Friday, May 15, 2020

भैरव गंडा निर्माण विधि






भैरव गंडा निर्माण विधि


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श्री भैरव भगवान शिव का एक रुप माने जाते है. पुराणों तथा तंत्र शास्त्र में भैरव जी के अनेक रुपों का वर्णन प्राप्त होता है. इनके प्रमुख रुप इस प्रकार हैं:-

असितांग भैरव, चण्ड भैरव, रुरु भैरव, क्रोध भैरव, कपालि भैरव, भीषण भैरव, संहार भैरव उन्मत्त भैरव इत्यादि ! श्री भैरव जी की साधना शत्रुओं से बचाती है तथा समस्त भय का नाश करने वाली होती है.

 श्री भैरव जी के दस नामों का प्रात: काल स्मरण करने मात्र से सभी संकट दूर होते हैं. भैरव, भीम, कपाली शूर, शूली, कुण्डली, व्यालोपवीती, कवची, भीमविक्रम तथा शिवप्रिय नामों का स्मरण साधक को बल एवं साहस प्रदान करता है उसे कोई यातना एवं पीड़ा नहीं सताती.

भैरव देव जी के राजस, तामस एवं सात्विक तीनों प्रकार की साधना तंत्र मैं प्राप्त होती हैं. बटुक भैरव जी के सात्विक स्वरूप का ध्यान करने से रोग दोष दूर होते हैं तथा दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है. इनके राजस स्वरूप का ध्यान करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. तथा इनके तामस स्वरूप का ध्यान करने से सम्मोहन, वशीकरण इत्यादि का प्रभाव समाप्त होता है

बहुध बच्चो एवं बड़ो को डरने , नींद मे चौकने की शिकायत हो जाती है ! उनको हवा का भी असर हो जाता है ! प्रेतात्माओ से रक्षा के लिए , आपदा विपदाओ से रक्षा का लिए , आरोग्य लाभ के लिए गंडो की जरुरत होती है ! यह गंडे काले डोरों की आठ लड़ मे करीब २ फुट लम्बे बट का बना लिए जाते है !

 डोरे को करीब पाच फुट लम्बी आठ लड़े करो ! उनको बट दो और उनको दुब्बर करके फिर बट दो तो तैयार डोरा २ फुट के करीब रह जाएगा ! काल भैरव अष्टमी रात आप स्नान आदि कर साफ़ धोती पहन कर दक्षिण की और मुह कर आसन पर बैठ जाए सर्व प्रथम गणेश -

गुरु पूजन कर श्री भैरव पूजन करे और उस डोरे का भी पूजन करे ( पंचोपचार ) अब रुद्राक्ष माला से ५ माला निम्न मंत्र की करे -

'ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं '

 मंत्र जप पूर्ण होने के बाद उस डोरे का भी पूजन करे ( पंचोपचार ) अब एक पाठ भैरव कवच का करे और एक लाल पुष्प भैरव जी के चरणों मे अर्पित करे और उस डोरे मे एक गाठ लगा दे फिर एक पाठ करे और एक लाल पुष्प अर्पित कर एक गाठ फिर उस डोरे मे लगा दे

 इस प्रकार ११ पाठ करे और प्रत्येक पाठ पूर्ण होने पर एक गाठ लगा दे जब सभी पाठ पूर्ण हो जाए तो वही किसी पात्र मे आम की सुखी लकड़ी लगा कर हवन सामग्री मे चावल -कलातिल- जौ- शक्कर -घी मिलाकर कर उपरोक्त मंत्र की १०८ आहुति प्रदान करे और हवन पूर्ण हो जाने के बाद हवन के धुए से उस डोरे को अभिसिचित कर दे

 और आरती कर छमा याचना करे और उस गंडे को गले या दाहिनी भुजा मे धारण करे ! यह गंडा अधिक प्रभावशाली और तंत्र बाधा -

उपरी बाधा मे रक्षा करता है यहाँ तक की ग्रह जनित दुष्प्रभावो से भी साधक की रक्षा करता है और साधक सर्वत्र विजयी होकर यश, मान, ऐश्वर्य प्राप्त करता है

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।



विशेष -

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महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

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