ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः,
ॐ एतत् ते वदनं सौम्यं लोचनत्रय भूषितम् ।पातु नः सर्वभूतेभ्यः कात्यायनि नमोस्तुऽते,
मः न च्चे वि यै डा मुं चा क्लीं ह्रीं ऐं ॐ ।। १ ।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः,
ज्वालाकराल मृत्युग्रमशेषासुर सूदनम् ।
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोस्तुऽते,
मः न च्चे वि यै डा मुं चा क्लीं ह्रीं ऐं ॐ ।। २ ।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः,
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत् ।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानिव ।
मः न च्चे वि यै डा मुं चा क्लीं ह्रीं ऐं ॐ ।। ३ ।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः,
असुरास्रग् वसापंकचर्चितस्ते करोज्ज्वलः ।
शुभाय खड्गो भवतु चण्डिके त्वां नता वयम् ,
मः न च्चे वि यै डा मुं चा क्लीं ह्रीं ऐं ॐ ।। ४ ।
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विशेष -
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राजगुरु जी
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(रजि.)
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