ऊपरी हवा पहचान और निदान
प्रायः सभी धर्मग्रंथों में ऊपरी हवाओं, नजर दोषों आदि का उल्लेख है। कुछ ग्रंथों में इन्हेंबुरी आत्मा कहा गया है तो कुछ अन्य में भूत-प्रेत और जिन्न।
यहां ज्योतिष के आधार पर नजर दोष का विश्लेषण प्रस्तुत है।
ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार गुरु पितृदोष, शनि यमदोष, चंद्र व शुक्र जल देवी दोष, राहुसर्प व प्रेत दोष, मंगल शाकिनी दोष, सूर्य देव दोष एवं बुध कुल देवता दोष का कारकहोता है। राहु, शनि व केतु ऊपरी हवाओं के कारक ग्रह हैं। जब किसी व्यक्ति के लग्न(शरीर), गुरु (ज्ञान), त्रिकोण (धर्म भाव) तथा द्विस्वभाव राशियों पर पाप ग्रहों का प्रभावहोता है, तो उस पर ऊपरी हवा की संभावना होती है।
लक्षण
नजर दोष से पीड़ित व्यक्ति का शरीर कंपकंपाता रहता है। वह अक्सर ज्वर, मिरगीआदि से ग्रस्त रहता है।
कब और किन स्थितियों में डालती हैं ऊपरी हवाएं किसी व्यक्ति पर अपना प्रभाव?
* जब कोई व्यक्ति दूध पीकर या कोई सफेद मिठाई खाकर किसी चौराहे पर जाता है, तबऊपरी हवाएं उस पर अपना प्रभाव डालती हैं। गंदी जगहों पर इन हवाओं का वास होता है,इसीलिए ऐसी जगहों पर जाने वाले लोगों को ये हवाएं अपने प्रभाव में ले लेती हैं।
इनहवाओं का प्रभाव रजस्वला स्त्रियों पर भी पड़ता है। कुएं, बावड़ी आदि पर भी इनका वासहोता है। विवाह व अन्य मांगलिक कार्यों के अवसर पर ये हवाएं सक्रिय होती हैं। इसकेअतिरिक्त रात और दिन के १२ बजे दरवाजे की चौखट पर इनका प्रभाव होता है।
* दूध व सफेद मिठाई चंद्र के द्योतक हैं। चौराहा राहु का द्योतक है। चंद्र राहु का शत्रु है।अतः जब कोई व्यक्ति उक्त चीजों का सेवन कर चौराहे पर जाता है, तो उस पर ऊपरीहवाओं के प्रभाव की संभावना रहती है।
* कोई स्त्री जब रजस्वला होती है, तब उसका चंद्र व मंगल दोनों दुर्बल हो जाते हैं। येदोनों राहु व शनि के शत्रु हैं। रजस्वलावस्था में स्त्री अशुद्ध होती है और अशुद्धता राहु कीद्योतक है। ऐसे में उस स्त्री पर ऊपरी हवाओं के प्रकोप की संभावना रहती है।
* कुएं एवं बावड़ी का अर्थ होता है जल स्थान और चंद्र जल स्थान का कारक है। चंद्र राहुका शत्रु है, इसीलिए ऐसे स्थानों पर ऊपरी हवाओं का प्रभाव होता है।
* जब किसी व्यक्ति की कुंडली के किसी भाव विशेष पर सूर्य, गुरु, चंद्र व मंगल का प्रभावहोता है, तब उसके घर विवाह व मांगलिक कार्य के अवसर आते हैं। ये सभी ग्रह शनि वराहु के शत्रु हैं, अतः मांगलिक अवसर
पर ऊपरी हवाएं व्यक्ति को परेशान कर सकती हैं।
* दिन व रात के १२ बजे सूर्य व चंद्र अपने पूर्ण बल की अवस्था में होते हैं। शनि व राहुइनके शत्रु हैं, अतः इन्हें प्रभावित करते हैं। दरवाजे की चौखट राहु की द्योतक है। अतःजब राहु क्षेत्र में चंद्र या सूर्य को बल मिलता है, तो ऊपरी हवा सक्रिय होने की संभावनाप्रबल होती है।
* मनुष्य की दायीं आंख पर सूर्य का और बायीं पर चंद्र का नियंत्रण होता है। इसलिएऊपरी हवाओं का प्रभाव सबसे पहले आंखों पर ही पड़ता है।
