प्रेत श्राप तब बनता है जब जन्म-पत्रिका के किसी भी भाव में शनि-राहू या शनि-केतू की युति हो तो प्रेत श्राप कानिर्माण करती है |
शनि-राहू या शनि-केतू की युति उस भाव के फल को पूरी तरह बिगाड़ देती है तथा लाख यत्न करने पर भी उस भाव का उत्तम फल प्राप्त
नहीं होता है हर बार आशा तथा हर बार
धोखा की आँख मिचौली जीवन भर
चलती रहती है |
वह चाहे धन का भाव
हो, सन्तान सुख, जीवन साथी या कोई अन्य
भाव |
भाग्य हर कदम पर रोड़े लेकर खड़ा सा दिखता है जिसको पार करना बार-बार की हार के बाद जातक के लिए अत्यन्त
कठिन होता है शनि + राहू = प्रेत श्राप योग
यानि ऐसी घटना जिसे अचनचेत घटना कहा जाता है अचानक कुछ ऐसा हो जाना जिसके बारे में दूर दूर तक अंदेशा भी न हो और भारी नुक्सान हो जाये |
इस योग के कारण एक के बाद एक मुसीबत
बडती जाती है यदि शनि या राहू में से
किसी भी ग्रह की दशा चल रही हो या आयुकाल चल रहा हो यानी 7
से 12 या 36 से लेकर 47 वर्ष तक का समय
हो तो मुसीबतों का दौर थमता नही है .कई
बार ऐसा भी होता है किसी शुभ
या योगकारी ग्रह की दशा काल हो और
शनि + राहू रूपी प्रेत श्राप योग
की दृष्टि का दुष्प्रभाव उस ग्रह पर हो जाये तो उस शुभ ग्रह के समय में भी मुसीबतें
पड़ती हैं जिस पर अधिकतर ज्योतिष गण ध्यान नही देते परन्तु पूर्व जन्म के दोषों में इसे शनि ग्रह से निर्मित पितृ दोष कहा जाता है इस दोष का निवारण भी घर में सन्तान के जन्म लेते
ही ब्राह्मण की सहायता से
करवा लेना चाहिए अन्यथा मकान सम्बन्धी परेशानियाँ शुरू हो जाती है प्रापर्टी बिकनी शुरू हो जाती है कारखाने बंद हो जाते हैं | पिता पर कर्जा चड़ना शुरू हो जाता है
नौकरी पेशा हो कारोबारी संतान के प्रेत श्राप
योग के कारण बाप का काम बंद होने के कगार पर पहुंच जाता है ऐसे योग वाले के घर में निशानी होती है
की जगह जगह दरारें पड़ना सफाई के बावजूद
भी गंदी बदबू आते रहना घर में से
जहरीले जीव जन्तु निलकना बिच्छू - सांप
आदि.
इस लिए ये प्रेत श्राप योग
भारी मुसीबतें ले कर आता है और इस योग
के दशम भाव पर प्रभाव के कारण ही चलते हुए कामबंद हो जाते हैं सप्तम भाव पर प्रभाव के कारण ही शादिया टूट जाती है अष्टम भाव पर
इसका प्रभाव हो तो जातक पर जादू – टोना जैसा अजीब सा प्रभाव रहता है और दर्द नाक मौत होती है नवम भाव में हो तो भाग्य
हीनता ही रहती है
एकादश भाव में हो तो मुसीबतों से लड़ता लड़ता इंसान हार
कर बैठ जाता है मेहनत के बाद भी फल
नही पाता आदि कुंडली के
सभी भावों में इसका बुरा प्रभाव रहता है मित्रों ज्योतिष कोई जादू की छड़ी नहीं है
ज्योतिष एक विज्ञानं है ज्योतिष में जो ग्रह आपको नुकसान करते है उनके प्रभाव को कम कर दिया जाता है और जो ग्रह शुभ फल
देता है, उनके प्रभाव को बढ़ा दिया जाता है !
हमारे ज्योतिष शास्त्र मे शनि को आठवे दशवे और बारवे भाव का पक्का कारक
माना है जबकि राहु एक छाया ग्रह है एक मान्यता के अनुसार राहु और केतु का फल देखने के लिए पहले शनि को देखा जाता है
क्योंकि यदि शनि शुभ फल दे रहे हो तो राहु और केतु अशुभ फल नहीं दे सकते और यह भी माना जाता है कि शनि का शुभ फल देखने के लिए चंद्रमा को देखा जाता है मेरे इस कथन से मेरे बहूत से जोतिषाचार्य मित्र सहमत नही होंगे परंतु ये सत्य है और हमारे कहने
का भाव यह है कि प्रत्येक ग्रह एक दुसरे पर निर्भर है
परंतु इन सभी ग्रहों में शनि का विशेष स्थान है कूछ जोतिषाचार्य शनि से मकान और वाहन का सुख भी देखते है साथ ही इसे कर्म
स्थान का कारक भी माना जाता है यह चाचा और ताऊ का भी कारक है राहु को आकस्मिक लाभ का कारक माना गया है राहु से कबाड़ का और बिजली द्वारा किये जाने वाले काम को देखा जाता है.
राहु का सम्बन्ध ससुराल से
होता है यदि शनि और राहु एक
साथ एक ही भाव में आ जाये तो व्यक्ति को प्रेत
बाधा आदि टोने टोटके बहुत जल्दी असर करते है क्योंकि कूछ शनि को प्रेत भी मानते है और राहु छाया है
इसे प्रेत छाया योग भी कहा जाता है पर सामान्य
व्यक्ति इसे पितृदोष कहता है यदि राहु
की बात की जाये तो राहु जब
भी मुशकिल में होता है तो शनि के पास भागता है.
राहु सांप को माना गया है और शनि पाताल मतलब धरती के नीचे सांप धरती के नीचे
ही अधीक निवास करता है.
इसका एक
उदहारण यह भी है कि यदि किसी चोर
या मुजरिम राजनेता रुपी राहु पर मंगल
रुपी पुलीस या सूर्य रुपी सरकार
का पंजा पड़ता है तो वे अपने वकील
रुपी शनि के पास भागते है.
सीधी बात है राहु सदैव शनि पर निर्भर करता है पर जब शनि के साथ बैठ जाता है तो शनि के फल का नाश
कर देता है शनि उस व्यक्ति को कभी बुरा फल नहीं देते जो मजदूरों और फोर्थ क्लास लोगो का सम्मान करता है क्योंकि मजदूर
शनि के कारक है जो छोटे दर्जे के लोगो का सम्मान नहीं करता उसे शनि सदैव बुरा फल ही देते है आप अपनी कुंडली ध्यान से देखे
अगर आपकी कुंडली में भी राहु
और शनि एक साथ बैठे है तो आप अपनी कुंडली ज़रूर दिखाये।
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