Saturday, May 9, 2020

उच्चिस्ट गणपति साधना





उच्चिस्ट गणपति साधना


व्यवसाय एवं नौकरी के लिए अमोघ प्रयोग

मित्रों भगवान शिव एवं गौरी पुत्र भगवान गणपति समस्त विघ्नों का नाश करने वाले,सभी कार्यों में सिद्धि देने वाले, तथा जीवन में सभी प्रकार से सुख सम्पदा देने वाले हैं।शास्त्रो में “कलौ चंडी विनायको” इस वचन के द्वारा कहा है कि कलियुग में दुर्गा और गणेश ही पूर्ण सफलता देने वाले भगवान हैं……

तुलसीदासजी ने राम चरित मानस में कहा है कि—-
“जो सुमिरत सिद्धि होय, गण नायक करिवर वदन |
करउ अनुग्रह सोई, बुद्धि राशि शुभ गुण सदन ||”
भारत के ही नहीं वरन विश्व के सभी साधक अपने कार्यों और समस्त साधना में सिद्धि हेतु गणपति की साधना करते ही हैं…..

।।।साधना विधि ।।

यह प्रयोग शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी से प्रारम्भ करे. यह प्रयोग दिन या रात्रि के समय कर सकते है.इस साधना में आपको रक्तवर्णी लाल वस्त्र,आसान,पुष्प,फल एवं मिष्ठान का उपयोग करना चाहिए।साधना काल में उत्तर की ओर मुख कर,अपनी इच्छानुसार वस्तु का सेवन करे 
जैसे:-

***किसी विशेष मनोकामना की पूर्णता के लिए सुपारी का प्रयोग करे।

***अन्न एवं धन-सम्पदा एवं नौकरी की प्राप्ति के लिए गुड़ का प्रयोग करे।

***सर्वसिद्धि के लिए मीठा पान(ताम्बूल)का प्रयोग करे।
***वशिकरण के लिए लौंग का प्रयोग करे।

एवं बिना पानी पिए या मुख शुद्धि के इस प्रयोग को प्रारम्भ करे।किन्तु मेरे गुरुदेव के कथनानुसार पूरी साधना में अपनी मनोकामना के अनुसार ,जो सामग्री बताई गई है वह मुख में लगातार रहनी चाहिए।

साधक सर्वप्रथम अपने समक्ष लकड़ी के तख्ते,चौरंग या बाजोट पर लाल रेशमी या साटन का वस्त्र बिछा दे।उस पर सवा मिट्ठी चावल को कुमकुम एवं गंगाजल मिलाकर रंगने के उपरान्त चौरंग पे एक ढेरी बनाए।उस चावल की ढ़ेरी के ऊपर सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित नीम,सफ़ेद आक या रक्त चन्दन के अंगूठे के गणपति की स्थापना करे।

नीम ,सफ़ेद आक या रक्त चन्दन के गणपति उपलब्ध ना होने की अवस्था में आप सिद्ध व प्राण-प्रतिष्ठित पारद गणपति विग्रह को स्थापित कर पूजन प्रारम्भ करना चाहिए।

।।गुरु पूजन।।

अब सर्वप्रथम सहस्त्रार स्थित श्री गुरुदेव के चरणों के विग्रह का ध्यान कर ,गुरु द्वारा प्रदत्त गुरु मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए।
गुरु मंत्र न होने की स्थिति में

गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:।
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:।।
कह कर "श्री गुरुभ्यो नमः"इस मंत्र का जाप करना चाहिए।गुरु को प्रसाद स्वरूप केसर युक्त खीर का भोग निवेदन करना चाहिए।
।।गणपति पूजन विधि ।।
।।करन्यास।।
**क्षां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
**क्षीं तर्जनीभ्यां नमः
**ह्रीं सर्वानन्दमयि मध्यमाभ्यां नमः
**हूं अनामिकाभ्यां नमः
**कों कनिष्टकाभ्यां नमः
**कैं करतल करपृष्ठाभ्यां नमः

।।हृदयादिन्यास।।
**क्षां हृदयाय नमः
**क्षीं शिरसे स्वाहा
**ह्रीं शिखायै वषट्
**हूं कवचाय हूं
**कों नेत्रत्रयाय वौषट्
**कैं अस्त्राय फट्

।।श्री गणपति ध्यान तथा आवाहन।।
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय,
लम्बोदराय सकलाय जगत्‌ हिताय ।
नागाननाय श्रुतियज्ञभूषिताय,
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः गणपते !
इहागच्छ इहातिष्ठ सुप्रतिष्ठो भव
मम पूजा गृहाण !

गणानान्त्वा गणपति (गुँ) हवामहे
प्रियाणान्त्वा प्रियपति (गुँ) हवामहे
निधिनान्त्वा निधिपति (गुँ) हवामहे
वसो मम ।
आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम्‌ ॥

देवों के प्रिय विघ्ननियन्ता, लम्बोदर भव-भय हारी ।
गिरिजानन्दन देव गजानन, यज्ञ-विभूषित श्रुतिधारी ॥
मंगलकारी दुःख-विदारी, तेजोमय जय वरदायक ।
बार-बार जय नमस्कार, स्वीकार करो हे गणनायक ॥

देव आइये यहाँ बैठिये, पूजा को करिये स्वीकार ।
भूर्भुवः स्वः सुख समृद्धि के, खोल दीजिये मंगल द्वार ॥

गणनायक वर बुद्धि विधायक, सदा सहायक भय-भंजन ।
प्रियपति, अति प्रिय वस्तु प्रदायक, जगत्राता जन-मन-रंजन ॥

निधिपति, नव-निधियों के दाता, भाग्य-विधाता भव-भावन ।

श्रद्धा से हम करते सादर, देव! आपका आवाहन ॥
विश्व उदर में टिका आपके, विश्वरूप गणराज महान ।
सर्व शक्ति संचारक तारक, दो अपने स्वरूप का ज्ञान ॥

न्यास ,ध्यान एवं आह्वाहन के बाद साधक निम्न मन्त्र की २१ माला जाप करे. यह जाप साधक रक्त चन्दन की माला से या मूंगा की माला से करे.

।।मंत्र ।।

01. ॐ क्षां क्षीं ह्रीं हूं कों कैं फट् स्वाहा

02. ॐ ऐम् ह्रीं क्लीं हस्तिपिशाचिलिखे स्वाहा।।
(दोनों मंत्र में से किसी एक का ही प्रयोग करे)

जाप पूर्ण होने पर साधक इसी मन्त्र के द्वारा आम की लकड़ी से अग्नि प्रज्वलित कर 227 आहुति लाल चन्दन के बुरादे से प्रदान करे.इस प्रकार ये एक दिन का प्रयोग हुआ,ऐसा 21 दिन लगातार करे।रोज हवन नहीं होने की स्थिति में 21 वे दिन 4647 आहुतिया दे कर प्रयोग संपन्न करे।

धन,नाम ,सम्मान,व्यावसायिक एवं नौकरी की समस्या में यह प्रयोग अमोघ है।

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।



विशेष -

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(रजि.)

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