यहां ऊपरी हवाओं से संबद्ध ग्रहों, भावों आदि का विश्लेषण प्रस्तुत है।
राहु-केतु –
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, शनिवत राहु ऊपरी हवाओं का कारक है।यह प्रेत बाधा का सबसे प्रमुख कारक है। इस ग्रह का प्रभाव जब भी मन, शरीर, ज्ञान,धर्म, आत्मा आदि के भावों पर होता है, तो ऊपरी हवाएं सक्रिय होती हैं।
शनि –
इसे भी राहु के समान माना गया है। यह भी उक्त भावों से संबंध बनाकर भूत-प्रेतपीड़ा देता है।
चंद्र –
मन पर जब पाप ग्रहों राहु और शनि का दूषित प्रभाव होता है और अशुभ भावस्थित चंद्र बलहीन होता है, तब व्यक्ति भूत-प्रेत पीड़ा से ग्रस्त होता है।
गुरु –
गुरु सात्विक ग्रह है। शनि, राहु या केतु से संबंध होने पर यह दुर्बल हो जाता है।इसकी दुर्बल स्थिति में ऊपरी हवाएं जातक पर अपना प्रभाव डालती हैं।
लग्न –
यह जातक के शरीर का प्रतिनिधित्व करता है। इसका संबंध ऊपरी हवाओं केकारक राहु, शनि या केतु से हो या इस पर मंगल का पाप प्रभाव प्रबल हो, तो व्यक्ति केऊपरी हवाओं से ग्रस्त होने की संभावना बनती है।
पंचम –
पंचम भाव से पूर्व जन्म के संचित कर्मों का विचार किया जाता है। इस भाव परजब ऊपरी हवाओं के कारक पाप ग्रहों का प्रभाव पड़ता है, तो इसका अर्थ यह है कि व्यक्तिके पूर्व जन्म के अच्छे कर्मों में कमी है। अच्छे कर्म अल्प हों, तो प्रेत बाधा योग बनता है।
अष्टम –
इस भाव को गूढ़ विद्याओं व आयु तथा मृत्यु का भाव भी कहते हैं। इसमें चंद्र औरपापग्रह या ऊपरी हवाओं के कारक ग्रह का संबंध प्रेत बाधा को जन्म देता है।
नवम –
यह धर्म भाव है। पूर्व जन्म में पुण्य कर्मों में कमी रही हो, तो यह भाव दुर्बल होताहै।
राशियां –
जन्म कुंडली में द्विस्वभाव राशियों मिथुन, कन्या और मीन पर वायु तत्व ग्रहोंका प्रभाव हो, तो प्र्रेत बाधा होती है।
वार –
शनिवार, मंगलवार, रविवार को प्रेत बाधा की संभावनाएं प्रबल होती हैं।
तिथि –
रिक्ता तिथि एवं अमावस्या प्रेत बाधा को जन्म देती है।
नक्षत्र –
वायु संज्ञक नक्षत्र प्रेत बाधा के कारक होते हैं।
योग –
विष्कुंभ, व्याघात, ऐंद्र, व्यतिपात, शूल आदि योग प्रेत बाधा को जन्म देते हैं।
करण –
विष्टि, किस्तुन और नाग करणों के कारण व्यक्ति प्रेत बाधा से ग्रस्त होता है।
दशाएं –
मुख्यतः शनि, राहु, अष्टमेश व राहु तथा केतु से पूर्णतः प्रभावित ग्रहों कीदशांतर्दशा में व्यक्ति के भूत-प्रेत बाधाओं से ग्रस्त होने की संभावना रहती है।
युति
किसी स्त्री के सप्तम भाव में शनि, मंगल और राहु या केतु की युति हो, तो उसके पिशाचपीड़ा से ग्रस्त होने की संभावना रहती है।
गुरु नीच राशि अथवा नीच राशि के नवांश में हो, या राहु से युत हो और उस पर पाप ग्रहोंकी दृष्टि हो, तो जातक की चांडाल प्रवृत्ति होती है।
पंचम भाव में शनि का संबंध बने तो व्यक्ति प्रेत एवं क्षुद्र देवियों की भक्ति करता है।
ऊपरी हवाओं के कुछ अन्य मुख्य ज्योतिषीय योग
