काली पूजा में सिद्धि प्राप्ति के लिए तंत्र साधना
यह आलेख केवल जानकरी के लिए है
हजारों तरह की साधनाओं का वर्णन मिलता है. साधना से सिद्धियां प्राप्त होती हैं. व्यक्ति सिद्धियां इसलिए प्राप्त करना चाहता है, क्योंकि या तो वह उनसे सांसारिक लाभ प्राप्त करना चाहता है या फिर आध्यात्मिक लाभ. मूलत: साधना के चार प्रकार माने जा सकते हैं - तंत्र साधना, मंत्र साधना, यंत्र साधना और योग साधना. तीनों ही तरह की साधना के कई उपभेद हैं. आइये जानते हैं साधना के विविध तरीके व उनसे प्राप्य लाभ.
तांत्रिक साधना : तांत्रिक साधना दो प्रकार की होती है- एक वाम मार्गी तथा दूसरी दक्षिण मार्गी. वाम मार्गी साधना बेहद कठिन है. वाम मार्गी तंत्र साधना में छह प्रकार के कर्म बताये गये हैं, जिन्हें षट कर्म कहते हैं.
शांति, वक्ष्य, स्तम्भनानि, विद्वेषणोच्चाटने तथा.
गोरणों तनिसति षट कर्माणि मणोषण:॥
अर्थात शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण. ये छह तांत्रिक षट कर्म बताये गये हैं. इनके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन भी है :
मारण मोहनं स्तम्भनं विद्वेषोच्चाटनं वशम्.
आकर्षण यिक्षणी चारसासनं कर त्रिया तथा॥
मारण, मोहनं, स्तंभनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यिक्षणी साधना, रसायन क्रि या तंत्र के ये नौ प्रयोग हैं.
रोग कृत्वा गृहादीनां निराण शिन्तर किता.
विश्वं जानानां सर्वेषां निधयेत्व मुदीरिताम्॥
पूधृत्तरोध सर्वेषां स्तम्भं समुदाय हृतम्.
स्निग्धाना द्वेष जननं मित्र, विद्वेषण मतत॥
प्राणिनाम प्राणं हरपां मरण समुदाहृमत्.
जिससे रोग, कुकृत्य और ग्रह आदि की शांति होती है, उसको शांति कर्म कहा जाता है और जिस कर्म से सब प्राणियों को वश में किया जाये, उसको वशीकरण प्रयोग कहते हैं तथा जिससे प्राणियों की प्रवृत्ति रोक दी जाए, उसको स्तंभन कहते हैं तथा दो प्राणियों की परस्पर प्रीति को छुड़ा देने वाला नाम विद्वेषण है और जिस कर्म से किसी प्राणी को देश आदि से पृथक कर दिया जाए, उसको उच्चाटन प्रयोग कहते हैं तथा जिस कर्म से प्राण हरण किया जाए, उसको मारण कर्म कहते हैं.
* मंत्र साधना : मंत्र साधना भी कई प्रकार की होती है. मंत्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है और मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है. मंत्र का अर्थ है मन को एक तंत्र में लाना. मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है. मंत्र साधना भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है.
* मुख्यत: तीन प्रकार के मंत्र होते हैं- 1. वैदिक मंत्र 2. तांत्रिक मंत्र और 3. शाबर मंत्र.
* मंत्र जप के भेद- 1. वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप.
वाचिक जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है. मानस जप का अर्थ है मन ही मन जप करना. उपांशु जप में जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनायी देती. बिल्कुल धीमी गति में जप करना ही उपांशु जप है.
* मंत्र नियम : मंत्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मंत्र का सही उच्चारण. दूसरी बात जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उसका अर्घ पहले से लेना चाहिए. मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखा जाये. प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है.
किसी विशिष्ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए. इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है. जप का दशांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए.
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
विशेष -
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राजगुरु जी
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