Friday, May 22, 2020

मातंगी साधना





मातंगी साधना


        

          वर्तमान युग में मानव जीवन के प्रारम्भिक पड़ाव से अन्तिम पड़ाव तक भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयत्नशील रहता है। व्यक्ति जब तक भौतिक जीवन का पूर्णता से निर्वाह नहीं कर लेता है, तब तक उसके मन में आसक्ति का भाव रहता ही है और जब इन इच्छाओं की पूर्ति होगी, तभी वह आध्यात्मिकता के क्षेत्र में उन्नति कर सकता है।

 मातंगी महाविद्या साधना एक ऐसी साधना है, जिससे आप भौतिक जीवन को भोगते हुए आध्यात्म की ऊँचाइयों को छू सकते हैं।

          मातंगी महाविद्या दस महाविद्याओं में नवम् स्थान पर अवस्थित होकर श्रीकुल के अन्तर्गत मानी जाने वाली महाविद्या है। इनकी साधना अत्यन्त सौभाग्यप्रद मानी जाती है, क्यूँकि यह केवल साधना ही नहीं अपितु सही अर्थों में पूरे जीवन को ही आमूलचूल परिवर्तित कर देने की ऐतिहासिक घटना है।

          मातंगी महाविद्या साधना से साधक को पूर्ण गृहस्थ-सुख, शत्रुओं का नाश, भोग-विलास, अपार सम्पदा, वाक्-सिद्धि, कुण्डलिनी जागरण ,अपार सिद्धियाँ, काल-ज्ञान, इष्ट-दर्शन आदि प्राप्त होते ही हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि मातंगी साधना पूर्णता की साधना है । जिसने माँ मातंगी को सिद्ध कर लिया, फिर उसके जीवन में कुछ अन्य सिद्ध करना शेष नहीं रह जाता।

          माँ मातंगी आदि सरस्वती है, जिस पर माँ मातंगी की कृपा होती है, उसे स्वतः ही सम्पूर्ण वेदों, पुराणों, उपनिषदों आदि का ज्ञान हो जाता है, उसकी वाणी में दिव्यता आ जाती है, फिर साधक को मन्त्र एवं साधना याद करने की जरुरत नहीं रहती, उसके मुख से स्वतः ही धाराप्रवाह मन्त्र उच्चारण होने लगता है।

          जब वह बोलता है तो हजारों-लाखों की भीड़ मन्त्र मुग्ध-सी उसके मुख से उच्चारित वाणी को सुनती रहती है। साधक की ख्याति सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में फैल जाती है। कोई भी उससे शास्त्रार्थ में विजयी नहीं हो सकता, वह जहाँ भी जाता है विजय प्राप्त करता ही है।

          मातंगी साधना से वाक्-सिद्धि की प्राप्ति होती है, प्रकृति साधक के सामने हाथ जोड़े खडी रहती है, साधक जो बोलता है वो सत्य होता ही है। माँ मातंगी साधक को वह विवेक प्रदान करती है कि फिर साधक पर कुबुद्धि हावी नहीं होती, उसे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है और ब्रह्माण्ड के समस्त रहस्य साधक के सामने प्रत्यक्ष होते ही हैं।

          माँ मातंगी को उच्छिष्ट चाण्डालिनी भी कहते हैं, इस रूप में माँ साधक के समस्त शत्रुओं एवं विघ्नों का नाश करती है, फिर साधक के जीवन में ग्रह या अन्य बाधा का कोई असर नहीं होता। जिसे संसार में सब ठुकरा देते हैं, जिसे संसार में कहीं पर भी आसरा नहीं मिलता, उसे माँ उच्छिष्ट चाण्डालिनी अपनाती है और साधक को वह शक्ति प्रदान करती है, जिससे ब्रह्माण्ड की समस्त सम्पदा साधक के सामने तुच्छ-सी नजर आती है।

