Wednesday, April 1, 2020

भैरवी का साहचर्य



भैरवी का साहचर्य


तंत्र के क्षेत्र में प्रविष्ट होने के उपरांत साधक को किसी न किसी चरण में भैरवी का साहचर्य ग्रहण करना पड़ता ही है। यह तंत्र एक निश्चित मर्यादा है। प्रत्येक साधक, चाहे वह युवा हो, अथवा वृद्ध, इसका उल्लंघन कर ही नहीं सकता, क्योंकि भैरवी 'शक्ति' का ही एक रूप होती है, तथा तंत्र की तो सम्पूर्ण भावभूमि ही, 'शक्ति' पर आधारित है। 

कदाचित इसका रहस्य यही है, कि साधक को इस बात का साक्षात करना होता है, कि स्त्री केवल वासनापूर्ति का एक माध्यम ही नहीं, वरन शक्ति का उदगम भी होती है और यह क्रिया केवल सदगुरुदेव ही अपने निर्देशन में संपन्न करा सकते है, क्योंकि उन्हें ही अपने किसी शिष्य की भावनाओं व् संवेदनाओं का ज्ञान होता है। 

इसी कारणवश तंत्र के क्षेत्र में तो पग-पग पर गुरु साहचर्य की आवश्यकता पड़ती है, अन्य मार्गों की अपेक्षा कहीं अधिक।

किन्तु यह भी सत्य है, कि समाज जब तक भैरवी साधना या श्यामा साधना जैसी उच्चतम साधनाओं की वास्तविकता नहीं समझेगा, तब तक वह तंत्र को भी नहीं समझ सकेगा, तथा, केवल कुछ धर्मग्रंथों पर प्रवचन सुनकर अपने आपको बहलाता ही रहेगा।

पूज्यपाद गुरुदेव की आज्ञा को ध्यान में रखकर इसी कारणवश मैं भैरवी साधना की पूर्ण एवं प्रामाणिक साधना विधि प्रस्तुत करने में असमर्थ हूं, किन्तु मेरा विश्वास है, कि कुछ साधक ऐसे होंगे ही, जो साधना के मर्म को समझते होंगे तथा व्यक्तिगत रूप से आगे बढकर उन साधनाओं को सुरक्षीत कर सकेंगे, जो हमारे देश की अनमोल थाती हैं।

साधनाएं केवल साधकों के शरीरों के माध्यम से संरक्षित होती है, उन्हें संजो लेने के लिए किसी भी कैसेट या फ्लापी या डिस्क न तो बन सकी है, न बनेगी। आशा है, गंभीर साधक इस बात को विवेचानापूर्वक आत्मसात करेंगे।

शक्ति उपासकों का जो दुसरा वाम मार्गी मत था, उसमें शराब को जगह दी गई। उसके बाद बलि प्रथा आई और माँस का सेवन होने लगा।

 इसी प्रकार इसके भी दो हिस्से हो गये, जो शराब और माँस का सेवन करते थे, उन्हे साधारण-तान्त्रिक कहा जाने लगा। लेकिन जिन्होनें माँस और मदिरा के साथ-साथ मीन(मछली), मुद्रा(विशेष क्रियाँऐं), मैथुन(स्त्री का संग) आदि पाँच मकारों का सेवन करने वालों को सिद्ध-तान्त्रिक कहाँ जाने लगा। 

आम व्यक्ति इन सिद्ध-तान्त्रिकों से डरने लगा। किन्तु आरम्भ में चाहें वह साधारण-तान्त्रिक हो या सिद्ध-तान्त्रिक, दोनों ही अपनी-अपनी साधनाओं के द्वारा उस ब्रह्म को पाने की कोशिश करते थे। 

जहाँ आरम्भ में पाँच मकारों के द्वार ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा बनाई जाती थी और उस ऊर्जा को कुन्डलिनी जागरण में प्रयोग किया जाता था। ताकि कुन्डलिनी जागरण करके सहस्त्र-दल का भेदन किया जा सके और दसवें द्वार को खोल कर सृष्टि के रहस्यों को समझा जा सके।

