Thursday, January 2, 2020

माँ महाकाली की साधना








माँ महाकाली की साधना ----


आज के युग में माँ महाकाली की साधना कल्पवृक्ष के समान है क्योकि ये कलयुग में शीघ्र अतिशीघ्र फल प्रदान करने वाली महाविद्याओं में से एक महा विद्या है. जो साधक महाविद्या के इस स्वरुप की साधना करता है उसका मानव योनि में जन्म लेना सार्थक हो जाता है क्योकि एक तरफ जहाँ माँ काली अपने साधक की भौतिक आवश्कताओं को पूरा करती है वहीँ दूसरी तरफ उसे सुखोपभोग करवाते हुए एक-छत्र राज प्रदान करती है.

वैसे तो जब से इस ब्रह्मांड की रचना हुई है तब से लाखों करोडों साधनाओं को हमारे ऋषियों द्वारा आत्मसात किया गया है पर इन सबमें से दस महाविद्याओं, जिन्हें की “ मात्रिक शक्ति “ की तुलना दी जाती है, की साधना को श्रेष्टतम माना गया है. जबसे इस पृथ्वी का काल आयोजन हुआ है तब से माँ महाकाली की साधना को योगियों और तांत्रिको में सर्वोच्च की संज्ञा दी जाती है.

 साधक को महाकाली की साधना के हर चरण को पूरा करना चाहिए क्योकि इस साधना से निश्यच ही साधक को वाक्-सिद्धि की प्राप्ति होती है. वैसे तो इस साधना के बहुतेरे गोपनीय पक्ष साधक समाज के सामने आ चुके है परन्तु आज भी हम इस महाविद्या के कई रहस्यों से परिचित नहीं है.

काम कला काली, गुह्य काली, अष्ट काली, दक्षिण काली, सिद्ध काली आदि के कई गोपनीय विधान आज भी अछूते ही रह गए साधकों के समक्ष आने से,जितना लिखा गया है ये कुछ भी नहीं उन रहस्यों की तुलना में जो की अभी तक प्रकाश में नहीं आया है और इसका महत्वपूर्ण कारण है इन विद्याओं के रहस्यों का श्रुति रूप में रहना,अर्थात ये ज्ञान सदैव सदैव से गुरु गम्य ही रहा है,मात्र गुरु ही शिष्य को प्रदान करता रहा है और इसका अंकन या तो ग्रंथों में किया ही नहीं गया या फिर उन ग्रंथों को ही लुप्त कर दिया काल के प्रवाह और हमारी असावधानी और आलस्य ने.

अघोर साधनाओं का प्रारंभ शमशान से ही होता है और होता है तीव्र साधनाओं का प्रकटीकरण भी,तभी तो साधक पशुभाव से ऊपर उठकर वीर और तदुपरांत दिव्य भाव में प्रवेश कर अपने जीवन को सार्थक कर पाता है.

किसी भी शक्ति का बाह्य स्वरुप प्रतीक होता है उनकी अन्तः शक्तियों का जो की सम्बंधित साधक को उन शक्तियों का अभय प्रदान करती हैं, अष्ट मुंडों की माला पहने माँ यही तो प्रदर्शित करती है की मैं अपने हाथ में पकड़ी हुयी ज्ञान खडग से सतत साधकों के अष्ट पाशों को छिन्न-भिन्न करती रहती हूँ, उनके हाथ का खप्पर प्रदर्शित करता है

ब्रह्मांडीय सम्पदा को स्वयं में समेट लेने की क्रिया का,क्यूंकि खप्पर मानव मुंड से ही तो बनता है और मानव मष्तिष्क या मुंड को तंत्र शास्त्र ब्रह्माण्ड की संज्ञा देता है,अर्थात माँ की साधना करने वाला भला माँ के आशीर्वाद से ब्रह्मांडीय रहस्यों से भला कैसे अपरिचित रह सकता है.

