Sunday, November 11, 2018

सर्व विपत्ति-हर्ता श्री घंटाकर्ण मंत्र व साधना - प्रयोग विधि






सर्व विपत्ति-हर्ता श्री घंटाकर्ण मंत्र व साधना - प्रयोग विधि ~~~~~

श्री घंटाकर्ण को हिन्दू, बौध और जैन लोक हितकारी देवता के रूप में मानते है ! यह अत्यधिक प्रभावशाली देव माने गए हैं .

इनके मंत्र -यन्त्र के अनेको बिभेद मिलते हैं जो की अपने आप में ही एक अद्भुत तथ्य हैं और हर मंत्र यन्त्र से संबंधित एक से एक सरल और उच्च कोटि की साधनाए हैं , जिनका अपने आप में कोई सानी नही , पर अभी भी वे सारे विधान जो अत्यधिक चमकृत करने वाले हैं साधको के सामने आना बाकी हैं ! 

पुराणों में श्री घंटाकर्ण को यक्ष राज कुबेर का सेनापति भी माना जाता है ! दक्ष प्रजापति के यज्ञ को जिन शिव गणों ने भंग किया था श्री घंटाकर्ण भी उनमे से एक थे ! रविन्द्रनाथ टैगोर की एक कथा में श्री घंटाकर्ण का जिक्र है !

 केरल मे कृष्ण लीलाओं मे उनकी कृष्ण से भेंट का निर्त्य नाटक मे वर्णन होता है ! हरिवंश पुराण में कहा गया है कि घंटाकर्ण कान में घंटी बाँधकर भगवान शिव कि आराधना करते थे , ताकि शिव नाम के सिवा उन्हें कुछ ना सुनाई दे ! 

मान्यता है कि तपस्या पूर्ण होने पर शिव जी ने घंटाकर्ण से कहा कि तुम विष्णु जी कि पूजा करो ! भगवान विष्णु ने घंटाकर्ण को आदि बद्री कि उपाधि देकर बद्रीनाथ में स्थान दिया ! उन्होंने कहा कि कलयुग में तुम्हे हर स्थान पर पूजा जाएगा। 

श्री घंटाकर्ण को भैरव भी माना जाता है , कोणार्क सूर्य मंदिर के पत्थरों पर भी नाव में में नाचते हुए घंटाकर्ण भैरवों की प्रतिमा उत्कीर्ण है. एक प्रतिमा शांत भाव में है और एक रौद्र रूप में है ! 

कामाख्या आसाम में भी कामाख्या मंदिर के नजदीक श्री घंटाकर्ण का मंदिर है ! उत्तराखंड , गढ़वाल , राजस्थान , गुजरात और दक्षिण भारत मे भी उनकी पूजा होती है !

मुझे किसी ने बताया कि -

 कुछ लोग उन्हें हनुमानजी का अवतार भी मानते है ! मैने इनके बारे में बहुत अध्ययन एवं साधना किया है ! परन्तु मुझे कही से यह जानकारी नहीं मिली कि घंटाकर्ण का हनुमान से कोई संबध हो ? दोनों देवो का अपना मौलिक - स्वतंत्र अस्तिव है ! 
हाँ , घंटाकर्ण के नाम के पीछे महावीर शब्द होने से कही 

- किसी इलाके में ऐसी लोक -

 मान्यता हो सकती है ! इसी प्रकार एक मन्त्र गोरखनाथजी के नाम प्रचलित है , जिसमे गोरखनाथ और घंटाकर्ण का संयुक्त रूप से नाम आता है , जो मैने किसी प्राचीन शास्त्र में नहीं पढ़ा , अत: यह मन्त्र सही नहीं है ! मैने घंटाकर्ण पर एक ग्रन्थ तैयार किया है , जो शीघ्र ही प्रकाशन हेतु देने वाला हूँ !

