शीघ्रफ़लदायी बगलामुखी साधना
तंत्र शास्त्र भारत की एक प्राचीन विद्या है। तंत्र ग्रंथ भगवान शिव के मुख से आविर्भूत हुए हैं। उनको पवित्र और प्रामाणिक माना गया है। भारतीय साहित्य में 'तंत्र' की एक विशिष्ट स्थिति है, पर कुछ साधक इस शक्ति का दुरुपयोग करने लग गए, जिसके कारण यह विद्या बदनाम हो गई।
तंत्र शास्त्र वेदों के समय से हमारे धर्म का अभिन्न अंग रहा है। वैसे तो सभी साधनाओं में मंत्र, तंत्र एक-दूसरे से इतने मिले हुए हैं कि उनको अलग-अलग नहीं किया जा सकता, पर जिन साधनों में तंत्र की प्रधानता होती है, उन्हें हम 'तंत्र साधना' मान लेते हैं। 'यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे' की उक्ति के अनुसार हमारे शरीर की रचना भी उसी आधार पर हुई है जिस पर पूर्ण ब्रह्माण्ड की। तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। इसके लिए अन्तर्मुखी होकर साधनाएँ की जाती हैं। तांत्रिक साधना को साधारणतया तीन मार्ग : वाम मार्ग, दक्षिण मार्ग व मध्यम मार्ग कहा गया है।
श्मशान में साधना करने वाले का निडर होना आवश्यक है। जो निडर नहीं हैं, वे दुस्साहस न करें। तांत्रिकों का यह अटूट विश्वास है, जब रात के समय सारा संसार सोता है तब केवल योगी जागते हैं।
तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। यह एक अत्यंत ही रहस्यमय शास्त्र है । चूँकि इस शास्त्र की वैधता विवादित है अतः हमारे द्वारा दी जा रही सामग्री के आधार पर किसी भी प्रकार के प्रयोग करने से पूर्व किसी योग्य तांत्रिक गुरु की सलाह अवश्य लें। अन्यथा किसी भी प्रकार के लाभ-हानि की जिम्मेदारी आपकी होगी।
ऋषियों की मान्यता है कि सृष्टि की उत्पत्ति आदि के रहस्य का पूर्ण ज्ञान आगम-विद्या के माध्यम से ही सम्भव है। सम्पूर्ण विश्व-विद्या होने के कारण इसे महाविद्या की संज्ञा प्राप्त है। महाविद्याएं संख्या में दस हैं और इनका ‘मुंडमाला तन्त्र’ तथा ‘चामुंडा तन्त्र’ में विस्तृत उल्लेख है।
आठवीं महाविद्या बगलामुखी एकवक्त्र महारुद्र की महाशक्ति है। यह शक्ति माया-मोह भ्रम पर प्राणी की विजय की प्रतीक है। बगलामुखी को अग्नि पुराण में सिद्ध-विद्या कहा गया है :
काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी।
भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा॥
बगला सिद्ध विद्याच मातंगी कमलाऽऽत्मिका।
एतादश महाविद्या: सिद्ध विद्या: प्रकीर्तिता:॥
देवी के बगलामुखी नाम से यह धारणा प्रचलित है कि मां का मुख बगुला पक्षी के समान है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं। वैदिक शब्द ‘बग्ला’ है, जिसका अपभ्रंश बगला बन गया है और इसी नाम से देवी की लोकप्रियता है। मां का दूसरा नाम पीतांबरा भी है- पीले हैं वस्त्र जिसके। समूचे विश्व में देवी की तांत्रिक सिद्ध-पीठ दतिया में है।
झांसी (उत्तर प्रदेश) के समीप मध्य प्रदेश का एक छोटा-सा जनपद है – दतिया। ‘जन-जन के गले का हार’ दतिया की आज समूचे विश्व में पहचान स्तंभन-सम्मोहन की मातृशक्ति मां पीतांबरा की शक्ति-पीठ के कारण है। दतिया की पीतांबरा-पीठ जिस स्थान पर स्थित है, वहां पहले श्मशान भूमि थी।
जनश्रुति के अनुसार पीठ के संस्थापक स्वामी जी ने महाभारतकालीन गुरु द्रोणाचार्य के अमृतजीवी पुत्र अश्वत्थामा के कहने पर इस क्षेत्र को अपनी लीला-भूमि के रूप में चुना।
स्वामी जी का क्या नाम था — इसके संबंध में किसी को कोई जानकारी नहीं। भक्तजनों का कहना है कि सन् 1929 में धौलपुर (राजस्थान) से उनका यहां आगमन हुआ था। उन्होंने काशी में संन्यास ग्रहण किया था।