* यदि लग्न, पंचम, षष्ठ, अष्टम या नवम भाव पर राहु, केतु, शनि, मंगल, क्षीण चंद्रआदि का प्रभाव हो, तो जातक के ऊपरी हवाओं से ग्रस्त होने की संभावना रहती है।
यदिउक्त
* ग्रहों का परस्पर संबंध हो, तो जातक प्रेत आदि से पीड़ित हो सकता है।
* यदि पंचम भाव में सूर्य और शनि की युति हो, सप्तम में क्षीण चंद्र हो तथा द्वादश में गुरुहो, तो इस स्थिति में भी व्यक्ति प्रेत बाधा का शिकार होता है।
* यदि लग्न पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि हो, लग्न निर्बल हो, लग्नेश पाप स्थान में हो अथवाराहु या केतु से युत हो, तो जातक जादू-टोने से पीड़ित होता है।
* लग्न में राहु के साथ चंद्र हो तथा त्रिकोण में मंगल, शनि अथवा कोई अन्य क्रूर ग्रहहो, तो जातक भूत-प्रेत आदि से पीड़ित होता है।
* यदि षष्ठेश लग्न में हो, लग्न निर्बल हो और उस पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातकजादू-टोने से पीड़ित होता है। यदि लग्न पर किसी अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि न हो, तोजादू-टोने से पीड़ित होने की संभावना प्रबल होती है।
षष्ठेश के सप्तम या दशम में स्थितहोने पर भी जातक जादू-टोने से पीड़ित हो सकता है।
* यदि लग्न में राहु, पंचम में शनि तथा अष्टम में गुरु हो, तो जातक प्रेत शाप से पीड़ितहोता है।
ऊपरी हवाओं के सरल उपाय
ऊपरी हवाओं से मुक्ति हेतु शास्त्रों में अनेक उपाय बताए गए हैं। अथर्ववेद में इस हेतुकई मंत्रों व स्तुतियों का उल्लेख है। आयुर्वेद में भी इन हवाओं से मुक्ति के उपायों काविस्तार से वर्णन किया गया है। यहां कुछ प्रमुख सरल एवं प्रभावशाली उपायों काविवरण प्रस्तुत है।
* ऊपरी हवाओं से मुक्ति हेतु हनुमान चालीसा का पाठ और गायत्री का जप तथा हवनकरना चाहिए। इसके अतिरिक्त अग्नि तथा लाल मिर्ची जलानी चाहिए।
* रोज सूर्यास्त के समय एक साफ-सुथरे बर्तन में गाय का आधा किलो कच्चा दूध लेकरउसमें शुद्ध शहद की नौ बूंदें मिला लें। फिर स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहनकर मकान कीछत से नीचे तक प्रत्येक कमरे, जीने, गैलरी आदि में उस दूध के छींटे देते हुए द्वार तकआएं और बचे हुए दूध को मुख्य द्वार के बाहर गिरा दें।
क्रिया के दौरान इष्टदेव का स्मरणकरते रहें। यह क्रिया इक्कीस दिन तक नियमित रूप से करें, घर पर प्रभावी ऊपरी हवाएंदूर हो जाएंगी।
* रविवार को बांह पर काले धतूरे की जड़ बांधें, ऊपरी हवाओं से मुक्ति मिलेगी।
* लहसुन के रस में हींग घोलकर आंख में डालने या सुंघाने से पीड़ित व्यक्ति को ऊपरीहवाओं से मुक्ति मिल जाती है।
* ऊपरी बाधाओं से मुक्ति हेतु निम्नोक्त मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए।
ष् ओम नमो भगवते रुद्राय नमः कोशेश्वस्य नमो ज्योति पंतगाय नमो रुद्रायनमः सिद्धि स्वाहा।श्श्
* घर के मुख्य द्वार के समीप श्वेतार्क का पौधा लगाएं, घर ऊपरी हवाओं से मुक्त रहेगा।
* उपले या लकड़ी के कोयले जलाकर उसमें धूनी की विशिष्ट वस्तुएं डालें और उससेउत्पन्न होने वाला धुआं पीड़ित व्यक्त्ि को सुंघाएं। यह क्रिया किसी ऐसे व्यक्ति सेकरवाएं जो अनुभवी हो और जिसमें पर्याप्त आत्मबल हो।