श्री घंटाकर्ण मूल मंत्र ::----
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ॐ ह्रीं घंटाकर्णो महावीर: , सर्वव्याधि-विनाशकः !
विस्फोटक भयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबलः ||
यत्र त्वं तिष्ठसे देव, लिखितोऽक्षर-पंक्तिभिः !
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वात-पित्त-कफोद्भवाः ||
तत्र राजभयं नास्ति, यान्ति कर्णे जपात्क्षयम् !
शाकिनी भूत वेताला, राक्षसाः प्रभवन्ति न ||
नाकाले मरणं तस्य, न च सर्पेण दंश्यते ,
अग्निचौरभयं नास्ति, ॐ ह्रीं घंटाकर्ण नमोस्तु ते !
ॐ नर वीर ठः ठः ठः स्वाहा ||

विधिः- 

यह मंत्र छत्तीस हजार जाप कर सिद्ध करें । इस मंत्र के प्रयोग के लिए इच्छुक उपासकों को पहले गुरु-पुष्य, रवि-पुष्य, अमृत-सिद्धि-योग, सर्वार्थ -सिद्धि-योग या दिपावली की रात्रि से आरम्भ कर छत्तीस हजार का अनुष्ठान करें । बाद में कार्य साधना के लिये प्रयोग में लाने से ही पूर्ण फल की प्राप्ति होना सुलभ होता है ।

विभिन्न प्रयोगः- 

इस को सिद्ध करने पर केवल इक्कीस बार जपने से राज्य भय, अग्नि भय, सर्प, चोर आदि का भय दूर हो जाता है । भूत-प्रेत बाधा शान्त होती है । मोर-पंख से झाड़ा देने पर वात, पित्त, कफ-सम्बन्धी व्याधियों का उपचार होता है ।

1॰ मकान, गोदाम, दुकान घर में भूत आदि का उपद्रव हो तो दस हजार जप तथा दस हजार गुग्गुल की गोलियों से हवन किया जाये, तो भूत-प्रेत का भय मिट जाता है । राक्षस उपद्रव हो, तो ग्यारह हजार जप व गुग्गुल से हवन करें ।

2॰ अष्टगन्ध से मंत्र को लिखकर गेरुआ रंग के नौ तंतुओं का डोरा बनाकर नवमी के दिन नौ गांठ लगाकर इक्कीस बार मंत्रित कर हाथ के बाँधने से चौरासी प्रकार के वायु उपद्रव नष्ट हो जाते हैं ।

3॰ इस मंत्र का प्रतिदिन १०८ बार जप करने से चोर, बैरी व सारे उपद्रव नाश हो जाते हैं तथा अकाल मृत्यु नहीं होती तथा उपासक पूर्णायु को प्राप्त होता है ।

4॰ आग लगने पर सात बार पानी को अभिमंत्रित कर छींटने से आग शान्त होती है ।

5॰ मोर-पंख से इस मंत्र द्वारा झाड़े तो शारीरिक नाड़ी रोग व श्वेत कोढ़ दूर हो जाता है ।

6॰ कुंवारी कन्या के हाथ से कता सूत के सात तंतु लेकर इक्कीस बार अभिमंत्रित करके धूप देकर गले या हाथ में बाँधने पर ज्वर, एकान्तरा, तिजारी आदि चले जाते हैं ।

7॰ सात बार जल अभिमंत्रित कर पिलाने से पेट की पीड़ा शान्त होती है ।

8॰ पशुओं के रोग हो जाने पर मंत्र को कान में पढ़ने पर या अभिमंत्रित जल पिलाने से रोग दूर हो जाता है । यदि घंटी अभिमंत्रित कर पशु के गले में बाँध दी जाए, तो प्राणी उस घंटी की नाद सुनता है तथा निरोग रहता है ।

9॰ गर्भ पीड़ा के समय जल अभिमंत्रित कर गर्भवती को पिलावे, तो पीड़ा दूर होकर बच्चा आराम से होता है, मंत्र से 21 बार मंत्रित करे ।

10॰ सर्प का उपद्रव मकान आदि में हो, तो पानी को १०८ बार मंत्रित कर मकानादि में छिड़कने से भय दूर होता है । सर्प काटने पर जल को ३१ बार मंत्रित कर पिलावे तो विष दूर हो ।

11.इस मंत्र का जप करने से सब प्रकार की भूत - प्रेत - बाधा दूर होतें हैं | सर्व विपत्ति-हर्ता मंत्र है !

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

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