कामख्या सिद्धि,कामख्या साधना,मायोंग बूढ़ा मायोंग,माँ कामख्या मंत्र
भगवान शुदर्शन के चक्र से खंडित होकर सती के देह अंग का टुकड़ा जहा जहा गिरा था मित्रो उन सभी जगहों स्थानों पर देवी का प्रत्यक्ष वाश हुआ वह सभी स्थान मित्रो शक्ति पीठ कहलाये आज भी सभी स्थान पूजनीय व शक्ति पीठ ही है ,
सती के छन्न भिन्न अंगों से अर्थात योनि मंडल अर्थात कामरूप (इसे कम गिरी के नाम से भी जाना जाता है,,,,,,,,,,,
यह स्थान गोहाटी,असम में स्थित है,)
यह गिरा इस लिए शक्ति पीठ की अधिस्त्ररास्ठि देवी भैरवी "कामख्या के नाम से जानी जाती है 'कामख्या निल पर्वत वासनी है ,
योनि मण्डल गिरने के कारण कामरूप तीरथो को चूड़ामणि माना जाता है,ब्रह्मपुत्र नदी के स्थल पर स्थित है """"महायोगस्थल""""के नाम पर लोग अमृत मानते है तंत्र साधना के नाम पर परम् कल्याणकारी है ,,,
इस स्थान को कुब्जिका पीठ के नाम से भी प्रसिद्धि प्राप्त है,,
इस स्थान पर भगवती सदैब ब हर मिनट बिराजित रहती है,,
इस पर्वत पर सती का योनि मंडल गिर कर निल वर्ण हुआ इस लिए यह पर्वत नीलांचल के नाम सर जाना जाता है ,,,,,,,,,
"""कालिका पुराण में लिखा हुआ है सती का योनि मंडल गिरकर नीलांचल पर्वत के ऊपर पत्थर बन गया उसी पत्थर मई योनि में कामख्या माता सदैव निवास करती है ,,,,,,,
जो मनुष्य शिला को स्पर्श करते है वह परम् मोक्ष की प्राप्ति कर स्वर्ग को जाते है,
मोक्ष की प्राप्ति कर ब्रह्म लोक पहुच जाते है,,,,,,,,
चार वर्ग धनु छेत्र बिसिष्ठ शिला पीठ के ऊपर जहा निरन्तर जल निकलता है,,,,,
वही कामख्या का योनि मंडल है ,,,मितरो दोस्तो सज्जनो ,,
इस योनि की लंबाई चौड़ाई एक हाथ लंबा तथा बारह उंगल
चावड़ा है,सतासी धनु परिमित स्थान में रुद्र रक्त है एवं सपुलक अस्तहथ तथा पचास हज़ार शिवलिंग युक्त है,,,
मातृ वर्ग होने के कारण इसका आधा भाग सुवर्ण के टोप से सदा आवित्त रहता है,,,,,
इस टोप को भी बस्त्र एवं पुष्प माला आदि से ढका तथा सुषोभित रखा जाता है,मात्रि अंग महामुद्रा अर्थात योनि मण्डल गिरने के के कारण इस महा तीर्थ को महा छेत्र कहा जाता है,
यह सभी तीर्थों में प्रधान स्थल है,,,
शक्ति साधक इस स्थान को सर्वप्रधान तथा तांत्रिक क्रिया पर्दिति का केंद्र समझ कर महा मुद्रा का नृत्या दर्शन एवं उपासना करते है,,,,,,, आज भी लोगो के मन मे बिश्वाश और मान्यता है कि पराम्बा प्रति मास रजस्वला होती है ,,,,,,
प्रत्येक बर्ष सौर असाढ़ मास के 6 या 7 से 10 या 11 तक अंबूवाचि योग रहता है ,इस काल मे मंदिर 3 दिनों तक बंद रहता है और दर्शन इत्यादि नही होते,अंबुवाची योग में माता कामख्या के रक्त वस्त्रो का महिमा अवर्णीय है,
इस रक्त वस्त्र को मनुष्य अपने देह पे धारण कर समस्त साधनायो को प्राप्त करता है,
कामरूप तथा कामख्या पर्वत के चारो तरफ कई तीर्थ
स्थान है,,
कामख्या शक्ति पीठ के 5 कोष के अंदर जितने भी तीर्थ स्थान है वह सभी कामख्या पीठ के ही अंगों के नाम से पुराणों में वर्णित है ,,,,,