          महर्षि विश्वमित्र ने यहाँ तक कहा है कि ”मातंगी साधना में बाकि नौ महाविद्याओं का समावेश स्वतः ही हो गया है”। माँ मातंगी जी की साधना जो साधक कर लेता है, वह तो गर्व से कह सकता है कि मेरा यह आध्यात्मिक जीवन व्यर्थ नहीं गया।

                     अतः आप भी माँ मातंगी की साधना को करें, जिससे आप जीवन में पूर्ण बन सके।

साधना विधि :----------

          यह साधना मातंगी जयन्ती, मातंगी सिद्धि दिवस अथवा किसी भी सोमवार के दिन से शुरू की जा सकती है। यह साधना रात्रिकालीन है और इसे रात्रि में ९ बजे के बाद शुरु करना चाहिए।

          सर्वप्रथम साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र पहिनकर पश्चिम दिशा की ओर मुख करके लाल आसन पर बैठ जाए। अपने सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा ले। इस साधना में माँ मातंगी का चित्र, यन्त्र और लाल मूँगा माला का महत्व बताया गया है, परन्तु सामग्री उपलब्ध ना हो तो किसी ताँबे की प्लेट में स्वास्तिक बनाए और उस पर एक सुपारी स्थापित कर दे और उसे ही यन्त्र मानकर स्थापित कर दे। 

आपके पास मातंगी का चित्र ना हो तो आप ''माताजी'' का ही मातंगी स्वरुप में पूजन करे, माताजी तो स्वयं ही ''जगदम्बा'' है और माला के विषय में स्फटिक माला, लाल हकीक माला, मूँगा माला,  रुद्राक्ष माला में से किसी भी माला का उपयोग हो सकता है।

          सबसे पहले साधक शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर धूप-अगरबत्ती भी लगा दे। फिर सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न करे और गुरुमन्त्र का चार माला जाप कर ले। फिर सद्गुरुदेवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          इसके बाद साधक संक्षिप्त गणेशपूजन सम्पन्न करे और "ॐ वक्रतुण्डाय हूं" मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          फिर साधक संक्षिप्त भैरवपूजन सम्पन्न करे और  "ॐ हूं भ्रं हूं मतंग भैरवाय नमः" मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान  मतंग भैरवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

         इसके बाद साधक को साधना के पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए।  साधक दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि  “मैं अमुक नाम का साधक गोत्र अमुक आज से श्री मातंगी  साधना  का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य २१ दिनों तक ५१ माला मन्त्र जाप करूँगा। माँ ! मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे मन्त्र की सिद्धि प्रदान करे तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दे।”

                   इसके बाद  साधक भगवती मातंगी का सामान्य पूजन करे। कुमकुम, अक्षत, पुष्प आदि से पूजा करके कोई भी मिष्ठान्न भोग में अर्पित करे।

         फिर साधक निम्न विनियोग का उच्चारण कर एक आचमनी जल भूमि पर छोड़ दे ---

विनियोग :-----

       ॐ अस्य मन्त्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषिः विराट् छन्दः मातंगी देवता ह्रीं बीजं हूं शक्तिः क्लीं कीलकं सर्वाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः।

ऋष्यादिन्यास :-----

ॐ दक्षिणामूर्ति ऋषये नमः शिरसि।      (सिर को स्पर्श करें)

विराट् छन्दसे नमः मुखे।              (मुख को स्पर्श करें)

मातंगी देवतायै नमः हृदि।            (हृदय को स्पर्श करें)

ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये।                (गुह्य स्थान को स्पर्श करें)

हूं शक्तये नमः पादयोः।              (पैरों को स्पर्श करें)

क्लीं कीलकाय नमः नाभौ।            (नाभि को स्पर्श करें)

विनियोगाय नमः सर्वांगे।             (सभी अंगों को स्पर्श करें)

करन्यास :-----

ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः।         (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठे को स्पर्श करें)

ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः।          (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)

ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः।         (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)

ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः।        (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)

ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।     (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)

ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)

हृदयादिन्यास :-----

ॐ ह्रां हृदयाय नमः।      (हृदय को स्पर्श करें)

ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा।      (सिर को स्पर्श करें)

ॐ ह्रूं शिखायै वषट्।      (शिखा को स्पर्श करें)

ॐ ह्रैं कवचाय हूं।         (भुजाओं को स्पर्श करें)

ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।      (नेत्रों को स्पर्श करें)

ॐ ह्रः अस्त्राय फट्।       (सिर से घूमाकर तीन बार ताली बजाएं)

ध्यान :-----

       फिर हाथ जोड़कर माँ भगवती मातंगी का ध्यान  करें -----

ॐ श्यामांगी शशिशेखरां त्रिनयनां वेदैः करैर्बिभ्रतीं,                                                        पाशं खेटमथांकुशं दृढमसिं नाशाय भक्तद्विषाम्।                      रत्नालंकरणप्रभोज्ज्वलतनुं भास्वत्किरीटां शुभां,                                                       मातंगी मनसा स्मरामि सदयां सर्वार्थसिद्धिप्रदाम्।।

       इस प्रकार ध्यान करने के बाद साधक निम्न मन्त्र का ५१ माला जाप करे -----

मन्त्र :-----------

।। ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा ।।

OM HREEM KLEEM HOOM MAATANGYEI PHAT SWAAHAA.

      यह साधना दिखने में ही साधारण हो सकती है, परन्तु यह मन्त्र साधना अत्यन्त तीव्र है। मातंगी महाविद्या साधना विश्व की सर्वश्रेष्ठ साधना है, जो साधक के दुर्भाग्य को भी बदलकर उसे भाग्यवान बना देती है। आज तक इस साधना में किसी को असफलता नहीं मिली है। मन्त्र जाप के पश्चात मातंगी कवच का एक पाठ अवश्य ही करे।

मातंगी कवच

श्रीदेव्युवाच

साधु-साधु महादेव! कथयस्व सुरेश्वर!                                                                        मातंगी कवचं दिव्यं सर्वसिद्धिकरं नृणाम्।।१।।

श्री ईश्वर उवाच

श्रृणु देवि! प्रवक्ष्यामि मातंगीकवचं शुभम्।                                                           गोपनीयम् महादेवि! मौनी जापं समाचरेत्।।२।।

विनियोगः-----

             ॐ अस्य श्रीमातंगीकवचस्य श्री दक्षिणामूर्तिः ऋषिः विराट् छन्दो मातंगी देवता चतुर्वर्ग सिद्धये जपे विनियोगः।

मूल कवच

ॐ शिरो मातंगिनी पातु भुवनेशी तु चक्षुषी।                                                                      तोडला कर्ण युगलं त्रिपुरा वदनं मम।।३।।

पातु कण्ठे महामाया हृदि माहेश्वरी तथा।                                                                त्रिपुष्पा पार्श्वयोः पातु गुदे कामेश्वरी मम।।४।।

ऊरुद्वये तथा चण्डी जंघयोश्च हरप्रिया।                                                                महामाया पादयुग्मे सर्वांगेषु कुलेश्वरी।।५।।

अंगं प्रत्यंगकं चैव सदा रक्षतु वैष्णवी।                                                                  ब्रह्मरन्ध्रे सदा रक्षेन्मातंगीनामसंस्थिता।।६।।

रक्षेन्नित्यं ललाटे सा महापिशाचिनीति च।                                                                नेत्रयोः सुमुखी रक्षेद्देवी रक्षतु नासिकाम्।।७।।

महापिशाचिनीं पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा।                                                                      लज्जा रक्षतु मां दन्ताञ्चोष्ठौ सम्मार्जनीकरा।।८।।