* प्रातः काल बीज मंत्र झ्क्लींश् का उच्चारण करते हुए काली मिर्च के नौ दाने सिर परसे घुमाकर दक्षिण दिशा की ओर फेंक दें, ऊपरी बला दूर हो जाएगी।
* रविवार को स्नानादि से निवृत्त होकर काले कपड़े की छोटी थैली में तुलसी के आठपत्ते, आठ काली मिर्च और सहदेई की जड़ बांधकर गले में धारण करें, नजर दोष बाधा सेमुक्ति मिलेगी।
* निम्नोक्त मंत्र का १०८ बार जप करके सरसों का तेल अभिमंत्रित कर लें और उससेपीड़ित व्यक्ति के शरीर पर मालिश करें, व्यकित पीड़ामुक्त हो जाएगा।
मंत्र – ओम नमो काली कपाला देहि देहि स्वाहा।
* ऊपरी हवाओं के शक्तिषाली होने की स्थिति में शाबर मंत्रों का जप एवं प्रयोग कियाजा सकता है। प्रयोग करने के पूर्व इन मंत्रों का दीपावली की रात को अथवा होलिका दहनकी रात को जलती हुई होली के सामने या फिर श्मषान में १०८ बार जप कर इन्हें सिद्धकर लेना चाहिए।
यहां यह उल्लेख कर देना आवष्यक है कि इन्हें सिद्ध करने के इच्छुकसाधकों में पर्याप्त आत्मबल होना चाहिए, अन्यथा हानि हो सकती है।
* निम्न मंत्र से थोड़ा-सा जीरा ७ बार अभिमंत्रित कर रोगी के शरीर से स्पर्श कराएंऔर उसे अग्नि में डाल दें। रोगी को इस स्थिति में बैठाना चाहिए कि उसका धूंआ उसकेमुख के सामने आये। इस प्रयोग से भूत-प्रेत बाधा की निवृत्ति होती है।
मंत्र –
जीरा जीरा महाजीरा जिरिया चलाय। जिरिया कीशक्ति से फलानी चलिजाय॥ जीये तो रमटले मोहे तो मशान टले। हमरे जीरा मंत्र से अमुख अंग भूत चले॥ जायहुक्म पाडुआ पीर की दोहाई॥
* एक मुट्ठी धूल को निम्नोक्त मंत्र से ३ बार अभिमंत्रित करें और नजर दोष से ग्रस्तव्यक्ति पर फेंकें, व्यक्ति को दोष से मुक्ति मिलेगी।
मंत्र –
तह कुठठ इलाही का बान। कूडूम की पत्ती चिरावन। भाग भाग अमुक अंक सेभूत। मारुं धुलावन कृष्ण वरपूत। आज्ञा कामरु कामाख्या। हारि दासीचण्डदोहाई।
* थोड़ी सी हल्दी को ३ बार निम्नलिखित मंत्र से
अभिमंत्रित करके अग्नि में इसतरह छोड़ें कि उसका धुआं रोगी के मुख की ओर जाए। इसे हल्दी बाण मंत्र कहते हैं।
मंत्र –
हल्दी गीरी बाण बाण को लिया हाथ उठाय। हल्दी बाण से नीलगिरी पहाड़थहराय॥ यह सब देख बोलत बीर हनुमान। डाइन योगिनी भूत प्रेत मुंड काटौ तान॥आज्ञा कामरु कामाक्षा माई। आज्ञा हाड़ि की चंडी की दोहाई॥
*जौ, तिल, सफेद सरसों, गेहूं, चावल, मूंग, चना, कुष, शमी, आम्र, डुंबरक पत्ते औरअषोक, धतूरे, दूर्वा, आक व ओगां की जड़ को मिला लें और उसमें दूध, घी, मधु और गोमूत्रमिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। फिर संध्या काल में हवन करें और निम्न मंत्रों का १०८बार जप कर इस मिश्रण से १०८ आहुतियां दें।
मंत्र –
मंत्र रू ओम नमः भवे भास्कराय आस्माक अमुक सर्व ग्रहणं पीड़ा नाशनं कुरु-कुरु स्वाहा।
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
विशेष -
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