भैरवी चक्र साधनाओं में योनि मुख्य चक्र की पूजा
सबसे पहले भैरवी का अभिषेक एवं उसका पूजा किया जाता है। इसमें उसे पहले अभिमंत्रित मिट्टी से; फिर पंचामृत से एक-एक करके स्नान करवाया जाता है। किसी किसी गुरु द्वारा पहले मिट्टी, फिर उबटन और इसके बाद पंचामृत का प्रयोग किया जाता है। इसके बाद भैरवी को देवी के रूप में श्रृंगार करके उससे चक्र के मध्य बैठाकर विधिवत् उस देवी के रूप में पूजा की जाती है, जिसको ईष्ट बनाया है।
इस समय श्रृंगार के बाद चक्र के मध्य देवी रूपा भैरवी होती है। उसके सामने पूजाघट होता है। इसमें मदिरा या मादक शरबत होता है।पूजा विधि विस्तृत है, इसे दूसरे पोस्ट में अलग से दिया जाएगा।'
पूजन के बाद प्रसाद अर्पण किया जाता है। ये तामसी पदार्थ होते हैं। पहले इसे पूजित भैरवी ग्रहण करती है; इसके बाद गुरु और तब साधक।किसी-किसी गुरु के समुदाय में भैरवी का जूठा घट में मिला दिया जाता है।
साधक को प्रण लेना पड़ता है कि वह भविष्य में किसी नारी का अपमान नहीं करेगा। पूजन तीन स्तर पर होता है । यही पहली पूजा है। अन्य पूजा साधना क्रम की है।
स्नान का मंत्र
ॐ ह्रीं ह्रीं क्लीं भगवती महामाये अनंग वेग साहसिनी सर्वजन मनोहारिणी सर्ववश शंकरी मोदय –मोदय प्रमोदय-प्रमोदय एह्येह्यागच्छगच्छ कामकला कालिकाये सानिध्यं कुरु-कुरु हूँ हूँ फट फट स्वाहा।
वस्त्रार्पण मंत्र
ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं स्त्रीं स्त्रीं त्रैलोक्याकर्षिणी वस्त्रं गृहण गृहण स्वाहा।
स्नान पूजा मंत्र
आं हूं क्लीं क्लीं सर्व भूत प्रेत पिशाच रक्षसः ग्रस मम जाड्यम च्छेदय स्फ्रें हौं मम शत्रुण दह दह उच्छादय स्तम्भय स्तम्भय विध्वंस्य विध्वंस्य सर्वग्रहभ्य: शान्ति कुरु रक्षा कुरु ऐ ऐ फट ठ: ठ:
श्रृंगार मंत्र
ॐ ह्रीं ॐ क्लूं कामकालिकाये हूं आं भगमालिन्ये ऐ स्त्रीं भगप्रियायै ठ: श्रीं मदनातुरै भैरवं श्रृंगार कुरु कुरु नमः
सिन्दूरार्पण मंत्र
ह्रीं श्रीं क्लीं क्लीं क्रीं क्रीं सिन्दूरार्पण गृहण गृहण कुरु कुरु नमः देवी.
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
विशेष -
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राजगुरु जी
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