कोई माने या न माने लेकिन यदि काम-भाव का सही इस्तेमाल किया जा सके तो इससे ब्रह्म की प्राप्ति सम्भव है।

इसी वक्त एक और मत सामने आया जिसमें की भैरवी-साधना या भैरवी-चक्र को प्राथमिकता दी गई। इस मत के साधक वैसे तो पाँचों मकारों को मानते थे, किन्तु उनका मुख्य ध्येय काम के द्वारा ब्रह्म की प्राप्ति था।

भैरवी साधना में कई भेद है– जहाँ प्रथम रूप में स्त्री और पुरूष निर्वस्त्र हो कर एक दूसरे से तीन फुट की दूरी पर आमने सामने बैठ कर, एक दूसरे की आँखों में देखते हुऐ शक्ति मंत्रों का जाप करते हैं। 

लगातार ऐसा करते रहने से साधक के अन्दर का काम-भाव उर्ध्व-मुखी हो कर उर्जा के रूप में सहस्त्र-दल का भेदन करता है। वहीं अन्तिम चरण में स्त्री और पुरूष सम्भोग करते हुऐ, अपने आपको काबू में रखते हैं। दोनों ही शक्ति मंत्रों का जाप करते है और कोशिश करते है की जितना भी हो सके, उतनी ही देर से स्त्री या पुरूष का स्खलन हो।

 इसके साथ ही इस साधना को करवाने वाला योग्य गुरू अपने शिष्यों को यह निर्देश देता हैं, कि जब भी स्खलन हो तो दोनों का एक साथ हो। इससे यह होता है, कि जैसे बिजली के दो तारों को जिसमें एक गर्म(फेस) और दूसरा ठंडा(न्यूट्रल) हो, यदि इन दोनों को आपस में टकरा दिया जाये तो चिंगारी(स्पार्किन्ग) निकलेगी, उसी प्रकार अगर स्त्री और पुरूष दोनों का स्खलन एक साथ होने पर अत्यधिक उर्जा उत्पन्न होगी जिससे की एक ही झटके में सहस्त्र-दल का भेदन हो जायेगा।

 सहस्त्र-दल का भेदन करने के लिऐ आज तक जितने भी प्रयोग हुऐ है, उन सभी प्रयोगों में यह प्रयोग सब से अनूठा है। ऐसे साधक को साधना के तुरन्त बाद दिव्य ध्वनियॉ एवं ब्रह्माण्ड में गूंज रहे दिव्य मंत्र सुनाई पड़ते है।

 साधक को दिव्य प्रकाश दिखाई देता है। साधक के मन में कई महीनों तक दुबारा काम-भाव कि उत्पत्ति नहीं होती।

प्रत्येक साधना में कोई न कोई कठिनाई अवश्य होती है, उसी प्रकार इस साधना में जो सबसे बड़ी कठिनाई है, वह यह है कि अपने आप को काबू में रखना एवं साधक और साधिका का एक साथ स्खलन होना।

 किन्तु धीरे-धीरे भैरवी-साधना भी मात्र काम-वासना का उपभोग बन कर रह गई। धीरे-धीरे साधक सहस्त्र-दल भेदन को भूल गये और उस परमपिता-परमात्मा को भी जिसने कि यह सम्पूर्ण सृष्टि बनाई है, भुलने लगे। 

भैरवी-साधना मात्र व्याभिचार-साधना बन कर रह गई। इसका मूल कारण सही गुरू एवं सही दीक्षा तथा पूर्ण मंत्र का न होना भी है। 

जब तक साधक के पास सही मंत्र एवं दीक्षा नहीं होगी तब तक साधक चाहे कितना भी अभ्यास करे भैरवी-साधना में सफलता असम्भव है। क्योंकि भैरवी-तंत्र के अनुसार भैरवी ही गुरू है और गुरू ही भैरवी का रूप है।