चिबुके कण्ठदेशे च ठकारत्रितयं पुनः।                                                                             स-विसर्गं महादेवि! हृदयं पातु सर्वदा।।९।।

नाभिं रक्षतु मां लोला कालिकावतु लोचने।                                                                    उदरे पातु चामुण्डा लिंगे कात्यायनी तथा।।१०।।

उग्रतारा गुदे पातु पादौ रक्षतु चाम्बिका।                                                                      भुजौ रक्षतु शर्वाणीं हृदयं चण्डभूषणा।।११।।

जिह्वायां मातृका रक्षेत्पूर्वे रक्षतु पुष्टिका।                                                                 विजया दक्षिणे पातु मेधा रक्षतु वारुणे।।१२।।

नैर्ऋत्यां सुदया रक्षेद्वायव्यां पातु लक्ष्मणा।                                                            ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी मातंगी शुभकारिणी।।१३।।

रक्षेत्सुरेशी चाग्नेये बगला पातु चोत्तरे।                                                                       ऊर्घ्वं पातु महादेवि देवानां हितकारिणी।।१४।।

पाताले पातु मां नित्यं वशिनी विश्वरूपिणी।                                                                प्रणवं च ततो माया कामबीजं च कूर्चकं।।१५।।

मातंगिनी ङेयुतास्त्रं वह्निजाया वधिर्मनुः।                                                     सार्द्धैकादशवर्णा सा सर्वत्र पातु मां सदा।।१६।।

फलश्रुति

इति ते कथितं देवि! गुह्याद्गुह्यतरं परम्।                                                     त्रैलोक्यमंगलं नाम कवचं देवदुर्लभम्।।१७।।

यः इदं प्रपठेन्नित्यं जायते सम्पदालयम्।                                                     परमैश्वर्यमतुलं प्राप्नुयान् नात्र संशयः।।१८।।

गुरुमभ्यर्च्य विधिवत् कवचं प्रपठेद् यदि।                                                                       ऐश्वर्यं सु-कवित्वं च वाक्सिद्धिं लभते ध्रुवम्।।१९।।

नित्यं तस्यं तु मातंगी महिला मंगलं चरेत्।                                                               ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च ये देवाः सुरसत्तमाः।।२०।।

ब्रह्मराक्षसवेतालाः ग्रहाद्यां भूतजातयः।                                                                            तं दृष्टवा साधकं देवि! लज्जायुक्ता भवन्ति ते।।२१।।

कवचं धारयेद्यस्तु सर्वासिद्धिं लभेदध्रुवम्।                                                           राजानोऽपि च दासत्वं षट्कर्माणि च साधयेत्।।२२।।

सिद्धो भवति सर्वत्र किमन्यैर्बहुभाषितैः।                                                                           इदं कवचमज्ञात्वा मातंगीं यो भजेन्नरः।।२३।।

अल्पायुर्निर्धनो मूर्खो भवत्येव न संशयः।                                                                       गुरौ भक्तिः सदा कार्या कवचे च दृढा मतिः।।२४।।

तस्मै मातंगिनी देवी सर्वसिद्धिं प्रयच्छति।।२५।।

           मन्त्र जाप के पश्चात समस्त जाप एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर माँ भगवती मातंगी को ही समर्पित कर दें।

      साधक को यह साधना क्रम नित्य २१ दिनों तक करना चाहिए।

          २१ वें दिन कम से कम घी की १०८ आहुति अग्नि में अर्पित करे। इस तरह से यह साधना पूर्ण होती है।

           इस तरह यह साधना सम्पन्न होती है। कुछ दिनों में ही आप साधना का प्रभाव स्वयं अनुभव करने लग जाएंगे। तो देर किस बात की, साधना करे तथा जीवन को पूर्णता प्रदान करे।

     आपकी साधना सफल हो और माँ भगवती मातंगी का आपको आशीष प्राप्त हो। मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ।

      इसी कामना के साथ

चेतावनी - 

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

रजि 

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