पारद प्रयोग
इतरयोनी बाधा से मुक्ति हेतू पारद प्रयोग
यह अनंत ब्रह्माण्ड में हम अकेले नहीं है इस तथ्य को अब विज्ञान भी स्वीकार करने लगा है. आधुनिक विज्ञान में भी कई प्रकार के परीक्षण इससे सबंधित होने लगे है तथा एसी कई शक्तियां है जिनके बारे में विज्ञान आज भी मौन हो जाता है क्यों की विज्ञान की समज के सीमा के दायरे के बाहर वह कुछ है.
खेर, आधुनिक विज्ञान का विकास और परीक्षण अभी कुछ वर्षों की ही देन है लेकिन इस दिशा में हमारे ऋषि मुनियों ने सेंकडो वर्षों तक कई प्रकार के शोध और परिक्षण किये थे तथा सबने अपने अपने विचार प्रस्तुत किये थे, मुख्य रूप से सभी महर्षियों ने स्वीकार किया था की ब्रह्माण्ड में मात्र मनुष्य योनी नहीं है,
मनुष्य के अलावा भी कई प्रकार के जिव इस ब्रहमाड में मौजूद है, निश्चय ही मनुष्य से तात्विक द्रष्टि में अर्थात शरीर के तत्वों के बंधारण में ये भिन्न है लेकिन इनका अस्तित्व बराबर बना रहता है.
इसी क्रम में मनुष्य के अंदर के आत्म तत्व जब मृत्यु के समय स्थूल शरीर को छोड़ कर दूसरा शरीर धारण कर लेता है तो वह भी मनुष्य से अलग हो जाता है. वस्तुतः प्रेत, भूत, पिशाच, राक्षश, आदि मनुष्य के ही आत्म तत्व के साथ लेकिन वासना और दूसरे शरीरों से जीवित है.
इसके अलावा लोक लोकान्तरो में भी अनेक प्रकार के जिव का अस्तित्व हमारे आदि ग्रन्थ स्वीकार करते है जिनमे यक्ष, विद्याधर, गान्धर्व आदि मुख्य है.
अब यहाँ पर बात करते है मनुष्य के ही दूसरे स्वरुप की. जब मनुष्य की मृत्यु अत्यधिक वासनाओ के साथ हुई है तब मृत्यु के बाद उसको सूक्ष्म की जगह वासना शरीर की प्राप्ति होती है क्यों की मृत्यु के समय जिव या आत्मा उसी शरीर में स्थित थी.
जितनी ही ज्यादा वासना प्रबल होगी मनुष्य की योनी इतनी ही ज्यादा हिन् होती जायेगी. जेसे की भुत योनी से ज्यादा प्रेत योनी हिन् है. यह विषय अत्यंत वृहद है लेकिन यहाँ पर विषय को इतना समजना अनिवार्य है.
अब इन्ही वासनाओ की पूर्ति के लिए या अपनी अधूरी इच्छाओ की पूर्ति के लिए ये ये जिव एक निश्चित समय तक एक निश्चित शरीर में घूमते रहते है, निश्चय ही इनकी प्रवृति और मूल स्वभाव हीनता से युक्त होता है और इसी लिए उनको यह योनी भी प्राप्त होती है.
कई बार यह अपने जीवन काल के दरमियाँ जो भी कार्यक्षेत्र या निवास स्थान रहा हो उसके आसपास भटकते रहते है, कई बार ये अपने पुराने शत्रु या विविध लोगो को किसी न किसी प्रकार से प्रताडित करने के लिए कार्य करते रहते है. इनमे भूमि तथा जल तत्व अल्प होता है इस लिए मानवो से ज्यादा शक्ति इसमें होती है.
कई जीवो में यह सामर्थ्य भी होता है की वह दूसरों के शरीर में प्रवेश कर अपनी वासनाओ की पूर्ति करे. इस प्रकार के कई कई किस्से आये दिन हमारे सामने आते ही रहते है.
इन इतरयोनी से सुरक्षा प्राप्ती हेतु तंत्र में भी कई प्रकार के विधान है लेकिन साधक को इस हेतु कई बात विविध प्रकार की क्रिया करनी पड़ती है जो की असहज होती है, साथ ही साथ ऐसे प्रयोग के लिए स्थान जेसे की स्मशान या अरण्य या फिर मध्य रात्री का समय आदि आज के युग में सहज संभव नहीं हो पता.
प्रस्तुत विधान एक दक्षिणमार्गी लेकिन तीव्र विधान है जिसे व्यक्ति सहज ही सम्प्पन कर सकता है तथा अपने और अपने घर परिवार के सभी सदस्यों को इस प्रकार की समस्या से मुक्ति दिला सकता है तथा अगर समस्या न भी हो तो भी उससे सुरक्षा प्रदान कर सकता है.
यह पारदशिवलिंग से सबंधित भगवान रूद्र का साधना प्रयोग मूलतः इसमें पारद शिवलिंग ही आधार है पुरे प्रयोग का, इस लिए पारद शिवलिंग विशुद्ध पारद से निर्मित हो तथा उस पर पूर्ण तंत्रोक्त प्रक्रिया से प्राणप्रतिष्ठा और चैतन्यकरण प्रक्रिया की गई हो यह नितांत आवश्यक है. अशुद्ध और अचेतन पारद शिवलिंग पर किसी भी प्रकार की कोई भी साधना सफलता नहीं दे सकती है.
यह प्रयोग साधक किसी भी सोमवार को कर सकता है.
साधक रात्रीकाल में यह प्रयोग करे तो ज्यादा उत्तम है, वैसे अगर रात्री में करना संभव न हो तो इस प्रयोग को दिन में भी किया जा सकता है.
साधक स्नान आदि से निवृत हो कर लाल वस्त्रों को धारण करे तथा लाल आसान पर बैठ जाए. साधक का मुख उत्तर की तरफ हो.
साधक अपने सामने पारदशिवलिंग को स्थापित करे. साधक गुरु तथा पारद शिवलिंग का पूजन करे तथा गुरुमंत्र का जाप करे और फिरं निम्न मंत्र की ११ माला मंत्र जाप पारदशिवलिंग के सामने करे. यह जाप रुद्राक्ष माला से करना चाहिए.
ॐ नमो भगवते रुद्राय भूत वेताल त्रासनाय फट्
(OM NAMO BHAGAWATE RUDRAAY BHOOT VETAAL TRAASANAAY PHAT)
मंत्र जाप के बाद साधक पारद शिवलिंग को किसी पात्र में रख कर उस पर पानी का अभिषेक उपरोक्त मंत्र को बोलते हुवे करे.
यह क्रिया अंदाज़े से १० मिनिट करनी चाहिए. इसके बाद साधक उस पानी को अपने पुरे घर परिवार के सदस्यों पर तथा पुरे घर में छिड़क दे.
इस प्रकार यह क्रिया साधक मात्र ३ दिन करे.
अगर साधक को कोई समस्या नहीं हो तथा मात्र उपरी बाधा से तथा तंत्र प्रयोग से सुरक्षा प्राप्ति के लिए भी अगर यह प्रयोग करना चाहे तो भी यह प्रयोग किया जा सकता है.
माला का विसर्जन करने की आवश्यकता नहीं है, साधक इसका उपयोग कई बार कर सकता है.
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
विशेष -
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महायोगी राजगुरु जी 《 अघोरी रामजी 》
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