आधुनिक समय में लोगों में भोगी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, अनैतिक संबंध बढ़ते जा रहे हैं। पुरुषों और स्त्रियां एक समय में अनेक संबंध बना रहे हैं।
हिंदू धर्म में एक पति या एक पत्नी के होते हुए दूसरे विवाह की अनुमति नहीं दी जाती है, इसलिए कई लोग चोरी-छुपे दूसरे रिश्ते बनाते हैं।लेकिन यदि जातक की जन्मकुंडली का सटीक विश्लेषण किया जाए तो यह आसानी से पता लगाया जा सकता है कि जातक का चरित्र कैसा होगा और उसके कितने विवाह होंगे ।
क्या जातक एक से अधिक विवाह करेगा और करेगा तो किन परिस्थितियों में करेगा। आइये जानते हैं इस संबंध में क्या कहते हैं ग्रह योग।
विवाह संबंधों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए कुंडली में शुक्र और बृहस्पति की स्थिति देखी जाती है। उसके साथ अन्य ग्रहों की युति से स्त्री या पुरुष संख्या का पता लगाया जा सकता है।सप्तम स्थान जीवनसाथी का भाव होता है।
यदि सप्तम में मंगल या सूर्य अकेले हो तो एक ही जीवनसाथी होती है।
लग्न का स्वामी और सप्तम स्थान का स्वामी दोनों यदि एक साथ प्रथम या फिर सप्तम स्थान में हों तो व्यक्ति की दो पत्नियां होती हैं।
सप्तम स्थान के स्वामी के साथ मंगल, राहु, केतु, शनि छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो एक स्त्री की मृत्यु के बाद व्यक्ति दूसरा विवाह करता है।
यदि सप्तम या अष्टम स्थान में पापग्रह शनि, राहु, केतु, सूर्य हो और मंगल 12वें घर में बैठा हो तो व्यक्ति के दो विवाह होते हैं।
लग्न, सप्तम स्थान और चंद्रलग्न इन तीनों में द्विस्वभाव राशि यानी मिथुन, कन्या, धनु या मीन हो तो जातक के दो विवाह होते हैं।
लग्न का स्वामी 12वें घर में और द्वितीय घर का स्वामी मंगल, शनि, राहु, केतु के साथ कहीं भी हो तथा सप्तम स्थान में कोई पापग्रह बैठा हो तो जातक की दो स्त्रियां होती हैं।
स्त्री की कुंडली में यह फल पुरुष के रूप में लेना चाहिए। शुक्र पापग्रह के साथ हो तो जातक के दो संबंध होते हैं।
दूसरे भाव में अनेक पापग्रह हों और द्वितीस भाव का स्वामी भी पापग्रहों से घिरा हो तो तीन विवाह भी हो सकते हैं।
शुक्र पर मंगल तथा अन्य ग्रहों पापी का प्रभाव हो तो भी व्यक्ति का चरित्र बिगड़ सकता है | अंतिम निर्णय के लिए नवमांश कोbhi देखना चाहिए |
जन्म कुंडली देखने और समाधान बताने की
दक्षिणा - 351 मात्र .
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राजगुरु जी
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