योगिनी / सहचरी के साथ संभोग करना

योगिनी / सहचरी के साथ संभोग करना

संभोग करना- 

सीधी सपाट भाषा में इसे मैथुन या संभोग करना कहते हैं- जब कोई साधक तनाव में आए हुए लिंग को योगिनी / सहचरी की योनि में प्रवेश करते हैं।

अधिकांश तांत्रिक / साधक पहले दूसरे तरीकों से यौन क्रिया करते हैं। इसलिए ऐसा न सोचें कि आपको सीधे संभोग ही करना होगा।

किसी योगिनी / सहचरी के साथ संभोग कैसे करें
आरंभ में ही सीधे संभोग करना शुरू न करें। धीरे-धीरे आगे बढ़ें, सुनिश्चित कर लें कि आप दोनों वास्तव में संभोग के लिए तैयार हो चुके हैं। धीरे-धीरे एक-दूसरे के कपड़े उतारें, एक-दूसरे के शरीर पर चुंबन लें और सहलाएं, एक-दूसरे की प्रशंसा करें।

पहले उनके पेट, स्तनों, जांघों के निचले हिस्सों को सहलाएं। रोमांच बढ़ाने के लिए पहले उनकी टांगों के बीच उनके भगोष्ठ को थोड़ी देर के लिए छूएं, जैसे कि यह अचानक हो गया हो।

टिठनी

टिठनी को उंगली या जीभ से सहलाएं। ऐसा आप, संभोग से पहले, संभोग के दौरान और संभोग के बाद भी कर सकते हैं। अधिकांश योगिनी / सहचरी को चरम आनंद तभी महसूस होता है जब टिठनी में यौन उत्तेजना आती है, संभोग से नहीं। क्योंकि टिठनी योनि के अंदर नहीं होती बल्कि इसके बाहर और सामने होती है।

जी-स्पॉट

कुछ योगिनी / सहचरी में जी-स्पॉट भी मौज़ूद होता है। यह, योनि के तीन-पांच सें.मी. अंदर सामने वाली सतह पर सिक्के के आकार का एक क्षेत्र होता है। कुछ योगिनी / सहचरी के लिए इसका कोई खास महत्व नहीं होता, लेकिन दूसरों के लिए यह विशेष संवेदनशील होता है।

संभोग करना तभी शुरू करें जब योगिनी / सहचरी की योनि में पूरी तरह गीलापन आ चुका हो अन्यथा यह उनके लिए कष्टदायक होता है।

संभोग के दौरान दर्द महसूस होना
कुछ योगिनी / सहचरी को संभोग करते समय दर्द महसूस होता है। किस कारण दर्द होता है?

पहली बार उन्हें दर्द हो सकता है क्योंकि कौमार्य झिल्ली पर दबाव पड सकता है।

यदि योनि में पूरी तरह गीलापन नहीं आया है तो भी दर्द हो सकता है। संभोग करने से पहले धीरे-धीरे आगे बढ़ें, सावधानी बरतें और सौम्य बने रहें। संभोग तभी शुरू करें जब उनकी योनि में अच्छी तरह गीलापन आ जाए और यदि ज़रूरत पड़े तो चिकनाईयुक्त पदार्थ का प्रयोग करें।

यदि संभोग करते समय उन्हें दर्द महसूस होता हो तो ऐसा उनके तनाव में होने के कारण हो सकता है। अर्थात् उनके पेड़ू के सतह की मांसपेशियां पूरी तरह ढीली नहीं हुई हैं। 

उन्हें सहज होने तथा उत्तेजित होने के लिए कुछ समय दें। संभोग करने की ज़ल्दी न करें। उनसे पूछें कि उन्हें कैसा महसूस हो रहा है।

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

                    

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249




No comments:

Post a Comment

महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...