भूत प्रेत साधना
अक्सर भूत प्रेत का नाम सुनकर लोगो में भय व्याप्त हो जाता है । उन्हें सिद्ध करने की कौन कहे । वैसे भी उन्हें सिद्ध करने की जो क्रियाएँ वर्णित होती हैं वो कम से कम सामान्य साधको और कमजोर मनोमष्तिष्क वालों के लिए तो नहीं है । ऊपर से ये भ्रान्ति की जो इन्हें सिद्ध करता है उसे ये तकलीफ दते हैं ।
साधक का बचा खुचा मनोबल भी समाप्त कर देते हैं । परन्तु ये सभी तथ्य वास्तविकता से कोसो दूर है । भूत प्रेत तो अपनी मुक्ति के लिए बैचेन ऐसी आत्माएं होती हैं । जो किसी भी प्रकार अपनी मुक्ति चाहती हैं और परोक्ष अपरोक्ष रूप से सहयोग के लिए तत्पर होती हैं । वे सही और गलत कार्य दोनों कर सकती हैं ।
परन्तु जब साधक उनका दुरूपयोग करता है तो उन आत्माओं की तो मुक्ति हो जाती है । पर साधक का जीवन दूभर हो जाता है । लेकिन उनका सदुपयोग करने पर आप जहाँ उन आत्माओं को मुक्त होने में माध्यम की भूमिका निभाते हो वहाँ किसी भी प्रकार हानि से भी सुरक्षित रहते हो ।
प्रस्तुत पद्धति किसी भी प्रकार से हानि रहित और प्रभावकारी है । इसे कोई भी साधक कर सकता है । इस साधना की वजह से सिर्फ उच्च संस्कारों वाले प्रेत या भूत ही आपके वश में होते हैं । जो एक सच्चे मित्र की भांति बिना नुक्सान पहुचाए
हमेशा आपकी मदद को तत्पर रहते हैं
।
भूत प्रेत साधना
अमावस्या के दिन स्नान कर पूर्ण पवित्रता के साथ व्रत रखे । फलाहार करे और लाल वस्त्र धारण करें । सात्विक रूप से प्रेत का चिंतन करे । वो पूर्ण रूप से सहयोगी बन कर मेरे साथ मित्रवत रहे ।
यही चिंतन आपके मन में होना चाहिए । रात्रि में पीपल वृक्ष के नीचे जाकर पीपल के पांच हरे पत्तों पर पूजा की पांच सुपारी रख कर उनमे प्रेत शक्ति का ध्यान किया जाना चाहिए । फिर लोहबान अगरबत्ती, काले तिल और फूल अर्पित करें और पीपल के पत्तों पर ही दही चावल का भोग गुलाब जल छिड़क कर लगादे और काली हकीक माला से वही खड़े खड़े 11 माला निम्न मन्त्र की करें ।
मन्त्र :-
क्रीं क्रीं सदात्मने भूताय मम मित्र रूपेण
सिद्धिम कुरु कुरु क्रीं क्रीं फट् ॥
और मन्त्र जप के बाद प्रार्थना करे की आप मेरी रक्षा करे और मेरी मित्र रूप में सहायता करे । ये क्रम मात्र 3 अमावस्या तक आप को करना है ।
अर्थात प्रत्येक अमावस्या को को मात्र 3 बार ऐसा करना है । 3 अमावस्या को सद् रूप में भूत आपके सामने आकार आपकी सहायता का वचन देता है । और 3 वर्ष तक साधक के वश में रहता है ।
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।
विशेष -
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