लग्न अनुसार गुरु रत्न पुखराज धारण
भारतीय ज्योतिष के आधार पर हम कोई भी रत्न धारण करते हैं तो सर्वप्रथम
लग्न व लग्नेश की स्थिति देखते हैं। जो भी रत्न धारण कर रहे हैं उसके लग्न व लग्नेश
के साथ कैसे सम्बन्ध हैं. मित्र हैं अथवा शत्र हैं ? इसके अतिरिक्त हम अकारक ग्रह
अथवा कष्टकारी ग्रह की दशा- अन्तर्दशा के आधार पर रत्न धारण करते हैं।
गुरु रत्न:-
पुखराज बहुत ही शुभ रत्न है। कन्या अथवा विवाहित स्त्री के लिये तो यह बहुत ही आवश्यक हो जाता है परन्तु फिर भी इसको धारण करने से पहले पत्रिका में
स्थति का ज्ञान आवश्यक है, क्योंकि जैसे पत्रिका में यदि गुरु अशुभ हो तथा पुखराज
धारण करना आवश्यक हो, फिर पुखराज धारण करने से पहले कुछ अन्य प्रयोग
करना होता है। यहां हम केवल लग्न के आधार पर ही पुखराज धारण की चर्च
रहे हैं।
मेष लग्न:-
इस लग्न का स्वामी मंगल होता है जो गुरु का परम मित्र है।
भी इस लग्न में भाग्य भाव तथा व्यय भाव का स्वामी होता है परन्तु नवम भाव
आने पर गुरु भाग्य भाव का ही फल अधिक प्रदान करता है। इसलिये पुखराज
लग्न वालों के लिये बहुत ही शुभ होता है। यदि इसको लग्नेश मंगल के रत्न मूंगे के
साथ धारण किया जाये तो गुरु के शुभ फल में और अधिक वृद्धि होती है।
वृषभ लग्न :-
इस लग्न का स्वामी शुक्र है जो गुरु का परम शत्रु है। गुरु भी इस लग्न में अष्टम व एकादश जैसे अशुभ भावों का स्वामी होता है, इसलिये इस लग्न वालों
को पुखराज अशुभ होता है। मेरे शोध में लग्नेश शुक्र की महादशा तथा गुरु की अंतर्दशा में अथवा गुरु की महादशा में पुखराज धारण कर लाभ लिया जा सकता है।
मिथुन लग्न :-
इस लग्न में बुध लग्न स्वामी है। गुरु भी दो केन्द्र स्थान सप्तम
व दशम स्थान का स्वामी होकर केन्द्राधिपति दोष से दूषित होता है, इसलिये गुरु यदि लग्न, द्वितीय, एकादश अथवा किसी अन्य केन्द्र या त्रिकोण में होने पर संतान अथवा आर्थिक कष्ट होने पर गुरु की महादशा में आप पुखराज धारण कर सकते हैं परन्तु इतना अवश्य ध्यान रखें कि गुरु इस लग्न में प्रबल मारकेश होता है। सेहत पर नकारात्मक असर मिल सकते है।
कर्क लग्न :-
इस लग्न का स्वामी चन्द्र होता है जो गुरु का मित्र है। गुरु भी यहां रोग भाव तथा भाग्य भाव का स्वामी है, इसलिये आप भाग्य प्रबल करने के लिये
पुखराज धारण कर सकते हैं लेकिन आपको पूर्ण लाभ तभी मिल पायेगा जब पुखराज के साथ मोती भी धारण करें।
सिंह लग्न :-
इस लग्न का स्वामी सूर्य भी गुरु का मित्र है। गुरु भी पंचम जैसे त्रिकोण व अष्टम जैसे अशुभ भाव का स्वामी होता है लेकिन यहां पर गुरु पंचम भाव का शुभ फल प्रदान करता है, इसलिये आप पुखराज धारण कर सकते हैं। यदि आप
पुखराज के साथ सूर्य रत्न माणिक्य भी धारण करें तो और भी अधिक लाभ प्राप्त होगा।
