पारद गुटिका के दिव्य प्रयोग
आज हम पारद गुटिका के कुछ प्रयोग के विषय में बात करेंगे.पारद के बंधन को ही सिद्धों और सभी दिव्या योनियों ने धन्य कहा है. बस जरूरत इतनी है की इसके महत्व को हम समझे और अपने जीवन को सफल बनायें.
आख़िर हम क्यूँ नही समझते हैं की कोई तो वजह होगी जो पारद तंत्र को तंत्र की अन्तिम और गोपनीय विद्या मन जाता है.
क्यूंकि इस विद्या के द्वारा सर्जन किया जा सकता है और सर्जन वही कर सकता है जो की इस ब्रह्मंडा के गोपनीय रहस्य को या तो जान चुका हो या फिर जानने की और पूर्ण रूप से अग्रसर हो .
अभी पिछले दिनों मैं मेरे एक अतिप्रिय आत्मीय मित्र से मिलने के लिए पहाड़ी प्रदेश गया था .पिछले जीवन के सूत्र इतनी मजबूती से जुड़े हुए हैं की मुझे जाना ही पड़ा .
मेरे वो आत्मीय पेट के रोग से ग्रस्त हैं और यही वजह उनकी साधनात्मक प्रक्रिया के विकास में बाधक भी है.
जब मैंने उनकी जन्मपत्रिका का अध्धयन किया तो मुझे वो बात समझ भी आ गयी की क्यूँ वो अभी तक वह नही पहुच पाए जहा उन्हें पहुच जन था.
उच्च संस्कृत परिवार में जन्म लेने के बाद और आत्मीय स्वाभाव के होने बाद भी वे अत्यन्त संकोची हैं और मैंने कई बार उनसे कहा भी की आप मुझे बताएं.
पर ..... खैर. मैं उनके लिए अत्यन्त दुर्लभ पारद कल्प भी ले गया था पर उनको इस कल्प का फल भी तभी मिल पाटा (क्यूंकि यह कल्प आध्यात्मिक और शारीरिक प्रगति के लिए अत्यन्त आवश्यक है).
पहले मुझे उन्हें पेट के विकार का निवारण भी करना था बस इसी कारण मैं आज वे रहस्य आप लोगो के सामने प्रकट कर रहा हूँ जो की सरल लेकिन अत्यन्त चमत्कारी हैं.आप इन प्रयोगों को संपन्न करें और ख़ुद इनके प्रभाव को देखें.
ये प्रयोग स्वयं ही तंत्र हैं इनमे किसी मंत्र का कोई प्रयोग नही है.
सुद्ध और संस्कृत पारद से बद्ध गुटिका के दुर्लभ प्रयोग इस प्रकार हैं:-
१.
कुंडलिनी जागरण और ध्यान व संकल्प शक्ति के द्वारा अपने मनोरथ पूरे करने के लिए इस गुटिका को यदि अपनी जीभ के ऊपर रख कर अपना संकल्प लें और उसकी पूर्णता के लिए प्रे करें.
एक इम्प बात यह है की पारद इस उनिवेर्स का सर्वाधिक चैतन्य जीव है जो शिव वीर्य होने के कारण आपके कार्यों को तीव्र गति देता है.
गुटिका को मुख में रख कर योग करने से सफलता शीघ्र मिलती है.इस अभ्यास को कम से कम ५ मिनट करना चाहिए और गुटिका को निगलना नही है अन्यथा नुक्सान होगा ही.
पारद उष्ण प्रकृति का है इसीलिए समय धीरे-२ बाधाएं.और ध्यान का अभ्यास हो जाने पर लंबे समय तक ध्यान किया जा सकता है.
२.बल प्राप्ति और रोग मुक्ति हेतु-सोते समय रात मे२०० मिली दूध को गुनगुन आकार के पारद गुटिका को उसमे ४ बार दुबयें और निकल लें और उसे पी लें.
कम से कम ४० दिन तक प्रयोग करे रोगों से मुक्ति होती है.
३.गले में धारण करने से यदि गुटिका का स्पर्श हार्ट पर होता है तो हार्ट के रोगों का निवारण होता है.
४.शरीर के किसी भी भाग में दर्द हो तो गुटिका को प्लास्टर से उस स्थान पर चिपका लें.गुटिका दर्द को खीच लेती है.
५.सम्भोग के समय मुह में रखने से स्तम्भन का समय बढ़ते जाता है .ध्यान रखिये गुटिका को निगलना नही है.वीर्य स्तम्भन और नापुन्शाकता के लिए भी ये बेहद उपयोगी है.
६.पेट के विकार,लगातार डकार,अजीर्ण,गैस आदि के लिए इस गुटिका को रात में अपनी नाभि के ऊपर २० मिनुत तक रखने से कैसी भी बीमारी जड़ से समाप्त होती ही है.
७.आँखों में यदि कोई बीमारी हो और देखने में परेशानी हो रही हो तोरात में सोते समय इस गुटिका को आँखों को बंद करके २० मिनट तक बंधने से बीमारी ठीक होती है.
८.यदि पैदल चलने से थकान होती हो तो आप पारद गुटिका को कमर पर बाँध कर देखे थकान बहुत कम हो जाती है चलने पर.
अति उच् वनस्पतियों के द्वारा संस्कृत की गयी ऐसी गुटिका भूचरी गुटिका कहलाती है जिसके प्रयोग द्वारा व्यक्ति एक दिन में १०० मील भी चल लेता है और थकान नही होती है.
९.यदि आपको यह पहचानना है तो आपके शरीर पर पंचभूतों के किस तत्त्व का प्रभाव ज्यादा है तो गुटिका को गले में धारण करें से जब आपको पसीना आता है तो गुटिका भी उसी रंग में बदल जाती है जिस रंग का स्वामी तत्त्व है.
blue-sky
violot(jamuni)-air
red-fire
green-earth
white-water
१०.तंत्र बढ़ा और भूत प्रेत के निवारण के लिए काले धागे में बाँध कर के गुटिका पहनने से शमन होता है.
११.गुटिका के धारण करने से अत्रक्शन पॉवर बढ़ता ही है.
मुझे आप सभी के विचारों का इन्तजार है
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
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महायोगी राजगुरु जी 《 अघोरी रामजी 》
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