महाकाली रति सिद्ध यंत्र में काली का कौन सा रूप समाहित है?
यह काम कला काली का एक रूप है। महाकाल की साधनाओं से सम्बन्धित है। काली मुख्य रूप से मूलाधार की देवी है और इन्हें गुह्य काली भी कहा जाता है। जो कामकला काली का ही पंथ विशेष से एक रूप है , काम कला काली के अनेक रूप है , जिनमें से एक यह भी है।
महाकाल मार्ग की ये साधनायें दो तरह से होती है , एक में भैरवी का प्रयोग होता है और दूसरे में अघोरपंथ की विधियाँ काम में लाइ जाती है। काली वास्तव में महाकाल मार्ग की देवी है और महाकाल की ही शक्ति समझी जाती है ।
महाकाल शरीर या प्रकृति का ऊर्जा चक्र है ; जो एक शिवलिंग के रूप में प्रकृति की हर संरचना इसी ऊर्जा चक्र में हैं । इसी महाकाल के १३ बिन्दुओं के १३ क्षेत्र में काली के मुख्य १३ स्वरूप का विभाजन किया गया है ।
इसमें सबसे शक्तिशाली और मुख्य रूप मूलाधार की देवी कामकला काली है। इनको सिद्ध किये बिना काली क्या , किसी भी शक्ति को सिद्ध नहीं किया जा सकता। इसलिए तन्त्र के सभी मार्गों में और योग आदि में भी सर्वप्रथम मूलाधार को ही सिद्ध करने की बात कही गयी है।
विधियाँ और प्रक्रिया मार्ग भेद-सम्प्रदाय भेद के अनुरूप से सैकड़ों प्रकार की है। हम जिनती देवियों की पूजा और साधना करते है, चाहे वह सरस्वती हो या लक्ष्मी , पार्वती हो या दुर्गा , ये सभी तन्त्र मार्ग की देवियाँ है। और सभी की साधनायें आधार रूप में तामसी ही है।
बाद में विभिन्न मार्ग के गुरुओं ने इनके रूप ध्यान और पूजा विधि को सात्विक रूप में संशोधित करके सामान्य लोगों की पहुँच में लाने का प्रयत्न किया। पर इन सात्विक रूपों में भी काली और दुर्गा का रूप तामसी ही है ।
तन्त्र के प्राचीनतम रूप इतने भयानक है कि उन्हें घर में लगाना तो दूर , सामान्य साधक उन रूपों का ध्यान भी नहीं लगा सकता।
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महायोगी राजगुरु जी 《 अघोरी रामजी 》
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(रजि.)
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