कन्या लग्न :-
इस लग्न का स्वामी बुध है। गुरु यहां भी दो केन्द्र स्थान चतुर्थ व सप्तम भाव का स्वामी होकर केन्द्राधिपति दोष से दूषित होने के साथ मारकेश भी होता है। इसलिये गुरु यदि लग्न, द्वितीय, पंचम, सप्तम, नवम, दशम अथवा एकादश भाव में हो तो आप गुरु की महादशा अथवा संतान या आर्थिक कष्ट होने पर पुखराज धारण कर सकते हैं लेकिन मारकेश का भी ध्यान रखें। मेरे अनुभव में पुखराज के साथ रत्न पन्ना भी धारण किया जाये व गुरु की पूजा की जाये जिसमें मुख्यतः 108 नाम का उच्चारण हो तो फिर गुरु इतना अशुभ प्रभाव नहीं देता है।
तुला लग्न :-
इस लग्न का स्वामी शुक्र होता है जो गुरु का परम शत्रु है। गुरु पष्ठम जैसे अशुभ भाव का स्वामी है, इसलिये ऐसे जातक पुखराज से दूर ही रहें। मेरे अनुभव में तुला लग्न में गुरु जितने कमजोर व शान्त होंगे, जातक को उतना ही अधिक शुभ फल प्रदान करेंगे।
वृश्चिक लग्न :-
इस लग्न का स्वामी मंगल है जो गुरु का मित्र है। गुरु भी यहां तृतीय व पंचम भाव का स्वामी है । एक तरफ गुरु मारक प्रभाव रखता है तो दूसरी और शुभ त्रिकोण का स्वामी है, इसलिये इस लग्न वाले लोग आर्थिक समस्या वा गुरु की महादशा में पुखराज धारण कर सकते हैं लेकिन सामान्य रूप से पुखराज के साथ लग्न रत्न मूगा भी धारण करे तो फिर गुरु के अशुभ फल की समस्या समाप्त हो जायेगी।
धनु लग :---
इस लग्न का स्वामी स्वयं गुरु है, इसलिये लग्न व चतुर्थ भाव का स्वामी है और लग्नेश होने के आधार पर केन्द्राधिपति दोष से बचता है । इस लग्न वाले लोगों के लिये तो पुखराज कवच का कार्य करता है।
मकर लग्न। :----
इस लग्न का स्वामी शनि होता है। गुरु इस लग्न में तृतीय व द्वादश भाव का स्वामी होता है जो कि दोनों ही अशुभ भाव हैं, इसलिये ऐसे जातक
पुखराज से दूर ही रहें।
कुंभ लग्न :--
इस लग्न का स्वामी भी शनि होता है। गुरु यहां द्वितीय व एकादश
भाव का स्वामी होता है तथा दोनों ही अशुभ भाव हैं। गुरु एकादश भाव में कारकत्व दोष से पीड़ित होता है। सामान्यतः इस लग्न वालों को पुखराज अशुभ फल के साथ मारक प्रभाव भी प्रदान करता है, इसलिये इस लग्न वालों को पुखराज से दूर ही रहना चाहिये। मेरे अनुभव में गुरु यदि इनमें से किसी भी भाव में बैठा हो अथवा गुरु की महादशा में पुखराज धारण करने से जातक को आर्थिक लाभ के साथ यश भी प्राप्त होगा लेकिन नीलम भी धारण करना आवश्यक है।
मीन लग्न :----
लग्न इस लग्न का स्वामी स्वयं गुरु है। गुरु दो केन्द्र का स्वामी है। जैसे
मैंने धनु लग्न में बताया कि गुरु लग्नेश होने कारण केन्द्राधिपति दोष से मुक्त होता है,
इसलिये इस लग्न वाले जातक को पुखराज तुरन्त धारण करना चाहिये।
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