Sunday, November 11, 2018

महाविद्या




महाविद्या

महाविद्या अर्थात महान विद्या रूपी देवी। महाविद्या, देवी दुर्गा के दस रूप हैं, जो अधिकांश तान्त्रिक साधकों द्वारा पूजे जाते हैं, परन्तु साधारण भक्तों को भी अचूक सिद्धि प्रदान करने वाली है। इन्हें दस महाविद्या के नाम से भी जाना जाता है।

महाविद्या विचार का विकास शक्तिवाद के इतिहास में एक नया अध्याय बना जिसने इस विश्वास को पोषित किया कि सर्व शक्तिमान् एक नारी है।

शाब्दिक अर्थ

महाविद्या शब्द संस्कृत भाषा के शब्दों “महा” तथा “विद्या” से बना है।”महा” अर्थात महान्, विशाल, विराट। तथा “विद्या” अर्थात ज्ञान।

दस महाविद्याएँ

शाक्त भक्तों के अनुसार “दस रूपों में समाहित एक सत्य कि व्याख्या है – महाविद्या” जो कि जगदम्बा के दस लोकिक व्यक्तित्वों की व्याख्या करते है। महविद्याएँ तान्त्रिक प्रकृति की मानी जातीं हैं जो निम्न हैं-

काली
तारादेवी
ललिता-त्रिपुरसुन्दरी
भुवनेश्वरी
भैरवी
छिन्नमस्ता
धूमावती
बगलामुखी
मातन्गि
कमला

गुह्यतिगुह्य पुराण महाविद्याओं को भगवान विष्णु के दस अवतारों से सम्बद्ध करता है और यह व्याख्या करता है कि महाविद्या वे स्रोत है जिनसे भगवान विष्णु के दस अवतार उत्पन्न हुए थे। महाविद्याओं के ये दसों रूप चाहे वे भयानक हों अथवा सौम्य, जगज्जननी के रूप में पूजे जाते है।

पौराणिक कथा

श्री देवीभागवत पुराण के अनुसार महाविद्याओं की उत्पत्ति भगवान शिव और उनकी पत्नी सती, जो कि पार्वती का पूर्वजन्म थीं, के बीच एक विवाद के कारण हुई। जब शिव और सती का विवाह हुआ तो सती के पिता दक्ष प्रजापति दोनों के विवाह से खुश नहीं थे।

 उन्होंने शिव का अपमान करने के उद्देश्य से एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को आमन्त्रित किया, द्वेषवश उन्होंने अपने जामाता भगवान शंकर और अपनी पुत्री सती को निमन्त्रित नहीं किया। 

सती पिता के द्वार आयोजित यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं जिसे शिव ने अनसुना कर दिया, जब तक कि सती ने स्वयं को एक भयानक रूप मे परिवर्तित (महाकाली का अवतार) कर लिया। 

जिसे एख भगवन शिव भागने को उद्यत हुए। अपने पति को डरा हुआ जानकर माता सती उन्हें रोकने लगी। तो शिव जिस दिशा में उस दिशा में माँ का विग्रह रोकता है।

 इस प्रकार दशो दिशाओं में माँ ने ओ रूप लिए थे वो ही दस महाविद्या कहलाई। तत्पश्चात् देवी दस रूपों में विभाजित हो गयी जिनसे वह शिव के विरोध को हराकर यज्ञ में भाग लेने गयीं। वहाँ पहुँचने के बाद माता सती एवं उनके पिता के बीच विवाद हुआ

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

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