उर्वशी अप्सरा प्रत्यक्षीकरण साधना.
नारायण की जंघा से उर्वशी की उत्पत्ति मानी जाती है। पद्म पुराण के अनुसार कामदेव के ऊरू से इसका जन्म हुआ था। श्रीमद्भागवत के अनुसार यह स्वर्ग की सर्वसुन्दर अप्सरा थी।शास्त्रों में कई स्थानों पर अप्सराओं का उल्लेख आता है।
आखिर ये अप्सराएं कौन हैं? यह प्रश्न काफी लोगों के मन में उठता है। अप्सराएं बहुत ही सुंदर, मनमोहक, किसी की भी तपस्या भंग करने में सक्षम कन्याएं होती बताई गई हैं। जब भी कोई असुर, राजा, ऋषि या अन्य कोई मनुष्य भगवान को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करता है वहां देवराज इंद्र अप्सराओं को भेजकर उनका तप भंग करवाने की चेष्टा करते हैं। ऐसा ही उल्लेख वेद-पुराण में बहुत से स्थानों पर आया है।
शास्त्रों के अनुसार देवराज इंद्र के स्वर्ग में 11 अप्सराएं मुख्य रूप से बताई गई हैं। इन सभी अप्सराओं का रूप बहुत ही सुंदर बताया गया है। ये 11 अप्सराएं हैं- कृतस्थली, पुंजिकस्थला, मेनका, रंभा, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, घृताची, वर्चा, उर्वशी, पूर्वचित्ति और तिलोत्मा। वेद-पुराण में कई स्थानों में इन अप्सराओं के नाम आए हैं, जहां इन्होंने घोर तपस्या में लीन भक्तों के तप को भी भंग कर दिया।
सौन्दर्य, सुख प्रेम की पूर्णता हेतु रम्भा, उर्वशी और मेनका तो देवताओं की अप्सराएं रही हैं, और प्रत्येक देवता इन्हे प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहा है। यदि इन अप्सराओं को देवता प्राप्त करने के लिए इच्छुक रहे हैं, तो मनुष्य भी इन्हे प्रेमिका रूप में प्राप्त कर सकते हैं।
इस साधना को सिद्ध करने में कोई दोष या हानि नहीं है तथा जब अप्सराओं में श्रेष्ठ उर्वशी सिद्ध होकर वश में आ जाती है, तो वह प्रेमिका की तरह मनोरंजन करती है, तथा संसार की दुर्लभ वस्तुएं और पदार्थ भेट स्वरुप लाकर देती है। जीवन भर यह अप्सरा साधक के अनुकूल बनी रहती है, वास्तव में ही यह साधना जीवन की श्रेष्ठ एवं मधुर साधना है तथा प्रत्येक साधक को इस सिद्धि के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए।
साधना विधान:-
इस साधना को किसी भी शुक्रवार से प्रारम्भ किया जा सकता है। यह रात्रिकालीं साधना है। स्नान आदि कर पीले आसन पर उत्तर की ओर मुंह कर बैठ जाएं। सामने पीले वस्त्र पर 'उर्वशी यंत्र' (ताबीज) स्थापित कर दें तथा सामने पांच गुलाब के पुष्प रख दें। फिर पांच घी के दीपक लगा दें और अगरबत्ती प्रज्वलित कर दें। फिर उसके सामने 'सोनवल्ली' रख दें और उस पर केसर से तीन बिंदियाँ लगा लें और मध्य में निम्न शब्द अंकित करें -
॥ ॐ उर्वशी प्रिय वशं करी हुं ॥
Om urvashi priy vashyam kari hoom
इस मंत्र के नीचे केसर से अपना नाम अंकित करें। फिर उर्वशी माला से निम्न मंत्र की १०१ माला जप करें -
मंत्र:-
॥ ॐ ह्रीं उर्वशी मम प्रिय मम चित्तानुरंजन करि करि फट ॥
om hreem urvashi mam priy mam chittaanuranjan kari kari phat
यह मात्र सात दिन की साधना है और सातवें दिन अत्यधिक सुंदर वस्त्र पहिन यौवन भार से दबी हुई उर्वशी प्रत्यक्ष उपस्थित होकर साधक के कानों में गुंजरित करती है कि जीवन भर आप जो भी आज्ञा देंगे, मैं उसका पालन करूंगी । तब पहले से ही लाया हुआ गुलाब के पुष्पों वाला हार अपने सामने मानसिक रूप से प्रेम भाव उर्वशी के सम्मुख रख देना चाहिए।
इस प्रकार यह साधना सिद्ध हो जाती है और बाद में जब कभी उपरोक्त मंत्र का तीन बार उच्चारण किया जाता है तो वह प्रत्यक्ष उपस्थित होती है तथा साधक जैसे आज्ञा देता है वह पूरा करती है। साधना समाप्त होने पर 'उर्वशी यंत्र (ताबीज)' को धागे में पिरोकर अपने गलें में धारण कर लेना चाहिए। सोनवल्ली को पीले कपड़े में लपेट कर घर में किसी स्थान पर रख देना चाहिए, इससे उर्वशी जीवन भर वश में बनी रहती है।
अब बात करेंगे की सोनवल्ली क्या है?
जो साधक पारद के अठारह संस्कार जानते है उनके लिये यह कोइ नया नाम नही है।पारद तंत्र मे स्वर्ण निर्माण प्रक्रिया मे अगर सोनवल्ली का सही प्रयोग किया जाये तो क्रिया मे पुर्ण सफलता प्राप्त होता है किंतु सिर्फ सोनवल्ली के आधार पर क्रिया नही कर सकते है,इसके लिये अन्य जडियो का भी महत होता है। आज के समय मे ओरिजिनल सोनवल्ली मिलना आसान कार्य नही है।मेरे लिये तो कुछ दिन पुर्व ही इसको प्राप्त करना सम्भव हुआ है और इसको सही साधकों तक पहोचाने हेतु अब मै कार्यरत हु।
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
विशेष -
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महायोगी राजगुरु जी 《 अघोरी रामजी 》
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