बटुक भैरव प्रयोग
मनुष्य जीवन विविध राग से भरा हुआ एक ऐसा समय का काल खंड है जहां पर वस्तुतः कई कई बार एसी परिस्थिति मनुष्य के सामने आ जाती है की जिसकी मनुष्यजीवन में कभी सबंधित व्यक्ति ने कल्पना भी नहीं की होती है.
एसी ही घटनाओ में सुख प्रदाता घटनाये भी होती है लेकिन ज्यादातर समय व्यक्ति को संघर्षमय रहकर अपने जीवन को आगे बढाने तथा उन्नति की ओर कदम रखने के लिए विविध प्रकार के क्रिया कलाप करने ही पड़ते है. वस्तुतः हमारे जीवन में समस्याओ का आना अवस्यम्भी ही है.
कोई भी व्यक्ति आज के युग में सायद ही ऐसा मिल पाए जिसे किसी भी प्रकार की कोई भी समस्या न हो. यहाँ पर इन सब बातो के ऊपर चर्चा करने इस लिए अनिवार्य है क्यों की अगर ब्रह्माण्ड में हमारे लिए समस्या है तो निश्चित ही ब्रह्माण्ड में उसके लिए समाधान भी दिया ही गया है.
वस्तुतः यह हमारे ऊपर निर्भर करता है की हम उन समस्याओ को या समस्या सबंधित समाधान को कितनी गंभीरता से लेते है या समाधान के लिए कितने गंभीर तथा समर्पित हो कर कार्य करते है.
कई बार कर्मजन्य तो कई बार विविध प्रकार के दोष के कारण हमें कई कई प्रकार की आपत्ति या बाधाओं का सामना करना पड़ता है. एक व्यक्ति समस्या का समाधान अपनी सोच समज के मुताबिक़ खोज कर उसको अमल कर देता है.
कई बार समस्याए इतनी सहज होती है की सामान्य रूप से उसका निराकरण संभव हो जाता है लेकिन हर बार समस्या सामान्य ही हो और उसका निराकरण भी हो जाये यह तो नहीं होता, एसी परिस्थिति में व्यक्ति नाना प्रकार से अपनी समस्या या आपत्ति से मुक्ति हेतु कोशिश करता है
लेकिन अंत में भाग्य का दोष मान कर बैठ जाता है, ऐसे समय में अनन्य कष्ट और पीड़ा का न सिर्फ व्यक्ति को लेकिन उसके सबंधित घर परिवार के सदस्यों को भी तो सामना करना पड़ता है. और व्यक्ति का जीवन अत्यधिक दुखी और बोजिल होने लगता है.
मनुष्य की जागृत शक्ति और सामर्थ्य का एक निश्चित दायरा है, एक सीमा है जिसके आगे उसकी गति या शक्ति का कार्य करना संभव नहीं होता.
वस्तुतः एसी परिस्थिति में व्यक्ति को दैवीय बल से या दैवीय शक्ति के माध्यम से अपनी समस्या से मुक्त हो कर अपने जीवन को संवारना चाहिए और तंत्र क्षेत्र में भौतिक तथा अध्यात्मिक दोनों पक्षों के लिए सभी समस्याके निदान हेतु कई कई प्रयोग दिए हुवे ही है.
भगवान भैरव का स्थान तो तंत्र क्षेत्र में एक बेजोड और अद्वितीय ही है, इनके विविध स्वरुप अपने साधको के कल्याण के लिए हमेशा पूर्ण रूप से गतिशील रहते है. इसी क्रम में उनका बटुक स्वरुप तो विख्यात है ही.
अपने साधको को हमेशा ही विविध आपत्ति तथा दुविधाओ से निकाल कर उनको पूर्ण सुरक्षा देते हुवे भगवान बटुक भैरव साधको के मध्य हमेशा ही पूज्य रहे है. प्रस्तुत प्रयोग भगवान भैरव के बटुक स्वरुप से सबंधित है जिसे किसी भी तथा कोई भी समस्या के निराकरण की प्राप्ति हेतु किया जाता है.
साधक को अपने कार्य क्षेत्र में अनुकूलता, तबादला, व्यापार, ज्ञातअज्ञात विरोधियों से सुरक्षा से ले कर सभी प्रकार की समस्याओ का निराकरण इस प्रयोग के माध्यम से संभव है.
आज के इस युग में पग पग पर जीवन में विविध प्रकार की समस्या साधक को सहन करनी पड़ती है, अंधी दौड में लोग नीच से नीच प्रवृति कर किसी का भी अहित करने के लिए स्वार्थवश तुरत उतारू हो जाते है. ऐसे युग में इस प्रकार का यह गुढ़ विधान अत्यंत ही आवश्यक एवं उपयोगी प्रयोग है.
यह प्रयोग साधक किसी भी कृष्णपक्ष की अष्टमी को या किसी भी मंगलवार को शुरू कर सकता है.
साधक को यह प्रयोग रात्री में १० बजे के बाद ही करना चाहिए.
साधक इसमें काले या लाल वस्त्र को धारण कर सकता है. जिस रंग के वस्त्र साधक धारण करे उसी रंग के आसान पर साधक को बैठना चाहिए.
साधक गुरुपूजन, गणेशपूजन संम्पन कर अपने सामने साधक भगवान भैरव की कोई मूर्ति या चित्र स्थापित कर ले तथा उसका भी सामान्य पूजन करे एवं गुरु मंत्र का जाप करे.
इस साधना में दीपक तेल का होना चाहिए, तथा कोई भी तेल इसमें उपयोग किया जा सकता है, साधक भोग के लिए दूध से बनी हुई मिठाई का उपयोग करे.
इसके बाद साधक अपनी विपदा या आपति निवारण के लिए भगवान बटुकभैरव से प्रार्थना कर निम्न मंत्र की ११ माला जाप करे. साधक को यह जाप रुद्राक्ष माला से करना चाहिए.
ॐ क्रीं भ्रं बटुकाय आपदुद्धारणाय भ्रं क्रीं फट्
(om kreem bhram batukaay aapaduddhaaranaay bhram kreem phat)
जाप पूर्ण हो जाने पर साधक भगवान भैरव को प्रणाम कर भोग को स्वयं ग्रहण करे. यह भोग का वितरण नहीं किया जाता साधक सिर्फ स्वयं ही इस भोग को ग्रहण करे.
साधक यह क्रम ५ दिन तक करे. तथा आवश्यकता होने पर इस मन्त्र को आगे भी कर सकता है. साधक माला का विसर्जन न करे, इस माला का प्रयोग साधक इस मंत्र के जाप के लिए कई बार कर सकता है.
अगर साधक को किसी भी प्रकार की आपत्ति या परेशानी न हो फिर भी यह जाप किया जा सकता है, जिससे भविष्य में भी साधक के सामने आने वाली परेशानियों का निराकरण अपने आप ही भगवान बटुकभैरव की कृपा से होता रहे.
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
विशेष -
किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें
महायोगी राजगुरु जी 《 अघोरी रामजी 》
तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान अनुसंधान संस्थान
महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट
(रजि.)
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249
No comments:
Post a Comment