इन्ही रूपों में माँ का एक रूप ऐसा भी है जो अभी तक प्रकाश में नहीं आया है और वह रूप है माँ काली के अद्भुत रूप “महा घोर रावा” का,जिनकी साधना से वीरभाव,ऐश्वर्य,सम्मान,वाक् सिद्धि और उच्च तंत्रों का ज्ञान स्वतः ही प्राप्त होने लगता है,अद्भुत है माँ का यह रूप जिसने सम्पूर्ण ब्रह्मांडीय रहस्यों को ही अपने आप में समेत हुआ है और जब साधक इनकी कृपा प्राप्त कर लेता है तो एक तरफ उसे समस्त आंतरिक और बाह्य शत्रुओं से अभय प्राप्त हो जाता है वही उसे माँ काली की मूल आधार भूत शक्ति और गोपनीय तंत्रों में सफलता की कुंजी भी तो प्राप्त हो जाती है.

वस्तुतः ये क्रियाएँ अत्यंत ही गुप्त रखी गयी हैं और सामन्य साधको को तो इन स्वरूपों की जानकारी भी नही है परन्तु हमारी सद्गुरु परम्परा में हमें सहजता से सभी रहस्यों का परिचय प्राप्त होता है.

इनकी मूल साधना अत्यधिक ही दुष्कर मानी गयी है और श्मशान,पूर्ण तैयारी और कुशल गुरु मार्गदर्शन के बिना इसका अभ्यास भी नहीं करना चाहिय अन्यथा स्वयं के प्राण तीव्रता के साथ बाह्य्गामी होकर ब्रह्माण्डीय प्राणों के साथ योग कर लेते है और पुनः लौट कर साधक के मूल शरीर मैं नहीं आते हैं.

 अतः वह विधान तो यहाँ पर देना उचित नहीं होगा परन्तु उनका एक सरल क्रम जो घर में एकांत में किया जा सकता है और उपरोक्त सभी लाभों को प्राप्त किया जा सकता है यहाँ पर दिया जा रहा है. अभी तक ये साधना प्रकाश में नहीं आई थी परन्तु सदगुरुदेव की कृपा से हमे सभी को इसे जानने का सौभाग्य मिला है.

१. इसे किसी भी रविवार से प्रारम्भ किया जा सकता है.

२. लाल वस्त्र और आसन अनिवार्य है.

३. रात्रि का तीसरा पहर और दक्षिण दिशा की प्रधानता कही गयी है.

४. महाकाली के चैतन्य चित्र या विग्रह के सामने बैठ कर इस मंत्र का २१ माला जप अगले रविवार तक नित्य किया जाता है.

५. गुरु पूजन और गुरु मंत्र तो किसी भी साधना का प्राथमिक और अनिवार्य अंग है जो अन्य साधना में सफलता के लिए हमारा आधार बनता है.

६. कुमकुम, तेल के दीपक, जवा पुष्प, गूगल धुप और अदरक के रस में डूबा हुआ गुड़ माँ के पूजन में प्रयुक्त होता है. रुद्राक्ष माला से इनका मंत्र जप किया जाता है.

ॐ क्रीं क्लीं महा घोररावयै पूर्ण घोरातिघोरा क्लीं क्रीं फट् ||

OM KREEM KLEEM MAHA GHOR RAAVYAI POORN GHORAATIGHORA KLEEM KREEM PHAT ||

साधना के दौरान थोड़ी भयावह स्थिति बन सकती है, पदचाप सुनाई दे सकती है, साधना से उच्चाटन हो सकता है, तीव्र ज्वर और तीव्र दर्द का अनुभव हो सकता है परन्तु साधक यदि इन् स्थितियों को पार कर लेता है तो उसे स्वयं ही धीरे धीरे उपरोक्त लाभ प्राप्त होने लगते हैं.

साधना काल के दौरान आपको कुछ आश्चर्य जनक अनुभव हो सकते हैं, पर इनसे न परेशान या बिचलित न हो , ये तो साधना सफलता के लक्षण हैं .

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ । बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है

विशेष -

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राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

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