ता हैं । मास , पक्ष भैरव के शरीर हैं , दिनरात्रि वस्त्र हैं , ऋतुएं इन्द्रियां हैं ।
यही कालसंज्ञक ब्रहम है । योगवसिष्ठ में भगवान् राम मुनि वसिष्ठ से कहते हैं कि ' सर्व पदार्थों से महाभयंकर यह काल ही संहारकर्ता नहारुद्र है । यह काल बड़े - बड़े बुद्धिमानों और बलवानों की भी क्षणभर प्रतिक्षा नहीं करता , अपितु तत्काल मार देता है ।
अतिरमणीय सुब्दाराकृति वाले सुमेरु जैसे बड़े - बडे पदार्थों को भी यह काल ऐसे निगल जाता है , जैसे गरुड़जी सर्पो को । हरण करना , नाश करना , भक्षण करना , मारना तथा अन्य प्रकार की क्रियाओं को करना - यह सब काल के आधीन है ।
क्रोधराज की सिद्धि होने पर मनुष्य क्रोधराज के समान अतुल बल प्राप्त करता है । विशेष संख्या में जप कर लेने के पश्चात् साधक समस्त प्रकार की दुर्लभ सिद्धियों को स्वतः प्राप्त कर लेता है ।
क्रोधमंत्र भगवान् भैरव का अत्यन्त घातक एवं उग्र मंत्र है जिसके समुचित प्रयोग करने पर तत्काल शत्रुकुल , महाभयंकर परप्रयोग , व्याधिदुःख ,असाध्यरोग,सभी इतर योनिया भूत , प्रेत , पिशाच , राक्षस , ब्रह्मराक्षस , देव , यक्ष , गन्धर्व , किन्नर , पितृ , अप्सरा , परि , जिन्नात,मसान,वेताल,कच्चा कलुआ आदि,आदि भगवान् क्रोधराज की ज्वाला से विनष्ट हो जाते हैं । सर्व मंत्रों में यह मारक मंत्र है , जो महाप्रबल दुर्भाग्य का विनाश करने में सक्षम हैं ,यह प्रयोग केवल उच्चकोटि साधक ही कर सकते हैं ।
साधारण साधक इससे विरक्त रहें । इस प्रयोग में भूलचूक होने पर साधक को भगवान् भैरव के महाक्रोध का सामना करना पड़ सकता है ।
अतः यह महाक्रोध मंत्र अनुभवी गुरु के संरक्षण में ही करने का प्रावधान है ।
इस साधना को करने से पहले गुरु और इष्ट मंत्र (62500/125000 से अधिक) और महाविद्या साधना करना जरुरी है
किसी परलौकिक सक्ती पे प्रयोग करने से पहले उस सक्ती की कम से कम 2-3 बार साधना करने पर भी वह ना आवे तो ही इस मंत्र का प्रयोग किया जा सक्ता है अन्यथा स्वं का विनाश होना तय है
एक दिवसीय साधना विधि-विधान :
विधि-विधा
इस मंत्र की साधना के प्रारम्भ में साधक में क्रोध एवं आवेश की अधिकता रहती है , जो कि देवता के स्वभाव से प्राप्त होती है ।
साधना वाले दिन खप्पर दिया जाता है
खप्पर सामाग्री:
ताम्सिक खप्पर
बकरे की कलेजी, तम्बाकू(सिगरेट),चमेली का इत्र,शराब,2 अण्डे .
सात्विक खप्पर सामग्री :
4 केले ,4 बूंदी के लड्डू, 1 बर्फी ,
अनार या नीम्बू (बली के तोर पे दिया जाता है ) ,
1-सिगरेट, चमेली का इत्र ,
लोंग का जोडा (बर्फी पे और लड्डू पे)
खप्पर को सिन्दूर से तिलक करना है
खप्पर मंत्र 21 बार पढ के खप्पर समसान मे रख के आना है.
समसान मे जातें वक़्त सुरक्षा जरुर रखे
सुरक्षा मंत्र - औम हुं महाविकराल कपाल कालभैरवाय रक्ष रक्ष हुं फट् ।।
देह-दिशा बन्धन-
औम हुं महाविकराल कपाल कालभैरवाय रक्ष रक्ष हुं फट् ।।(इस मंत्र को 11 बार पढ के छाती पे फुक मारे 3 बार)
इस मन्त्र को पढ के ही साधना समय मे 11 बार पढके दसो दिसा मे जल फेके .
आसन बंदन मंत्र -
औम रं अग्नी प्रकाराय नमः
सात बार पढ के किल से घेरा बनाये .
स्थान : परिस्थिति एवं साधक की योग्यतानुसार जंगल,साधना कक्ष , शिवालय (एकान्त)
अथवा श्मशान में साधना की जाती है ।
तिथी:
चतुर्दशी , शनिवार , रविवार , सोमवार , अमावस्या अथवा पूर्णिमा तिथि को साधना कर सकते है ।
मंत्र संख्या 8000 (80 माला)
दीपक- चोमुखा दीपक तेल का
दिशा -दक्षिण
आसन -काला
वस्त्र- काला (काले वस्त्र को निर्वस्त्र की संज्ञा दी गई हैं)
माला-रुद्राक्ष
गूगल की धुणी
समय -9 बजे बाद
क्रोध मुद्रा मे मन्त्र जाप होता है
(क्रोध से जोर जोर से बोलके )
मन्त्र यहा नही दिया जा रहा है वियक्ती विशेश को जान कर ही मंत्र दिया जायेगा ,
यह महाक्रोध मंत्र अनुभवी गुरु के संरक्षण में ही करने का प्रावधान है.
मंत्र निसुल्क दिया जायेगा ।।
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
विशेष -
किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें
राजगुरु जी
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महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट
(रजि.)
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