दतिया में उस समय घने जंगल के मध्य एकमात्र चबूतरे पर जीर्ण-शीर्ण स्थिति में वन-खंडेश्वर महादेव का मंदिर था। जनश्रुति के अनुसार इस मंदिर की स्थापना अश्वत्थामा द्वारा हुई थी।
स्वामी जी ने यहां निर्जन स्थान में मां पीतांबरा की आराधना की, मां ने जिस कुटिया में ध्यान लीन स्वामी जी को दर्शन दिए, वहीं ज्येष्ठ कृष्ण गुरुवार पंचमी सन् 1934-35 में मां के मंदिर की स्थापना हुई। यहां पर श्रीगणेश, श्री बटुक भैरव, श्री काल भैरव, श्री परशुराम, श्री हनुमान, षड़ाम्राया शिव ‘तत्पुरुष’, अघोर, ईशान, वामदेव, नीलकंठ तथा सद्यो जाता मां प्राण-प्रतिष्ठित हैं। स्वामी जी ने यहां ‘धूमावती’ की भी स्थापना की।
देवी का सम्पूर्ण विश्व में यही एकमात्र मंदिर है। भक्तजनों का दावा है कि स्वामी जी के जीवनकाल में इस पीठ में मां पीतांबरा की आरती के बाद ‘धूमावती’ प्रत्यक्ष रूप में भक्तों के साथ पंक्ति में खड़ी होकर पीतांबरा का प्रसाद ग्रहण करती थी।
त्वरित फलदायी साधना में बगलामुखी का मंत्र 36 अक्षरों का है : -
ऊं ह्रीं बगलामुखि, सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभ्य।
जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ऊ स्वाहा॥
भगवती को पीत वस्त्र प्रिय हैं और 36 की संख्या। इसी कारण 3600, 36,000-इसी क्रम में मंत्र जाप के अनुष्ठान विशेष फलदायक माने जाते हैं। यह आराधना वीरवार रात्रि (मकर राशि में सूर्य के होने पर चतुर्दशी, मंगलवार) को विशेष सिद्धिदायक मानी गई है।
बगलामुखी मन्त्र प्रयोग
संकल्पः-
ॐ अद्यैतस्य…………………….अमुक-मासे अमुक-पक्षे अमुक वासरे अमुक-गोत्रोत्पन्नो अमुक-शर्माऽहं (वर्माऽहं, गुप्तोऽहं वा) मम स्व-शरीरस्य (मम अमुक-यजमानस्य शरीरस्य वा) सम्पूर्ण-रोग-समूह-वात्तिक-पैत्तिक-श्लैष्मिक-द्वन्द्वज-नाना-रोगा-दुष्ट-रोगा-जन्मज-पातकज-नाना-ग्रहोपग्रह-प्रयोग-ग्रह-प्रवेश-ग्रह-प्रयोग-ग्रहादि-शान्त्यर्थे सर्व-ग्रहोच्चाटनार्थे श्रीबगलामुखी-देवता-मन्त्रस्य अयुत-जप-तद्-दशांश-होम-तर्पण-मार्जनाय संकल्पमहं करिष्ये ।
विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीबगलामुखी-मन्त्रस्य नारद ऋषिः । त्रिष्टुप् छन्दः । बगलामुखी देवता । ह्लीं बीजं । स्वाहा शक्तिः । मम शरीरे (यजमानस्य शरीरे वा) नाना-ग्रहोपग्रह-प्रयोग-ग्रह-प्रवेश-ग्रह-प्रयोग-सम्पूर्ण-रोग-समूह-वात्तिक-पैत्तिक-श्लैष्मिक-द्वन्द्वजादि-नाना-दुष्ट-रोग-जन्मज-पातकजादि-शान्त्यर्थे सर्व-दुष्ट-बाधा-कष्ट-कारक-ग्रहस्य उच्चाटनार्थे शीघ्रारोग्य-लाभार्थे एवं मम अन्य-अभीष्ट-कार्य-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यासः-
नारद ऋषये नमः शिरसि । त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे । बगलामुखी देवतायै नमः हृदि । ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये । स्वाहा शक्तये नमः पादयोः । मम शरीरे (यजमानस्य शरीरे वा) नाना-ग्रहोपग्रह-प्रयोग-ग्रह-प्रवेश-ग्रह-प्रयोग-सम्पूर्ण-रोग-समूह-वात्तिक-पैत्तिक-श्लैष्मिक-द्वन्द्वजादि-नाना-दुष्ट-रोग-जन्मज-पातकजादि-शान्त्यर्थे सर्व-दुष्ट-बाधा-कष्ट-कारक-ग्रहस्य उच्चाटनार्थे शीघ्रारोग्य-लाभार्थे एवं मम अन्य-अभीष्ट-कार्य-सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
राज गुरु जी
तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान अनुसंधान संस्थान
महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट
(रजि.)
.
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
08601454449
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249
No comments:
Post a Comment