कामख्या पर्वत के नाम से एक आलेख मिलता है पहले यह 100 योजना ऊँचा था,,महा माया के गुप्त अंग गिरने के कारण पर्वत डगमगाने लगा ,और पाताल में प्रवेश करने लगा पताल में प्रवेश होता देखकर त्रिदेव ब्रह्म बिष्णु महेश(शिव)ने पर्वत का एक एक श्रृंग को धारण किया तथापि यह पर्वत
पतालगामी होता चला गया तब महामाया ने अपनी आकर्षणी शक्ति के द्वारा पर्वत को धारण किया किन्तु पर्वत अपने पूरी उचाई को प्राप्त नही कर पाया वह केवल एक कोष ऊँचा रह गया यह स्थान साधको की प्रत्येक मनोकामना व साधनावो को पूरा करने वाला है ,
भगवान भूत नाथ की क्रोधाग्नि से रति पति कामदेव यही भस्मीभूत हुए पुनः उन्ही की कृपा से कामदेव अपना पूर्ण रूप प्राप्त किया अतः इस देश का नाम कामरूप पडा
कलयुग मे यह स्थान विशेष रुप से जागृत है यदि कोई साधक किसी भी कामना के पूर्ति के लिए माँ की आराधना करता है ,
तो माँ प्रस्सन होकर अति शीघ्र मनोरथ पूर्ण करती है,,,
कामरूप छेत्र देश देवी छेत्र के नाम से पुराणों तथा तंत्रो में वर्णित है ,
कुमारी पूजा
कामख्या में कुमारी पूजा का विशेष महत्व है ,दर्शनार्थी देवी भाव से कुमारी पूजन कर कृत कृत्य होते है,जिस प्रकार प्रयाग में मुंडन तथा काशी में दंड भोजन का महत्व है उसी प्रकार कामख्या में कुमारी पूजन तथा भोजन करवाने का विधान है ,यहां कुमारी पूजन करने से पुत्र,धन,भूमि,एवम विद्या आदि का लाभ होता है तथा यहां सब इच्छाई पूरी होती है
यहां महा माया कुमारी रूप में विद्यमान है ,कुमारी सर्वविद्या स्वरूपा है इसमें कई संदेह नही है ,एक कुमारी पूजन करने से देव देवियो की पूजा का फल मिलता है ,जो मनुष्य माँ से जैसे कारण की कामना करता है पूजा पाठ जप तप हवन आदि कर माँ को प्रस्सन करता है माँ उसकी अभीष्ठ मनोकामना को अवश्य पूरी करती है ,जो लोग भक्ति भाव से देवी योनि मंडल का दर्शन ,स्पर्श करते है ,वे पित्र ऋn देव ऋन तथा ऋषी ऋन से अवश्य मुक्त हो जाते है,
योनि मण्डल का वर्णन
देवी के अंग ,चित्र पट ,पुष्टिमणि,खग शमशान महालिंग प्रतिमा जल मंत्र तंत्र तथा शालिग्राम में मण्डल वर्जित है,महामोह में मण्डल करने से महापातक करने से महापातक की प्राप्ति होती है और उसमें मण्डल करने पर उस स्थान को छोड़ कर अपने घर को लौट जाना चाहिए,अन्य योनि में भी मण्डल नही करना चाहिए,,शमशान के पूर्वभाग में देवी का महामंडल स्थित है,वही पर पूजा क्रिया करनी चाहिए ,
देवी दर्शन का नियम
सिद्धि की कामना करने वाले मनुष्य को चाहिए कि वह स्नान काल ,अर्धरात्रि तथा महापूजा के अवसान समय मे महामाया के समीप गमन अथवा स्पर्श न करे ,
कुमारन महाअष्टमी ,सायकाल ,युगादि तथा कार्तिक मास में देवी का दर्शन नही करना चाहिए ,यदि शूद्र लोग कामख्या देवी की आरतीयुक्त दर्शन करते है तो वे रूपवान होकर सद्गति को प्राप्त होते है ,स्नान के समय ,मध्याह्न में तथा निर्माल्य बिशरजन के समय स्त्रियो स्त्रियों को देवी के दर्शन नही करना चाहिए,,,
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
विशेष -
किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें
महायोगी राजगुरु जी 《 अघोरी रामजी 》
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(रजि.)
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