// श्री महाकाली यन्त्र //
श्मशान साधना मे काली उपासना का बङा महत्व है। इसी सन्दर्भ मे महाकाली यन्त्र का प्रयोग शत्रु नाश, मोहन, मारण, उच्चाट्न आदि कार्यों में प्रयुक्त होता है। मध्य मे बिन्दू, पांच उल्ट कोण, तीन वृत कोण, अष्टदल वृत एवं भूरपुर से आवृत महाकाली का यन्त्र तैयार करे।
इस यन्त्र का पूजन करते समय शव पर आरुढ, मुण्ड्माला धारण की हुई, खड्ग, त्रिशूल, खप्पर व एक हाथ मे नर-मुण्ड धारण की हुई, रक्त जिह्वा लपलपाती हुई भयंकर स्वरुप वाली महाकाली का ध्यान किया जाता है। जब अन्य विद्यायें विफल हो जाती है तब इस यन्त्र का सहारा लिया जाता है।
महाकाली की उपासना अमोघ मानी गई है। इस यन्त्र के नित्य पूजन से अरिष्ट बाधाओं का स्वतः ही नाश होकर शत्रुओ का पराभव होता है। शक्ति के उपासकों के लिए यह यन्त्र विशेष फलदायी है। चैत्र, आषाढ, आश्विन एवं माघ की अष्टमी इसकी साधना हेतु सर्वश्रेष्ठ काल माना गया है।
आद्या काली स्तोत्र :-
त्रिलोक्य विजयस्थ कवचस्य शिव ऋषि ,
अनुष्टुप छन्दः, आद्य काली देवता, माया बीजं,
रमा कीलकम , काम्य सिद्धि विनियोगः || १ ||
ह्रीं आद्य मे शिरः पातु श्रीं काली वदन ममं,
हृदयं क्रीं परा शक्तिः पायात कंठं परात्परा ||२||
नेत्रौ पातु जगद्धात्री करनौ रक्षतु शंकरी,
घ्रान्नम पातु महा माया रसानां सर्व मंगला ||३||
दन्तान रक्षतु कौमारी कपोलो कमलालया,
औष्ठांधारौं शामा रक्षेत चिबुकं चारु हासिनि ||४|
ग्रीवां पायात क्लेशानी ककुत पातु कृपा मयी,
द्वौ बाहूबाहुदा रक्षेत करौ कैवल्य दायिनी ||५||
स्कन्धौ कपर्दिनी पातु पृष्ठं त्रिलोक्य तारिनी,
पार्श्वे पायादपर्न्ना मे कोटिम मे कम्त्थासना ||६||
नभौ पातु विशालाक्षी प्रजा स्थानं प्रभावती,
उरू रक्षतु कल्यांनी पादौ मे पातु पार्वती ||७||
जयदुर्गे-वतु प्राणान सर्वागम सर्व सिद्धिना,
रक्षा हीनां तू यत स्थानं वर्जितं कवचेन च ||८||
इति ते कथितं दिव्य त्रिलोक्य विजयाभिधम,
कवचम कालिका देव्या आद्यायाह परमादभुतम ||९||
पूजा काले पठेद यस्तु आद्याधिकृत मानसः,
सर्वान कामानवाप्नोती तस्याद्या सुप्रसीदती ||१०||
मंत्र सिद्धिर्वा-वेदाषु किकराह शुद्रसिद्धयः,
अपुत्रो लभते पुत्र धनार्थी प्राप्नुयाद धनं ||११|
विद्यार्थी लभते विद्याम कामो कामान्वाप्नुयात
सह्स्त्रावृति पाठेन वर्मन्नोस्य पुरस्क्रिया ||१२||
पुरुश्चरन्न सम्पन्नम यथोक्त फलदं भवेत्,
चंदनागरू कस्तूरी कुम्कुमै रक्त चंदनै ||१३||
भूर्जे विलिख्य गुटिका स्वर्नस्याम धार्येद यदि,
शिखायां दक्षिणे बाह़ो कंठे वा साधकः कटी ||१४||
तस्याद्या कालिका वश्या वांछितार्थ प्रयछती,
न कुत्रापि भायं तस्य सर्वत्र विजयी कविः ||१५||
अरोगी चिर जीवी स्यात बलवान धारण शाम,
सर्वविद्यासु निपुण सर्व शास्त्रार्थ तत्त्व वित् ||१६||
वशे तस्य माहि पाला भोग मोक्षै कर स्थितो,
कलि कल्मष युक्तानां निःश्रेयस कर परम ||१७||
धना में सफलता असम्भव है। क्योंकि भैरवी-तंत्र के अनुसार भैरवी ही गुरू है और गुरू ही भैरवी का रूप है।
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।
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